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उच्च कुलमें जन्म
और उसे वीर्य रक्षा और ब्रह्मचर्यका पूरा २ ध्यान रहना चाहिये। इसी कारण गुमानजी समय २ पर अपने पुत्रों को समझाते रहते थे कि वीर्य रक्षाके बहुत बड़े लाभ हैं। युवावस्था तक इसको भले प्रकार स्थंभन करना चाहिये, किसी भी तरहं इसको खराब नहीं करना चाहिये । बहुतसे पिता अपने पुत्रोंको लज्जाके भयसे ब्रह्मचर्यकी रक्षाके उपायोंकी शिक्षा नहीं देते हैं इस कारण वे कुसंगतिमें पड़कर और हानि लाभसे अजान रहकर अपने ब्रह्मचर्यको बिगाड़ कर अपने मन और शरीरको निर्बल कर बैठते हैं और फिर उन्हींको बड़े होनेपर अपने पूर्व कृत्योंका पछतावा करना पड़ता है।
जब हीराचंद २० वर्षसे ऊपर अवस्थाके होगए तब गुमानजीप्रौढ अवस्था ने इनकी लग्न सूरत निवासी एक वीसा हमड विवाह।
गृहस्थकी कन्यासे कर दी। इसका नाम
विजलीबाई था । यह कन्या १३ वर्षकी थी और यद्यषि लिखना पढ़ना नहीं जानती थी तो भी घरके कामकाजमें बड़ी चतुर, सरलचित्त, सौम्यमूर्ति, दयावती और जिनध. ममें श्रद्धालु थी। ऐसी स्त्री-रत्नको पाकर हीराचंद चित्तमें बहुत ही प्रसन्न हुए और दोनों अति प्रेमके साथ गृहीधर्म सेवने लगे।
सेठ गुमानजीकी स्त्री एक दिन कुछ बीमार होगई। सेठजी और गुमानजी और
- उनके पुत्रोंने बहुत औषधि की परन्तु आयु
कर्म शेष होनेका समय आजाने पर कोई उनकी पत्नीका मरण
" उपचार कारगर नहीं हुआ । यद्यपि वह
रोगग्रस्त थी पर होशसे नहीं चूकी थी। अपने दिलमें अर्हत सिद्ध जपा करती थी और उसके पति व पुत्र
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