________________
उच्च कुलमें जन्म ।
इस धर्मके कार्यमें यद्यपि साह हीराचंदने पंचायतीके साथ धनकी मदद बहुत नहीं दी थी तो भी अपनी उदारतासे अपनी शक्तिसे अधिक सहायता की थी, इतना ही नहीं इस कार्यके मुख्य प्रबन्धकर्ताओंमें साह हीराचंद भी थे। इनके प्रबन्धमें निर्विघ्नतया
और विना किसी शिकायतके कार्यकी पूर्ति देखकर लोग इनकी बुद्धि और धर्मवात्सल्यताकी बहुत सराहना करते थे। . माह हीराचंदनीकी जातिमें अति प्रशंसा होते देखकर वखत
चंदका मन अप्रसन्न रहता था। इसके सिवाय वखतचंदका पृथक् . वखतचंदकी प्रकृति भी हीराचंदसे नहीं होना। मिलती थी। दूसरे इनकी पत्नी भी अपने
पतिको जुदा रहनेकी सम्मति दिया करती थी क्योंकि वह दूरदर्शिता और बुद्धिमत्तासे काम लेना नहीं जानती थी । वखतचंदका मन पृथक् होनेको होता भी था पर जब वह बड़े भाईके वर्तावको अपनी ओर देखता था तब उसका मन तुर्त इस विचारको मिटा देता था। पर उसकी स्त्रीके पुनः पुनः प्रेरणा करने पर वखतचंदका चित्त स्थिर हो गया कि हम कल अवश्य २ अपने भाईसे जुदा हो जायगे । संवत् १९०० में या सन् १८४३में कि जब सूरतमें सर्कार इंग्रेज द्वारा बिठाए हुए निमकके महसूलको प्रमाणसे अधिक समझकर प्रजाने हड़ताल की थी साह वखतचंदने एक दिन सवेरे जब साह हीराचंद श्री मंदिरजीसे निबटकर घरमें आए उदास मुख करके अपने मुँहसे शब्द न निकलते हुए भी बड़ी कठिनतासे ज्यों त्यों कर कह डाला कि मेरी इच्छा आजसे अलग ही रहकर भिन्न ही व्यापार करनेकी है। अब तक तो मैं ज्यों
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org