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उच्च कुल में जन्म
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भाई एक ही घरमें सुखसे शांति पूर्वक रहने लगे । यद्यपि हीराचंदको छोटे भाई से प्रेम था परन्तु वखतचन्द्रका मन अपने भाईका बाजार व जाति में आदर देखकर ईर्षाभावसे भर आता था और इस कारण कभी २ स्वतंत्र होनेको मन चाहता था ।
साह हीराचंद अपनी पत्नी विजलीबाईके साथ अति प्रेमसे रहते हुए । सं० १९९३ में एक कन्याका साह हीराचंदजीको लाभ हुआ जिसका नाम हेमकोर ( हेमकुमारी) संतानको लाभ । रक्खा गया । यद्यपि इस युगलको यह इच्छा थी कि पुत्रका लाभ होगा क्योंकि प्रायः सर्वसाधारणको पुत्रीकी अपेक्षा पुत्रकी प्राप्तिका अधिक प्रेम होता है। तौभी शाह हीराचंद को पुत्रीके लामसे किसी प्रकारकी उदासी नहीं हुई । सर्वसे पहले सन्तानका लाभ होनेपर इनको व सर्व कुटुम्बियोंको बड़ा हर्ष हुआ । इन्होंने यथायोग्य उत्सव मनाया । श्री यथायोग्य यथायोग्य दान धर्म किया ।
मंदिरजी में पूजन कराई व इस वर्ष सूरत नगर में इतनी भारी अग्नि लगी कि आधा नगर भस्म होनेके साथ वह अग्नि साह हीराचंद के मुहल्ले में भी आई । खपाटिये चकले के बहुतसे घर जल गए । साह हीराचंदका घर भी भस्म हो गया । साह हीराचंद ने अपने घर भस्म होनेका दुःख नहीं किया परन्तु बड़ा भारी दुःख जो साह हीराचंद व अन्य श्रावकों को हुआ वह इस चंदावाड़ीके निकटस्थ बड़े मंदिरमें अग्नि लगनेसे हुआ । श्री मंदिरजीमें अग्निकी लपकोंको जाते हुए देखकर साह हीराचंद, वखतचंदने अपने घरकी चिंता छोड़ तुर्त ही निकटके श्रावकोंको बुलाया और मंदिर के भीतर से श्री जिन बिम्बोंकी रक्षा की । सर्व
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