Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 06
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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We shall work with you immediately. - The TFIC Team. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८७ mammeerma - . -. ":" 9. C G 5 Rumarem . ' " - . A y . CN NWAreasantipurterinar .... an.. . onomimammeenawanemamraemorr- जाग बहो. % - आ नागमां मादमा प्रसीन. विविधोपदेश सूचक श्रीगौतम कुलक नामक प्रकरण बालाव बोध सहित तथा दार्टीतिक एकशो ने अगीयार कथाओ युक्त. -- Get mit . r यायमा प्रवेश कारनामा थिए शानो ससा हावाश्री समस्त चतुर्विध श्रीसंघने अवश्य यांचवा माटे घणोज उपयोगी जाणीने श्रावक गाजीपसिंह माणके ___ श्रीषापुरीमध्ये. firmanगार मामा कमत. .wommrtersnes a amara - n आ पुस्तकापवागपोसERTATIपोलारानीको -Umraam--का . . . 50 0Rupanistapnadeement ma Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. - per- सुज्ञ जनोनी सुरूपाथी आ "जैनकथारत्नकोष” नामना पुस्तकनो बहो नाग बंपाइ तैयार थयो , आ नागंमा मात्र एक गौतम कुलकनामक नानुं सर वीश गाथानुज प्रकरण ब्राप्यु डे, तेनी एकेकी गाथामां घj करी चार चार उपदेशो दाखल करेला बे,अने प्रत्येक उपदेश उपर दृष्टां तरूपें एकेकी अथवा बब्बे कथा कहीने ग्रंथनुं गौरव कयुं . सर्वे म तीने या ग्रंथमा एकसो अगियार कथा आवेली , ते सर्व कथाघणी सरस अने नवनवा उपदेश संबंधि स्वरूपनो निर्णय करनारी होवाथी वांचनारा साहेबोना चित्तने कांक अपूर्व थानंदना अंकूरोने प्रगट करनारी . तेमज वली ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप रत्नत्रयीमां स्थिरता कराव नारी. तथा ए कथाउनां वाचकवंद जेम परमपद साधन करवामां.कु शल थशे, तेमज संसार व्यवहारमा रह्या थका नीतिमां एवा निपुण थशे के ते जनने दुष्कृत कार्य करवानी बुद्धि तो स्वप्नमां पण थाशे नहीं. घj गुं लखीयें परंतु या ग्रंथ वांचनार पुरुष अत्यंत दृढतर न्यायवान थशे. एवी अत्युत्तमोत्तम बोध करनारी कथा था ग्रंथमां आवेली . __ था बहो नाग बापतां पूर्व नागमा लख्या मुजब दृष्टिदोष अथवा प्रमा ददोषथी सुझजनोने अगुक्ता दीनामां आवे, तो ते संबंधी जे कां मुज ने दोष लाग्या होय, ते सर्व दोषोनी या ग्रंथसंबंधी नवनवा प्रकारना विनोद उपजावनारी कथाउने, वांचनारा समदृष्टि सङनोनी समक्ष हूं सविनय माफी माएं बुं. __ या ज्ञानवृधिना प्रनावथी, अथवा तो श्रीसंघना अतिशय माहात्म्य थी, अथवा तो मुंबानगरीना हालमां थता महोदयना महत्त्वनी धाक र्षण शक्तिथी, वा अत्रत्य श्रावक समुदायना पुण्योदयथी सादात् पूर्वे था गयेला गुरुश्री आर्यमहागिरिजी महाराज जेवा महोटा प्रानाविक अने साधुसंबंधी शुक्समाचारीमा प्रवृत्ति करनारा अने जेमणे पाषाण अने सु वर्ण, मान अने अपमान, वंदक अने निंदक, शत्रु अने मित्र, तृण अने मणि, राजा अने रंक, ए सर्वनी उपर समनावें दृष्टि स्थापन करेली . Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्‍ प्रस्तावना. वली जे समतात्मरमणे रमण करनार, समतारूप गुन ध्यानानिवडे कर्मरूप काटने बालनार, विनाव परिणतिने वमनार, वह हमादि तपश्चर्या करनार, शुद्ध चारित्राचार गालनरूप प्रवहणें करी संसारसमुड्ने तरनार, इत्यादिक अनेक गुणोना करंमक, साधुवर्य मुनिश्री मोहनलाल जी माहाराज, पोताना गुणयुक्त पशिष्योसहित, अमारो या हो नाग पूर्ण थयो के तुरत या मुंबइमां पधार्या बे, ते पण या प्रमारा शुभकारी बा जाने मंगलदायक कार्य थयुं, एम स्पष्टरीतें देखाय बे. कारण के तेवा मु नीश्वरोनो विहार तो घणुं करी श्रीगुर्जर, मालव, कोंकण, मारवाड, बं गाल, काठीयावाड, ने कल वगेरे देशोमां थाय बे, परंतु जीवयत्नाने माटे आहार विहार करवामां केटलीएक अडचण पडवाने लीधे या मुंबइमां लगनग चालीस हजारं श्रावकोनो समुदाय बतां पण पूर्वोक्त महामुनि जीनुं यागमन यतुं नथी, तेम बतां पण ते मुनिराज मुंबइना तथा सुरतना निवासी श्रावकोनी सविनय व्यतिप्रार्थनाथी मुंबइमां पधारथा, तेथी या अस्मदीय श्रावक वर्गना बडा नागरूप ज्ञानवृद्धिकारक कामने परिपूर्ण मां गल्यसूचक कार्य थयुं, ए वातमां काइ पण संशय नासतो नथी. ग्रंथ जे वखत संपूर्ण थयो, ते वखतमांज पूर्वोक्त मुनिराजजीं याहिं शुभागमन थयुं वे माटे या अमारा ग्रंथना प्रगट थवानी साथें ते मुनिवर्यना मुंबइमां शुभागमननी उत्प्रेक्षाकरी बे. वली याहिं कोई नाइने संदेह उत्पन्न थशे के या तमारो बो नाग तो हालज बाहेर पड्यो घने ते महाराजश्रीयें चैत्रमासमां याहिं पानधाखा बे ? तो त्यां कदेवानुं के या बोजाग तो चैत्रमासमांज तैयार थयो छे, परंतु यमारा शेठ नीम सिंहनाइ देवलोक थया, तेथी तेमना अपशोषना कारणथी तथा केटली एक अडचणने लीधे ते वखतमां या ग्रंथ बाहेर पड्यो नहि अने हाल जारें बापवानुं काम सरु करूं, तारे या प्रस्तावना बापवी प्रव शेष रहि हती ते प्रस्तावना तथा प्रथम चैत्रमासमां उपाइ रहेलो या ast नाग, बाहेर पाड्यो . अनमति सुइजनेषु शुनं जवतु. शा० शामजी लागण. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अस्य ग्रंथस्यानुक्रमणिका प्रारभ्यते ॥ १४ १ प्रथम मंगलाचरण करतां, पहेला पदमांजे लोनी मनुष्य होय, ते इव्य उपार्जचा तत्पर होय ते उपर चारुदत्तनी कथा. श्रीनेमि ३ पंचेंशियोनां विषयसुख ते कामनोम ,तेमां प्रथम श्रोत्रंडिय नपर राजपुत्र रामनी कथा. नवनावना ग्रंथमां. .... .... १० ३ चरिंख्यि उपर शेठ पुत्रनी कथा.नवनावना ग्रंथमां ने. .... ११ ४ घ्राणेंश्यि उपर गंधप्रियनी कथा नवनावना ग्रंथमां जे. ..... ५ रसनेंघिय उपर मधुप्रियनी कथा. नवनावना ग्रंथमां ले. .... ६ स्पर्शेघिय उपर राजकुमर महेंनी कथा. जवनावना ग्रंथमा ले. १३ ७ सामान्य काम ते मैथुननी इबा, स्त्रीसंग करवौ तेनी उपर चं मप्रद्योतन राजानी कथा.तेनी अंतर्गत जा सा सासा प्रश्न पू बनार सोनीना जीवनी कथा. उपदेशमालामांने..... .... G दमा उपर दमदंतराजर्षिनी कथा. यावश्यक वृत्तिमा ले..... २० एमध्यम पुरुष उपर जिनकुमारनी कथा. अधमादिषट् पुरुष च० १० क्रोधथी विराम पामी वैर विरोध समाव्या उपर शविड अने वारिखिन्ननी कथा.श्रीशत्रंजय माहात्म्यमा ने. .... .... ३२ ११ सिद्धांत प्रमाणे चाले,ते साधु, ते उपर महेंड्राजा तथा तेना परिवार कुमारनी कथा. .... १२ समता करे ते साधु, ते उपर अर्जुनमालीनी कथा. उत्तराध्ययनें. ४५ १३ उत्सर्ग अने अपवाद ए बेदु प्रमाणे चाले, तेने साधु कहियें, ते उपर मुनिचं मुनिनी कथा. गुरुमुखें सांजलेली बे. .... ५७ १४ स्वसमय. परसमयना जाण होय ते साधु कही, ते उपर गो __ष्ठामाहिल्लनी कथा. श्री आवश्यकनी टीकामां बे. .. .... ३५ सत्त्ववंत धर्मथीन चले, ते उपर ललितांग कुमरनी कथा. श्रीपा० १६ बापदानो निस्तार करे,ते बांधव,ते उपर सिंहवसंतनी कथा नाव १७ क्रोध उपर शूर ब्राह्मणनी कथा. नवनावनामां . १७ मान उपर ननित कुमरनी कथा. नवनावनामां बे. १ए माया उपर शेनी पुत्री पद्मिनीनी कथा.नवनावनामां बे....... ३७ ६३ ६३ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्‍ अनुक्रमणिका. ७ १ ए३ १२० २० लोन उपर कोणिक राजानी कथा. श्रीवीरचरित्रमां बे. ६ ८ २१ क्रोध ते विष ते उपर स्कंधकाचार्यनी कथा. उपदेशमालानी वृत्तिमां. ७८ २२ हिंसा ते मृत ते उपर जीमकुमारनी कथा. श्रीपार्श्वचरि० २३ जातिमद उपर हरिकेशीना पाउला जवनी कथा. उत्तराध्ययन० २४ ला मद उपर सुनूम चक्रवर्तीनी कथा. श्री यावश्यक निर्युक्तिमां. २५ कुलमद उपर मरिचीनी कथा. श्रीवीरचरित्रमां बे. २६ ऐश्वर्य मद उपर दशार्णन‍ राजानी कथा. वृंदारवृत्तिमां बे. २७ बलमद उपर श्रेणिक राजा, वीरस्वामी विशाखानंदीनी कथा. २८ रूपमद उपर सनत् कुमार चक्रवर्तीनी कथा. उत्तराध्ययनादिमां. १०१ १ तपोमद उपर श्रेणिक पुत्रनंदिषेण ऋषिनी कथा. वीरचरित्रमां बे. १०५ ३० श्रुतमद उपर स्थूलिनजीनी कथा परिशिष्टपर्वणीमां बे. 209 ३१ सामान्य मद उपर बाहुबलिनी कथा. उपदेशमालामां बे. ३२ अप्रमाद उपर चंदा तथा सर्गमाताना दीकरानी कथा. समरादि० १२२ ३३ माया तेज जय ते उपर सर्वागसुंदरीनी कथा. श्री यावश्यकमां बे. ३४ सत्य ते शरण बे ते उपर कालिकाचार्यनी कथा. उपदेशमालामां. १३२ ३५ लोन उपर मम्मण शेठनी कथा. आवश्यक निर्युक्तिमां बे. २६ संतोष उपरांत सुख नथी ते उपर कपिल केवलीनी कथं श्रीवत्त० १३५ ३७ प्रचंम होय तेने विद्या यावे ते उपर जवराज ऋषिनी कथा. १३७ ३० विनयवंतने विद्या नजे. ते उपर सिद्धपुत्रनी कथा. श्री आवश्य० १४४ ३० क्रोधीने अपकीर्त्ति नजे, ते उपर कुलवालुखानी कथा. १४५ ४० कुशीलने अपकीर्त्ति नजे, ते उपर मुंजनी कथा. मुंजप्रबंधमां बे. ४१ संचिन्न चित्तवंतने अलका नजे, ते उपर शूर विप्रनी कथा...... ४२ सत्यवंत पुरुषने लक्ष्मी नजे, ते उपर मकरध्वजनी कथा. १४७ ४३ कृतघ्नने मित्र पण त्याग करे बे ते उपर जुललीना यार दीर्घरा० १५० ४४ जे यत्तावंत होय ते पापने तजे तेनी उपर मेतार्य मुनिनी कथा. १५० ४ ५ जेम सुका सरोवरने हंस बांगे, तेम खानखारूपपाणी सुकायाथी ते श्रात्माहंस बांगे, उपर समुदन्तादिकनी कथा. प्रश्नोत्तररत्नमाला १२८ १३४ १४५ १४७ वृत्तिमां बे. ४६ क्रोधीने बुद्धि बांगे ते उपर परिघातकनी कथा. .... .... .... დე uu ܐܐ १५० १५४ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ अनुक्रमणिका. ४७ थरुचिवंतने कहे, ते विलाप. ते उपर ब्रह्मदत्त पने चित्र सं नूतिनी कथा. श्रीनत्तराध्ययनसूत्रमा . .... .... १५५ ४७ अबतवाला पासें मागवू, ते विलाप, ते उपर श्रीकम अने वी रासालवीनी कथा. श्रीयावश्यक नियुक्तिमां बे. .... .... १६३ अनिश्चित अर्थवालाने कहेते विलापते पर गामडियानी कथा. १६६ ५० व्यादिप्तचित्तवालाने कहे ते विलाप तेउपर बटुकनीकथा.उपदे० १६६ ५१ घणा कुशिष्य करवा ते विलाप, ते उपर कालिकाचार्यना शिष्य नी कथा. श्रीउत्तराध्ययनसूत्रमा ने. .... .... .... १६७ ५२ उष्ट राजा दंम देवा तत्पर होय ते उपर बलराजानी कथा. खंदारु० १६ए ५३ विद्याधर होय ते मंत्र साधवा तत्पर होय ते उपर मेघरथ रा जानी कथा. श्रीपरिशिष्टपर्वणीमां जंबूस्वामीना अधिकारें बे. १७१ ५४ मूर्ख होय ते कोप करवाने तत्पर होय ते उपर बाहिर था हिरणीनी कथा. श्रीउपदेशरत्नाकरमां बे. .... .... १७३ ५५ सुसाधु होय ते तत्त्वमा तत्पर होय ते उपर आर्य माहागिरि थाचार्य तथा सुहस्तीनी कथा. श्रीपरिशिष्टपर्वणीमां डे. .... १७४ ५६ उग्रतपनी शोना ते क्षमा, ते उपर सुकोशल मुनिनी कथा..... १७ ५७ समतानी शोनाते क्षमायोगमा रहे,ते उपर सुव्रतमुनिनीकथा.या० १७२ ५७ चारित्रनी शोना ते ज्ञान अने नर्बु ध्यान, ते उपर पुष्पनूति थाचार्यनी कथा. श्रीयावश्यकनियुक्तिमा . .... .... १७३ एए शिष्यनी शोना ते विनयमां प्रवर्त, ते उपर निंबक चेलानी क था. श्रीउत्तराध्ययनना प्रथम विनययध्ययनमा ....... १७४ ६० धानूषण रहित ब्रह्मचारी शोने, तेनी उपर वस्त्र रहित हरिके शी मुनिनी कथा. श्रीउत्तराध्ययनसूत्रना बारमा अध्ययनमां बे. १७५ ६१ परिग्रह रहितपणे दीक्षा धारण करनार साधु शो, ते उपर क रकंफूनी तथा प्रसंगें चार प्रत्येक बुधनी कथा. आवश्यकनि० १५१ ६५ बुद्धिमान प्रधानें राजा शोने ते उपर कल्पकनी कथा. श्रीपरिशि० १७ ६३ सती होय ते लजावती होय तो ते उपर जिनमतीनी कथा, सुम० २०४ ६४ चपलचित्त भने अनवस्थितचित्तवालाने पोतानो आत्मा तेज वैरी जाणवो,तेनी उपर शेवनी स्त्रीनी कथा. उपदेशरत्नाकरमां . २०॥ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. ६५ शीलवंत प्राणी तेनो थात्माज जसवंत,ते उपरशीलवतीनी कथा. २१० ६६ जेनुं चित्त धर्मने विषे अस्थिर होय तेनो आत्माज उरात्मा डे तेनी उपर गंगपातकनी कथा,यावश्यकनियुक्ति तथा उपदेश र० २११ ६७ जे जितात्मा होय ते पोताने अने परने शरणनूत थाय ते उ पर थावच्चापुत्रनी कथा. लीलातासूत्रमा दे. ..... .... २१२ ६७ धर्मकार्य उपरांत कोइ नलष्टकार्य नथी,ते उपर मुग्धनहनी कथा. १२३ ६ए प्राणीनी हिंसा उपरांत बीजं को अकार्यनथी तेनी उपर देवप्रा साद, सामदेव भने वामदेवनी कथा. श्रीसुमतिनाथचरित्रमा ने. २२४ ७० प्रेमराग स्नेहरागनी उपरांत को बंधन नथी ते उपर आईकु मारनी कथा..सूयगडांग सूत्रमां. .. .... २३६ ७१ बोधिबीजना लान नपरांत बीजो को लान नथी ते उपर चं पकमालानी कथा. श्रीसुपार्श्वचरित्रमा ले. .... .... २३ए ७२ परस्त्री न सेववी ते उपर वीरकुमारनी कथा. श्रीसुपार्श्वचरित्रमां. २५४ ७३ अविद्यावंतने न सेववा ते उपर अगीतार्थ श्राचार्यनी कथा. श्रीविशेषावश्यकमां बे.. .... .... .... .... २६० ७४ मानहीन पुरुष न सेववा ते उपर वीरस्वामी अने गोशालान। कथा. सुबुदि उष्टबुदिनी कथा. श्रीशांतिनाथचरित्रमा ने. .... २६५ ७५ चाडीयामनुष्यने न सेववा,ते उपर चक्रदेवनी कया.समरादित्य. १६४ ७६ जे धर्मी होय ते सेववा योग्य होय ते उपर श्रीकृषनदेवस्वा मीना पाबला नवें वैद्यपुत्रनी कथा. ... ... .... २७० ७७ जे पंमित होय ते पूबवा योग्य होय ते उपर तुंगीया नगरीना श्रावकनी कथा. श्रीनगवतीसूत्रमां. .... ७७ जे साधु ते वांदवा योग्य ते उपर विजयसेन आचार्यनी कथा. २७७ ए जे निर्मम ते पडिलानवा योग्य ते उपर सुदत्तनी कथा. सुमति० २७० Go पुत्र अने शिष्य बेदु सरखा जाणवा, ते उपर राजानी तथा था। चार्यनी कथा. आवश्यकटीप्पणीमां. .... .... .... २०० . ७१ रुषि अने देवता सरखा जाणवा ते उपर प्रियग्रंथ आचार्यनी कथा कल्पसूत्र थिविरावलीमां. .... . ... .... नए आर्यसमित आचार्य कथा. कल्पथिविरावलीमां. .... .... श्ए० Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. ७३ पांचमा निन्दव गंगदत्तनी कथा. श्रीविशेषावश्यकमां बे. ..... २० ७४ मूर्ख अने तिर्यच बेतु सरखा ते उपर मरुकनी कथा.यावश्यकनि० २५३ ७५ मु अने दरिडी सरखा, ते उपर सारण जुवटियानी कथा. सहस्त्रमन्नकथामां. ... .... .... एव ७६ पुरुषनी बहोंतेरकला तथा स्त्रीनी पोशठ कला,ए सर्वे कलाने जीतनारी धर्मकला . ते नपर.सहस्रमन्ननी कथा. .... २५५ G७ सर्वकथाने धर्मकथा जीतनारी , ते उपर चितारानी पुत्रीनी कथा. यावश्यकनिर्यक्तिमां. .... .... .... ३०ए ७ सर्वबलने धर्मबल जीतनारूं ते उपर कोकाशनी कथा. ३१६ Gए सर्वसुखने धर्मसुख जीतनारुं ले ते उपर संयतिराजा कथा. ३३७ ए० जुगारीप्राणी जुगार रमवाने थासक्त होय, तेना धननो नाश थाय, ते उपर नलकुबरनी कथा. .... .... .... ३४२ ए? जे प्राणी, मांसनकाणमां बासक्त होय, तेने दयानो नाश थाय. ते उपर सोदामनी कथा श्रीनेमीचरित्रमां. .... .... ३४३ एर जे प्राणी मद्यमां बासक्त होय, तेना यशनो नाश थाय डे, ते उपर राजाना पुत्रनी कथा. समरादित्यरासमां. .... ३४४ ए३ जे प्राणी वेश्यामां आसक्त होय, तेना कुलनो नाश थाय, ते उपर नबितकुमरनी कथा. .... ... एव जे प्राणी जीव हिंसामा श्रासक्त होय ते प्राणीना धर्मनो नाश थाय, ते उपर यमपाशनी कथा. .... .... ३५१ ए५ चोरीमा आसक्त होय ते प्राणीना शरीरनो नाश थाय , ते उपर टुंमिक चोरनी कथा. .... .... .... .... ३५२ ए६ जे प्राणी परस्त्रीमा आसक्त होय तेमे सर्वगुणनो अने सर्व ३ व्यनो नाश थाय बे, तथा अधमगतिने पामे ने ते उपर सुर प्रिय कुमारनी कथा. वृंदारुवृत्तिमां . .... .... .... ३५४ ए७ पोतें निर्धन बतां पण दान दे, ते सजतिने पामे, ते उपर अ मसेन वयरसेननी कथा. सुमतिनाथचारित्रमां. .... .... ३५७ ए उकुरा पणामां क्षमा राखवी. ते उपर सहस्रमननी कथा .. प्रश्नोत्तर रत्नमालामां. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ն Ա अनुक्रमणिका. एए जे प्राणी सुखोचित होय, तेने सानिरोध करवो,ते अपर धर्म राजानी कथा. उपदेशरत्नाकरमां . .... ..... .... ३६७ १०० तारुण्य अवस्थामां इंघियोनो निग्रह करवो, ते उपर कामपा लनी कथा सुमतिचरित्रमा पूर्वनवने अधिकारें. .... .... ३७० १०१ दशइंडियोना रोध करवा पर गुणधर्म राजकुंवरनी कथा. शांतिनाथ चरित्रमां. ..... .... ३७४ १०२ था संसारमा मनुष्यनु थायुष्य अशाश्वतुं ने तेमां पण राग थी आयुष्य घटे, ते उपर एक पुरुष तथा स्त्रीनी कथा. .... ३०४ १०३ स्नेहथी घायुष्य घटे, ते उपर दंपतीनी कथा. .... .... ३०४ १०४ नयथी आयुष्य घटे, ते उपर गजसुकुमारनी कथा. .... १०५ निमित्त ते शस्त्रादिकधी आयुष्य घटे, ते अधिकार लखेलो . ३७५ १०६ स्पर्शथी बायुष्य घटे, ते उपर चक्रवर्तीनी स्त्रीनी कथा. .... ३७६ १०७ मनुष्यनुं आयुष्य अशाश्वतुं , माटे साधुजने उपदिश्यो जे धर्म, तेने आचरण करवो, ते उपर चेलातीपुत्रनी कथा आवश्यक नियुक्तिमां.. .... .... ३६ १०७ जे धर्म , तेज रक्षण करनार त्राण ने, अनर्थनो घातक बे, संसारजीतने शरण , ते उपर महानंदनी कंथा. .... ३०ए १०ए हवे कुःखीयो जीव होय ते सुखने माटे धर्मने आचरे, तो रूडीगतिने पामे, ते उपर वसुदेवनो जीव पाबले नवे. नंदी श्वर साधु हतो, तेनी कथा..... .... .... . .... ११० जे पाणी धर्मने सेवे , ते अव्याबाध सुखने पामे , ते उपर लक्ष्मीश्वर श्रेष्ठीनी कथा. ... .... ३न्न १११ सिनुं स्वरूप ग्रंथांतरथी सखेबुंडे, तथा सिने एकत्रीश गुण.प्रगट थाय, ते कहेलुं . ३० ११२ आवश्यक नियुक्तिमां बीजी रीतिथी सिघना एकत्रीश गुण __कहेला . ११३ ग्रंथप्रशस्तिका..... .... .... ३२ ॥ इत्यनुक्रमणिका ॥ . ३१ %3 - Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ ॥ श्री गौतमकुलक मूल, बालावबोध तथा कथानं सहित प्रारंभ ॥ तिहां प्रथम वार्त्तिक करनार पंमित श्रीपद्मविजयजी महाराज मंगलाचरण वे धनुष्टुव् कहे बे. ॥ अनुष्टुत्तम् ॥ नत्वा श्रीमन्महावीरं, ध्यात्वा श्रीगुरुपंकजम् ॥ मत्वा विविधशास्त्रोप, देशं सत्रसमन्वितं ॥१॥ यङ्गौतमर्षिणा प्रोक्तं, गौतमं कुलकं वरं ॥ तस्य विस्तरतः कुर्वे, वार्त्तिकं लोकनाषया ॥२॥ इहां ग्रंथनी यादिमां वस्तु निर्देशरूप मंगल जाणवुं. अथवा ग्रंथमां पद्यरूपें मंगल बांधयुं नथी, तो पण पोताना चित्तमां इष्टदेवने नमस्कार कस्यो बे, एम जावं. इहां चर्चा घणी बे, पण ग्रंथ वधे माटे जखता नथी. ca ग्रंथकर्त्ता यादिमां लोनना लक्षण शामाटे कह्या बे ? तेनो हेतु कहे बे. जे माटे चारगतिरूप संसारना हेतु, ते चार कषाय बे. तेमां पण सर्व गुणोनो विनाश करनार एवो एक लोन बे ॥ यतः ॥ कोहो पीयं पणा से, माणो विषय नासणो ॥ माया मित्ताणि नासेर, जोहो सब विष्णासणो ॥ १ ॥ इति श्रीदशवैकानिक सूत्रवचनात् ॥ तथा लोन ते डुर्जय ते. अने वली ते लोन, क्रोधादिकने रहेवाना कालमान करतां घणो काल रहे बे, एटलाज माटे श्री बाहुस्वामीयें आवश्यक निर्युक्तिमा कत्युं बे ॥ यतः ॥ नवसामंपि नवलिया, गुणमया जिणचरित्तसरिसंपि ॥ पडिवायंति कसाया, किं पुण सेसेसु रागडे ॥ १ ॥ जइ उवसंतकसान, लहर प्रांत पुणोवि पडिवार्य ॥ नतु जेवीससिावं, थोवेवि कसायसेसंमि ॥ २ ॥ छ यथोवं वणथोवं, थंगीथोवं कसायथोवं च ॥ नदु जेवीस सियवं, योवंपि ढुंति बहु होइ ॥ ३ ॥ एम ए सर्व गाथा एक लोन याश्रयिने कही बे. तथा सर्व पापनुं मूल ते लोन बे ॥ लोन 'मूलानि पापानि' इति वचनात् ॥ ते माटेज ग्रंथकर्त्तायें यादिमां लोजनुं ग्रहण करयुं बे. तयाच सूत्रम्. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. ॥ मूलगाथा ॥ उपजाति वृत्तम् ॥ ॥तुझा नरा अनपरा हवंति, मूढा नरा कामपरा हवंति ॥ बुझा नरा खंतिपरा ह वंति,मिस्सा नरा तिन्निवि आयरंति ॥१॥ अर्थः-(खुमानरा के० ) लोनी मनुष्य जे होय ते ( अबपरा के ) इव्य उपार्जन करवानेविषे तत्पर ( हवंति के ) होय में एटले लोनी पुरुष इव्य उपार्जन करवानेविषे तत्पर होय. श्हां गाथामां जे अर्थ शब्द कह्यो ले ते अर्थ शब्दें लक्ष्मी जाणवी. अने लक्ष्मी ते देवताविशेष जे. ए ऐकरी ग्रंथकर्तायें आदिमा.मंगल सूचव्युं एम पण जणाय ले. ते कारण माटेज लोनी पुरुष इव्यनेविषे तत्पर होय. एम कर्दा, पण लोननुं फल न कह्यु, जे माटे लोजनुं फल ते नरक जाणवू. ॥ 'तुझा महबा नरयं उ वंति' इति वक्ष्यमाणवचनात् ॥ एम जो नरक एवो अर्थ आ पहेली गा थामां करियें तो उपर जे मांगलिक सुचव्युं ते रहेतुं नथी. इत्यादिक केटली चर्चा लखाय ? हवे लोननो लीधो जीव, विकट अटवीमां पेसे, महा अपार समुश्तरे, अति नीम संग्राममा अडे, कर्षण करे, कृपण स्वामीनी सेवा करे, नीचकर्म आचरे, मस्तके नार उपाडे, नूख तृषा खमे, अने ताप तथा टाहाडने पण हिसाबमां न गणे; इत्यादिक महाकष्टने सहन करीने पण इव्य उपार्जवा तत्पर होय.ते उपर चारुदत्तनो दृष्टांत कहेले. था जस्तदेवनेविषे चंपानामनी नगरीमां महाधनवान एवो नानुनामें शेठ वसे ले. तेनी सुनशनामें.नार्या , तेने पुत्र नथी. तेथी स्त्रीन र घणी आर्ति करे . अने मनमा एम विचारे ने के, ज्यररे धननो नोक्ता एवो एक पण पुत्र नथी ! ! त्यारें बापणने थाटलुं धन पण श्या काम नुं ! एम चिंतातुर रहेतां देवादिकने मानता, श्छता, एक चारणमुनि म व्या. त्यारे ते मुनिने पूब्युं के, हे महाराज ! अमारे पुत्र थशे के नहिं ! . त्यारे चारण मुनिये कयुं के,तमारे पुत्र थशे. पनी ते स्त्रीने गर्न रह्यो. थ नुक्रमें पुत्रनो जन्म थयो. ते बालकनुं चारुदत्त एवं. नाम दीधुं. ते महोटो थयो, त्यारे मित्रसाथें कीड़ा करतो एकदा समये उद्याननेविषे गयो. त्यां Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. जतां थकां एक स्त्रीनां तथा एक पुरुषनां पगला दीवां. ते पगलां घणां लहावंत देखीने चारुदत्ते विचाङ्गु के, हाथी कोक गुणवंत स्त्रीपुरुष गयां जणाय . एम चिंतवी पागल. जतां एक केलिनु घर दीतुं. ते केलि ना घरनी पासे एक विद्याधर दीठो. तेना सर्व शरीरमां खीला जडेला बे. तेवामां ते विद्याधर चारुदत्तने देखीने कट्वालाग्यो के, हे पुरुष! महारा वस्त्रने बेडे औषधीवलय डे, ते घशीने मने चोपडो. ते सांजला चारुदत्तें पण ते औषधी घशीने चोपडी, एटले ते सर्व खीला निकली पड्या. पड़ी ते विद्याधरना कहेवाथी व्रण संरोहिणी घशीने चोपडी, एटले सर्व व्रण (घा) रुफाई गया, वली त्रीजी औषधीये साजो थयो. त्यार पड़ी चारुद तें पूब्युं के, हे महानाग्य ! तमे कोण बो ? अने तमने आवी थापत्ति केम पडी ? त्यारे ते विद्याधर पोतानो संबंध कहे . . जरतदेवना मध्यनागने विषे रूप्यमय पच्चीश जोजन ऊंचो अने प चास जोजन पहोलो एवो वैताढय पर्वत , तेने विषे शिवमंदिरनामें न गरनो माहेशविक्रमनामें राजा महापराक्रमी . ते राजानो ढुं अमित गतिनामें पुत्र थयो. एक दिवस कीडा करतो थको ढुं हरिवंत पर्वते गयो. त्यां एक हिरण्यरोमनामा तापस बसे , तेनी सुकुमालिका नामें पुत्री म हारूपवंती , ते में दीठी. ते कुमरी तेना पितायें मने परणावी. ते स्त्रीने लश्ने ढुं महारे ठेकाणे गयो. त्यां धूमशिष्य नामें एक महारो मित्र ह तो. ते महारी स्त्रीने देखीने कामें विंधाणो तेथी महारां बिइ जोतो रहे, अने मनमां विचारे के, जो ए मित्रं मरे, तो ए स्त्री महारे हाथ आवे. ए म करतां एक दिवस ढुं महारी स्त्री साथे क्रीडा करतो 'करतो शहां आ व्यो. ते अवसरे महारो मित्र मने एकलो जाणीने, आ रीते खोला ठोकी ने महारी स्त्रीलाने जतो रह्यो. ए अवस्थामां हे बांधव! तें मने जीवतो राख्यो. तेने बदले तुं महारी पासे कांक पण माग्य के, हुँ तने आपुं त्यारे चारुदत्ते कयुं के, तमारा जेवा सत्पुरुष- दर्शन थयुं, एंटले ढुं सर्व . कांश हित पाम्यो. वली में तमारुं कुःख दूर कयुं, माटे हवे महारे झुं जो श्ये ? एम कही बन्ने जण पोतपोताने ठेकाणे गया. ___ पड़ी चारुदत्त पोताना मित्रसाथे निरंतर क्रीडा करे, एम करतां ज्या रें चारुदत्त यौवन अवस्था पाम्यो, त्यारे सर्वार्थनामें चारुदत्तनो मामो Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. , तेनी मित्रवतीनामक पुत्रीनी साथै चारुदत्तना पितायें चारुदत्तने पर गाव्यो. पण वनक्रीडासक्त थको स्त्रीसाथे नोगनी वात न करे, त्यारे चा रुदत्तना माता पिताये जाण्यु के, असारो पुत्र जोगमां समजतो नथी, ए म विचारीने कलिंगसेना नामें गणिकानी दीकरी वसंतसेना गणिका हती तेनी पासे कामनोग शीखवा मुक्यो. एम करतां ते वेश्याने घेर बार वर्ष वहि गयां. ते वेश्या साथे सोल कोड सोनैया खाधा. त्यार पड़ी ते चा रुदत्तने व्यरहित थयो जाणीने ते वेश्यानी अक्कायें तेने काढी मूक्यो. त्यारें घेर वीने जूए तों माबाप मरी गयां बे, अने घरहाट पडी गयां बे, एम देखीने घणुंज दिलगीर थयो. पनी व्यापार करवा माटे पोते पो तानी स्त्रीनां बानूषण लीधां, ते लेश्ने मामो तथा पोतें बन्ने जण व्यापा रने अर्थे चाल्या. मार्गे जता जतां नशीरपुर नगरे याव्या, त्यां मामानाणे जे कपास लीधो, ते जश्ने ताम्रलिप्ति नगरीतरफ चाव्या, अनुक्रमे जतां थकां वनमा बाग लागी, एटले सर्व कपास बली गयो. त्यारे मामाए जा एयु के, चारुदत्त निर्जाग्य , एनीसाथे महारुं धन पण जाय जे; एम जा णी तेणे चारुदत्तने मूकी दीधो. __ चारुदत्ते पण एक घोडो वेचातो लीधो, ते ऊपर बेसीने पश्चिम दिशा तरफ चाल्यो, आगल जतां थकां घोडो मरी गयो. पनी चारुदत्त पादचारी थयो. हवे चालतां थकां घj थाक्यो, नूख तृषा पण घणी लागी, एवा एवा महाकुःख खमतो थको अनुक्रमें प्रियंगुनगरे गयो. त्यां वणिकनां घणां घर ले, तेमां एक सुरेंदत्त नामें पोताना पितानो मित्र वसे ले. ते एवं चारुदराने पुत्रनी पेठे राख्यो, नोजनवस्त्रादिक याप्यां, अने कह्यु के, हवे झुं करवा दुःख खमवा जाय ? महारे घेर रहे. एम कहे थके पण मनमा घणो लोन धरे ले. व्यापार करवानी महोटी होंस धरे ले. ते कार पथी कोकना लाख इव्य उधारे लश्ने ना ना करतां पण चारुदत्त रह्यो नही. अनुक्रमें जहाजमां बेठो, तेनी साथें बीजा पण घणा लोक जहाज मां बेग, अनुक्रमें ते जहाज यमुनाही गयु. एम बदु गाम नगर फर तां आठ कोड सोनैया कमायो.हवे पोताने देश जवा माटे पाडो जहाज मां बेठो, ते समुड्ने मध्यनागे आव्यो, एटले अकाले गाजवीज थयो, तेथी प्रवहण नांग्युं, सर्व इव्य समुश्मां गयुं. पण कोक पुण्यसंयोगे Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. एक पाटीयुं हाथ आव्युं. ते पाटीयासहित सात दिवस सूधी समुश्मां को ला खाधा. अनुक्रमें समुझ्नो पार पाम्यो. ते राजपुर नगरना उद्यानमां आव्यो. त्यां एक तापसनाथाश्रमम् दिनकरप्रन नामा परिव्राजक बसे , ते घणो शांत दांत अने जाणिये धर्मनुं धामज होय नहि ! एवो देखाय . ते त्रिदंमी, चारुदत्तने कहेवा लाग्यो के, अरे बाबु ! तुं कहांसे आया ? तुं ऐसा डुःखीया क्युं ? तुं तो बडा जाग्यवंतमें शिरदार हे,तेरा दुःख देखकर मेरेसें खम्या नहि जाता : मेरे मनमें बहोत बार्ति होती है. उर हमेरे तां गुरुकी जैसी शिदा है तिसमाफक मै,अलेखकों जपतारनावकी निदा लेता हूं, कंथा पहेरता हूं, उर विनूति चढाता हूं, परकुं फुःखी देखें,तब मु जकोंनी सुःख उपजे, परकुं सुखी देखुं तब मुझकूनी सुख. उपजे,उर सारी उनीया तो मायामें गरक होगई हे. उर हम तो दररोज निरंजनका ध्यान करते है. उसवास्ते तेरी बात होय सो हमकों कहे. एवा त्रिदंमियानां वचन सांनतीने तेने प्रणाम करीने चारुदत्त कहेवा लाग्यो के, हे जग वन् ! मै बहुत मुःखी हुँ. और अब आपके सरणे आयां हूं. तुमसे मे रा नमार होवेगा. इत्यादिक पोतानुं वृत्तांत कही देखाडयु. ते वात सांन लीने त्रिदंमियानी यांखमां बांसु आव्यां, अने कहेवा लाग्यो के, रे वह तुं धीरा हो. सब बन्ना बनेगा. में जानताड़े के तुं बहोत धनका अर्थी है. नला! अब तें मेरी पास थाया है, तो सब बातकी खूबी होवेगी. क्यों मरता हे ? में जैसा करूंगा कि लक्ष्मी तो तेरा घरकी दासी होयगी, तुं मेरी साथ चल ! ते सांगली चारुदत्त अने त्रिदंमियो ए बने जण त्यांथी चा व्यां. चालतां थकां बीजे दिवसे एक अटवीमां पहोच्या. त्यां एक पर्वतमां गया तेमां एक निवड शिला यावी. ते पये पाटु मारीने उघाडी. तेमध्ये एक मुर्गपाताल नामें बिल , तेमां चाल्या, ते उर्गपातालमां नमतां न मतां एक रसकुंपीनो कूळ दीठो. पण ते देखीतोज महा बिहामणो ने, चार हाथनो विस्तारें, जाणिये के, कूतो नथी, पण नरकनुंज बार| . हवे चारुदत्तने एक तुंबडी त्रिदंमीयें आपी. अने कह्यु के, आ तुंबडी कूयामांयी रसें नरी लाव्य, एम कहीने चारुदत्तने मांची उपर बेसाडीने कूआमां नता खो. चारुदत्त पण लोनना वशथी मांहें कतस्यो. तेणें कूधामांज्यांमेखला , ते दीठी. तेमां रस पण नयो .ते रस जेटलामालेवा जाय ,एटलामां बीजा Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ w जैनकथा रत्नकोष नाग बछो. कोइकें शब्द कस्यो,के म म त्यारे चारुदत्त बोल्यो के,महारुं नाम चारुदत्त .मने जगवंतें मोकट्यो , तो मुझने रस लेतां श्या माटे निषेध करो डो? महा रे ए रसनो जरूर खप जे. त्यारे ते शब्द करनार बोल्यो के, महारी वात सांनल. दुं पण वाणियो ढुं. तहारी पेठे पण धननो अर्थी थको इहां श्राव्यो डं, पण ए त्रिदंमीयें मुझने मांहि नांख्यो . ते माटे ए त्रिदंमीया नो विश्वास करीश नही. वली वात सांजल. या रसमां हाथ बोलींश नहिं. जो बोलीश तो हाथ कोही जशे. ते माटे तुंबडीसाव्य.हूँ तने जरी आपुं. एम सांजली तेने तुंबडी पी. त्यारे ते पुरुषे पण रस नरीने आप्यो. मां चीना हेवल ते रस तुंबी बांधी. पड़ी चारुदत्ते रासडी हलावी,त्यारे त्रिदंमी ये खेंचीने, कूआने कांते आण्यो. एटले त्रिदंमीये तुंबडी मागी. त्यारे चारु दत्ते जाण्यु के, या मायावी तथा विश्वासघाती देखाय . एवं जाणीने ते रस, तो कूयामां ढोली नांरख्यो. एवं जागी ते त्रिदंमी पण चारुद तने कूमामां नांखी दीधो. त्यारे ते माहे रहेलो पुरुष बोल्यो के, तुं कांश फिकर चिंता करीश नही. तुं जो रसमांहे पड्यो होत, तो न जीवत, प ए मेखला उपर पड्यो, तेथी तुं शातामा रहेजे. तने हांथी नीकलवानो उपाय बता, ते सांजल. इहां रस पीवाने माटे गोधा यावे डे, ते महा जयंकर शब्द करता यावे ले, पण तेनी तुंबीक राखीश नही. ते गोधा ज्यारें रस पीने पाबा वले, त्यारे तुं तेने पूंबडे वलगजे. माटे ते आवे त्यां सूधी तुं शहां रहे. अने पंच परमेष्ठीनुं ध्यान कस्य. एम. सांजलीने ते त्यां रह्यो. एवामां ते पुरुष तो मरण पाम्यो, तेवामां ते गोधा वीरस पीने पाला वलती चारुदत्त पण ते गोधाने पूंबडे वलग्यो. तेनु शरीर सुकु माल हतुं तेथी घसातो घसातो बहार नीकट्यो. ते जाणे गर्भावासथकीज नवो नीकट्यो होय नहि ! ! अथवा नरकमांथीज नीकट्यो होय नहि !!! ए दृष्टांतें बहार आवे थके नवो जन्म पाम्यानी पेठे मानवा लाग्यो, पड़ी पूबडं मूकी दीधुं, त्यारे मूर्जा खाइने नूमिये पज्यो. वली शीतल वायरा प्रमुखें चेतन वद्युं, त्यारे चालवा मांमधु, एटले वनमा एक पामो हतो तेनी केडे पज्यो, त्यारे चारुदत्त एक महोटी शिला उपर चडी गयो. ते जोड्ने ते पामो पण शिंगडेथी ते शिलाने हलाववा लाग्यो, पण शिला हाले न ही. एवामां एक अजगर नीकट्यो, ते अजगर वनपामाने गली गयो. त्यारे Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • गौतमकुलक कथासहित. ง चारुदत्त त्यांथी नागे. ते अनुक्रमें खटवीने यंते एक गाममां चारुदत्तना मामाना मित्रनुं घर बे, ते गाममां दुःखनी राशिने पामतो पामतो त्यां प होच्यो. तेने तिहांरुदत्त नामें मामाना मित्रे घणुं लाल्यो पाल्यो, साजो कखो. Marathi ga किरियाणा नरी रूदत्त साधें चाव्यो. जतां थ कां एक महोट कुवती नामें नदी यावी, ते उतरी गिरिकूटे गया. त्यां वेत्रवन ठे. ते वनथी अनुक्रमें बन्ने जण टंकण देशे पहोच्या. त्यां वे ब करा वेचाता लीधा, ते बोकडा उपर बेसीने केटलाक पंथनो पार पाम्या. पी एवं जंगल खाव्यं के, जेमां मनुष्य मात्र तथा अज ( बोकडा) पण चाली शके नही, त्यारे रुदतें कयुं के, हवे थापणे पगे चाली शकशुं नहिं, तेमाटें या बकराने मारी तेनी खोलमां पेसीए ने एमना मांस नो नाग बहार काढीए, तेने देखी नारंग पंखी यावीने मांसनी चांतिये आपण बेहुने उपाडीने लेइ जो, ते सुवर्णभूमियें मूकशे, एवां वचन सां जलीने चारुदत्त बोल्यो. हे रुश्दत्त ! यापणाथी ए बकरा केम मराय ? प्रथम तो ए आपने इहां सूधी लाव्या, माटे यापणने उपकारी थया, व ली या ठेकाणे एनो नाथ कोण ले ? वली . आप पण हिंसा करीने ड तियें जश्यें, ते हिंसानां फल शास्त्रमां कडुबां कह्यां बे ॥ 'न पाणिहिं सापरमं करूं' इति वचनात् ॥ ते माटे यापणाथी तो ए न हणाय. त्यारे रूदत्त कोप करीने बोल्यो जे, ए बकरां कां तहारां नथी, एतो में इव्य खरचीने लीधां बे. एम कहीने एक बकरो तो तेणें मास्यो, पढी बी जो बकरो मारवाने परिणामी थको रूदत्त याव्या, त्यारे बकरो कंप तो कंपतो चारुदत्तना मुख सामुं जोवा लाग्यो. तेने चारुदत्त कहेवा ला यो के, हे बकरा ! इहां महारो याश्रय नथी, पण या वेला तने धर्म स खाइयो बे. ते हुं संजलावुं खने तुं धीरज धरीने सांजल. जे श्रीवीतराग राग द्वेष रहित, केवलज्ञान, केवलदर्शन, यथाख्यात चारित्रवंत, खढार दोष र हित, चोत्रीश व्यतिशयें करी विराजमान, वाणीना पांत्रीश गुणें करी नव्य प्राणीने संसार समुइ तारवा समर्थ, मोहरहित, खज्ञानरहित, एवा परमे श्वरने देव करीने तुं मान्य तथा गुरु ते सुसाधु, उत्तम, निस्पृही, श्रात्मगु रागी, श्रात्मसाधनने खर्थे उजमाल थयेला, सत्तावीश गुणेंकरी विराज मान, रत्नत्रयीना पात्र, स्वपर तारवां समर्थ एवा गुरुने गुरु करी अंगीकार Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग छो. कस्य. तथा धर्म ते केवलीनो नाष्यो, यात्मानो धर्मनिश्चय व्यवहाररूप साध्य साधनरूपजे निश्चय धर्म,ते अात्मस्वरूप जाणवो. तथा व्यवहार ते स्वरूप प्र गट करवा निमित्त दानादिक धर्मने धर्म करी अंगीकार करजे. प्राणातिपात, मृपावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह प्रमुख जे अढार पापस्थानक ले तेने तजजे. चार आहारने 'पञ्चरकजे. सर्व जीव साथे मैत्रीनाव राखजे. वली रुदत्त साथे विशेषे मैत्रीनाव राखजे. अने एम जाणजे के, ए मा रतो नथी, पण मुजने महारां पूर्वतं कर्म उदय आव्यांबे, ते जोगबुं बु. इत्यादिक चारुदत्तनां वचनं ते बकराने अमृत रसायननी पेठे परणम्यां. त्यारे चारुदत्तें तेने नवकार संजलाव्यो. हवे ते बकराने रुदत्त मास्यो. प बी ते बे बकरानी. खोलमां बे जण जूदा जूदा हाथमां बरी लेइने पेठा. एवा अवसरमां त्यां वे नारंम पंखी आव्या. ते मांसनी ब्रांतियें चंचूपुटें करी बनेने नपाडी चाल्या. मार्गमां एक त्रीजो नारंग पंखी यावीने चारु दत्तवाला नारंग पंखी साथे मांसनीलालचे लडवा लाग्यो. ते साये लडतां थकां ते खोल नारंगनी चांचमांथी लूटीने नीचे एक सरोवरमां पडी त्यारे मांडेथी चारुदत्ते जाण्यु के, नारंमें क्या एक मूक्यो तो खरो! एवं जा णी बरीए करी बंध कापी बहार नीकट्यो,अने सरोवर तरीने कांठे आव्यो. त्यांथी अटवीमा जतां एक पर्वत दीतो तेनी नपर चाल्यो. एवामां त्यां मुनिराज काउस्सग्ग ध्याने रह्या थका दीना. त्यारें मुनिराजें काउस्सग्ग एक पास्यो,एटले तेमने चारुदत्तें प्रणाम कस्यो. मुनिये पण धर्मखान दश्ने तेने बोलाव्यो के, हे चारुदत्त ! तुं शहां क्याथी याव्यो? इहां तो विद्याधर अथ वा देवता अथवा पंखी यावे, पण मनुष्य मात्रनो आसरो नथी ! वली हे चारुदत्त ! तुं मचे उलखतो नथी, पण महारी वात सांजल्य. चंपानग रीने बहार तें जे विद्याधरना खीला काढ्या हता, ते अमितगत विद्याधर मनेज जाणजे. तें मूकाव्या पनी हुँ अष्टापदने इकडो गयो, एटले महारा ते वैरीने में दीठो अने तेणे पण मने दीठो. एटले ते वैरी नाशीने अष्टा पदना चैत्यनें शरणे गयो.अने ढुं महारीघ रणी लश्ने महारे घेर आव्यो, . बी महारा पितायें मने राज्य आप्यु, अने हिरण्यकुंन ने सुवर्णकुंन ए वे चारण श्रमण मुनिराजनी पासे महारा पितायें चारित्र लीधुं. हवे महारे मनोरमा नामें एक स्त्री हती तेने बे पुत्र थया, तेमां एक Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. नुं नाम सिंहयशा अने बीजानुं नाम वराहग्रीव ने. वली बीजी स्त्री विज यसेना नामें हती, तेनी कूखे एक गांधर्वसेना नामें कन्या थ६. त्यार पन। सिंहयशाने राज्ये थापीने में महारा पिता गुरु पासे चारित्र अंगीकार क घु. पनी अनुक्रमे विहार करतो थको लवण समुश्मा कर्कोट नामें पर्वत , तेमां एकांत स्थानक जाणीने ध्यान करूं . 'ए में महारी वात कही. हवे तुं तहारी वात कहे. तुं हां क्याथी श्राव्यो ? त्यारे चारुदत्तें मूलथी मां मी पोतानुं सर्व वृत्तांत कही देखाडयुं,एवामां मुनिना बेदु पुत्रो त्यांाव्या, मुनियें चारुदत्तने उलखाव्या के, ए अमारा नपंगारी जे. एवामां बकरो दे वता थयो , ते देवतापण त्यां आव्यो, तेणे पोतानुं सर्व वृत्तांत संनला व्यु. हवे विद्याधरें, चारुदत्तने पोताने घेर तेडी जश्ने घाणा हिरण्य सुवर्णा दिक आप्यां, अने गांधर्वसेना पोतानी नगिनी. हती तेपण सोंपी, ने कह्यु के ज्यारें वसुदेवजी तमारा नगरें आवे त्यारें वसुदेवजीने ए महारी बेहन परणावजो एम कहीने चारुदत्तने पोताने घेर पहोचाड्यो. इत्यादिक सवि स्तरपणे ए अधिकार वसुदेव हिंग ग्रंथथी जोइ लेवो. शहां तो लोनी प्राणी इव्य उपार्जवा तत्पर होय, ते माटे महाकष्ट. खमे ते उपर एकथा कही. हवे संसारमा नमवाना कारण माटे लोकप्रसिद कंचन तथा कामिनी ने. अने मुख्यतायें व्यादिक, उपार्जन करवू, ते कामनोगने माटेज डे, ए संबंधे याव्युं. जे कामनोगनुं बीजूं पद ते कहे जे. ॥ मूढा नरकामपराहवंति (मूढा नरा के०) जे मूर्खप्राणी होय,ते (काम परा के०) कामने विपे तत्पर (हवंति के०) होय. इहां कामज कह्यो . परं तु उपलहाथी नोग पण लेश्ये. एटले मूर्ख पुरुष कामनोगने विपे तत्प र होय; ते कामनोग मूर्खने वहाला लागे . ॥ यतः ॥ बाला निरामेसु ड हावहेसु, न तं सुहं कामगुणेसु राया ॥ विरत्तकामाणतबोधणाणं, जं निरकुणो सीलगुणे रयाणं ॥ इति श्रीउत्तराध्ययनसूत्रे चित्रसंनूति अध्यय ने ॥ हवे कामनोग तें पांच इंश्यिनां विषयसुख कहीये. यतः । काविहा नंते ! कामा पन्नत्ता ? गोयमा ! विहा कामा पन्नत्ता. तं जहा. सहा रूवा इति. तथा का विहाणं नंते ! नोगा पन्नत्ता ? गोयमा ! तिविहा नो गापन्नत्ता. तं जहा गंधा रसा फासा काविहाणं नंते ! कामनोगा पन्नत्ता? गोयमा ! पंचविहा कामनोगा पन्नत्ता. तंजहा सहा रूवा रसा गंधा फासा Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. ॥ जीवाणं नंते ! किं कामी जोगी ? गोयमा ! जीवा कामीवि जोगीवि ॥ त्यादिक श्री नगवती सूत्र शतक सातमे उद्देशे सातमे कह्यु बे. ॥ हवे पांच इंडियो ते कयां स्पर्शभिय,रसेंश्यि,घ्राणेंख्यि, चढुरिंश्यि अने श्रोत्रंझ्यि,ते इंश्यिो वे प्रकारे एक बाह्य इंघिय तथा बीजां अन्यंतर इंघिय. तेमां बाह्य इंघिय ते काननी पापडी प्रमुख जाति विशेष निन्न भिन्न आ कार . तथा अन्यंतर इंडियोना बे नेद ले. एक निवृत्तियि बने बीजी उपकरण इंडिय.ते पांचे इंडिय महा दुःखदायी ,उन्मार्गे प्रवृर्ती रह्यो ने. ॥ यतः इंदिय चवल तुरंगा, दुग्गश्मग्गाणुधाविरे निचं ॥ नम्मग्गेण पडं तं, निरंनई नागरस्सीहिं ॥ ६ ॥ इत्यादिक जेमाटे एकेक इंडियना परव शपणाथी पण जीव मुःख पाम्या बे, तो जेना पांचे इंघिय परवश होय ते नुं तो कहेवुज !!॥ यतः ॥ सोपमुहागत्ताणय, दिर्हता पंचिमे जहा संखं ॥ राय सुय सिहित, गंधमदुप्पिय महंदाहिं ॥ ७ ॥ इति ॥ हवे ते पांचश्यिना पांच उदाहरण अनुक्रमें लखीये बीये. तेमां प्रथम श्रोत्रेश्यि नपर राजपुत्रनो दृष्टांत कहे . ॥ ब्रह्मस्थल नगरने विपे नुवनचं राजा. ते राजाने राम नामें पुत्र . एकदा राजाये मंत्रीने पूर्वा के, पुत्रने युवराज पदवी आपुं ? त्यारे मंत्री बोल्यो. हे स्वामिन् !! ए पुत्र राज्य योग्य नथी. राजायें कह्यु,एमां श्यो अवगु ण ? मंत्रियें का एने श्रोत्रंशिय वश नथी. नित्य गीत गानमां यासक्त ने अनेक मूंब गंधर्व पन्नगना वंदने संसर्गे वर्ने . ते सांजली राजा हसीने बोल्यो. हे मंत्री ! में तहारी चतुरादीती.जेमाटे राजाने तो गीतप्रियपणुं ते गुण ले. अने तेने तुं तो दूषणरूप कहे . तेवारें मंत्रियें कयुं हे राज न ! आसक्तपणुं सारु नही. ॥ यतः ॥ जह अग्गी लवो विदु, पसरतो दह गामनयराइं॥ इक्किमि दियं पिदु, तह पसरंत समग्गगुणे ॥ ७ ॥ तेमाटे न्हाना नाईने युवराज पद आपो. एम प्रधानें कह्यु तोपण राजायें न मान्युं अने रामने युवराज पद प्राप्युं. अनुक्रमे राजा मरण पाम्यो, त्यारे ते राम राजा थयो. अने महाबल नामा लघुनाई हतो ते युवराज थ यो. हवे रामराजा विशेष प्रकारे स्वेचायें गीतगान सांजले. पोते पण गीत गान करे. अने नवनवां गीत करीने ए॒बादिकने शीखवीने गवरावे, पणारा ज्यनी चिंता कांइन करे. एकदा प्रस्तावने विषे एक तरुणी मुंबडी सुस्वरवाली Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. त्यां राजानी पासें श्रावी. तेना रूप तथा गानगुणें मोह्यो थको ते राजा कुलनीलजा मूकीने तेनी साथे अनाचार सेववा लाग्यो. तेने मंत्रीप्रमुख सर्व परिवार घणोये वायो पण; निवयों नही. त्यारे सर्व परिवार संप करी मुंबडीसहित रामने देश बहार काढी मूक्यो, अने लघु नाईने राज्य थाप्यो. हवे राम देशांतरे जमतो जमतो मरण पामीने वनमा हरण थ यो. त्यां गीतना रसें आहेडीये मास्यो. त्यांथी मरीने महाबल राजाना पुरोहितनो पुत्र थयो. त्यां पण यौवनवये गीतगानमां अत्यंत आसक्त थ यो, एकदा रात्रीयें राजा, मूंबना टोला पासे गीत गवरावे ,त्यां पुरोहित पुत्रने राजायें कयुं के, मने निा आवे , माटे ढुं निशवश थानं त्यारे गीत बंध रखावजे. राजाने निज्ञ यावी पण तेणे यासक्तयकां गीत बंध रखाव्यां नही. पनी राजा जाग्यो त्यारे तेणें क्रोधाकुल थश्ने विप्रना का नमां नष्प तेल रेडाव्युं तेथी ते विप्र मरण पाम्यो. राजा पश्चात्ताप करवा लाग्यो के, धिक्कार पडो ! मुझने,के में थोडा अपराधे घणो दंम कस्यो ! ! ! एवा अवसरने विपे त्यां केवली जगवान् पधास्या, तेमने वंदना करीने रा जायें पूज्यु, त्यारे केवलीयें रामना नवथी मामीने सर्व संबंध कह्यो. एम एक श्रोतेंघियना परवशथी एवां दुःख पाम्यो. आगल पण संसारमा घणा नव करशे. एवा श्रवणेंडियना विपाक सांजली महावल राजाचारित्र अंगी कार करी केवलज्ञान पामीमोद पहोच्या ॥इतिश्रवणेंशिय कथा संपूर्णम् ॥ दवे चदुरिंघिय उपर श्रेष्ठिपुत्रनी कथा कहे जे. ॥ विजयपुर नगरनेविपे विश्वनर राजा राज्य करे . ते राजाने कुशल मति नामे मंत्री जे. अने त्यां यशोधर नामें नगरशेठ क्से . ते त्रणेने मांदोमांहे अत्यंत प्रीति जे. ते त्रणेने त्रा पुत्र थया ले. ते योवनवय पाम्या. कोइ अवसरे मंत्रियें, शेठने कह्यु के, तहारो पुत्र जलो नथी, राजधारे वतां अंतेतर सामुं जुए डे, मार्गे चालतां पण स्त्रीयो सामी नजर करे , आगल जतां एनो विनाश थशे. तेमाटे पुत्रने वारजे. ते सांजली शेते पण पुत्रने घणी शिखामण दीधी ॥ यथा ॥ मदंगमंणंमु यंच, सोहणं कोहमोहनिग्गहणं ॥ इंदियदप्पडे, धम्मियजणमंझणं एवं ॥ ए ॥ पण पुत्र वास्यो नवरे. जे जेनो स्वनाव होय, ते तेने न मूके. ॥ यतः॥ या यस्य प्रकृतिः स्वनावजनिता दुःखे न सात्यज्यते॥इति वचना Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बो. तू ॥ एकदा प्रस्तावे ते शेठपुत्र स्त्रीप्रत्यें सराग दृष्टियें जोतो हांक्यो, रा जद्वारे प्रवेश करवो निवास्यो लोकमां चपला नाम पडघुं. अन्यदा व कि पुत्र साधे परदेशे मोकल्यो त्यांपण याखा नगरमा फरतो फरे, यां खनो परवश को वाव्य, कूया, सरोवर प्रत्ये जोतो फरे. एकदा कोक प्र सादनेविषे पाषाणमां दिव्यरूप पूतली देखी व्यामोह चित्तें ते प्रत्येज या सक्तपणे प्रवर्त्ते. जोजन प्रमुख सर्व वीसायां. त्यारे वाणोतरें ते पाषाणनी पुतली गोपवीने बीजी हवीज वस्त्रमय पूतली करी ते उपाडी उतारे या ी, ते पुतली प्रत्येयासक्तपणें कुमर जोइ रहे. अनेक घरेणां श्रानूषण पहेरावे, अनुक्रमें वाणोतर व्यापार करी श्रेष्ठिपुत्र तथा पूतजी सहित न गर जणी चाव्या. मार्गे जतां धाड्य मली. तेणें साथने लूंट्यो, पूतलीने चोरो लइ गया. श्रेष्ठपुत्र पुतलीना विरहें घेलो थयो. थको श्रटवीमां नम्यां करे, अन्यदा जमतो जमतो विजयपुरे श्राव्यो. त्यां उद्याननेविषे राजानी स्त्रीने क्रीडा करतां देखीने वारंवार ते प्रत्ये जोतो हवो. एवामां राजपुरुपें तेने मायो, मरीने पतंगियो थयो . त्यां पण मिमां पापात करी मरण पाम्यो. एम घणा नव रऊलशे ॥ इति चकुइंडिये श्रेष्ठपुत्र कथा ॥ २ ॥ हवे घ्राणेंदिय उपर गंधप्रियनी कथा कहे ते. ܕܐ ॥ पद्मखं नगरने विषे प्रजापति राजानो गंधप्रिय नामा पुत्र ले. ते जे जे सुगंधी वस्तु देखे, ते ते सुंघे. एवोज तेने ढाल पड्यो बे. निरंतर घ्रा यिना वशथी वासनामां आसक्त रहे. एकदा प्रस्तावे नावे बेशी जन क्रीडा करे बे, एवामां उरमान मातायें विपमिश्रित अत्यंत सुगंधी पुडी पेटीमां घालीने नदीमां मूकी ते पेटी तरती तरती नावनी पासे खावी. मांथी कुमरें पुडी जेइ घ्राणेंड़ियना परवशथकी सुंघी एटले तरत मरण पाम्यो, मरीने नमरो थयो, अनुक्रमें अनंतो संसार जम्यो ॥ इति घ्राणें प्रिय विषे गंधप्रियनी कथा समाप्ता ॥ ३ ॥ वेरसें उपर मधुप्रियनी कथा कहे बे. || सिद्धार्थपुर नगरने विषे विमल नामें शेठनो मधुप्रिय नामें पुत्र बे. ते तीखा, तमतमा, खारा, खाटा, मोला, मधुरा, कसायला प्रमुख नवनवा रसनायास्वादननो घणो लोलुप बे. नित नवनवी रसोइ करी जमे बे. व्या पार प्रमुख सर्व कार्य परहां मूक्यां. तेणें एक दिवस चिंतव्युं के, में सर्व र Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. सनु श्रास्वादन कटुं; पण महारा कुले वर्जेलुंजे मद्य मांस,तेनो रस चाख्यो नथी. माटे जे थनार होय ते थात, पण एनो स्वाद जोवोतो खरो ! एम वि चारीने मद्य मांस खावा लाग्यो, अने पितानुं वायुं पण न कयुं. तेवारें पितायें तेने घरथी बाहेर काहाढी मूक्यो. देशांतरे जतो रह्यो, त्यां लोक मां मधुप्रिय एवं नाम प्रवयु. मांसनो. यासक्त थको लोकोनां बांनां बा लक मारी खातो. तेने एकदा कोटवालें दीठो. तेवारें शूलिये चडाव्यो. मरीने नरके गयो. अनंतो संसार जम्यो. जेमाटे रसेंशिय वश करवी महा मुर्लन ने. ॥ यतः ॥ अरकाण सुणि कम्मा, ए मोहणी तह वयाण बंजव यं ॥ गुत्तीणयमणगुत्ति, चनरो उरकेण जीपंती ॥ १० ॥ इति रसेंश्यि कथा ॥ हवे स्पर्शेश्यि उपर महेंनी कथा कहे . ॥ विश्वपुर नगरनेविपे धरणें नामा राजा राज्य करे . ते राजाने महेंदत्त नामें पुत्र , त्यां मदन नामें शेठनो पुत्र जे. तेनी साथे महें दत्तने मित्रा . एक दिवस राजकुमर श्रेष्ठिपुत्रने घेर आव्यो. त्यारे ते मद ननी घणी रूपवंती, शरीरे सुकुमाल एवी चंवदना नामें स्त्री . तेणें नर्ता रनो मित्र जाणी हाथोहाथ पान- बीडं आप्युं. ते स्त्रीनो स्पर्श थयो एटले कामाकुल थयो. अने विचारवा लाग्यो के, ज्यांसुधी यावी स्त्रीनो संग न थी कस्यो, त्यांसुधी जन्म अफल गयो ! एम विचारी हांसीनां वचन बो लवा लाग्यो, कुचेष्टा करवा लाग्यो, अनुक्रमें अनाचार सेववा लाग्यो. निरं तर स्त्रीने घेर.जाय, अब्रह्म सेवे, एवामां राजा महेंड्ने राज्य थापवा वांछे जे, ते समयनेविपे महेंई चंवदनाने तेडवा माटे रात्रिने समये बांना पु रुष मोकल्या, त्यारे चंवदनायें कहेवराव्युं के, महारो जार जे मदन, ते जीवतां दुं निस्संकपणे तमारीपासें यावी न शकुं. एंटले एम जणाव्युं के, मदनने मारो.! .॥ यतः ॥ नितम्बिन्यः पतिं पुत्रं, पितरं चातरं दणात् ॥ यारोपयंत्यकार्येऽपि, उत्ताः प्राण संशये ॥ ११ ॥ हवे महेंई तेज पुरुषो मदनने मारवा माटे मोकल्या. तेमणे जमदनने मारवा मांझयो. एवामां कोटवालें जाण्युं त्यारे ते पुरुपोने बांधीने कोटवाल राजापासे लाव्यो. राजायें पूब्यु के तमे मदनने केम मारवा मांमयो ? त्यारे तेणें पूर्वनुं सर्व वृत्तांत कह्यु. पनी ते सर्व पुरुषो सहित राजायें महेंकुमरने नगर बहार काढयो. ते चंवदनाने ले गयो. राजा लघु पुत्रने राज्य आपी, वैराग्य Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. पामी संसारने असार जाएगी दीक्षा जेइ केवलज्ञान पामी मोक्ष पहोतो. मदन पण तथाविध स्त्रीचरित्र जाणी वैराग्यें दीक्षा लइने मरण पामी देवता थयो. दवे महें ने चंशननाने अटवीमां जमतां थकां बन्ने जलने चो रें पकड्यां. ते चोरें बच्चर कुलमां जइ वेच्यां. त्यां जे लोको पुरुषने पुष्ट करी तेनुं रुधिर काढे. ते जीधा, तेनाथी महे, कदर्थना पामतो ए क दिवस तेणें अत्यंत रुधिर काढयुं तेथी निश्चेष्ट यइ मरीने नरके पहोच्यो. अनंत संसार नमो. ए रीतें स्पर्शनेंडियना वशथी महें बालोके राज्य ष्टादिक as परलोके नरकादिकनां दुःख पाम्यो, एम जाली बीजा प्रा पीयें पण इंद्रिय वश राखवी ॥ इति स्पर्शनेंदिय विषे महें कथा स माता || ए पांचे कथा श्रीनवनावना ग्रंथमां जोइ जेवी. ए तो विशेष कामनोग शब्दें पांच इंडियनां विषय सुख कह्यां. तेना पांच दृष्टांत लख्यां. हवे सामान्य प्रकारे काम ते स्त्रीसंग एटले मैथुननी इवा करवी ते उपर चंमप्रद्योतन राजानो दृष्टांत कहे वे. ॥ साकेतपुर नामें नगर, तेना ईशान कूणे शूरप्रिय नामें यदनुं देहेरुं ने. ते यह जागतो प्रजाविक बे. तेथी वर्षे वर्षे पोतानुं देहेरुं चितरावे बे, चि तराव्या पी घणा लोक तेनो महोत्सव करे बे. पण ते चिताराने यक्ष मारे. कदाचित् न चितरे, तो लोकमां मरकीनो रोग करे. एवं जाली चितारायें नाशी जवा मांमधुं ते राजायें जाएयुं, त्यारे राजायें विचार के, जो सर्व चितारा गाममांथी जता रहेगे, तो यदनुं देहेरुं नहि चितराय ! तेथ कोइक वेलायें ए यह मारा बंधनली पण थशे. एम चिंतवी रा जायें सर्व चिताउने रोकी राख्या, पण कोइने जवा दीधा नही. पी सर्व चिताराना नामनी चिठियो लखी घडामां घालीने वर्षे वर्षे जेना ना मनीची नोकजे, ते यनुं देहेरुं चितरे. पण जेनो कारो यावे, ते ए म जा के, माहरे यमराजानी चिती यावी. एम केटलोक काल गयो. एवा वसरने विषे कौशांबी नामा नगरीथी एक चितारो घरथी रिसा यो को, ते साकेतपुरनेविषे एक मोशीने घेर घ्यावी उतस्यो बे. ते मोशी ने पण एक दीकरो बे. अने ते वर्षे ते मोशीना दीकरानो वारो या व्यो बे. माटे ते मोशी अनेक विलाप करीने सेवा लागी. तेने रोतां थकां तेना घरे यावेला चितारायें पूढचं के, हे माता ! तुं केम रूए बे ? मोशी यें Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १५ जेवात हती ते तेने कही संजलावी ते सांगली. चितारो बोल्यो. तमे रुदन म करो, जे यने देहेरें दुं चितरवा जश्श. तेवारें मोशीयें कयुं हे पुत्र ! तुं पण महारा पुत्र बरोबर बे. माटे तने कष्टमां केम नांखुं ? एम बोली, तो पण ते चितारायें घणो आग्रह करीने कयुं के, हे माता ! तमे सुखशा तामां बेसो. एम समजावी ते चितारायें ब्रभुं तप कस्युं ने सुंदर वि शिष्ट वस्त्रयुगल पहेरी, यात पडो मुखकोश बांधी, चोरको पवित्र थइ न वा कलशे नवरावी, नवी वाराकुंची करी, नवां सराव संपुढे नवो रंग करी, मांहे सिरस प्रमुख पवित्र इव्य घाल्या विना देहरुं चितयुं. चितरीने प बी पगे लागीनेयुंके, में जे कांइ व्यापनो अपराध प्रविधि करी होय, ते या प खमजो. त्यारे यक्ष तूटो थको बोल्यो के, वर माग्य. डुं तहारा उपर तुष्ट मान यो बुं. त्यारे चित्रकार बोल्यो के, प्राजयकी तमारे कोइने मारवो न ही. ते सांगली यह वोल्यो के, ए कामतो ताहरु थयुं. पण कांइक वर माग. त्यारे चित्रकार बोल्यो के, हुं जेना शरीरनो एक अंश देखूं तो तेनुं बधुं रूप जेवुं होय तेवुं साक्षात् चितरी का एवं वरदान मने खापो. ते वात दें कबुल करीने वरदान प्राप्युं. त्यारपठी ते चितारो पोतानी कौ शांबी नगरी खायो. तिहां संतानिक नामा राजा बे, ते राजाने मृगावती नामें पटराणी बे. एकदा राजा पोतानी सनामां वेठो थको पूढवा लाग्यो के, महारे गुं नथी ? ने बीजा राजाने गुं बे ? त्यारे कोइक दूत तिहां वेगे हतो ते बोल्यो. के, हे महाराज ! तमारे चित्रसना नथी. एवं सांन लीने तेजवेलायें राजायें चिताराउने हुकम कस्यो के, चित्रसना करो. त्या रे सर्व चितारें पोत पोताना जागे वहेंचीने चित्रशाला चितरवा मांमी. जे कारण माटे देवतानुं इवितकार्य मनमां चिंतवे, एटले तरतज ते थाय. खने राजा वचन बोजे एटले तरत ते कार्य निपजे हवे यना वरदान वालो चितारो पण त्यां बे. तेना जागे राजानी मृगावती राणीनुं क्रीडास्था नक चितरवा श्रायुं छे. ते चितरे बे. तेने चितरतां कोई जालीना विवर की मृगावतीना पगनो अंगुठो ते चितारे दीवो. ते अंगुठाने अनुमाने मृ गावतीनुं जेतुं संपूर्ण रूप हतुं, तेवुं चितयुं. ते चितरतां नेत्रनो घाट याणतां मसीनो बांटो साथल उपर पड्यो. पढी ते बांटो दूर कस्यो एटले वली पज्यो. एम वारंवार ढांटो पडे, त्यारे जाएयुं के, ए ठेकाले एने एवं चिन्ह Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ जैनकथा रत्नकोष नाग बढो. देखाय बे. एवामां राजा पोतें चित्रसना जोवा माटे त्यां प्राव्यो. जोतां जोतां ते स्थानकें प्राव्यो. त्यारे पोतानी राणी मृगावतीना चित्रनी साथ ल उपर शाहीथी तिल पडेलो हतो ते दीगे, एटले कोपायमान थयो के, ए चितारो राणीने मव्यो देखाय बे. एवं जाली राजायें ते चिताराने मार वानो टूकम को. त्यारे सर्व चितारा मलीने राजाने कहेवा लाग्या के, हे राजन् ! ए चिताराने तो यदें वर यापेनुं बे तेथी एनो कांइ दोष नथी. त्यारे राजायें कुल्ला दासीनं मुख देखाडधुं. ते जोइ ते चितारे कुन्ना दासीनुं रूप श्राख्यं; तोपण राजायें चित्रकारनो अंगूठो कपाव्यो. त्यारे ते चित्रकार वलीपण यपासे उपवास करीने वेगे. ते यदें मावा हायनुं वर दीधुं. ह वे ते चितारो, संतानिक राजानी उपर देव धरतो मृगावतीनुं रूप थाले खी अवंती नगरीये जश्चंमप्रद्योतन राजाने देखाडतो हवो. ते चित्र देखी कंद पीडाइने चंप्रद्योतनें संतानिक राजा पासे दूत मोकल्यो, ने कहेव राव्यं के, ताहरी मृगावती राणी मने याप त्यारें संतानिक राजायें ते दूतने तिरस्कार करी काढ़ी मूक्यो. ते देखी चंमप्रद्योतन राजा पण पोता नुं सर्व सैन्य गुंकरी संतानिक राजा उपर चढ्यो. ते वात सांगली सं तानिक राजा मरण पाम्यो. त्यारे मृगावती राणीयें पोतानुं शील राखवा माटे दूतनें मुखें चंद्योतनने कदेवराव्यं के, ढुं तहारी पासे याववाने तत्पर बुं, पण महारा बालपुत्रने वैरी राजा उपश्व करे, माटे केम अवा य? त्यारे चंमप्रद्योतन राजायें कहेवराव्युं के, महारा बेगं तहारा पुत्रना सामुँ कोण जोनार बे ? तेने राणीयें कहेवराव्यं के, मस्तके साप वेठो ने सो जोजने वैद्य रहे, ते वैद्य केम उपचार करे ? तेमाटे महारी नगरीने जब रो कोट करावी यापो. त्यारे कामांध चंमप्रद्योतने कह्युं के हुं करावी यापुं. त्या राणीयें कहेवराव्यं के, उझेपनी इंटो थावे, तो कोटरूडो थाय. रा जायें ते मान्युं पढी चौद मुगटबंध राजा एनी यायतढे, तेनुं सर्व लश्कर तथा पोतानुं लश्कर अवंती नगरीथी हार करतां वना राखीने कौशांबी नग रीनो कोट करावी याप्यो ॥ यतः ॥ दिवा पश्यंति नो घूकाः, काको नक्तं नपश्यति ! न पश्यंति मदोन्मत्ता, अर्थी दोषं न पश्यति ॥ १ ॥ पढी राणीना कह्याथी कापड, चोपड, कण, तृण, प्रमुखें नगरी जरी तेथी संग्राम करवा यो ग्य थर. एम मृगावतीना मनोवांबित सिद्ध यया नंतर मृगावती चिंतववा Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. लागी के ॥ यतः ॥ धन्नाणं ते गामागर गर खेड कब्बड जाव सन्निवेसा जब सामी विहर पवश्यामि य दिसामिएवा ॥१॥ त जगवंतो समोसहो ॥ जो प्रनु पधारे, तो दीदा लेतं. एवामां जगत्गुरु केवलझानना नास्क र श्रीवईमान स्वामी पधास्या. ते प्रजुना अतिशयें करीने सर्व वैर समी. गयां, मृगावती प्रचने वंदना करवा नीकली, प्रनुयें धर्मदेशना देवा मांझी तेवामां कोई एक पुरुषे विचाओँ के, ए सर्वज्ञ , माटे एमने दुं प्रश्न पूवं. एम विचारी मनमांज धारीने पडी प्रश्न पूछे , त्यारे प्रनुजी बोल्या के, वचने पूडो के जेथी घणा जीव प्रतिबोध पामें. एम प्रचुयें ज्यारे कीg, त्यारे ते बोल्यो ॥ जयवं! जा सा सा सा ॥ एटजे हे जगवन् ! जे चित्तमां विचारुं हुं तेज बे, त्यारें प्रनुजीयें जवाब वाल्यो के,हा ! तुं चिंतवे वे तेज कहे जे.त्यां गौतमस्वामीये कह्यु के,हे जगवन् ! ए पुरुषे "जा सा सा सा" पूज्युं ते गुं ? जगवंतें कह्यु. ते काल, ते समयने विपे चंपानामा नगरी हो ती हवी त्यां एक सुवर्णकार वसे , पण ते स्त्रीनो घणो लोलुपी . तेणें पांचसे पांचसे सोनैया आपीने पांचशे कन्या नेगी करी. तेने परण्यो ने. ते पांचशे स्त्रीनने माटे विविध प्रकारना आनूपणो घडावी राख्यां . जे दिवसें जे स्वीनी साथे नोग जोगवा ले, ते दिवसे तेने घरेणां का ढी आपे, पण इावंत घणो ने. माटे घर मूकीने वेगलो खसे नही. अ ने कोश्ने घरमा पेसवा पण दीये नही. ___एक दिवस.तेना मित्र को कार्यने अर्थे बोलाव्यो, त्यां पण जमवा मा टे अपनाये गयो. त्यारे स्त्रीच्ये विचायं के, आज आपणो जरि ब हार गयो . ए आपणने नित अटकाव करे जे. आज एकांत. माटे नाहियें अलंकार, वस्त्र प्रमुख पहेरियें, इत्यादिक विचारीने स्नान करी अ लंकृत विनूषित नइ. पली हाथमां प्रारीसा लइ जश्ने पोत पोतानुं स्वरू प जुए जे. एवामां सुवर्णकार पण आव्यो ते सद स्त्रीने देखीने रूठो. ते में एक स्त्रीने ग्रहीने पाटु मारी ते एवी जोरथी मारी के मारता मारतां तेना प्राण नीकली गया. त्यारे बीजी स्त्रीयोयें विचाओँ के, एना हवाल ते, आपणा पण हवाल थाशे, तेमाटे घारीसा बूटा मारीयें. एम विचा रीने चारशेने नवाणु स्त्रीच्ये लूटा बारीसा ते सोनीने मास्या. तेथी सम काले बारीसानो ढगलो थयो. तेमां सुवर्णकार पण दबाने मरी गयो. Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. पली चारशेने नवाणुने पश्चात्ताप थयो के, आपणे जार मास्यो, माटे ह वे आपणी शो गति थाशे ? अने वली लोकमां पण अपजश थशे. एवो विचार करी सारी रीतें घरना बारणा एवीरीतें बंध कस्या के, तेमांथी एक बिइ पण न देखाय एम करीने चारे तरफ आग लगाडी. ते पश्चात्ताप स हित नरमाशपणाना अध्यवसायें अकाम निहुराए मरण पामीने ते पांच से मनुष्यगतिमां आवी चोरपणे उपनी. ते पांचसें चोर एक पर्वतमा व से ले. अने सुवर्णकार मरीने तिर्यंच (पति)नी गतिमां नपन्यो. एक नव तिर्यचनो करीने ब्राह्मणनी दीकरी पणे उपन्यो. पांचशे स्त्री-मांथी जे स्त्री ने पहेल वहेली सोनी मारी हती, ते मरीने वचमां एक नव तिर्यचनो क रीने पनी तेहज ब्राह्मणनो दीकरो थयो. एम बेद जण जाइबेहेन पणे उप न्या. ते दीकरो जेवारें पांच वर्षनो थयो, तेवार ते बालक बोकरी एक वर्षनी थर. ते बालिका निरंतर रुदन करे. तेने तेनो नाइ रमाडे. एकदा ते जाइए ते बोडीना पेट नपर पुडपडी देतांथकां सेहेज तेनो हाथ तेनी यो निहारे देवाणो, त्यारे ते बहेन रोती रही गइ. तेथी तेना नाय तेने बा नी राखवानो उपाय शोधी काढयो. हवे ज्यारे ते बोडी रूए, त्यारे योनि छारें थेपडी दे, तेथी ते बोकरी रोती बानी रहे. ___ एम करतां तेना मा बा ते वात जाणी. त्यारे नोकराने घरमांथी काढी मूक्यो. अने ते कुमरीने पण माता पितायें अपलदाणी जाणी का ढी मूको. हवे ते बोकरो पण जमतो नमतो विनष्ट कुष्ट आचारनो धणी थयो. एम फरतां फरतां ज्यां चारशेने नवाए चोर रहे , ते पर्वतमां गयो. अने ते डोकरी पण एकला रफलती एक गाममा गइ. ते गाम तेज पांचशे चोरें लूंटयुं. तेनी साथे ते स्त्रीने पण पकडी लाव्या. हवे ते पां चशे चोर ते एकज स्त्रीने नोगवे जे. एम करतां ते पांचशेने दया नपनी के, अहो ! बापडी था रांक परवश पडीयकी पांचशे पुरुषने जोगवे ! तेथी कष्ट खमे ले ! तेमाटे बीजी स्त्री मले, तो एने विसामो थाय. त्या र पली वली चोर तो क्याएकथी बीजी स्त्री पण लइ आव्या. त्यारे एवं जाण्यु के, महारा विषयसुखमां एवं नाग पाड्यो ? एवं विचारीने जे दि वसे ते स्त्रीने लाव्या, ते दिवसथीज तेनां बिइ जोवा मांझया. अने विचा रे ले के, कोइक नपायें हुँ ए स्त्रीने मारूं तो ठीक थाय. पनी एक दिवस Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. হয়ে ते स्त्री पोतें कूयाने कांठे उनी रहीने जे नवी स्त्री यावी बे तेने कहे ने के, या कामां जो कांइक देखाय बे. एम सांजली ते जोवा लागी. त्यारे ते में पढवाडेथी कूग्राम तेली दीधी, तेभ्यी ते मरण पामी. पालथी पांचों चोर याव्या. ते पूढवा लाग्या के, बीजी स्त्री क्यां गइ ? त्यारे ते कहेवा लागी के, पोतानी स्त्री तमे केम संजाली राखता नथी ? ते वात सांन ली तेणें जाएयुंके, एने एगेंज मारी देखाय बे. एवं देखीने ब्राह्मणना दीक राना हैय्यामां एवं उपन्युं के, ए पापिणी महारी नगिनीज हशे ! एम वि चारीने चिंतववा लाग्यो के, इहां भगवान श्रीवीरस्वामी सर्वज्ञ सर्वदर्शी बे, एवं सांजली यें यें माटे ते खावे तो तेमने बुं. एवामां श्रीवीरस्वामीनुं समवसरण थयुं. त्यारे ते ब्राह्मणें समवसरणमां. श्रावीने लाजजेवी वात हती तेथी मुखें तो बोली शक्यो नहि, पण मनमां पूढवा लाग्यो के ॥ य तः ॥ वुत्तुं वि जीवाणं, सुडुक्कराई पावचरियाई ॥ जयवं जा सा सा सा, पंचस ए सोहु इमो ते ॥ १३ ॥ इति श्रीउपदेशमालायां ॥ हे स्वामिन् ! ए महारी जगिनी ले किंवा नहीं ? त्यारें प्रभुयें कयुं. हा ए तहारी बहेन . ते वात सांजनी तेणें वैराग्य पामीने दीक्षा लीधी. ए अधिकार सांन ली सर्व पर्षदाने राग पातलो पडतो दुवो. एवा अवसरमां मृगावती रा एपी श्रमण नगवंत श्रीमहावीरस्वामी पासे यावी, त्रण प्रदक्षिणा देश वंद ना करी, धर्मदेशना सांजलीने पती ऊती, वे हाथ जोडीने प्रजुने कहेती हवी के, हे भगवन् ! या संसार असार बे. ते प्रज्वली रह्यो बे, तेमांथी हुं महारा खात्माने काढवाने सावधान थई बुं. पण चंमप्रद्योतन राजानी याज्ञा जेनं, एंटलो विलंब बे. ते प्राज्ञा लइने स्वामिजीमी पासे दीक्षा अंगीकार करूं. एम कहीने सनामध्येज चंमप्रद्योतन राजाने पूठ्युं, त्यारे inप्रद्योतन राजा पण देवता, मनुष्य ते असुरनी महोटी सनामां वे वो हतो, तेमां लाज्योथको वारी न शक्यो. तेथी मृगावतीने दीक्षा लेवा नी श्राज्ञा थापी, ते वेलायें मृगावतीयें चंमप्रद्योतन राजाने खोले पोता ना उदयन कुमरने सोंपीने पोते चारित्र अंगीकार करयुं. ते अवसरें चंम प्रद्योतन राजानी अंगारवती प्रमुख खाव रानियें पण चारित्र लीधुं. अने पांचशे चोरने पण त्यां जइने तेणें प्रतिबोध्या. ए सर्व वात प्रावश्यकनी वृहद्वृत्तिमां उपोद्घातनी खादिमां बे. ते सर्व इहां प्रसंगे कहेवाणी. पण Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० जैनकथा रत्नकोष नाग बठो. इहां तो सुवर्णकार कामानिलापी तथा चंमप्रयोतन राजा मृगावतीनो इ ah ने ब्राह्मणनी नगिनीनी पांचों चोरोथी पण कामतृमा पूरी न थ, इत्यादिक कामी जीवो सर्वे मूर्ख जाएवा. ए अधिकार जावो. हवे ए अर्थ तथा काम ए वेहुने जे बांगे, तेने तत्त्वना जाए कहीयें, अने जे तत्त्वनो जाल होय, ते कमाने विषे तत्पर होय. ए संबंधें त्रीजुं पद कहे बे. राति राहवंति " ( बुद्धा नरा के० ) जे पुरुषं तत्त्वना जाण होय, ते पुरुष ( खंति के० ) मा एटले समताने विषे (परा के० ) तत्पर (हवंति के० ) होय. एटले बुद्ध पुरुष दमानेविषे तत्पर रहे ने पल कषाय करेज नही ते ऊपर दमदंत राजऋषिनो दृष्टांत कहे बे. 66 ॥ जंबूद्दीप लाख जोजननो लांबो पहोलो घने पूर्ण चंदमा सरखो तथा तेजना पुडला सरखो गोलाकार बे. तेमां नरतनामें क्षेत्र पांचशे वीश जोजन ने ब कलानुं पहोनुं छे. तेमध्ये वैताढ्य पर्वत ने गंगा सिंधुयें करीब खं यया बे. तेमां पण दक्षिणाई नरतमांहेलो जे मध्य खंम बे, मां हस्तिशीर्ष नामें नगरी बे. तेनो दमदंत नामें राजा बे. ते राजा धीर, वीर ने पराक्रमी बे. हवे ते यवसरें कुरु देशनेविषे जेनें देखवाथी साक्षात् स्वर्गो व थाय एवं गजपुर नामें नगर बे, तेने विपे युधिष्ठिर नामें राजा राज्य करे ले. ते राजा इंड् सरखो शोने बे. ते राजाना चार नाइ ते जाणे चार लोकपालज होय नहि ! ! एवा नीम, अर्जुन, नकुल ने सहदेव ए चार चाइयें ते राजा परिवस्यो ने हवे जेम जीबने पांच इंड्ि ना विषय सुख ते वैरीनूत बे, तेम दमदंत राजाना पांच पांव ते पां च विषयनी पेठें वैरी बे. एक दिवसनेविषे ते दमदंत राजा, जरासंध रा जा पासे राजगृह नगरें जतो वो पलवाडेथी पांच पांवे यावीने दमदं त राजानो देश लूंट्यो, अने कांइक बाल्यो पण खरो, जे कारण माटे ब लिया साथै बल करवो ए नीति बे. एम विचारीने ए काम करीने पांवो पाठा पोताने नगरे गया. पी केटलाएक दिवसें दमदंत राजा पण पोता ने नगरें थाव्यो, त्यारे पोताना देशना लोकोयें फरियाद करी के, पांवो श्राव तमारो देश जूंटी ने बाली गया बे. ते सांगली दमदंत क्रोधायमान थयो थको चतुरंगी सेना लइने हस्तिनापुरने यावी वींटी रह्यो, त्यारे पांवो प यद्यपि महाबलिया बे, तथापि तेमनुं जोर दमदंत राजाना मुख याग Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ल कांश चाल्युं नहीं. तेमाटे गढने रोध करीने मांहे वेशी रह्या. पण बहा र नीकलीने तेनी साथें संग्राम करवा आव्या नही. त्यारे दमदंत राजायें कहेवराव्युं के, तमें शीयाल सरखा डो. कारण के, शीयाल पण ज्यां शू न्य स्थानक होय त्यां स्वेचायें विचरे. तेम तमें पण जुपी रह्या बो परंतु जो तमारामां कांड पण जीवित होय, तो हवे बहार नीकलो. अने को टमां केम पेशी रह्या बो ? हुँ ज्यारे जरासंध राजा पासें गयो, त्यारे महा रो देश लूंटवा आव्या, अने हवे तो बहार पण नीकलता नथी ? एम घ पोक तिरस्कार कस्यो, निर्भर्त्सना करी, पण पांमवो तो जेम निर्जीव थप ड्या होय, तेम थइ रह्या; परंतु कोइ लडवाने बाहेर नीकट्यो नही. त्यारे दमदंत राजा पाडो वतीने पोताने नगरे आव्यो. अन्यदाते दमदंत राजायें संसारथी उग पामी, कामनोगथी निवर्त थइ, संसारने असार जाणी, धनयौवनादिक क्षणविनश्वर विचारी, चारित्र अंगीकार कह्यु. अनुक्रमें गी तार्थ थया. पली एकल विहारी प्रतिमा अंगीकार करी ॥ यतः॥ गीयबोय विहारो, बीयो गीयबनिस्सि नणि ॥ इत्तो तश्य विहारो, नापुन्ना जि एवरेहिं ॥ १४ ॥ एकदा ते दमदंत मुनीश्वर एकाकी निष्परियही पोतें तस्या अने परने तारवा समर्थ, परीसह उपसर्गने सहेतां, ग्रामानु यामें विचरतां हस्तिनापुर नगरे अाव्या. ते नगरने बहार संयम तपस्याने विपे आत्माने जावतां थकां काउस्सग्ग मुज्ञयें मेरुपर्वतनीपेठे निश्चलपणे रह्या. ___ एवा अवसरने विषे राजपाटी क्रीडाने माटे निकल्या एवा जे पांमव कौरव तेमां युधिष्ठिरनी प्रथम स्वारी आवी; तेणें दमदंत ऋषीने काउस्स ग्गे उना दीना, तेथी तेमना मनमां घणोज हर्ष उपन्यो. पासे आवी वंदना करी नमस्कार करी स्तवना करी के, हे जगवन् ! धन्य तमारा अवतारने के, तमे जन्म जीवित, फल पाम्या ! हे महाराज ! तमे राज्य मी घोर पराक्रमी एवं चारित्र अंगीकार कयुं . तेमाटे तमे धन्य बो, कृतार्थ बो, कृतपुण्य बो, तमेतो अवतार सफल कस्यो, अने हुँतो अल्प सत्त्वनो धणी कामरूप कचरामां लपटाइ रह्यो ढुं. इत्यादिक स्तवना करी आगल चा व्या. एम युधिष्ठिरनी स्वारी आवी रह्या पली नीमनी स्वारी आवी. तेणें प ए एमज स्तव्या. एम अनुक्रमें पांच नानी असवारी आवी ते मुनि Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. ना गुणग्राम करी स्तवना करीने बागल चाल्या, अने तेउनी अस्वारीना लोकोपण स्तवना करीने चाल्या. त्यारपडी पडवाडेथी फुर्योधन श्राव्यो त्यारे तेना अनुचरें देखाड्यु के, दमदंत राजा उन्ना डे,एवं सांजलीने यो धनने कपाय उपन्यो के,एणे अमने शीयाल कहीने नंमया हता! एम वि चारीने पोताना हाथमां जे बौजोर हतुं ते मुनिने टूटुं मायुं ! अने पालथी तेना लस्करना पाणसो पण सर्वे मुनीनी उपर पबर, ईटाला नांखताज आव्या. एम करतां पबरनो ढगलो थयो. तेमां मुनि दबाइ गया तथापि मु नियें सर्वथा कषाय न करो. मनमां विचाखू के, जीव पोतानाज कस्या कर्म विपाक नोगवे . ॥ यतः ॥ सवो पुवकयाणं, कम्माणं पावए फल विवा गं ॥ अवराहे सुगुणेसु, निमित्त मित्तं परो होई ॥ १५॥ त्यारपनी पांवो ज्यारें रयवाडीथी पाला फस्या त्यारें प्रथम युधिष्ठिरनी स्वारी ते ठेकाणे श्रा वी; तिहां मुनिने दीठा नही. त्यारे प्रधान पुरुषोने पूब्युं के, या काणे मुनि काउसग्ग ध्याने रह्या हता, ते क्यां गया ? अने आ पर श्या प ड्या ने ? त्यारे लोकोयें कह्यु, महाराज! ए पबरनो ढगलोतो जुर्योधनथी थयो ने. एवं सांजली तेज वेलाये दुर्योधनने तेडीने ठबको दीधो के, अ रे मूर्ख ! आ परम निस्टही जेने तृणने मणि सरखां, अने सुखने सुःख सरखां, तथा शत्रुने मित्र सरखा, एवा तथा बती दिना त्यागी, बती श क्ति गोपवनारा, परम समताना सागर, परम गुणी थया. एवा मुनिराजनी नपर तें कार्य कयुं, तेथी कुरुकुलमां कलंकनूत तुं थयो. जो तहारा मां बल पराक्रम वधारे हतुं तो आपणो किलो एवं रोध्यो त्वारे तुं क्या गयो हतो ? माटे फिट पापीन आ पापमांथी क्यारें लूटशो ? एम कही स व इंट्यो अने पर दूर कस्या. पनी तेल मंगावी मुनिने मर्दन करावी, वं दना नमस्कार करी खमाव्या के, हे प्रनु, जे कांइ अमारो अपराध थयो ते खमजो. एरीते पांडवोयें पूजा स्तवना करी अने जुर्योधने इंटाले मास्या; पण दमदंत मुनिने परम समता नाव जे; तेथी कोश्नी नपर रागशेष न कस्यो ॥ यतः ॥ आवश्यक निर्युक्तौ ॥ वंदिङमाणा न समुक्कसंति, हिलिक माणं न समुऊतंति ॥ दंतेण चित्तेण चरंति धीरा, मुणि समुग्धाश्चराग दोसा ॥ १६ ॥ ए कथा पण आवश्यक वृत्तिमां . Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २३ हवे समतानावे मुनिपणुं ते जेनाथी शक्ति दोषे न थयुं तो ते गुं करे ? ते माटे चोथा पदमां मिश्र पुरुष देखाडे . "मिस्सा नरा तिन्निवि आयरंति”. (मिस्सा के ) मिश्र एटले जे एकां ते यार्थीपण नही, अने एकांते कामार्थीपण नहि तथा एकांते दमा ना अर्थीपण नही, एवा ( नरा के०). मनुष्य ते (तिन्निवि के०) अर्थ, काम अने दमा ए त्रणने (आयरंति के) आचरे अथवा आदरे. एट ले मिश्र पुरुष इव्य अवसरे इव्य उपार्जन करे, काम अवसरे विषयादिक सेवे, अने धर्म अवसरे दमा पण राखे. ते उपर इहां जिनचंड कुमारनी कथा कहे . हवे ज्यांथी ए कथा लखीये बैयें, त्यांथी प्रस्तावना मांमियें यें. मिश्र कहो अथवा मध्यम कहो ए वे शब्दनो एकज अर्थ जे. ते मि श्र अथवा मध्यम पुरुष कहेवा होय तो के धर्म, अर्थ, काम अने मोद ने विषे आसक्त होय, ते चारे पुरुषार्थमा जेणें एक मोक्नेज परमार्थ जाण्यो , तथा मोदतत्त्वने परमतत्त्वपणे मान्यो डे, परंतु हीन सत्वें क रीने अथवा को कालने प्रनावे करीने पुत्र कलत्रना स्नेहरूप वेडीमां पड्यो ,मोहबंधने बंधाणो ,तेने लीधे परमार्थने जाणतो थको, तथा स म्यज्ञान, सम्यकदर्शन, सम्यक्चारित्ररूप मोदमार्गने देखतो थको, राग पिना परिणाम ते महा बिहामणा के एवं विचारतो, संसारमा वस्तु स्व जावने असार देखतो, विषय विलासना कटुक विपाक ने एमजावतो, वली इंडियो ते जीवने उन्मार्गे प्रवावे ले एवं चिंतवतो थको पण को विषयनी मधुरतायें करीने कोई इंडियोना चपलपणे करीने अनादि काल नो जे कोई विषयासंगी थयो , ते बांमवो उर्लन थाय तेणें करीने हजी सूधी मोदसुख इकडा थयां नथी जे कारण माटे कर्मपरिणतिनी शक्ति अचिंत्य ले. तेथी महासत्त्वनाधणीय आचरी एवी जे परमेश्वरनी प्रव्रज्या, ते अंगीकार करी-शक्तो नथी. ते कारणे हीन सत्त्वपणा माटे घरमांज रहे डे. एवा कोण होय ते कहे . एवा तो श्रावक सम्यक्दृष्टि होय, जेणे जीवाजीवादि तत्त्वने जाण्या ,तथा जिनवचनना रहस्यने जेणें जा एया , अने यथाशक्तियें व्रतने जेणे गृह्यां ॥ यतः ॥ बंधं अविरश्हेवं, जाणंतो राग दोस उरकं च ॥ विरश्सुहं छतो, विर कावंच असमबो ॥१॥ एस असंजय समो, निंदतो पावकम्म करणं च ॥ अहिगय जीवाजीवे, Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ जैनकथा रत्नकोप नाग हो. अचलियदिही चलिय मोहो ॥ २ ॥ इति सम्यकदृष्टि लक्षणं ॥ तथा ॥ सम्मगदंसारहित, गिएहंतो विरश्मप्पसत्ती ॥ एग वयाई चरिमो, य तुम मित्तत्ति देसज ॥३॥ इति देशविरति लणं ॥ इहां मिश्रपुरुष स म्यकदृष्टि पण होय अथवा देश विरति पण होय. बीजा पण प्रकृतियें न इक, करुणावंत, दांति मार्दवार्जवादि गुणें सहित, लोनें अनाकुलित ले चित्त जेनु, दान शीयल तपनुं रुचिवंत, अने शुननावनायें कर नाव्युं अंतःकरण जेनुं एवा जे जे ते जीवो आलोकमां पण घणुं मानवा तथा पूज वा अने प्रशंसवा योग्य होय. मोदना अनिलाषी थका परलोके पण देवता पणुं अथवा मनुष्यपणुं पामे. ते उपर जिनचं कुमारनो दृष्टांत लखीयें बैयें. ॥ जंबूछीपना जरतदेत्रनेविषे विजयपुर नामा नगर जे. त्यां सोमचं नामा राजा राज्य करे . तेने चंकांता नामें पटराणी , ते नगरमांध न नामें शेत वसे . तेने धनश्री नामें स्त्री, पण पुत्र नथी. तेथी शेता णी मनमां घणी मुहवाणी थकी रहे , एवू शेठे मनमां जाणीने तेज न गरना बहार देवरमण नामें उद्यानमां चंश्नामें यदनुं देहेरुं बे, ते यद प्रनाविक बे. ते यदनी पूजा करी अने तेनी आगल उनो रहीने कह्यु के, हे यद ! जो महारे घेर पुत्र यावशे, तोढुं तहारी उपर सो (१00) पामा चढावीश ! अने सर्व व्ये पूजा करीश. एम कही घेर आव्यो. का लांतरे स्त्री सगर्ना थइ, एवा अवसरमां ते नगरनी बहार चार झानना धणी नुवननानु नामें मुनिराज आवी समोसखा. ते मुनिने.नमस्कार क रवा माटे जता लोकने देखीने धनशेत पण ते लोकोनी साथे गया. त्यां मुनिराजें दयामय धर्मदेशना दीधी. ॥ यतः ॥ सवे जीवावि वंति; जीवि न मरिऊ॥ तम्हा पाणिवहं घोरं, निग्गंथा वऊयंति णं ॥१॥ दि जाहि जो मरंतस्स, सागरंतवसुंधरं ॥ जीवियं वावि जो दिजा,जीवियं तु स इव ॥ २ ॥ मुरकबीहि करेअबो. धम्मो जीवदयाम ॥ जाइ जीवो, अहिसंतो, अ अमरणं पयं ॥ ३ ॥ यथा ॥ कृपानदीमहातीरे,सर्वे धर्मा तृणांकुरा ॥ तस्यान्तिकमुपेतायां, कीय नंदंति ते चिरं ॥४॥ इत्यादिक सर्व जीवनी दयामय धर्मदेशना गुरुयें दीधी. ते सांजलीने शेत प्रतिबोध पाम्यो, दयाना प्रणाम थया, तेवारें समकित मूल बार व्रत अंगीकार कस्या. पडी घेर श्रावी कुटुंबसहित धर्म करतो हवो. हवे एक दिवस तेनी स्त्रीने Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. पुत्रप्रसव थयो, ते पुत्रनो जन्ममहोत्सव कस्यो, पडी सो पामा लइने य दने बारणे बांध्या, अने पोतें त्रण लाख व्यना सोना तथा रत्नमय त्रण्य फूलो कराव्यां, ते फूलोयें यदनी पूजा करीने देवनी शेषना मिषथकी एक फूल पुत्रने मांथे मूक्युं, बीजुं फूल पोताने मांथे मूक्युं, अने त्रीजुं फूल पो तानी स्त्रीने मांथे मूक्युं. त्यारे ते यद.रूतो थको रात्रियें प्रत्यद पणे श्रा वीने कहेवा लाग्यो के, हे शेत! तें झुं मान्युं हतुं ने या गुं कर्तुं ? त्यारे शेठ बोल्यो. हे यदाज ! में तमने सो पामा चडाववा कह्या हता, पण में मारवाने तो कह्या न हता, ए बापडा रांक अवाचक पशु तेने, हुँ जैन धर्म समजीने केम मारूं ? वली महारा सर्व इव्ये करीने में तहारी पूजा मानी हती, ते सर्व इव्य लक्षणना त्रण फूलेंकरी पूजन कयं. अने तेज मंगल निमित्तें शेषमां लीधा. एम सर्व वात में घटमान करी जे. ___ एवो शेठनो दयाधर्म सांजलीने यद घणो प्रसन्न थ. शेतनी प्रशंसा करीने पोताने तेकाणे गयो हवे शेठे पुत्रनुं जिनचं नाम दीधुं, ते सकल कलामां कुशल जैनधर्मनो जाण थयो. एक दिवस यौवन अवस्थायें पोताना मित्र साथे क्रीडा करतां मार्गे कोई पुरुचे एक गाथा कही, ते पोतें सांजली ॥ यतः ॥ सोलवरीसो पुरीसो, लही मुंजे जोन जणय स्त ॥ एसो नूणं पुत्तो, रिणसंबंधेण संपत्तो ॥ २४ ॥ एटले सोल वर्षना थया पनी जो बापनी कमायेली लक्ष्मी नोगवे, तो ते दीकरो क्षण संबंधे आव्यो , एम जाणवू. ते सांजलीने पोताना चित्तमा विचारवा लाग्यो के, ए पुरुचे जे गाथा कही ते साची ॥ यतः ॥ ताय विढत्ता लही, नूणं पुत्तस्स होई सा नाणी ॥ होइ परस्स परब, सयं विढंता तजुत्ता॥२५॥ ते कारण माटे कोश्ना कह्या विनाज पोताना पुण्यनी परीक्षा निमित्ते पर देश चालतो हवो. पासे एकज वस्त्र ,पण बीजुं कांइ नथी. हवे गाम गा मने विषे, नगर नगरने विषे, अटवी उजाडने विषे नमतो ममतो समुने कांठे आवीने वेठो ठे, तेवामां तिहां कोक पंथी आव्यो, ते पंथी समुह ना कनोलनी श्रेणियो उबलती देखीने बोल्यो ॥ यतः ॥ साहीणामय र यणो, अमरमरोरं च नुवण म करंतो ॥ उन्नसिरिहि व न लजसि, लहरीहिं तरंगिणीनाह ॥ २६ ॥ एगाथामां एम कर्दा के, हे तरंगिणीना नाथ ! एटले हे समुइ! तहारामां अमृत तथा रत्न नयां बे. तेम उतां तुं नुवन Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. ना लोकने अमर तथा ( खरोरं के० ) प्रदरिपणुं केम करतो नथी ? तो हे नूंमा ! तुं कल्लोलनी श्रेणिये उल्लास पामतो लाजतो केम नथी !! एव वात सांजलीने जिनचंद कुमार बोल्यो. हे पंथी ! परने दोष देवो, ए वचननुं फल नथी ॥ यतः ॥ बुद्धेः फलं तत्त्वविचारणं च, देहस्य सारो व्रतधारणं च ॥ यर्यस्य सारः किल पात्रदानं, वाचः फलं प्रीतिकरो नराणां ॥ २७ ॥ पुनः ॥ छंदो जो अणुवहर, मम रक गुणो पयासेई || सो नि उण माणुसा, देवावि डल्लहो होइ ॥ २८ ॥ तेमाटे समुइमां दूषण न काढीयें. ए सायरमां षणं घणा गुण बे. ॥ यतः रयण निरंतर रि J, तहविदुरयणायरस्स माया ॥ तेा जई नवमाणं, पढमं जल हिगजी राणं ॥ २७ ॥ ए गायामां एम कयुं के, समुड् निरंतर रत्नथी नरेलो बे, तोपण मर्यादावंत बे. जगत्मां गंभीरपणानी उपमा ते समुड्ने देवाय बे. इत्यादिक गुण वर्णववा. एवी गाथा सांजलीने तेनो अधिष्ठायक देवता ह पामी प्रत्यक्ष थयो, अने ते कुमरने कोटी कोटी मूल्यनां पांच रत्नो या प्यां. त्यार पी ते कुमर कोइकना वहाण नपर बेसीने ताराद्वीपे गयो. त्यां तारापुर नगरना उद्यानमां देवरमण नामें यनुं देहेरुं बे. ते देहेरा मां रह्यो, एवामां त्यां चार कुंमरीच रमवाने माटे यावी. तेमां एकतो नु वनशेष नामें राजानी दीकरी, नामें रूपरेखा बे, बीजी जुवनतिलक नामा मंत्रिनी पुत्री, नामें रूपनिधि बे. त्रीजी भुवनचंद शेठनी पुत्री, नामें रूपकला बे. चोथी जुवनसुंदर सार्थवाहनी पुत्री नामें रूपरति बे. ए चारे ने मांहो मां घणी प्रीति बे. एकदा ते चारे राजनुवनमां रात्रिनें विषे नेगी मी . मांहो मांहि एवी वातो करे ले के, रखेने प्रापण एक बीजाथी वियोग थाय ! तेथी जो प्रापणे चारे मली एक नर्त्तार करीये, तो यावजी व सूधी वियोग न थाय. ते माटे यापणा नगरनी बहार उद्यानमां यद बे, ते प्राजाविक बेतेनी याप पूजा करी खाराधीने. एनी पासे एक न तरनी प्रार्थना करीयें. एवो विचार करीने ते चारे त्यां खावी बे. एवामां तिहां तेणे कंदर्पाकार देवकुमर सरखो कुमर दीठो त्यारे विस्मित थइ विकस्वर नेत्र करीने ते कुमरने जोइने मनमां धारीने यनी पूजा करी. मनथकी ज ते वरनी प्रार्थना करीने स्वस्थानके यावी. कुमर पण ते चारेनुं रूप, सौभाग्य, चातुरीथी रंज्योथको फल खाहार करीने दिवसतो त्यांज गुजा Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. यो अने रात्रं पण यदना नुवनने विपे रह्यो. ते रात्रे पांच रत्नेकरी यदनी पूजा करी, पड़ी यदनी स्तवना करे ॥ यतः ॥ तुण जेण सिद्धी, रिकी बहीवियन नुवणे ॥ सो देवरमण जरको, पञ्चरको देन मह सुरकं ॥३०॥ एवां कुमरनां वचन सांजलीने यद तुष्टमान थयो. प्रत्यद आवीने ते पां च रत्न पाबां आप्यां. अने एम कह्यु के, हे कुमर ! तहारी स्तवना तथा तहारी रत्ननी पूजा देखीने में चार कन्या तने आपी. वली कांक वर माग्य. त्यारे प्रणाम करीने कुमर बोल्यो के..महारे काम पडे ढुं संनाएं त्यारे ावीने मने साहाय्य करजो. यदे ते वात मानीने कुमारने नपा डीने राजनुवनमा मूक्यो. त्यां कुमरी पण कुमरना वियोगथी विधुर थ रही हती. तेथी कुमरने देखीने घणोज आनंद पामीने, ते वेलायें पा णिग्रहणनां सर्वे नपकरण यदें लावी बाप्यां,अने यदना वचनथी चारे स्त्रीयोनुं पाणिग्रहण कयु. यह पण अदृष्ट थइ गयो. त्यार पडी प्रनात थ येथके ते कन्या तथा कुमरनां तेवा प्रकारना परवानां चिह्न देखीने राजा अमात्य, श्रेष्ठि, सार्थवाह प्रमुख सर्व विस्मय पाम्या. पोत पोतानी पुत्रीना मुखथी वातो सांजलीने हर्ष पाम्या, पडी हाथी, घोडा प्रमुख कु मरने आपीने सत्कार दीधो. कुमरपण केटलोएक काल त्यां रह्या. ते चारे स्त्रीने एकेकुं रत्न कुमरें आप्युं ते तेणें पोत पोताना हारमा जडावी लीधुं अने एक रत्न कुमरें पोताना हारमा घाल्यु. हवे कुमर पोताने घेर जवा उजमाल थयो. ॥ यतः॥ जगणी य जम्म नूमि, नियचरियं सऊणझणविसेसो ॥ मण मायूसं, पंच विदेसे वि हियम्मि ॥ ३१ ॥ हवे कुमर, राजा प्रमुखनी आझालेश्ने पोतानी स्त्रियो सहित जहाज उपर बेसीने समुश्मार्गे चाल्यो. अनुक्रमें उर्दैवना योगथी वहाण नांग्युं. कुमर समुश्मां पड्यो चारे स्त्रीयो तेने बांहे वलगी, एवा अवसरमां कोश्क जलहस्ति चार हाथणीयो सहित त्यां आवीने स्त्रीयो सहित कुमरने तेश्ने समुश्मांथी पांचे जगने रत्नही मूक्या. ते देखी कु मरने विस्मय उपन्यो. हवे आगल वनमां नमवा लाग्यो त्यां कोशमुनिरा ज ध्यानमा रह्या हता तेने देखीने कुमरने हर्ष नपन्यो. ॥ यतः॥ धन्या नां त्यक्तसंगानां वनवासनिषेविणाम् ॥ स्फुरंति कदये नित्य-महोमोह महोर्मयः ॥ ३२ ॥ तेवारे साधुने प्रणाम करीने प्रश्न पूडओँ के, हे जगवन ! Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोप नाग हो. जलहस्तिये महारा उपर ए उपगार केम कस्यो ? त्यारे ऋषिराज बोल्या. हे कुमर ! तुं पूर्वनवें एहिज हीपमा निन्न हतो. त्यां अमारा वचने प्रति बोध पाम्यो, दयामय धर्म समज्यो, पडी कोइक वनमा चार मृगली सहि त एक मृगलो मली पांच जीव ते महा नष्णकालना ता करीने मूळ पाम्या , तेने पाणी प्रमुख बांदीने तें शीतल कस्या. पडी नवकार संन जाव्यो. ते लगारेक स्वस्थ मनवाला थया, तथापि पाणीनी तृषायें करी मरण पाम्यां. ते मरीने एहज समुहमा हरिणो जलहस्तिपणे उपन्यो, अ ने चारे हरिणीयो हाथणीपणे उपनीयो. ते पूर्वनवनो करेलो तहारो न पकार देखी तेमने हर्ष उपन्यो, तेथी तेणें तुऊने उपगार कस्यो. एवो मुनि नुं वचन सनिलीने जलहस्तिनो नपगार संनारतो मुनिने नमस्कार करीने रत्नहीपमा गयो. त्यां महारत्न देखीने पांच हजार रत्न संग्रह्यां. एवामां कोक वाणियानां प्रवहण पाणीने अर्थे त्यां याव्यां , तेने नाडं आपी ने चारे स्त्रीयो सहित पोतें वहाणमां चढयो. हवे ते वाणीये रत्न तथा स्त्रीने लोनें ललचाइने कुमरने रात्रिने समयें सायरमां नांख्यो. प्रनात थये थके स्त्रीयोयें नरिने दीतो नही, त्यारे पोताना हार गोपवीने दुःख धरवा लागी. ते वखत ते वापीयें तेमने नोगने अर्थ घणी प्रार्थना करी; पण ते चारे, पतिव्रताव्रतनी पालनारी होवाथी वाणियाने तृण बराबर गणती हवी. त्यारे ते वाणीयो कषायमां 5 हवाणो अनुक्रमें पोताने रहेवानुं जे चंपुर नामें नगर तेना चंशदित्य राजाने ते चारे स्त्रीयो नेट करतो हवो. राजायें पण शेठने सरलचित्त वंत जाणीने सत्कार दीधो. पली शेत पोताने घेर गयो. हवे ते राजाने सु बुद्धि नामें प्रधान ले, ते बोल्यो. हे राजन् ! ए स्त्रीयो मर्यादावंत लड़ा वंत ले ते माटे कोइक पुण्यवंतनी अंगना हशे एवं संनवे बे. परंतु राजा तो तेना रूपसौनाग्य मोह्या थको अंतेउरने एक देशे. थापीने पड़ी तेनी परीक्षा करवाने माटे राते बानो तेमनी पासें आव्यो. ___एवा अवसरमां जिनचंद, जे समुश्मा पड्यो हतो, तेने हाथ पाटीयुं आव्यु. ते पाटीयाना आधारें समुना कनोलें प्रेस्यो थको त्रण दिवसें चं दीपने कांते नतस्यो. त्यांपासेना वनमा गयो. ते वनमा एक योगी ध्यानमां रह्यो दातो. त्यां दणेक बेगे. पड़ी योगी बोल्यो. हे कुमार ! महारा ना Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शण गौतमकुलक कथासहित. ग्य तुं आव्यो ने. दुं विद्या साधु बूं ते माटे मने साहाय्य कस्य. ते सांज तीने कुमरें विचायं के, प्राण तो कोटि उपाय करतां पण श्रावं त्रुटे तेवारे रहे नही. माटे ते प्राणें करी परनपगार करीयें, तो तेथी अधिकुं बीजं वली गुं सुंदर ले ? ॥ यतः॥ कृतनरिपरित्राणाः, प्राणा यांति नृणां स्वयं ॥ तैश्चेत्परोपकारःस्यातः सुंदरं किमतः परं ॥ ३३ ॥ तेथी ते योगीनुं वचन मान्यु. अने रात्रिने विपे सहाय्य कयुं. सवार थयु के ते योगीने वि या सिह थ त्यारे ते योगीय कुमरनो उपगार जाणीने रूप परावर्तिनी गु टिका तथा अदृश्य करणना अंजननी बे गोली ते कुमरने आपी. ते लेइने कुमर पोतानी स्त्रीयोना वियोगथी विधुर थको,स्त्रीयोनी खबर अण जाणतो थको, यदने संनारतो हवो,यदनी स्तवना करवा लाग्यो ॥ यतः ॥ यदीयं कल्पवृदोयं, चिंतितार्थविधी क्षमः ॥ प्रत्यदीनूय मे मंदु, मनःदोनं निर स्यतु ॥ ३४ ॥ एम ते यदने संजास्यो, एटले यद प्रत्यद थ बोल्यो. हे कुमर ! मने केम संनास्यो ? कुमरें कह्यु, महारी स्त्रीयोनी खबर कहो. य द बोल्यो, चंपुरनगरने विपे चंज्ञादित्य राजाना अंतेनरमा निर्मलशीलव ती चारे जणीयो रही जे. त्यारे कुमरें कडं के, मने पण त्यां मूको. ते सांजली यदें कुमरने उपाडीने चंपुरने बहार मूक्यो. वली एक चिंता मणि रत्न आपीने यद अदृश्य थयो. कुमर अवश्य करणी गृटिकाना प्र योगें अदृश्य थ तेहज रात्रै राजानी पासें गयो. एवा अवसरमां ते चारमाथी रूपरेखा नामें जे राजानी कुमरी ले ते बोली. हे सखी ! जे निर्मल कुलमा उत्पन्न थयेला अने यौवनअवस्था ये परदेशे गमन करनारा एवा अमारा नारनो अमोने महोटो विरह थ यो डे माटे न जाणिये के, झुं निपजनार !! ॥ यतः ॥ निम्मलकुलं मि जम्मो, जुवासम विदेसगमणं च ॥ पिय विरहो अश्गुरुन, नय याणंमि का परिणामो ॥ ३५॥ त्यारे रूंपनिधि नामें मंत्री पुत्री बोली. हे सखी ! युं बीहे ? रत्नाकरनी पेठे सऊन जे जे तेने परचपकारने य थै विधातायें निपजाव्या . वली जगतमा एवा सऊन के, जेना हृद यमां मर्यादाज वसी रही .॥ यतः ॥ रयणायर वसुरयणा, विहिणो वि हिया परोवयार ॥ के केवि संति नुवणे, जाणमणे वसमणे जाया ॥३६॥ त्यारे त्रीजी रूपकला नामें श्रेष्ठिनी पुत्री बोली. हे सखी ! ते पुरुष जग Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. त्मां धन्य , तेनुं जीवित पण कृतार्थ ने, के जे मोदस्त्रीसाथै रक्त थया अने परस्त्रीथी विरक्त चित्तवाला थया ॥ यतः ॥ धन्ना ते वि य पुरिसा, ज यंमि जीयं च ताण सुकयलं ॥ जे.मुत्तिरमणिरत्ता, विरत्तचित्ता परबीसु ॥३७ ॥ त्यारे चोथी रूपवती नामें सार्थवाहनी पुत्री बोली. हे सखी ! कुलवंतीने आपदा आवे थके. विचार करतां नरिने वियोगें मरण विना बीजो कोई आधार नथी. ॥ यतः ॥ बहुसो चिंतिऊंतं, यावश्पडियाण कुलपसूयाणं ॥ मरणं विणा ए सरणं, रमणीणं रमणविरहे णं ॥३७॥ ए चार गाथा सांजली राजा विचारवा लाग्यो के, अहो ! महारा मंत्रीश्व रें जे वात कही ते युक्तज कही; जेमाटे ए चारे स्त्रीयो कुलांगना संनवे ! पडी राजा लाज्यो थको पोताना ठेकाणे प्रावीने वेठो. कुमर पण तेना वचनें आनंद पाम्यो थको कौतुकनो अर्थी थको पालो वनमां आव्यो. हवे प्रनाते राजायें चारे स्त्रीयोने सनामां तेडावीने पूज्युं पण ते बोली नही. त्यारे ते वहाणना धणी वाणीयाने बोलावीने पूब्यु के, ए स्त्रीयो तहारी पासे क्याथी आवी ? त्यारे ते बोल्यो के,ढुं देशांतरथी मूल्य खरची ने आपने नेट प्रापवा सारु लाव्यो . ते सांजलीने मंत्रीश्वर बोल्यो के, ए वात असंनवित जे. एवा अवसरमा गुटिकाने प्रयोगें कुमर रूपपरावर्त न करीने त्यां सनामां याव्यो. आवीने एक श्लोक कह्यो.॥ यतः ॥ला त्वा पंच सहस्त्राणि, रत्नानां वारिधौ पतिः॥येनासां लोनतःदिप्तः,स सर्व कथयिष्यति ॥ ३५ ॥ एनो अर्थः-ए स्त्रीयोना जरिने जेणे, पांच हजार रत्न लश्ने लोनें समुश्मा नांरख्यो ते सर्व वात कहेशे. ए वात सांजली राजा प्रमुख सर्व विस्मय पाम्या. अने ते चारे स्त्रीयोए उत्लख्यो. परंतु रू पपरावर्तन देखीने विस्मय पामी. अने बोली नही. कोइ परमार्थ समज्यो नही. अने वाणीयो तो नीचुं मुख करीने रह्यो. परंतु इंगीत आकारनो जाण एवो जे राजा, ते बोल्यो के,कहो रे शहां श्यो परमार्थ ले ? ए श्लो कनो कहेनारो कोण हशे? त्यारे को बोल्यो नही; पण मंत्री बोल्यो के. एनो परमार्थ ए श्लोकनो कहेनारोज कहेशे. ते सांजली राजायें घणुं था. ग्रह करीने पूब्युं त्यारे कुमरें पोतें वाणियाने अनयदान देवरावीने सर्व वात कही. राजायें कुमरने पांच हजार रत्न वाणीया पासेथी अपावीने वाणीयाने पोताना देशमाथी काढी मूक्यो. अने चारे स्त्रीयो कुमरने या Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ गौतमकुलक कथासहित. पवा मांझी, पण रूपपरावर्तन देखी ते स्त्रीयो तेने इति न हवी, एवो स्त्री योना मनमा खेद उपन्यो जाणीने कुमरें स्वनाव- (मूलनु) रूप कयं. ते देखी स्त्रियो घणो हर्ष पामी. हवे राजा ते कुमरने गुणें रीज्यो थको नित्ये पोतानी पासे राखे. केटलेक काले कुमरें माता पितानो वियोग सं जारीने राजानी आझा मागीने चारे स्त्रीयो सहित,घणा परिवारें परिवस्यो थको, चिंतामणि रत्ने करी सर्व कार्य साधतो, पोताने नगरे पहोच्यो. मातापिताने घणो हर्ष नपन्यो. वियोग जाग्यो. हवे एक दिवसने विषे तेहिज नुवननानु नामा साधु चार झानना धणी तिहां पधास्या. तेमने सर्वलोक वांदवा नीकल्या. जिनचं पण पोताना पिता तथा स्त्रियो सहित वांदवा गयो. कपिराजें धर्मदेशना देवा.मांमी ॥ यतः॥ असंखयं जीवयमाढु लोए, जरोवणीयस्स दु नबिताणं ॥ एवं वियाणाहि जि णे पमत्ते, किर्झवि हिंसा अजया गहंति ॥ ४० ॥इत्यादिक देशना सांजली केटलाएकें सर्व विरतिपणुं अंगीकार कयुं, तथा कोइकें देशविरतिपणुं अंगी कार कयुं अने जिनचंडतो सर्व विरतिपणुं लेवा असमर्थ होवाथी समकि तमूल बारव्रत अंगीकार करीने घेर व्यो. अनुक्रमें घरनो नार जिनचंद ने शिर आप्यो. चिंतामणि रत्नना प्रजावें तथा राजाना बलें करी सर्व जी वने अनयदान प्रवर्तावतो, जिनप्रासादे मंमित धरती करतो, विधिपूर्वक सुपात्रे दान देतो स्वशक्तियें अनुकंपादान देतो, सर्व स्थानके परनपगार क रतो, देव गुरु साधर्मिकनी नक्ति आचरतो, मिथ्यादृष्टि थकी अंशमात्र प ण अण बिहीतो, गृहस्थना धर्मने उचित सर्व प्रवृत्ति करतो, अंतसमये द श प्रकारनी आराधना करी, सात क्षेत्रे धन वावरी, घरमांज अणसंण करी, समाधिसहित काल करी, बारमे देवलोकें इंनो सामानिक देवता बावीश सागरोपमने वानखेज़ उपन्यो. त्यांथी च्यवी अनुक्रमें महाविदेहत्रे मनु प्यावतार पामीने मोद जशे. ॥ इति श्री मिश्र पुरुष उपर जिनकथा समाप्ता ॥ षटू पुरुष कथानके ॥ इति सकलसनानामिनीतिलकायमान पं मित उत्तम विजयगणि शिष्य पंमित पद्मविजय गणि कृत बालावबोधे श्री गौतमकुलक प्रकरणे प्रथम गाथायां नवोदाहरणानि समाप्तानि ॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. हवे बीजी गाथाना आद्य पदनो संबंध कहे जे. प्रथम गाथाने खेडे वाल पंमित एटले मिश्रजीव बताव्या,ते कारण माटे हवे बीजी गाथानी आदिमां एकला पंमित जीव बतावे जे. ॥ ते पंमिया जे.विरया विरोहे, तेसाढुणो जे समयं चरंति ॥ते सत्तिणो जे न चलं तिधम्म, ते बंधवा जे वसणे हवंति ॥२॥ अर्थः-ते पंमिया जे विरया विरोहे. (जे के०) जे पुरुप ( विरोहे के०) विरोध थकी एटले क्रोधथकी (विरया के) विरम्या एटले विराम पाम्या (ते के० ) तेज पुरुपने (पंमिया के० ) पंमित कहिये. ते उपर दृष्टांतरूपें शविड अने वारिविन ए वे नाश्नी कथा कहे . प्रथम तीर्थकर श्रीऋषनदेव स्वामीना पुत्र इविड एवे नामें हतो जेना नामें लोकमां शविड नामे देश कहेवाय जे. ते इविड राजाने बे पुत्र थया तेमां एक ाविड ने बीजो वारिखिन थया. एक दिवस इविड राजायें शविडने मिथिलानुं राज्य बाप्यु, अने वारि खिन्न राजाने लाख गाम आ पीने पोतें प्रनु पासे चारित्र अंगीकार कस्यं. हवे एकदा वारिखिन्ननु राज्य दिवसें दिवसें चढतुं विडें देव्यु. तेथी तेनी उन्नत्ति खमाय नही. माटे वारि खिन्न उपर क्षेष धरतो रहे. तेवात वा रिखिलं पण आणी तेवारें तेपण शविडनु राज्य लेवाने उपाय करतो रहे जे. एम वेन जाइ मांहो मांहि वैरने वहेता हता, पण पोतपोतामां मुखें मी बोलता,हृदयमां उष्ट बाशयना धणी विष मिश्रित दूधना कुंन सरखा देखाय. अहो ! धिक्कार पडो लोनने !!! जे माटे लोनवरों एवा पुरुषनी पण मलिन बुद्धि थाय जे. उक्तंच ॥ पितरं मातरं बंधु, मित्रं नार्या सुतं गुरुम् ॥ लोजानिनूतो नूतार्थ, त्यक्त्वावज्ञायते दणात् ॥१॥ ए रीतें उर्ज ननी शिखामणे अन्योन्य बल खोलतां पण कोई कोनो विश्वास न करे. एवामां एक दिवस ज्ञविडे, वारिखिन्ननो पोताना नगरमा प्रवेश करवो निषेध्यो. त्यारे तेने पण कषाय जाग्यो. तेथी यु६ करवाने पोता Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३३ नुं सैन्य सज करयुं. त्यारे शविड पण ते वात सांजलीने कषायमां श्रावी प्रयाणनी नंना वजडावतो हवो. सर्व सैन्य नेगुं करी महा सैन्य समुड् ते विस्तीर्ण पृथ्वीने पण सांकडी करतो वाजिंत्र शब्देकर दिग्चक्रने बधीर करतो, रजें करी व्याकाश मंमलने ढांकतो, प्रविविन्न प्रयाणे कररी वारि खिल्लना देशने शिमाडे याव्यो. तेवारे वारिविलें पण पोतानुं लष्कर ले‍ पोताना देशना शिमाडाना बेडे खावीने पंडाव को. हवे ते वेच जणें पांच योजननुं रणक्षेत्रनुं अंतर मूकीने पडाव करो. ते लष्करना प्रधान पुरुषोयें पोतपोताना स्वामीने पूढया विनाज संधि क रवाने मांहोमां दूत मोकली तेमने साम, दाम, अने द ए वचनें समजाव्या, पण ते समजे नहि, केवल वे जणें युद्ध करकुंज अंगीकार क . इहां वारीखि शविडना सैन्यने इव्यप्रमुखें जोजावीने केटलुंक सैन्य पोताना लष्करमां लीधुं. वेहु जाना लष्करमां प्रत्येकें प्रत्येकें दश लाख हाथी, दश लाख रथ, पचास लाख घोडा ने दश कोटी पायदल मल्युं बे. हवे युनो दिवस यावेथ के वीररसें उल्लास पामता, पोतपोताना स्वा मीनो उत्साह वधारतां, पोतानी जुजाबलें त्रण जगत्ने तृणसमान गणतां सिंहनाद मूकतां, बकतर प्रमुख पेहेरी, संनब-5 थइ, शस्त्रने नचावतां, एवा नाना प्रकारना युद्धना करनार वीरपुरुषो ते समुझना कल्लोलनी पेठें रणभूमिमां प्राव्या. त्यार पढी कोडो गमे मनुष्यादिकनो दय करनार ए वो संग्राम प्रवर्त्तवा लाग्यो. हाथी हाथी साथे, घोडा घोडा साथे, रथ रथ साधे, पाला पाला साथे जीडी गया. परस्परें शस्त्रना प्रहार पडते, गजपदातिना समूहनो दय थते, नदीयोनी पेठें रुधिरना प्रवाह वेहेते, जोगिणी भैरव गृध्रपंखी ने शियाल प्रमुखने प्रीति उपनावते, महा वीनस रौ जयानक रसनी संकीर्णता यते, एवो घोर संग्राम करतां सा तमास वही गया. ते साते मासे थइ दश कोडि मनुष्योनो दय थयो. ए वा अवसरमा ते संग्रामनो निवारनार वर्षाकाल श्राव्यो. ते मूसलधारायें वरसवा लाग्यो. पृथ्वी तो पाणीना पूरे जरा गई. पंथी लोकना मार्ग रोकाया. त्यारे बहु लष्कर युद्ध करता निवर्त्या. ऊंची जग्या जोइने मेरा दीधा. अनुक्रमें वर्षाकाल निवर्यो, ने शरत्काल श्राव्यो त्यारे पाणी सर्व ठेका पहोच्यां त्यां कचरा पण सुकाणा, मेघामंबर टल्या, दिशायो " Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. निर्मल थइ, सरोवरनेविषे कमल विकस्वरतायें करी घणां शोजायमान दी सवा लाग्यां, सर्व धान्य निपन्यां, इत्यादिक शोना वधते थके, ते अवस रे शविड राजा परिवार सहित वनशोना जोवा निकल्यां . ते राजाने एक विमलबुदिनामा प्रधान बे. ते प्रधान कहे तो हवो के हे महाराज ! इहां तापसनो आश्रम डे मादे चालो जोवा जश्ये. त्यारे प्रधाननी प्रेर पाथी तापसने आश्रमे गया. त्यां जेना मस्तकें जटाना मुकुट शोने , वल्कलनां वस्त्र पहेरवाने रही गयां , हाथमां जपमाला रही गइ, प र्यकासने वेगे एवो सुवल्गु नामा अति कुलपति ने. ते घणा तापसें प रिवस्यो थको जाणे शांतिरसनी मूर्तिज होय नहि ! ! तेने देखी राजायें जक्तिपूर्वक नमस्कार कस्यो. मुनिये पण ध्यान मूकी आशीर्वाद दीधो. हवे राजा तेनां वचन सनिलवा ले . तापसें पण राजाने धर्मदेशना देवां मांगी ॥ यथा ॥ हे राजन् ! आ संसाररूप समुश् अनंता फुःखरूप पा पीयें नयो ने. ते कामक्रोधादिक मन क मगर प्रमुख जलजंतुयें करी स हित . रति अरतियें करी अति नयंकर . लोजरूप वडवानल बानिये करी बधा जगत्नो संहार करे . विषय रूपरतियें नयंकर ले ते विषयरूप जमरी फरे , तेमांथी सुर, असुर अने नरेश्वर पण नीकली शकता नथी. सुख ते राक्षसनी पेठे कुःखदायी . सुख जोगववानो काल स्वल्प होय अने नरकादिकनां विपाक तो अनंता आपे, वली ते नरक निगोदादिकना मुख पण अनंतानंत काल सहेतां पार न पामियें. ते माटे धिक्कार पडो ए नोगत माने ! ! के, जेने माटे जीव, महा पापनां शेकडा गमे करतां, महा हिंसा, महा मृपा प्रमुख आचरतां, महा पुःखने अनुनवे जे जे माटे क्रोधांध था निप्नुर परिणामें जे हिंसा करीयें, तेथी अनंतकाल नरक निगोदादिकनां दुःखें करीने जीव पचाय. तथा राज्य तो यंते नरकनुं आपनार बे, शरीर तो अनित्य ने, संपदा तो समुना कनोलनी पेठे चपल ने, अने जीवि तव्य तो पाणीना परपोटानी पेठे थोडी वार रहे तेवु ले. ते माटे हे राज न ! तमने पण महा नरकादिक दुःखरूप अनर्थ- कारण एवा राज्यना लोनें नाइ साथे यु६ करवू, ते घटतुं नथी. एक खंझमात्र पृथ्वीना लोनें जे मूढ बंधुनो विनाश करे , ते बेदु नवनो विनाश करे .॥ यतः॥ जे राज्यादिकते बंधून, निष्ठुरा नंति कोपतः ॥ ते स्वांगानि स्वयं नित्वा, जुजते Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३५ ह्यतिलोव्यतः ॥ १ ॥ ते कारण माटे ए संग्रामयकी निवर्त्तो. कोडो गर्म लो कोनो दय करीने शा माटे पृथ्वीनो दय करो हो ? तमे श्रीयुगादिदेवना पोतरा बो, तेमणें तो जगतनो रखवाल कस्यो, अने तमे जगतनो दय करवाया बोमाटे ए तमने कुटुंबकलह घटतो नथी. एवां कुलपतिनां वचन सांजलीने राजा बोल्यो. हे स्वामिन् ! श्रीरूपन परमात्माना चरत बाहुबल प्रमुख पुत्र हता तेथे पण कारणवशे परस्पर महा संग्राम का बे. तो तेमने पंथें चालता अमने शो दोष बे ? ते सांन Gीने तापस बोल्यो के, जे तमें कयुं ते विचारसां जुदी वात ले. जेकारण माटे रत राजायें पाबले नवें पांचशे साधुने आहार पाणी याप्यो जेथी च क्रवर्त्तिपणुं उपजाव्युं हतुं तथा बाहुबलें वैयावच्च करतां बाहुनुं बल उपजा व्युं हतुं. ते माटे ते तेनुं फल पाम्या बे घने ज़रतने तो चक्ररत्न शालामा स्थिर रहेतुं न हतुं माटे युद्ध करवुं पड्युं ने बाहुबनें एम जाएयुं के, हुं निर्बल नथी तो मने ए जरत शी आज्ञा मनावे बे ? ने राज्य तो पितायें प्राप्युं वे, ते माटे तात मूकीने बीजाने माथु केम नमावुं ? एवं जाणीने युद्ध करयुं, पण ते तो उत्तम पुरुष हुता तेमाटे सर्व संग्राम मूकी ने बे जण सामासामा लड्या. वली नरतें तथा बाहुबलें पोतानो आत्मा ताो तेम तारवा कोण समर्थ थाय ? ते कारण माटे ते पुरुषमां सिंह सरखा हता तेवा पुरुषनी स्पर्धा ( बरोबरी ) करवी तमने घटे नहीं. ६ एवां कुलपतिनां वचन सांजलीने राजा लाज्यो, घणो पश्चात्ताप करतो तापसने कहेवा लाग्यो के, हे मुनि ! में तो ज्ञानें करी महापुरुषोनी स्पर्धा करी; पण काच होय ते मलिने तोले क्यांथी यावे ? तो हे मुनि ! तमें मने नरकरूप कूप्रामांथी नस्यो, महारी विवेकदृष्टि नघाडी, एम विचा रीने पोतेंज एकाकी पादचारी थइने नहाना नाइने खमाववा चाल्यो. त्यारे नहाना चाइयें जाएयुं के, ड्राविडजी महारा सामा चालीने यावे बे ते घ तुं थाय छे, माटे वारिखिन पण साहमो यावीने कहेवा लाग्यो के, हे जाइ ! तमे महारा महोटा नाइ, ते पिताने ठेकाणें बो. तमे सामा चाली याव्या ते महारो यविनय खमजो. तमे महारा नाग्यें घेर चालीने या व्या माटे ए राज्यनो महारे खप नथी. त्यारे शविड पण एवीज गदगद वाणी बोल्यो के, हे जाइ ! महारे पण ए राज्यनुं प्रयोजन नथी. हुं तो Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. नरक कूयामां पडतो हतो, पण कुलपतियें गायो. हवे तो जाणुं बुं के, आ राज्य ते केवल नरकन कारण . संसारमा एक धर्मविना बीजा को इनु शरणुं कोने नथी. तेमाटे हवे हूं तो व्रतनुं राज्य लेश,हमणा निश्चे तुमने खमाववा सारु याव्यो बुं. एवी वात सांजलीने वारी खिल्न बोल्यो. हे नाइ! तमे सर्वथा व्रत लेशो तो जेम इहां तमे महारा महोटा ना बो, तेम व्रतमां पण ढुं महारा स्वामी करीश. एरीतें व्रत लेवानो तो बेद्ध जणें निश्चय कस्यो; पनी पोतपोतार्ना पुत्रने राज्ये थापीने पोताना मंत्री श्वर सहित दश कोड पुरुषनी संगाथे सुवल्गु तापसनी पासें यावी ताप स व्रत लीधुं. ते तापस सर्व जटाधारी, कंदमूल आहारी, गंगानी माटी यें शरीर खरड्यां थकां, अल्प कषायीथकां, अल्पनोजन करतां, अल्प निशवंत थका अने करुगायें करी साध्य के मन जेनां, एवा रात्रि दिवस श्रीयुगादीशचं स्मरण करतां, जपमाला फेरवे . माहोमांहि धर्मकथा कर तां थकां लाखो गमे वो त्यांज गमावतां थकां रहे ले. एक दिवस नमि अने विनमि विद्याधर राजऋषिना शिष्य बे विद्याधर मुनिराज ते आकाश मार्गे विचरतां त्यां वाव्या. तेमने सर्व तापसोयें प्रणाम करीने पूज्युं के, क्यांथी आव्या अने क्यां जशो ? त्यारे धर्माशिष देश ते बेदु मुनि एम बो व्या के, अमे श्रीसिमाचल जश्गुं. ए तीर्थ संसारसमुश्मा प्रवहण सरखो अनंत पुण्यनो आधारचूत एवो शाश्वतो गिरिराज जे. एनीउपर पूर्वे अनंत जीव सिदि वस्या,वली अनंता जीव सिदि वरशे,अने वली रुपि हत्यादि क महोटां पाप जे लागा होय ते पण सिमक्षेत्रनुं सेवन करवाथी रोक मां क्ष्य थाय, पशु होय ते देवता थाय, ए तीर्थनो आश्रय करतां थकां अनंत नवनां कुकर्मरूप रिपु पण परानव न करी शके ॥ यतः ॥ अनंत सुकताधारः, संसाराब्धितरंमवत् ॥ शत्रुजयश्च सौराष्ट्र, गिरिर्जयति शाश्वतः ॥ १ ॥ अनंतमुक्तिमाहें, रत्नतीर्थप्रनावतः ॥ वसंक्ति बहवः सिक्षाः, गुरुचारित्रनूषिताः ॥ २ ॥ ऋषिहत्यादि पापानि, दयं यान्ति दणाद पि ॥ पशूनामपि देवत्वं, मानामपिजायते ॥३॥ शैलं च दूरतो दृष्टा, नृणां हर्षः प्रजायते ॥ कुकर्मि रिपवः क्रूरा, नवंतीहजीनोनुगाः ॥४॥ एम हजारो वर्ष सूधी ए गिरिनो महिमा कहेतां थका पण पार न पामी ये. इत्यादिक महिमा सांजलीने ते सर्व तापसो तीर्थयात्राने विष उत्सुक Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३७ था थका ते बेदु मुनि सायें पादविहारे विचरतां, श्रीशत्रुंजयनुं एकाग्रम ध्यान करतां विलंबरहित परों जाय बे, त्यारें श्री सिद्धाचलजीनी पासें एक सरोवर बेतेने विषे घणा हंस वेळा बे, तेमां एक हंस शिथिलांग यके चूमियें खालोटे बे, ते मरणावस्था पाम्यो देखीने एक मुनियें पोताना पा मांथी पाणी पीवरावीने स्वस्थ कस्यो पनी परम करुणा बुद्धियें नमस्कार संजनाव्यो, चार शरणां कराव्यां, फरी कयुं के, हे हंस ! श्रीशत्रुंजय तीर्थ मनमां धरी, श्रीयुगादीशने संनाथ ! जेथी तारां पाप जाय. ते सांगली हं सने गुन नावना यावी, समाधियें काल करी सौधर्म देवलोके देवता थयो. हवे ते सर्वं तापसोयें विद्याधरना मुखथी धर्मोपदेश सांजली, मिय्या क्रिया तजी, लोच करी, पंचमहाव्रत रूप साधुधर्म अंगीकार कस्यो . श्री सिद्धाचलजीने देखी तेमने घणो हर्ष उपन्यो. तेवारें पोताना ग्रात्माने ध न्य मानतां ते पर्वत पर चड्या. त्यां रायण वृने त्रण प्रदक्षिणा देश, परमेश्वरने नमस्कार करीने सर्व चैत्यनां प्रजुने नमीने, हर्ष उल्लासें करी यस क. ते मुनि श्रीसिद्धाचलने ध्याने मास असण पाली. घा तिकर्म य करी, केवलज्ञान पामीने, शैलेशीकरण करी, दशकोडीमुनि साथै कार्त्तिक पूर्णिमायें शविड ने वारिखिल्ल श्रीसिद्धाचलजी ऊपर श्री सिद्धिवधु वखा तिहां ते हंसनो जीव जे सौधर्म देवलोके देवता थयो हतो, ते प्रवीने ते सर्वनो निर्वाण महोत्सव कस्यो. पढी देवता पोतानुं स्व रूप देखाडी तीर्थनो महिमा वधारीने पोताने स्थानकें गयो. ए सर्व मुनि कार्त्तिक पूर्णिमाये कृतिका नक्षत्रे सार्थेज मुक्ति गया. माटे कार्त्तिकी पूनि मे श्री सिद्धचलने विपे जो थोडुं पुएय कर्तुं होय तो पण ते अनंतगुणं फल दायक थाय ॥ यडुक्कं मूलग्रंथेः ॥ कार्त्तिके मासिकपणं, तत्कर्म कययत्य हो ॥ नरके सागर सप्तेनाम्, यत्कर्म कीर्यते नहि ॥ १ ॥ एकनैवोपवासेन, कार्त्तिक्यां विमलाचले ॥ ऋषिस्त्रीबालहत्यादि, पातकान् मुच्यते जनः ॥ ॥ २ ॥ यः कुर्यात् कार्त्तिकीं राकां, मंत्रार्हस्यानतत्परः ॥ स जोक्ता सर्वसौ ख्यानां निर्वृतिं जनते नरः ॥ ३ ॥ इत्यादिक तीर्थमहिमा जाणवो. इहां तो बे नाइने अत्यंत विरोध हतो, ते टालीने समता करी; माटे पंमित कहिये. ए अधिकार शत्रुंजय महात्मने विषे जोइ जेज्यो. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. हवे पंमित ते कोण होय? तोके साधु होय. ते नाम ग्राहक आगलुं पद कहेले. ते साहुणो जे समयं चरंति (जे के०) जे पुरुष (समयं के) सिद्धांत ते नीरीते (चरंति के० ) चाले ले. अथवा (समयं के० ) प्रारत नाषा मा टे समता कहीये, ते समता प्रत्ये (चरंति के ) आचरे . "नवसम सार खुसामणं "इति वचनात् ॥ अथवा "नास्त्यधुना समयः” ए वचने क री (समयं के० ) अवसर प्रमाणे (चरंति के०) चाले ले. एटले उत्सर्ग अने अपवादना जाण . अथवा (समयं के०) स्वपरसमय ते स्वसि दांत अने पर सिद्धांत, तिहां स्वसमय ते आत्मस्वरूप अने परसमय ते आत्मव्यतिरिक्त, धर्माधर्माकाश, पुजल, स्वंयमा स्वरूप ते प्रत्ये (चरं ति के०) जाणे . एटले रत्नत्रयीना योगे करी मोक्षमार्ग साधे (ते के०) ते पुरुषने (साहुणो के ) साधु कहीयें ॥ यतः ॥ चरगति नदणयो, रि ति धातुपागत् ॥ समये ॥ येगत्यर्थास्ते प्राप्त्यर्था, झानार्थाश्चेति वचनात् ॥ ए सर्व गुण साधुमां होय. इहां महेंडाजा तथा ते राजाना परिवारनी कथा जाणवी. ते दृष्टांतनी प्रस्तावना लखीए बीये. जेणें मोक्ने विषे पोतानुं चित्त थाप्यु ,अने जेणें मोद तेज परमार्थ जाण्यो बे, जे मोहजालने दखता थाकता रहे , तथा विषय महोलने नांजतां थकां ने.सकल प्राणीना शल्यनत जे रागष तेना बेदनार ,क्रोध मान माया अने लोन तेना जय करनार बे, इंडियना दमनार बे, जेणे जोगतृष्णा समावी ,जेणे परिसहरूप सुनटोने जीत्या ,जे घोर उपसर्गे पण पाला नाशता नथी, जे स्त्रीना विलासथी वेगला , पापव्यापारथी विरक्त डे,असंयमथी दूर रह्या बे,अने कुधर्मने तो इकडाज थावता नथी परमार्थना जाण , जेणे यात्मा तोल्यो , संसारनां सुख मूक्यां ,जे पुत्रकलत्रादिकना बंधन लेखे नथी गणता,जेणे कर्मपरिणाम जाण्या ,एवा जे आसन्न सिध्यिा प्राणी ले तेवा महा पुरुषनी सेवा सर्व सुःखने निर्जरानुं हेतु दे. पासर लोकोये मनथी पण ली न शकाय एवी दीदा अंगीकार करे, ते मुनिराज तप संयम गुनाध्यवसायने विषे सावधान होय,लब्धिना निधान होय. ते उपर महें राजा तथा तेना परिवारनी कथा कहे डे. जंबूहीपना नरतदेवने विषे अयोध्या नामें नगरी जे. त्यां इक्ष्वाकुकु समां अलंकारनूत सूरपति नामें राजा राज्य करे . ते राजाने सुंदरी Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासदित. ३० नामें स्त्रीबे, तेने महें नामें पुत्र बे. ते कुमरने गुणसागर मंत्रिनो पुत्र गुणसुंदर नामे बे, तेनी साथे मित्राइ बे. एकदा ते मित्रने कहे बे के, हे मित्र ! अनेक याश्वर्ये शोनित जे पृथ्वी, ते जोवानुं महारुं मन बे ॥ यतः दीस विविचरितं, जाणिक सयण डुकण विसेसो ॥ अप्पाणं च क लिकर, हिंभिक तेण पुहवी ॥ १० ॥ एवं सांजलीने मंत्रिपुत्र बोल्यो हे मित्र ! तें युक्त वात कही ॥ यतः ॥ वनुविसेस निरिस्कण, वियरकणो होइ सो नरो नृणं ॥ हिंमिकण दिवा, बहु रयणा जेलिमा पुहवी ॥ ११ ॥ एवा मंत्रिपुत्रनां वचन सांजलीने कुमार उजमाल थयो. तेवारें मंत्री पुत्र साये माता पिताने वगर कहेज रात्रिने विषे पृथ्वी जोवा निक ल्यो. ते ग्राम, नगर, पुर, वनवाडी, आराम, पर्वत, प्रमुख जोतांथका वं ति नगरीने कडा खाव्या एटले सूर्य प्राथम्यो ते देखीने राजपुत्र बोल्यो. ॥ यतः ॥ उदयं वक्कमणं, अमणं चैव एगदिवमि ॥ सूरस्सविति न्नि दसा, का गणणा इयर लोगस्स ११ ॥ त्यार पी पूर्वदिशायें चंदमा नो दय थयो ते देखीने मंत्री पुत्र बोल्यो. ॥ यतः ॥ चंदस्स खर्च नहुता रयाणं, रिद्धी तिस्स न दु तारयाएं || गुरुप्राण चडपडणं, का गल चिडिया ॥ १३ ॥ इत्यादिक अनेक रीतें अन्योक्ति युक्ति विनोद करतां रात्रीने समयें पासे कोइक देवतानुं जवन बे त्यां गयां. ते समय कोइ स्त्री योगीनुं रूपधारी सौभाग्यवती थइ त्यां यावी. तेने जोइने महा मर्या दानो समु एवो जे कुमर ते कांइक नीचुं मुख कर बेतो. ते देखीने स्त्री कहेवा लागी ॥ यथा ॥ दीपदरिक्षा परवसण, डुब्बला प्रयस ररकण सम || जे एयारिस पुरिसा, धरणी धरती कयासि ॥ १४ ॥ अर्थ :- हे ट थ्वी जे दीन दरियापदावंत पुरुषने देखीने डुबला थाय बे. अपयश थवा देता नथी. एवा पुरुषोने धारण करती एवीतुं तो कृतार्थ बे, एम कही ते स्त्रीदेवताने. नमस्कार कर पढी कंदर्पाकार कुमरने देखीने, या गाथा कही॥ जाय इह पुरिसदोसं, देसं दद्दू हियइ पुरिसा ॥ साजय . ति रयणमाला, वरमाला ठवन तुह कंठे ॥ १५ ॥ अर्थः- पुरुषना दोषदेखी ने जे स्त्री, पुरुष उपर छेषणी थइ, एवी रत्नमाला नामें ते तहारा गलामां वरमाला घालो ! एम सांजलीने गुणसुंदर नामें प्रधानपुत्र, प्रणाम करी बोल्यो. हे जगवति! ते रत्नमाला क्यों बे ? ते कोनी पुत्री ? खने पुरुष उपर Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. षणी थइ तेनुं युं कारण ? एम पूजे थके योगिणी बोली. समुमध्ये सा तसें योजन प्रमाण सिंहल द्वीप बे. जे हीपमा जल जलने विषे मोतीनी पजे ने, स्थल स्थलने विपे रत्न नीपजे , वन वनने विषे हाथी नीपजे ने, घर घरने विषे बत्रीश लक्षणा पुरुष जे, मंदिर मंदिरने विषे पदमणी स्त्रीन, ते हीपने विपे एक लंका नामें नगरी जे. त्यां कमलकीर्ति नामें राजा राज्य करे , तेने कमलावती नामें राणी , ते राणीनी स्त्रीनी क लाये विसाल एवी रत्नमाला नामें कन्या पाणिग्रहण करवा योग्य .प ण ते स्त्री वारंवार एक गाथा कहे . ते आ प्रमाणे ॥ यतः ॥ पररमणि रत्त चित्ता, अपवित्ता ढुंति केवि कापुरिसा ॥ तेण कुमारी कन्ना, धन्नाइह जीवलोगंम्मि ॥ १६ ॥ एवी गाथा कहीने योगिणी तो जती रही. हवे ते कन्यानुं स्वरूप जाणतां वेंतज राजपुत्र रागवंत थयो, तोपण गंनीरतायें करी इंगित आकारने गोपवतो हवो. एवं देखीने मंत्रिपुत्र विचा रवा लाग्यो ॥ यतः ॥ संतःसच्चरितोदयाव्यसनिनः, प्राऽनवयंत्रणाः स त्रैवजनापवादचकिता जीवंति दुःखं सदा ॥ अव्युप्तन्नमतिः कृतेनचसता नैवासता व्याकुलाः,कार्याकार्य विचारणांधबधिरोधन्यो जनः प्राकृतः॥२७॥ एम विचारीने मंत्रिपुत्र बोल्यो. हे मित्र ! ज्यां रत्नमाला ले, त्यां जयें. अने तिहां कौतुक थशे ते जोश्य. हवे ते योगिरणीये पण आकाशमार्गे ज ते कुमरन स्वरूप कुमरीने क ह्यु. ए वात सांजलतां थकांज ते रत्नमाला पण हर्षवंत थइ थकी कुमरनी न पर तन्मय मन करती हवी. अने ते रत्नमालानी एक रत्नमंजरी, बीजी रत्नप्रना, त्रीजी रत्नवती, ए त्रण सखी पण पासे वेती हती ते बोली। के, हे सखी ! जे वर तमने गम्यो, ते अमारो पण नार थान. एम विचार करीने ते चारे जणी आकाशगामिनी विद्याना बलें अवंति न गरीना बहार उद्यानमां देवताना जवन पासें यावी.. ते वखत ते कुमर पण पूजारायें आपेली सुंवाली शय्यानी उपर मित्र सहित सूतो हतो, ते ने देखीने त्यांथी सय्या सहित नपाडीने लंका नगरीना नपवनमां लावी मूक्या. तेमां प्रथम राजकुमर जाग्यो, तेणें त्यां सर्व नबुज नवं दीतुं, ते थी विस्मय पाम्यो थको मंत्रिपुत्रने जगाडीने कहेवा लाग्यो के, हे मित्र! ए शुं? ए सर्व अपूर्व देखीये बीयें ? एवामां ते चार कन्या श्रावी. प्रणा Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ४२ म करीने बोली के, तमे अंशमात्र बीक धरशो नही अमें रत्नमाला प्रमुख राजकन्या बैयें. जोगिणीना वचनें तमारा गुणनी आकर्षी थकी तमोने अमे लंका नगरीना उपवनमा लाव्या बीये. त्यारें मंत्रिपुत्र बोल्यो; हे मि त्र! आपणने ए सर्व वगर महेनतें कार्य निपन्यु जे. तेसांनली राजकुमर बोल्यो. हे मंत्रिपुत्र! कार्यना परिणामनी खबर न पडे. ॥ यतः॥ अंबय फलं सुपकं, सिढिलं विटं समुप्तडो पवणो ॥ साहा मुलासीला. न याणि मो का परिणामो ॥ १७ ॥ ए गाथा कहीने राजपुत्र,तथा मंत्रिपुत्र बेदु नंघी गया. त्यार पड़ी एवी कुमरनी कहेली गाथा सांजलीने ते चारे कन्या परस्परे विचारवा लागी के, ए कुमरें एवी गाथा कही तेनुं गुं कारण हशे ? परिणाम संदेहालो होय तो पण ए वातमां आपणे उद्यम मूकवो नही. कोण जाणे गुं कार्यपरिणाम थइ जाय.? तो पडी करीयें ! ए म विचारीने ते चारे कन्या शय्याने चारे खूणे चार पादें वलगी वेठी. एवा अवसरमा वैताढयने विषे शूरपुर नगरनो चंश्चूड नामें राजा ने. तेनी चंझिका नामें पुत्री जे. ते कन्याने योग्य वर न मल्यो, ते माटे माता पिता चिंतातुर थइ रह्या ले. ते देखी कुमरीयें पोतें रोहिणी विद्या संना रीने पोताने योग्य वर पूडयो. त्यारे देवीयें कह्यु के, तहारो जरतार, महें ६ कुमर थशे. पण हमणां मित्रसहित लंका नगरीना नपवनमा सूतो ने. एम सांजलीने चंडिका, विमान नपर बेसी रोहिणी विद्याने बनें त्यां आ वीने ज्यां कुमर मित्रसहित सूतो डे, तथा चारे स्त्री पादें बलगेली ने ते सर्वने नपाडीने वैताढयने विषे पोताना नगरना उद्यानमां मूक्यां. अने देव आराधीने यावत् इहां लाव्यानी वात पोतें घेर ज पोताना पिताने कही. हवे संकायें चारे कन्याउना पितायें पोतपोतानी पुत्री घेर दीठी नहिं, त्यारे चारे राजा. १ कमलकीर्ति, कमलज़ानु,३ कमलप्रन,अने ४ कमला कर ए नामें चार वियाना बलें चारे राजा त्यां आव्या.प्रनाते चंडिका पुत्रीने लई चंचूड राजा परिवारसहित त्यां आव्यो. त्या सर्व राजा एक एकना .मुख सामु जोता रहे. सहुयें स्वस्व कन्यानो वृत्तांत निवेदीने इहां बाणवानुं स्वरूप परस्परें कद्यु. अने सदु हर्ष पामीने पाणिग्रहणनो आग्रह करवा लाग्या. त्यारे मंत्रिपुत्र बोल्यो. हे नरपति ! ए कुमर, मातापिताने वगर पूब्यो पृथ्वीनां आश्चर्य जोवा नीकल्यो ने ते माटे एवं करो के, पाणिग्रह Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. पनो महोत्सव एना माता पिता देखे. अने तेना मनोरथ सफल थाय. ते सांनतीने पांचे राजा विवाहनी सामग्री करी पोतपोतानी पुत्री परिवार सहि त तथा मित्रसहित कुमरने विमानमां बेसारीने अयोध्या नगरीयें चाव्या. हवे मंत्रिपुत्रे विमानमां बेसीने आगलथी जश राजाने वधामणी दीधी, त्यारे शूरपति राजा पण परिवारसहित पुत्रने सामैयुं करतो हवो. सर्व विद्याधरोने उतरवाने श्रेणीबद महोल आप्या. पडी मंत्रिपुत्रं आदिथी मामीने सर्व वृत्तांत कही देखाड्यो. ते सांजलीने राजा पोताना चित्तमा घणुं खुशी थयो बतो पाणिग्रहणनी सामग्री सङ करीने आमंबरसहित न त्सव करी पांचे कन्यानुं पाणिग्रहण कराव्यु वली बीजी पण साहमीभावी एवी १०३ स्वयंवरा कन्याउनुं पाणिग्रहण कराव्यु.पली सर्व राजा तथा वि द्याधरोने विसर्जन कस्या सर्वना मनोरथ पूर्ण थया. कुमरें राज्यनो सर्वे नार पोतें नपाज्यो. देवतानी पेठे १० स्त्री साथे लोग जोगवतो विचरे ने. एवामां एक दिवसने विषे महाऋषीश्वर अनेक मुनियें परिवस्याथका नुवननानु नामा केवली अयोध्या नगरीना बाहार शकावतार तीर्थने विषे आवी समोसस्या. वनपाल वधामणी दीधी,तेने पारितोषित दान आपीने राजा, अंतेनर तथा कुमर सहित वंदना करवा नीकल्या. सदु प्रदक्षिणा देश प्रणाम करीने यथा स्थानके बेठा. केवलीयें धर्मदेशना दीधी:-जे अरे नव्यजीवो ! असार संसारमा सर्व अनित्य जाणीने धर्मने विषे प्रमाद म करो ॥ यतः ॥ जुवणं रूवंसंपत्ति, सोहगं धणसंपया ॥ जीवियं वावि जी वाणं, जलबुब्बुअसन्निनं ॥ १९ ॥ देविंदा समहि ढिया, दाणविंदा य वि सुहा॥ नरिंदा जे अविकंता, मरणं विवसा गया ॥२०॥ संवन निरए कोसा, निविसेसं पहारिणी॥सुत्तमत्तपमत्ताणं,एगा जगी अणिच्चया ॥१॥ दाणमाणोक्यारेहि, सामनेयं किया हि या ॥ न सक्का सा निवरिलं, ते लो केणा अणिञ्चया ॥ २२ ॥ नावार्थः-यौवन, रूप, संपत्ति सौनाग्य, धन संपदा अने जीवितव्य ए सर्व पाणीना परपोटा सरखं . तथा देवें, दानवेंश, नरेंड ए सर्व मरणने परवश ले. ते निर्दयी अनित्यता सर्वत्रव्या प्ति सूतां जागतां सर्व प्राणीमा प्रसरंती . तथा दानादिक पण उपचारें अ नित्य ले. कोइ निवारी शके नही.ते माटे हे उर्बल प्राणीयो मनुष्यावतार पामीने प्रमाद न करो, ममत्व न करो, एवी देशना सांजलीने शूरपति रा Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ गौतमकुलक कथासहित. जाने वैराग्य उपज्यु. पनी गुरुने प्रणाम करी पोताने घेर आव्यो. संसार थी उपरागे एवो महेश कुमार ते राज्यने थपश्तो पण तेने राज्ये बेसास्यो. पोतें घणा राजा सहित चारित्र अंगीकार कयुं. महें राजा पण जैनध मैना मर्मने जाणतो पोताने बलें अनेक राज्य जीती टथ्वी स्ववश कर तो हवो. चार बुझिनो निधान चार उपायें राज्य लक्ष्मीने उपार्जतो एवो जे गुणसुंदर तेने प्रधान पदें थाप्यो. अत्यंत राजसुखने अनुनवतो, ट थ्वी जिनप्रासादमंमित करतो थको ज्यां पोतानी आझा प्रवर्ते, त्यां जग तमा सारनूत जे दया ते प्रवर्त्तावतो हवो. श्री संघनी जक्ति करे, वली प रोपकार करे, स्वजनवर्गने घणुं दान मान दे संतोषे, दीन अनाथने दा न देवे करीने जगतमां विख्यात थयो, ए रीतें त्राण वर्गने साधतो हवो. हवे चोथो पुरुषार्थ साधवा उजमाल थयो बे, एवा अवसरमां ते नुवन नानु नामा केवली पधास्या. तेनी वनपालकें वधामणी दीधी. राजायें पण तेने जीवे त्यां सूधी खूटे नहि एवं प्रीतिदान दीg, महेंराजा अंतेनरने परिवारें परिवस्यो गुणसुंदर मंत्रीश्वरने साथे तेडी गुरुने वंदना करवा नी कल्यो. अनुक्रमें विधि पूर्वक वंदना करी यथोचित स्थानके बेठो. तेने के वली पण तेवा प्रकारनीज धर्मदेशना देता हवा के, जेथी ते राजा सं यमना सन्मुख थाय ॥ यथा ॥ जं कल्ने कायवं, तं अऊंचिय करेह तुर माया ॥ बहुविग्यो दु मुदुत्तो, मा अवरणहं पडिरकेह ॥ २३ ॥ दिवस निसाघडिमालं, बाकसलिलं जियाण धित्तूणं ॥ चंदाश्च बना, कालर हट्ट जमाडे ॥ २५ ॥ इत्यादि देशना सांजलीने संवेग वैराग्य वधते गु रुने प्रणाम करी कहेतो हवो के हे स्वामिन् ! महारे दीदा लेवानुं मन बे. त्यारे गुरु बोल्या. हे राजन् ! ए वातमा विलंब न करो ॥ यतः ॥ जं कहने कायवं, नरेण अलेव तं वरं कायं ॥ मजू अकरुपहियन, नदु दिस यावयंतोवि ॥ २५॥ तूरह धम्मोकान, माद पमायं खपि कुन्धि जा ॥ बदुविग्यो य मुदुत्तो, मा अवरएहं पडिहाहि ॥ २६ ॥ एवं सांजली .विशेषं वैराग्य पामी घेर यावीने चिंतवतो हवो के, सर्व पदार्थ अनित्य बे ॥ यतः ॥ सबस्स अणिञ्चत्तं, जुवणधणसयणबदाराणं ॥ देहस्स जीवियस्स य, इकंपि न पिठहे निचं ॥ २७ ॥ मायपियपुत्तबंधव, सक ल कुसलाइ आइ कारंति ॥ न मरं तस्सुवयारो, तिलतुसमित्तो विदु जणं Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. ती ॥ २७ ॥ इत्यादिक चित्तमां चिंतवी, पृथ्वी अरुण करवानी गुणसुंदर प्रधानने आझा करीने, पोते श्रीजिनशासनने योग्य एवी सदुने शिक्षा देश, जिनशासननी प्रनावना करीने, अहा महोत्सव साचवीने. उग्रकु ल, नोग्यकुल, राज्यकुल अने क्षत्रिय कुलना उपन्या, वैराग्य पामेला, सं सार सुखथी विरक्त थयेला एवा पांचवें पुरुषसहित तथा गुणसुंदर प्रधान सहित राजायें केवली पासें चारित्र लीधुं. त्यार पनी ग्रहण शिक्षा तथा या सेवना शिक्षा ए बे प्रकारनी शिदा धरता एटले ग्रहण ते ज्ञान अने आ सवेन ते क्रिया ए बेचनें धरता, मोद तेज एक साध्य जे जेने एवा थकां डुक्कर तप संयम पालतां, गुनध्यानमां तनीन रहेतां, पोताना सरखोज गुणवंत परिवार ने जेनो तथा व्यथी, देवथी, कालथी अने नावथी को इनो प्रतिबंध घणकरता, धर्मध्यानना चारे पाश्यामां चित्त राखतां,दमा, मार्दव, आर्जव, मुक्ति प्रमुख शुक्तध्यानना आलंबनने बालंबतां, परिसह उपसर्गना संसर्गने चित्तमां पण अण संनारतां,झान ध्यान समता संयम तपमा प्रवर्तता एवा ते महें मुनिराजने अने शेष साधुने पण सर्वोषध्या दिक अनेक लब्धियो नपजती हवी. तेना नाम कहे . ___ कोइक मुनिना विष्ठा,मूत्र,कफ,मल स्पर्शादिक शरीरना सर्व अवयव ते औषधीनूत थयां , ते सर्व औषधिलब्धिवंत साधु कहियें. केशक अपुतत्वें सूक्ष्मशरीर करवानी शक्तिवंत, अथवा केक मेरुथकी पण महोटुं शरीर क रवानी शक्तिवंत, केश्क वायराथी पण हलकुं शरीर करवानी शक्तिवंत, के श्क वजथकी पण नारे शरीर करवानी शक्तिवंत, केश्क नूमिये रह्या मेरु शिखरनो स्पर्श करवानी शक्तिवंत, केशक पाणीने विषेधरतीनी पेठे चाव्या जाय एवी शक्तिवंत,केश्कत्रण लोकनी ठकुराइ एटले श्रीतीर्थकरनी अथवा इंनी शदि प्रगट करवानी शक्तिवंत, केश्क सर्व जीवने वश करवानी श क्तिवंत, केश्क पर्वत मध्ये चाल्या जाय पण खलाय नहि एवा शक्तिवंत, केश्क मुनिने को देखे नही एवी अदृश्यकरणी शक्तिवंत, केशक सम कालें अनेकरूप करवानी शक्तिवंत, केश्क बीजबुदिमुनिराज जे एक पद मांथी बदु पद काढे एवी शक्तिवंत,केश्क कोष्ठक बुद्धिना धणी के,जे कांश कोठामां पडयुं ते विणसे नही एवी शक्तिवंत, केक पदानुसारी लब्धिवंत ते जे पद गयुं होय ते सांधी आपे, केशक मनोबलिया जेने सर्व श्रुत अव Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ४५ गाववाना मन प्रवर्त्ते, केक वचनबलिया के, जे अंतर्मुहूर्तमां सकल श्रुत उच्चार करवा समर्थ होय, केश्क कायबलिया जे काउस्सग्गे वर्ष पर्यं त बना रहे पण थाके नहीं, केश्कन्म पात्रमां रुदन पड्युं थकुं पण खीर, खांम, घृत, अमृतना रसथकी अधिको स्वाद उपजे, एवं थाय, केश्क म ध्वस्वी जेनी वाणी मधु जेवी स्वादवंत नीकंले, केश्क सर्वियास्त्रवी जे ने बोलतां सांजनारने घृत सरखो स्वाद उपजे, केइक श्रमृतास्रवी एटले जेनी वाली मां अमृत सरखो स्वाद होय, केश्क यही महा निशीलब्धि वंत ते गौतमस्वामीनी पेठे जेना पात्रमां पड्युं यन्न ते ज्यांसुधी ते पोतें आहार न करे, त्यां सूधी तेमांथी गमे तेटलाने खापे पण खूटेज नही, केक की महालया जेना कपडा प्रमुखमां गमे एदला मनुष्य बेसारे पण वज्रस्वामीनी पेठे वधतो जाय, केक संचिन्न श्रोत्र लब्धिवंत ते जेनां एक इंडिय ते पांचें इंडियोनां काम करे, अथवा समकाले सर्व जातिनां वा जां वागे, तो पण निन्न निन्न स्वाद ले, तेमज केश्क जंघाचार मुनि, केक विद्याचरण मुनि, केक शापप्रमुख देवा समर्थ, केक खाशीविष लब्धिवंत, केश्क पुलाक लब्धिवंत, केक अवधिज्ञानवंत, केइक मनः पर्यवज्ञा नवंत, केक केवलज्ञानवंत, एवा महाऋषीश्वर अनेक लब्धिवंत बतां पण उपजीवन करतां परोपकार तीर्थप्रभावनाने अर्थे विहार करता विचरे. एक दिवस ते महें राजऋषीश्वरने पोतानुं श्रात्मतत्त्व विचारतां य कां शुक्लध्यानने योगें घातिकर्म दय थवाथी केवलज्ञान उपन्युं त्यां देवता यें केवलज्ञाननो महोत्सव करीने धर्म सांगव्यो पढी ते मुनि अनेक वर्ष सूधी विहार करी अनेक नव्य जीवने प्रतिबोध देइने श्री सिद्धाचलजी उपर परिवार सहित जने नावोपग्राही कर्म कय कर मोदे पधास्या. heats तेमनो परिवार पण दुष्कर तप संयम पाली सुनध्याने तत्प रथको सकलकर्म करीने मोके गयो. केश्क साधु सावशेष कर्मे करी अनुत्तर विमानमां गया. केइक ग्रैवेयकने विषे गया. केइक देवलोकने विषे गया. केक शक्रेंड्ना सामानिक देवता थया. एम अनुक्रमें बे त्रण नवें मोछें जशे . इति महें नरेंनी कथा संपूर्ण. हवे बीजो अर्थ. साधु होय ते समता करे, ते ऊपर अर्जुनमालीनुं दृष्टांत. राजगृह नगरने विषे अर्जुन नामें एक माली रहेतो हतो, तेने स्कंध Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. श्री नामें नार्या हती. अने मोगरपाणि यद कुलदेवता हतो,तेनी वाडीने द्व कडं ते यदनुं देहेरुं . हवे एक दिवस ते स्कंधश्री नार्या पोताना जा रने जात देश फूल लेइने पोताना जार सहित मोगरपाणी यदनी पूजा करवा श्राव्यां. तेवामां गोष्ठिक पुरुष महा उष्टबुदिना धणी त्यांज रह्या ने. तेणें जेवी ते स्त्रीने दीठी, के तरतब एने पापकर्म करवानुं मन थयु. तेवारें अर्जुनमालीने बांधीने यद तथा अर्जुनमालीनी नजरे देखतां ते बये पुरु अर्जुननी स्त्रीने नोगववा मांमी. ते जोइ अर्जुनमालीनी विचारवा ला ग्यो के, आज सूधी ए यदनी पूजा करी ते सर्व फोकट गइ. जे माटे म हा। दृष्टं देखतां यदना मुख पागल महारी स्त्रीने ए एवडी विटंबना करे बे. तो आज पी ए यदनी पूजा न करवी. एवं अर्जुनमालीयें चिंतव्यु के तरत ते यद यावी. मालीनां शरीरमा पेठो तेवारें मालीना बंधन त्रुटी गयां. अने मुजर हाथमां ले। तेणें पोतानी स्त्रीसहित बये पुरुष मास्या. एम दिन दिन प्रत्येक पुरुष अने सातमी स्त्रीनो विनाश करे. ___ एम करतां एक दिवस त्यां श्रीवीरपरमात्मा श्रावीने समोसस्या. एवं सांनलीने राजगृहमा वसता सम्यक्त्वधारी सुदर्शन नामें शेनें प्रनुजीने वांदवा माटे जवा मांमधु. तेने अर्जुनमालीना नयें करी लोकें तथा मा बावास्यो. तो पण ते वांदवा नीकल्यो. मार्गमा यदना देहेराने दकडो जतो देखीने अर्जुनमाली मुजर लेइने मारवा दोड्यो. अर्जुनने आवतो देखीने सु दर्शन शेठ सागा। अगसण लेइ उनो रह्यो. अने मनमां परमेश्वरनुं ध्या न करवा लाग्यो. अर्जुनमालीयें मुजरना प्रहार मूक्या पण शेतने लागा नहि. तेम सुदर्शन शेत पण बीना नही. एवामां पुण्ययोगें मोगरपाणि यद थ र्जुनमालीना शरीरमांथी नीकली गयो. त्यारे शेठे अणसण पायुं. पली शे में अर्जुनमालीने पाबलो सर्व संबंध जणाव्यो के, नूंमा ! तेंतो घणी हिंसा करी. हवे तुं क गतिये जश्श ? एरीतें बूझवीने श्रीवीरस्वामी पासे ले गयो. ___ त्यांप्रनुजी पासे धर्मदेशना सांजली चारित्र अंगीकार कयुं. उस बनुं पा रणुं करे, राजगृह नगरनी पासे रहे,पारणे गोचरी करवा जाय त्यारे नगरी ना लोक आक्रोश करे, पण कोई नीदा न आपे. अने मुखें एम कहे के, अरे पापी ! अमारा स्वजननो विनाश करीने हवे दीक्षा ले आज हां निदा लेवा याव्यो बो? एवा लोकना उष्टवचनरूप घात प्रहारने दमा Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ गौतमकुलक कथासहित. सहित सहेतां महिनें केवलझान पामी मोद पहोतो. ए श्रीउत्तराध्यय यनसूत्रनी वृत्तिने विषे बीजे अध्ययने आक्रोश परीसहें कह्यो ले. इति ॥ हवे जे साधु होय ते समय शब्द नत्सर्ग तथा अपवादनो अवसर जा णे, ते उपर श्रीमुनिचं मुनिनुं दृष्टांत कहे . पृथ्वीनूषण नगरे लोकपाल राजा . तेनी गुणवंती नामें राणी ले. ते राजा अतीत योगीने माननारो . अंने राणी समकिती बे. तेथी राजा अने राणीने मांहोमांहे निरंतर धर्मनो जघडो चाव्या करे. एम करतां रा जायें विचाओँ के, हरकोई नपायेंकरी महारी राणीने नीच नमणी करूं.ए माटे राजायें कोटवालने कही मूक्युं के, कोइ जैन यतिापपा गाममां आव्यो जाणो तो मने खबर करजो. हवे एकदा उग्र तपस्वी, महाज्ञानी, अत्यंत उपयोगी, एकलमल विहारें विचरता, युग प्रमाणे या शोधता एवा विहार करता मुनिचं नामा मु निराज ते नगरीमां सांज समयें आवीने कोइ यदना देहराने एक खू ऐ उना थइ रह्या. एवामां यदनो पूजारो आवीने धूप दीप प्रमुख करीने पोताने स्थानकें गयो. तेवामां कोकें जश्ने कोटवालने खबर कही के,जै ननो यति यदना देहेरामां थावी रह्यो . कोटवालें राजाने जणाव्युं. राजायें कह्यु ए देहेरामा एक वेश्याने घालो. अने हार बंध करी तमे बहार बेठा चोकी करो.प्रातःकालें जे हशे ते जगाशे. तेरो पण तेमज कयं. हवे मुनिये पण खलनलाट सांजल्यो, अने स्त्री पोतानी पासें बेठेती दी ती तथा बारणां दीधां देखीने मनमां विचामु जे शहां कोश्क कारण देखाय बे, जो इहां प्रातःकालें स्त्रीसहित मने लोक देखशे, तो जैनशासन मेनुं थशे, तेनुं कारणिक ढुं थश्श. माटे कोक उपाय करूं. एम चिंतवीने जेम वस्त्र बाल्यानी गंध बहार न नीकले, ते रीते यदनो जे दीवो हतो, तेज दीवे करी रजोहरण, मुहपत्ति, कपडं, कामली प्रमुख सर्वेने हलवे हलवे . बालीने राख कस्यां. ते राख पोताना शरीरे चोली. वली ते देहेरामा नां गना अखाडा पण हता तेमांथी नांग चूंटवानुं कुतकुं पोताने खंने मूक्यु. अने यदने पुंजवानी मोरपीबीनो पण एक हाथो त्यां पड्यो हतो ते पो ताना हाथमां लीधो. हवे प्रनात थयो एटले राजा राणीने कहेवा लाग्यो Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४त जैनकथा रत्नकोष नाग हो. के, चालो आज तमारा साधु देखाईं. ते घणा आचारी निस्टही , तेने जुवो! ते सांजली राणी चिंतव्युं के,आज कांक कूड कपट रचना देखा य, पण राजाने ना कहेवाणी नही. राजाय पण जैनधर्मनी अपनाज ना करवा माटे शेत, सेनापति, पूरोहित, प्रधान, मंत्रीश्वर, सामंत, पागि या, हाली, मुहाली, सर्वने नेला.करी राणीने साथे लेइ, ज्यां यदनु देहेहें बे, त्यां आव्या. आवीने कोटवालने कह्यु. हे कोटवाल ! आज कोनी चो की करो बो ? त्यारे कोटवालें कह्यु के, हे महाराज! जैनना यति यदना देहेरामां आव्या , तेणें वेश्या घाली बे, तेनी चोकी करुं बुं. एवं सांन लीने राजा, राणीना मुख सामुं जोमस्करीमां कहेवा लाग्यो. हे कोटवा ल! तुं नल्यो . जैनना यति एवा होय नही. कोटवालें कडं, महाराज! ढुं नथी जूल्यो. हुँ खरी वात कहूँ एवं जेम जेम सांजले तेम तेम रा णीनुं मुख ऊंखाइ जाय, अने मनमां विचारे के, मुनि तो एवा होय न हिं, पण कदाचित् को वेषधारी पडवा परिणामना धणी हशे, तो जैन शासन मेलुं देखाडशे. एम विचारे के एटलामां तो राजायें कोटवालने कह्यु के, देहेरुं उघाडो, जोश्यें तो खरा जे मांहि कोण ? ते जेटले बारांन घाडे एटलामां मांहिथी एक पुरुप अतीतना वेपें अलेखननीचीस पाडतो बहार नीकलतो सर्व लोकना वचे थइ क्यांय जतो रह्यो. तेनी पनवाडे वेश्या पण नीकली. ते देखी राजा नीचुं सूख करी ऊंखवाणो पज्यो. लोक पण विस्मय पाम्या. जैन लोक घणो हर्ष पाम्या. राणीना यंगोपां ग प्रफुनित ययां, अने साडी त्रण क्रोड रोमराजि विकस्वर थईने राजाने कहेवा लागी के, हे राजन् ! ए गुरु ते महारा के, तमारा ? राजा कोटवा लने पूबवा लाग्यो के, ए शी वात ले ? त्यारे कोटवालें कह्यु, हे महाराज! ए तो कोई आश्चर्य जेवी वात थ! एम सांजली राजा बोल्यो नहीं. नीचुं जो घेर आव्यो, जैनशासननी उन्नति थई. पडी राजा राणीने ध मेसंबंधी निंदानां वचन कहेतो बंध रह्यो. एम साधु ते उत्सगें अपवाद अवसरना जाण होय. ए कथा गुरुमुखें सांजली तेम लखी बे. इति ॥ हवे साधु स्वसमय परसमयना जाण होय, ते उपर गोष्ठा माहिननी कथा. दशपुर नगरे श्रीार्यरक्षित आचार्य नवपूर्व काफेरा ज्ञानना धणी . तेमना अनेक शिष्य , तेमां गोष्ठामाहिन्न वादशक्तिवंत बे. हवे एकदा Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. मथुराने विषे कोइक अक्रियावादी श्राव्यो. तेणें लोकोने कह्यु के, माता नथी, पिता नथी. इत्यादिक नास्तिक वाद थाप्यो. तेवारें मथुराना संचें साधुनो संघाटक दशपुर नगरे मोकल्यो. तिहां आर्यरदित युगप्रधान ने. तेमना आगल ते साधुयें आवी सर्व समाचार कह्या. त्यारे ते आचार्य पोताना मामा गोष्ठामाहिन वादलब्धिवंत हतातेने मोकल्या. तेमणे त्यां जश्ने वादीने जीती जिनशासन नजलुं देखाडयुं. त्यार पली संघे या ग्रह करीने गोष्ठामाहिन्नने त्यां चोमासुंराख्या इत्यादि संबंध श्रीयावश्यकनी टीकामां जो लेजो. स्वसिद्धांत पर सिक्षांतना आण ते एवा साधु होय. हवे साधु होय ते सत्त्ववंत होय, ते गाथाना पदेंकरी देखा. वे. "ते सत्तिणो जे न चलति धम्मं.” (जे के०)जे पुरुष अथवा जे साधु (धम्मं के० ) धर्मथी (न चलंति के०) न चले, (ते के०) ते पुरुष (स त्तिणो के०) सत्त्ववंत कहिये. एटले ए नाव के, जे कोइ प्राणी पाप करवानी प्रतिज्ञा करी होय, तेने सत्त्ववंत न कहिये, पण धर्मथी जे न चले तेनेज सत्त्ववंत कहिये. ते नपर ललितांग कुमरनो दृष्टांत कहे जे. __ जंबूही जरतक्षेत्रमा श्रीवासनामे नगरें नरवाहन राजा राज्य करे . तेने कमला नामें राणी जे. अने ललितांग नामें पुत्र बे. ते बुद्धिवंत, ब होत्तेर कलामां प्रवीण अने शस्त्रकलामां तथा शास्त्रकलामां घणो माह्यो . कुलन्द्योतक .ते लघु ,पण तेना गुण घणा ॥यतः॥न तेनतको नवति, येनास्ति पलितं शिरः ॥ युवापि गुणवान् यो वै,तमेवस्थविरं विः ॥ २५ ॥ ते कुमरना घणा गुण , परंतु ते सर्वमा वली दाननो गुण विशेषे डे. या चक याव्या देखें एटलें गज अश्वादिकनी क्रीडा सर्व मूकी दे, अने याचक न थावे त्यारे ने दिवसने त्रुटी तिथिनी पेठे माने. हवे ते कुमरने, नामथी तो सऊन पण स्वनावें उर्जन एवो उष्ट ए क चाकर बे. ते चाकरने कुमरें वधास्यो पण ते कुमरनुज मातुं चिंतवे. तो पण कुमर एने बोडे नहीं. एक दिवस राजा कुमरना विनयादिक गुण दे खी हर्ष पाम्यो. तेथी बहुमूल्यवालो एक हार कुमरने आप्यो. एवामां को याचक मल्यो त्यारे ते हार ते याचकने कुमरें बाप्यो. ते सर्वे वात सङनें जश्ने राजानी बागल कही. राजाने रीस चढी. पनी एकांते कुमरने कयुं. हे कुमर ! तुमने जरा आव्या विना गुणेंकरी गरढपण आव्युं जे. तो पण ढुं एक Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. वात कढुं ते सांगत. आराज्य तहारं . माटे दिवसें दिवसें राज्य वधारी यें, प्रमाद न करीयें, निरंतर सावधान रहीयें, कोश्नो विश्वास न करीयें, तुं माह्यो बो, निपुण हो, यद्यपि दानगुणें सर्वोत्तम बगे, तो पण थोडं थो ९ दान आपीयें. “ अति सर्वत्र वर्जयेत् ” तेमाटे इव्यने जालवीये. इव्य होयतो सर्वत्र आदर पामीये. तो एवा उर्लन इव्यने जेम तेम न वापरीये. ते सांजली कुमर विचारवा लाग्यो के, हुं धन्य लु जे पितायें मने शिखामण दीधी! एम चिंतवी स्वस्थानके जई थोडं थोडं दान देवा मांमधू. त्यारे स र्वत्र अपवाद चाल्यो. याचकें मती कुमरने कयुं. हे कुमर ! तुं चिंतामणिस रखो थाने अटोल काटला सरखो केम थयो ? जगतमां दान श्रेष्ठ ने. जे दाननथी आपता तेनी लक्ष्मी कोश्क नोगवे॥ यतः॥कीटिकासंचितं धान्यं, मक्किासंचितं मधु ॥ कृपणैः संचिता, लक्ष्मी-रन्येनैवोपनुज्यते ॥३०॥ संग्र हैकपरःप्राप्य,समुशेऽपि रसातले ॥ दानात्तु जलदोऽप्यस्य, नुवनोपरि गर्जति ॥३१॥धनांगपरिवाराचं, सर्वमेव विनश्यति ॥ दानेन जनिता लोके, कीर्तिरे कैव तिष्ठति ॥ ३२ ॥ ते माटे हे कुमर ! अंगीकार करेलु कार्य मूकवू ते तने घटतुं नथी. ॥यतः॥ समुशः स्थितिमुनंति, चलंति कुलपर्वताः॥प्रलयेऽपि न मुञ्चति, महांतोऽगीकृतं व्रतम् ॥ ३३ ॥ एवं सांजली कुमर विचारवा लाग्यो के, एक तरफ वाघ बने एक तरफ नदी ए न्याय थयो.जेमाटे ए क तरफ पितानी आशा अने एक तरफ अपयश ते केम खमाय ? तथापि थनार होय ते था परंतु दान तो देवू. एम विचारीने अत्यंत दान देवा मांमयुं. ते सांजली राजा अत्यंत कोप्यो थको कुमरने हारमा प्रवेश करवा निषेध्यो. त्यारे कुमरें विचाखु जे हवे पिताने घेर रहेQ महारे घटतुं नथा. ॥ यतः ॥ देशाटनं पंमितमित्रता च, वारांगनाराजसनाप्रवेशः ॥ अनेक शास्त्राणि विलोकितानि, चातुर्यमूलानि नवंति पंच ॥३४॥ एवो निश्चय करी रात्रिने विपे प्रचन्नपणे एक घोडा उपर बेसीने कुमरनीकट्यो,अने एनो चाकर पापी सऊन इंगित आकारनो जाण तेपण साथै चाल्यो. बेदु जण एक दिशायें चाव्या मार्गमा कुमर कहेवा लाग्यो हे सऊन ! कांक विनोद. कारी वात कहे. ते उष्ट बोल्यो हे राजन् ! कहो पुण्य तथा पापमां श्रेष्ट शुं ? कुमर बोल्यो, तुं मूर्ख देखाय . तहाकै नामतो सऊन डे पण जातें उर्जन देखाय ने ॥ यतः ॥ नौमे मंगलनाम वृष्टिविषये ना कणानां Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ५१ दये, वृद्धिः शितलिकेति तीव्रपिटके, राजा रजःपर्वणि ॥ मिष्टत्वं लवणे विषे च मधुरं रे कंटकाख्या तथा, पात्रत्वं तु पणांगनासु रुचिरं नाम्ना तथा नार्थतः ॥ ३५ ॥ एतो सहु जाणे वे के, धर्मश्री जय ने पापथी दय, ते सांजलीने सऊन बोल्यो. मने तमे मूर्ख कह्यो ते खरो पण धर्म कोने कहियें ते कहो. त्यारे कुमर बोल्यो, सांनल ॥ यतः ॥ वचः सत्यं गुरौ नक्तिः, शक्त्या दानं दया दमः ॥ धर्मः पुनरेतस्मा द्विपरीतोऽसुखावहः ॥३६॥ साधुं वचन बोल, गुरुनी भक्ति करवी, शक्तियें दानदेवु, दया पालवी, तथा इंडिय दमवी ए धर्म ने एथी विपरीत ते पाप. ए वात सांगली सजन बो कदाचित् कोइ समय प्रमाणे अधर्म पण सुखदाइ बे. जो एमज होय तो, धर्मी मादा केम यावी ? हमणां तो अधर्मना महिमानो अव सर बे. तेमाटे चोरी प्रमुख करी, धन उपार्जयें. कुमर बोल्यो हे पापिष्ठ sष्ट ! महारी वात सांजन. ए तहारा वचन सांजलवा योग्य नथी. कोइक ने धर्म करतां जय न थाय, ते अंतराय कर्मनो उदय जावो. अन्यायथी धर्मी जय थाय, तेतो धागला ज्ञाननुं यजुवालुं जाणजे. ते सांगली वली पापी बोल्यो हे देव ! अटवीमां रोवा बरोबर ए वात करेथी गुं थाय ? यागलुं गाम यावे, त्यां गामना लोकने पूछियें. ते लोक जो धर्मथी विज य नहि कहे, तो तमे शुं करशो ? कुमर बोल्यो जो तुं कहे बे तेम ठरशे, तो घोडा प्रमुख सर्व तने थापीने तहारो जीवित सूधी चाकर थइ रहीश, एवो पोतपोतामां पण करी खागला गाममां गया. त्यां जश्ने एक वृद्ध पूढयं के, अमने घणा कालनो संदेह वे जे, ध थी जय के, धर्मश्री जय बे. त्यारें कोइ दैवयोगें ते. पण एम बोल्यो के, हा जाइ ! हमला तो अधर्मथीज जय देखाय बे. ते सांजली वली याग ल चाल्या. त्यारे ते पापी चागल हांसी करवा लाग्यो के, हे सत्यवादी कुमर ! घोडो पो ने महारुं चाकरपणुं करो. त्यारें कुमर विचारवा लाग्यो. ॥ यतः ॥ राज्यं यातु श्रियो यांतु, यांतु प्राणा विनश्वराः ॥ या म या स्वयमेवोक्ता, वाचा मायातु शाश्वती ॥ ३७ ॥ सर्व जाने पण बोल्युं व चन ते में पण न जा. एम वचन विचारी कुमरें घोडो प्रमुख तेने या प्यो, घने पोतें तेनो चाकर थश्ने रह्यो . हवे ते पापी घोडे बेगे दोड्यो जाय, कुमर तो पढवाडे रह्यो पहोची शके नहीं. त्यारें पापी बोल्यो. धर्मना प Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. पातनुं फल पाम्या ? हवे कहो के, अधर्मथी जय ! अने आ घोडो पा बोल्यो. कुमर बोल्यो रे पापी! धर्मतिना धणी ! तुं मने पण धर्मति यापे? ए शरीर तो विनाशी. माटे धर्म तेज सार शरण ले. एगा मडिया लोको अजाण होय , माटे ए पुरुषे एम कडं; पण धर्मनुं माहा त्म्य जाय नहीं. शद उंटने न गमे, तेथी कांश शदनी मधुरता गइन ही. त्या सऊन पापी बोल्यो. हे कुमर ! तमें गर्दननुं पुडुं पकडयुं ते मूकता नथी. जेम गर्दन पाटुन खातो जाय तो पण मूके नहीं. तेम तमे पण एवाज कदाग्रही बो: आपणे फरी बीजा गामना लोकने प्रजीयें. जो ते पण तेमज कहेशे तो झुं करशो ? त्यारे कुमर बोल्यो. जे या चकु ते तमने थापीगुं. एवो पण करीने बागला गाममां गया. त्यां पण ना विनावने योगें ते लोकोयें तेमज कह्यु. वली पागल मार्गमा जतां पापी कहेवा लाग्यो रे सत्यवादी! हे धर्मपक्षपाती! हवे गुं करशो? एवां उ नंग वचन सांजली कुमर पण धैर्य अवलंबीने एक वडना रद हेवल जर ने कहेवा लाग्यो. रे देवता देवी ! अहो लोकपालो! तमे सादी बो, एक धर्म तेज जगतमा जयवंतो . ते मने शरण था. एवं कही बुरी यें करी बेन नेत्र उखाडीने, पापी सहनने आप्यां. ते लइ सङनें कह्यु हे कुमर ! तमें धर्मना फल बेतां नोगवो. एम हांसी करतो चाल्यो गयो. हवे कुमर एकलोमहा यापदामांपज्यो विचारेले के,या असंनवित वात केम बनी ? अथवा पुष्कर कर्मना योगथी गुं न संनवे ? एम करतां रात्री प डी, दिशा सर्व श्यामता पामी, सदु पंखी पोतपोताने माले आवी बेगा. एवा अवसरमा नारंग पंखी पोताना उगमे तेज वड उपर नेगा मलीने वातो करे ने के, जेणे कोश्यें कां अचरिज दीतुं होय, ते कही संनलावो. त्यारे एक नारंमपंखी बोल्यो इहांथी पूर्वदिशायें चंपानगरीने विपे जितशत्रु ना में राजा राज्य करे , तेने पुष्पवती नामें पुत्री बे. ते जीवितव्यथकी पण अधिक वहाली ,सुंदर सुरूपवती चोरात कलामां प्रवीण .पण नेत्रने अ नावें तेनी सर्व कला फोकट . राजाने महाफिकर चिंता ने, तेथी राजायें पडहो वजडाव्यो के, जे कोइए राजकन्याने देखती करे, तेने दुं ते कन्या परणावं, अने अर्धं राज्य था. ते सांजली अनेक देशना विविध उपायना जाण पुरुष त्या मल्या दे. तेमणे घणा उपाय कस्या पण अंशमात्र गुण न Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ५३ थयो. तेमाटे ते चिंतायें पीडित राजा बे ॥ यतः ॥ बिंडुना ह्यधिका चिंता, चिता चिंता समा नहि ॥ चिता दहति निर्जीवं, चिंता जीवंतमप्यहो ॥ ३८ ॥ तो पण राजा निरंतर नगरमां पडहो वजडावे ते. हवे सवारने प होरें तो राजा, राणी ने पुत्री ए सदुयें काष्ठ जण करो. पी न जाली ये गुंबनशे ? तेमाटे प्रातःकालें तो मारे त्यां जोवा जनुं बे. ते सांगली एक नहानो नारंग पंखी बोल्यो हे तात! एनी यांखो साजी थाय, एवो कोई उपाय हो ? त्यारे वृद्ध जारंम पंखी बोल्यो. जातिबंधनो श्यो उपा य? तो पण मंत्रौषधीनां अचिंत्य महिमा बे. त्यारें लघु नारंम पंखी बो त्यो के, हे तात ! मने कहो के, ए केम साजी थाय ? तेने वृद्धे कयुं. हे व त्स, रातें वात करवी नहीं ॥ यतः ॥ दिवा निरीक्ष्यवक्तव्यं, रात्रौ नैवच नैव च ॥ संचरति महाधूर्त्ताः, स्थाने स्थाने विशेषतः ॥ ३९ ॥ त्यारें लघु नारं म बोल्यो. तो पण हे तात! ए वात तो मने कहो. एवा तेना प्रति या ग्रही वृद्ध कहेवा लाग्यो के, या वडना स्कंधने स्थानकें वेलडी वींटाली नरस यापली हंगार जो तेनी खांखमध्ये रेडे, तो नेत्र नवपल्ल वनवां यावे. एम वातो करतां ते नारंग पंखी तो नंघी गया. हवे ते सां जली कुमर विचारवा लाग्यो के, या साधुं दो के, जूनुं हशे ? ते निश्चय क रवा माटे प्रथम तो हुं महारी परीक्षा करूं. एम विचारीने वेलडी खोली काढी नारंमनी हंगार पण जीधी. ते उपाय करवाथी कुमरने नवां नेत्र याव्यां. हर्ष पायो. धर्मनी यास्था तो प्रथमयीज हती ते वली विशेपें वधी. सर्वे वस्तु देखवा लाग्यो ॥ यतः ॥ वने रणे शत्रुजलाग्निमध्ये, महारणे पर्वतम स्तके वा ॥ सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा, रति पुण्यानि पुरा कृतानि ॥ ४७ ॥ हवे कुमर चिंतववा लाग्यो के, त्यां जश्ने ते कन्याने साजी करूं. एम विचारीने जारंग पंखीनी पांखमां पेशी रह्यो. प्रभातकालें कठीने ते नारंग पंख ये पण तत्काल चंपानगरीना वनमां मूक्यो, कुमर पण सरोवरमां स्ना न करी स्वादवंत फल प्रमुख वावरीने नगरमां चाल्यो. त्यां नगरने दरवा जे एक श्लोक लखेलो हतो ते देखीने वांच्यो ॥ यतः ॥ जितशत्रोरिये वाचा, मत्पुत्रीनेत्रदायिने । राज्यस्या स्वकन्यां च प्रदास्यामीति नान्य था ॥ ४१ ॥ एटले ए जाव जे महारी पुत्रीने यांख खापे, तेने हुं अर्धु राज्य खने ए कन्याएं, एवं वांची पासें जे पुरुष बना हता तेमने मुखें रा Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. जाने कहेवराव्यु के,कोक विद्यावंत सिद्ध पुरुष श्राव्यो बे. ते कहे जे के, हुँ राजकुमरीने दिव्य नेत्र आपुं. एवं सांजली ते पुरुषने राजायें घणुं दा न बाप्युं अने कुमरने तरत तेडावी राजायें तेने आलिंगन दीg, घणी आगत स्वागत करी, कुमरें कमु एवडुं गुं करवा करो बो ? काम होय ते कहो. त्यारें राजा बोल्यो के, मदारी पुत्रीने साजी करो. कुमरे पण सुंग धी इव्यतुं मंगल पूरीने होमहवनादि महा यामबरसहित केडने विषे राखेती औषधी लेइने उपचार कस्यो. एटले कन्या दिव्यनेत्रवंत य. त्यारें राजायें ते पुत्री, कुमरने परणावी सर्वराज्यमांथी अईराज्य वहेंची आप्यु. कुमर पण ते स्त्री साईं नोग नोगवतो दोगुंदक देवनी पेहें विचरे ले. __ एकदा कुमरें गोखने विषे बेगं अकस्मात् ते पापीने मार्गमा जातो दी ठो. ते केवो के ? तो के, आंखो गले ले, नूखेंतो पेट बेवडं वली गयु ले, शरीरतो रजेंकरी खरडयुं थकुं महा मलिन चे, नाम नाम गुंबडां थयां बे, तेनी नपर पाटा बांध्या डे, ते महाबिनत्स, चालतो जाणे पापनो ढगलो ज होय नहि ! एवो देखीने करुणावंत चित्तें तेने तेडी पोतानी पासे बेसाडीने कुमर कहेवा लाग्यो के, तुं मने उलखे ? ते पापीयें कह्यु, हे महाराज! तमने कोणन उलखे ! कुमरें कह्यु,ढुं विशेषे पूर्ख , जे मने बरा बर उत्सखे के नथी उलखतो ? त्यारे पापी बोल्यो. हुँनथी उत्तखतो कुम र बोल्यो जेनी तें आंख काढी तेने पण केम नथी उलवतो? ते सांगली ने ते पापी, लाज, जय अने शंका थाणतो याकुलचिने नीचुं मुख करी रह्यो. कुमरें तेनुं ते वेष मूकावी स्नान वस्त्र अलंकार जोजन प्रमुख देश कह्यु के हे सऊन ! ते राज्यादिक पामे पण गुं? जे पुरुष पोतानी दिमाथी पो ताना मनुष्यने संविनाग न करे ! तेमाटे तमे सुखे शहां रहो. हवे त्यां रहेतां थकां एक दिवस कुमर, ते सजनने पूजे जे के, तहारी आवी अवस्था केम थ? त्यारे पापी बोल्यो के, तमने वड हेठल मूकी ने आगल जतां मने चोर मल्या, तेणें यष्टिमुष्टिना प्रहार करी महारु स वस्व लूंटी लीधुं. पनी सुःख पामतो हुँ शहां आव्यो. तेमाटे तमे धर्मनुं फ ल पाम्या, अने हुँ अधर्मनुं फल पाम्यो,हवे मने विसर्जन करो. कुमर बो व्यो तमे स्वस्थ थ इहां रहो, कांश चिंता करशो नही. दुं राज्य पाम्यो बुं. ते तहारी साहाय्ये पाम्यो बुं माटे सर्व राज्यना अधिकारी तमे था. Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. սա ते सांजली तें त्यां सुखें रह्यो, बेदुनो परस्पर घणो स्नेह देखी स्त्री, कुमरने कहेवा लागी हे राजन् ! ए पुरुष सान नथी नासतो ते माटे एनी संगत करवी रूडी नथी. जो एनी उपर तमारे राग होयतो एने इव्य यापो, देश यापो; पण एनी पासे बेसवुं ते सर्पने दुग्धपान जेवुं कोइक दिवसें अनर्थकारी बे ॥ यतः ॥ खनः सत्क्रियमाणोपि ददाति कलहंसतां ॥ 5 धोतो पिकं याति वायसः कलहंसतां ॥ ४२ ॥ जे माटे यमे स्त्री लोक तमने शिखामण देवा योग्य तो नथी, पण तमे अत्यंत नको ते माटे ए विनंति धारो. इत्यादिक अनेक वातो कही ते सांजली राजकुमार चमक्यो तो खरो, पण ते नीचनी संगत मूकी नही. एकदा कुमरना ससरायें सऊन पापीने एकांते बोलावी पूजयं के, तमारे कुमरने परस्परे एवडो राग केम बे ? ए कुमरनो देश कोण ? जाति को ? पिता को ? अने तमे क्यांथी याव्या ? त्यारे ते पापियें विचायुं के, कदाचित् कुमर पूर्वनुं वैर संजारीने रखे मने न करे! ते माटे खागलीज हुं ठीक करूं. एम चिंतवीने ते बोल्यो हे राजन् ! कहेवा जेवी वात नथी. परंतु राजायें वारंवार पुढयाथी ते पापी हांसी करतो बोल्यो. श्रीवास नामें नगरमा नरवाहन राजानों हुं पुत्र बुं. अने ए महारो चाकर बे. पण सहेजे रूपवंत घणो बे ने कोइक सिद्ध पुरुषनी पासे वि या पायो, पढी पोतानी जातिनी लाजे घर मूकी देशांतर जमतो इहां या व्यो. पूर्वना पुष्यथ तमे पुत्री परगावी अने लक्ष्मी पाम्यो तथा हुं पण पिताना परवशथकी नीकल्यो, फरतो फरतो इहां याव्यो. एणें मने उल ख्यो, ने जाएंयुं के, रखे ! महारी जाति जाति कही फजेनी करे ? तेमा ढे महारी साथै सगपण राखे बे. ए वात सांजलीने राजायें व्याकुल व्याकुल es विचायुं के, है ! है ! महा असमंजस वात बनी ! हवे गुं करूं ? ढुंतो वचनमां बंधाणो, पुत्री परणावी पण ए जमाइनो निग्रह करवो ए रूडं वे ! एमविचारी सुमति प्रधानने बोलावीने कह्युं के, एनो निग्रह करो. प्रधानें कामथी अत्यंत वास्यो तेथी राजा मौन करी रह्यो घने पोताना चाकरोने air के, रात्रें घरना वच्चे मार्गे यावतो जेने देखो तेने मारी नांखजो ! पण कोइ विचार करशो नही. ते वात चाकरें प्रमाण करी ने राजायें ते चाकरोने यांना ते स्थानके उना राख्या. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. ___ हवे राजायें रात्रीने समय राजकुमरने बोलाववाने पुरुष मोकल्यो,तेणे ज कुमरने कह्यु के, हमणां का प्रयोजन के माटे राजा मध्यमार्गे थन तावला तमने तेडावे . ते सांजली खड्ग लेइ ढोलीयाथकी कुमर उतस्यो, तेने स्त्रीयें लेडो जालीने कह्यु के, स्वामिन् ! तमे माह्या बो, नीतिना जाण बो, तो कोश्नो विश्वास करी आवी अंधारी राते एकला केम जाशो ? यतः काकेशौचंयूतकारेषु सत्यं, क्लीवे धैर्य मद्यपे तत्त्वचिंता ॥ सर्प दांतिः स्त्रीषु कामोपशांतिः,राजा मित्रं केन दृष्टं श्रुतं वा ॥४३॥ हे स्वामिन् ! तमारा का ममां तमारो मित्र सऊन सावधान ले, माटे एने मोकलो. ते सांजली कु मर हर्ष पामी आंगणे सूतो जे पापी सऊन तेने बोलावीने मोकल्यो. ते पण हर्ष पामतो जाय , एटले मार्गना वचमां तेने राजपुरुषं मारी नांख्यो. उखाणो साचो थयो जे " स्वशस्त्रं स्वंघातयति " ते वखत कल कलाट शब्द थयो. ते मुन जाणीने स्त्री कुमरने कहेवा लागी. हे महाराज! महारुं कर्तुं न मान्युं होत, तो महारी शी गति थात ? पढी कुमर पण राजानुं कपट जागी सैन्यसहित संन बह था नगर बहार नीकल्यो. राजा पण कोपाटोपें यु६ करवा बहार नीकल्यो. त्यारे प्रधाने घणी घणी वातो कही राजाने समजाव्यो के, हे राजन् ! अणविचायं काम न करि ये. ए तो गुणवंत ले. माटे परीक्षा करो. त्यारें राजा बोल्यो तमे रूडं कह्यु. तो हवे तमेज जान अने सर्व खबर लावो. ते प्रधान पण कुमर पासे आवी पूबवा लाग्यो, के तमारी जाति कहो ? कुमरें कह्यु के. महारी नुजा तम ने जाति कुल कहेशे. प्रधानें कह्यु के तमे तो गुणे करी गुणवंत बो ते अमे जाणीयें बीये. पण उष्ट पापीयें राजाने विरु६ जांखीने शंका उपजा वी. ते माटे तमने पगे लागीने कुल प्रमुख पूबीये बीये. त्यारे ते कुम रें पोतानी सर्वे वात जणावी. ते सांजली सदरीजया. राजायें श्रीवास नगरे पोतानो दूत मोकल्यो. ते राजा पण समाचार वांची प्रथम पुत्र मु वाना समाचार सांजव्या हता, ते पाडो जीवतो सांजलीने घणो हर्ष पा म्यो. जितशत्रु राजानो उपकार मान्यो जे एवं महारा पुत्रनें घेर राख्यो. पडी ते नरवाहन राजायें नेटjापीने पोताना प्रधाननें जितशत्रु राजानी पासे मोकल्यो. प्रधाने जश् यथार्थ वात कही, ते सांजली राजा विचार वा लाग्यो के, अझाने करी महा अनर्थ कस्यो होत तो कहेवा परिणाम Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. यात ? एम चिंतवी घणुं लका पामीनें पोतानो अपराध खमावतो कुमर प्रत्येकहेतो वो के, ६ राज्यतो तमारा गुणें पाम्या बोने शेप - राज्य में जें तमनेाप्युं. ते कुमर प्रडतां पण घणा आग्रह पूर्वक कुमरने राज्यानिषेक करीने. राजा पोते तपोवनमां जर तप करतो हवो Gi 3 हवे ते ललितांग कुमर पुण्यें करी घणुं शोभतो वो ॥ यतः ॥ पुण्या दवाप्यते राज्यं, पुण्यादवाप्यते जयः ॥ पुष्यादवाप्यते लक्ष्मी येतो धर्म स्ततो जयः ॥ ४४ ॥ हरे ललितांग पोतानुं राज्य सारा मंत्रीश्वरने सोंपी ने पुष्पावती राणी सहित प्रधानादिक परिवारने साधें तेडी नगरना लोक नीरजा लइने विविन्न प्रयाणे पोताना पिता पासें प्राव्यो. पितायें ग्रा मंत्र प्रवेश महोत्सव कस्यो पितापुत्रे परस्परें घणा स्नेहनां वचन कह्यां. पत्नी कुमरें कयुंके, स्वामी चंपार्नु राज्य कोइक सांमंतने मोकली तमारे स्वा धीन ल्यो. तेने पितायें कयुं तहारुं राज्य लेवे सयुं. तें तो सामुं महारुं कुल जवायुं. हवे एक दिवस पिता कहेवा लाग्यो के, हे पुत्र! या राज्य त या प्रजा प्रमुख तमे पालो ने हुं चारित्र अंगीकार करीश. ते वात कु मरें मानतां पण प्रति याग्रह करीने घणा ग्रामंबरें तेने पितायें रा ज्यानिक कस्यो ने राजा पोतें गुणवंत यांचार्य पासे चारित्र अंगीका रकरी आगमन न्यास करी गीतार्थ थयो. गुरुयें तेने योग्य जाणी या चार्यपद त्र्यायुं न चारित्र पालता थका विचरे बे घने ललितांग पण न्याय सहित राज्य पालतो, धर्म प्राराधतो प्रजाने सुख देतो विचरे ले. वामां एक दिवसने विषे उद्यानपालके यावी राजाने विनंती करी के, हे महाराज ! नरवाहन राजऋषि उद्यानमां समोसा बे. ते सांन ली जाखपसाय वधामलियाने यापी. अंतेवर परिवार ने चतुरंगी सेना सहित गुरुने वांदवा नीकल्यो. त्यां विधिपूर्वक वंदना करीने धर्म सांजल वा बेठो. त्याऐं मुनियें पण महाव्रत प्ररूपीने पती श्रावकनां सम्यक्त्वमू ल बारव्रतरूप धर्म प्ररूप्यो. ते सांजनी राजाये दृढचित्ते समकित अंगी कार करयुं. ते राजा सात क्षेत्रे धन वावरतो, विशेष संघनी भक्ति करतो अ नुक्रमें मणिसुवर्णमय पगथीयां, रंगमंरूप, स्त्रात्रमंरूप, नृत्यमंमपादिक चोरा शी मं सहित एक दिव्य शिखरबंध चैत्य करावतो हवो. तेमां श्रीकृप देव स्वामीनुं बिंब प्रतिष्ठा करीने स्थापतो हवो. त्यां निरंतर स्त्रात्रपूजा ८ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ան जैनकथा रत्नकोप नाग हो. करतो, अनुक्रमें वृद्धावस्था या जाणीने पोताना पुत्रने राज्ये थापीनें चा रित्र इ. ग्रहमादिक तप करतां उपसर्गादिकने सहेतां बेडे असण करीने देवलोकें गया त्यांथी च्यवी महाविदेह क्षेत्रमां मनुष्यावतार पामी, सकल कर्मने दय करी केवलज्ञान पामी, ग्रात्मरामी मोदे जो. ए रीते धर्मयी चल नही. ए कथा श्री पार्श्वनाथ चरित्रमां जोइ जो ॥ हवे जे सत्त्ववंत होय, तेज यापदामां सखाइ थाय, ते माटे यापदा मां सखाइ नारो बतावे बे. ते बंधवा जे वसणे हवंति ॥ ( जे के०) जे पु रुप अथवा जे प्राणी ( वसणे के० ) कष्ट यापदाने विषे आपणा ( हवंति के० ) होय. अर्थात् कष्ट यापदानी वखते जे आपणने साहा य्य करे, (ते के० ) ते पुरुष अथवा तेज प्राणी ( बंधवा के० ) बांधव कहीये. इहां पाठांतरे (वंति, एवो पण पाठ े, ते (वहंति के० ) या पदाने हे एटले यापदानो निस्तार करे, ते बांधव कहीये. ते व्यापदा ए क इव्यथी ने बीजी नावथी एवा वे प्रकारें जाणवी. तेमां इव्यथी या पदा ते निर्धन य, कष्ट पामवु, रोगादिकनुं पामवु, वहालानो वियोग, ने वहालानो संयोग ए सर्व व्यापदा कहीये, यने नाव आपदा दुर्गति जनुं, धर्मरहितपणे यवं इत्यादिक आपदामांची जे निस्तारे, ते बांधव कहीये. एना ऊपर सिंह तथा वसंत ए वे नाइनो दृष्टांत कहे बे. मगध देशे महालय नामक गामे, एक सिंह ने बीजो वसंत एवे नामें वे सगा जाइ वसे ले. तेने मांहोमांहे घणी प्रीति बे. एक एक विना रही शके नही. अनुक्रमें यौवन अवस्था पाम्या. साधेंज नएया, पृथ्वीमां नमे, इव्य उपार्ले, जोग जोगवे, खाये पीये वस्त्र विलेपनादि सर्व सार्थेज करे. एक दिवस लघु नाईनी नार्या नर्त्तारिने एकांते कहेवा लागी के, तमे मूर्ख देखा बो. केम के जे घरमा वात थाय बे, तेनी पण तमने खबर नथी ? एम सांजलीने ते पण चमक्यो. के, ते गुं कहे बे. त्याऐं ते बोली, तमारो मदोटो नाई मुखें मीठो बे, पण हृदये धितो बे. पोतानी स्त्रीने कंकु, वस्त्र, घराणां तथा खजूर प्रमुख खादिम सर्व आणी आपे बे. वली इव्य प्रमुख पण गांठे करे बे. तमने घणुं गुं कहुँ ? पण एनां फल बागलें जाणशो. त्यारे वसंत बोल्यो. रे पापिणी ! एवा जूता संनेडा गुं लगाडे बे ? कदापि जुग पलटाय, तो पण महारो जाई एवो होय नही. तुं बीजाना घरनी Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. पेठे अमारूं घर धूल मेलववा तैयार था जो महारी नोजाइ महारी माता बरोबर जे. ते कदापि वांकुं करे नहिं. ते सांजली मौन करी रही. वली एक दिवस एमज कहेवा लागी. एम दिन दिन कहेतां थकां ए क दिवस तेना चित्तमां ते वात बेशी गइ के, या महारी स्त्री खरु कहे बे. त्यारे ते स्त्री पण बोली के,हे नार, तने ब्रांति . तुं बांधव उपर र क्त बो माटे कांश देखतो नथी॥ यतः॥ रत्तो हो मूढो, केण दुग्गाच्य जो पुरिसो ॥ देवेहिं वि सयलेहि,नर तिरिए पत्तियावेत ॥ ४५ ॥ ते नोजा तो कूड कपटनी कोथली ,मने नहानी जाणीने घरनां सर्व काम करावे .मुमने दासीनी पेवें गणे .अने महोटो ना तुमने चाकरनी पेवें गणे जे. अमे तुझने वलग्या बैयें तो हवे शुं करियें मौन करीने बेसी रहीये लियें. एवी वातो संजनावीने नंजेयो ॥ यतः ॥ सुवंशजोंऽप्यकत्यानि, कुरु ते प्रेरितः स्त्रिया ॥ स्नेहलं दधि मथ्नाति, पश्यं मंथानको नहि ॥ ४६॥ हवे एक दिवस न्हानो ना ते महोटा नाइने कहेवा लाग्यो के मा हारो नाग वहेंची आपो. त्यारे अपूर्व वचन सांजलीने वृक्ष ना बोल्यो के, कोनी साथे तहारे नाग वहेंचवू ? महारा विना तहारे कोण ? अने तहा रा विना महारे कोण ? जे कां तहारुं विपरीत कयं होय, ते कही दे खाड. या सर्व लक्ष्मी तहारी. सुखें विलसो, नोगवो. ते सांजलीने न्हानो ना लाज्यो. पाबो घेर आवी स्त्रीने कहेवा लाग्यो के, नाइ तो या रीतें कहे . त्यारे स्त्री बोली के, जे धूर्त होय ते एमज बोले. माटे एवा वचनें ललचाइश नहिं, पण महारुं वचन नथी मानतो, तो हूँ जाणुं बं जे तहारी मति खशी गइ . तुं नोलो बो पण हाथमां आव्युं कोण मूके ? तहारे चाकर थक रहेq होय, तो सुखें रहे; पण ढुं तो दासीपणुं नही करूं; ढुं महारा पियरमां जश्ने रहीश. एम सांजलीने वली वृनाइनें जा कह्यु के, नाग वहेंची यापो. तेवारें तेणें वली पण तेवांज मीठां वचन कह्यां ते सांजलीने तेमज. पूर्वती पेरें ताज्यो. एम वारंवार स्त्रीने तथा नाइने वचनें मोलायमान थको रह्यो. एम वली पण एक दिवस आवीने अडी वेगे. के,आज तो नाग आपशो त्यारेंज उठीगुं. एम सांजलीने वृचनायें विचायुं के, जगत्मां स्त्री तो घणी वात जे. स्त्रीथी सर्व हेतुंबे, एवं बधुं घर खराब कयुं. ॥ यतः ॥ अनृतं Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. साहसं माया, मूर्खत्वमतिलोनता ॥ शौचं निर्दयत्वं च स्त्रीणां दोषाः स्वनावजाः ॥ ४७ ॥ इत्यादिक विचारीने घरबार प्रमुख सर्व इव्य तेणे व हेंची ग्राप्यां. ते जइ न्हानो जाइ बहार नीकल्यो. वे थोडा दिवसमां लघुना सर्व लक्ष्मी विसाडीने खाली थयो. वृ ६नाइयें वली नवी लक्ष्मी उपार्जी, त्यारें लघुनाइ महोटा नाइने कहेवा लाग्यो के, तमे जूदो गांव राखी मूकी हती माटे तेमांथी मने श्रापो तेवा रें वली पण ते वृनाइयें लक्ष्मी पी. एम वारंवार मागे, त्यारे वारंवार वृद्धा यापे. वारंवार लघुनाइनी लक्ष्मी खूटे. तेथी लोक सर्व ते लघुना इन घणी निंदा करे, अने वृद्धनाइतो घणो स्नेह धरे, मीठे वचनें बोलावे. एम घणा वखत लक्ष्मी लीधायी न्हानोनाइ लाजनो माखो मागी तो शके नही, पण वनाई उपर छेप धरतो गाम नगरने विषे जमतो फरें, परंतु क्या कोडिमात्र कमाय नही. पढी निर्धन थवाथी मलिन वस्त्र पहेरतो, नूखें मरतो फरी पण पोताना गाममां श्राव्यो. वृद्धनाइ उपर बरी काढी मारवा त्रूट्यो. नाइयें ते घात बचावी लोधी. मनमां विचायुं के, धिक्कार पडो संसारने !! जे सगो नाइ थको पण या प्रकार्य करे बे, इत्या दिक चित्तमां वैराग्य आणतो गाम मूकीने बहार नीकल्यो. त्यां पांच स मिते समिता, महा समताना धणी, जितेंदिय, आत्मसाधन करता कोइक मुनिराज, दीठा. तेमनी पासे धर्मोपदेश सांजलीने चारित्र लइ. पालीने सौ धर्म देवलोके देवता थयो. लघुनाईपण तापसी दीक्षा लइ पालीने जोति पी देवता थयो. त्यांथी संसारमां रजल्यो. अनुक्रमें प्रचलनामे नगरीने बहार बहुशाल नामें उद्यानमां कालो विकराल सर्प थयो. वामां वृद्धा सिंहनो जीव देवलोकनां सुख जोगवीने गजपुर नग रवि सुरें नामें राजानो वसुधर नामें पुत्र थयो. ते महागुणवंत, सुम तिवंत, न्यायवंत, सर्व लोकने प्रिय एवो थयो . अनुक्रमें यौवनवय पाम्यो. कोइक साधु दीवा के, तत्काल जातिस्मरण ज्ञान उपन्युं पाउलो सिंहनो जव सांजस्यो. हर्ष उपन्यो. वैराग्य पाम्यो, एवामां श्रीगुणधर नामें केवली पासें दीक्षा लीधी. त्यां केवली भगवाननें लघु नाइनो संबंध पूढयो. केवलीयें पण सर्व संबंध संजलाव्यो. त्यारें सर्पनो जव सांजलीने महावैराग्य उप न्युं. अनुक्रमें ते वसुधर नामें मुनि चौद पूर्व जण्या, तेमने करा तपत Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. पता, संयममां तत्पर रहेतां अवधिज्ञान ऊपन्यु. वली बागल गुन अध्य वसायें वर्ततां मनःपर्यवझान ऊपन्यं, त्यार याचार्य योग्य जाणी प्राचा र्य पद आप्युं. ते वसुधर आचार्य विहार करता ते सर्पने प्रतिबोधवा बद्ध शाल वनमां पधास्या. ते सर्पने धर्म संजलाव्यो. तेथी वैराग्य पाम्यो. सर्प ने जातिस्मरण झान उपन्युं, धर्म पर प्रतीत यावी के, तेज वेला अन शन कस्युं. पांच दिवस अनशन पाली समाधियें काल करीने सौधर्म देव लोकें देवता थयो. अनुक्रमें सिदि वरशे, ए कथा नवनावना वृत्तिमां तथा नेमिचरित्रमा जोजो. तेमाटे नाइ ते एवा होय. जे इव्य अने जावरूप वे दु आपदामां आवी नना रहे, अने निस्तार पमाडे. इति सिंहवसंतकथा. ॥ इति श्रीसकलसनानामिनीनालस्थलतिलकायमान पंमितश्रीनत्तम विज यगणिशिष्य पंमित पद्मविजयगणिकत बालावबोधे गौतमकुलक प्रकरणे हितीय गाथायां सप्तोदाहरणानि समाप्तानि ॥ २ ॥ हवे त्रीजी गाथानो संबंध लखीयें जैयें.बीजी गाथामां चारे पद संसार निस्तार थवानां कह्यां. हवे त्रीजी गाथामां संसारमा जे रफलावे , ते कोण? तो के, क्रोधादिक रफलावे जे; माटे क्रोधादिकनुं स्वरूप कहे . तेमां पण यद्यपि अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानी अने प्रत्याख्यानी ए त्रण कपायनी चोकडी ते गुणगाणांने अनुक्रमें साथें जाय . तथापि संज्व लना कपाय जे जे ते अनुक्रमे जेवारें बंधमाथी अने सत्तामाथी जाय , तेवारें चार माहेथी प्रथम क्रोध जाय .ते माटेबादिमां क्रोधन स्वरूप कहे. ॥ मूल गाथा ॥ ॥कोहानिन्नूया न सुहं लहंति, माणंसिणो सोयपरा हवंति ॥ मायाविणो हुँति परस्स पेसा, लु-घा महिला नरयं न विति ॥३॥ अर्थः-कोहानिनूया न सुहं लहंति एटले जे प्राणि ( कोहानिनूया के० ) क्रोधे करीने अनिमत एटले व्याप्त थयेला होय, ते प्राणी (सुहं के ) सुखने ( नलहंति के० ) न पामे. अथवा (सुहं न लहंति के० ) गुन ए Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. टले कल्याणने न पामे ॥ अहे वय कोहेणं ॥ इति उत्तराध्ययन सूत्रव चनात् ॥ ते ऊपर यूर नामा विप्रनी कथा कहे . वसंतपुर नगरने विषे कनकप्रन राजा राज्य करे . तेने सोमजसा नामें पूरोहित . ते पूरोहितने सूरनामें पुत्र . ते चौद विद्यामां प्रवीण अने माह्यो . पण घणो क्रोधी ले. अमिनी पेठे रातदिवस प्रजलतो रहे बे. स्वनावेंज कठोरनाषी छे. राजसनामां पण कडुआं वचन बोलीने लो क साथे घणो क्वेश करे जे. एक दिवसने प्रस्तावे क्रोध करतां पितानेज ग लुं मरडीने मारी नांख्यो. ते देखीने तेनी माता नासीने पियरे जती रही, राजायें पण उष्ट जाण। पूरोहित पदवीथी उतारी मूक्यो. सदा रोषे रातो रहे ॥ यतः ॥ क्रोधः परीतापकरः, सर्वस्योगकारकः ॥ वैरानुषंग जनकः, कोधः सुगतिहंतृकः ॥ १ ॥ पाडोसी साथे पण आकरो क्वेश करे. हवे ते सूरनी स्त्री घणी रूपवंती , तेने देखीने राजा ते स्त्रीने लेवा माटे बिइ जोयां करे . एक दिवस ते सूर ब्राह्मण पाडोशी साथें लड्यो. लडतां थकां पाडोशी, मस्तक फूटयु. तेथी ते पाडोशी मरी गयो. त्यारे राजायें तेनुं सर्व इव्य नताली लीधुं. स्त्रीने तेडी पोताना अंतेनरमां मूकी अने शूरने त्यांथी काढी मूक्यो ॥ यतः ॥ लवण समो नदि रसो,विन्नाण समो बंधवो नजि ॥ धम्मसमो नजि निही, कोहसमो वारि नबि ॥ ॥ २ ॥ मार्गमां तेणें कोधे करी तापसी दीक्षा लीधी. त्यां घणुं अज्ञान कष्ट करीने अंते जो था तपनुं फल होय, तो ढुं आ राजाना वधनो कर नार था एवं निया| करी मरण पामीने वायुकुमारमा देवता थयो. त्यां प्रर्व नवनां वैरें.करीने नगर ऊपर धूलनो वरसात वरसाव्यो. समस्त नग र धूलमा दाटयं. इत्यादिक पाप करी मरण पामीने मंब थयो. त्यांथीका ल करीने पहेली नरके नारकी थयो. पनी अनंता नव नमीने मगधदेशने विषे कोक गाममां पटेल थयो. त्यांपण महाकषायी थको कषाय करी रा जा साथे नौटावच्चे लड्यो. ननंठ वचन बोलवा लाग्यो, राजा रूठो. त्या रे ते पटेलने वृदनी शाखायें बांधीने गंधे मस्तके टंगाड्यो ॥ यतः ॥ अनुचितकारंजः स्वजनविरोधो बलीयसा स्पर्श ॥ प्रमदाजनविश्वासो, मृत्युहाराणि चत्वारि ॥ ३ ॥ एवा अवसरने विषे केवलझानी जगवंत वि चरता ते गामने विषे समोसस्या. राजा प्रमुख सर्व केवलीने वांदवाने गया Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. जगवाने, दयाधर्मनी देशना दीधी ॥ यतः ॥ संतापं तनुते निनत्ति विनयं सौहाईमुत्सादय, त्युइंगं जनयत्यवद्यवचनं सूते विष कवलम् ॥ कीर्ति कृतंति उर्गतिं वितरति व्याहंति पुण्योदयं, दत्तेऽयं कुगतिं सहीतुमुचितो रोषः सदोषः सताम् ॥ ४ ॥ एवी देशना सांजली देशनाने अंतें राजायें पूब्युं हे जगवन् ! शूरवीर सुनटें गुं जीत, ? केवली बोल्या. अंतरंगना काम, क्रोधादिक शत्र जीत वा. तेना विपाक महा बिहामणा ले. ते क्रोधना विपाक नपर सरना नव थी वर्णवीने ते गामनो पटेल टांग्यो . त्यांसुधीनो सर्ववृत्तांत कही संन लाव्यो. ते कथा सांजलीने घणा नव्यप्राणी प्रतिबोध पाम्या. ते माटे कोधी सुख न पामे इति. आ सूरविप्रनी कथा नवनावना ग्रंथमां बे. हवे बंधमांथी तथा सत्तामाथी क्रोध गया पली मान जाय , माटे क्रोध पड़ी माननो स्वरूप कहे . ॥माणंसिणो सोयपरा हवंति ॥ (माणंसियो के० ) जे पुरुष मानवंत एटले अहंकारी होय, ते पुरुष (सोयपरा के०) सोच करवाने विपे तत्पर (हवंति के०) होय. अथवा (मासिगो के०) मान करनारो पु रुप एटने अहंकार करनारो पुरुष ( सोय पराहवंति के ) शोकना परा नवने पामे. एटले मानी पुरुषने सोच करवो पडे. ए नाव ॥ यतः॥ पा वंति जश् अयंस, नमायं अप्पणो गुणसं ॥ नवदसणीजो अजणे, ढुति अहंकारिणो जीवा ॥ ५ ॥ ते मान नपर ननित कुमारनो दृष्टांत कहे . नंदिपुर नगरने विषे रत्नसार नामें राजा राज्य करे बे. ते राजाने रूप वती रंना सरवी रंना नामें स्त्री . तेने पुत्रपुत्र्यादिक अपत्य को जीव ता रहेता नथी. एकदा प्रस्तावने विषे पुत्र आव्यो. तेने जीवाडवानो न पाय करवा माटे सुपडामां घालीने नकरडे नांख्यो. पबी घडिएकने अांतरे त्यांथी पानो लीधो. ते दैवसंयोगें जीवतो रह्यो. एम एक वार बांकीने फर पाबो लीधो माटे उन्नित कुमर नाम दीधुं. ते यौवनवय पाम्यो. पण कोइ जातिस्वनावें घणो अहंकारी होवाथी कोइने नीचो नमेज नही. स्त ब्धनो स्तब्ध रहे ॥ यतः ॥ नमंति सफला वृदा, नमंति कुलजा नराः ॥ गुष्कं काष्ठं च मूर्वाश्च, न नमंति नजति च ॥ ६॥ ते सर्व जगतने तृण बराबर गणे . अनुक्रमें उपाध्यायनी पासें जगवा मूक्यो; परंतु ते उपा Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोप नाग हो. ध्यायने पण वंदे नही. एक दिवस उपाध्यायने तमाचे तमाचे मारीने हेठो नांरव्यो. तिरस्कार कस्यो. ते वात राजायें सांजलीने पुत्रने घणो नित्रंब्यो. घणी शिखामण दीधी ॥ यतः॥ मर्दय मानमतंगजदप्र्प, वि नय शरीर विनाशनसर्पम् ॥ क्षणो दादशवदनोपि, यस्य न तुट्यो नुवने कोपि ॥ ७ ॥ तो पण राजानी शिक्षा न मानी त्यारे विषनो यंकू रो जाणी तर्जना करी मूक्यों ॥ यतः॥ धणं धणाण मूलं, जाय मूलं सु दाण सयलाणं ॥ विण गुणाण मूलं, दप्पो मूलं विणासाणं ॥ ॥ ते वारे ते फरतो फरतो तामसंने आश्रमे आव्यो, पण तापसने मस्तक नमा वे नही. त्यारें तापसे जाण्यु के,ए अविनीत ले माटे अमारा कामनो नही. तेथी तापसें पण तेने काढीमुक्यो. हवे मार्गे चाल्यो जतो सामो सिंह याव तो देखीने अहंकारें जराणो खसे नही. तेने सिंहें पण फाल दे मारीना ख्यो. मरीने गर्दन थयो. तिहां घणी ताडना तर्जना खमतो जव पूरो कस्यो. ___ त्यांथी मरीने नंदिपुर नगरने विषे पूरोहितनो पुत्र थयो. सर्व विद्या जणी शास्त्रनो पारंगामी थयो. पण अहंकारी घणो हतो माटे त्यांथी म रण पामीने मूंब थयो. तिहां ते मुंबने जेवारें पाबला नवनुं पुरोहितनुं कुटुंब देखे तेवारे तेमने घणो राग नपजे. एवा अवसरमां त्यां केवली जगवान् पधास्या. तेमने पुरोहितनुं कुटुंब वांदवा गो. वांदीने वेग. केव लीयें देशना दीधी ॥ यतः॥ बलियो बलिनः संति.वादिन्यः संति वादिनः ॥धनिन्यो धनिन संति, तस्मादप्र्प त्यजेत्बुधः ॥ए ॥ इत्यादिक देशना सां जलीने पुरोहितनुं कुटुंब पूवा लाग्युं. हे जगवान् ! अमे नत्तम जातिनां कहेवायें बतां थमने ए मूंब उपर स्नेह उपजे , तेनुं गुं कारण ? त्यारे केवलीयें ननित कुमारना नवथी संबंध कही देखाड्यो. ते सांजली ने राजा प्रमुख अनेक नव्य प्राणी दीदा खेइमोदे पहोता ते मूंब घणो सोच करवा लाग्यो. ते मूंब संमता अंगीकार करी मोद जशे ॥ ए मान उपर ननीत कुमारनी कथा कही ॥ इति नव नावनायां ॥ हवे माननो बंध गया पबीमायानो बंध जाय , ते माटे हवे माया कहे . ॥मायाविणो हुँति परस्त पेसा, जे प्राणी (मायाविणो के०) मायावी एटले जे मायावंत होय ते प्राणी आनवे तथा परनवे (परस्स के) पार का (पेसा टुंति के०) चाकरपणे थाय. एटले कपटी प्राणी यानवें तथा Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. परनवे पारको दास थाय तिहांानवाश्रयीशेठनी पुत्रीपद्मनीनीकथा कहेजे. वणारसी नगरीयें कम नामा शेग्नी पद्मिनी नामें पुत्री ने ते पुत्री महा मायानुं घर ले. माता पिताने पण कूड कपट विनयें करीने रीजवे जे. माता पिताने तेना नपर घणो राग ले, एक कणमात्र पण पुत्रीनो वि रह खमी शकतां नथी. ते पुत्री ज्यारें यौवन अवस्थामां आवी. तेवारें को इक चंइनामे परदेशी वाणियाने घर जमाईनी परठण करी परणावीने घेर राख्यो. एम करतां पद्मिनीनो बाप मरी गयो. त्यारें घरनो घणी चंद थ यो. पद्मिनी पण निरंकुश थइ, जरिने पण कपट विनयें करीरीजवीने अन्य पुरुष साथें अनाचार सेववा लागी. तो पण तेनो जरि जाणे के, ए महासती . एकदा ते पद्मनीय पुत्र प्रसव्यो, त्यारे विचाओँ के जो ए बालकने स्तनपान करावीश तो महारा सर्व अवयव शिथिल थाशे, अ ने शरीर निर्बल थाशे, त्या विषयनो स्वाद जतो रहेशे, एम चिंतवी ध वरावे नही. नरिने कहेवा लागी के, हे स्वामी ! आज पर्यंत महारे को ३ पुरुषनो हाथ अड्यो नथी, तो हवे आ बालकनें स्तनपान केम करावं ? नारें तेनी सर्व वात साची मानीने एक धाव्य राखी. एकदा ते चं पोताने हाटे वेठो व्यापार करे जे.एवामां कोश्क तरुण ब्राह्मण चंना हाटे श्रावी बेगे . ते समये ब्राह्मणने माथे बाज उपर थी एक तरणुं पड . त्यारे चंई तेना मस्तक नपरथी ते तरणुं लीध. ए टले ते ब्राह्मणे पोतानी केहेडे कटारी हती. ते काढीने पोतार्नु मस्तक दवा मांझy. तेने शेठे पराणे काली राख्यो के, अरे नूंमा ! तुं या गं काम करे ? श्यामाटे मस्तक छेदन करे ले ? अमारो शो अपराध ? विप्र बोल्यो के, हे शेठ ! तमारो कांइवांक नथी; पण में था जन्मथी मामी ने कोइनें तृणमात्र पण अदत्त लीधुं नथी अने आज महारे मस्तके तर गुं लीधुं, माटे महारा व्रत नियमनो नंग थयो. ते सांजली चंशे विचायुं के, महारी स्त्री सती, अने.या ब्राह्म ण निर्लोनी ब्रह्मचारी महारा घर योग्य . एम विचारी शेठ घणोज या ग्रह करी तेने पोताने घेर तेडी याव्यो. अने कह्यु के, हवें महारे घेर र हेजो, क्यांहि जशो नही. एम कहीने तेने पोताने घेर राख्यो. एम शेठने घरनी फिकर टली माटे निश्चिंत थयो. हवे ते स्त्रीने ते वि Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. प्रसाथे वात चित करतां वस्त्र अशनादि आपतां लेतां परिचय थयो. ते थी माहोमांहे अनाचार सेववा लाग्यां ॥ यतः ॥ अन्यं मनुष्यं हृदये नि धाय, अन्यं नरं दृष्टिनिराह्वयंति ॥ अन्यस्य दत्त्वा वचनावकाशं, अन्ये न साई रमयंति रामाः॥१०॥ एकदा ते चंझशेठ कुसुमपुर नगरे गयो. ते नगरने बहार एक उद्यान में, तेमां एक पंखी निश्चेष्ट काष्ठनी पेठे पड्यो रहे बे. लोक, ते पंखीने तपस्वी जाणीने पूजे जे. ते ज्यारे पूजक लोको जता रहे त्यारे ते पंखी, बीजा पदी जे चुण करवा गया होय, तेमना मालामां जश्ने ईमां नहा करी जाय. वली ते अवसर थाय एटले पोताने स्थानके आवी बेसे. एवो वृत्तांत चंशेठे नजरे दीठो. वली चं शेठ पोताना सेवकने साथें ले शरीर चिंतायें गयो , त्यां एक वृदने आंतरे रहेलो तापस दीतो: ते धूसरा प्रमाणे दृष्टि दे नूमिका निहालतो प्रमार्जना करतो आवीने त्यां कास्सग्गे रह्यो. एवामां अनेक सखीयें परिवरी थकी राजकन्या त्यां क्रीडा करवा यावी. ते कन्या सखीयोनुं टो लुं मूकी तापसने जोवा यावी. तेने एकली जाणीने तापसें तेनुं गलु म रडी आनरण उतारी लश्ने धरतीमा दाव्यां. अने कुमरीने मारीने एक खाडमां दाटी, पोतें अन्य स्थानके जश् कानस्सग्गे उनो रह्यो. ए सर्व वात चंशेठ दूरथी देखीने पोताने उतारे आव्यो. राजायें पोतानी पुत्री नी शोध करी पण ते मली नही. तेसांनती राजायें पडह वजडाव्यो के,म हारी पुत्रीनी शोध करे तेने हजार सोनैयां आपुं. ते सांजली चंशोना से वकें राजाने वात संजलावी. राजायें तापसने पकडीने मारी नारख्यो. हवे चंशे विचायुं जे अहो ! आज में बे महोटां आश्चर्य दीठां. जे म अति आचार, तेम अति कपट दी] !! तेम महारी स्त्रीमां पण अ त्याचार हतो के,जेणें पोताना पुत्रने पण धवराव्यो नही, अने ब्राह्मण प ण अत्याचारी हतो. कारण के, ते पण एक तरणामाटे माथुज कापी नांख तो हतो! तेमाटे रखे ए बेन जणमां पण अनाचार होय ! ॥ यतः ॥ अ इलजा अश्माणं, अश्नीयालोयणं च अश्नीरु ॥ पुरिसस्स महिलियाए, . न सीलसुदस्स लिंगाई ॥११॥ तेमाटे एक वार घेर जश परीक्षा करूं,त्यारें महारो संदेह नांगे. एम विचारीने घेर जवा उजमाल थयो, सर्व क्रियाणा प्रमुख लश्ने वणारसीयें याव्यो. रात्रीयें सर्व साथ बहार मूकी पोतें ए Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ១ गौतमकुलक कथासहित. काकी प्रबन्नपणे घेर आव्यो. तिहां जे रीतें को बिज्ञादिकें करी सर्व वस्तु जणाय एवे गमें रह्यो. जूवे ने तो स्त्री ब्राह्मण साथै स्वेबायें निःशंकपणे विविध प्रकारनी क्रीडा करती दीती. त्यारें शेग्थी स्थिर रहेवाणुं नही. मा टे एक श्लोक कह्यो ॥ यतः ॥ बालेनाचुंबिता नारी, ब्राह्मणस्तृणहिं सकः ॥ काष्ठनूतो वने पदी, जीवानां रक्को व्रती ॥ १२ ॥ आश्चर्याणि च चत्वारि, मयापि निजचकुषा ॥ दृष्टान्यहो ततः कस्मिन्, विश्रब्धं कि यतां मनः ॥ १३ ॥ एवां नारनां कहेला वचन सालीनने ते प अनी अनाचार सेवतां अधवच नतीने उनी थइ. अने ब्राह्मणने घरमांथी बहार काढयो. चंशेत पण स्त्रीनां माया कपटनां चरित्र देखीने म नमां संसारनी असारता नावतो संसारथी उपरांठो थयो थको, परम वै राग्यवंत थ सर्व इव्य सात देने वावरी साधु पासे जइ दीक्षा लइ तेज नवमां केवलझान पामीने मोद पहोतो. ब्राह्मण तथा स्त्रीपण पारकी चाकरी करतां पण दुःखें पेट नरा चला वतां तेमां वली स्त्री तो विशेष पराधीन रहेती थकी तेमज काष्ठनूत पंखी तथा तापस ए चारे जण मरण पामी अनंतो संसार नमशे. ॥ यतः॥ ज ह जह वंच लोयं, माइनो कूडश्य वंचेहिं ॥ तह तह संचिण मलं, बं ध नव सायरं घोरं ॥ १४ ॥ इति नवनावना वृत्तौ ॥ ए माया करतां आ नवमां तथा परनवमां पारकी सेवा प्रमुख करतां कुःख पाम्या. तेम वली माया करतां परनवे पारका चाकर थाय. ते ऊपर वाणियानी कथा कहे जे. पश्चिम महाविदेहने विषे बे वाणियाने परस्परें घणी मित्राइजे. पण ते मां एक तो मायानुं मंदिर ले. अने बीजो वाणियो सरल स्वनावी . त थापि बेतु जण नेगो व्यापार करे . तेमां जे मायावी. ते सरसने घj ठगे ले. अने सरल वाणियो तो तेनाथी कांड पण नहि गोपवतां सम्यक् रीतें व्यापार करे से. एम ने तो पण बेतुने दान देवानी घणी रुचि ने. अ नुक्रमें ते बेदु नव पूरो करीने जे सरल स्वनावी हतो, ते युगलियो थयो. अने जे मायावी हतो ते मरीने तेज युगलक्षेत्रमा वर्णे नजलो अने चार दंतुरालवालो हाथी थयो. ते अनुक्रमें महोटो थयो. तेवारें फरतां फरतां तेणे युगलियुं दीटुं. तेथी मनमां घणी प्रीति उपनी. तेणें पूर्वे घणी माया करीने, तेथी आनियोगिकजनित कर्म उदय थयुं. त्यारे ते युगलीयाने सुंढे Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ जैनकथा रत्नकोष नाग बो. करी खंधे बेसाडं. ते देखीने सर्व युग लिखायें तेने सर्वथी अधिक जाणी तेनुं विमलवाहन एवं नाम दीधुं. हाथीने जातिस्मरण उपनुं त्यारें जाएयुं के माया करवाथ। हुं दास थयो बुं. ए संबंध यावश्यक निर्यक्तिमां बे. माया गया पी बंधमांथी तथा सत्तामांथी लोन जाय बे, माटें लोन कहेले लु महिला नरयं नवंति (लुदा महिला के० ) जे प्राणी लोनें क रीने महाइावंत होय, ते प्राणी मरीने ( नरयं नवंति के० ) नरकने विषे जाय. एट लोननी महाइबावालो प्राणी नरकें जइ उपजे ए नाव ॥ लो हा हनयं ॥ इति वचनात् ॥ अथवा (लुश महिला के० ) लोनें करीने महाइवावाला पुरुष ( रयं न नवंति के०) रति प्रमुख न पामे. एटले लोनी प्राणी संतोष करीने वेसी रही शके नहीं. ते उपर कोलिक राजानो दृष्टांत. चंपानगरीने विषे श्रेणिकराजानो पुत्र, कोलिक नामें बे. ते राजा, नुक्रमें जेवारें श्रेणिक राजा काष्ठपंजरमां मरी गयो. त्यारें नवी चंपानगरी वसावीने तेमां रह्यो. त्यां सर्व हाथी, घोडा, लश्कर ने चाइना परिवार सहित राज्य करे बे. एवामां कोलिकनो लघु नाइ हल ने विहल एवे नाते सिंचानक हाथी उपर बेसीने काने कुंमल, तथा हश्यें हार प्रमु खानूषणो तथा छुन वस्त्र पहेरीने बहार जाय बे. तेमने देखीने को लिकनी राणी पद्मावती विचारा लागी के, एवा हार, हाथी ने कुंमलादिक अ मारे नथी. तेथी चतुयें रहित मुख सरखुं या राज्य श्या कामनुं ? एम चिंती ते वात नर्त्तारिने कही. त्याऐं जर्त्तारें कयुं के, ए वस्तु पितायें यापे ली बे एटले दिव्य कुंमल तथा अष्टादश चक्रहार ने सिंचानक हाथी एटला वात्रा श्रेणिक राजा जीवतां एमने पेला ने ते महाराथी पाठा म जेवाय ? पिता परलोकें गया माटे महारे तो एमनी उलटी विशेष खबर रा खवी घटे बे. एम कहेतां पण राणीयें कह्युं के, ए हाथी ने हार तो मने अवश्य जोशे एवोराणीयें अति व्याग्रह करे थके, हल विहल पासेथी हारा दिक मार्गी लेवानुं कोलिकें कबूल कर. पी एक दिवस ते दारादिक दल विहल पासेंथी नाइनो स्नेह मूकी नेकोलि माग्यां. त्यारे हल विहलें कयुं के, प्रमाण के. एम कहीने घेर जइ विचार के, कोणिक बलवान बे माटे एनी सार्थे श्रापणुं जोर चालशे नही ने आपली उपर एनी नजर नली नथी. माटे यापले बीजे स्था Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ६ नके जयें. एम चिंती पोतानुं अंतेवर तथा हार, हाथी प्रमुख सर्व वस्तु लइने रात्रिये त्यांथी नीकलीने विशाला नगरीयें याव्या. त्यां तेमनो माता मह चेडो महाराजा राज्य करे बे. तेणें पुत्र जाणीने राख्या. को गोथें हाथ दने विचायुं के, एतो धूतारानी पेठें विश्वास देने जता रह्या. तेथी नाइ पण गया, अने वस्तु पण हाथ न खावी. डुं जययकी चष्टथयो. में स्त्रीनुं कह्यं कस्युं माटे, हवे जो पाठो नाइने मनावीने तेडावुं तो वणिकमां तथा महारामां श्यो अंतर ? एम विचारीने दूत मोकल्यो. ते दूत चेडाराजा पासें जइ एम कहेतो हवो के, हल तथा विहल ए वे जाइ हार ने हाथी प्रमुख लेने नाशी याव्या बे, ते पाढा आपो ने जो नहि आपो तो राज्यादिकथी चष्ट यशो. एक खीलीने मा टे खाखो देवकुल न पाडियें. चेडोराजा बोल्यो; जो बीजो पण कोइ शर श्राव्य होय, तो तेने न खाएं, तो दोहित्राने ते केम याएं ? दूत बो ल्यो. जो सर्व न यापो तो एनी पासें हार ने हाथी बे ते लइने खापो. त्यारें चेडो राजा बोल्यो के, ए धर्म नथी. के एकने उदालीने बीजाने या पियें. बीजुं वली महारे कांइ ए कदाग्रह नथी; पण दोहित्रा तमने केम अपाय ? ने तेनो हार हाथी पण उदालीने केम जेवाय ? ते सांजलीने दूतें चंपानगरीयें जइ कोलिकने कयुं. कोलिक पण तत्काल कोधारुणनेत्र करीने जयनंना वजडावतो हवो. ते समय कोलिकना कालादिक उरमान द शे जाइ खावी रजु थया. ते एकेकाने त्रण त्रण हजार हाथी, त्रण त्रण हजार घोडा, त्रण त्रण हजार रथ, त्रण त्रण कोडि पायदल, तेम कोलिकने पण एटलुंज लस्कर ले. एटला लस्कर सहित चेडामहाराजा उ पर चढाई करी. चेडा महाराजा पण अढार मुकुटबंध महाराजा सहित स न्मुख खाव्या. ते पण एकेक राजाने त्रण, त्रण हजार हाथी, त्रण त्रण हजार घोडा, त्रण 'त्रण हजार रथ, तथा त्रण त्रण क्रोड पायदल बे, घने एटलुंज चेडा महाराजनुं पण लश्कर बे. ते सर्व मली सत्तावन्न हजार हाथी, सत्तावन्न हजार रथ, सत्तावन्न हजार घोडा ने सत्तावन्न कोड पायदल एटलुं सैन्य एकतुं ययुं, अने कोलिक पण सर्व मली तेन्रीश हजार हाथी, तेत्रीश हजार घोडा, तेत्रीश हजार रथ ने तेत्री कोडि पायदल एटलुं लश्कर लइ विशालायें प्राव्यो तेरो कालकुमरने सेनाधिपति कस्यो ते Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 90 जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. कालकुमर चेडा महाराजाना सैन्य साथें लडतो लडतो अनुक्रमें चेडा महाराजाना हस्तिनी इकडो आव्यो. कोश्नो खलाव्यो हट्यो नही. ते वेला ये चेडा महाराजायें एक दिव्य बाण मूक्यु. तेथी कालकुमर मरण पाम्यो. ते चेडाराजानी एवीप्रतिज्ञा ले के नित्य एक बाण नाखवो ते अमोघ बाण पाडो फरे नही माटे ते बाण नित्य एकज अग्रसेनानीने मारवा माटे नाखे. ते संग्राममां पहेले दिवसे रुधिरनीनदिन चाली. एवामांसूर्य आथम्यो. संग्राम निवत्या. बीजे दिवसे महाकाल लडाश्ये चड्यो तेपण एमज मर ण पाम्यो. ए रीते दश दिवसे दशे जाइसेनानी था संग्राममां मरण पाम्या. ए संग्रामनो वर्णन लखवामां न आवे, एवो जोरावर थयो . हवे पोताना बरोबरिया दशे नाइ मरण पाम्या जाणीने कोणिक चिंतववा लाग्यो के, अ मोघ बागनो धणी चेडोमहाराजा एक बाणे काम करे, एने महाराथी के म जीताय ? अर्थात् कोडोगमे सुनटे पण न जीताय ! माटे में पण एनी शक्ति अजाणते थके दश नाइ क्ष्य पमाड्या. हवे जे दश नाइनी गति ते महारी पण गति. जेमाटे अग्निमां बव्यानुं औषध अमिज . तथा कांटें कांटो नीकले, हीरें हीरो विधाय. ए न्यायें देवता बागने देवता जीते एवं चित्तमा धारीने अहम तप करी बेगे. एटले चमरें तथा सौधर्मेऽए बेन तपना प्रेखा तथा पाउला नवना मित्र पण हता तेथी त्यां आव्या. या वीने कोणिकने कयुं के, अमने केम समस्या के ? कोणिक बोल्यो चेडारा जाने मारो. तेवारें शक बोल्या फरीने कांश्क मागो. चेडो महाराजा तो अमारो साधर्मिक डे माटे अमे एने मारीयें तो नही, पण तहारा शरीर नीरदा करिझुं. कोणिकें कह्यु एमज हो. त्यारें चमरें महाशिला कंटक नामें संग्राम विकुो. ते संग्राममा एक कांकरो नांखे, तो पण साहामाने म हा शिलापणे थश्ने परिणमे. अने एक कांटो सरखो नांखे तो ते महाशस्त्र थइने परिणमे. तथा बीजुं रथमुसल नामा संग्राम विकुो . तेमां एक रथ ने मुसलु-बांध्युं ते रथ देवशक्तियें करी संग्राममा सारथी विना फरे. ते रथ फरतो जे आडमां आवे, तेने दला नांखे. जेने मुसलु लागे तेना प्राण जा. य एम सुरेंइ, असुरेंअने नरें ए त्रणे मली चेडा महाराजा साथै युद मांमधु एवामां नाग नामा सारथीनो पोत्रो वरुण नामा परम श्रमावंत, छादश व्रतनो धरनारो, बहअम्मना पारणानो करनारो तेने बहने पारणे Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. चेडामहाराजायें कम कस्यो. ते वखते ते मनुं पञ्चरकाण करीने महा डर एवा रथमुसल संग्राममां प्रवतस्यो तेनी साहामो कोणिकनो से नानी पण रथे बेसी सन्मुख यावीने बोल्यो के, महारी उपर प्रहार कर. त्यारे वरुण बोल्यो. हुं श्रावक बुं, माटे निरपराधीने बागलथी प्रहार के म करूं ? ते सांजलीने कोलिकनो सेनानी, बोल्यो के, रुडुं रुडुं व्रत राख व्रत राख. एम कही कर्ण पर्यंत खेंचीने सेनांनीयें बाण मूक्युं. ते वरुणने मर्मस्थानके लाग्युं. त्याऐं वरुणें पण अरुण लोचन करी एकज प्रहारें ते सेनानीने जमराजाने घेर मूक्यो. पढी पोताने पण गाढो प्रहार मर्मस्था नके लागेलो जाली रणमांथी बहार नीकली तृणनो संथारो पाथरी तेनी उपर बेसीने विचारे ने के, में महारा स्वामीनुं कार्य तो कयुं; पण हवे महारे स्वार्थ साधवानो अवसर बे एम चिंतवीने खरिहंत, सिद्ध, साधु ने केवलिनाषित धर्म ए चारनुं शरण करी, सर्व जीवने खमावी, सर्व जीवनी साधें मैत्री नाव राखी, खढार पापस्थानक जे सेव्यां ते वोसिरा वी, चारे गतिने विषे जे कांइ दुष्कर्म करयां ते सर्व त्रिविधें त्रिविधें वोसि रावीने, श्रीवीरस्वामीने नमस्कार करतो, इत्यादिक याराधना करीने चा रे हारनां पञ्चरका करी नवकारनां ध्यानमां तत्पर थको रह्यो. ܐ वामां वरुणनो मित्र एक मिथ्यादृष्टि बे ते संग्रामथी बहार खावी वरु ने क के, जेनुं तमने शरणं तेनुं मने पण शरणुं होजो. एम बेहुज समाधिम काल कस्यो. तेमां वरुणतो सौधर्म देवलोके उपन्यो. त्यां चार पल्योपम या पालीने महाविदेह क्षेत्रे मनुष्यावतार पामीने मोदे जो ने मिध्यादृष्टि जे वरुणनो मित्र हतो ते मरीने मनुष्यपणें उपन्यो. ते पण फरी महाविदेहमां मनुष्य थर मोदे जशे. हवे वरुनो दय थयो जाली चेडाराज़ाना सुनट तथा दार गणो रा जामली बमणुं युद्ध · करता हवा. त्यारें कोलिक पोतानुं बल जाग्युं जाणी ने पोतें चढघो. ते जडतो थको चेडा महाराजानी ढकडो श्राव्यो. त्यारें . चेडा राजायें पण तेनी ऊपर दिव्य बारा मूक्युं. ते वेलाये इंझें कोलिकना मुख प्रागल वज्र कवच कस्युं ने चमरे पवाडे लोहनो संनाह कस्यो. तेथी चेडा राजानुं बाणतो अमोघ हतुं, पण निष्फल गयुं. ते देखीने चेडामहारा जाना सुन विचायुं के, आपणा स्वामीनुं पुण्य खूट्युं देखाय बे, पण बीजुं Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बठो. ७२ are न मूक. एवी प्रतिज्ञा होवाथी बीजं बाल को लिकनी ऊपर न मूक्युं. संग्रामयी उसरी पाठो ठेकाणे याव्यो. बीजे दिवसे पण एज रीते बाल खाली गयुं. एम दिन दिन प्रत्यें वेदु जानुं मांहोमांहे घोर युद्ध प्रवयुं बे हुना लकरमा थईने एक क्रोडने ऐंशी लाख मनुष्यनो दय थयो. ते सर्व नरक ने तिर्यचमां उपजता हवा. हेमचंशचार्यकृत श्रीवीरचरित्रना अ नुसारें ए पाठ . ने प्रतिक्रमणसूत्रवृत्तिने अनुसारें तो महाशिला कं टक संग्रामने विषे नव लाख मनुष्य तो एक मालीनी कूखे जइ उपन्या. तथा श्री जगवतीजी सूत्र अनुसारें दश हजार एक माउलीनी कूखे न पन्या. ए मतांतर बे. तथा श्रीवीरचरित्रने अनुसारें सामान्य प्रकारें बेहु सैन्यमां ने एक कोडने एंशीलाख मनुष्यनो दय थयो कह्यो बे. अने श्री जगवतीजी सूत्र अनुसारें महाशिला कंटकने रथमुसल ए बेना संग्रा मां पण एटलाज मनुष्योनो दय को बे. हवे हार गए राजा सर्व पोत पोताना नगरे जवाने इबता जाणीने, चेडो राजा नाशीने पोतानी नगरीमां पेतो. ते जोइ नगरीने को लिकें वींटी लीधी, तेवा दल तथा विहल रात्रे शूरवीर थर सिंचानक हाथी उपर वेसीने बहार नीकली लोकने मारी मारीने नाशी यावे, पण कोइथी पक डाय नही. त्या कोलिक मंत्रीश्वरने कहेवा लाग्यो के, आपणुं बधुं लश्कर तो ए हलें विहलें उपव्युं, माटे एने जीतवानो उपाय विचारो त्यारे मंत्रीवर बोल्या के, ज्यां सूधी ए हाथी होय, त्यां सूधी एने कोइ रीतें न जीता, माटे हाथीने मारवानो उपाय ए बे, जे मारगमां एक खाइ ब नाववी. तेमां खेरनां अंगारा जरीने ते खाइने ढांकी मुकशुं, जेथी ते ज पाय नही. पी ते हाथी उतावलो यावतां खाइ मांदे पडशे एटले ब ली जशे . एम सांजली हल विहलने याववाने मार्गे एज रीतनी खा‍ बनावी खेरना अंगारें जरीनें उपरथी ढांकी मूकी. हवे हल विल सिंचानक हाथी उपर बेसीने जेटले खाइ पासे या व्या, एटले ते हाथी विनंग ज्ञानवंत ने माटे आागल पग मूके नही. त्या रे हलविलें ते हाथीने घणो निचंबधो के, या वेलाये तुं चालतो नथ। ते गुं रथी कायर थयो के ? एक तहारे माटे तो मे परदेशें याव्या, बधाने वियोग थयो, चेडा राजाने महा कष्टमां नांख्यो. खाटला लोकनो Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. क्ष्य थयो, तेथी जो तहारा करतां कूतरो पाठ्यो होत. तो रूडं थात जे माटे तुं आज अमारा काममां पाबां पगला दे जे ते सारं नथी. एवं सांजलीने हाथीयें हन विहन्नने उतारी हेठा मूक्या, पडी पोतें खाश्मां ऊंपापात दर, मरीने पहेली नरके नारकी पणे नपन्यो. ते देखी ने कुमरो विचारवा जाग्या. हा ! हा!! धिक्कार पडो आपणने ! जे माटे आपणेज पशु बैये पण ए हाथी कां पशुं न हतो. जे हाथीने माटेमा तामहने कष्टमां नांव्या. ते हाथी मरी गयो. अने हजीलगण पुर्बुदिना धणी अमे जीवियें बीयें. ए सर्व नाशना करनार आपणे थया. माटे हवे आपणने जीव सारूं नहीं. अने कदाचित् जीवियें तो श्रीवीर वईमान स्वामीना शिष्य थश्ने जीवियें; पण अन्यथा न जीवq. एम विचारे ,एट ले ते नाव साधुने शासन देवतायें त्यांथी नपाडीने.प्रचं पासे मूक्या.चारि त्र अंगीकार कयु. एटलुं थयुं तो पण विशाला नगरीमा श्री मुनि सुव्रत स्वामीनो थून जे तेना प्रनाव थकी कोणिक विशाला नगरी न लइ शक्यो, त्यारे कोगिक बोल्यो के, जो ए नगरीमा गईनें हल न फेरबुं, तो ऊंपा पात करीने मरूं. अथवा अग्निमां पेशीने मरूं, एवी प्रतिज्ञा करी. तोप ण नगरी लेवाइ नही. त्यारे कोणिक खेद धरतो हवो. एवामां आकाश वाणी थइ के,जो मागधिका वेश्या साथें कुलवालुक साधु रमे,तो विशाला लेवाय. एवी वात सांजलीने कोणिक, प्राशावंत थयो. अने जाण्यं के, या काशवाणी निष्फल जाय नही ॥ यतः॥ बालकानां हि नापा या, जापा या योषितामपि ॥ औत्पातिकीच नाषा या,सा वै नवति नान्यथा ॥१५॥ पनी कोणिकें मंत्रीश्वरोने तेडीने पूब्युं के, कुलवालुक क्या ? तथा मा गधिका गणिका पण क्यां ? तेनी खबर काढो. मंत्री बोल्या. हे महा राज ! गणिकातो तमारी चंपा नगरीमां ने, अने कुलवालुमानी तो खब र नथी. पनी अर्ध सैन्य त्यां मूकी अने अर्ध सैन्य साथें तेश्ने चंपायें जइ गणिकाने तेडावीने आदर कस्यो के, तमे बुद्धिवंत कलावंत बो. माटे कुलवालुकने पति पणें करी लावो. अने तमारी कला सफल करो. मागधिकायें पण ते वचन अंगीकार कयुं. त्यारें राजायें तेने वस्त्र अ लंकारादिकें घणो सत्कार करी विसर्जी. गणिका पण पोताने घेर जश् कोश्क कला विचारीने कपटथी लोकमां बार व्रतनी धरनारी खरी श्राविका थ. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ១៥ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. चैत्यपूजामा तत्पर, देशना सांजलवाने सावधान, आचार्य पण एम जा णे के, ए खरेख। श्राविका . एम करतां एक दिवस आचार्यने पून वा लागी हे स्वामिन् ! कुलवालुक साधु ते कोण ? त्यारे प्राचार्य तेनुं मर्म अजाणतां बोल्या के, हे श्राविका ! सांजल. एक महागुण आचार्य पंचाचारना पालनारा हता. तेने वानरानी पेठे अस्थिर चित्तवा लो एक लघु चेलो हतो. ते गुरुनी सारणा वारणा खमी न शक्यो, तो पण गुरु तो निरंतर तेने शिखामण दे, ॥ यतः॥ परो हृष्यतु वा मा वा, विषवत्प्रतिनातु वा ॥ जाषितव्या हिता नाषा,स्वपदगुणकारिणी ॥१६॥ तो पण ते शिष्य कठोर वचनें अने मीठे वचने पण गुरुनुं कर्तुं न माने. एक दिवस विहार करतां नव्य जीवने प्रतिबोध देतां ते आचार्य श्री सिमाचलजीनी यात्रा. करवा पधास्या एम श्रीनत्तराध्ययननी वृत्ति मध्ये कयुं ये अने प्रश्नोत्तर रत्नमालानी वृत्तिमध्ये श्रीगिरनारें पधाया एम कडं , ते वेलायें ते अविनीत चेलो पण साथें गयलो . तिहां परमे श्वर बालब्रह्मचारी श्रीनेमिनाथने वंदना करी पाना वलतां पनवाडेथीचे लायें गुरुने मारवा माटे उपरथी शिला रेडी. तेनो खडखडाट शब्द सांन लीने गुरुयें वेदु पग पहोला कस्या. तेवारे ते शिलानो पबर गुरुना पग वच्चे थइ जतो रह्यो. ते वेलायें गुरुने कषाय चड्यो, त्यारें गुरुये शाप दीधो के, अरे पापी! स्त्री थकीतहारोवतनंग थशे. चेले विचास्यं जे गुरुनो श्राप जूठो करवो, माटे ज्यां स्त्रीनुं नाम पण कोई न जाणे, त्यां जबेसुं. एम चिंतवी गुरुने बांझीने पर्वतनी नदीने कांवे ज कानस्सग्गे रह्यो. मासरखमण प्रमुखने पारणे कोई पंथी आवे, तेनी पासेथी थाहार मले, तो ले, एम करतां चोमासामा नदी पूर ावी त्यारे शासन देवतायें वि चायुं के, तपस्वी मुनि तणाइ जशे. एम विचारीने नदी बीजे मार्गे वाली. तेमाटे ते मुनिनुं नाम कुलवालुक एवं कहेवाणुं. एवं आचार्यनुं बोलवू सांजलीने देश्या हर्ष पामती घेर यावी. पडी तीर्थयात्रा करवाने मिर्षे ज्यां ते कुलवालुक साधु , त्यां ावी, वंदना करीने साधुने कहेवा लागी के, हे मुनि ! ढुं गिरनार प्रमुख चैत्यने वांदवा नीकली बु. त्यारें मुनियें का नस्सग्ग पारी धर्मलान देश्ने प्रलयं के, तमे क्याथी याव्यां? वेश्या बो लो. यमे चंपा नगरीथी तीर्थनी यात्रा करवा याव्यां, पण तीर्थ करतां Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासदित. ຮູບ तो परमतीर्थ तमे मल्या तेमाटे या मारो याहार शुक्ष्मान ने, ते ले पा र' करीने अमारी नपर नपगार करो. एवा कपटी श्राविकानां वचन सांनव्या, एटले कृपावंत थइने तेणीनी साथे वहोरवा चाल्या. तेणी प ए पूर्वे संयोजित इव्यना मोदक दीधा. ते मोदक वावस्या, एटले अतिसा र रोग थयो. ते अतिसारें करी हाथ पग पण संकोची न शकें एवा ग्ला न थया. त्यारे मागधिका बोली. हे स्वामिन् ! अमे पापणी बिये जे मा टे अमारा उपगारने अर्थ तमे पारणुं का, अने आहारने अनंतर तमने रोग उपन्यो, ते माटे हे स्वामिन् ! तमने एकलां मूकीने अमाराथी केम जवाय ? अमारापग तोजेम बेडीमां घाले तेम घाल्या ,एम कहीने ते वेश्या त्यांज रही. अने नहर्तना प्रमुख करवाने वारंवार त्यां आवे. ते नहतना दिक करतां साधुने सर्व अंगे स्पर्श करती हवी. साधु पण अनुक्रमें तेनी साथै वातो करवा लाग्या. त्यारे ते पण कटाद नेत्रे जोवा लागी. अनुक्र में कुलवालुक, चित्त चल्यु. जे माटे स्त्रीने संगें केटलिकवार तपस्या रहे ? मागधिका तथा मुनिने परस्परे शय्या, आसन,संनोग नेगो थयो. स्त्रीन रिनो व्यवहार प्रवत्यो. दिवसें दिवसें ते व्यक्तपणे प्रवत्या. पड़ी तेना कह्या थीचंपायें प्राव्यो. जे कामांध होय ते स्त्रीना किंकर थश्ने शुं शुं न करे ? ॥ यतः॥ सूपसंयोग कृत्यादि, कुरुते प्रेरितः स्त्रिया ॥ स्नेहलं दधि मना ति, पश्य मंथानको न हि ॥ १७ ॥ इहां गणिकायें राजाने कह्यु के, कुलवालुकने नार करी लावी मुं. ह वे ते गुं करे ? ते घाझा करो. त्यारें राजायें कुलवालुकने कह्यु के, जेम विशाला नगरीने आपणे जांजीये तेवो उपाय करो. एवां राजरनां वचन सांजलीने महाबुझिनो निधान ते कुलवालुक लिंगीनो वेष करी विशाला नगरीमां अस्खलित गतियें चाल्यो, कोणि पण आवीने नगरी वीटी प ज्यो. एवामां कुलवालुके नगरीमां याडं अवचु जोतां श्री मुनिसुव्रत स्वा मीनो थून देखीने विचास्युं के, आ थूननी उत्तम मुहूर्ने प्रतिष्ठा थइ , माटे ज्यां सुधी ए थून होय त्यांसूधीया नगरी इंश्थकी पण न लेवाय ! हवे त्यांना लोक पण गढ रंधन होवाथी आकुल व्याकुल थयां थकां ते कुलवालुकने लिंगी जाणी पूबवा लाग्या. के, अमारो गढरोध क्यारें मटशे ? तेमने कुलवालुक कहेवा लाग्यो के, ढुं निमित्त सम्यक्रीतें जाएं Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. बुं के, ज्यांसूधी आ थून बे, त्यांसूधी नगरीनो रोध नही मटे. माटे ज्यारें आ थून नांगवा मांझशो, त्यारे लश्कर हटतुं जशे. ए नीशानी जा जो. ते जेवारें सघली यून उपाडी नांखशो, तेवारें तो सर्व उपश्व म टी जशे. ते वात सांनती नगरना लोको तो लश्करनी बीकें थून पाडवाने वलग्या, एटले कुलवालुकें कोणिकने जश्ने कडं के, तमे हमणां इहांथी उसरो (पाबा जाउ) ते सांजली लश्कर वे गार पाडं हटयु. एटले लोक ने प्रतीत यावी. तेथी लोकें आखी थून थडमूलमांथी कूर्मन्यासनी (त लीयानी) शिला सूधी खीदीने नपाडी नांखी. ते वखत कोणिकें ते वि शाला नगरीने बार वर्षने अंते नांगी. अने कोणिकने चेडा माहाराजानु युद्ध निवो. या अवसर्पिणीमां एवं यु६ कदी पण थयुं नथी. हवे कोणिकें चेडा महाराजाने कहेवराव्युं के हे आर्य ? तमे महारी माताना पिता बो, महारा पूज्य डो माटे कहो तमने झुं प्रिय करूं ? त्या रें चेडा महाराजायें विहीण थाने कदेवराव्यु के, तने नित्य जय उत्सव नीला . ते माटे थोडीवार विलंब करीने सुखें नगरीमा प्रवेश करजे. ए वात सांनती कोणि विचायुं के ए \ माग्युं ? तोपण ते वचन मान्युं. एवा अवसरमां चेडाराजानी दीकरी सुज्येष्ठानो दीकरो सात्यकि नामें वि द्याधर ले. तेणें विचायुं के, महारा मातामहनी नगरीनी प्रजाने प्रनाते शत्रु टशे ? ते महाराथी देव्यु केम खमाय ? एवं विचारी विद्यायें करी नगरीना सर्व लोकने त्यांयी उपाडीने नीलवंत पर्वत उपर ले गयो. हवें चेडा महाराजाय पण गले लोढानी प्रतली बांधीने अगाध पाणीमां पो तानुं शरीर पडतुं मूक्यु. तेज वेलायें धरणे पोतानो साधर्मिक जाएगीने तेने पोताना नुवनमां ले गया.जे माटे आनघूट्याविनामरण केम पामे? हवे धरणे घणी प्रशंसा करतो चेडो महाराजा पण धर्मध्यानमा त त्पर थको, मरणने अगवांबतो, अरिहंतादिक चारेनां शरणां करतो, चारे ने मंगल धारतो, निरीह, निरहंकारी, निर्मम एवा साधुनां शरणां करतो, सैकडागमें नवमां जे कां अपराध कस्या तेनी गर्दाकरतो, श्रावकनां बा र व्रत पालतां जे अतिचार लाग्या होय, तेने वोसिरावतो, क्रोध, मान, माया अने लोकरी जे हिंसा करी होय, तेने त्रिविधं त्रिविधं मिहामि मुक्कडं देतो, इत्यादिक आराधना कस्यानंतर पंचपरमेष्टि मंत्र संचारतो का Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ल करीने देवलोकमां पधाख्यो. कोणिक पण, गर्दनें हल जोतरीने नगरीमां फेरवी पोतानी प्रतिज्ञा पूरी करी घणा आमंबर सहित चंपानगरीये आव्यो. एवा अवसरमां जगत् गुरु पृथ्वीने पावन करता ग्रामानुयामे विचरता चंपानगरीने विषे पूर्णन नामा वनमा आवी समोसस्या. त्यां कोणिक राजा प्रमुख घणे बाबरे वांदवा नीकल्या. परमेश्वरनी देशना सांजलीने वैराग्य पामीने कालादिक दशे कुमारोनी दश माता पुत्र पौत्रादिकना अ नाव थकी दीक्षा अंगीकार करती हवी. हवे कोणिक परमगुरुने प्रडतो हवो के, हे परमेश्वर ! जेणें जन्मथी मामीने कामनोग न तज्या, ते चक्र वर्ती कर गतिमां जाय ? त्यारें प्रनु बोव्या. सातमी नरके जाय. इहां श्री हरिनास रिकत दशवकालिक तथा श्रीहेमचंज्ञचार्यकृत वीरचरित्र अने न वपद प्रकरण वृत्ति एमना लेखें चक्रवर्ती अधोगति जाय, अने श्रीनगवती जी सूत्रने अनुसार सातमी नरके जाय ए मतांतर . फरी कोणिक वो व्यो. के स्वामी हुँ मरीने क्यां जश? त्यारे प्रनु बोल्या तुंबहीनरकें जश. तेवारें कोणिक बोल्यो झुं सातमी नरकें नहीं जाउं ? प्रनु बोल्या तुं चक्र वर्तीज नथी तो ए केवा विचार करे ले ? कोणिक बोज्यो. हूं केम चक्रव ी नही ! महारे चक्रवर्ती सरखी राजहिले. स्वामी बोल्या के, चौद र त्नमां एक रत्न होय, तोपण चक्रवत्ती न कहेवाय. ते वेला अहंकार नो पर्वत एवो जे कोणिक तेणें अहंकारें करी लोढाना सात पर्वत एकेंदि रत्न निपजाव्या, अने पद्मावतीने स्त्रीरत्न उराव्युं तथा हस्ति रत्न, अश्व र त्न प्रमुख अल्पबुदिनो धणी पोतानी बुद्धियें कल्पतो हवो. हवे जरतदेवने साधतो नवनवा मनोरथ करतो अनुक्रमें वैताढयनी तिमिस्त्रा गुफा सूधी महापराक्रम फोरवतो पहोच्यो ते पोतानी शक्ति अण जाणतो नन्मत्त थको दमें कर। गुफाना बारणा उघाडवा माटे त्रण वार ताडना करी. त्यारे कृतमाल नामा गुफानो अधिष्ठायक देव बोल्यो के,मर वानी वा करतो एवो कोण गुफानां बारणां के ले ? कोणिक बोव्यो के, .हुँ अशोकचं नामा चक्रवर्ती उपन्यो. ते जरतत्रिने जीततो थको आयो व. माटे मुझने तुं नथी उत्तखतो गुं? त्यारे कृतमाल देव बोल्यो के, चक्रवर्ती तो बार थवाना हता ते सर्व थ गया, माटे अप्रायनी प्रार्थना करना रा एवा हे राजा! तुं तहारे ठेकाणे जा. तुऊने कल्याण था. कोपिक बो Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. व्यो. हुँ तेरमो चक्रवर्ती पुण्यें उपन्यो बुं, जेमाटे पुण्य | उर्जन ले ? तुं म हासं पराक्रम नथी जाणतो? माटे गुफा नघाड अन्यथा तुं पण रहीश नहीं. एवां असंबद वचन सांजली देवताने कोणिक उपर क्रोध चढयो. तेणें बाली नस्म कयो. मरीने बही नरके गयो. ए अति लोनथी मरीने नरकेगयो॥ए कथा श्रीवीरचरित्रमांकही ॥इहां कोश्क एम कहे के.सर्व चक्रवर्ती जेवारे तिमिस्रा गुफानां बारणां उघाडे, तेवारें तेनो सेनानी बार योजन घोडो पालो हटावे.. नहिं तो बाली नाखे; पण ए वात अनागमि कले. आवश्यकनी टिप्पणमां पण ना कही . तथा जंबुद्दीपप्रज्ञप्तिमांक युं ने के,सेनानी हाथें गुफा उघाडे. तथा टीकामां पण आवश्यक टिप्पण नी साखे ना कही ने ॥ इति कोणिक कथा ॥ इति श्री सकल सना ना मिनीनालस्थलतिलकायमान पंमित श्रीउत्तम विजय शिष्य श्री पद्य विजय गणिकत बालावबोधे श्रीगौतमकुलक प्रकरणे तृतीय गाथायांचत्वार्युदाह रणानि समाप्तानि ॥३॥ पूर्व फलधारें क्रोधादिक वर्णव्या, हवे ए क्रोधादिकनुं स्वरूप कहे जे. अथवा, पूर्व जे कयुं, तेहज फरी देशथी उपमा देखाडी कहे . अथवा त्रीजी गाथाने अंते कह्यु के, लोनवंत नरकें जाय, अने नरकना नवमा दुःख तो कडवां कह्या , “पहा कडुआ विवागा " इति उत्तराध्ययन वच नात् ॥ ते कडवू तो विष होय, माटे चोथी गाथानी आदिमां विप पूरे जे. एटले विष ते गुं कहियें ? ए संबंधे प्रावी चोथी गाथा ते कहे . ॥ कोहो विसं किं अमयं अहिंसा,मोणो अ री किं हियमप्पमा॥माया नयं किं सरणं तु सच्चं, खोहो उहो किं सुहमा तुहि॥४॥ अर्थः-शहां गुरु प्रत्ये शिष्ये पूब्युं के, हे स्वामिन् ! ( विसं किं के० ), विष एटले \ ? त्यारें गुरु बोल्या, हे शिष्य ! ( कोहो के० ) क्रोध तेज विष जाणवू. ते विष उपर खंधक आचार्यनी कथा कहे जे. सावबी नगरीने विषे जितशत्रु राजानी धारणी नामक पटराणी . ते Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. नी कूखे स्कंधक नामा पुत्र थयो. तेने पुरंदरजसा नामक नगिनी जे. तेने कुंनकारकटक नगरें दमक राजाने परणावी . ते दमक राजाने पालक नामा पुरोहित वे. एक दिवस दमक राजायें कांइक काम उद्देशीने पालक ने पोताना ससरा पासें मोकल्यो जे. त्यां जितशत्रु राजानी सनामां कोई वार्तावशें करी पालकें धर्मचर्चा करवा मांझी. ते चर्चा करतां पालक पोतें ना स्तिकमति , तेथी तेणें नास्तिक मत थाप्यु. त्यारे पासें वेवेला स्कंधक कुमार जैन धर्मना तत्त्वना जाग हता. तणें ॥नमार्गमां कहेली युक्तियें करी पालकने निःप्टष्टव्याकरण करी माननष्ट करी मक्यो. तेथी पालक को धे जराणो; पण कांश चाल्युं नहीं. पडी जे कामें श्राव्यो हतो, ते काम करीने पालो पोतानी नगरीयें आव्यो. ___एक दिवसें वीशमा तीर्थकर श्रीमुनिसुव्रत परमेश्वर हरिवंशमां उपन्या ते जगशुरु विहार करतां सावजी नगरीयें समोसख्या. तेमने स्कंधककुमार वांदवा याव्या. प्रनुजीयें देशना दीधी, ते सांजलीने स्कंधककुमार वैराग्य पामी पांचशे पुरुपनी साथें दीक्षा लइ उग्र विहार करता हवा. समस्त सिहांतनो सार अवगाह्यो. प्रनुजीयें एमने पांचशे साधुजीना याचार्य कस्या. एक दिवसें स्कंधकाचार्य आवीने प्रनुजीने विनंति करी के, हे नगव न ! जो तमारी आझा होय, तो पुरंदरजसा वेहेन तथा दंझक राजा बने वी प्रमुखने प्रतिबोधवा जावं ? त्यारें प्रनुजी मौन रह्या. वली बीजी वार पूब्यु, एम त्रीजी वार पूब्युं, त्यारे प्रनु बोल्या के, तमारे प्राणांत उपस र्ग थशे. ते सांजली स्कंधक अणगार बोल्या के, ढुंआराधक बुं के नहिं ? प्रनु बोल्या के, तारा विना तहारा शिष्य सर्वे थाराधक . .स्कंधक अण गार बोल्या ढुं गुं न पामुं ? एम कही प्रजुने वंदना करी पांचशे अणगार साथें कुंजकारकटक नगरें पहोता. ते वात सांजलीने स्कंधकने आवतां पहेलांज ज्यां साधुने उतरवार्नु उ द्यान , त्यां पालकें अनेक शस्त्र दटाव्यां, ते स्थानकें स्कंधकाचार्य पण पधाया. तेमने दंझकराजा नगरना लोक सहित वांदवा आव्या. गुरुयें दे शना दीधी. नवनी अनित्यता देखाडी. ते सांजलीने सदु हर्ष पाम्या. पड़ी एकांते राजाने तेडीने पालक कहेवा लाग्यो के, हे महाराज ! ए स्कं धक ते पाखंमी . आचारचष्ट जे. एमां साधुपणुं नथो. ए पांचेशे Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. साधु जे एनी साथै याव्या ते सर्व सहस्रयोधी सुलट जे. ते तमाळं रा ज्य सेवा आव्या . राजा बोल्यो, तें केम जाण्यं ? पालक बोल्यो एनुं कपट ढुं तमने देखाडीश. एम कही साधुउने कोश्क कार्य नद्देशीने बीजा वनमा उताया. पनी धरतीमां दाटेला शस्त्र सर्व ते पालकें, राजाने देखा ड्यां. शस्त्र देखीने राजानुं चित्त चंचल थयु. तेज वेला पालकने आशा दीधी के तुं एने तहारे गमे तेम करजे. एम कही राजा घेर गयो. __ पड़ी पूर्वलो क्षेप राखीने पालक पुरोहितें पुरुष पीलाय एवं यंत्र थापीने ते साधुनने घाणीना यंत्रमानांखवामांमया. तेवारेस्कंधकाचार्य तो सदुनी पासे रहीने प्रत्येकने उपदेश देवा लाग्या के, हे मुनि ! तमे परस्वनाव मां प्रवेश करशो नहीं. आत्मस्वनावमा रहेजो. ए पालक तमारो शत्रु नथी: पण तमने सिदि साधतां साहाय्यकारी मल्यो ने. जे कर्म घणे कालें दय थाय, ते कर्म अल्पकालमा क्ष्य थशे. माटे मरणथी मरशो न ही. समाधि मरणने तो मुनिराज वांडेज ले. माटें वेदनाथी बीहीशो न ही. एवी वेदना तो था यात्मा समता विना अनंतीवार जोगवी या व्यो . ते माटें समतामा रहेजो. धैर्य मूकशो नही.सर्व जीव पोतानांक स्यां कर्म नोगवे छे ॥ यतः ॥ सन्बो पुवकयाणं, कम्माणं पावए फल विवा गं ॥ अवराहेसु गुणेसु य, निमित्तमित्तं परो होई ॥ १ ॥ तेमाटें एक पोता, आत्मस्वरूप निपजाववाने अर्थे शुक्ष ध्यानमा रहेजो. इत्यादिक गुरुना वचन सांजली ते महात्मा पण सकल कर्मनो अनाव करीने सिदि सीमंतिनीने वरता हवा. एम अनुक्रमें चारों ने नवाणुं मुनिराज तो स कल कर्मरूपीधणांबाली शुक्लध्यान ध्यायीने अंतगड केवली थइमोदे गया. हवे एक लघु शिष्य शेष रह्यो ले, तेने पण ते पापीयें पीलवा मांझयो त्यारें स्कंधकाचार्य बोल्या रे पालक! प्रथम मने पील, पनी तहारे गमे ते म करजे. एम कहेथके पण ते पुष्टात्मायें सर्वेनुं फुःख याचायेने देखाड वा सारु प्रथम लघु शिष्यने पील्यो. ते पण दपक श्रेणी मांझी केवलज्ञान पामीने अव्याबाध सुखनो जोगी थयो. एवं तेनुं कृत्य देखीने आचार्ये विचारयुं के, अहो ! ए पुरात्मायें महारूं एटलुं वचन पण न मान्युं, ते थी आचार्यने महाक्रोधानल व्याप्यो. तेणे करी गुणरूप इंधणने बाली नांख्यां, अहो ! महारां देखतां ए पापीयें झुं निपजाव्युं ? ए उष्ट पालक Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. तथा इष्ट राजा ने नगरना लोक पण महा निर्दयी देखाय बे. ए तें क्रोधाध्मात थका स्कंधकाचार्ये पालकने उद्देशीने कहेवा मामचं के, रे पापी ! या तपनेज प्रजावें हुं तमारो वध करनारो थाजो ! एवं नियाएं कयुं. एटले तेणें स्कंधकाचार्यने पण घाणीमां पील्या. ते स्कंधकाचार्य विराधि त संयमी ने कुमार निकायमां जन देवतापणें उपना. एवा अवसरमां स्कंधकाचार्यनुं रजोहरणं रुधिरें खरड्युं, माटे मांसनी प्रांतियें कोइक पंखीयें उपाडधुं. ते पंखीना मुखमांची तूटीने स्कंधाकाचार्यनी बहेन पुरंदरजसाना मुख खागल पड्युं. ते रजोहरण तेनी बहेनें उलख्युं. लोकने मुखें सर्व वृत्तांत सांजल्युं. तेवारें ते पुरंदरजसा राजा पासें यावीने कवा लागी के, रे पापी ! दुरात्मा ! नींतिना करनार ! या कु कर्म तें गुं कस्युं ? तें साधुहत्या करी तेथी तहारुं नरकं विना बीजुं को इ ठेका नथी. ए साधुहत्या महा अनर्थनी करनारी बे. एम वारंवार बिना करीने संसारथी उपरांठी थकी वैराग्यवंत थर. एटजे शासन दे वतायें तेने परिवारसहित उपाडीने श्रीमुनिसुव्रत स्वामीनी पासे जइ मूकी. तिहां तेीयें दीक्षा अंगीकार करी, पोतानुं श्रात्मकार्य साध्युं. ܐܢܵ स्कंधाचार्य कुमार देवतापरों उपन्यो, एटले अवधिज्ञानें उपयोग दीधोके, तत्काल कषाय जाग्यो. तेवारें क्रोधें करी पालकसहित ins राजानो देश बालीने जस्म करो. त्यां ते देशनुं दंमकारण्य एवं ना लोकप्रसि६ . ए रीतें क्रोधने विषे स्कंधकाचार्यने विष ययुं. एकथा श्री उपदेशमालानी वृत्तिमां बे. इति स्कंधकाचार्य कथा ॥ वे विप्रतिपदि मृत बे, माटे अमृत पूबे बे. इहां पा किंशब्द जेवो. एटजे गुरुप्रत्यें शिष्य पूछे ले के, हे स्वामिन्! (मयं किं के० ) मृत ते गुं ? त्यारें गुरु कहे ने के, ( हिंसा के० ) सर्व जीवनी दया पालवी तेज अमृत जावं. जे कारण माटे सर्व जीव जीववुं इबे बे. ॥ यतः ॥ सवे वि जीवा इवंति, जीविनं न मरिजिनं ॥ तम्हा• पाणिवहं . घोरं, निग्गंथा वजयंति ॥ २ ॥ ते उपर नीम कुमरनो दृष्टांत कहे बे. arrest विषे कमलापुर नगरे हरिवाहन राजा राज्य करे बे. ते नेम दनसुंदरी नामें पटराणी बे. तेलीयें सिंहस्वने सूचित महातेजवंत पुत्र प्रसव्यो. तेनुं कुलकमागत नीमकुमर एवं नाम दीधुं, अनुक्रमें ते पांच ११ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. धावें लालतो पालतो महोटो थयो. ते राजाने बुद्धिसागर नामें प्रधान जे. तेनो मतिसागर नामें पुत्र हतो ते कुमरनो मित्र थयो. जे ते कुमरने घणो इष्ट वनन , तेथी दाण मात्रपण तेनो वियोग न खमाय. एक दिवस पुत्रसहित राजा आस्थान सनामां बेठो डे, एवामां वनपालकें आवी व धामणी दीधी के, हे राजन् ! आपणा उद्यानने विषे देवचं नामें आचा र्य पधाया . ते सांजलीने राजा हर्षित थ एक मुकुट विना बीजा पो ताना सर्व अलंकार वनपालकने देतो हवो. पडी राजा परिवारसहित कुमरने तेडीने वंदना करवा गयो. त्यां वंदना करी यथायोग्य स्थानकें वे गे. गुरुये पण धर्मलान देने धर्मदेशना देवा मांमी,अनेकह्यु के, रे नव्य प्रा पी ! दश दृष्टांतें करी मनुष्यनो नव पामवो दोहिलो ले. माटे मनुष्य नव पामी मोक्षमार्गने विष यत्न करवो. ते देशना सांजलीने राजायें समकित मूल बार व्रत अंगीकार कस्यां. बने नीमकुमर पण देशना सांजली श्रमावंत थयो. त्यारें मुनिये योग्य जाणी जीमने कह्यु. हे नीम ! तुं दयावत चो रकुं पालजे. बीजां व्रत ते प्रथम व्रतनी वाडरूप ने, दया ते सर्व धर्मनी माता , माटे कोइ निरपराधी जीवने हणीश नही. आहेडो प्रमुख सर्व था तजजे. एवं सांजलीने नीमें निरपराधी जीवने हगवानां पचरकाण कयां, समकित पण अंगीकार कयुं. वली मुनि बोल्या के, तुमने धन्य बे. जे माटे तें बालक थकां पण वृधना जेवी मति करी. पड़ी तेने स्थिर करवा माटे मुनियें एक उदाहरण कह्यु, ते कहे बे. कोइक गाममां ब पुरुष घात करवाने अर्थे गया. तेमां एक बोल्यो के, पिद, चतुष्पद जे आवे तेने मारो. बीजो बोल्यो, पशुने माखे झुं थाय ? माटे मनुष्यने मारो. त्रीजो बोल्यो, मनुष्यमां पण स्त्रीने मारशो नहि; परंतु पुरुषने मारजो. चोथो बोल्यो, पुरुषमां पण हथीयार बंधने मारजो, पण बी जाने मारवा, झुं काम ? पांचमो बोल्यो, जे कोइ आपणने मारवा आवे तेने मारजो, पण बीजायें आपणुं झुं बगाडयुं ले ? त्यारें बठो बोल्यो, कोइने मारशो नही. आपणुं काम सख्याथी काम. ए बयें पुरुष अनुक्रमें बये लेश्याना परिणामी जागवा. तेमाटे हे नीमकुमर ! तुं नत्तम शुक्ल लेश्यानो धणी थजे. तें बालक थकां नखं नियम लीधुं. ते सांजलीने जी Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ७३ मकुमर बोल्यो. हे स्वामिन् ! तमे आवी तरुण वयमां चारित्र केम ली धुं ? तेनुं कारण कृपा करीने कहो. त्यारे मुनि बोल्या सांजल. कोकण देशमा सिहपुर नामे नगरें नुवनसार नामें राजाले. ते राजा एक दिवस सनामां बेठो थको दक्षिण देशथी को अजुत नाटकीया या व्या , तेनुं नाटक जुए बे. तेमां एकाय मन करी बेठो . एवामां एक निमित्तियो आव्यो , तेने जो राजायें कडं के, आ अवसरें निमित्तिया ने गुं करियें ? त्यारे प्रधान बोल्यो के, हे राजन् ! नाटकीया तो वली म लशे, पण ज्ञानी पुरुष मलवा दोहिला ले. ते माटे सर्व वात पडती मूकी झानीने आदर करी बोलावो. त्यारें राजायें पण तेने आदर सहित बोला व्यो. निमित्तियो प्राव्यो त्यारें राजायें प्रणाम कस्यो. निमित्तियो पण या शीर्वाद देने यथास्थानकें बेठो. राजायें कह्यु, हे निमित्तिया! तमारे कु शल ? त्यारे दीन वचनें निमित्तियो बोल्यो. हे स्वामिन् ! कुशल तो एवं ने के, जे मुखें कही न शकिये. त्यारें राजा शंका पामीने बोल्यो के, गुं आकाश त्रूटी पडशे ? के, युं थनार ले ? निमित्तियो बोल्यो के, तमें कहो बो तेमज थशे. त्यारें राजा नयनांत यश्ने पूब्वा लाग्यो के, हे निमित्तिया ! तहारा झानमां आव्युं होय ते साचुं कहे. त्या निमित्तियो बोल्यो. हे रा जन् ! हमणां बे घडी पड़ी मुसलधारायें मेघ वरसशे. जेथी घरबार सर्व एकाकार थशे. ते सांजलीने स्थान सनाना सर्व लोक नयनांत थया. एवामां नत्तर दिशानो वायरो वाह्यो, अने दरोंकमां तो मात्र कचोला जेटलुं वादलुं थयुं. ते जो निमित्तियो बोल्यो. जो लोको ! ए जु ! आ आवडं वादलु ले ते सर्वत्र पसरी जशे. एम कहेतां तो.ते वादलु स घले व्यापी गयु. थास्थान समाना लोक सर्व पोताने घेर गया. नाटक पण विसज्यु. एटले गाजवीज थवा लागी, पड़ी मुसलधारायें वर्षाद वर सवा लाग्यो. कणेकमां जोतां जोतां पाणी विस्तार पाम्युं. नगरमां हा हाकार थ गयो. लोक घणो बुंबारव करवा लाग्या. पाणी समाय नही. पडी राजा, प्रधान अने निमित्तियो ए त्रणे सात नूमीना महोल उपर चढ्या. राजा, नगर लोकना आक्रंद सांजलतो घणु ऊःख धरवा लाग्यो. पाणी तो रोकमा सातमीनमीयें चढी गयुं, ते देखीने राजा बोल्यो. अहो ! में विषयमां आसक्तचित्तें श्रीजिनेश्वरजाषित धर्म कस्यो नही, अने Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. हवे मरण तो ढुकडं श्राव्यु माटे हवे शी गति थशे ? हा हा ! हुँ फोगट नव हास्यो ॥ यतः ॥ आयुर्वर्षशतं नृणां परिमितं रात्रौ तदर्धं गतं, तस्या ईस्य परस्य चाईमपरं बालत्ववत्वयोः ॥ शेषं व्याधिवियोगःखकलितं चायुः परिदीयते, जीवे वारितरंगचंचलतरे सौख्यं कुतः प्राणिनाम् ॥३॥ हवे गुं करूं, क्यां जावं ? हवे तो श्रीअरिहंत, सिह, साधु अने धर्म ए चा रनुं शरणुं माहारे जे. एम बुंबारव करे ले. त्यां तो पाणी टूकडं ावी पहोच्यु. ___ एवामां एक जहाज आवतुं दीतुं. प्रधान बोल्यो. या प्रवहण कोश्क देवता तमारी उपर प्रसन्न थइने लावे . ते माटें ए प्रवहण नपर बेस जो. हवे ते प्रवहण ढ़कडं याव्युं अने तेना उपर पग मूकवा जाय एटले मेघ पण गयो, गाजवीज पण गइ अने पूर्वली परें नाटक जुए के, कचेरी ना लोक सर्व बेठा दे, एनुं दीतुं. त्यारे राजायें निमित्तियानें पूज्युं के, आ आश्चर्य ते गुं ? निमित्तियो बोल्यो, हे राजन् ! या इंजालनी विद्याना बलें में तमने तमासो देखाड्यो. ते सांजली राजाने रीफ नपनी, निमित्ति याने दान दे विसर्यो. हवे राजा चित्तमां वैराग्य पाम्यो विचारे ने के, जेवू इंजाल, तेवं ए रूप, यौवन, स्नेह, आन, संपदा प्रमुख सर्व अ स्थिर , दुं था अपवित्र कायामां मग्न थयो बुं, इत्यादिक विचारतां चिंतवे ने के,महारा पूर्वज जे धर्म आचस्यो ते दुं पण आचलं. एवो निश्चय करी हरिविक्रम पुत्रने राज्ये थापी पोतें तिलकाचार्य नामें आचार्यनी पासें चा रित्र लीधुं. ते नुवनसार हुँ पोतेंज बु.ए महारा वैराग्यनुं कारण तुजने कह्यु. ते माटे हे नीम ! तें जे प्राणातिपात स्थूलवत लीधुं ने, तेमां सावधा न थजे,निश्चल रेजे. नीम बोल्यो हे. स्वामिन् ! तमासं वचन प्रमाण . प बीवंदना करीसद्ध पोताने स्थानकें पहोता. नीमपण युवराज पदवी नो गवतो, धर्मनियम करतो विचरे बे. एक दिवस ते कुमर मित्र साथे की डा करे , एवामां एक कापालिक याव्यो. ते आशीर्वाद देने एकांते क हेवा लाग्यो. हे नीम ! तुं परमोपकारी बो, माटे सांजल. महारे नुवनदो निणी नामें विद्या , ते बार वर्ष साधतां में पूर्व सेवा तो करी. हवे उत्तर सेवामां कालीचौदशने दिवसे स्मशानमां जश्ने साधीश तेवारें तुं महारो न तरसाधक थाय तो महारी विद्या सिम थाय. ते सांजलीने कुमर विचा रे ले के, आ असार शरीरें करी कोश्ने गुण थाय तो घणुंज रूडं. एम चिं Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. त्य तवीने कुमरें तेनुं वचन मान्युं तेवारें कापालिक बोल्यो. कालीचौदशने या ववाने दश दिवस बाकी छे. त्यांजगें हुं तमारी पासें रहीश तेपण कुमरें मान्युं. हवे ते योगी, कुमर सायें खाय, पीये, एकांते वातो करे, एम करतां एक दिवस मंत्रिपुत्र बोल्यो. हे कुमर ! तमारे ए पाखंमी सायें गोष्ठी करवी सारी नथी. जेमाटे दुर्जननी संगति अनर्थकारक बे. कुमर बोल्यो, हे मि त्र ! तमें साधुं कयुं पण में दाक्षितायें हा कही बे, ते हवे नाकारो केम कहे वाय ? वली मंत्री पुत्रं घणु वास्त्री तो पण कुमर न रह्यो अनुक्रमें कालीचौद शे निर्भय थकां स्मशानमां गया. त्यां कापालिकें मंगल खालेखी कोइक दें वताने संजारीने नीमनी शिखा बंध करवा मांमी. त्यारें नीम बोल्यो मा शिखायें बंध श्यो ? महारुं सत्व बे तेज शिखाबंध बे. एम कही हाथमां खड्ग लइने साहसिक थको उनो थयो त्यारें कापालिकें विचायुं के, शिखा बंधनने बजे तो एन बजाय, हवे पराक्रमें एनुं मस्तक लेनं. एम विचारीने आकाश सरखं पोतानुं रूप करीने महा गर्जारव करतो कोपें नरालो थ को जीमने कहेवा लाग्यो रे रे बालक ! तहारुं मस्तक पराक्रमें लेश. य ने जो तुं पोतानी मेजें थपे तो आागले नवे देवता यश. त्यारें नीम बो व्यो रे चंमाल, पाखंमी, मायावी, तने ढुं शत्रुनी पेठे मारीश. एम कहे बे, एवामां पाखंमीयें शस्त्रघात कस्यो. ते घात जीमें वचमांथी बचावीने हाथमां तरवार थर हती ते सहित कापालिकने खंधे चढी बेगे. अने मनमा विचारे ने के, एने मारुं के नही ? वली विचायुं के, जीवतो सेवा करे तो कोण मारे ? एम चिंतवे बे. एवामां तो ते पाखंमीयें जीमनें पक डीने खाकाशे उठायो . त्यांची पडतां एक यक्षिणी देवी तेने करसंपुटमां राखी पोताना मंदिरमां लइयावी. त्यां रत्नमय सिंहासन उपर बेसारीने य दिली कहेवा जागी. हे सुनग ! या विंध्याचल पर्वतमां हुं वैक्रिय नुवन बनावी क्रीडाने वसुं बुं हुं कमला नामें यक्षिणी बुं. खाजे परिवार सहित श्रष्टापदे जश्ने त्यांची पाठी वलतां इहां तुमने पडतो देखीने हूं इहां लावी बुं. हुं महाकंदर्पे करी पीडा पामुं बुं, खने तुं दयावंत बे. हुं तहा रे शरणे यावी बुं. ते माटे मने पीडा पामती राख. या महारो परिवार ते तहारो चाकर रूप जाणजे. ते माटे महारी सायें दिव्यजोग जोगव. ते सांजलीने नीम बोल्यो. हुं भूमिगोचर ने तमे देवांगना हो, तेथी थाप Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. णो संगम केम थाय ? वली पण महारी वात सांजल. जे विषय ते आग ल महा दारुण विपाकें आवे , विषयासक्त थका जीव नरक निगोदने विपे नमे वे ॥ यतः ॥ सनं कामा विसं कामा, कामा आसीविसोवमा ॥ कामा पले य माणा, कामा जति मुग्गइं॥४॥ ते माटे तमे महारे माता वरोबर बो. तो एवी वात म कहेशो. एम कहीने पगे लाग्यो. त्यारें यदि णी बोली. तुं साहसिक बो,मांटे कांक माग ! कुमर बोल्यो महारे सर्व डे एक श्रीजिनेश्वरनुं शरणुं , ते उपरांत महारे बीजुं कांइ जोतुं नथी. देवी बोली, महारे पण आज पड़ी श्रीजिन वीतराग तेहज शरण ले. ए रीतें वेदु जण परस्पर वातो करे , एवामां अकस्मात् मधुर ध्वनि सांजलीने कुमरें पूज्यु के, आ ध्वनि क्या थाय ले ? देवी बोली. एक साधु उपवास करीने चौमासु रह्या बे, ते सप्नाय करे , तेनो ए शब्द बे. नीम बोल्यो,तेमने वांदीने जन्म सफल करिये. एम कही कुमर तेनी साथें चाल्यो यक्षिणी पण परिवारसहित मार्ग देखाडती चाली बेद मुनि पासे आवी वं दना करीने मुनिनो सनाय बेठा सांजले ने अने अनुमोदना करे . एवामां आकाशथी एक नुजा आवती दीती. ते अकस्मात् कुमरनी पासें आवी पडी. जीमें विचाओँ के,या गुं करशे ? एटलामां तो ते नुजा, नीमनुं खङ्ग ला चालवा मांमी. कुमरें विचाघु के, आ लांबी काली को नी नुजा अने ए क्यां जशे ? एवं विचारी कौतुकसहित उबलीने ते नुजा उपर चडी बेठो. मार्गे अनेक पर्वत, नदी, वन देखतो कालिकानुं नुवन धरती उपर ले त्यां आव्यो. ते नुवन केवु ? तो के जेने नाना प्रकारना हाडकांनी तो नींत , मनुष्यना मस्तकना तो कोशीषा ने, ह स्तिना दांतनां तोरण डे, केशपाशनी ध्वजा , वाघना चामडानो चंड 1, रुधिरें करी रक्त पृथ्वीनुं तनुं बे, ते नुवनने विषे मस्तकनी माला नी धरनारी, क्रूर नेत्रनी धणियाणी, पाडानुं जेनुं वाहन ने एवी कालि कानी मूर्ति दीठी. तेना मुख ागले एक उष्ट, सृष्ट, पापिष्ठ, पाखंमी, जे णे वामहस्तमा एक पुरुष पकड्यो ,एवो एक कापालिक बेगे दीठो. ए . नो जमणो हाथ ते जेना उपर नीम बेसीने आव्यो तेज ले. ते जोड्ने नीम मनमां विचारे डे के, एना हाथमां पुरुष तेने ए गुं करशे ? ते तमा सो जोवं. एम विचारीने ते हाथ उपरथी नतरीने क्यांक बानो उनो रह्यो. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GN गौतमकुलक कथासहित. हवे ते कापालिक हाथमां खड्ग लेश्ने ते वाम हाथमां पकडेला पुरुपने कहेवा लाग्यो. रे रांक ! तुं तहारा इष्ट देवने संजार. ढुंआ खड्ने करी तहा मस्तक बेदीने देवतानी पूजा करीश. त्यारे ते पुरुष बोल्यो. जगत् जी वना उपगारी एवा एक श्रीवीतराग तेनुंज महारे शरण होजो. वली परोप कारी, पुण्यवंत, मने प्राण थकी अधिक, दयावंत, धर्मनो रसियो एवो जे नीम कुमर जेने में वास्यो तो पण ते कापालिकनी साथें गुं जाणु क्यांय गयो ? तेनुं महारे शरणुं होजो एम कही पडीपाखंमीने कयुं के हवे तहारे जे करवू होय ते तुं वहेलुं कर. पाखंमी बोल्यो, तेने तो लक्षणवंतो जाणी हुँ देवनी पूजाने अर्थ लाव्यो हतो, पण ते झुं जाणियें क्यायें नाशी गयो. हवे तेने स्थानकें तुजने लणवंतो जाणीने लाग्यो बुं. माटें तेने संनास्या थी झुं वलवानुं ? ते तो श्वेतनिदु पासे बेठो . ते वात सांजलीने नीम कुमर बोल्यो. रे उष्ट पापीष्ठ ! महारा मित्रने विटंबना पमाडे ले ? ते ढुंज नीमकुमर सर्व जीवनी रक्षा करवाने सौम्य बुं, पण तहारो संहार कर वाने नीम बु. त्यारे कापालिक मंत्रिपुत्रने मूकीने नीम साहामो चाल्यो. एटाने को अवसर पामी साहसिक थइ ते कापालिकना बे पग पकडीने हेठो नांरवी हृदयनपर पग मूकीने ताडना तर्कना करवा लाग्यो. एटले देवी आकुल व्याकुल थइने बोली. रे रे नीम ! एने म मार. ए महारी से वानो करनार . मनुष्यना मस्तकरूप कमलें करीमहारी पूजानो करनार ३. ए मुऊने जेवारें एकशो ने आठ मस्तक चढावशे, तेवारें दुं एने प्रत्यद थश अने जे ए मागशे ते हूं आपीश, पण हमणां तो तहारूं पराक्रम दें खीने ढुं तहारी उपर संतुष्ठ थ . माटे कांक माग. ल्यारें नीम बो व्यो. जो मुजनपर तूती होय, तो मनें वचनें अने कायायें करीने तुं हिं सा मूकी दे. हे माता ! सर्व धर्मनुं बीज तो दया . दया होय तो सर्व मनवांबित फले. अने हिंसायें तो घणो संसार नमियें ॥ यतः॥ कृपान दीमहातीरे, सर्वे धर्मतृणांकुराः ॥ तस्याः सुखमुपेता ये, किंननंदति ते चि रम् ॥५॥ ते माटे हिंसा तजोअने समता नजो. एवं सांजलीने देवी कहे वा लागी. हे वत्स! आज थकी हुं सर्व जीवने महारा जीवसरखा जागी श. हवे कोने न मारूं. एम कहीने देवी अदृश्य थ. हवे अवसर पामीने मंत्रिपुत्र बोल्यो. हे कुमर ! तमारी स्त्री, वासनव Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. GG नमः प्रथम पोरे ग, त्यारें तमने न दीवा. तेलीयें चोकीदारने पूj. तेने पण तुं न जड्यो . त्याऐं राजाने कयुं. राजायें खोल कराववा मांमी, पण तुं न जज्यो. त्याऐं राजा राणी सर्व मूर्छा खाइने धरतीयें पड्यां. व ली चेतन वल्युं, त्यारें प्रधान पागिया सर्व चिंतातुर थइने बेठा एवामां ए क नायिका यावी कहेवा लागी, के हुं तमारी कुलदेवी बुं. जीम कुमर नी चिंता न करो, तेणें मूलथी मांगीने सर्व चरित्र कही देखा. अनेकयुं के, केटलेक दिवसें जीम कुमर घणी ऋद्धि लइने इहां यावशे. एम कहीने दृश्य इ. ते सांजलीने हुं स्मशानमां तमने खोलवा नीकल्यो. एटले ए उपाडीने मने हां यास्यो में पुष्ययोगें तमने दीवा. ते सांजलीने कापालिक बोल्यो. हे सात्विक ! तें कालिकाने दयाधर्म कह्यो ते में पल अंगीकार करो. तुं श्राजश्री महारो धर्मगुरु बो. अने ढुं तहारो सेवक बुं. तहारा केटला गुण वर्णवं. तुं गुणें करी परिपूर्ण नखो बो. वामां प्रातःकाल थयो. तेवारें पर्वत सरखी कायावालो सप्तांग प्रति ष्ठित एवो एक हाथी तिहां याव्यो. ते हाथी मंत्रिसहित कुमरने उपाडी पोतांनी पीठे आरोपीने याकाशे उत्पत्यो. त्यारें कुमर कहेवा लाग्यो के, पृथ्वी उपर एवा पण हाथी होय बे ! के जे खाकाशे उमे. त्यारें मंत्रिपु जैनधर्मे वासित थको बोल्यो. हे कुमर ! ए हाथी नथी, तमारा पुष्य नो प्रेयो कोइक देवता बे. माटे यापणने ज्यां लइ जाय, त्यांल‍ जवा घो. सर्व स्थानके पुण्यथी सारुं थशे. हवे वे जग सहित ते हाथी गगन थी देगे उतरीने एक नजड नगरने दरवाजे ते बेदुने मूकीने पोते क्यांय जतो रह्यो. त्या कुमर, मंत्रीने बहार मूकीने पोतें कौतुकनी लीधो ते न गरमां गयो. त्यां दीयें परिपूर्ण, मनोहर परंतु मनुष्यें करी शून्य बे. ए वा घर हाट जोतो जोतो ते नगरमा एक सिंहें पोताना मुखमां एक पुरु प लीधो बे. तेने कुमरें दीगे. ते देखी विचारवा लाग्यो के, या कोक देव्यानुनाव बे. एम चिंतवी विनयपूर्वक सिंहने कहेवा लाग्यो. हे सिंह ! ए पुरुषने मूक. सिंह पण ते पुरुषने पोताना पगनी वचमां घालीने शंकि. तय जीमने कहेवा लाग्यो. हे सत्पुरुष ! दुं दुधार्थी बुं, घणे काले नद मल्युं बे. ते केम मूकुं ? कुमर बोल्यो. तमे कोई देवता हो ? पण कोइक कारणें सिंह रूप कर जलाय बे. पण सांगतो. जे माटे देवताने पण Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. नए हिंसा न घटे. देवता कवलयाहारी होय नही. तथापि जो तमारे मांस नी इजा होय, तो दुं महारा शरीरनुं मांस आपुं? ते सांजली सिंह बो व्यो. हे कुमर ! तें साची वात कही, पण एवं पाबले नवें मने घणुं दुः ख दीधुं जे. जे मुखें कही शकाय नही, माटे ए पापीने ढुं सो सो नव सूधी मारूं तो पण महारो क्रोध जाय नही. कुमर बोल्यो, हे नइ ! ए तो दीन देखायो तो दीन उपर एवडो श्यो क्रोध ? वली क्रोध कस्यां पोतानो नव बगडे, माटे क्रोध मूको. इत्यादिक युक्तियें कह्यु, पण ते सिं हैं मान्युं नही. त्यारे कुमरें विचारां के, पुष्ट होय ते तो आक्रोश करे थकेज पाधरा थाय. एम चिंतवी हाथमां खड्ग लश्ने सिंहनी सन्मुख दोड्यो. सिंह पण ते पुरुषने पीठ उपर थापीने मुख विकस्वर करीने कुमर सन्मुख आव्यो. एटले कुमर खड्ग लश्ने सिंहनां मस्तकं उपर नमाडवा लाग्यो. त्यारे सिंह ते नरने त्यांज मूकीने अदृश्य थइ गयो. हवे कुमर अने ते पुरुष बेन जणा साथें राजमंदिरमा गया. त्या सर्व शून्य देखतां एक सात लूमिया महोल उपर चढया. तेमां एक काष्ठनीपू तली. तेणीयें सुवर्णमय आसन घणा आदर सहित कुमरने आप्युं. जीम पण विस्मय पामीने त्यां बेगे. दणेक था एटले स्नाननी सामग्री लावीने कहेवा लागी के, हे प्रनु ! स्नान करो. नीम बोल्यो. महारो मि त्र मतिसागर नामें बहार जे; तेने इहां लावो. ते मित्रने पण त्यां लावी, ते मित्र सहित स्नान करीने नोजन कराव्यु. सुंदर शय्या पाथरी आपी. त्यां सूता एम सविस्मय थको कुमर त्यां रह्यो , एवामां चलितकुंमलाचरण थश्ने देवता प्रत्यक्षपणें कहेवा लाग्यो. दुं तहारा धैर्ये तुष्टमात थयो . माटे वर माग. कुमर बोल्यो के, तूगे बो तो कहे तुं कोण ले ? या नगर शून्य केम ? देवता बोल्यो. या हेमपुर नगरमा हेमरथ नामा राजा राज्य करे ले. तेने चंझनामें पुरोहित ले. ते लोकने घणुं पीडे, राजा पण कान नो काचो, ते थोडा अपराधे पण घणो दंम करे. एवो पुरोहितनो जूठगे अपराध कोश्क पुरुष राजा आगल कह्यो. राजायें रूठे थके अणविचारें नाम तेल बांटीने तेने मास्यो. ते काम निर्जरायें मरीने दुं राक्षस थयो बुं, ते में पाबला नवनुं वैर संनारीने सर्व नगरीना लोक प्रबन्न कस्या जे. तथा सिंहरूप करी राजाने मुख मध्ये लीधो हतो ते तें मूकाव्यो. तथा तहारी Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बछो. स्नानादिक सर्व सामग्री में करी. तहारी अनुवृत्तियें लोक पण सर्व प्रकट करा. कुमर पण जुये बे तो नगर सर्व संपूर्ण लोके कररी वसतुं दीतुं. एवामां सुरासुरे स्तविजता एवा चारणमुनिराज आकाशथी याव्या. अनुक्रमें नगर बहार उतस्या, ते कुमरें दीठा. पढी कुमर, राजाने कहेवा लाग्यो. ए मुनिश्वरनां चरणकमल वांदीने जव सफलो करो. एम विचा री गोखथी हेगे उतरीने ॥ यतः ॥ जिने प्रणिधानेन, गुरूणां वंदनेन च ॥ न तिष्ठति चिरं पापं विहस्ते यथोदकम् ॥ ६ ॥ कुमर, मंत्री, राक्ष स ने हेमरथ राजा ए सर्व मुनि पासे गया, नगरना लोक पण याव्या, वंदना करीने यथोचित स्थानके बेठा, मुनियें धर्मदेशना दीधी के, हे नव्य प्राणि ! क्रोध न करियें. क्रोध ते महादारुण बे. पोताना यात्माने तपावे, परना यात्माने तपावे, प्रने जन्मनी प्रीतिनो दोकमां विध्वंस करे. इति ॥ सिद्धांतेप्युक्तम् ॥ यतः ॥ पुरिस वयोणदीपंतचं, यहि सिवंतो ग्रहण‍ मासवं ॥ वरिस तवं सवमाणो, हाइ हणंतो य सामन्नं ॥ ७ ॥ इत्यादिक देशना सांजलीने राक्षस बोल्यो. हे जगवन् ! या कुमरना प्रजावें गामना लोक उपरथी तथा राजा उपरथी में क्रोध मूक्यो. एवामां गजरव करतो एक हाथी त्यां याव्या. तेनेदेखीने पर्षदा बीहिवा लागी. एटले ते गजरूप मूकीने चलितकुंमलाचरण य दिव्यरूप धरीने यह थइ बेतो. त्याऐं मुनि बोल्या. हे यह ! तमारो पुत्र हेमरथ राजा तेने राखवा माटे तमे हाथीना रूपें नीम कुमरने उपाडी लाव्या. यक्ष बोल्यो. हा स्वाम। ! तमें सत्य कयुं. ए हेमर य राजा महारो पुत्र बे में परजवना स्नेहथी ए काम कस्युं. में पूर्वे सम कित अंगीकार करीने कुसंसर्गे विराध्युं. ते दोषें हुं व्यंतर थयो. ते माटे हे स्वामिन्! मने फरी समकित नचरावो, त्याऐं मुनिराज पण यक्ष, राक्ष सने राजा प्रमुख सर्वने विधिपूर्वक सम्यक्त्व देता हवा. हवे ते सर्वमुनिने वंदना करीने यज्ञादिक सर्व राजाने घेर याव्या. त्यारें मरथ राजा कुमरने विनंति करतो हवो के, हे कुमर ! या सर्व राजसंप दातमारी बे. हुं तमारी खाज्ञानो करनार बुं. तमें महारी मदालसा नामें कन्यानुं पाणिग्रहण करो. कुमर पण अति आग्रह करे थके ते कन्याने प तो हवो. एवामां ते कालिका देवी वीश जाने धारण करी कापालि क सहित विमान उपर बेसीने त्यां खावी. कुमरने प्रणाम करीने बेशीने Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासदित. १ कवा लागी के, हे नीम ! महारो हार तुं जे. ए हारमां नव रत्न वे. ते ने प्रजावें तुं त्रण खंमनो धणी यश. तथा एथी खाकाशे गमन थशे. स र्व राजा तहारी प्राज्ञायें वर्त्तशे वली सांजल हुं विमाने बेशी तहारा न गर उपर थइने जती हती, तिहां तहारा माता पिता तथा नगरना लोक तुमने घणुं संनारे बे. तहारे विरहें तहारा माता पिता घणा विलाप करे बे. ते सांगली में तेमने कह्युं के, वे दिवसमां नीम कुमरने हुं तेडी खातुं बुं. माटे हे नीम ! तमे चालो. ते सांजली जीम कुमर पोताना नगर न एपी जवाने नजमाल थयो. एटले यह विमान विकुर्विने कहेवा लाग्यो हे कुमर ! या विमानमां बेशीने पोताने नगरे जान. त्यारें हेमरथ राजा प घणां हाथी, घोडा, यानरण, रत्न प्रमुख कुमरने व्यापतो हवो. पण ही हेमरथ राजानी खाज्ञा लेने विमानमां बेसी कन्या ने मंत्री सहित पोतानी नगरी जणी चाव्या. हाथी, घोडा, पा यक प्रमुख सर्व जूं उपर चालता हवा. अनुक्रमें घणा यामंबरयी कमल पुरना वनमां पहोता. त्यां चैत्यने विषे यह रासादिक सहित नीमकुमर, परमेश्वरनी स्तवना करी पादविहारे पिताने नमवा चाल्यो. पिताने पण व नपाल वधामणी दीधी के, हे स्वामिन् ! नीम कुंमर याव्या बे. ते सांजली राजायें पोताना यारण सर्व वनपालकने खाप्यां. सर्व नगर शलगायुं. प्रधान प्रमुख सर्व सामा याव्या. नीम पण ते सर्वने यावता देखी माता पिताने चरणे नम्यो, सहुने दर्ष थयो, सर्व स्थानकें पहोता, जोजन करयां, मंत्री सर्व वृत्तांत राजाने कही संजनाव्यो. राजा घणो रीज्यो. पी घणी राजकन्या कुमरने परणावता हवा. अनुक्रमें कुमरने राज्यानिषेक करीने हरिवाहन राजायें गुरु पासें दीक्षा लीधी. जीम राजा जैनशासननो घणो प्रजावक थतो हवो. अनुक्रमें ते त्रण खंमनो नोक्ता थयो. ए रीतें देव तानी पेठें सुख जोगवतां पांत्रीश हजार वर्ष व्यतिक्रम्या. एक दिवसें वनपालके यावी राजाने वधामणी दीधी के, हे. राजन ! मासागर नामें आचार्य चार ज्ञानना धणी घणा साधुयें परिवस्था थका आपणा सहस्राम्र वनने विषे पधारया बे. राजा पण वधामणीयाने शीख यापीने परिवारसहित वंदना करवा श्रावतो हवो. गुरुने वांदी यथोचित स्थानकें बेशी सर्व धर्म सांजलवाने इबता हवा. गुरु पण धर्मदेशना देता Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए जैनकथा रत्नकोष नाग हो. हवा ॥ यतः ॥ स्वर्णस्थाले पिति स रजः पादशौचं विधत्ते, पीयूषेण प्र वरकरिणं वाहयत्येंधनारम् ॥ चिन्तारत्नं विकिरति कराहायसोफायनार्थ, यो फुःप्राप्यं गमयति मुधा मर्त्यजन्म प्रमत्तः ॥ ७॥ अपारे संसारे कथम पि समासाद्य नृनवं, न धर्म यः कुर्याविषयसुखतृमातरलितः ॥ बुमन पा रावारे प्रवरमपहाय प्रवहणं, स मुख्यो मूर्खाणामुपलमुपलब्धुं प्रयतते ॥ए॥ इत्यादि देशना सांजलीने राजा हाथ जोडीने पूबतो हवो के, हे जगवन ! में पाबले नवें गुं पुण्य कस्युं हतुंके,जेथीबाटलुंसुख पाम्यो? गुरु बोल्या सांजल. प्रतिष्ठानपुर नगरने विषे देवदत्त अने सोमदत्त एवे नामें बे जा वसे बे. पण ते माहोमांहे देष धरे, अमर्ष वहे. तेमां महोटा नाइने पुत्र न थवाथी घणी स्त्रीयो परण्यो, पण पुत्र न याव्यो. ते एक दिवस कोक गामें उघराणी जाय , वाटमां जतां दावानल दीठो. तेमां एक सर्प ब लतो आकुल व्याकुल थतो दीतो. त्यारे देवदत्तना मनमां दया आवी के, जो ए सर्प नगरे तो ढुं सर्वे पाम्यो जे माटें सर्व प्राणीने जीवितव्य व हालुं जे. एम विचारीने पोताना जीवितव्यनी अपेक्षा अण करतो दावा नलमाथी सर्प काढतो हवो. तेने कष्टथी राख्यो, ते वेला थाकलं पुण्य न पायु ॥ यतः ॥ क्रीडानः सुरूतस्य सुष्कतरजःसंहारवात्यानमो, उर्वार व्यसनाग्निमेघपटली सम्यक्त्वदूती तथा ॥ निश्रेणी त्रिदिवौकसः प्रियस खी मुक्तेः कुगत्यर्गला, सत्त्वेषु क्रियतां रुपैव नवतु क्वेशैरशेषैः परैः ॥१०॥ वली एक दिवस नोजन करवा वेसतां मासखमणनां पारणार्थी मुनिरा ज पधाख्या. तेमने घणा हर्षे करी प्रतिलान्या. अनुक्रमें आनखाने क्ये मरण पामीने तुं इहां राजा थयो बो. पूर्वनवें सपने कप्पथी मूकाव्यो ते पुण्यें तहारु कष्ट गयु, अने राज्य पाम्यो. तथा पूर्वनवनोनाइ सोमदत्त ते हमणां कापालिक थयो. ते पाबला नवना अन्यासथी तहारा उपर ष धरतो रह्यो. ते माटे हे नीम ! तुं दया पालजे. अने हिंसा त्यजजे. एवं सांनली नीमराजाने जातिस्मरण ज्ञान उपन्युं, पूर्वनव दीतो. गुरु उपर प्रतीत यावी. त्यारे वैराग्य पामीने गुरुने विनंति करी, हे जगवन् ! कृपा करीने इहां चोमासुं रहो तो घणो लान थशे. गुरु पण लान जागीने त्यां चोमासुं रहा. राजायें समस्त देशने विषे अमारीनो पडहो वजडाव्यो. नवां जिनचैत्य कराव्यां. निरंतर व्याख्यान सांजलतां, चोमासाने अंते Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए३ गौतमकुलक कथासहित. चारित्र अंगीकार कझुं. हवे नीम मुनि, गुरु साथै विहार करतां, निरति चार चारित्र पालतां, अनेक जीवने प्रतिबोध देतां, केवलज्ञान पामी पर मानंद पद पाम्या. इति नीमकुमरनी कथा. श्रीपार्श्वनाथ चरित्रमा विशेष ले. हवे, आगल्या पदमां विष तथा अमृत सप्रतिपदें उदाहरणसहि त कह्यां, तेज माटे शत्रु तथा मित्र सप्रतिपदें देखाडे ने. ॥ माणो अरि किं एटले इहां गुरु प्रत्ये शिष्य पूछे ले के, हे स्वामिन् ! (अरि किं के०) शत्रु ते कोण ? त्यारे गुरु कहे जे के, (माणो के०) मा न. एटले ए नाव जे मान जे जे ते आत्माने शत्रुतुल्य २ ॥ मागेण यह मा गइ ॥ इति वचनात्. ते मान आठ प्रकारनो डे यतः॥ जाति लानकु लैश्वर्य, बलरूपतपःश्रुतैः ॥ कुर्वन् मदं पुनस्तानि, हीनानि लनते जनः॥११॥ तिहां प्रथम जातिमद नपर हरिकेशीना पाबला जवनों दृष्टांत कहे . __ मथुरा नगरीने विपे शंखराजा राज्य करे , ते राजा घणो न्यायनि पुण ने. एक दिवसे ते शंख राजा गुरुपासे धर्मदेशना सांजली वैराग्य पा मी चारित्र लेता हवा. ते तपस्या करतां घणा लब्धिपात्र थया ले. एकदा निदाने अर्थ हविणारनगरमां गया ,त्यां मार्गने अजाणता कोइ सोम देव नामें पुरोहित हतो, तेने मार्ग पूज्यो. पण ते पुरोहित मुनिना वेष नो देषी बे, वली ते नगरमां वे मार्ग बे, तेमां एक मार्ग व्यंतरयधिष्ठि त , तेथी जे कोइ ते मार्गे जाय, ते बलीने राख थइ जाय, एवी नष्ण धरती विकुर्वी जे. बीजो मार्ग पाधरो बे, पण पुरोहितें मुनिने व्यंतरअधिष्ठि त मार्ग देखाड्यो. मनमां जाएओँ के, ए बली नस्म थाय तो कौतुक जोश्य ! हवे साधुतो ते मार्गे चाल्या, तेवार ते व्यंतर पण साधुना तपतेजयी नागे. तेथी मार्ग शीतल थयो. शंखराजर्षितो र्यासमितियें हलवे हलवे चाल्या जाय जे. त्यारें सोमदेव पुरोहितें गोखमां वेतां विचायुं के, अहो! ए धर्म महोटो के. जे माटे एवो मार्ग ते पण एने प्रनावें शीतल थयो. तेमाटे ए वेषने धन्य , अने ए मार्गने पण धन्य जे. एम चिंतवी गोरख थी तो उतरी साधुने पगे लागी. कहुं हे स्वामिन् ! में अज्ञानपणे महा पाप कयुं. महारो अपराध खमो. साधुयें पण योग्य जाणी धर्म कह्यो. ते सांजलीने पुरोहित प्रतिबोध पाम्यो. मनमां विचायुं के, ए मुनिराज महा उपगारी जे. जे माटे में अपराध कस्यो, तो पण एवं मुझने धर्म समजा Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. वीने उपगार कस्यो ! पनी कयुं के हे स्वामिन् ! संसार समुश्मा चारित्ररू प प्रवहण देइने मने तारो. गुरुये पण तेने चारित्र अंगीकार कराव्यु. ते निरतिचार चारित्र पाले, पण ब्राह्मणजाति माटे जातिमद घणो कस्यो ते थी नीच गोत्र कर्म बांध्यु. बहुकाल चारित्र पाल्युं पण अंते मद कस्यो ते आलोव्यो नहि, पनी काल करीने देवता थयो. त्यां बहुकाल सूधी देवता ना जोग जोगवीने नीच गोत्रनामकर्मने नदये ते सोमदेव पुरोहितनो जीव गंगाने कांठे बलकोट नामें चंकाल रहे , तेनी गौरी नामें नार्यानी कूखें यावी उपन्यो. एथी बागल ए कथा “अनूसणो सोह बनयारी" त्यां लखाशे इति श्रीउत्तराध्ययनसूत्रवृत्तो ॥ए जातिमद उपर कथा कही. हवे लान.मद नपर सुनूम चक्रवर्तिनी कथा कहे ले. ॥ वसंतपुरनगरे जेनी सर्व वंश उन्जेद पाम्यो जे एवो एक बोकरो हतो. ते देशांतर जमतो एक तापसनी पालीमा गयो. ते तापसनुं जम एवं ना म. ते तापसें बोकराने महोटो कस्यो. अनुक्रमें जमनो पुत्र माटे जम दग्नि नाम कहेवाएं. ते पण घोर तपस्या करवा लाग्यो. तेथी लोकमां प्र सिदि पाम्यो. एवा अवसरमां एक विश्वानर देवता ते श्रावक बे, घने बीजो धन्वंतरि नामें देवता ते तापसनो नक्तिवंत जे. ए बेद देवोने मां होमांहे विवाद थयो. एकें कह्यु साधु दृढधर्मी होय, अने बीजायें कह्यु के तापस दृढधर्मी होय. पनी बेदु जणें विचार कस्खो के, तापस तथा सा धुनी परीक्षा करिये. त्यारें श्रावक देवता बोल्यो के, अमारो सर्वमा नवो जे साधु होय तेनी परीक्षा करियें, अने तमारो सर्वमा प्रधान मुरव्य जे तपस्वीहोय, तेनी परीक्षा करिये. एवो ठेराव बेहु जणे कस्यो. एवा अवसरमा मिथिला नगरीने विषे ताजो धर्म पामेलो एवो पद्मर थ नामें राजा ते चंपानगरीमा श्रीवासुपूज्य स्वामिनी प्रतिमा पासें चारि त्रलेवा जाय .ते राजानी परीक्षा करवा माटें देवतायें तेना चालवाना मार्गमां देडकी विकुर्वी. ते देखीने मेघकुमारना जीव हाथीनी परें तेरा जायें पोताना पग उँचो राखी मूक्यो,पण आगल न चाल्यो. इहां कोई कहे ले के देवता सिह पुत्रनुं रूप करी राजा पासें गया, अने चमत्कारनी वातो देखाडीने कयुं के तुं ए धर्म हमणां म कर. तहार आउ घणुंडे. त्यारें Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हए। गौतमकुलक कथासहित. राजा बोल्यो. जो घणुं आज हशे, तो घणो धर्म सधाशे. इत्यादिक घणा प्रकारें बलकरतां पण ते देवो राजाने चलावी न शक्या. पली जमदग्नि तापस पासें गया. त्यां पंखीनुं रूप करी तापसनी दाढीमां मालो कस्यो, अने पंखी पंखणीने कहेवा लाग्यो, हे न ! हुँ हिमवंत पर्व ते जावं बुं, त्यारे ते पंखणी तेने जवा न देतां कहेवा लागी के, तमे पा बा न घावो. त्यारे पंखीयें सम खाधा तो पण न मान्युं. त्यारे गोहत्या, ब्रह्महत्या, स्त्रीहत्या अने बालहत्यानु पाप कबूल कयुं, तो पण न मान्युं. पली पंखणीयें कडं जो तुं ए जमदग्नीनुं पाप ताहरे माथे ले, तो हुँ तुक ने जवा देनं. ते सांजलीने जमदग्नि रूठो, वेदु हाथें वे पंखीने पकडीने कारण पूबवा लाग्यो. त्यारे ते बोल्या, तमारे पुत्र नथि, अने पुत्र विना गति नथी॥ यतः ॥ अपुत्रस्य गतिर्नास्ति, स्वर्गों नैव च.नैवं च ॥ तस्मात्पुत्रमु खं दृष्ट्वा, स्वर्ग गहंति मानवाः ॥ १२ ॥ ते सांजलीने तापस खोनाणो अने विचायुं के ए साचुं कहे , तेथी तप मूकीने मृगकोष्ठ नगरे गयो. इहां ते वे देवतामांथी मिथ्यात्वी देवता समकित पाम्यो. हवे ते नगरमां जितशत्रु राजा राज्य पाले , तेनी पासें गयो. राजा पण पगें लागी कहेवा लाग्यो के, तमने गुं आपुं ? तापस बोल्यो के, त दारे सो कन्या ,तेमांथी एक कन्या मने आपो. राजा पण शापथी बीहि न्यो थको बोल्यो के, जे कन्या तमने ले ते कन्या तमो व्यो. ते सांजली ने तापस अंतेउरमा गयो. तेने देखीने सदु कन्यायें श्रुथुकार कस्यो. एवी ते कन्याउनी निर्जर्सना जोड्ने तापसें सर्वने शाप देश कुबडिन करी मूकी. एवामां एक लघु कन्याने धूलमां रमती देखीने एक फल आप्यु. ते फल कन्यायें लीधुं. त्यारें तापसें राजाने कह्यु के, आ बालकन्यामने श्वेने एम कहीने तेने अंगीकार करी एटले कुबडी कन्यायें प्रार्थना करी. तेने साली जाणीने साजी करी. अनुक्रमें ते कन्याने आश्रमें लावी पाणिग्रहण कयु. दवे रुतु अवसरे स्त्रीने कहेवा लाग्यो के, तहारे माटे ब्राह्मण संबंधि चरु मंत्र्यो , ते जम्या थकां ताहारे घणो सुंदर पुत्र आवशे. त्यारे ते स्त्री बोली के, महारी नगिनी हबिणानर नगरमां अनंतवीर्य राजानी जार्या डे, ते माटे एक क्षत्रिय संबंधी चरु पचावो. जेथी महारी नगिनी रूडो पुत्र प्रसवे. ते सांजलीने तेंगे बे चरु पचावीने स्त्रीने याप्या. स्त्रीय विचा Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. युं के जो हुं ब्राह्मण संबंधी चरु जमीश, तो जेम हुं वनमां रजनुं बुं तेम महारो पुत्र पण रऊनशे, एम चिंतवीने त्रियसंबंधी चरु पोते खाधु, ने बीजो चरु नगिनीने मोकल्यो. अनुक्रमें तेने राम नामें पुत्र थयो. तथा बनने कृतवीर्य नामें पुत्र थयो. पढी ते तापस पुत्र राम यौवन पामे के त्यां एक विद्याधर खाव्यो, ते अकस्मात् मांदो पड्यो रामें तेनी घी चाकरी करी. त्यारें ते विद्याधरें परशुनी विद्या यापी रामें ते वि द्या साधी तेथी परशुराम एवे नामें विख्यात थयो . हवे ते परशुरामनी माता बनेवीने घेर पोतानी बहेनने मलवा गइ बे. त्यां अनंतवीर्य नामें बनेवी साथें व्यनिचार सेव्यो, तेथी एक पुत्र याव्यो. ते जोइ जमदग्निने क्रोध चढ्यो, तेवारें ते रेणुकाने पुत्रसहित त्यांथी लावतो हवो. ते जा ीने परशुरामें परशीयें करी अनंतवीर्यने माखो. त्यार पढी अनंतवीर्य नो पुत्र कृतवीर्य राज्ये बेतो. कृतवीर्य पण परशुरामथी पोताना पितानुं मरण जाणीने जमदग्निने मारतो हवो. तेवारें परशुरामने रीस चढी. ते णें जाज्वल्यमान परशु लेइने संग्राममां कृतवीर्यने मारी पोतें राज्यें बेगे. कृतवीर्यनी राणी नासीने तापसने याश्रमे गइ तिहां जयविव्हल थकां पुत्र प्रसव्यो. तेनुं सुनूम नांम दीधुं, ते तापसने याश्रमें महोटो थयो . हवे परशुरामनी परशी त्रीनी समीपे जाय, एटजे ज्वली उठे. एक दिवस परशुरामने तापसना याश्रमनी पासें थइने जतां परशी ज्वलववा लागी. त्याऐं परशुराम बोल्यो के, इहां कोइक क्षत्रिय ले ? ते सांगली ताप सो बोल्या के, इहां तो मे छत्रिय बियें. गमे तो मार. त्यारे तेनी शंका टली. एम अनुक्रमें परशुरामें सात वार निःक्षत्रिय पृथ्वी करतां क्षत्रिय नी दाढाये करीने थाल जो हवे परगुरामें निमित्तियाने पूढचं के, महा मरण कोनाथी बे ? निमित्तियो बोल्यो. जे सिंहासनने विषे बेशसे, अ ने जेना देखतां दाढाउनुं खीर यशे, ते खीरने जे खाशे, तेनाथी ता हरुं मरण. जाणजे. ते सांजलीने तेने जाणवा निमित्तें परशुरामें दानशा ला मंमावी, सिंहासन मंमाव्यं तेनी खागल दाढाउंनो थाल मूक्यो. वामां वैताढ्यपर्वतें मेघनाद नामा विद्याधर बे, तेणें निमित्तियाने पूधुंके, महारी पद्मश्री नामें पुत्रीनो नर्त्तार कोण यशे ? निमित्तियो बो ल्यो. सुनूम चक्रवर्ती थशे. ते दिवसथी मेघनाद विद्याधर नित्यप्रत्यें सुनू Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ए मनी सेवा करे. एवामां सुनूम यौवनमां श्राव्यो थको नोयरामा रहे . माटेमाताने पूजे के,लोक एटलोज डे ? त्यारें मातायें सर्व वृत्तांत कह्यो. ते सांजलतांज अहंकार करीने हस्तिनागपुरें गयो. तिहां दानशालाने को जना पमाडतो, पूर्वोक्त सिंहासने वेतो. एवामां थालमां नरेली दाढा सर्व खीर थइ गइ, ते जो चाकर लोक सूनुमने मारवा लाग्या, तेने मेघनादें ताडना करी दूर कस्या, सुनूम स्वस्थ थश्ने ते खीर खा गयो,चाकर लोकें परशुरामने खबर कही, तेणे पण संनब थइ सुनुमनी उपर पर मूकी ते जेम सूर्यनी बागल दीवो उल्हा जाय. तेम सूनूमनी आगल परशु ननाइ गइ. सुनूम पण धरती पबाडी उनो थयो. तेज थाल हाथ मां लीधो एटले थाल ते चक्र थ६ गयुं, ते चक्रे करी परशुरामनुं मस्तक बेदीने सुनूम पोतें राज्यनो धणी थयो. ... . ___ हवे ते सुनूमें अहंकारें करी तथा रो करी एकवीशवार निर्ब्राह्मणी पृथ्वी करी, मेघनाद विद्याधरनी पुत्री परण्यो. अनुक्रमें न खंम साधीने चक्रवर्ती पदवी पाम्यो. वली पोतानी ईश्वरता ठकुराइ देखी अहंकारें न राज विचारां के, खंमतो सर्वे चक्रवर्ती साधे , तो महारी ए काम नो श्यो विशेष? माटे ढुं धातकी खमनाउ खेम साधुं. एम चिंतवी थं त अवस्थायें ब खंमनी दिलेश्ने लवणसमुश् मध्ये चर्मरत्न उपर वे तो. त्यारें चर्मरत्नना एक अधिष्ठाय विचास्युं, जे हुँ एक चर्म नही नपा हूं तो चालशे, कारण के बीजा घणा देवता उपाडनारा ले. एम सम काले हजार देवतायें विचारीने चर्मरत्न मूकी दीधुं. तेथीन खमनीश विसहित सुजुम समुश्मा बुडी मु! मरीने सातमी नरके उपन्यो. इत्या दि कटुक फल पाम्यो, ए रीतें एने अहंकार तेज शत्रु थयो. इति आवस्य कनियुक्तौ. समुश्मां बुज्या ए अधिकार सर्व वडेरा सनाय प्रमुखमां था णे. तेथी लख्यो ने. अन्यथा ग्रंथोक्त नजरमा नथी आव्यो; पण पड घोष साचो ने, नहिं तो वडेरा लावे नही. हवे त्रीजा कुलमद नपर मरीचिनो दृष्टांत कहे . यथा॥श्रीषनदेव स्वामीना पुत्र, जरत महाराजा, तेनो मरीचि नामें पुत्र; श्रीवीरस्वामीना स्थूल सत्तावीश जवनी अपेक्षायें त्राजा नवें उपन्यो. ते ऐ श्रीषनदेव स्वामीनी पासे देशना सांजली वैराग्य पामीने चारित्र ती Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (G जैनकथा रत्नकोष नाग हो. धुं. स्थविर पासे अगीयार धंग नण्यो. एक दिवस उष्णकाल आव्यो, त्यारे तापादिकें पीडा पामतो चिंतववा लाग्यो के, संयमनार तो कुःखें वहेवाय. ढुंतो निर्वाह करी न शकुं, अने घेर जq ते पण रूडं नही. एबुं विचारी ने एक नवो वेष पेदा कस्यो के, साधुतोत्रण दंगथी विरम्या , अने हुँ तो नथी विरम्यो, तेमाटे महारे त्रिदंमनुं चिह्न हो. तथा साधुयें इव्यथी केशनो लोच कखो , अने नांवथी क्रोधादिक मुंमाव्या डे, अने ढुंतो ए वो नथी माटे ढुं कुरमुंमन अने शिखा राखीश. तथा साधु सर्वप्रा पातिपातथी विरम्या बे; अने ढुं नथी विरम्यो, माटें मुझने स्थूलथी ते हो. तथा साधु शीलसुगंधी ने, अने ढुं तेवो नथी माटे महारे चंदनादिकें विलेपन हो. तथा साधु तो मोहरहित , अने हुँ तो मोहें ढाक्यो बुं ते माटें महारे बत्र हो, तथा. साधुना पगें उपानह नथी, अने महारे नपा नह हो. तथा साधु कषायरहित बे, अने हुँ तेवो नथी माटे महारे क पायिक वस्त्र हो. वली साधु तो स्नान थकी विरम्या , अने महारे तो परि मित जलें स्नान पान था. एम पोतानी बुद्धियें परिव्राजकनो वेषलीधो. पली लोक नवो वेष देखीने धर्म पूजे, तेने मुनिनो धर्म संनलावे, देश ना शक्तियें अनेक राजपुत्र प्रमुखने प्रतिबोधीने प्रनुने शिष्यपणे थापे. प्र नुनी साथेंज विहार करे, पडी एक दिवसने विषे प्रनुजी अयोध्या नगरी ये समोसस्या. नरत राजा वंदन करवा आव्या, नरतें पूब्यु के, हे नगवन्! श्रा पर्षदामां कोई एवो जीव डे के, जे या जरतमां आ चोवीशीमां ती र्थकर थाय ? प्रनु बोव्या. हे नरत ! तहारो मरीचि नामें पुत्र या चोवीशी मां चोवीशमो तीर्थकर थशे. वली महाविदेहने विषे मूका राजधानीमा प्रिय मित्र नामें चक्रवती थशे. तथा एहज नरतमा त्रिष्टष्ठ नामा प्रथम वा सुदेव थशे. एवं सांजलीने जरत चक्री हर्ष पामतो मरीचिनी पासे आवी त्रण प्रदक्षिणा देश वंदना करीने कहेवा लाग्यो. हे मरीचि ! जेटला जग त्मा लान तेटला तेंज पाम्या ने. जे माटे तुं तीर्थकर तथा चक्रवर्ती ते मज वासुदेव थश्श. वली ढुं तहारा परिव्राजकपणाने नथी वांदतो; पण तीर्थकर थश्श, माटे वांडं. एम वारंवार स्तवना करी जरत पोताने स्थानकें गयो. मरीचि पण ते सांगतीने हर्षना न क थकी त्रिपदी था स्फोटन करी नाचतो थको एम कहेवा लाग्यो के, ढुं पहेलो वासुदेव थ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एए गौतमकुलक कथासहित. इश, चरम तीर्थकर थश्श, अने मूका नगरीयें चक्रवर्ती पण थइश, तेमा टे महारुं कुल उत्तम बे. वली नव वासुदेवमा प्रथम वासुदेव हुँ, तथा बा र चक्रवर्तीमा प्रथम चक्रवर्ती महारो पिता, वली चोवीश तीर्थकरमा प ए प्रथम तीर्थकर महारा पितामह (बापना बाप) श्रीषनदेवजी थया, माटे महारं कुल उत्तम . ए रीतें मद करवाथी ते मरीचि नीच गोत्रक म बांधतो हवो ॥ यतः ॥ जातिलानकुलैश्वर्य, बलरूपतपःश्रुतैः ॥कुर्व न मदं पुनस्तानि, हीनानि लनते जनः ॥ १॥. ए कर्म मरीचीने नवे बांध्यु. ते श्रीवीरस्वामीना नवमां पण अखेराजूत ब्राह्मणने कुले प्रनु उपन्या. ए कथा श्रीहेमचंज्ञचार्यकृत श्रीवीरचरित्रमा ने. हवे चोथा ऐश्वर्य मद उपर दशार्णन राजानो दृष्टांत कहे जे. ॥ दशाणपुर पाटणने विषे दशार्ण जइ राजा राज्य करे ले. त्यां एकदा श्रीवीरस्वामी दशार्ण पर्वते आवी समोसस्या. वनपालकें राजाने वधामणी दीधी. ते सांजली हर्ष पामीने राजायें आसनथी उठी उत्तरासंग करी पर मेश्वरना सन्मुख सात आठ पगलां नरीने श्रीवीतरागने विधिपूर्वक वंद ना करी पाना सिंहासने वेसीने वधामणियाने महादान आपीने विचास्युं के, प्रनाते जगजुरुने जेम कोश्ये न वांद्या होय, ते रीतें दुं वांदीश. एवं चिंतवी रात्रिने विषे नगर सणगाडे, पताका उनी करी, हाटें शोना क री, सुगंधि पाणीयें करी धरतीने विपे बटकाव कराव्यो, रत्ननां तोरण पुत लियोयें सहित एवा मंचातिमंचनी श्रेणी विराजित करी, गम नामने विषे कृष्णागुरु प्रमुखनी धूपघटी प्रकट करावी. स्थानके स्थानके नाटक मंमाव्या. प्रातःकाले शणगार करी राजा गंधहस्ति नपर बेसी सर्व सामंतें परिव खो, सर्व रुक्षि सहित तथा जेणें रूपें करी इंशणी सरखीने पण जीती एवी पांचशे अंतेतरी प्रत्येकें शिबिकारूढ थकी, साथें चालती, तथा अढार हजार हाथी, चोवीश लाख घोडा, एका| कोड पायदल अने ए कवीश हजार रथ इत्यादिक परिवार परिवस्यो, सर्व जगत्ने तरणा बरो बर गणतो, नगरमांथी श्रीमहावीर परम गुरुने वांदवाने निकल्यो. पगले पगले वाजिंत्र, गीत अने नाटक जोतो थको, याचकोने यथा इबायें दान दे तो, अनुक्रमें दशाण नामा पर्वतने विषे पहोतो. प्रजुने देखी हाथीथकी हेठो Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. उतरी समवसरणमा पेसवानी विधियें पेशीने त्रण प्रदक्षिणा देश वीतराग ने नमस्कार करी यथोचित स्थानके बेठो. एवा अवसरे सौधर्मे झाने करी देखीने चित्तमां चमत्कार पाम्यो थको विचारतो हवो के, अहो ! विश्वपूज्यने पूजवानो ए राजाने अत्यंत राग ! पण हा इति खेदे ! मानें करी दूषित ! ! जे कारण माटे सर्व सु रासुरना इंश मलीने पोतानी सर्व कहियें करी समकाले पूजा करे, तो प ए श्री परमेश्वर देव अनंतगुणी न पूजाय. कारण के, गुण अनंत अने पू जा तो मानोपेत बे, ते माटे ए राजानो मान मूकाववाने यत्न करगुं. __ एम चिंतवी ऐरावण देवता पासें चोशठ हजार चालता पर्वत सरखा हाथी कराव्या. ते एकेक हाथीने पांचशेने बार मस्तक , एकेक मुखें या त यात दंतूशल एम सर्व मली एक हाथीना ( ०ए६) दंतूशल थाय. ते एकेक दंतूशले आठ आठ वावडियो करी. ते वावडियो (३२७६७) थ, एकेक वावडीने विषे आठ आठ कमल , ते कमल सर्वे (२६२१४४) थयां. एकेक कमलने विषे लाख लाख पांखडी ते पांखडीयो सर्वे (२६२१४४00000) बबीशशें कोड, एकवीश कोडने, चुम्मालीश ला ख थाय. ते कमलना वचमां कर्णिका, ते नपर एकेको प्रासाद, ते प्रासा दने विषे इंश्महाराज आठ अग्रमहिषीयुक्त बेठा थका कमलना पत्र प त्रने विपे जे नाटक थाय , ते जुए जे. ए एक हाथीनी रीति कही, ए रीतें चोश हजार हाथीने परिवार इंऽ याव्या ते चोरात हजारने पांच शे बारें गुणतां (३२७६0000) मस्तक थाय. तेना दंतूशलनी संख्या (२६,२१,५४०००) तथा (२०,ए,७१,५२०००) बशें क्रोड, नव कोड, ए कोतेर लाखने बावन हजार एटली वावडी थाय, तथा (१६७७७२१६०००) सोलशेने शितोतेर कोड, बोतेर लाख, ने सोल हजार एटली कमलसं ख्या जागवी, अने कमल जेटलीज इंनी संख्या पण जाणवी, तेथीव ली इंशणीनी संख्या बागुणी जाणवी. इत्यादिक शदियें करी इंइ महा राज श्रीजिनराजने नमस्कार करवा आव्या. ते इं हाथीउपर बेठा थ कां परमेश्वरने प्रदक्षिणा देश वांदता हाथीना आगल्या बे पग पबरमां मग्न थया, ते कारणे गजायपद एवे नामें ते तीर्थ कहेवाएं. हवे दशार्णन राजा सौधर्मेझ्ने देखीने चिंतववा लाग्यो के, अहो Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ गौतमकुलक कथासहित. इंग्नु रूप ! अहो झदि ! अहो इंशणीनो समूह !! अहो नक्ति ! अहो श क्ति ! जे वस्तु देखिये बियें, ते सर्व आश्चर्यकारी , है है ! धिक्कार पडो मने ! कूमाना देडकानी पेठे में फोकट दिनो अहंकार कस्यो, तेथी ढुं लघुता पाम्यो. तेमाटे ए अनर्थनी दायक लक्ष्मी सयुं. एम विचा री ते राजायें पंचमुष्टि लोच करी श्रीमहावीर पासें दीक्षा लीधी. तेवारें इंश महाराज विचायुं के, ढुं हास्यो. महाराथी ए चारित्र न ले वाय. एम चिंतवी दशार्णन मुनिने नमस्कार करीने बोल्यो. हे राजर्षि ! तमे धन्य बो, फुःखें करी पूराय एवी तमें पोतानी प्रतिज्ञा पूरी करी ! ए म वारंवार स्तवना करीने सौधर्म स्वर्गे पधारता हवा. दशार्ण नइ राज र्षि पण चारित्र पाली घाति कर्म क्ष्य करी केवल ज्ञान पामी अघाति कर्म क्ष्य करी मोदें पधाया ॥ इति वृंदावृत्तौ ॥ ए ऐश्वर्यमदनी उपर कथा ॥ हवे पांचमा बलमद नपर श्रेणिक राजानो दृष्टांत कहे . ॥जेम श्रेणिक राजायें सगर्ना मृगली बारों करी हणी, अने पोताना बलनो गर्व कस्यो, तेथी नरकनुं आन बंधाएं. ए कथा पडघोषथी सां नलीने लखी . पण कथा पत्र ग्रंथ सांजरतो नथी. अथवा बलना मद थी श्रीवीरस्वामीना जीवें निया| कस्युं के,महारा तपफलें करी ढुं महा वीर्य वंत पराक्रमी थजो. तेथी त्रिप्टष्ठ वासुदेव थ. नरकें गया. इति बलमद. हवे सूप मद नपर सनत कुमार चक्रवर्तीनी कथा कहे . ॥ थोवेणवि सप्पुरिसा, सणंकुमारुत्व के बुज्जति ॥ देहे खण परिहा णी, जं किर देवेहिं से कहियं ॥ १ ॥ कुरु देशने विषे हस्तिनागपुरें कुरुवं शनो अश्वसेन राजा राज्य करे जे. तेने सहदेवी नामक पट्टराणी घणी शीलवंती सौनाग्यवंती हती. एकदा तेनी कूखे गर्न रह्यो. तेना योगें रा त्रिमा गजषनादि चौद स्वप्नां दीठां. अनुक्रमें संपूर्ण मासे पुत्रजन्म थ यो तेनुं सनत्कुमार नाम थाप्यु. साडी एकतालीश धनुष शरीरमान, त्र ण लाख वर्ष, आन, महारूपवंत जगत्मां एवं उत्कृष्ट रूप कोनुं नथी. अनुक्रमें ब खंम साध्या. चौद रत्न, नव निधान, बत्रीश हजार देश, चोरा शी लाख हाथी. चोराशी लाख घोडा, चोराशी लाख रथ, बन्नु कोड पा यदल अने चोशत हजार स्त्रियो इत्यादिक महा चक्रवर्तीनी पदवी पाम्यो. त्या राज्याभिषेकनो अवसर थयो. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ जैनकथा रत्नकोष नाग बडो. " एवा समयने विषे सौधर्मेंदें उपयोग दीधा के, सनत्कुमारने राज्या निषेकनो अवसर बे ने एतो पूर्व नवें महारा सरखा सौधर्मेड् हता. rat चित्तमां राग प्राणीने वैश्रमण देवने बोलावी कह्युं के, सनत्कुमार म हारो बांधव बे, माटे एना राज्यानिषकने अर्थे हार, वनमाला, बत्र, मु कुट, चामरयुग्म, कुंमलयुग्म, पादपीठसहित सिंहासन, धने पाडुका एटलां वानां लइ जइ नेटणुं मूकीने कहे जो के, शक्र तमने सुखशाता पूढे बे. ते वचन वैश्रमण देव प्रमाण करीने हस्तिनागपुरे याव्यो. वली झें निषेक महोत्सवने अर्थे अप्सरा पण मोकली. हवे वैश्रमण देव नेटणुं मूकीने सनत्कुमारने कहेवा लाग्यो. हे स्वा मिन ! तमारा राज्यानिषेकने अर्थे शक्रे मुने मोकल्यो बे. ते वात चक्रव तीयें अंगीकार करी. त्यारे वैश्रमण देवें योजन प्रमाण मणिपीठ रच्युं. ते उपर रत्नमय मंरुप रच्यो, तेना मध्य जागे मणिमय पीठिका रची. ते व पर सिंहासन रच्युं. त्यां बेसाडीने खीरसमुड़ना पाणीयें रत्न कनकना क शो नरी जय जय शब्द यते मांगलिकनां गीत गाते, बहुवाजिंत्र वाजते, अनिषेक करता हवा. रंजातिलोत्तमान पण सर्व अलंकारें विनूषित करती हवी, पी घणा यामंबरें गजपुरमा प्रवेश कराव्यो. त्यां ते चक्रवर्ती, मनुष्य संबंधी पंच विषय सुखनो अनुत्तर जोगी थको काल गमावे बे. एकदा सौधर्म सनाने विषे सौधर्मे सिंहासन उपर बेठा देवांगनानां नाटक जोता का विचरे बे. एवा व्यवसरें एक संगम नामा देवता ईशा न देवलोकनो वसनारी सौधर्में पासे यावतो हवो. ते देवतानी कांतियें करी सर्व देवतानुं तेज नाश पामतुं हवं. जेम सूर्यप्रनायें ग्रहगए थ ने तारा निस्तेज थाय, जेम गमे तेवा तार्किक होय पण जैन यागल नि स्तेज थाय, ते रीतें सर्व देवता उल्हार गया. हवे संगम देव त्यांथी ग या, पal बीजा देवता सौधर्मे ने पूढता दवा के, हे स्वामिन् ! एनुं याव डुं तेज कैम बे ? त्यारें इंड् बोल्या एणें पाउले नवे खायंबिल वर्द्धमान तप मुनिराजपरों कस्युं हतुं तेना प्रभावथी एवी रूपसंपदा ए पाम्यो बे. तें सांजली सर्व देवतायें फरी पूबंधुं के, हे स्वामि ! हमलां एवो संपूर्ण रूप वान् को बीजो के नथी ? त्यारे इंश् बोल्या के, हडियावर नगरें सन Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १०३ त्कुमार नामें चक्रवर्तीनुं तेज अने रूप देवताथकी पण अधिक डे, ते म हारा सरखाथी पण वचनें कहेवाय नही. ते इंश्नी वातने बे देवता असदहता ब्राह्मणनां रूप करी चक्रीनुरूप जोवा याव्या. तेमने प्रतिहार रोक्या. पनी चक्रीनी पाझा लावीने मां पेसवा दीधा. ते वेलायें चक्रवर्ती स्नानने अर्थे सुगंधि इव्ये सुगंधि तैलें मई न करावे . सर्व बाजरण अलंकार उताया . तो पण रूप अथाग ने माटे ते रूप देखी देवता घणो विस्मय पाम्या, चक्रियें पूब्युं. रे ब्राह्मणो! श्या प्रयोजनें इहां तमा आवदुं थयुं ? त्यारें विप्र बोल्या. तमारु रूप त्रि नुवनमा वर्णववा योग्य सांजल्युं हतुं. ते माटे जोवाना कौतुकें याव्या ह ता. पण जेवू सांजलता हता, तेथी अधिक दीतुं. त्यारें चक्रीयें अति रू पना गर्वे करी ब्राह्मणोने कह्यु. नो नो विप्रो ! लमें गुं मंहारू रूप दीतूं? जो रूप जोर्बु होय तो थोडीवार पडखो, ढुं ज्यारे न्हा, अलंकार पहेरी सनामां बेसुं त्यारें महारू रूप जोजो. ते सांजली वित्रं विलंब कस्यो. रा जा पण शीघ्र स्नान करी अलंकार आचरण पहेरी सिंहासने बेग, ते वे ला ब्राह्मणोने बोलाव्या. त्यारे ते ब्राह्मणो,चक्रीन शरीर देखी शेष पामता हवा. अने मुखें बोलवा जाग्या, अहो ! मनुष्यनां रूप, लावण्य, यौवन क्षणमात्रतोरूडा देखियें, अने रोकमां कां नही जेवा थइ जाय. एवां वचन सांजली चक्रीयें पूज्युं. रे विप्रो ! तमें एटलो खेद केम करोबो? अने महारुं शरीर केम निंदो नो? विप्र बोल्या. हे राजन! देव तानां रूप अने यौवन डे ते तो ज्यारे देवता शय्यामां उपजे त्यांची मां मीने बमास पानखं बाकी रहे, त्यां सूधी तेमनुं तेम रहे. पली हानि पामे बे, अने मनुष्यने तो मध्य अवस्था थाय, त्यांसुधी तेज तथा यौ वन वृद्धि पामे, अने पनी हानि पामे. परंतु तमारा रूपमां तो वली वि शेष अाश्चर्य दीढं के,हमणांज रूप दीतुं अने हमणांज हानि पाम्यो. त्या रें राजा बोल्या, रे विप्रो ! तमे केम जाणो बो ? देवोयें शक्रप्रशंसा प्रमुख सर्व वृत्तांत कहीने वली कडं, हे चक्रिन् ! तहारा शरीरने विषे सात महा रोग प्रगट थया ॥ उक्तंच योगशास्त्रवृत्तौ ॥ कुष्ठशोषज्वरश्वासारुचि कुक्ष्य दिवेदनाः ॥ सप्ताधिसहे पुण्यात्मा, सप्तवर्षशतानि सः॥१॥ श्रीउत्तरा ध्ययनसूत्रटीकानो पण एज अनिप्राय . तथा कृषिमंमलटीकामां तो Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. वली या प्रमाणें सात रोग कह्या बे ते कहे बे ॥ यतः ॥ कं प्रनत्तस श, तिद्याविणान्यवि कुत्रीसु ॥ कासं सासं च जरं, यहियास सत्तवा साए ॥ १ ॥ इति ॥ तथा मरणसमाधिपयन्नामध्ये तो ॥ यतः ॥ सोलस रोगार्थका, सहिया सहचक्किणा चनवेल ॥ वास सहस्स सत्तन, सामन्नधुरं नवगणं ॥ १ ॥ ए रीतें सात हजार वर्ष सूधी शोल रोग सह्यां तथा उत्तराध्ययननी दीपिका मध्ये तो ॥ सप्तवर्ष सहस्राणि श्रष्टादश रोगा न धिसेहे ॥ एरीतें सात हजार वर्ष पर्यंत प्रढार रोग सहन करुया. इत्यादि क पाउनुं तत्त्व बहुश्रुत जाणे. एम चक्रवर्त्तिने मात्र रूपनो मद करतांज कर्म उदय थ गयुं, माटे रूपमद न करवो. इहां एटलीज कथानुं प्रयोज न बे. तथापि प्रसंगागत विशेष कथा पण यागल लखियें बियें. हवे चक्री पोतानुं शरीर विवाय देखीने चिंतववा लाग्यो के, अहो ! नित्यता संसारनी ? अहो असारता शरीरनी ? जे एटली वारमां शरीर विनाश पाम्युं. तेमाटे एने विषे प्रतिबंध करवो ते प्रयुक्त बे. रूप यौवन नोमान करवो ए महोटी मूर्खाइ बे. माटे हवे एनो त्याग करीनें परलोकं साधन करूं. एम विचारी पुत्रने राज्ये थापतो हवो. ते जोइ ते बे देवता पण बोल्या के, अंहो धीर पुरुष ! तमे पूर्व पुरुषनो नलो मार्ग थं गीकार करो. एम प्रशंसा करी ते देवता देवलोकें जता हवा. हवे चक्री पण सर्व संग त्याग करी चारित्र अंगीकार करता हवा. त्या रें स्त्रीरत्न प्रमुख चौद रत्न, नव निधान, यक्ष देवता तथा लश्कर प्रमुख जे परिवार हतो ते सर्व साधें थयो. घणां विलाप करता हवा, चारे तरफ विंटाइने रह्या. सनत्कुमार ऋषि बहने पारणे गोचरीयें नीकल्या. त्यां चलाना फोतरा ने बकरीना दुधनी बारा मली ते वावरीनें वली बीजो बघ कस्यो, त्यारे सर्व रोग बहार नीकल्या. तेनी महावेदना जोगवता हवा. एम तप करतां कां यामोसहि, खेलोसहि, विप्पोसहि प्रमुख सात लब्धियो उप जती हवी. तो पण शरीरनी शुश्रूषा कांइ पण करे नही. वी एकदा सौधर्मे सनामां बेगं प्रशंसा करता हवा के, यहो ! सनत्कुमार मुनिनी धीरता जू कहेवी ने के, रोगें कदर्थना पामे बे, तो पण तेनो उपचार करता नथी. ते वात असमानतां बे देवता शबर वैद्यनां रूप करीने त्यां याव्या. घने कहेवा लाग्या के, हे जगवन् ! त Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २०५ मारा रोगर्नु औषध करियें,रोग शमावियें तो पण मुनि बोल्या नही. फरी मु निने पूब्युं, त्यारें मुनि बोल्या के तमे इव्यरोग टालशो के, जावरोग टा लशो ? वैद्य बोल्या के जावरोग तो अमे जाणता नथी. त्यारें चक्रीयें पोतानुं यूंक ले अंगुलियें चोपडद्यु. एटले कनकवी काया थइ गइ. ते देखाडीने कयुं के, हे वैद्यो या इव्यरोग तो ढुं पण टाली शकुं बु. परंतु संसाररूप नावरोग टालवा समर्थ हो, तो टालो. ते सांजली देवता विस्मय पामीने कहेवा लाग्या के, ए नावरोग टा लवाने तो, तमेज परम वैद्य बो. एम प्रशंसा करी शकनो व्यतिकर संन साबीने चलितकुंमलानरण थ, देवतार्नु रूप प्रकट करी. प्रणमीने स्व स्थानकें गया. सनत्कुमार पण पचाश हजार वर्ष लगें कुमरपणे रह्या, पचाश हजार वर्ष लगे मंगलिक राजा रह्या,. एक लाख वर्ष चक्रवर्तीप ऐ रह्या, लाख वर्ष साधुपर्याय पाट्यो, अंतें समेतशिखरने विषे अनश न करी, आलोइ, पडिक्कमी, समाधिमां काल करीने सनत्कुमार नामे त्री जे देवलोके देवतापणे उपना. त्यांथी च्यवी महाविदेह देवने विषे मोदे जशे ॥ इति सनत्कुमार चक्रवर्तीनी कथा श्रीवत्तराध्ययनसूत्रादिकनेविपे ने. हवे तपमद उपर नंदिषेण मुनिनी कथा कहे . कोइक गामने विपे कोइक ब्राह्मणें यज्ञ मांझ्यो बे. त्यां एक चाकर राख्यो, ते चाकर कहेवा लाग्यो के, शेष नात नगरे, ते मुऊने आपोतो टुं रहूं, अन्यथा न रहूं. ते वात ब्राह्मणे कबुल करीने तेने यझपाटकमां राख्यो. तिहां ते चाकर जे अन्न वधे ते पोतें लेने साधुने पडिलाने. ते पुण्योदयें करीने देवतार्नु आनखं बांध्युं. ते दास मरीने देवता थयो. __ त्यांथी च्यवीने राजगृह नगरने विषे श्रेणिक राजानो नंदिषेण नामें पुत्र थयो. यझकारक ब्राह्मण तो घणी योनीने विषे घणा नव नमीने से चानक हाथी थयो. अनुक्रमें ते हाथी श्रेणिक राजायें पकड्यो. पालान मूले बांध्यो. त्यांथी ते हाथी नाठो त्यारे सदु लश्कर मली तेते पकडवा गया, पण पकडाणो नहीं. परंतु त्यां ते हाथी नंदिषेणनां वचन सांन लीने शांत थयो.अवधिझाने पाब्लो नव जाणतो हतो माटे आलानमूलें बांध्यो थको रह्यो. ते हाथी राजा श्रेणिकनो पट्टहस्ती थयो. एकदा नगवंत, जगजुरु, त्रिलोकीनायक एवा श्रीवीरवर्धमान स्वामी रा Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. जगृह नगरीने विषे आवीने समोसख्या. तेमने राजा तथा नंदिषेण प्रमुख वांदवाने गया. जगवंतनी देशना सांजलीने नंदिपेण प्रतिबोध पामतो हवो. पड़ी घणा आग्रहें करी माता पितानी आझा स दीक्षा सेवा चाल्यो. ते वारें आकाशे देववाणी थइ के, रे वत्स ! अकाले चारित्र सेवा केम उज माल थाय ने ? हजी तुमने नोगकर्मफल घणांडे, माटे थोडो काल घ रमां रहे, कर्मक्ष्य थया पनी दीदा लेजे, काल विना क्रिया फले नहीं, ते सांजलीने नंदिषेण विचारवा लाग्यो के,साधुनी संगतें रहेतां मने लोग कर्मफल झुं करशे? एम चिंतवी प्रचुजी पासे जतो हवो प्रचुयें, निषेध्यो थको पण पराणे दीक्षा अंगीकार करतो हवो. बह अहम प्रमुख तपस्या करतो नुवनगुरु साथै ग्रामपुरनगरादिकने विषे विचरे. सूत्र अने अर्थ न गतो, नावना नावतो, परिसह सहेतो थको रहे ले. तेने जोगकर्मना नदयथी जोगनी ना तो थाय, तो पण बलात्कारें रोकी राखे. तपस्यायें करी शरीर अतिर्बल करे. इंडियोना विकार टा लवाने निरंतर स्मशानादिकने विषे जर घोर आतापना ले, तो पण विष यविकार घणो जागे, तेवारें व्रतनंगना नयथकी शरीर बांधवा मां मयो, ते बंध देवतायें तोडी नाख्यो. वली शस्त्रे करी आत्मघात करवा मांमयो, त्यारे देवतायें शस्त्र बूंनां करी नांख्यां. विष खावा मांमधु, तेवारें देवतायें विषशक्ति अपहरी लीधी. वली अग्निमां पेशी बली मरवा मां मथु, त्यारे देवतायें अग्नि शीतल करी नाख्यो. वली पोतें पर्वत उपर च ढी ऊंपापात करवा मांमयो, त्यारे देवतायें जडपी लेने कह्यु के, महारूं वचन संनार. नोगकर्मफल जोगव्या विना तीर्थकर सरखा पण लूटे न ही. तो तुं श्यो फोकट विकल्प करे ? एम सांनती एकाकी विहार क रतो एक दिवसने विषे बन्ने पारणे गोचरी करवा चाल्यो. अनानोग थ की वेश्याना घरमा जश् धर्मलान दीधो. त्यारें वेश्या बोली, अमारे धर्म लाननुं तो प्रयोजन नथी, पण अर्थ लान जोश्ये बिये. एवं हास्यनुं व चन सांजलीने नंदिषेणें विचास्यूं के, ए बापडी रांक मने हसे ले ! एम चिं तवी बापरेथी एक तरणुं ताण्डे एटले लब्धियें करी रत्ननी दृष्टि थती ह वी. तेवारें वेश्याने कर्वा के, तमारे अर्थलान थयो. एम कही तेना घर मांथी बहार नीकल्या, त्यारे वेश्या पण संचमसहित पवाडेथी दोडती Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १०७ आवीने कहेवा लागी के, हे तपस्वि ! ए व्रत मूको, अने महारी साथै जोग जोगवो. नहिं तो हुँ निश्चयें करी प्राणत्याग करीश. एम वारंवार ते वेश्यायें प्रार्थना करे थके जोगनां कटुक फल जाणतो थको पण जोग कर्मना वशथी वेश्यानुं वचन अंगीकार करतो हवो. त्यां वेश्याने घेर रहे तां थकां पण एवी प्रतिज्ञा करी के, महारे प्रतिदिन दशजणने प्रतिबोध देवो. जो दशने प्रतिबोधी न शकुं, तो फरीदीदा लेवी. एम करी साधुनो वेप मूकी वेश्याने त्यां रह्या. पण देवतायें कहेलुं दीदान निषेध वचन त था प्रनुजीनु वचन संजारे, वेश्या साथें नोग जोगवे, अने नित्य प्रत्ये दश दश जगने प्रतिबोधीने प्रनुजी पामें मोकले, एम करतां बार वर्ष वीत्या. एक दिवस नवजणने प्रतिबोध्या नंतर दशमो एक सोनी आव्यो , पण ते बूजे नही. एवामां रसोइ तैयार थ६ •त्यारे वेश्यायें विनंति क री के, हे प्रनु ! जमवा नतो, रसोइ टाहाडी थाय , तेने नंदिपेणें कह्यु के, महारो अनिग्रह पूरो थयो नथी. एम कही वली सोनीने विविध प्र कारना वचनें प्रतिबोधे . एटलामां वली वेश्या आवीने कहेवा लागी के, एक रसोइ तो बगडी गइ. वली नवी रसोइ तैयार करी . माटे हवे विलंब न करो. नंदिषेण बोल्या के, दशमो पुरुष प्रतिबोध्यो नथी माटे याज दशमो हुँ पोतेंज दीदा लश्श. एम कही दीदा लीधी. ग्रंथांतरें वे श्यायें कडं के, उठो आज तमेज दशमा था. एवं वेश्यानुं वचन सांजली कट्या. वेश्यायें घणा विलाप कस्या पण ते गतिमा आण्या नही, अने पोतें श्रीवीरस्वामीनो पासे चारित्रलइ, आलोइ पडिक्कमीने देवलोके पधा स्या. ए नंदिपेणना बार वर्षमा प्रतिबोधेला जीव सर्व मली (४३१ एए) थाय. ॥ इति नंदिपेणकथा श्रीवीरचरित्रादि ग्रंथे जे ॥ ७ ॥ हवे श्रुतमद उपर थूलिनजीनी कथा कहे . ॥पामलिपुर नगरे त्रण खंमधरतीनो धणी एवो नवमो,नंद नामें राजा यतो हवो. ते राजाने महाबुझिनो निधान कल्पकना वंशमां उपनो एवो श कमाल नामें मंत्रीश्वर . तेनी लक्ष्मीवती नामे शीलवंती स्त्री होती हवी. तेने एक स्थूलिन अने बीजो सिरिज एवे नामें बे पुत्र थया. ते नगरमां जेणें रूपें करी इंशणीने पण जीती जे. जगत्ना चित्तने वश करनारी ए वी. एक कोश्या नामें वेश्या वसे . ते वेश्या साथें श्रीयूलिनजी नित्य Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. लोग जोगवतो त्यां रहे जे. एम ते वेश्याने घेर रहेतां बार वर्ष वही गया. एवा अवसरमां एक कवीश्वर, महावादी, वैयाकरण शिरोमणि, एवो वररुचि नामें विप्र ते नित्य एकशो आठ नवां काव्य करीने नंदराजानी उलग करे. ते सांजली राजा मंत्रीसामु जुए. पण मिथ्यात्वी जाणीने मंत्री तेनी प्रशंसा करे नही. त्यारे राजा पण तुष्टिदान दिये नही. ते अनिप्राय ब्राह्मणे जाण्यो त्यारे ते ब्राह्मण मंत्रीश्वरनी स्त्रीनी सेवा करवा लाग्यो. तेथी लक्ष्मीवतीयें संतुष्ट थश्ने एक दिवसें तेने पूब्यु. त्यारें वित्रं कर्तुं त मारो स्वामी महारा काव्यनी प्रशंसा करे, तो दुं दान पामुं. तेवारे स्त्रीयें, जारने तेना काव्यनी प्रशंसा करवा कमु. प्रधान बोल्यो, हुँ मिथ्यात्वीनी प्रशंसा केम करूं ? तो पण स्त्रीयें घणो आग्रह करवाथी प्रधाने मान्युं. जे माटे अंध, स्त्री, बाल अने मूर्ख ए चारनो आग्रह बलवंत होय. पबीते वित्रं राजाना मुख आगल काव्य कह्यां. त्यारें मंत्रीश्वर बो ख्या के, ए सुनाषित रूड डे. ते सांजली राजायें एकसो आठ दीनार आ प्या ते दिवसथी मामी निरंतर एकसो आठ सोनैया तेने राजा आपे एक दिवस मंत्रिय राजाने पूब्यु के, हे राजन् ! था सोनैया तमे केम आपो बो ? राजायें कह्यु के, तमें प्रशंसा करी माटे यापुं बु.अन्यथा पूर्वे कां न आप्या ? मंत्री बोल्या. में एनी प्रशंसा तो करी नथी में तो मात्र पूर्वनां काव्य वखाण्यां हतां, एतो पूर्व पुरुषोना जोडेला काव्य ते तेणे पोतें जो डेला , एवो जुठो अनिमान धरीने तमारा आगल कहे . राजा बोल्यो ए वात केम मनाय? मंत्री बोल्यो महारी दीकरीने पण ए काव्य या वडे . तेनी परीदा तमोने प्रातःकाले करी देखाडी'. । हवे ते मंत्रीश्वरने सात पुत्रिन ने ॥ यतः ॥ जरका य जरकदिन्ना, नू था तह चेव नूथ दिन्ना य ॥ सेणा वेणा रेणा, जयणी, थूलिनहस्स ॥१॥ तेमां पहेली कोइ पण काव्य जो एकज वार सांजले, तो तेने मु खपाठ थ जाय. एवी माहीजे, बीजीने बे वार सांजले एटले आवडे, त्री जीने त्रणवार सांगलें एटले आवडे, एम सातमीने सातवार सांजले एटले. आवडे. पनी प्रधाने ते साते पुत्रियोने परिषचने आंतरे राजसनामांबे सारी. अने जेटले वररुचीयें एकशो आठ काव्य नवां जोडीने कह्यां, ए टले यदायें ते तरत कही देखाड्यां. पडी बीजीयें कह्यां. पनी त्रीजीयें क Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २०ए ह्यां, एम अनुक्रमें सातमी कह्यां. ते सांजली राजाने रीस चढी, त्यारें निषेध कयो के, ब्राह्मणने कां बापशो नही. हवे वररुचीयें गंगामध्ये ज इने यंत्र करा. तेमां एकसो आठ सोनैयानी पोटली बांधी म्रके. प्रातःका ले गंगानी स्तुति करी पोताने पगें आक्रम करे. एटलें पोटली पाणी उपर आवे तेवारे ते पोतें तेने उपाडी लियें. एम नित्य करे, ते जो लोक सर्व वि स्मय पाम्या. ते वात राजायें सांजली मंत्रिनें कही. त्यारें मंत्रीश्वर बोल्या. जो ए वात सत्य , तो प्रातःकाले जोवा जश्लॅ. राजायें पण मान्युं. हवे मंत्रीश्वरें बानो दूत मूक्यो, ते सरने यांने बुपीने पंखीनी पेवें रह्यो. जेवारे ते ब्राह्मणें सोनैयानी ग्रंथि घाली, तेवारे ते चर पुरुषं दीती, ते ब्राह्मण गयो त्यारे ते ग्रंथि चर पुरुषे काढीने बानीमानीजश्मत्रीश्वरने यापी. प्रातःकालें मंत्रीश्वर राजाने तेडी गंगाने कांवे जोवा गया. वररुचीयें पण प्रातःकाले आवी गंगानी स्तवना करी, पगे करीने यंत्र चालना घणी ये करी पण ग्रंथि भावी नही !! त्यारे हाथ घाली खोलवा लाग्यो, पण जडी नही. तेथी मौनपणे रह्यो. ते जो प्रधान बोल्यो के, आज गंगाजी केम सोनैया अापतां नथी ? हे नूंमा ! आगलथी गंगामांहे ग्रंथि घाली ते तो महारी पासे ले. माटे हवे गुं खोले ? ले या तहारी गांउडी उल ख ! एम कहीने गांउडी आपी. ते देखीने तेने मरणथकी पण वधारें पुःख लाग्युं. प्रधान राजाने कहेवा लाग्यो, हे महाराज ! लोकने उगवाने माटे अागला दिवसनी सांजे घाली जाय , अने सवारे आवी काढे . राजायें कडं के, तें नलु कपट जाण्यु. पड़ी सौ पोतपोताने घेर आव्या. हवे वररुचि हृदयमा घणो ष राखे, मंत्रिनां बिखोल्ने, मंत्रीश्वरना घरनी वात दासी प्रमुखने पूछयां करे. एक दिवस दासीये कह्यु के, मंत्री ना पुत्र सिरियानो विवाह, माटे राजा जमवा आवशे. तेने नेट करवा सा रुं शस्त्रादिक घडाय , ते वात सांगली विप्रने बल जड्युं. तेवारें न्हानां बोकरांने चणा प्रमुख खावा पीने नणावतो हवो के, “जे. सकमाल करे ले ते नंदराजा जाणतो नथी. सकमाल तो राजाने मारीने सिरिया ने राजा करशे," ते डोकरा पण ठाम गम एम कहेतां फरे. अनुक्रमें परं परायें ए वात राजा सूधी यावी, त्यारें राजा विचारवा लाग्यो के, बाल क बोले ते साधु थाय ॥ यतः ॥ बालका यज्ञ नाषन्ते, नाषनो यच योपि Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० जैनकथा रत्नकोप नाग हो. तः ॥ औत्पातिकी च या नाषा, सा नवत्यन्यथा नहि ॥ १ ॥ हवे तेनी प्रतीत करवा माटे मंत्रीश्वरने घेर खबर काढवा एक पुरुष राजायें मोक व्यो. ते पुरुषे पालो आवीने दीतुं तेवु राजाने कह्यु. ते वात राजायेंधा री राखी. जेवारें मंत्रीश्वर राजा पासे सलाम करवा याव्यो, त्यारें राजा अव मुख करीने वेठो. एवो राजानो नाव जाणीने मंत्री घेर आव्यो. सिरियाने बोलावी कह्यु के; राजाने काने कोश्क वैरी लाग्यो बे, माटे रा जानो आपणा उपर क्षेप थवाथी आपणा कुलनो नन्द करवा तत्पर थयो . माटे तुं जो महारुं क्चन माने, तो दूं कहूं तेम कर. ज्यारें दुं राजाने मुजरो करूं, त्यारे तुं तरवारे करी महारं मस्तक बेदी नाखजे, ज्यारें राजा ठबको दे, त्यारे कहे जे के, स्वामीनो अनक्तो ते पिता पण श्या कामनो, अने हूँ तो घरडों ,. चार दिवस रहीने पण मर, तो बेज. परंतु आम करीश तो आपणुं कुटुंब सर्व जीवतुं रहेशे. ते सांननी सिरियो गदगद व चनें रोतो थको कहेवा लाग्यो के, हे तात ! ए घोरकर्म, चमाल पण न करे, तो दुं केम करूं ? प्रधान बोल्यो, एवो विचार करीश तो सर्व कुटुंब घाणीमां पीलाशे, अने वैरी हसशे. ते माटे कुल राखतां महारो दय ते रूडो जे ॥ यतः ॥ त्यजेदेकं कुलस्यार्थ, ग्रामस्याथै कुलं त्यजेत् ॥ ग्रामं जनपदस्याथै, आत्मार्थे सकलं त्यजेत् ॥ ॥ तथा ढुंगले तालपुट बां धीने राजाने मुजरो करीश, एटने तने पिता मास्यानु पाप पण नही ला गे. एम कहे थके सिरिये ते वचन अंगीकार कयुं. अने पिता, मस्तक ठे द्यु. एटले राजायें कयुं हे, नंमा ! ए काम गुंकयुं ? सिरियो बोल्यो, स्वामी शेही जाण्यो माटें मास्यो. स्वामीना अनुयायी काम करे, ते सेवक कहिये. पजी सरियायें प्रधान, मृतकार्य को, राजा सिरियाने कहेवा लाग्या के, तमारा बापनी मंत्रिमुश तमे व्यो. त्यारे सिरियो बोल्यो, महाराज ! महारो वडेरो नाइ यूलिन चे ते मुफने पिता बरोबर , ते अमारा पिता ना हेतथी. बारवर्ष थयां कोश्याने घरे जोग नोगवतो सुखें रहे ले, ते नाई साथें हुं विचार करूं. तेने राजायें कह्यु के, आजनो आज विचार करो. त्यारें यूलिनश्ने बोलावी सर्व वात मांमीने कही. थूलिनजी अशोकवा डीमा जइ विचार करवा लाग्या के, राजकाजमां शयन जोजन प्रमुख व खत उपर करी शकियें नही, स्वीनां सुख पण नोगवी शकियें नही. त Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ११ था राजानां कामकाज करतां चाडिया लोक नपश्व करे. वली पोतानुं ३ व्य तथा पोतानुं शरीर व्यय करीने राजानो स्वार्थ साधवाने यत्न करवो पडे, त्यारे पोतानाज अात्मसाधनने अर्थे यत्नकां न करियें ? एम चिंतवीने श्रीयूलिनजी, पोतेंज पोताना हाथें मस्तकें लोच करता हवा. रत्नकंबल नां दशियानो घो कस्यो. पनी राजानी सनामां जइधर्मलान देइने राजाने कह्यु के, में बालोच्यु. पी जेम गुफामांथी सिंह नीकले, ए रीतें राजसना माथी नीकट्यो. राजायें मनमां विचाओँ के, ए.कपट करीने पाडो वेश्याने घेर जशे, तेमाटे राजा गोखमां बेसीने जोवा लाग्या के, ए क्यां जाय . हवे स्यूलिन वाटे जतां उर्गधि स्थानकें पण नासिका मरडी नही. ते देखीने राजा मायुं धुणावतो हवो. अने मनमां चिंतववा लाग्यो के, अहो! ए तो नगवान वीतराग थया देखाय ने.! में.मातं चिंतव्यु ! स्थ लिन पण श्रीसंनूतिविजय प्राचार्य पासें जश्ने दीदा अंगीकार कर ता हवा. पनी राजायें सिरियानो हाथ पकडीने बलात्कारें मंत्रिमुश आपी. सिरियो पण राजकाज चलावतो हवो. ते जाणिये नवा शकमाल महे ताज आव्या होय नहिं ! ते सिरियो महा विनीत स्थूलिनश्ना स्नेहथी नित्य कोश्याने घेर जाय, नाश्नी स्त्री जाणीने तेनो बहुमान करे, कोश्या पण स्थूलिनना वियोगथी सिरियाने देखीने रुए. त्यारे सिरियो कहे के, गुं करिये ! वररुचि ब्राह्मणे अमारो पिता मराव्यो, अने स्थूलिन नाइ नो तमने तथा अमने वियोग कराव्यो. ते वररुचि तहारी बेहेन जे उप कोश्या तेनी साथें हमणां रक्त बे. तेमाटे कांक वैरनिर्यातननो उपाय विचारो अने उपकोश्याने कहीने एने मदिरापान करावो तो.रूडं थाय. कोश्यायें पण जारना वियोगथी अने सिरियाना मोहदाक्षिण्यथी उपकोश्याने शीखवीने वररुचीने मदिरापान कराव्यु !! स्त्रीनो वशवर्ती प्राणी मु झुं अकार्य न करें ? वली ते वररुचीथी अमात्यनो अनाव थ यो. ते दिवसथी सिरियो पण राजानी सेवामां तत्पर रहे . एक दिवस प्रातःकाले नपकोश्यायें आवी कोश्याने कर्यु के, आज वररुचीने मदिरा पाइ, ते वात सिरिये सांनतीने विचाओँ के, हवे पितानुं वैर लेश्गुं. वररुचि पण निरंतर सनामां आवे, तेने राजा, हाली, मोहाली सर्व घणो आदर करे. एकदा राजा, मंत्रीश्वरना गुण संजारवा लाग्यो, अने Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. सिरियाने गदगद वाणीयें कहेवा लाग्यो के, महारो अमात्य शकमाल घ ो क्तिवंत, घणो शक्तिवंत, इंड्ने बृहस्पति सरखो हतो. ते सहेजें जेम तेम मायो गयो ! हा हा दैव ! ए तें शुं कस्युं ! अहो नाइ ! शकमाल वि ना सर्व सूनुं देखूं बुं. त्याऐं सिरियो बोल्यो, हे महाराज ! हुं गुं करूं. ए सर्व मदिरानो पिनारो वररुचि पापी तेनां काम वे. ते सांजली राजा बोल्यो के, गुं वररुचि मदिरा पीये बे, ए वात साची बे ? त्यारे सिरियो बोल्यो, राजन् ! ए वात काले देखाडीश. पती सिरियें पोताना माणसने शीखवी मूक्युं के, कचेरी मजे ते वेलायें तुं एकेकुं कमल सहुने यापजे, ने वर रुचीने मीटलरसें करी तत्काल जावित करेलुं एवं कमल व्यापजे. तेवारें ते पुरुषं तेमज करूं. त्यारें राजा प्रमुख कहेवा जाग्या के, अहो ! ए अ द्भुत सुगंध क्यांथी जाव्या ? एम करी नासिकाग्रे दीघां, विप्रें पण सुंध्युं, ते तेणें रात्रियें चंड्हास मदिरा पीधी हती, ते वमन करयुं ते जोइ स दुयें वररुचीने धि धिग् करी सनामांथी काढ्यो. वररुचीयें एक विप्र पासें ज प्रायश्चित्त माग्यं तेने विप्रें कयुं के, तपाव्युं तरुवुं पान करे तो ए पाप जे. वररुचीयें पण तेमज लोकलाजें तरुवुं पीधुं तेथी मरण पाम्यो. ܕܐܐ हवे स्यूजिन पण श्रीसंभूतिविजय आचार्य पासे चारित्र पालतां श्रु तसमुना पारगामी यता हवा. ज्यारें चोमासुं खव्युं, त्यारें एक मुनियें गुरु प्रमीने वो निग्रह लीधो के, हुं चार मास लगे सिंहगुफाने बारणें उपवास करी कानस्सग्गे रहीश बीजो साधु बोल्यो के, हुं दृष्टि विष सर्पना बिल्ली उपर चार महिना उपवास करीने कानसरगें रहीश . त्रीजो साधु बोल्यो के, हुं उपवास करीने कूप्राना चारवटीयानी उपर का उस्सगे रहीश एवं सांजली गुरुयें पण योग्यता जाली ते त्रणेने या झा दीधी. एटले स्यूलिनजी उठी वंदना करीने बोल्या के, हुं कोश्या नामें वेश्याने घेर चित्रशालानी याचना करीने तेमां रहीश, पण तपस्या करीश नहीं. षट्स जोजननो स्याहार करतो चार मास पर्यंत यनिग्रह लइने रही. त्याऐं गुरुयें उपयोग देने योग्य जाणी तेने आज्ञा आापी. एम ते चारे मुनि याज्ञा लइने स्वस्वस्थानकें गया. ते मुनि शीतल तीव्रत पस्यावंत देखीने त्यां वनना सर्प, सिंह यने खरहट्टना खेड प्रमुख सर्व जीव शांत यता हवा. स्थूलिन पण कोश्याने घेर याव्या. तेने जोइ कोश्या Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ११३ पण हाथ जोडी सहामी आवी बनी रही. मनमां विचायुंके, एणे व्रत तो ली, पण निर्वाह न थयो, माटे इहां आव्या . एम चिंतवीने कहेवा ला गीके, हे स्वामिन् ! साझा करो, दुकुम फरमावो, ते दुं करूं ? ा शरीर, धन, परिवार, सर्व तमारुं . त्यारे स्थूलिजजी बोव्या मुमने चोमासु रहेवा माटे तमारी चित्रशाली थापो. वेश्या बोली, स्वामी ! सुखें रहो, प धारो. एम कही वेश्यायें चित्रशाली तैयार कंरी, एटले श्रीस्थूलिनजी प ण कामना घरमा बलियो थश्ने जेम धर्म पेसे तेम चित्रशालीमा पेठा. त्यां ते वेश्या षट्रस नोजन मुनिने वहोरावे: त्यार पनी सोले शण गार सजी मुनिने खोनाववा आवे, पूर्वला कामनोग संजारीने नवनवा कामविलास जे प्रमाणे शास्त्रमा कह्या बे ते प्रमाणे करे, तेथी ते मुनिरा ज दोनाय नही, एम निरंतर दोनावतां मुनिने ती उलटी ध्यानधारा व धती हवी. एवं मुनिनुं निर्विकारिपणुं देवीने वेश्या पगे लागी. स्थूलिन इजीनी दृढता देखीने वेश्यायें श्राविकापणुं अंगीकार करा. अने एवो अनियह लीधो के, कदाचित् राजा कोश्नी नपर संतुष्ट थइ महारे घेर मोकले, तो ते पुरुष मोकलो, पण बीजो पुरुष महारे न कल्पे. हवे चोमासु उतयां ते त्रणे मुनि गुरु पासें याव्या. तेमां प्रथम सिं हगुफावासी साधुने गुरुयें कह्यु अहो "छक्करकारक" तमे सुखथी आव्या एम कही कांक शासन ऊंचं कर्तुं वली बीजा वे साधुने पण गुरु एम ज कहेता हवा. पनी ज्यारें श्रीस्थलिन साधु आव्या त्यारे गुरु नना थ इने बोल्या के अहो ! उक्करकार ! उक्करकार ! तमे सुखशातायें अाव्या ? एवं सांजली पूर्वला त्रणे मुनि विचारवा लाग्या के, अहो ! ए मंत्रिपुत्र मा टे गुरु एर्नु केटबुं बहुमान करे ले ? जे माटे षट्रस आहार नोजन करी लष्ट पुष्ट थको आव्यो, तेने गुरु एटला वानां करे ? तथापि कां फक र नही ए सर्व आवते चोमासें जाणिगुं. एम धारी अमर्षधरतां बात मा स काढया. फरी चोमासुं आव्युं. त्यारे सिंहगुफावासी साधु .गुरुनी पा से आवी प्रतिज्ञा करतो हवो के, कोश्या नामें वेश्याने घेर षट्ररस आहा र जोजन करीने हे नगवन् ! हुँ चोमासुं रहीश. त्यारे गुरुयें झानना उप योगें विचायु के, ए स्थूलिनजी उपर ईर्ष्या लावीने बोले , पण एना थी निर्वाह नही थाय ! एम चिंतवी गुरु बोल्या, हे वत्स ! ए अनिग्रह Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ जैनकथा रत्नकोप नाग हो. उक्कर छक्कर ले. माटे न करो. स्थूलिनजी मेरुनी पे- ए अनिग्रह पाल वाने थिरतावंत हता. त्यारे ते साधु बोल्यो के, महारे मुक्कर नथी तो 5 करमुक्कर केम कहो बो ? माटे ढुं अवश्य करीश. गुरु बोल्या के, पूर्वला तपनो पण नंग थशे. जे माटे शक्तिविना घणो नार नपाडीयें तो शरीर नां गी पडे. तो पण ते गुरुनु वचन अपमानीने वेश्याने घेर गयो. वेश्यायें विचास्युं के, श्री थूलिजीनी स्पीयें ए महात्मा आव्यो , पण एने संसारमा पडतो ग. एम विचारी नतीने प्रणाम कस्यो. मुनि ये रहेवा माटे चित्रशाली याची, वेश्यायें पण जग्या आपी, त्यां रह्या. षट्रस आहार नोजन सामग्री वेश्यायें तैयार करी, ते नोजन साधुयें कयुं. हवे मध्यान्ह समये तेनी परीक्षा करवा वेश्या सोल शणगार सजीने यावी. मुनितो देखता मात्रमा दोलायमान थता हवा. तेवी स्त्री अने ते q नोजन ते कोने विकार न करे ? ते साधु कंद व्याकुल थयो थको वे श्याने जोगनी प्रार्थना करतो हवो. वेश्या बोली के, अमे तो धन होय तो वश था. मुनि बोल्यो. अमारी पासे इव्य क्यांथी ? वेश्या बोली के, नेपाल देशनो राजा मुनिने रत्नकंबल आपे , ते लावो. मुनि पण नेपा ल देशे रत्नकंबलने अर्थे चाल्या. चोमासानो काल ,मार्गमां कचरा पाणी घणाले. तो पण ते साधु जेम अंतरथी पोताना व्रतमा खलाया, तेम बा ह्यथी पण पगें पगें खलाता चाल्या. एम करतां त्यां रत्नकंबल पाम्या. तेने वांसनी लाकडीमा गोपवी वाटे पाबा आवतां चोरनी पन्नीमा एक सूडो हतो, ते बोल्यो. "लक्ष्मायाति” एटले लदव्य यावे . तेवारें पन्नी पतियें कोई चाडखो पुरुष जाड ऊपर बेठो हतो, तेने पूज्यु के, गुं यावे ले ? ते पुरुष बोल्यो, एक निलुक आवे . एवामां साधु त्यां आव्यो ते ने पत्नीपतियें तपासी जोयुं, पण कां दी] नही. त्यारें मुनिने मूकी दी धो. ते जोर पंखी बोल्यो “लाख जाय .” ते सांजली फरीथी ते पन्नी पतियें साधुने पकडीने पूज्युं के, साचुं बोल अमारो पंखी जूतुं बोले न ही. साधुयें पण जेतुं हतुं तेवं कर्तुं. पन्नीपतियें दया आणी जवा दीधो. अनुक्रमें यावीने वांसमांथी रत्नकंबल काढीने वेश्याने आप्यु. ते वेश्यायें लश्ने खालमां नाखी दीg. मुनि बोल्या. रे नूंमी ! घणो क्वेश खमी बहु मूल्यन रत्नकंबल में लाव्यु, तेने तुं अपवित्र कचरा मध्ये गुं नांखीदे जे ? Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ गौतमकुलक कथासहित. वेश्या बोली. रे मूढ ! तुं रत्नकंबलनी शोचना करे , पण गुणरूप रत्नम य पोतानो आत्मा ते नरकरूप कचरामां पडे , तेने केम नथी सोच तो? ते सांजली मुनिने संवेग आव्यो. त्यारे कहेवा लाग्यो. के हे वेश्या ! संसारमा पडता एवा मुज प्रत्ये तें राख्यो. हवे अतिचार पंक शोधवाने अर्थे दुं गुरु चरणे जश्श. हे निःष्पाप तुमने धर्मलान हो. कोश्या पण कहे वा लागी के, में ब्रह्मचारी थकां तमने खेदं पमाड्यो, ते मने मिहामि कडं हो. में तमने प्रतिबोधवा निमित्तें एटला वानां कखां, ते हे ऋषीश्वर ! तमें खमजो, बने हवे उतावला गुरु पासे जाउ. अने गुरुवचन अंगीकार करो. मुनि पण ते वचन प्रमाण करी श्री संजूतिविजय गुरु पासे गया त्यां प्रायश्चित आलोचीने तप अंगीकार करता हवा. हवे श्रीसंनतिविजयजी पण अनशन करी देवलोके पंधास्या. वली एक दिवसें राजा रथिक पुरुषनी उपर संतुष्ट थयो; तेवारें तेना मागवाथी तेने राजायें कोश्याने घेर उतारो आप्यो. हवे कोश्यातो एक यूलिन टाली अन्य कोई पुरुषने बती नथी. ते माटे रथकार पुरुषनी आगल पण श्री यूलिनजीना गुणवर्णन करती हवी. रथकार पण घरनी वाडी मध्ये ढोलीयें वेसीने वेश्यानुं चित्त रीजववा माटे पीतानुं विज्ञान देखाडवा यां बानी खुब बाणे वींधी, पडी ते बाणना पूंखने विपे बीजुं बाण सांध्यु. व ली बीजा बाणे ते सांध्यु तेणे करी बेग थकांज आम्र वदनी चुंब पाडी कोश्याने आपी. त्यारे कोश्या पण पोतानुं विज्ञान देखाडवा माटे एक सरसवनो ढगलो करी ते उपर सूची मूकी पुष्पपत्रे ते सूइ ढांकीने ते न पर नाटक करती हवी. पण सूची विंधाणी नही. अने सरसव पण ख स्या नहीं ते जोइ रथकार पुरुष कहेवा लाग्यो. के, तहारी उकर करणी देखीने ढुं संतुष्ट थयो बुं. माटे कांक माग, ते तुमने था'. त्यारे कोश्या बोली. युं महारी उक्कर करणी दीठी के, जे जोइने तुं महारी उपर री ज्यो ? अन्यासीने गुं उक्कर ? ए तहारी तथा महारी वेदुनी करणी कां पण उक्कर नथी, पण जे थूलिन कयं, ते मुक्कर जे.जे माटेबारवर्ष रही महारी साथे नोग नोगव्या, तेज चित्रशालीमारही अखंम व्रत राखी ने गयो ! स्त्रीनी पासे एकदिवस पण रही न शकाय. ते श्री यूलिन चा रमास पर्यंत अखंम व्रतें रह्या. वली षट्ररस नोजन आहार करता तथा Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. कामने जागृत करनारी चित्रशालीमा रहेता, पोतानी स्त्रीनी पासे वसता, वर्षाकाल, यौवनावस्था, पूर्वलो राग, एटलां वानामांहेलुं जो एक वार्नु तुं थाय, तो लोढानुं शरीर होय, ते पण गली जाय, तो सर्व कारणनी शी वात ! ॥ यतः ॥ न उक्करं अंबय खंबतोडणं, न उक्करं सरिसवनचिया ए ॥ तं उक्करं तं च महापुजावं, जे सो मुणी पमयवर्णमि वुलो ॥१॥ कवयोऽपि ॥ गिरौ गुहायां विजने वनान्तरे, वा संश्रयन्तो वशिनः सहस्त्र शः ॥ हर्येऽतिरम्ये युवतीजनान्तिके, वशीश एकः शकमालनन्दनः ॥२॥ योऽग्नौ प्रविष्टोऽपि नैव दग्धः बिन्नो न खडगाग्रस्तप्रचारः॥ रुमाहिरन्ध्रेऽ प्युषितो न दष्टो, नाक्तो जनांगारनिवासकोऽपि ॥ ३ ॥ वेश्या रागवती स दा तदनुगा पडनीरसै!जनं, शुनं धाम मनोहरं वपुरहो नव्यो वयःसं गमः ॥ कालोऽयं जलदाविलस्तदपि यः कामं जिगायादरात्, तं वंदे युवति प्रबोधकुशलं श्रीस्थूलिनई मुनिम् ॥ ४ ॥ रे काम वामनयना तव मुख्य मस्त्रं, वीरा वसन्तपिकपंचमचंइमुख्याः ॥ त्वत्सेवका हरिविरंचिमहेश्वरा द्या, हा हा हताश मुनिनापि कथं हतस्त्वम् ॥ ५ ॥ श्रीनंदिषेण रथने मिमुनिश्वरादि-बुध्या त्वया मदन रे मुनिरेप दृष्टः ॥ ज्ञातं न नेमिमुनि जम्बुसुदर्शनानां, तुर्यो नविष्यति निहत्य रणांगणे माम् ॥ ६ ॥ श्रीनेमि तोऽपि शकमालसुतं विचार्य मन्यामहे वयममुं नटमेकमेव ॥ देवोऽडिर्ग मधिरुह्य जिगाय मोहं, यन्मोहनालयमयं तु वशी प्रविश्य ॥ ७ ॥ इत्यादिक श्रीस्थूलिनजीना गुण वर्णन सांजलीने रथकार पुरुष बो ल्यो. रे स्त्री! ते स्थूलिन महासत्त्वनो धणी कोण ? जेनां तुं एटला गुण वर्णन करे. जे. त्यारें वेश्या बोली. राजानो प्रधान शकमाल नामें हतो तेनो पुत्र स्थूलिन तेने दुं वर्णवं डं. ते सांगली संत्रांत थयो थको रथका र बोल्यो. रे स्त्री! ते महामुनिनो हुँ किंकर बूं. एम सांजली वेश्यायें तेने संवेगमां श्राव्यो जाणी, धर्मदेशना देने तेनी अनादिकालनी मोहनि ज्ञ टाली, त्यारे रथकार बोल्यो के, है न! तें मुफने जलोप्रतिबोध करखो. हुँ पण ते मुनिने मार्गे चालीश. तें मुमने आज मार्ग देखाज्यो, तहारूं कल्याण थान. तुं तहारो अनिग्रह दृढ राखजे. एम कही सशुरु पासेज ने रथकारें पण प्रव्रज्या अंगीकार करी. नगवान श्रीस्थूलिनजी पण तीव्र व्रत पालतां बारवर्ष उकाल पज्यो Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ११७ ते महाविकराल कालने विषे साधुनो समुदाय, मली समुड्ने कांठे जश्ने रहेतो हवो. ते नूखें करी सूत्र गणी न शके, तेथी सर्व सूत्र वीसरी ग यां ॥ यतः ॥ गणिति नासे विका, दंमिति नासे पका । कुट्टि ति नासे नका, बहु बोलंति नासे लगा ॥ १ ॥ हवे डुकालने अंतें पाम लिपुर नगरने विषे साधुनो समुदाय एको थयो . ते वखत जे साधुनी पासे अंग, अध्ययन, उद्देशादिक जे कां कंगयें हतुं, ते लीधुं. त्यारें गारग तो मल्यां, पण दृष्टीवाद पूर्वमध्यें कांइयें न जड्युं. त्याऐं सर्व संघ जेलो ने पूर्व विद्या मेलववाना निमित्तें - चिंता करवा लाग्यो. ते श्रवसरें नेपाल देशना मार्ग मध्ये रहेना एवा श्री नड्वादुस्वामी, ते पूर्वधर बे. तेमने तेडवा माटे श्रीसंघें मली वे साधुने, मोकल्या. ते सा धुं त्यां जइ श्रीबाहुने नमस्कार करी हाथ जोडीने एम कहेता हवा के, श्रीसंघें तमने तेडवा माटे अमने मोकल्या बे. गुरु बोल्या के, में तो महाप्रणिधान मांय बे ते बारवर्षे पुरो यारों तिहांसुधी महाराथी वा शे नही ए महाप्रणिधान निपन्यां पढी जो कोइ कार्य याव्यं होय तो स र्व पूर्व सूत्र अर्थ सहित अंतर्मुहूर्तमां संपूर्ण गणी शकाय. 2 हवे ते मुनियें पाता जश्ने श्रीसंघने ते वात कही. तेवारें श्रीसंघें वली बीजा वे साधुने मोकलीने कहेवराव्युं के, तमे गुरूने पूबजो के जे श्रीसंघनी आज्ञा न माने तेने इयो दंग थाय ? ते कृपा करी कहो. त्यारें गुरु कहेशे के, तेने संघवहार करवो, त्याऐं तमें सारी पेठें कहेजो के ए दंमयोग्य तमें बो. ते साधुयें पण त्यां जश्ने तेमज कयुं. त्यारें प्राचार्य बोल्या के, श्री संघ एम करी शके ते वात महारे प्रमाण बे; पण श्रीसंघ महारा उपर प्रसाद करीने बुद्धिवंत साधुने जो इहां मोकले तो हुं तेमने निंत्य सात वाचना यापीश. तेमां एक वाचना गोचरीथी खावीने यापीश, त्रण वा चना काल वेलायें आपीश, तथा त्रण वाचना सांजना पडिक्कमला पी पी. ए रीतें पण संघकार्य थशे अने महारुं कार्य पण नहि सीदाय. पढी ते मुनियें थावीने संघने तेमज विनंति करी. श्रीसंघें पण स्यूलिन 5 प्रमुख पांचशे मुनि जगनारा बुद्धिवंत जोइने मोकल्या. प्राचार्य पण सहुने जणावता हवा. पण ते साधु थोडी वाचना माटे जणतां उद्वेग पाया. एक श्रीस्थूलिनजी टकी रह्या. ते जातां जातां आवे वर्षे या Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. पूर्व नएया. पढ़ी आचार्य पूब्युं के, उद्येग केम पामो बो ? त्यारें स्थूलिन इजी बोव्या के, ढुं नग नथी पाम्यो. पण वाचना थोडी जे. त्यारें आ चार्य बोल्या. हवे प्रणिधान प्रायः पूर्ण थयुं . पड़ी तमारी इजा प्रमाणे वाचना थापीमु. स्यूलिनबोल्या,हुँ केटलुं नण्यो ? अने केटलुं बाकी ले ? गुरु बोल्या एक बिंड जेटलुं तुं नण्यो, अने समुश् जेटलुं बाकी जे. . हवे ध्यान पूरूं थये थके बे वस्तु नणां दशपूर्व स्यूलिनजीयें जेटले संपूर्ण कस्यां, तेटले विहार करता पामलिपुर नगरने विपे जगवान श्रीन बादुस्वामी उद्यानमां पधारता हवा. त्यारे यदादिक स्थूलिनजीनी बहे नो साधवि थडे ते वंदना करवा आवी. तेणीयें गुरुने वांदीने पूब्युं के, हे प्रनु ! स्यूलिनजी क्यां ले ? गुरु बोव्या,नहाना देवकुलमां बे. ते सांन ली देवकुल तरफ चाली. एटले बहेनोने चमत्कार देखाडवा श्रीस्थूलिन जी सिंहनुं रूप करी वेठा. ते रूप देखी बहेनो बीहीनीथकी पाली प्रावी गुरुने कहेवा लागी के, वडा नाइने तो सिंहनहाण करीने त्यां बेतो , ते सांनली आचार्य उपयोग दीधो,अने फरी कह्यु के, ते तमारा महोटा नाइ जे, पण सिंह नथी. माटे जश्ने वांदो त्यारे ते साध्वीयें फरी त्यां जश नाइने मूलगे रूपें देखी वंदना करीने. पनी पोतानी कथा कहेती हवी के,आ पणा ना सिरिये अमारी साथें दीक्षा लीधी, परंतु एकासणुं करवाने पण असमर्थ होवाथी एक दिवस पर्युषण पर्वने दहाडे में कह्यु के, आज पो रिसी करो, ते तेमणे करी. पहोर पूर्ण थयो त्यारे में कह्यु के, आ पर्व दोहिखंडे माटे पूरिमड्ढ करो. ते पण कयु. एम करतां अपराईनु पञ्च रकाण कराव्यु. में कर्वा एटलो काल तो सुखें जशे, ते पण कडे. पनी अ वसरे वलो पण में कह्यु के, हवे रात्रि ढूकडी , बंघमां रात्रि जशे मात्रै उपवास करो. तेवारें उपवास पण कस्यो. रात्रिय देवगुरुने संजारतां दु धायें पीड्योथको मरीने देवलोकें गयो. माटे मने ऋषिघातर्नु पाप लाग्युं तेनो पश्चात्ताप करती श्रीसंघपासें प्रायश्चित्त माग्युं. त्यारें संघे कह्यु के, त मारो गुरू नाव डे,तेथी प्रायश्चित्त न आवे. में कह्यु के,जो साक्षात् परमे श्वर मने कहे तो शाता थाय,अन्यथा नहि ! ते सांजलीने संघे कानस्स ग्ग कस्यो, शासन देवता याव्या, तेणे संघने कह्यु के, कहो गुं करूं ? संघे कह्यु के, यदाजीने श्रीजिनेश्वर पासे ले जाई. त्यारे शासन देवी बोल्या Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. के, ढुं निर्विघ्नपणे जश् शकुं, माटे तमें काउस्सग्गमा रहेजो. ए वातनी सं घे हा कही. त्यारे शासनदेवी मने श्रीसीमंधरस्वामी पासें लश् गया. में श्रीपरमेश्वरजीने वंदना करी, प्रनुजी बोल्या के, जरतदेवथी आ आर्या आव्यां बे, ते निर्दोष जे. ते सांजलीने महारो संदेह टल्यो, श्रीसंघनी पा से कृपा करीने प्रनुजीयें मने चार अध्ययन आप्यां. शासनदेवता, पाबां म ने महारे स्थानकें लाव्यां. एक नावना अध्ययन, बीजुं विमुत्ति अध्ययन, त्रीजुं रतिकला अध्ययन, अने चोयूं विविक्तचर्या अध्ययन, ए चारे अध्ययन में एक वाचनायें ग्रह्यां. श्री संघनी आगल वात कहीने ए चारे अध्ययन कही देखाड्यां. तेमां वे अध्ययन श्रीयाचारांगजीनी बे चूलिका थापी. अने वे अध्ययन श्रीदशवकालिकजीनी चूलिकापणे थाप्यां. एवं कहे थके स्यूलिनजीयें ते वातनी आझा दीधी. साध्वी पोताने ठेकाणे याव्यां. हवे स्थूलिनश्पण गुरु पासे वाचना सेवा याव्या, गुरु बोल्या के, तुं वाचनाने अयोग्य बे. ते सांजलीने स्यूलिन पण दीदा दिवसथी मामी ने पोतानो अपराध विचास्यो, पण को अपराध दीतो नही. त्यारें गुरुने कह्यु के, स्वामी महारो अपराध तो महारी नजरमा आवतो नथी. गुरु बोल्या. अपराध करीने वली मानतो नथी! त्यारे स्थलिन सिंहरूप सं नारीने गुरुना चरणे मस्तक घाली कहेता हवा के, हे स्वामिन ! हवे फ री एवं नही करूं. ए महारो अपराध खमो. गुरु बोल्या. हवे तुं न करजे, पण ए काम कयुं तेथी वाचना नहि आपुं. एम कहे थके स्थलिनजीयें संघने विनंति करी गुरुने कहेवराव्यु, जेमाटे महोटा कोप्या तेने महोटा ज प्रसन्न करवा समर्थ होय ! सूरि बोल्या. हवे बीजा पण.आज़ पड़ी में दसत्त्वना धणी थशे, माटे योग्यता नथी. थाकतां पूर्व महारीज पासे र हो, एनो दंमतो बीजाने शिक्षा माटे छे. ते सांजली संघे घणो याग्रह कस्यो त्यारे गुरुयें उपयोग दीधो, जाण्यु के, महाराथी पूर्व विबेद नही जाय, एम जाणी हवे कोइने जणावशो नही. एवो श्रीस्थलिनजीने अनिग्रह करावीने थाकतां पूर्व तेमने नणाव्यां. इहां कोई कहे डे के, सू ज चार पूर्व जणाव्यां पण अर्थ न प्राप्यो.अनुक्रमें प्राचार्य पद नवा दुस्वामीयें स्थूलिनपने आप्यु. ए रीतें स्यूं लिन जेवामुनि पण श्रुत मद करवाथी लगवाने अयोग्य थया तो बीजानी शी वात ? माटे श्रुतमद न Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० जैनकथा रत्नकोष नाग बछो. करवो. ए आतमा मद उपर कथा श्रीपरिशिष्ट पर्वणीमध्ये जे इति ॥ हवे सामान्य मान उपर बाहुबलीनो दृष्टांत कहे . श्रीकृषनदेवजीयें दीक्षा लीधी, त्यारें जरतने विनीतानुं राज्य थाप्युं. बाहुबलीने बहुलि देशनुं राज्य आप्यु. तथा बीजा अघणु पुत्रने अंगवंगा दिदेश वहेंची आप्या. प्रनुने दीदा लीधां एक हजार वर्ष थयां. त्यारें न रतने चक्ररत्न उपन्युं, ब खंझ साध्या, बीजा अणु नाश्ने आज्ञा मनाव तां ते राज्य बांमी, श्रीषन स्वामी पासे दीदा ले केवलज्ञान पाम्या ने. जरतचक्री न साधी, विनितायें ाव्या, पण आयुशालामांचक आवे नहि, त्यारे प्रधानें कह्यु के, तमारो जाइ बाहुबली तमारी आण मानतो नथी, माटे आयुधशालामा चक्र आवतुं नथी. जरतें नाइ उपर दूत मोकव्यो. ते बदुलि देशने विषे गयो. त्यांनी स्त्रीयोयें पूब्यु. तुं कोण बो ? दूतें कह्यु. ढुंजरतनो दूत बूं.बाहुबली पासे जानं . त्यारे स्त्रीयें क युं जरत ते कोण ? जरततो अमारे कांचलियें . ते सांजली दूतें चिं तव्यु के, इहांना लोक एवा पुर्दम जे. तो तेनो राजा केवो हशे? एम वि चार करतो तिक्षशिला नगरीयें पहोच्यो. त्यां बादुबली राजा सना पूरी बे ना. तेना त्रण लाख पुत्र दे, तेमां महोटो सोमयशा . तेने वली चो राशी हजार स्त्री . तेना श्रेयांस प्रमुख बहोतेर हजार पुत्र जे. एम पुत्र पौत्रादिकें परिवस्यो सूर्यनी पेरें देदीप्यमान एवा बाहुबलीने देखी जय भ्रांत थको दूत बोल्यो. हे महाराजा ! तमारा नायें तमने जुहार कह्यो ले. अने कह्यु ले के, चक्ररत्न आयुशालाने विपे आवतुं नथी, माटे म हारी आणदाण मानजो. ते सांजली नमुह चढावी, राता लोचन करी, बाहुबली बोल्यो. अरे दूत ! जरतने हजी लाज नथी ? जे माटे अहाणु नानुं राज्य लेब खंझनो धणी थयो, तो पण तृप्ति न थ? के, महारुं राज्य लेवा वांछे ? ते दहाडा विसरी गया के, न्हानपणमा रमतां द डानी पेवें ऊंचो उबालीने पडतो तेवारें हुं काली लेतो, ढुं तेनो तेज बुं. राज्यनो खप होय तो वहेलो आवजे. पण आण तो श्रीतातजीनीज मा नीश. एम कही दूतने निनबी काढयो. दूतें आवी सर्व वात बरतने कही. त्यारे जरतचक्रवर्तीने क्रोध चढयो, पडी पोताना सवाक्रोड पुत्र , तेमां महोटो पुत्र बादित्ययशा , तेना वली महाजसा प्रमुख सवालाख पुत्र Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २२१ बे. ते सहित पोतानी दि लश् बलिदेशनी संधियें भावी पज्यो. बाब ली पण पोता, कटक लेइ सामो याव्यो. माहोमांहि यु६ थयुं. तेमां घ या लोकनो संहार थवा मांझयो. एम यु६ करतां बार वर्ष थयां. त्यारे इं ३ यावी बे नाश्ने समजावी. दृष्टियुआ, वचनयु८, बाहुयुच, मुष्टियु६ अने दंमयुह ए पांच यु६ करवा तेराव्या. ते पांचे युधमां नरत हास्यो. तेवारें क्रोधने वशे नाई उपर चक्र मूक्युं. ते चक्र पण बाहुबलीने प्रदक्षिणा देश पालु जरत पासे गयु. जे माटे गोत्रमा चक न लागे. जरतें विचायुं के, अमोघ शस्त्र पालुं फयुं तो निश्चय ए महारुं राज्य लेशे. हवे जरतें चक मूक्याथी बाहुबलीने पण क्रोध चढ्यो. के, एणे महार मस्तक दवाने कीg, तो ढुं पण चक्रने अने चक्रवतीने मुष्टियें करी चूर्ण करूं. एम चिंतवी क्रोध चढावी मुष्टि उपाडी त्यांनरत पण सामों धायो. एटले बादु बलीने विचार उपन्यो के, हा हा ! नूंहुं थशे ! ! ! ए मुष्टियें जरत मरशे, बखम रंमाशे ! खनना वंशने कलंक लागशे !! लोकमां हाहाकार थ शे !!! अने मुष्टि उपाडी ते पण निष्फल केम करूं ? एम चिंतवी ते मु ष्टिये मस्तकनो लोच कस्यो. देवतायें वेष आप्यो. जय जय शब्द थयो. न रत यावी पगें लागी अपराध खमावी पोताने स्थानकें गयो. ___ बाहुबलिये विचाघु के, महारा अणु नाई दीदा लेइ केवली थया जे. ते नहाना नाइने वांदवू पडशे, ते माटे केवलज्ञान उपजावी पड़ीन गवानना समवसरणमां जालं. जेम तेमने वांदवा न पडे. एवो अनिमान पाणी त्यांज कारस्सग्ग करी रह्या. वर्ष दिवस सूधी नूख तृषा खमी, पगें मान नग्या, वृदनी पेठे वेलडीयें विंटाणा, कानमा पंखीयें माला घाल्या, ताढताप खमता रह्या. वर्ष दिवसने अंते ब्राह्मीने श्रीषनदेवस्वा मीयें मोकली, तेणे आवी कह्यु के, हे वीरा ! गजथकी उतरो. ए वचन सांजली बाहुबलिये विचाओँ के, ढुं तो गज नपर नथी चढ्यो, अने ए महा सतीनुं वचन पण जूतुं न होय, एम विमासतां मनमां ज्ञान उपन्युं के, हुं अनिमानरूप हाथीयें चढयोज बु. जेमाटे न्हाना नाश्तो परमगुणी थया. केवली थया, वीतराग थया, रत्नत्रयीरूप गुणें करी ते परम वडेरा डे, त्रिजुवनने वंदवा योग्य , ते उपर अनिमान करवाथी मने अाशातना लागी, माटे जश्ने वंदना करूं. एम विचारी जेटले पग उपाडे , तेटले एज Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. नावनायें पकश्रेणी मांमी घातिकर्म क्य करी केवलज्ञान पाम्या. केवली पर्याय पाली मुक्ति पहोच्या. ते माटे माने धर्म न होय ॥ यतः ॥ धम्मो मए । ढुंतो, तो नवि सीचन्हवाय विनडिन ॥ संवहरमणसिन, बाहुबली तह किलिस्संतो॥१॥जे माटे वर्ष दिवस सूधी केवलज्ञान अटकाव्यु. तेमा टेमानथी नपरांत वली बीजो शत्र ते कोण ?॥इतिश्रीनपदेशमालायाम्॥ हवे मान ते वैरी कह्यो, माटे वैरीनो प्रतिपदा हेतु , माटे हेतु पूजे जे. शहां “हियमप्पमान” ए. पदनो अर्थ कहे जे शिष्य पूजे जे के, हे स्वामि न ! वैरी ते मान कह्यो. त्यारें (हियं किं के०) हित ते गुं? शहां किं शब्द पर वाडेनो ने, ते लेय. त्यारे गुरु बोल्या के, हे शिष्य ! (अप्पमा के० ) अप्रमाद तेज हित . जे कारण माटे थोडा पण जे माठा अध्यवसाय क रवा, ते प्रमाद चे माटे ते करवा नहि. तेने अप्रमाद कहियें. ते अप्रमा दना दृष्टांततो गौतम, सुधर्म, जंबू, प्रजवा, अने वयरस्वामी प्रमुख घणा ना ले, ते जागवा. इहांतो व्यतिरेकें चंदा अने सर्गमाताना पुत्रनो दृष्टांत कहे . जे माटे थोडो प्रमाद पण महाअनर्थनु आपनारो ले ते कहे . __ आज जंबुद्दीपना दक्षिणाई बरतने विषे उत्तरापथ देशमा वर्षमानपुर नगरें, अजितवईन नामें राजा राज्य करे बे. त्यां स एवे नामे गाथा पति रहे. तेनी चंदा नामें नार्यानो सर्ग एवे नामें पुत्र . ते पूर्वकत क मैकरी निर्धन ने. अनुक्रमें ते सह मरण पाम्यो. केटलो एक काल गयो, पली आजीविका पण दुःखे पूराय माटें चंदा उदरभरणनिमित्तें परघरने विषे काम करे. सर्ग पण साग प्रमुखनां इंघणां लावी आजीविका करे. ॥ यतः ॥ किं किं न कयं को को, न पनि कह कह ण णामियं सीसं ॥ उप्परनयरस्स कए,किं न कयं किं न कायवं ॥१॥ एम करतां एक दिवसें तेनी पासे ईश्वरशेठ पाडोशी वसे ले. तेने घेर जमाइ याव्यो ने. सर्गनी पण घेर अाववानी वेला थ डे. एवा अवसरे ईश्वर शेने पाणी नरवा माटें चंदाने बोलावी, त्यारे चंदा पण पुत्र नूरव्यो आवशे, एवं जाणी. ते ना सारुं शीके नोजन मूकी, कूतरा प्रमुखना जयथकी बारणे कडी चढा वीने त्यां गश्. थोडी वेला पढ़ी सर्ग आव्यो. तेणें इंधणां मूकी माताने खो ली; पण जडी नही शीकेपण जोयुं नही. नूखें तरचे पीड्यो कषाय वंत थयो. हवे चंदायें पाणी वयुं; पण शेठना माणस कामकाजमां व्यग्र हता. Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २२३ तेणें कां न आप्यु. माटे चंदाना मनमां घणो खेद उपन्यो. पनी घेर आवी एटले कषायें सर्ग बोल्यो. अरे तने त्यां शूलियें दीधी हती के गुं ? जेमाटे महारी वेला वीसरी गइ. ढुंनूखें पीडा पामु बुं. त्यारे ते पण दुःख णी हती, तेथी बोली के, गुंतहारा हाथ कपाणा हता के, शीकेथी लेश्ने खाधुं नही! एवी रीतें बे जणने तथाविध वचन उचारतां हीणा कर्मबंधाणां. एकदा को कर्मविचित्रतायें, नाविनावनायोगें, विशिष्ट फल थनार , माटें मानतुंग नामा आचार्य पासे ते बेहु जणें जैनधर्मनो बोध पामी श्रा वकपणुं अंगीकार कयं. तेने घणा काल पाली -दावस्थायें गुन परिणामें बेदु जणें चारित्र लीधुं. अंते संलेषणा करी समाधियें मरण पामी देवलो के उपन्या. त्यां आज पूर्ण थये सर्गनो जीव च्यवीने जंबुद्दीपना जरतमां ताम्रलिप्ति नगरीये कुमारदेव नामें शेठने घेर जींजुझा नामें नार्यानी कूखें पुत्रपणे उपन्यो. तेनुं अरुणदेव नाम दीधुं. ते अनुक्रमें कुमारनाव पाम्यो. पाउलथी चंदानो जीव पण देवलोकथी च्यवीने पामलापथ नगरें ज सादित्य नामें शेठनी इलुया नामें नार्या बे, तेनी कूखें स्त्रीपणे आवीने उपनी, तेनुं देयणी एवं नाम पाडयु. ते महोटी थर, त्यारें नाविनावना योगें अरुणदेवने आपी. ते परण्या विनाज व्यापार करवा जहाजे चढयो. महा कडाह हीपे गयो, त्यांथी पाबां वलतां कर्मपरिणाम विचित्र डे माटे जहाज नांग्यु. पोतें अने एक महेश्वर नामें बीजो पुरुष हतो, ए बेदुज ण पाटीये वलग्या. पाटीयुं तरतुं तरतुं समुश्ने कांठे आव्युं. ते पामला पथ नगरना नद्यानने विषे आव्या. महेश्वर बोच्यो, हे कुमार ! इहां त मारु सासरूं , माटे गाममां जश्य. अरुणदेव बोल्यो हे आर्य, आ अवस्थायें सासरे जq युक्त नथी. महेश्वर बोल्यो, जो एम ने तो तमे आ देवकुलमां बेसो, ढुं हाटथकी कांक नोजन लश् बाबु. एम कही. महेश्वर गाममा गयो. पालथी अरुणदेवने मार्गना खेदें देवकुलमां गंघ श्रावी गइ. एवा अवसरमा देशणीने पाबला नवे जे पुत्रनें कह्यं ह] के. "तहारा हाथ कपाणा हता के ?” ते वचनना कर्मनो उदय आव्यो. ते नवनना उद्यानने विषे रही . त्यां तेने तस्करें ग्रही तेना हाथमां महामूल्य मा णिकनां कटकयुगल हता, ते अई काढयां पण आकरा घणां हता तेथ। पूर्ण काढी न शक्या. तेवारे तेनुं मुख जीडी बरीथी हाथ कापी कटक यु Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. गल लेइने चोरें नासवा मांमधु. ते उद्यानपालकें दीगो. बूम पाडी. एवा मां कोटवाल आव्यो. ते चोरनी पाउल दोज्यो. चोर पण उतावलुं चाल वाथी श्वासें जराइ गयो. शक्ति दीण थइ. अने जाण्यु के, हवे बागल न हिं चाली शकुं. पूर्व देवकुल धारी मूक्युं दशे, माटे ज्यां अरुणदेव सूतो डे, ते देवकुलमा पेठो. एवा अवसरे अरुणदेव पण पूर्वनवें बोल्यो हतो. जे “ तने शूलियें दीधी हती के गुं” इत्यादिक वचननुं कर्म उदय थयु. तेवारे ते चोरें विचास्यं के, बीजो उपाय नथी, तेथी कटक युगल अने बरी ए वे वस्तु अरुणदेवनी पासे मूकी.अने पोतें शिखरमां संताइ रह्यो.. हवे अरुणदेव जाग्यो, दैवयोगें कड़ां अने बरी ए वेदने अरुणे पोतें लीधां. अने विचास्युं के, कोई देवतायें संतुष्ट थश्ने मने आप्यां हशे, मा टे फांटमां घाल्यां. पण वनी शंका उपनी के, देवें आपेलामां बरी केम हो य? एम चिंतवे जे एवामां कोटवाल आव्यो तेने देखी मनमां खोनना पा म्यो. कोटवाल बोल्यो. रे उष्ट कुराचार ! क्यां जश्श ? एवं सांजलता हाथ मांथी बरी हेती पडी. तेने कोटवाले पकड्यो त्यारें अरुणदेव बोल्यो. दूं कडांनी वात जाणतो नथी. एटले तलारने रीश चढी. मारवा मांमयो. नये करी पूरांगोपव्यां न हतां तेथी कडां हेतां पड्यां. ते कोटवालें लीधां. अने निश्चय कस्यो के, एज चोर ! पनी राजा पासे लाव्या.सर्व व्यतिकर राजाने संजलाव्यो. राजाने का पण शंका रही नही. त्यारें हूकम कस्यो के, एने शूलिये द्यो. राज्य पुरुषोयें वधस्थानके लावी शूलियें दीधो. ___ एवामां महेश्वर जोजन लेश्ने आव्यो, देवकुलमां जोयुं तो अरुणदेव ने दीठो नही. पनी द्रकडो आवी सर्व ठेकाणे जोयो, पण न जज्यो. म हेश्वर आकुलव्याकुल थयो. पडी देवकुलनी समीपे मालीप्रमुखने पूब्यु के, अरे पुरुषो ! तमे एवा प्रकारनो शेतनो पुत्र देवकुलमांथी जतो आवतो दीगो ? त्यारे ते बोल्या. नाइ को दीगो नथी. पण हमणां एक चोर मास्यो. तिहां न जाणियें कदापि कौतुक जोवा गयो होय तो होय ? त्यारें महे श्वर खोजना पामतो बोल्यो. रे नए क्या क्यां ते स्थानक ? त्यारें माली ये मार्ग देखाड्यो, शून्य हृदयथकी महेश्वर त्यां गयो. तेणे शूलिये च ढावेद्यं शरीर बेदाणुं, महादारुण अवस्था जोगवतो अरुणदेवने दीो. हवे महेश्वर पण हे श्रेष्ठिपुत्र ! हे श्रेष्टिपुत्र ! एम कहेतो मूर्जा खाइ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १२५ " नू मियें पज्यो. त्यां जे लोक जोवा याव्या हता ते लोकें कौतुक खने नुकंपायें आश्वासना करी पूढयं. हे आर्य, ए श्रेष्ठिपुत्र ! कोण बे ? त्यारें गजद वाणीयें महेश्वर बोल्यो. अरे जाइ ! ए कथा शी पूबो बो ? ए क या पूरी य. ए तो ताम्रलिप्ति नगरीने विषे तिलकनूत एवो कुमारदेव ना मा शेठनो पुत्र बे ने या नगरमां वसनारो जसादित्यनो जमाइ बे, ते जहाज जांग्युं, परिवारथी वियोग पामीने यांजज इहां याव्यो में कयुं के, इहां तहारुं सास बे. चालो आपणे तेने घेर जइयें. त्यारें एणें कयुं के, या अवस्थायें सासरे केम जइयें ? त्यारें में कयुं या देवकुलने विषे तमे रहो. हुं हाटेथी नोजन लावुं. एम कहीने हुं जोजन जेवा गयो. हुं पाप कर्मा नोजन लेने ग्राव्यो, सघलें जोयुं पण न दीवो. अनुक्रमें मालिने पूवाथी तेणें कयुं के, हमणां चोर मायो, ते त्यां जोवा गयो होय तो कोण जाणे ? ए जोवा हुं इहां याव्यो. एटले ए रीतें दीगे. एम कहेतो कहेतो वली पृथ्वी पर पड्यो. ते जेम तपावेली वेलुमध्ये मब तडफडे, तेम तडफडवा लाग्यो. वली नवी शिलायें करी पोतानो वध करवा लाग्यो. एटले लोकोयें पकडी राख्यो. ए वात सर्वत्र प्रसिद्ध थ. जसादित्यें प ए व्यतिकर जाएयो. त्यारें तेजवेला देइणीने जेइने त्यां प्राव्यो. ते पण रु देवने शूलियें देखी विलाप करवा लाग्यो. अहो ! महारी अधन्यता ! एम तां देवीसहित मूर्छा खाइने धरतीयें पड्यो. परिजने आश्वासना क री, पी जसादित्य बोल्यो के, काष्ठ लावो, महारे बली मरतुं बे. या शो क संताप महाराथी खमाय नही. परंपरायें ए वात राजायें पण सांन ली. राजा कोटवाल उपर कोपायमान थयो. कोटवाल बोल्यो. महारो कां वांक नथी. में चोरने मुद्दा सहित पकड्यो. बे हुं कांइ ज्योतिषी न श्री. इत्यादिक वातो कही राजाने प्रतीत करावी, राजा पण जसादित्यने प्रतीत कराववा निमित्ते वध स्थानके यावीने शेठने कहेवा लाग्यो रे जड़ ! हां मारो वांक नथी. दैवनो वांक बे. माटे ए मरवानो व्यवसाय न करो. दैवपरिणति एवीज होय. एम कही अरुणदेवने शूलियेंथी उतायो. एवा समये चारज्ञानना धणी अमरेसर नामा खाचार्य घणा जीवने प्रतिबोध देवानो अवसर जालीने घणा साधु, घणा देवतायें परिवस्या थकां त्यां पधारता हवा. तेमना प्रजावेंज महेश्वरादिकना शोकनो अनुबंध वि Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. लय जतो हवो. अहो ! अपूर्व दर्शन नगवंत प्रशांत, देवतायें पूजित माटे धर्म सांनलिये, एवी बुद्धि थ६. देवतायें पण धरती शुक्ष करी, सुगंधी पा पी वरसावीने सुगंधि कुसुमनी दृष्टि करी. सुवर्णकमल रच्यु. ते उपर बे सी गुरुयें धर्मदेशना दीधी. नो नो ! देवाणुप्पिया मोहनिश बमो, धर्म जा गरणे जागो, प्राणातिपात प्रमुख अढार पापस्थानक परिहरो, क्षमाप्रमुख गुण अंगीकार करो, नाव शत्रु प्रमादने बांमो, प्रमाद रसें वाह्यो जीव थो डापण अनाचार दो घणाकाल दारुणविपाक वेदवा योग्य कर्म बांधे.ते ने विपाकें अरुणदेव अने देशणीनीपेरें शरीरसंबंधि अने मनसंबंधि घणा मुःख जोगवे. त्यारें राजा प्रमुखें पूब्युं के, हे नगवन् ! एवं गं कुष्कृत क युं हतुं ? तेमने गुरुयें पूर्वनुं सर्व कथानक कयुं ते सांजली,अहो ! एटला पुष्क तना एवा विपाक ! तो बीजानी शीवात ? एबुं जाणी पर्षदा वैराग्यवंत थइ. ___ एवामां अरुणदेव अने देणी मूर्जा पामी, फरी चेतना पाम्या, जा तिस्मरण ज्ञान उपन्यु, हृदयथी संक्वेश गयो, गुन परिणाम वध्यो. त्यारें कहेवा लाग्यां के, हे जगवन् ! जेम तमें कयुं तेम अमें सादात् दीतुं. जि नधर्म अचिंत्य चिंतामणि रत्नसरखो पाम्यां. अमें सारीपेठे जाण्यु के, कर्मपरिणति एवीज होय . तेथी अमारुं सर्वे आर्तध्यान गयुं. अमने प रम संवेग उपन्यो . ते माटे हवे अमने अनशन पञ्चरकावो, अने जन्म, जरा, मरण, शोकना नय टालो. आचार्य नगवान् बोव्या. ए योग्य ने, एमज घटे ,आ अवस्थायें विशु६ पञ्चरकाण . ते नवनी परंपराने टाले, उर्गति दूर करे, सतिये पोचाडे, मनुष्यनां अने देवतानां सुखने साधा वे, अनुक्रमें परम निर्वाणपद पमाडे. एम कही राजा अने शेठने सम्मत ते बे ने अगसण पच्चरकावता हवा. तेणें अमरेसर आचार्यनी घणी स्त वना करी के, हे जगवन् ! अमारुं सुलब्ध मनुष्यपणुं. जेने तमे धर्मसारथी मव्या, विचित्र कर्म परिणामने वश जे प्राणी थया ने तेने तमे परम वैद्य बो. हवे हे नगवन् ! अमारे गुं करवू ? गुरु बोल्या के, जे कर हतुं ते क यु. वली विशेषे सर्व नावने विषे जे ममत्व , ते उखनुं मूल , ते ने टालो, वली परमपदनुं कारण एवं जे मैत्रिपणुं ते समस्त जीव उपर जावो, पूर्वे दुष्कृत करयां होय, तेनी विशुम नावें उगंडा करो, तीर्थक रनी प्ररूपी ज्ञानदर्शनचारित्ररूप रत्नत्रयीनो बहुमान करो, प्रमाद परिह Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २० रीने परम पदनुं स्वरूप चिंतवो, ते सर्व तेणें यथाशक्तियें करवा मांमधु. ए अवसरे राजा परम संवेगें करी बोलतो हवो. हे नगवन् ! एटलं पाप तेना एवडा विपाकाव्या? तो अमने गुंनिपजशे ? जेमाटें नहाम प्रमादना परवश थकी, अणविचास्या कामना करनारा अमारा सरखा प्रा पीनी शी गति थशे ? गुरु बोल्या. हे राजन् ! ए कर्मपरिणति एवीज , ए रीतें थोडा प्रमादथी उपन्यां कर्म तेनां एवां अथवा एथी पण आकरां विपाक उदय आवे, अने घणां अधिक कर्म संच्यां होय तो तेथी आगल नारकी तिर्यचनां तीव्र कुःख जीव जोगवे. ते पण घणा काल सूधी नोगवां पडे, ते माटे जगजुरुये कह्यु डे के, सुख श्बकें, थोडो प्रमाद पण न करवो. व ली फेर खावं ते रूटुं, व्याधियें शरीर तपाव ते रूडं, अग्निमध्ये जील, ते रूडं, शत्रुनी संगत करवी ते जली, नुजंग नेगा वसतुं ते श्रेष्ठ; पण प्र माद करवो ते रूडो नही; महा पुःखदाइ जाणवो. पूर्वे सर्व विष प्रमुख जे कह्या ते तो मात्र एकज नवे दुःखना देनार बे, अने प्रमाद तो बेदु नवें कुःखदायक . वली प्रमादना सामर्थ्यथी जीव आत्मकार्य न देखे, रास नवृत्तियें प्रवर्ने, अनागत काल न देखे, गुरुलाघव न विचारे, गुरुनो बदु मान न करे, अनुक्रमें पापकर्म बांधीने तेना विपाकें नरकादिकने विषे ए वु संक्वेशस्थानक नथी, के जे प्रमादी प्राणी न पामे. त्यारें राजा बोल्यो. हे नगवन् ! ए प्रमाद सेव्यो तेनो हवे श्यो उपाय ? गुरु बोल्या. सर्व या रंन अने परिग्रहनो त्याग करवे करीने चारित्र अंगीकार कर. ए अप्रमा दनुं जे बाराधन ते हे राजन् ! एकांते कर्म व्याधिनु औषध . सर्व लोक मां अनिंदित, पंमित लोकने आनंदनु उपजावनार, या नव अने परन वने विषे विघ्नकष्टनुं टालनार , मिथ्यात्वने दूर करनार , झानपरिण तीने वधारनार , सकल कल्याण, साधन डे, परम थारोग्यना सुखनुं उपजावनार बे. ए अप्रमादथी वृक्षवंतें शीघ्र, निरतिचार चारित्र पालवा थी, पूर्वला महा प्रमादें करी संच्यां जे पाप, ते क्ष्य थाय अने स्वनावें तेवा कारणने अनावें नवाकर्म बांधे, त्यारे हे देवापुप्रीय ! कर्मजाल ख पावी केवलझान पामी अपुनरागमनें सिदि वरे. ज्यां जन्म नही, जरा न ही, रोग नही, शोक नही, संयोग नही, वियोग नही, एवं निरुपम सुख पामे. त्यारें राजा बोल्या. हे स्वामी ! झुं एवं अप्रमाद न सेव्यो ? जे माटे ए Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. टलो लगारेक प्रमाद, ते एवडा फुःखनो दातार थयो ? त्यारे नगवंतें क ह्यु के, अप्रमाद तो सेव्यो, पण कर्मपरिणति विचित्र , माटे अप्रमाद मात्रे सकल कर्म न खपे, किंतु उत्कृष्टो अप्रमाद सेवे त्यारें खपे. वली सांनल हे राजन ! एटला अप्रमादथी पण ए रीतनां घणां कर्म खपाव्यां. वली आगले एनी संततिपरंपरा त्रुटी, उत्कृष्टा अप्रमादनुं बीज वाव्युं, एक नव नोगववा योग्य रयुं हतुं ते नोगव्युं, माटे धन्य ले. तेथीज परमे श्वरें कह्यु ." समयं गोयमा मा पमायए” ते माटे पूर्वलां दुष्कृत निं दियें, गुरु पासे वैराग्ये करीने आलोयें, विधिपूर्वक प्रायश्चित्त अंगीकार करियें, ए रीतें गुन परिणामरूप अग्नियें करी कर्मबीज बले थके निय मा विपाकरूप अंकुरानी नत्पत्ति न होय. ते माटें अप्रमादनी सामग्री मलें प्रमाद न सेंववो. ते सांजली राजा प्रतिबोध पाम्यो, बंदीखानां मू काव्यां, दान दे चारित्र अंगीकार कयं. जसादित्य तथा महेश्वरें पण दी दा लीधी. ए वात सांजली कडाना चोरने पश्चात्ताप थयो, त्यारे ते गुरु पासे प्रगट थइ कहेवा लाग्यो के, ते पापकर्मा ढुं . महा निर्दयकाम में अंगीकार कयुं, घणुं झुं कहुँ अवश्य महारे मरवू . ते माटे महारे योग्य होय ते बतावो. त्यारें गुरुयें विचाओँ के, एने लौकिक सुंदरपणुं याव्युं . तेथी एने गुणनाजनतो करी शकियें नही. तो पण तेने अन शन कराव्यु, नवकार दीधो, चोरें पण तेमज अंगीकार कस्यो, गुरुने वां या, पनी आनखाने ये अरुणदेव अने देशणी तथा चोर ए त्रणे मरी ने देवलोकें गया. ते माटे अप्रमाद ते हेतु ॥ इति समरादित्य चरित्रे॥ हवे जय तथा शरण पू . ॥ इहां शिष्य गुरु प्रत्ये पूजे जे के, हे नगवन् ! (नयं किं के ) नय ते गुं? त्यारें गुरु बोल्या के, हे शिष्य ! (माया के० ) माया तेज नय. एटले परने मायायें कपट करी, उगवू, बाल देवं, ते जय कहियें. ते उप र सर्वांग सुंदरनो दृष्टांत कहे . वसंतपुर नगरने विपे जितशत्रु नामें राजा राज्य करे . ते नगरमां धनपति अने नावह नामें बे नाइ वसे . तेने धनश्री नामें बहेन डे, प ण ते बालरंमा . परलोक साधवा अर्थी के. एवामां श्रीधर्मघोष नामें आचार्य त्यां पधाया. मासकल्पें रह्या. ते थाचार्य पासें धनश्री प्रतिबोध Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ए पामी, ना पण धर्म सांजलीने समज्या. पनी धनश्री नाई पासे दीक्षा नी आज्ञा मागी, पण संसारना स्नेहें करी नायें आशा थापी नही. ते धनश्री धर्ममां घणो धन व्यय करे, तेथी नोजाइयो कलकलाट करवा लागी ते जोधनश्रीयें विचाओँ के, नाश्नो अनिप्राय जो जे नाइने महारा उपर केवो राग डे ? नोजाश्थी महारे गुं प्रयोजन के ? एम चिंतवीने माया ये बालोच करी एकदा तेणें सूती वखतें एक नोजाइने धर्मोपदेश कहे वा मांमयो, ते धर्म कहीने पढ़ी जेम तेनो नार सांजले, तेम तेने कर्यु. के घj कहे गुं थाय, साडी राखीये, ते सांजलीने नाश्ये विचाटुं, के ए महारी स्त्री निश्चयें मुश्चारिणी देखाय . तेथीज महारी बेहिने एने शी खामण दीधी अने जगवंतें तो असतीपोषण कर्मनी ना कही जे. ते माटे हुँ ए स्त्रीनो त्याग करूं. पनी ते स्त्री ज्यारें पल्यं वेसवा यावी, त्यारे ते में निषेध कस्यो. ते जो स्त्रीय विचाओँ के, या ते गुं ? वली नारें कह्यु के, तुं महारा घरमांथी निकल. स्त्रीयें चिंतव्यु के, में गुं दुष्कृत कां ? वि चारतां थकां पोतामां हीऍ याचरण तो कांइन दी. त्यारे त्यांज धरती उपर महाकटें रात्रि गमावी. प्रनातें आमण उमणी थकी बहार नीकली, त्यारे तेनी नणंद धनश्रीयें पूज्युं के, तुं श्रामणमणी केम बो ? ते रोती थकी कहेवा लाग। के, न जाणिये महारो शो अपराध ? जेमाटे तमा रा नाश्यें मने घरमांथी काढी मूकी. त्यारें धनश्रीयें कर्तुं तुं धैर्य राख, हुँ ए वातनी खबर काढीश. पड़ी धनश्रीयें पोताना नाश्ने पूब्युं के, तहारी स्त्री दिलगीर थायजे, तेनुं गुं कारण ? नायें कडं के, ए कुशीला स्त्री थी सा! बहेने कर्वा के, तें एने कुशीला केम जाए? ते बोल्यो, के, तहा री पासेज धर्मदेशना देतां निवारण कयुं ते सांजल्युं. त्यारें धनश्री बोली अहो! तदारुं पंमितपणुं अने विचारदाक्षिण्य, जेमाटे में तो तेने धर्मोप देश देतां एq कह्यु के, उःशील ते बहु दोषमय बे. माटे साडी राखियें. ए टला माटे तहारी समजप्रमाणे ते उशीलपी थइ गइ ? ते सांजलीने नाइ जाज्यो, मिहामि उक्कड देवराव्युं, त्यारें धनश्री विचाओँ के, ए नाश्तो काबुं धोखं जे कां कहीश ते सर्व मानशे. पही धनश्री बीजा नाश्नी परीक्षा पण एमज करवा मांझी, तेमां ए टलो विशेष के, तेनी वहुने धर्मोपदेश देतां कह्यु के, हाथ राखियें. ते नाइ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. ये पण तेमज कस्युं. ते सर्व पूर्वे कहेला पहेला नाश्नी पेठे जाणवू. त्यारें धनश्रीयें जाण्यु के, ए ना पण कालुं धोखं जे कहीश, ते सर्व मानशे. ए रीतें मायायें डाल देवाना दोष थकी तीव्र कर्म बांध्यु. पडी ते कर्म अणयालो अणपडिक्कमीने नावथकी पोताना बे नाइ, अने बे नोजाइ ननी साथें धनश्रीयें दीक्षा लीधी. ते पांचे जण दीदा पालीने देवलोकने विषे नपन्यां. त्यां यान पूर्ण यये वे ना आगलथी च्यव्या. ते साकेतपुर नगरें अशोकदत्त नामें शेत, तेना समुदत्त अने वरदत्त नामें बे ना पुत्र पणे थया. बहेननो जीव पण च्यवीने गजपुर नगरें शंख नामे श्रावकनी पुत्रीपणे आवी नपनी. ते रूपें घणीज सर्वांगें सुंदर हती, माटे तेनुं स वीगसुंदरी एवं नाम दीधुं. वे नोजाइना जीव पण देवलोकथी च्यवीने कोशला पुर नगरें नंदन शेतनी श्रीमती अने कांतिमती नामें पुत्रीयो थ इ. अनुक्रमें ते सर्व यौवन अवस्था पामी. ___ एकदा अशोकदत्त शेठ कां काम उद्देशीने गजपुर नगरने विषे श्रा व्या , तेणे सर्वांगसुंदरीने दीठी. त्यारे कोकने पूब्यु के, ए कोनी क न्या ने ? तेणे सर्व वात कही. ते सांजलीने पोताना समुदत्त पुत्रने मा टे शंखशेठ पासे मागी. शंखशेनें हाकारो नण्यो, अनुक्रमें परण्या. त्यार पनी जमाइ ससराने घेर थाव्यो. ससरायें आदरसत्कार दीधो, वासघर सज्यु,एवा अवसरमां ते सर्वांगसुंदरीने प्रथमनुं मायाब कर्म उदय था व्यु, तेवारें नारें वासघरने विष रह्यां, कोई देववाणी अने कोइ पुरुष नी बाया दीती. त्यारे नरिने शंका उपनी के, महारी स्त्री कुशीलणी , एने कोक जोश्ने गयो. पनी ते स्त्री वासनवनमां यावी, पण नारें बोलावी नही. तेवारें दुःखार्त्तिवशे पृथ्वीने विषेज रात्रि गमावी. प्रनातें कोई सऊनने विना पूडेज एक ब्राह्मणने कहीने समुदत्त साकेतपुर नगरे गयो. पड़ी कोशल पुरने विषे नंदनी दीकरी पूर्वनवनी धणीयाणी श्रीम तीने परण्यो, अने एनो नहानो नाई पण ते श्रीमतीनी बहेन अने पान ला नवनी पोतानी घणीयाणी कांतिमतीने परण्यो. ते सर्वांगसुंदरी सांजल्यु. के, जार बीजी स्त्री परण्यो. तेथी तेना कुटुंबने सर्वांगसुंदरीने विषे घणी अधृति उपनी. पनी जावु आवq पण टल्यु. त्यारे सर्वांगसुंद री धर्मने विषे तत्पर थ६. अनुक्रमें कोश्क साधवी पासे दीक्षा लीधी. का Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १३१ लांतरे विहार करती गुरुली साथे साकेतपुरे गइ. त्यां पूर्वजवनी नोजाइयो तो उपशांत चित्तवाली श्राविका थइ बे, पण वे नाईयो धर्म पाम्या नथी. ते प्रवसरें बीजुं मायाबंध कर्म ते यार्याने उदय आव्युं, तेथी पारणा ने दिवसे गोचरी गयां, त्यां श्रीमती वासघरमा रही थकी हार परोवे बें. वामां ने घेर साध्वी प्राव्यां तेने जोइ श्रीमती नवीने उनी थइ, ते हा र पडतो मूकी निक्षा यापवाने अर्थे घरमा अन्न सेवा गइ एवामां चित्रा मनो मोर उतरीने हार गली गयो. ते साध्वीयें वनां वनां दीठो, अने विचायुं के, या अचरज ते केवुं ! एवामां साडीने बेडे निहा लइ यावी ते लेने साध्वी त्यांथी चालती यइ. पाबलथी श्रीमतीयें हार जोयो; पण जड्यो नही त्या तेणें महोटा यावर्य पूर्वक परिजनने पूढ परिजने क ह्युंके, एक प्रार्या टालीने बीजुं कोइ याजे इहां श्राव्यं नथी. तेलीयें स्व जनने तबको दीघो. के, एशी वात बोल्यां? कां श्रार्याजी हार लीये नही. पी तो वात फूटी. आर्यायें पण पोतानी गुरुणीने मोरनो व्यतिकर कही देखाड्यो. त्यारें गुरुणी यें कयुं के, कर्मनी परिणति विचित्र बे, पढी ते साध्वी तप करवा लागी . ते जोइ श्रीमती ने कांतिमतीना नर्त्तार हस्या. पण साध्वी धर्मी चूकी नहीं. तेथी पूर्वे जे कर्म बांध्युं हतुं, ते पातलुं पड्युं. ते व श्रीमती जर्त्तार सहित वासघरने विषे बेठां बे, एवामां चि त्रामणना मोरे हेठे नकरीने हार वमन कस्यो. ते जोइ स्त्री उत्तर बेहु वैराग्य पायां, ने विचारता हवा के ग्रहो ! साध्वीजीनुं गंजीरपणुं ? " हो ! महोढुं साहासिक पशुं के जेमाटे ते पोतें जाणतां हृतां पण कयुं नही ! ! एम विचारीने खमाववा जाय बे, एवा अवसरने विषे त्यां साध्वी जी को तथाविध नावनायें करी ध्यानारूढ थइने रूपकश्रेणीमांमी केवल ज्ञान पाम्यां तेनो देवता महोत्सव करवा याव्या बे. स्त्री नतर पण खमा वीने पूवां लाग्यां के, या शो विपाक ? त्यारें केवली भगवानें सर्व पूर्व वन व्यतिकर कह्यो, ने कह्युं के, कोइ माया करशो नही. ते सांन ली ते स्त्री तर वैराग्य पामी चारित्र अंगीकार करता हवा. एवी माया दुःखावह बे ॥ इति खावश्यके अरिहंत वर्णनाधिकारे || हवे जयनुं प्रतिपक्षी शरण बे, माटे शरण कहे बे. अर्थः- शिष्य गुरु प्रत्ये पूढे बे के हे भगवन ! ( सरणं तु किं के० ) श " Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. रण ते गुं? त्यारे गुरु बोल्या के, हे शिष्य ! (सच्चं के० ) सत्य तेज शर ए जाणवू. ॥ यतः ॥ विश्वासायतनंविपत्तिदलनं देवैः कृताराधनं, मुक्तेः पथ्यदनं जलाग्रिशमनं व्याघ्रोरगस्तंननम् ॥श्रेयःसंवननं समृधिजननं सौ जन्यसंजीवनं, कीर्तेः केलिवनं प्रनावनवनं सत्यं वचः पावनम् ॥१॥ ते कालिकाचार्यनी पेठे जाणवू ते कालिकाचार्यनो संबंध कहे . तुरमिणी नामा नगरें जितशत्रु नामें राजा ले. त्यां एक कालिक नामा ब्राह्मण वसे , तेनी जश.नामे बहेन जे. ते बेहिननो दत्तनामें पुत्र . एकदा कालिक ब्राह्मणे पोतानी मेलें प्रतिबोध पामी चारित्र लीधुं.अनुक्रमें आचार्यपद पाम्या. तेमनो दत्त नामें नाणेज निरंकुश थको व्यसनें परानव पाम्यो, राजानी सेवा करे. कर्मयोगें राजायें तेने मंत्रिपद दीg. हवे ते बल पाम्यो थको राजाने पण बहार काढी पोते राज्य सरलीधुं. राजा पण तेना नयथकी नाठो गनो रहे. हवे ते दत्तराजा महाक्रूरकर्मा मिथ्यात्वमोहित अनेक याग करावे. घणां पशुनो घात करे. एकदा त्यां कालिकाचार्य पधाया. त्यारे दत्त पण पोतानी नज्ञ माताना याग्रह थ की आचार्यने वांदवा आव्यो. गुरुयें देशना दीधी. ॥ यतः ॥ धर्मानं ध मत एव कामा, कामेन्य एव सकलेंशियजं सुखं च ॥कार्यार्थिना हि खलु कारणमेषणीयं, धर्मो विधेय इति तत्त्वविदो वदंति ॥१॥ एम सांजली दत्तराजायें यागर्नु फल पूयु. त्यारे गुरु बोल्या के, ज्यां हिंसा त्यां धर्म न होय ॥ यतः॥ कृपानदी महातीरे, सर्वे धर्मतृणांकुराः ॥ तस्यां सौख्य मुपेता ये, कियन्नंदंति ते चिरम् ॥ १॥ तथा ॥ दमो देवगुरूपास्ति, दर्दान मध्ययनं तपः ॥ सर्वमप्येतदफलं, हिंसां चेन्न परित्यजेत् ॥ २ ॥ एम गु रुये कहे थके राजायें फरी यागर्नु फल पूज्यु.गुरु बोल्या. हिंसा ते उर्गति नुं कारण ॥ यमुक्तम् ॥ पंगुकुष्ठिकुणित्वादि, दृष्ट्वा हिंसाफलं सुधीः ॥ नि रागस्त्रसजंतूनां, हिंसां संकल्पतस्त्यजेत् ॥ १॥ त्यारें फरी दत्तें कह्यु के, एवं यहा तहा उत्तर केम द्यो बो ? जेम होय तेम सत्य कहो. त्यारे कालिकाचार्य विचारां के, यद्यपि ए राजा यागना धर्ममां रक्त ने, माटे जेम थनार होय ते था, पण जूतुं बोलq ते मंगलिकनणी न थाय ॥ यतः ॥ यशो यस्मात् नस्मीनवति वन वढेरिव वनं, निदानं खानां यदवनिरुहाणां जलमिव ॥ न यत्र स्याबायातप इव तपःसंयम कथा, कथं Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १३३ चित्तन्मिय्या वचनमनिधत्ते न मतिमान् ॥१॥ एम विचारीने गुरु बोल्या के, हे दत्त ! निश्चयें यागर्नु फल ते नरक ॥ यमुक्तम् ॥ यूपं कृत्वा पशून्हत्वा, कृत्वा रुधिरकर्दमम् ॥ यद्येवं गम्यते स्वर्गे नरके केन गम्यते ॥ १ ॥ त्यारे दत्त बोल्यो. केम जणाय के, यागर्नु फल नरक ? गुरु बोल्या. आजथी सा तमे दिवसे घोडानी खुरीयें विष्ठा नबलशे, ते तहारा मुखमां पडशे. पड़ी लोहनी कुंमीमां तुं पडीश. ए वात जो महारी साची थाय तो ते अनु मानें ए पण सत्य जाणजे के, तहारे नरके जर्बु . त्यारे दत्त बोल्यो के, तमारी शी गति थशे ? आचार्य बोल्या. अमे धर्मना प्रनावें स्वर्गे जश्यु. एम सांजलीने दत्तने क्रोध नपज्यो,मनमां चिंतव्यु के, जो सात दिवसमां ए वात नहि मले, तो ए आचार्यने अवश्य मारीशं. एम विचारीने आ चार्यनी पासे सुनटोनी चोकी मूकी, पोतें नगरमां आवीने नगरना संघला मार्गमांथी अशुचि प्रमुख कढावी गुः६ करावीने सर्व ठेकाणे सात दिवस फूल पथराववानो दुकम करी पोते अंतेरमा जइ बेठो. ___ ज्यारे ब दिवस गया त्यारें आठमा दिवसनी भ्रांतियें सातमे दिवसे क्रोध करीने अश्वनपर बेसी जेवामां गुरुने मारवा आवे जे, एवा अवसरें कोई क घरडो माली वडी नीतिनी बाधायें पीडा पामवा लाग्यो, ते मार्ग व च्चे फूल पाथरतां खाडमां वडी नीति करी. तेनी नपर फूल ढांकीने गयो, ते विष्ठानी नपर दत्तराजानां घोडानो पग पज्यो, तेमांथी विष्ठानो बांटो उबल्यो, ते राजाना मुखमां पज्यो. राजाने विश्वास आव्यो एटने पालो वल्यो त्यां एकांत स्थल जोड्ने राज पुरुषोयें तेने दुष्ट जाणी पकडीलीधो. जितशत्रु राजाने राज्ये थाप्यो. पनी सामंत प्रमुखें विचारा के, ए जीवतो रहेशे तो, वली पण फुःखदाइ थशे, एम जाणीने लोढानी कोठीमां घा व्यो, घणा दिवस सूधी महाकष्ट नोगवतो विलाप करतो पोकार करतो मरीने सातमी नरकें गयो, अने श्रीकालिकाचार्य तो चारित्र पाली स्वर्गे गया. ए रीतें प्राणांते पण जूतुं न बोलवू ॥ इति उपदेश मालायाम् ॥ हवे जे लोन ले तेज सुःख ते देखाडे . ॥ इहां शिष्य गुरु प्रत्ये पूजे जे के, हे स्वामिन् ! (उहं किं के०) सुःख ते शुं ? त्यारें गुरु बोल्या. हे शिष्य (लोहो के) लोन तेज दुःख जे मा टे लोन उपरांत बीजुं कांइ पण दुःख नथी. ॥ यतः॥ ये उमटवीमटं Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ जैनकथा रत्नकोष नाग बडो. ति विकटं कामंत देशांतरं गाते गहनं समुड्मतनुक्शां कृषिं कुर्वते ॥ सेवते कृपणं पतिं गजघटां संघट्ट दुःसंचरं, सप्र्पति प्रधनं धनांधितधिय तल्लो विस्फूर्जितम् ॥ १ ॥ ते उपर मम्मल शेठनो दृष्टांत कहे बे. राजगृह नगरे महान्यायवंत, समकितयुक्त श्रेणिक राजा राज्य करे बे. ते शीलवंती, सम्यक्त्ववंती ने पतिव्रतानुवर्ती एवी चेला नामें राणी हती. तथा ते राजाने चार बुद्धिनो निधान, सकलकलासंपन्न एवो अन यकुमार नामें मंत्रीश्वर हतो. ते नगरमां अनेक कोटिव्यनो धणी, अने क व्यापारनो करनार, परंतु केवारें रूडां वस्त्र पहेरे नही, दान सन्मान मां समजे नही, सर्व कृपणमां शिरोमणि, जो कदाचित् पाडोशीने घेर प्रादुणो श्राव्यो होय, तो पण ते शेठना पेटमा दुखवा यावे. तथा याचक जनने स्तवना करतां सांनजे, तो ते अवलुं मुख करी वेसे तथा कोइ माणस दान देतो होय, अथवा रुडं जोजन करतो होय, तो तेने देखीने तेना मनमां खेद उपजे एवो मम्मल नामें शेठ वसे बे. 3 ते शेठें कृषि, वाणिज्य, पोठिया ने शकट प्रमुख वहेवरावी अनेक प्रयत्न करी रत्नना पुंज नेगा करी तेनो एक रत्नमय वृषन करावीने पोताना घरना उपरला माले थाप्यो बे. अने वली बीजो पण रत्नमय वृषन करवा मांमयो बे, पण तेनुं शींगडुं धुरुं बे. ते संपूर्ण करवाने अनेक व्यापार करे बे. एकदा चोमासानो काल याव्यो बे, जलवट स्थलवटना मार्ग तो चा लता नथी, देशावर प्रमुखने विषे वाणोतर व्यापारनां काम चलावे बे, खने पोतें तो नकामो वेठो बे, तेथी मनमां विचाखुं के, डुं नकामो वेतो बुं. मा टेबाज नदी पूर श्राववाथी लाकडां तपाई जतां हरो, तेनी जारो बांधी लावुं, तो पांच पैसा कमावुं . एम चिंतवी वर्षाद वरसते एक कौपिन पहे शीतल वायरें शरीर कंपाते थके अंधारे करी एकाकी दिशा ढंकाइ गइ बे, एवे मार्गे चालतो नदीयें याव्यो मांहे पेशी काष्ठ काढवा मांझ्या. ते अक्सरे चेला राणीयें गोखे बेगं थकां महा दुःखीयो, महा दरि रूपें ते शेठने वीजलीना चमकारें दीवो. त्यारें राजा पासे यावीने क. हेवा लागी. जो राजेंश् तम सरखा जे बे ते नखाने नरे, पण एवा दुःखी याने कोइ नापे ॥ यतः प्राकद्विकल नीरं, रेवा रयणायरस्स अप्पे ॥ दुइ मरुदेसे, सवं नरियं नरिति ॥ २ ॥ ते माटे हे राजन् ! नरे Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १३५ लाने जर ते वृथा ॥यथा ॥ वृथा दृष्टिः समुझेषु, वृथा तृप्तेषु नोजनम् ॥ वृथा दानं धनाढयेषु, वृथा दीपो दिवापि च ॥ ३ ॥ हे राजन् ! जे अ नाथ फुःखीया दरिडी होय तेने उपगारना करनारा थोडा. एवां राणीनां वचन सांजलीने राजाने दया आवी. तेवारें पोताना पुरुषोने मोकलीने शे ने तेडावी पूज्यु के, हे मोसा ! आ वेलायें नदीमाथी लाकडां काढे ने, तेनुं गुं कारण ले ? त्यारे ते बोल्यो. हे राजेंड! महारे घेर एक वृषन ले, अने बीजो जोश्ये जे; माटे धन नपार्जवानी बायें में विचारां के, आ ज वर्षाकालें नवरा बेठा का कार्य करिये, अने आज इंधणां मोघां ने, ए म जाणीने या काम करूं बं. त्यारें राजा तेनी नपर संतुष्ट थाने पो तानी गमाणीमां महा बलवंता धुरंधर मनोहर अनेक वृषन देखाड्या, अने कह्यु के, एमांयी जे तहारे गमे ते ले. पण शेठने एके वृषन न गम्यो. त्यारे राजायें तेने पूब्युं के, तहारो वृषन केवो के ? त्यारे शेत बोल्यो. रत्नजडित सुवर्णमय ले. ते सांजली राजा, चेलणा राणी अने अनयकुमार प्रमुखें प रिवस्यो थको वृषन जोवा सारं मम्मण शेतने घेर गयो. ते वृषन देखी राजा विस्मय पाम्यो. ते बलदमां एकेकुं रत्न एवू डे के, राजाना नंमारमा पण तेवु नथी. त्यारें राजायें शेठने ठबको दीधो के, झुं आ कष्ट कृपणा करे ने ? ए कां तहारी साथे नहि आवे ? तोपण ते शेठना मनमां न याव्यु. ॥ यतः॥ उपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शांतये॥पयः पानं नुजंगानां, केवलं विषवनम् ॥ पडी राजाप्रमुख निंदा करतां पोताने घेर वाव्या. मम्मण शेठ पण अनंतानुबंधी लोनना उदयथी मरीने सातमी नरके ग यो. त्यांथी निकली वली पण अनंतो संसार रमलशे ॥ इति श्रीश्रावश्यक नियुक्तौ ॥ तेमाटे लोन उपरांत को बीजो कुःख नथी. हवे पुरखनु प्रतिपदी सुख ले माटे ते प्र . ॥ इहां गुरु प्रत्ये शिष्य पूजे जे के, हे स्वामिन् ! (सुहं किं के०) सुख ते गुं ? त्यारें गुरु (बाह के०) बोल्या के, हे शिष्य! ( तुहि के ) सतोष तेज सुख ले.संतोष उपरांत बीजुं सुख नथी.ते उपर कपिल केवलीनो दृष्टांत कहे जे. __ कोशांबी नामे नगरीने विषे जितशत्रु नामें राजा राज्य करे ले. त्यां का श्यप नामें ब्राह्मण रहे ते चौद विद्यानो पारगामी, राजानो पुरोहित, राज मान्य . तेने जसा नामें नार्यानो कपिल नामें पुत्र बे. ते बालक थकांज Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. तेनो पिता मरण पाम्यो. त्यारे पुरोहितनी पदवी राजायें बीजाने आपी. एकदा ते नवो पुरोहित घोडे बेसी बत्र धरावतो मार्गे चालतो देखीने, जसा रोवा लागी. त्यारें कपिलें पूब्युं के, हे माता! तुं श्यामाटे रुए ? जसा बोली के, तहारो वाप आवी ऋतिथीज निकलतो हतो, जे माटे ते विद्या वंत हतो. ॥ यथा ॥ विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं, प्रबन्नगुप्तधनं, विद्या नो गकरी यशःसुखकरी विद्या गुरुणां गुरुः ॥ विद्या बंधुजनो विदेशगमने, वि या परं दैवतं, विद्या राजसु.पूज्यते नहि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥१॥ त्यारे कपिल बोव्यो के, ढुं पण विद्या नणीश. तेने मातायें कह्यु के, इहां मत्सरें करी तने कोइ नहि नणावे. ते माटे जो नगवानी हा होय, तो सावजी नगरीयें जा. त्यां तहारा बापनो मित्र इंदत्त नामें पंमित बे. ते तने नणावशे. एम सांजलीने कपिल त्यां गयो. जश्ने इंदत्तने पगें प ज्यो. तेणें पूज्यु के, तुं कोण ? त्यारे कपिलें सर्व वृत्तांत निवेदन करी हाथ जोडीने कह्यु के, ढुं विद्यार्थी j, महारा माता पिता अने तमारामां कांई फेर नथी, ते माटे ढुं तमारे चरणे आव्यो बु.तो तमे मने जपावी ने पसाय करो. त्यार उपाध्याय बोल्या के, तुं महारे पुत्रसरखो बगे. तु कने विद्या गृहवानो उद्यम करवो युक्त . ॥ यतः ॥ श्लोकाध श्लोकपा दं वा, समस्तं श्लोकमेव वा ॥ अवंध्यं दिवसं कुर्या, दानाध्ययनकर्मसु ॥१॥ माटे विद्यारहित पुरुप ते पशुसरखो जाणवो. ते माटे तुं सुखें जण्य पण नोजननी सामग्री महारे घेर नथी. ढुं निर्धन वं. अने जोजनना सुख विना नणाय नहीं ॥ यतः ॥ याचार्यपुस्तक निवाससुसंगनिदा, बाह्या श्मे पठन पंचगुणा नवंति ॥ धारोग्यबुद्धिविनयोयमशास्त्ररागा, अन्यंतराः प उनपंचगुणा नवंति ॥ १ ॥ ते सांजली कपिल बोल्यो के, निदावृत्तिये नणीश, उपाध्याय बोल्या, के, निदाने अने जणवाने बनशे नही, ते माटे तुं श्राव्य, तहारे अर्थ कोक शेरने नोजननी प्रार्थना करीये. पड़ी ते बेदु जण मती शालिन नामा शेठने घेर गया. आशीर्वादमां गायत्री कही। अनूनुवः स्वस्तत्सवितुर्व रेण्यं भर्गो देवास्व घीमहि इत्यादि ॥ त्यारें शेनें प्रयोजन पूज्यु. उपाध्या य बोल्या जे, ए महारा मित्रनो पुत्र कौशांबी नगरीथी जणवा माटे या व्यो बे. तेने तमे जोजननो श्राश्रय थापो, तो सुखें विद्या जणाय. तम Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गीतमकुलक कथासहित. १३७ ने महोटुं पुण्य थशे. शे ते वात मानीने दासीने कयुं के, ए विद्यार्थी जे, तेने तुं निरंतर जमाडजे, अने एनी खबर राखजे. हवे ते कपिल नित्य नणे अने शेठने घेर जमवा जाय. पण कपिलने सहेजेज हांसीनो ढाल घणो , यौवन पण विकारनुं घर , कंदर्प पण पुर्जय ने, माटे दासी साथें रक्त थयो. दासी पण कपिल साथें अनुरक्त थइने बोली के, तुंज महारे नार हो. पण तहारी पासे कांश इव्य नथी, ढुं तो वस्त्र प्रमुखनी लालचे बीजा साथें वसुं बु. तुं कबूल करे, तो कोश्नी पासें न जावं! कपिलें तेनुं वचन कबूल कयू. . पबीते कपिल दासी साथें रमतां काल काढे, एक दिवसें दासी महो त्सव आव्यो, तेवारें दासी शोकातुर थश्ने बेठी जे. कपिलें पूब्युं, तुं आ ज शोकातुर केम बुं ? त्यारें दासीयें कह्यु. आज दासीमहोत्सव , महा री पासे वस्त्र, फूल, तंबोल, यानरण कॉइ पण वस्तु लाववाने इव्य न थी, माटे सखीयो मध्ये महारी हांसी थशे. ते सनिली कपिल घj उह वागो, दासी कहेवा लागी. तुंमुहवाइश नही.एहज नगरमांधन नामें शेठ वसे ले. तेने प्रथम जे कोइ यावी आशीर्वाद ये, तेने बेमासा सुवर्ण श्रा पेले. ते माटे तुं पण वहेलो जाशीर्वाद ये. कपिलें पण तेनुं कर्तुं मान्युं. हवे कपिलें विचाओँ के, रखेने शेतनी पासें महाराथी आगल कोजाय ! तो मने सोनु मल नही. ते माटे घणो वहेलो निकल्यो. मार्गमां कोट वाल पुरुचे पकड्यो, बांध्यो, प्रनाते राजा पासे लाव्या. राजायें वात प्रजी त्यारे याद्यथी मामी जेवी हती तेवी कही देखाडी. साचं जाणी राजा संतुष्ट थयो. कहेवा लाग्यो के, माग्य,माग्य, जे मागे ते आपुं. त्यारे कपि लें कडं एकांते जर बालोची आवं, एम कही अशोकवाडीमां जयालो चवा बेठो. त्यां विचारे ले के, बे मासे वस्त्र प्रानरण नही थाय, माटे सो सोनैया मागु, वली विचाओँ के, यानवाहनादिक सर्व सो सोनैयामां शुं थाय, ते माटे हजार मागुं. वली हजारे पण परा प्रमुख करतां न हि पहोचे. माटे कोडि किंवा सो कोडि किंवा हजार कोडि माएं ? इत्या दिक चिंता करतां गुन कर्मना उदयथी गुन परिणाम थयो. संवेग पाम्यो, अने विचारवा लाग्यो के, अहो ! लोननो विलास केवो के, जे माटे ढुंबे मासा सोनाने अर्थे निकल्यो हतो, अने जान देखीने कोडीसूधी चढयो; Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. पण लोन पूरो न ययो वली विद्या जणवा माटे परदेश याव्यो बुं, में मा ताने पण न संजारी, उपाध्यायनो उपदेश पण लेखे न गएयो, कुल पण न विचायुं, या दासीने नीच जाणतो बतो पण तेमां मूंजालो ! ते माटे ए सुवर्णे सयुं. ए विषयसंगे सयुं. ए संसारना प्रतिबंधें सयुं इत्यादिक नावनायें जातिस्मरण ज्ञान उपन्युं स्वयंबुद्ध थयो. पी पोतानी मेलें लो च करीने देवतायें पेलो वेष लेइने राजा पासे श्राव्यो. राजायें पूढयुं. शुं विचायुं ? त्यारें कपिल मुनियें सर्व वृत्तांत कह्यो ॥ यथा ॥ जहा लाहो तहा लोहो, लाहा जोहो पवनइ || दोमासाकायकऊं, कोडिएवि न नि हियं ॥ १ ॥ राजा हर्ष पाम्यो थको बोल्यो. के, कोडि पण पुं. मुनि बोल्या. महारे खप नथी. में सर्व संग तज्यो हे राजन् ! संतोषमां सुख ले. तुं पण रूडां काम करजे. एम कही विहार कस्यो. ते माटे संतोष तेज सुखले. इहां तो एटलुंज प्रयोजन बे, पण प्रसंगे खागल कथा कहिये बिये. हवे कपिल मुनियें धर्मलान देइ विहार कस्यो. पांच समितियें समिता, त्रण गुप्तियें गुप्ता, घोरतपवंत, नय ब्रह्मचर्यवासी, निर्मम, निरहंकारी, अ स्खलित पंच महाव्रतना धरनार एवा श्रीकपिल मुनिने उ महिने केवल ज्ञान उपन्युं. एवा अवसरे राजगृह नगरने अंतरे प्रढार योजननी घट वीमां बलनट उत्कट यादि नाम देइ पांचशे चोर वसे बे. ते कपिल मुनि यें ज्ञानें करी जाएयुं के, ए चोर बूऊशे ते माटे बीजो मार्ग मूकीने ट वीने मार्गे चाव्या. अनुक्रमें ते स्थानके पहोच्या. चोरें वेगजेथी जाएयुं के, कोइक यावे . तेज्यारें टूकडा खाव्या एटले श्रमण जाणीने. सहुयें मली पकड्यो, सेना समीपे लाव्या, सहुयें विचाखुं के, ए श्रमणनी सायें खेल करियें. तेथी कत्युं के, तुं नाच. केवली बोल्या. हुं नाचुं पण ताल को ए वगाड ? त्यारे पांचशे चोर मली ताली कूटवा लाग्या. मुनि पण गावा लाग्या ॥ यथा ॥ धुवे सासयंमि, संसारंमि न डरकपनराए ॥ किं नाम होज तं कम्मयं, जेणाहं डुग्गयं न गविका ॥ इत्यादिक श्री उत्तरा ध्ययन सूत्रमां कापिलीय नामे यामुं अध्ययन प्ररूप्युं. ते सांजली के‍ क पहेलीवारे बूज्या, केक बीजी वारें बूज्या, एम अनुक्रमें पांचशेने बू कवीने दीक्षा यापी. ते माटे संतोष उपरांत कोइ सुख नयी ॥ इति श्री उत्तराध्ययन सूत्रे ॥ इति सकलसनाना मिनीनालस्थल तिलकायमानपंमित Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १३ श्री उत्तमविजयगलिशिष्यपंमितपद्म विजयग पिकृतबालावबोधे श्रीगौतमकुल कप्रकरणे चतुर्थगाथायां षोडशोउदाहरणानि समाप्तानि ॥ हवे संतोष उपरांत सुख नही, एम कयुं, अने जे संतोषी होय, ते प्रायें विनयवंत होय; ते माटे पांचमी गाथानी यादिमां विनय कहे बे. ए संबंधें श्रावी पांचमी गाथा तेनुं सूत्र. जय बुद्धी प्रचंमं जयए विणीयं, कुठं कुसीलं कित्ती ॥ संजिन्नचित्तं जय प्र लबी, सच्चे वियंसं जयए सिरीय ॥ ५ ॥ अर्थः- बुद्धी प्रचंमं नयए विणीयं ॥ जे प्राणी ( विलीयं के० ) वि नयवंत होय, तथा ( यचमं के० ) सौम्यपरिणामी होय, तेने ( बुद्धी ho ) विद्या. ते ( जयए के० ) नजे, एटले सेवे. अर्थात् जे प्राणी विनय वंत सौम्यपरिणामी होय, तेने विद्या सेवे. व्यकषायी विनयवंतने ज्ञान घावे. ॥ इति नावः ॥ इहां कषायी उपर जवराज ऋषिनो दृष्टांत कहे बे. विशाला नामें नगरी अनेक जैनप्रासादें मंमित महा ऋद्धियें नरेली बे. त्यां जवना में राजा महान्यायवंत, प्रजानो पालनार, डुष्टनो निग्रह करनार, शिष्टने पालनार, एवो बे. तेने गई निल्ल नामें पुत्र बे, पुल्लिका नामें पुत्री बे, दीर्घष्ठ नामें महा श्रमात्य सर्व मंत्रीमां मुख्य बे. एक दिवसें राजा पाउली रातें जाग्यो, चित्तमां चिंता उपनी के, में पूर्वे दानादिकं गुन कर करीबे, तो मुझपर्यंत महारी खाज्ञा श्रखंम पणें चाले बे. चतुरंगी सेना महारे शोनायमान बे. महारा देश मध्ये डुर्निक, इति, उपड़व, रो ग, एमनो जय नथी. सर्व लोक देवतानी पेठें सुखिया बे, पण ए सर्व पू र्वनी पूंजी वावरुं बुं. ते माटे हवे यागल्या नवनुं संबल करूं. एम विचा तां प्रातःकाल थयो तेवारें सनामध्ये जइ कचेरी जरी वेो वे. • ते वसरे वनपालके यावी विनंति करी के, हे राजन् ! बहार नद्या नने विषे सरु पधारया बे. ते सांजली राजा हर्ष पाम्यो, मुकुट टाली बी Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. जा सर्व बानूषण वधामणियाने प्राप्यां. नगरमा उद्घोषणा करावी के, राजा गुरुने वंदना करवा जाय , ते माटे सदु आमंबर करी वंदना कर वा निकलजो. लोक पण हर्ष पाम्या. मन गमतुं ने वैद्यं कर्तुं. राजा पट ह स्तिउपर वेसी, सदु लोकथी परिवस्यो, याचकादिकने दान देतो, जिनशास न प्रनावतो, केशक मिथ्यात्वीने विषे धर्मबीज वावतो, चालतो हवो. अनु कमें पंचानिगम साचवीने गुरुने वंदना करी, नचित स्थानके बेठगे. सशु रुयें मोदमार्गनी देखाडनारी धर्मदेशना दीधी. जेम के राज्यलक्ष्मी ते पत्र बे, स्वर्गादिकनां सुख ते फूल , मोक्ष सुख ते फल , एवो धर्मरूप क स्पद जयवंतो . संसार समु जन्मजरामृत्युरूप कल्लोलें सहित दे, ते मां जहाजरूप धर्म ते पुण्ययोगें पामियें. ते धर्म साधुश्रावकयोग्य विविध कह्यो . ते बेमां यद्यपि साधुपगुं उक्कर , तथापि ते निर्वाणसुख शीघ्र आपे जेमाटे नुजायें समुश् तरवो, एक हाथें मेरुपर्वत तोलवो, एकलायें कर्म शत्रुनुं महासैन्य जीत, खड्गधारा उपर चालवू, वेलुना कोलिया जरवा, एवी दीदा पालवीकरण डे. अने श्रावकधर्म ते समकितमूला दश व्रतरूप बे. एवी देशना सांजली राजा पण हाथ जोडी गुरुने विनंति करतो हवो के, हे नगवन् ! दुं पुत्रने राज्ये थापीने तमारी पासे चारित्र से इश. गुरु बोल्या के, प्रमाद न करो. नाग्य होयतो एवा मनोरथ थाय. राजायें पण गुरुनुं वचन प्रमाण करी घेर ावी पुत्रने राज्ये थापीने शिखामण दीधी के हे पुत्र तमें प्रजाने पुत्रनी पेठे पालजो, जे माटे दान जोगादिकें करी लक्ष्मी क्य पामे नही. पण प्रजाने संताप उपजावतां ते ना शा राजानी लक्ष्मी दय पामे. वलीअन्याय टालजो, न्याय पालजो, निरंतर धर्म चूकशो नही, तमे महारी पेठे अंते राज्य बांमी चारित्र लेजो, अन्यथा ए राज्य नरके पहोचाडशे. ए रीतें शीखामण दे, प्रजानी थाज्ञा मागी, शासननी प्रनावना करीने दीक्षा लीधी ॥ यतः ॥ स्वर्णाइिस्ताव नुंग; पाराचारश्चस्तरः॥ कष्टा कार्यगतिर्यावत्,न धीर प्रतिपद्यते॥१॥ पड़ी गई निन्न राजा तथा अमात्य अने नगरना लोक वंदना करी स्वस्थानके गया. हवे जवराजऋषि गुरु साथै विहार करतां घणो विनय, वैयावृत्य कर ता, महा तपस्या करता विचरे. सर्व सिद्धांतनुं सार एवो जे पंचपरमेष्ठि नमस्कार तेने संभारतां अप्रमत्त थकां रहे , पण नणे नही तेमने गुरुयें Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १४१ कडं हे वत्स ! तमे जणो. मोक्षमार्ग देखाडवाने ज्ञान ते त्रीजु नेत्र , त्या रें जवकृषि बोल्या. हे स्वामिन् ! महाराथी वृक्षावस्थायें नणातुं नथी मा टे तमारा चरण कमलनी सेवा करीश. अने उस्तर तप करीश. एम करतां केटलेक कालें ज्ञानवंत गुरुयें लान जाणी घाझा करी के, विशाला नगरी यें पुत्रने प्रतिबोधवा निमित्ते जा. त्यां बीजा प्राणीने पण पुण्यनो लान थशे. ते गुरुवचन प्रमाण करी चाव्या. जे गुरुनी आज्ञा तेमुख्य मार्ग . हवे जवऋषि मार्गे विहार करतां चित्तमा .चिंतवे ने के, मुजने का श्रा वडतुं नथी, माटे पुत्रने श्यो उपदेश देश्गुं ? उपदेश विना बीजा प्राणी पण केम प्रतिबोध पामशे ? एवा अवसरने विषे एक जवन खेतर डे, त्यां एक गर्दन बे, ते अरही परही दृष्टि संपवतो जव खावानुं मन करे डे, ते देखीने देवर के एक गाथा कही. जे माटे 'पूर्वकत कर्मे करी विजाती यने पण विद्या होय ॥ गाथा॥ उहावसी पोहावसी,ममं चेव निरिरकसी॥ लरिकन ते अनिप्पा, जवं पजेसि गदहा ॥१॥ व्याख्याः-(उहावसी पोहाव सी के० ) अरहो थावे जे, अने परहो जाय जे. ( ममं के० ) मनेज देखे डे. (तेअनिप्पायो के०) ए तहारो अनिप्राय (लरिकन के० ) उतरख्यो. (गदहा के० ) हे गईल ! तुं (जवं पजेसि के०) जवनी प्रार्थना करे . इति ए गाथा सांजलीने जवराजज्ञषि विस्मय पामीने ते गाथा नगवाला ग्या. जाणे अमोघ शास्त्र पाम्यो एम मानता हवा. विद्या पाम्यानी पेठे मार्गमां ते गायाने गोखता आगल चाल्या. एवामां नहानां बालक मोर दामियें रमे , तेमां एक बोकरें काष्ठवंम रूप अणुनिका मोई नबाली. ते क्यांक जती रही, घणीयें खोली पण न जडी. त्यारे पूर्वनवना अभ्यास थी एक बालकें गाथा कही ॥ यथा ॥ अ गया त गया; जोऊती न दीसई ॥ अम्हे न दिहा तुम्हे न दिशा, अगडे लुढा अणुनिया ॥ ५ ॥ व्याख्याः-(अगया के० ) हांथी गई, ( तगया के ) तिहाथी गई, (जोश्जंती के०) जोतां थकां पण नथी देखाती. (अम्हे के ) अमें .न दीली, तमें पण न दीठी. (अगडे के०) ते माटे कूयामां नांरखी. अण निका शब्दें काष्ठवंम रूप मोइ कहिये. ते सांजलीने जवराजरुषीश्वर सा धु ते गाथा पण जणवा लाग्या. विचाओँ के, जेवं तेवू पण नणवू ते सर्व रूहूं . एम करतां केटलेक दिवसे विशाला नगरीयें पहोता. त्यां कुंजार Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. नी शालायें उतस्या. एवामां त्यां कुंनारनी शालामा नंदरडा वारंवार घणो खडखडाट करे ले, ते सांजली कुंजारें पण एक गाथा कही ॥ यथा ॥ सुकु माल कोमल जबलया,तुम्ह राति हिंमणसीलणया ॥ अम्ह पसा नविन य, दीहपीहा तुह्म नये ॥३॥ व्याख्याः-(सुकुमाल के० ) सुकोमल सुंवा खं जवंत रूडा (रात्ति के ) रात्रे चालवानो शील एटले आचार ले जे ने एवा तुमने (अम्ह के०) अमारातपसायथी नय नथी, पण (दीहपिता 5 के० ) दीर्घटष्ठ जे सर्प तेथकी तुमने जय . ते गाथा सांजलीने मुनि ये विचास्युं के, कामधेनु चिंतामणि अने कल्पवृद ए त्रण हुँ पाम्यो. ___ एवा अवसरें त्यां राजानी बेहेनने, दीर्घटष्ठ मंत्रीश्वरें बानी लावीने नूमिगृह मध्ये रावी . तथा हरकोई उपाय करी ए राजाने मारीने म हारा पुत्रने राज्ये बेसारीलँ, अने राजानी बहेन महारा पुत्रने परणावी झुं. एवो दीर्घटष्ट मंत्री निश्चय कस्यो . जे कारण माटे उर्जन अने सर्प ए बे कांड कोश्नु नपगार करेलो जाणे नही. राजायें पोतानी नगिनी शोधवाने माणसो मूक्या. तो पण जडी न ही. प्रधाने सांजल्यु के,कुंजारने घेर जवराज ऋषीश्वर आव्या ने, ते उत्तर तप करीने ज्ञान पाम्या दे,माटे एमने मुखें वृत्तांत सांजलीने जो महारी वात राजा जागशे. तो मने कुटुंबसहित यमने घेर पहोचाडशे. तो हूं ते नो बागलथी नपाय करूं ! पापी होय ते पोताने पा– पोतेंज शंका पामे. हवे मंत्री राजा पासे गयो. तेने राजायें पूयु. तमे या रात्रीनी वेला ये केम आव्या ? मंत्री पण बलवेला जाणी बोल्यो के, तमारा पिता न नव्रत परिणामी थकुंजारने घेर याव्या ले. ते प्रजातें तमाएं राज्य ले शे. त्यारें राजा बोव्यो. जो पिता राज्य ले, तो महालं महोटुं नाग्य ! हुँ चाकर थइने पितानां चरणकमल सेवीश. तेने मंत्री कह्यु. हे राजन् ! राज्यतो बलात्कारें लश्ये पण पाम्युं राज्य केम खोयें ? ते माटे आज कुंजारने घेर जश्ने पिताने मारो. पडी निर्विघ्नपणे राज्य जोगवो. ते रा जायें साचुं मान्यु. जे माटे राजाने का विचार होय नही. कारण के पा णीनी नीक अने राजा ए वे ज्यां वालिये त्यां वले. हवे रात्रे सर्व लोक सूता, ते वेलायें राजा एकलो हाथमा खड्ग जा ने कुंजारने घेर गयो. तिहां पिता सूता ने के,जागे ,एवं बिरें करी जोवा Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २४३ मांमधु, एटले मुनियें खेत्रपालक पासें सांजलेली प्रथम गाथा गणी. ते गा थामां त्यां जव शब्दें धान्य हतुं, अने इहां जव शब्द जवराजा समज्यो, तथा त्यां गदहा शब्दें गर्दन हतो अने इहां गर्दनिन एवो अर्थ समजा णो, ते गाथा सांजलीने राजा विचारवा लाग्यो के, पिताने ज्ञान उपन्यु देखाय . जे माटे में क्रूर पणे आर्युअवटुं जोयु. ते एमणे जाणी लीधुं तो पण ए खरा ज्ञानी त्यारें मनाय के, ज्यारें महारी बहेननी खबर क हे एम राजा चिंतवे ! एटलामां तो वली.मुनियें बीजी गाथा कही. तेमां अणुन्निका शब्द ते कुमरीनुं नाम , ते जणायुं. तथा अगड शब्दें नूमिगृह जाण्यु. ते सांजली राजायें विचागुं के, ए ज्ञाने जाणीने जे विचा रुं बु, तेनोज जबाप दे . अहो ! ज्ञान ते महोटी वात ले माटे हवे जे शत्रुयें महारी बहेन बानी राखी , तेनुं नामं कहे तो रुडं थाय. एटले गुरुयें त्रीजी कुंजार वाली गाथा कही. ते गाथामां दीहपिठ एटले दीर्घ पृष्ठ नामें प्रधान तेथी तुऊने जय . एवं समजायु. ते सांजली राजायें जाण्यु जे महारा पिता अतिशय ज्ञानवंत बे. महारा मनना संदेह सर्वे जारो ने, अने ते संदेह टाले पण . एम विचारीने राजा धारमा पेठो. यांखे आंसु रेडतो मुझने धिर धि ग हो ? ? जे माटे एकतो पिता बीजो संयमी अने त्रीजो ज्ञानवंत तेने ढुं मारवा याव्यो j? एम पोतानी निंदा करतो पगे लागीने वली कहे तो हवो के, हे पिताजी ! पुत्र कुपुत्र थाय, पण पिता कुपिता न थाय. जो उध पायें तो पण जे सर्पले ते फेर मूके नही. ते सर्प सरखो हुँ थयो. अने. तमेतो रागद्वेषरहित बो॥ यतः ॥ शत्री मित्रे तृणे स्त्रैणे, स्व र्णेऽश्मनि मणे मृदि ॥ मोदे नवे निदा नास्ति, निर्विशेष मनः सताम् ॥ १ ॥ तमे तो ज्ञानवंत बो, अनुक्रमें मोद पामशो. पण ढुं तमारो पुत्र थश्ने धिक्कार था मने के, ढुं उष्ट थयो !! अथवा दीपयकी.पण धूम होय जे. एम राजायें कहे थके पण मुनि बोल्या नही. जे कारण माटे परमार्थ अजाणताने मौनपणुं करवं तेज रूडं ले. राजा पण महात्माने खमावतो,यात्मनिंदा करतो, शेष रात्रि त्यां काढीने प्रनाते स्वस्थानके ग यो. प्रातःकाले दीर्घटष्ठ प्रधाननुं सर्वत्र घर खोलतां त्यां नूंदरामाथी राजा Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. ने पोतानी नगिनी जडी. तेवारें राजायें प्रधाननां घरबार लूंटी लश्ने ते ने देश बाहिर काढी मूक्यो. लोकोयें पण प्रधानने धिक्कार कस्यो. पली राजा समस्त परिवार ले मुनिने वंदना करवा थाव्यो, अने सर्व सनामध्ये स्तवना करतो हवो के, हे स्वामिन् ! तमे गाथा कहे ते थके मुजने कुमंत्री थकी राखीने उपगार कस्यो. पनी मुनियें धर्म कह्यो. ते सां नली घणा जीव प्रतिबोध पाम्या, शासननी प्रनावना करीने, मुनि पाग ग मध्ये थाव्या. पडी मुनियें विचास्युं के, क्षेत्रपालक तथा बोकरा तथा कुंजारनी गाथायें दुं ज्ञानीनी पेठे मानीतो थयो, तो ते प्राणीने धन्य ले के, जे प्राणी निरंतर श्रमायें करी श्रीसिद्धांत जणता हो ! एम चिंतवी ने पोतें निर्मायी थका नवा मांमधु, जेम जेम नणे तेम तेम आत्मा ने कृतार्थ मानता हवा. वस्त्र, पात्र, अशनादिकनो लोन तजीने एक स्वा ध्याय विनयादिकने विषे तत्पर थया थका जणवा मांमयु, घणुं नण्या तो पण नणवानी ला निवर्ति नही. ए रीते घणुंज तप तपी,घणी समता करी, सप्लायरूप अमृत पान करी,गुरुनी सेवा वेयावच्च करी, अनुक्रमें का ल करी देवलोकने विषे देदीव्यमान देवता थया. एम जे कोधरहित हो य, तेने विद्या आवे. ते उपर ए जवराज कृषीश्वरनो दृष्टांत कह्यो. हवे विनयवंतने विद्या नजे ते उपर वे विद्याधरनो दृष्टांत कहे जे. ॥कोइक सिमपुत्रना बे शिष्य हता ते निमित्त नण्या, एक दिवसने वि पे तृणकाष्ठ निमित्ते बहार निकव्या , एवामा हाथीनां पगला दीत. ते मां एक बोल्यो. ए हाथणीनां पगलां बे. बीजायें कयुं तें केम जाण्यु ? ते में कयुं में लघुनीतियें करीने जाण्यु. वली कह्यु. के ए हाथणी काणी जे. बीजायें कयुं तें केम जाण्युं ? तेणें कह्यु के एणे एक दिशिनां तृणां खाधां ने. ते उपरथी जणाय ने के,बीजी यांखें देखती नथी. वली कह्यु के,ए हा थणीउपर स्त्री अने पुरुष बेगे . बीजायें कयुं तें केम जाण्यु ? तेणें कयुं. बेदु जणे हेठा नतरीने लघुनीति करी .ते निन्न निन्न जणाय ने ? वली बोल्यो के, ए स्त्री गर्नवती . बीजायें पूब्युं. तें केम जाण्यु ? तेणें कह्यु के, हाथनो नो देश्ने उठी जे, तेथी जाण्यु. वली कयुं के, गर्नमां पुत्र . बीजायें पूज्यं ते केम जाण्यु ? तेणें कयुं के, जमणो पग नारे ले. वली Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित.. १४५ कह्यु के, राता वस्त्र पहेस्यां . बीजे पूज्युं के, तें केम जाण्यु, तेणें कयुं ते वस्त्रना दशिया वडदें लाग्या छे, तेथी जाण्यु. ___ एम करतां पागल नदीने कांठे गया. त्यां एक मोशीनो दीकरो परदे श गयो , तेनी चिंतायें मोशीयें पूज्यु के, महारो दीकरो क्यारें भाव शे? एम पूबतांज मोसीनो घडो पड़ी गयो. ते घडो नांग्यो, त्यारें एक बोल्यो ॥ यतः ॥ तजायण तजाय, तन्निनेए य तन्निनं ॥ तारूवेण य तारूवं, सरिसं य विलिहिसे ॥ १ ॥ ए रीतें चूडामणि ग्रंथमां कयुं . ए श्लोकनो अर्थ चिंतवीने बोल्यो के, तहारो दीकरो मरण पाम्यो बे. एम कह्यु, त्यारें बीजो बोल्यो. रे मोशी ! तहारो दीकरो घेर थाव्यो. ते सांन ली मोशी घेर गइ. दीकरोथाव्यो दीगो. तेवारें तेज वेलायें बे रूपैया ले। ने मोशी यावी सिमपुत्रनो सत्कार कस्योः ते जो पहेंलाने बीजायें पू नयं. तें कम जाण्यं के, मु? तेणें कह्यं के, घडो फट्यो माटे जाण्यं. वत्ती बीजाने पहेलायें पूडओँ के, तें केम जाण्युं के, घेर थाव्यो ? तेणें कह्यु के, "तजायेण" ए श्लोकनो अर्थ विचास्यो. जे नमिथकी घट थयोथने फ टीने नूमिने मल्यो, तेथी ते दीकरो पण मोशीने मल्यो जोश्ये. त्यारें तेणें गुरुने जश्ने ठबको दीधो के, मने ए अर्थ केम न नणाव्यो ? गुरुबोट्या. विनी तने यथार्थ परिणमे अने विनयरहित होय, तेने यथार्थ न परिणमे. तेमां महारो शो दोष ? इति श्रावश्यके ॥ माटे विनयवंतने बुद्धि नजे. हवे विनयी होय ते अचं एटले अक्रोधी होय एम कडं माटे तेथी विपरीत तो क्रोधी तथा कुशील होय ते कहे . अर्थः-(कुई कुसीलं जयए अकित्ती ॥ (कुई के०) क्रोधीने तथा (कुसील के० ) कुशीलियाने (थकित्ती के० ) अकीर्ति (जयए के) न जे. एटले क्रोधी अने कुशीलियानो अपजस थाय. तेमां प्रथम क्रोधी न पर कुलवालुकनी कथा . ते पूर्वे एज ग्रंथमां लोन लक प्राणीना दृष्टांतें कोणिक राजानी कथा आवी तेनीअंतरजूत ए कथा ने त्यांथी जोइ लेवी. हवे कुशीलियाने अपकीर्ति नजे, ते उपर मुंजराजानी कथा कहे . धारा नगरीयें नोजराजाना नाई मुंजराजा चौदशे चुम्मालीश हाथी नी ठकुराइ जोगवे. तेने अनुक्रमें कोक प्रत्यंतर राजायें संग्राम करतां बां धी लश्ने नजरकेद राख्यो. तेने जमवा सारुं नित्य दासीनी साथें जात Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. पाणी मोकले. एम करतां मुंजराजा ते दासीनी साथै विषय सेववा लाग्यो. पली नोजराजायें सुरंग देवरावीने मुंजराजाने जणाव्युं के, था ठेकाणे बार| डे ते मार्गे थइने थापणा नगरमा श्रावो त्यारें मुंजे दासीने जणा व्युं के, था सुरंग मार्गे थइने हुँतो जश्श. तहारे श्राव, होय तो तुं पण चाल्य, त्यारें दासीयें कयुं हुं आनरण लेइ आवं. त्यां सुधी तमे रहो. ए म कही बानरण लेवा गइ. तेने कांक वार लागी तेवारें मुंजें विचायुं के दासीने घणीवार थइ माटे कोश्ने खबर पडी जाशे, एम चिंतवीने पो तें जवा मांमयु. एटले दासी पण थावी तेणें मुंजने जतो देखी विचास्युं के मने मूकीने गयो. एम जाणीने पोकार कस्यो के, मुंज जाय बे. ते सां नलीने राजाना माणसो थाव्या. तेणें मुंज राजानु नपरथी माथु पकडद्यु अने नीचेथी पोताना माणसें पग पकज्यो. एम ताण खेंच थ.तेवारें मुंजें पोताना पुरुषोने कह्यु के, तमे पग खेंचशो एटले ते वैरी नपरथी मस्तक कापी लेशे. ते माटे तमे मुफने मूकी यो. एवं सांजली ते मागसो जता श्क घेरमा कोइक स्त्री रहेंटीयो काततीहती, ते रहेंटीयो चरड चरड बो लतो हतो. त्यां जश्ने मुंजें कह्यु के, हे माता! निदा आपो.एम कर्दा, तो पण ते स्त्रीयें काततां सांजल्यु नही. तेथी पाडो जवाब दीधो नही. त्यारें मुंजें एक श्लोक कह्यो ॥ यतः ॥ रे रे यंत्रक मा रोदी, र्यदहं नामितोऽन या ॥ राम रावणमुजाद्याः, स्त्रीनिः के के न नामिताः ॥१॥ एम कही वली बागल चाल्यो. बीजे घेर कांक प्रकरण , तेणे मांमा तैयार कीधा बे. त्यां जईने कह्यु के, निदा यो. त्यारे स्त्री पण अर्यो मांमो फाडीने धी ये टीपां पडतां लावीने आपवा मांमयो, त्यारें मुंजराजा बोल्यो ॥ यतः ॥ रे रे मंझक मारोदी, यदिदं त्रोटितोऽनया ॥ रामरावणमुंजाद्या, स्त्रीनिः के के न त्रोटिताः ॥ १ ॥ एम कही वली आगल चाल्यो. तिहां तेने घेर, स्त्री गण पूंजो करे , कोश्क पशुने बोडे ने. कोक पशुने बांधे . एवामां मुंजें जश्ने कह्यु, निदा यो. त्यारे ते स्त्री बोली. निदा क्या ? हाथ नवरा नथी? ते सांजली मुंज बोल्यो ॥ गाथा ॥ रेनोली मम गव करी, देखवि गमरीयाहिं ॥ चउदहसें चग्यालसा, मुंज गद गया। ॥ १ ॥ वली बागल चाव्यो. एवामां कोक धनवंती स्त्री मुंज राजाने जी Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ गौतमकुलक कथासहित. ख मागतो देखीने हसवा लागी. त्यारें मुंजराजा बोल्यो ॥ काव्यं ॥ श्राप गतं हससि किं इविणांधमूढे, लक्ष्मी:स्थिरा न नवतीति किमत्र चित्रम् ॥ दृष्टं सखे नवति यऊलयंत्रमध्ये, रिक्तो नृतश्चनवति नरितश्च रिक्तः ॥ १ ॥ ए रीतें नगरमा फेरवी लोक मुखें अपजस बोलाते मुंजने मारी नांख्यो.इति ॥ एनो विस्तारे संबंध मुंज प्रबंधथी जाणजो, ते माटे कुशीलियाने अप कीर्ति नजे. हवे ए कुशीलन चित्त स्थिर न होय माटे पागल पद कहे . • अर्थः-संनिन्नचित्तं जयए अलही ॥ (संनिन्नचित्तं के०) नमचित्तवा लाने (अलही के० ) अलक्ष्मी एटले निर्धनपणुं (जयए के०) नजे. ए टले अस्थिरचित्तवाला प्राणीने दरिश्पणुं श्रावे. ते नपर शूर ब्राह्मणनी कथा एज ग्रंथमांत्रीजी गाथानी आद्यमां क्रोधेव्याप्त जीवना दृष्टांत उपर कही डे, त्यांथी वांचवी. आहीं फरी लखी नथी. हवे अलकमी नजे एम कयुं, माटे तेनीप्रतिपदी लक्ष्मीनजे ते कहे बे. ॥सच्चे लियंसं नयए सिरी य ॥ (सच्चेयिंसं के० ) सत्यने विषे रहेला पुरुषने (सिरीय के०) लक्ष्मी (जयए के) नजे, एटले सेवे. अर्थात् सत्यनाषकने लक्मी नजे. ते उपर मकरध्वज राजानी कथा कहे . थाज जंबुद्दीपने विषे दक्षिण जरता मध्य खेमने विषे कांति नामें नगरी जे. त्यां वैरिदमन नामें राजा राज्य करे बे. ते राजाने घणा पुत्र बे, तेमा मकरध्वज नामें लघु पुत्र ले. ते विनय, पौदार्य, गांनीर्य, बार्ज व, सौनाग्यादि गुणें करी महोटो ले. एक दिवसने विषे वनमां वसंतऋतु फूली . त्यारें वनपालकें यावी राजाने विनंति करी के, हे महाराज! व संत फूल्यो : तेनी शोना जोवाने पधारो. एवामां राजायें पोताने मस्तकें धोलो वाल दीठो. तेथी विचाओँ के, ढुं तो हवे धर्म करवा योग्य थयो. ते माटे महारे जवु न घटे. एम चिंतवीने पुत्रोने मोकलतो हवो. ते पुत्रोयें वसंतोत्सव करतां याचकने कोश्ये लाख थाप्या, कोश्यें बे लाख, कोश्यें त्रण लाख, कोयें चार लाख सोनैया प्राप्या. अने मकरध्वज कुमार तो महा उदार थश्ने कोडीसोनैया दान दीg. बीजा सदु कुमरें मलीने प चाश लाख सोनैया आप्या. ए स्वरूप नंमारी राजाने कह्यु. राजायें म करध्वज कुमारने पूब्युं, रे कुमर ! एवडा सोनैया दानमां बाप्या तो ज्या रें उर्निक होय अथवा को साथें संग्राम करवो पडे, त्यारे नंमार विना Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. केम निर्वाह थाय. जे माटे महारा देशमां त्रीश कोड सोनैया वर्षे वर्षे । पजे . तेमां सोल कोड अंतेनरना खरचमां वपराय ,अने चार कोड सो नैया घरखरचे व्यय थाय . एक कोड सोनैया हाथीन खरच थाय बे. बे कोड सोनैया गाय घोडा प्रमुखना खरचमां वपराय बे. याचकना दान मां चार कोड सोनैया वपराय ले. त्रण कोडि सोनैया नंमारमा आपुं. माटे तुं एकलोज जेवारें एक दिवसमां एक कोटि सोनैया खरच करी या वीश, तेवारें थोडा दिवसमां महारो नंमार खाली थ जाशे. . ते सांजली मकरध्वज कुमर बोल्यो! जेने पुण्यप्रबल , तेने दान देतां पण नंमार वृद्धि पामे. जो नाग्यहीन होयतो नंमार खाली थाय. ते सां नली राजा बोल्यो. जो तहारे पुण्यज प्रमाण जे, तो कोड सोनेया जे दा नमां तुं आपी श्राव्यो ते पाला लाव्य, नहि तो तहारं मस्तक दीने या प्य. एवं राजायें क्रोधे वचन कह्यु. ते सांजली मकरध्वज कुमार अनिमान आणी सनामांथी उठीने पूर्व दिशिने दरवाजे गयो. एटले जमणो खर थयो, तेवारें दक्षिण छारें गयो एटले जमणो घूहड थयो. पडी पश्चिम दिशायें आव्यो. त्यां घोर शिवारुत सांजल्यु. त्यांथी उत्तर दिशायें आव्यो, एटले माबी नैरव थ. ए सर्व अपशकुन जाणीने पाडो वव्यो. ते वेला दरवाजाने मुखे रह्यांज शिवाशब्द थयो. ते शिवाशब्दे वंशजालमा चार रत्न वंशयष्टिमा रह्या जे. एबुं शकुन ज्ञाने जाणीवंशजालीदी वंशने नेदीने तेमांथी चारे रत्न लीधां. अने ए सर्व पुण्यप्रनाव , एम मनमा विचारीने घरतरफ चालवा मांमयु. एवामां दिव्य गीतध्वनि सांजली ते शब्दने थ नुसारें चाल्यो.पागल एक यदनुं देहरुं दीतूं. त्यां एक मुनिराजनी पागल दिव्य नाटक थाय . तेने जेटले कुमार जुए , तेटले तो देवतायें ना टक संहयुं. पडी कुमरें मुनिने प्रणाम करीने पूबथु. ए देवता कोण ? मुनि बोल्या. हे कुमर ! ए देवतानो पाबलो नव ढुं कहुं बुं, ते तुं सां नव्य. ए पूर्वे कोश्क नगरने विषे शेठ हतो. तेणें साधुना परिचयें करीने मृषावाद बोलवा, पञ्चरकाण कयु. पडी एकदा लोनें पराजव्यो थको पा रकी थापण उलवी. ते पा करी अल्पकदिवालो यद थयो . जो व्रत नंग न करत तो वैमानिक देवता थात. ते माटे हे कुमर ! प्राण जते प ए जूतुं न बोलियें. ते सांजली मकरध्वज कुमार बीजुं अणुव्रत अंगीकार Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ाए गौतमकुलक कथासहित. कयु. पनी संतोषे करी तुष्टात्मा थको कुमर घर जणी चाल्यो. त्यार पड़ी यदें साधुने पूब्युं. हे महाराज ए मकरध्वज कुमार पण महारी पेठे व्रत खंमशे किंवा राखशे ? साधु बोल्या. हे यद ! ए कुमर प्राणांते पण व्रत नहि खमे. ते सांजली तेनी परीक्षा करवा माटे ते यद,कापडीनो वेष लइ राजछारें श्रावी तृणनो पूलो लेई पोकार करवा लाग्यो. नो राजन् ! महारां चार रत्न वंशनी जालमां मूक्यां हतां ते कोक चोर ले गयो. माटे जे कोश्ते चोरी कबुल करे तेनो निग्रह करो. पण बींजानु नाम लेशो नही. ते सां जली राजायें ढंढेरो फेरव्यो. ते पडह सांजली कुमरें आशंका आणी चारे रत्न आणी थाप्यां. लोको घणो समजाव्यो के, जुहूं बोल तो पण प्रा गांते जूटुं न बोल्यो. त्यारे देवतायें प्रकट थश्ने कुंमरनी पूजा करी नम स्कार कस्यो सुवर्णनी वृष्टि करीने चार रत्न पाडां आप्यां. पुण्यप्रनाव प्रकट थयो. सर्व लोक चमत्कार पाम्या. देवता काणे गयो. वैरिदमन राजा पण मकरध्वजनो पुण्यातिशय देखीने अपराध खमावतो हवो. अने कह्यु के हे कुमर, तें जे पुण्यनी वात कही ते साची जाणवी. पनी मकरध्वज कुम रने राज्ये थापी राजा पोतें दीक्षा ले। तेने रुडीरीतें पालीने स्वगै पधायो. मकरध्वज राजायें अनेक जीर्णोधार कराव्या. नवा जिनप्रासाद पण कराव्या. महाधर्मिष्ट न्यायें राज्य पाली सद्गुरु समीपे दीक्षा लीधी ते राजा, उग्र तपस्या करी बातमे देवलोके देवता थया. त्यांथी मनुष्यावतार पामी ने दीदा अंगीकार करशे. अनंतझान अनंतदर्शन अनंतवीर्य अनंतसुख मयी थशे. ते माटे सत्य वचन बोलवु ॥ यतः ॥ नेउरश्मिनिचयोन नंदनं, नो सुधापि न च हारयष्टयः ॥ निर्वतिं मनसि तन्वते तथा, सत्यवादिव चनं श्रुतं यथा ॥ १ ॥ पुनः॥ विश्वासायतनं विपत्तिदलनं दैवेः कृताराध नं, मुक्तेः पथ्यदनं जलामिशमनं व्याघ्रोरगस्तननम् ॥ श्रेयः संवननं समृ बिजननं सौजन्यसंजीवनं, कीर्तेः केलिवनं प्रनावनवनं सत्यं वचः पावन म्॥१॥इति श्रीमकरध्वजनृपकथा॥ इति श्रीसकलसनानामिनीनालस्थल तिलकायमानपंमितश्रीउत्तमविजयगणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिकतबाला वबोधे श्रीगौतमकुलकप्रकरणे पंचमगाथायां षडदाहरणानि समाप्तानि ॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० जैनकथा रत्नकोष नाग छो. हवे बही गाथा कहे जे. तेनो पूर्वली गाथा साथें ए संबंध में के, पूर्वगा थामां एम कर्दा के, जे सत्य बोले तेने लक्ष्मी थावे,अने तेथीविपरीत एटले असत्य बोलनार प्रायें कृतघ्न होय, माटे कृतघ्ननुं लक्षण क देवाने संबंधे धावी जे बही गाथा ते कहे . चयंति मित्ताणि नरं कयग्धं, चयंति पावा ३ मुणिं जयंतं ॥ चयंति सुक्काणि सराणि । हंसा, चए बु-छी कुवियं मणुस्सं ॥६॥ अर्थः-चयंति मित्ताणि नरं कयग्यं ॥ (कयग्यं के० ) कृतघ्न एटले क स्या गुणना हणनार. एवा (नरं के० ) पुरुष तेने ( मित्ताणि के०) मित्र होय ते पण ( चयंति के०) बांके ले त्यजे . एटले कृतघ्न पुरुषने मित्र होय ते पण दीर्घराजानी पेठे बांके . ते दीर्घराजानी कथा कहे . कांपिल्लपुर नामें नगरमां ब्रह्म नामें राजा राज्य करे . तेन चुलणी नामें राणी तेनो पुत्र ब्रह्मदत्त नामें बारमो चक्रवती जे. ते कुमरपणे ब तांज तेनो पिता मरण पाम्यो. त्यारें ब्रह्मराजाना चार मित्र हता ते वा राफरती तेनुं राज्य संजालवा लाग्या. एम करतां ते चार मांहेलो एक दीर्घराजा चुलणीराणीथी लुब्ध थयो. तेनी साथै विषय नोगववा लाग्यो. एम ते कृतघ्न थयो. त्यारें बीजा त्रण मित्रोयें तेने नवेखी मूक्यो. ३ हां तो एटलीज वातनुं प्रयोजन के ए कथा विस्तारें सातमी गाथाना आ द्यमां ब्रह्मदत्त चक्रीने अधिकारें अावशे त्यांथी जो लेवी. हवे इहां त्यजवाना अधिकार माटे वली कहे जे. ॥चयंति पावा मुणिं जयंतं (जयंत के० ) यत्नवंत (मुर्ति के० ) में निने (पावा के० ) पाप जे ले ते (चयंति के) तजे डे, एटले यतनावंत मुनि जे होय तेने पाप त्यजे जे. ॥ यतः ॥ जयं चरे जयं चिठे, जयं मासे जयं सए ॥ जयं नुतो नासंतो, पावं कम्मं न बंध ॥१॥ ते उपर मेतार्य मुनिनो दृष्टांत जाणवो ते कथा बागल त्रीजा नागमा उपशमने अधिकारें पृष्ठ २ए मां सविस्तर चावी जे त्यांथी वांचवी पण तेमां मेतार्यजीनापू वला पुरोहितना नवमां एटलुं विशेष ले के दीक्षा लीधा पढ़ी गंडा क Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २५१ रतां तपस्या करी ,पण चारित्र उक्कर पाल्यु जे. आंही संदेपे लखीयें .यें. जेमने सोनीय लीलुवाधर मस्तके बांधी वचमां कीलिका घाली ते वा धर सूकायां तेथी मुनिनां नेत्र तडतडाट करी त्रुटी पड्यां. मुनि पण ते वाधरने फूलनी मालासर मानता एम ध्यावता हवा के, हे यात्मन् ! तें घणुं सुकत काम कयुं. जे माटे तें पंखीने अनयदान दीg. प्राणतो जव नवने विषे पामवा सोहिला ले, पण परप्राण उगारवा दोहिला ने.सहेजे दया पालवी तो सोहिली , पण पोताना प्राण जते दया पालवी दोहि ली ॥ यतः ॥ नवंति शतशो मत्याः, सुस्थावस्थाः सुरुत्कराः ॥ चित्रा स्त एव ये प्राण, प्रयाणेऽपि कृपालवः ॥ १ ॥ धनधान्यादिकना देनारा सुलन , पण अजयदान देनारा थोडा . ते माटे रे यात्मा! तें आ जीवदया करी तेथी तें गुं सुकत न कयुं ? इत्यादिक मैत्रीनावना नावतों पक श्रेणी मांझी घातिकर्म क्ष्य करी केवलज्ञान पाम्या. अने बाउर पण पुरं थयुं, त्यारे मोके पधास्या. ए कथा प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्तिमां . ते माटे मेतार्य मुनिनी पेठे यतनावंतने पाप त्यजे ॥ १४ ॥ वली तजवाना अधिकार माटे दृष्टांतें करी त्यजबुज बतावे . ॥ चयंति सुक्काणि सराणि हंसा (सुक्काणि के०) सुकाइ गयेला (स राणि के० ) सरोवरोने (हंसा के० ) हंस पछिळ (चयंति के०) त्यजे जे. एटले सुकायेला सरोवरोने हंस पदी त्यजे . इहां दृष्टांत रूपें ए पद जो डिये. जेम हंस सूका सरोवरने त्यजे , तेम इहां (हंस के०) आत्मा जाणवो ते सर शब्दें शरीररूप तलाव ते थानखारूप पाणी खूटवाथी जे वारें सूकाय तेवारें तेने आत्मारूप हंस त्यागीने गत्यंतरे जाय इति नावः ॥ एटले वानखं अस्थिर ने, माटे धर्म करो. एम सूचव्युं ते उपर समुश्द त्तादिकनीकथा कहे .ए कथा एज पुस्तकनां पहेला नागमां गौतमष्टहा ग्रं थमां थाउमा प्रश्ने पाल्पायुबांधवाना अधिकारें पृष्ठ २४० मा यावी . तो पण तेमां अने एमां फेरफार होवाथी पानी अाही पण लखियें बैयें. आज जरतक्षेत्रने विषे उजायणी नगरीयें समुदत्त नामां वाणियो व से , तेने धारणी नामें स्त्री, धने शिव नामें पुत्र ने. ते वाणियाने ए क यदत्त नामें चाकर डे. प्रायें ते सर्वमा दयानुं नाम नथी. एकदा ते स मुदत्त मरण पाम्यो. तेना दीकराये मरणकार्य कयुं. तेनी स्त्री धारणीय Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. तो केटला एक दिवस गया पढी यवत्तचाकरने महारूपवंत जालीने न तर को लोकमां घणो अपवाद थयो. शिवें पण जाएयुं ॥ यतः ॥ चंद कलाबुरिमुमितं, चोरिपर मियं चथी जणेमंत ॥ ए एगोविऊंता, जंति दि ऐसे पाया हुंति ॥ १ ॥ एक दिवस धारणीयें एकांतें यदत्तने कयुं के, तुं शिवने मा. खागलजतां ए महारो पुत्र वधतो थको प्रापणने दुःख दायी यो. जे कारणे वैरी घने रोग ए बेहुने वधवा देइयें नहीं. यदत्त बोल्यो. ए कुमर तहारो पुत्र थाय, खने महारो स्वामी थाय एने प्रसादें छापणे सर्व सुख जोगवियें बियें. माटे विचारो के, ए अनर्थ केम करीयें ? फरी धारणी बोली. रे मूढ ! जो मुकने तथा पोताने कुशल वे तो एने मा. अहो ! स्त्रीना चित्तनी वृत्ति ॥ यतः ॥ मारे पियनत्ता रं, हाइ सुखं तह विलास घरं ॥ नियगेपि पलीवर, नारी रागारा पावा ॥ १ ॥ एम घणे कष्टें तेने हाकारो जणाव्यो. अने तेणें अंगीकार कस्युं के, एने हुं मारीश. स्त्रीयें प्रेयो पुरुष चुं धुं न करे ? ॥ यतः ॥ श्रन श्वा यत्र हेपते, पर्वणि मुंमितं शिरः ॥ तत्किं न कुर्यात्न किं हन्यात्, स्त्री निरज्यर्थितो नरः ॥ १ ॥ सुवंशजोप्यकृत्यानि कुरुते प्रेरितः स्त्रिया ॥ स्ने हलं दधिमथ्नाति पस्य मंथानको न किम् ॥ २ ॥ अन्यदा धारणीने रडती देखी शिवें पूढयुं. हे माता ! तमे रुदन केम करो बो? ते बोली हे वत्स ! चुं करियें कोई गायोनो संभाल करनार नथी. ते माटे सकल गोकुल विनाश पामशे ते सांगली शिवें विचायुं श्रहो ! स्त्रीना कपटनी खबर न पडें. स्त्री वीजली थकी पण अत्यंत चपल होय; वंशजालनी पेठें प्रतिवक्र ऋदयवाली होय. माटे एनो को विश्वास करे ? तोपण हुं स्वात्मरक्षा करीश एम चिंतवी शिव बोल्यो. हे माता ! हुं पल जाणुं बुं. पण गुं करूं ? गोवालिया गायो संचारता नथी. सामो क्लेश न पजावे . तेवारें माता बोली. रे वत्स ! ए तें साधुं कयुं; तो पण तुं यक्ष दत्त सायें गोवालीया पासे जा. त्यारें शिव खने यदत्त बेजल हाथमां तरवार ले चाव्या. मार्गमां खागल पाउल चालतां एक खाड खावी त्यां बायावती देखीने शिवने आशंका उपनी. तेवारें उतावलो चाल्यो. तेथी यदत्त मारी न शक्यो. अनुक्रमें बेहुजण गोकुलमां पहोच्या. तेने आव्या जाली गोवालीया हरख्या, तथा तेनी खाज्ञामां तत्पर थया. बे Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १५३ दु जणने दधि दूधे जमाड्या. रात्रे पाडामा लावी वेदु जणने सूवा माटे जुदी जुदी शय्या आपी. तेनी उपर वेहु सूता. एवामां शिवने बुदि उप नी तेथी जेवारें गोवा लिया सर्वने निश आवी, तेवारें शिवें नठीने पोता नी देह प्रमाणे एक काष्ठ लावीने पोतानी शय्या उपर मूक्यु. तेनी उपर एक वस्त्र ढांक्यु. अने पोताना हाथमा तरवार लेने कोक स्थानकें ज बानो बेसी रह्यो. एवामां यदत्त जाग्यो. तेणें शिवनी शय्या पासें आ वीने विचायुं के ए तो लंघ्यो बे. तेवारें खड़ग काढीने जेटले तेने मारवा ने धायो तेटले शिवें तत्काल बावीने तेनुं मस्तक खड़गें करी बेदी ना रव्यु, पनी काष्ठखम बीजे स्थानके मूकीने पोतानो अपजस टालवाने पो कार कस्यो के, अरे रे! गोपो नठो. कोइक चोर मारी जाय . ए रीतें सोर बकोर कस्यो.ते सांजली गोवालिया पण चोरनै सोधवा माटे तेनी साथें थोडीशी नूमियें गया पण चोर नही मलवाथी पाबा वल्या. प्रातःकाले यददत्त मुन देखी शिव बोल्यो अहो ! ए गुं थy !! एम मायाकपटें लगारेक विलाप करी तेनुं मरणकार्य करीने कहेवा लाग्यो. रे रे ! गोपालो ! यददत्त विना ढुं रही शकतो नथी. ते माटे हुँतो महारे घेर जावं . एम कहीने घेर याव्यो तेवारें तेनी मातायें विचाओँ के, ए तो हजीसूधी जीवतो खेमकुशलें घेर याव्यो. यदत्त मूर्खायें एने मास्यो नही, एम विचारीने पुत्रने कहेवा लागी हे वत्स ! यददत्त गोकुलमाथी के म न याव्यो ? त्यारे शिव बोल्यो. हे माता! यददत्त धावतां थकां पल वाडेथी पाडो वव्यो. एम कहीने शिव विचारवा लाग्यो, अहो ! या दैवनो शो विलास जे कारणे माता पण महारा प्राणलेवा सारं सावधान थ ले! एवामां धारणीनी दृष्टे तरवार पडी. ते उपर कीडियो पेसती नीकलती दीती. त्यारे आशंका यावी, अने विचायुं जे यददत्त एने मारीने आवशे ए महारो मनोरथ निष्फल गयो ! एम चिंतवी म्यानमाथी तरवार कहा डी जो तो रुधिरें खरडी दीठी. ते वेलायें रोपें करीने तेना रक्तनेत्र थयां. विचारां जे एवं महारा स्वामीने माख्यो. तो हूं एने मारुं. पनी तेज तर वारें करीने पुत्रनुं मस्तक बेद्यं. ते जोड्ने शिवनी धाव मातायें स्नेहें करी तेज वेलायें एक मुसलुं लश्ने धारणीने माघू. तेथी ते पण तत्काल मर ण पामी. अने धावमाताने वली एक दासीये तरवार मारी तेथी ते पण २० Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ जैनकथा रत्नकोप नाग हो. मरण पामी. वली ते दासीने बीजा कोयें मारी नाखी. एम ते बधा मर एग पाम्या. ते जोइयान अस्थिर जाणी त्यां घणा धर्मिलोकोयें चारित्र लीधां. ए कथा प्रश्नोत्तररत्नमालानी वृत्तिमा जे. इति समुदत्तादिकथा ॥ ४५ ॥ ए कथा पहेला नागमां गौतम एनामां पण आवेली डे. वली पण तजवाना अधिकार माटेज तजq बतावे बे. ॥ चएइ बुझी कुवियं मणुस्सं (कुवियं के० ) कोपवंत थयेला (मषु स्सं के०) मनुष्य प्रत्ये (बुही के०) बुद्धि (चए के०) तजे जे. एटले कषा यवंत मनुष्यने पविघातक राजानी पेठे बुद्धि पण तजे ले. ते कथा कहे . कोक नगरनो राजा, एकदा रयवाडीये रमवा नीकट्यो. ते वक्र शि दित अश्व उपर बेसीने चाल्यो. तेथी जेम जेम राजा लगाम खेंचे, ते म तेम अश्व दोडे, पण 'ननो रहे नही. एम करतां महाअटवीमां ले ग यो. त्यां राजा थाक्यो, लगाम मकी दीधी. त्यारे घोडो पण ननो रह्यो. रा जा पण तरष्यो थयो ,तेथी नली बायावंत एवा एक महोटा वृद हेवल विसामो से डे, एवामां ते वृक्ना कोटरमा एक अजगर रहेलो , तेना मुखथकी गरल पडतुं देखीने पाणीनी ब्रांतियें राजायें पत्रनो दडियो क रीने नीचें धस्यो. अनुक्रमें ते अजगरनी गरलथी नराणो. ते दडियो लेइने जेवारें राजा पीवाने तत्पर थयो तेवारें ते वृदनी उपर एक पंखी बेठो हतो, तेणें ते सर्व व्यतिकर जाण्यो, अने विचास्युं के, ए राजा घणा लोक नो आधारचूत डे, ते ए पाणी पीशे, अने मरण पामशे. एम चिंतवीने राजाने हित वांडतो कापट मारीने राजाना हाथमाथी दडियो ढोलावी नांरव्यो. एमज वली बीजीवार पण राजायें तेज गरलथी दडियो नस्यो. अने ते पंखीये पण तेमज बीजीवार ढोलावी नांख्यो. एमज त्रीजीवार पण ढोलावी नांख्यो. त्यारें राजा रूठोथको अकारण उष्टपणुं जाणी ज लपानांतराय कर्ता पंखीने खड्गें करीने मारतो हवो. पडी राजानुं सैन्य त्यां याव्युं. तेवारें राजायें पाणी पीधुं, आहार कस्यो, स्वस्थ थयो, पबी राजा वडना कोटर मध्ये जोवा लाग्यो. त्यां अजगरना मुखथकी निकल तुं गरल देखी विचार करवा लाग्यो के, अरे ! एतो विष देखाय ने. अहो! पंखी निःकारण नपकारी, महारा जीवितनो दातार, अने हुँतो कृतघ्न थ यो. जेमाटे विचार कस्या विना पंखीना प्राण लीधा. माटे हुँ महापापी Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २५५ थयो. ए रीते पश्चात्ताप करतो, महा शोक धरतो, चंदनना काठे करी ते पंखीना शरीरने संस्कार करतो हवो. अनुक्रमें नगरे आव्यो, ते कालांत रे शोकरहित थश्ने राज्य पालतो हवो. ए रीतें कषायीने बुद्धिमे, ते माटे बुझिना अर्थिये कषाय न करवो. इति पदिघातक राजानी कथा ॥४६॥ इति श्रीसकलसनानामिनीनालस्थलतिलकायमानपंमितश्रीउत्त मविजयगणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिकतबालावबोधे श्रीगौतमकुलकप्रक रणे षष्ठगाथायां चत्वायुदाहरणानि समाप्तानि ॥ हवे सातमी गाथा कहे . तेनो ती गाथा साथें ए संबंध में के, पूर्वनी गाथाना अंते जे कह्यु के, क्रोधीने बुद्धि बांझे, अने बुद्धिविना जे कर, ते विलापतुल्य जाणवू. ते माटे सातमी गाथामां विलाप देखाडे बे. अरोश् अचं कहिए विलावो, असंपहारे क हिए विलावो॥विरिकत्तचित्तो कहिए विला वो, बहू कुसिसे कहिए विलावो ॥ ७ ॥ अर्थः-अरोइ अचं कहिए विलावो (अरोड़ के० ) अरुचिवालाने (घबं के० ) परमार्थनी वात ( कहिए के) कहेवी, ते (विलावो के०) विलापरूप एटले निरर्थक जाणवी, अर्थात् अरुचीवालाने परमार्थनी वात कहेवी ते विलापरूप जाणवी. ते माटे सांजलनारने रुचि होय तो ज कहे. नहि तो ब्रह्मदत्त अने चित्र मुनिनी पेठे. विलाप सर निरर्थक थाय इति नाव ते ब्रह्मदत्तनी कथा कहे . ___ साकेत नगरने विषे चंशवतंसक राजा हतो. तेनो पुत्र मुनिचंड नामें हतो ते कामनोग थकी विरम्यो थको पुत्रने राज्ये थापीने पोतें, सागर चंड मुनिराज पासे दीक्षा लेतो हवो. एक दिवसें उग्र तपस्या करतां गु रु साथें विचरतां कोइक गामें गोचरीयें गया. साथ हतो ते जतो रह्यो, गुरुने पण वीसरी गयु. तेथी गुरु पण साथ साथै चाल्या गया. पाबल थी सागरचंड पोतें एकला अटवीमां याव्या, दुधातृषायें बाधा पामता थका त्रीजे दिवसे होत, कंठ, तालु सूकाइ गया. तेथी मूळ पामी रक्ष Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. नीचें पज्या. एवामां गोवालियाना चार बालकें यावी तेमनी सेवा करी. ते चारे बालकें मुनिनी देशनायें प्रतिबोध पामी. दीदा सीधी. तेमां बेज ए तो चारित्रनी उगंडा करी अपघालो समकेत गुणें करी देवलोकें ग या. तथा बीजा पण बेजण देवलोके गया. पण तेनो अधिकार इहां नथी. अन्यदा दशपुर नगरें संमिन्ननामा ब्राह्मणनी जसमती नामें दासी ते ने कूखे पहेला बे जण पुत्रना जोडला पणे आवी उपना. ते अनुक्रमें यौ वन पाम्या. एकदा खेत्रनी रखवाली करवा अटवीमां गया त्या रात्रं एक वड हेवल सूता ले. एवामा वडना कोटरमाथी एक सर्प निकल्यो तेणें ते बेमांथी एकने मंश्यो. त्यारें बीजायें सापने खोलवा मांमयो. एटले बीजा ने पण तेज सापें करड्यो. त्यां बेदुजण मरण पामीने कालिंजर नामा पर्व तने विपे मृगलीनी कूरखें युगलपणे आवी उपन्या. अनुक्रमें पूर्वनी प्रीतियें पासे पासें दकडा चरता जोश्त्यांकोइ व्याधे आवीने एकज बाणे ते बेदुने माया. मरीने गंगाने कांठे वेदुजण एक हंसीनी कूखे नपन्या. एटले हं स थया. तेने पण एक मजबंधके पासमां नांवी कोट मरडीने मारी नां ख्या. मरीने वणारशी नगरीयें महाधनवंत नृतदिन्न नामें चंझालना घेर पु त्र पणे जइ उपन्या. त्यां पण पूर्वनी पेठे परस्परें वेदु जणने प्रति थइ. ए कनुं नाम चित्र अने बीजानु नाम संनति थयु. एज समये तेज वणार शी नगरीने विपे शंखनामें राजा राज्य करे बे. तेने नमुचि नामें मंत्री जे. एक दिवस मंत्री अपराधी होवाथी राजायें नूतदिन्न झालने दुकम क कस्यो के, ए मंत्रीने बानो मारजे. चंझाले पण मारती वेलायें मंत्रीने क युं के, जो तुं रॉयरामा रहीने महारा पुत्रने नणावे तो ढुं तुमने जीवतो राखं. मंत्रीये पण जीवितव्यना लोनें जगाववानी हा कही. हवे ते बोकराने जणावतां केटलोएक काल गयो. त्यां ते मंत्री नूतदि न मालनी स्त्री साथें लपटाणो. ते वात नूतदिन्ने जाणी, तेवारें तेने मारवा मांझयो, पण चित्र अने संनूति ए वे नाश्योयें पोताने नणाववा नो उपकारी जाणीने तेने नसाडी मूक्यो. त्यांथी निकली हबिणानर नगर ने विपे सनत्कुमार चक्रवर्तिने ज मल्यो. तिहां ते मंत्रिपद पाम्यो.. हवे ते चित्र संनति चंमाल पुत्रोयें पण रूप, यौवन, लावण्य, गीत, नाटकनी कला प्रमुखें करी तथा वीणा वजाववे करी वणारसी नगरीना Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १५७ लोकनां चित्त हस्यां. एक दिवस वसंतऋतुने विषे नाना प्रकारना लोक, युवान स्त्रीयोनां नाटक थते श्रके कीडा करवा प्रवां वे. तेवामां चंमाल पण पोताना परिवार सहित क्रीडा करवा नीकल्यो. तिहां चित्र संतृति पण गीत गान करवा लाग्या. ते मनोहर स्वर सांजलीने सर्व नगरीनालो क एने जोवा मल्या. तेमां वली स्त्रीयोतो विशेषं नेगी थ६. ते देखीने च तुर माह्या लोकें राजाने विनंति करी के, हे देव ! सर्व लोक ए चंमानें विटाल्यो. ते सांजली राजाय पण चंभालने नगरीमा प्रवेश करवो निवा स्यो. वली केटलोक काल गयो अन्यदा कौमुदीमहोत्सव आव्यो, त्यारें पू वली शीखामण वीसारी पोतानी नमिका अगणीने वेजण नगरीमा पेठा. त्यां कौतुकरसें गीत गान सांजलीने पोते पण एक देशे रही गावा लाग्या. तेजोवा सर्व लोक जेगा थया. तेमणे पूर्वती वात जाणीने मारमार कर तां प्रहार देता काढी मूक्या. तेवारें उद्यानमां जश् आमण उमणा था वि चारवा लाग्या के, अमारूं रूप, यौवन सौनाग्य, लावण्य, कला तथा कु शलपणाने धिक्कार छे ! जे माटे एक मालनां कुल कलंक मात्र सर्व फो क थयां. त्यां घणुं वैराग्य पाम्या, स्वजन कुटुंबने वगर कहे मारवानो नि श्चय करीने दक्षिण दिशे चाल्या. त्यां दूर थका एक पर्वत दीठो. ते उपर चढतां एक शिला नपर कुर्बल शरीरें ध्यान करता, आतापना लेता, कान स्सग्गे रह्या एवा एक मुनि दीठा. ते देखी हर्षे करी पासे जइ वंदना क री. मुनिये पण ध्यान संपूर्ण थये धर्मलान देश पूर्वा के, तमे क्यांथी या व्या ? तेणें पोतानुं सर्व वृत्तांत निवेदन करीने कह्यु के, हवे अमे ा पर्व त उपरथी पडीने मरीगुं. त्यारे इषि बोल्या. एम पामरनी पेठे मर तम ने न घटे. तमोने तो शारीरिक बने मानसिक एवा बे प्रकारना दुःखनो क्यकारक एवो श्रीजिनेश्वरनो प्ररूप्यो धर्म करवो घटे . तेणें मुनिवचन अंगीकार करी दीदा लीधी. अनुक्रमें गीतार्थ थया. , अहम, दशम, उचालस, मास अने अर्धमासादिक विचित्र तपस्या यें आत्माने जावता, ग्रामानुग्रामें विचरता, अन्यदा हबिणानर नगरना उद्यानने विष ावी रह्या . एकदा मासरखमणने पारणे संनूति मुनि, ते नगरमा गोचरीने माटे र्यासमिति सहित नमे . तेवा समय राजमा गै जमतां तेने नमुचि प्रधाने दीतो. अने उलख्यो. जे ए चंमालनो दीक Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ՀԱՆ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. रो , ते राजा प्रमुखने महारी वात जणावशे. एम पोताने नये पोताना माणस मुक्या ते यष्टिमुष्टिना प्रहारें मुनिने कदर्थना करीने काढता हवा. ते अवसरे मुनिने निरपराध मारे , ते माटे कोप थयो. तेणें करी मुखमाथी तेजोलेश्या निकलवा मामी, धूमना समूहें नगर व्याप्यु; धूमा डाना गोटेगोट नीकल्या, तेथीयाकाश बावा जता साथें अंधकार थगयो, ते नय अने कौतुकें करी नगरना लोक याव्या, मुनिने देखी वंदना करी प्रसन्न करवा लाग्या. सनत्कुमार चक्री पण अाव्या. वंदना नमस्कार क री हाथ जोडीने कहेवा लाग्या के, हे जगवन् ! अमारा सरखा अज्ञान प्राणी जे अपराध कस्यो ते खमो. तप तेज संहरो. अमने जीवितव्य दे वेंकरीने प्रसाद करो. फरी एवं काम नही करियें. तोपण प्रसन्न न थया. हवे ते धूमादिकं देवी जोकने मुखें पण सांजलीने चित्र साधु त्यां या व्या, अने कहेवा लाग्या. हे संनूति मुनि ! कषाय अनल समावो, समता करो, समताप्रधान मुनिराज होय, अपराधी उपर पण मातुं न चिंतवे, क्रोध ते अनर्थ- मूल ले, क्रोध ते संयमनो घातक , क्रोध ते उर्गतियें ले जाय, क्रोध ते पूर्व कोडीनुं चारित्र बाली नस्म करे, ते वचन सान ली संनूतिमुनिनो क्रोधानल उपशम्यो. वैराग्यमां व्याप्तथ पाला उद्यानमा श्राव्या, लोक सदु सहुने तेकाणे गया, मुनिये विचाओँ के, संलेषणातोत्र मे करी. हवे असण करीयें. एम चिंतवी अणसण करयं. हवे सनत्कुमार नमुचीनो सर्व व्यतिकर जाण्यो. त्यारे नमुंचीने दृढरा बंधनें बांधीने मुनि पासे लाव्या. मुनियें तेने मूकाव्या. ते समयें सुनंदा नामें चक्रवर्तिनी स्त्रीरत्न ते संनूति मुनिने पगे लागी. तेवामां तेनी वेणीनो फ रस संनूतिमुनिने थयो. तेथी संजूतियें निया| करवा मांमधु, त्यारे चित्र मुनियें विचाओँ के, अहो ! उर्जयें डिय ! अहो विषय उन्माद ! जे कारणे एवो तपस्वी, जिनवचननो जाण बतां स्त्रीना वालाय फरसवाथी एवा अ ध्यवसायवालो थयो! एम चिंतवीने तेने प्रतिबोधवाने अर्थ कहेता हवा के, हे संनति ! एवा अशुन अध्यवसायथी निवर्त्य. ए कामनोग असार , परिणामे दारुण , संसार नमवाना हेतु , परमार्थ फुःखरूप बे, सुख नो अनिमान मात्र ने ॥ नक्तंच ॥ जह कवनो कन्तु, कंमूत्रमाणो उहं मु ण सुरकं ॥ मोहारा मरुस्सा, तह कामऽहं सुहं बिति ॥ १ ॥ केवल Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. रयल शुचियें नयुं मनुष्यनुं शरीर निरंतर अशुचि द्वारें वहेतो, विष्ठानो कोथलो एमांशी नलीवार बे ? वली प्रधान वस्त्र, प्रधान फुल, प्रधान गंध विजे पन होय ते पण शरीरना संगें विणशी जाय. वली नल्लीदांतने विषे दुर्गंध, सुखने विषे चिरस, नासिकामांथी नित्य अपवित्र पदार्थ वहे, वली रोगनुं घर एवा शरीरने विषे हे मुनिराज ! तमे मुंकार नही. जेमाटे नियाणाथी घोर तप अनुष्ठान करया होय ते पण तेवां फलवंत न थाय. इत्यादिक वचन ह्या पण तेने प्रतिबोध न लाग्यो. अने नियाणुं कर्तुं के, जो ए तपनुं फल होय तो जन्मांतरे हुं चक्रवर्ती थानं. अनुक्रमें मरण पामी सौधर्म देवलोके बेदु नाई देवता थया. त्यांथी चित्रनो जीव च्यवीने पुरिमताल नगरें शेठनो पुत्र थयो, अने संभूतिनो जीव च्यवीने कंपिल्लपुर नगरने विषे ब्रह्मनामें राजा तेनी चुल्ली नामे राणीना उदरने विषे चौद सुपर्ने सूचित पुत्र थयो, तेनुं ब्रह्मदत्त एवं नाम पाड्युं, ते अनुक्रमें महोटो थयो, बहोत्तेर कला नएयो. एक वे ब्रह्मराजाने चार राजा उत्तम वंशना उपना मित्र बे. तेमां एक तो काशी देशनो धी कनक नामें राजा बे, बीजो गजपुरनो धणी कले रदत्त नामें राजा बे, त्रीजो कोशल देशनो धणी दीर्घनामें राजा बे, चो यो चंपानो धणी पुष्पचून नामें राजा बे. ते चारें मांहोमांहे स्नेहें कर एकबीजाना विरहने इबता अनुक्रमें एकेक वर्षे नेगा रहे. विचित्रको AST करत काल गावे बे. अन्यदा ते चारे ब्रह्मराजाने घेर रह्या बे. दाते ब्रह्मराजाने मस्तके रोग ऊपन्यो, त्यारे तेणें पोतानो पुत्र चारे मि त्रने खोजे मूक्यो. पी ब्रह्मराजा मरण पाम्यो. तेना मृत्युकार्य करीनें चा रे जणें विचार को के, ज्यांसुधी ब्रह्मदत्त राज्य चलाववाने समर्थ याय त्यां सूधी राज्यनो निर्वाह यापणने करवो. एम निरधारी चार जणमांथी दीर्घ राजाने राज्य सोंपीने त्रण राजा पोताने स्थानके गया. पी ते दीर्घ राजा सकल सामग्रीसहित राज्य नजरें जोइ नंमारमां पेतो. अंतेवर पण जोयुं. हवे इंडियो डुर्निवार बे, माटे ब्रह्मनी मित्राइ पण न गणी, लोक मां निंदा थशे; ते पण न गणी अने चुल्लणी राणीथी लाग्यो. केटलोएक काल गयो, तेवारें धनुनामें प्रधाने ते वृत्तांत यथार्थ जाणीने पोताना व रधनु नामें पुत्रने कयुंके, चुल्लणी कुशीलिणी थइ बे. माटे ए वात कुमर ने जावो. तेणें पण तेमज कयुं. Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. ब्रह्मदत्तपण मातार्नु हुश्चरित्र सही न शक्यो. माटे कागडो अने कोयल वे पदियोने पकडी यंतेनरमां ज तेमनो संयोग करावतो जाय,अनेक हेतो जाय के, कोई आ रीतें करशे तेनो ढुं निग्रह करीश. इत्यादिक चेष्टा करतो देखीने दीर्घराजायें, चुन्नपीने कह्यु, जे कागडो बने कोयतनो सं योग करावीने बालकनी पेठे जेमतेम बोलतो बोलतो आपणने सम जाववा माटे मुकने कागडो अने तुऊने कोयल तेरावे . एम निश्चय जा राजे. ते माटे एने मारेतो निर्विघ्नपणे आपणाथी सुख जोगवाय, अने हुँ बूं, तो तुमने दीकरा घणाय अावशे. ते सांजली स्नेहना परवशे एवी अ नार्य वातनी पण हा नणी ॥ उक्तंच ॥ मार पियनत्तारं, हण सुयं तह य नासए घबं ॥ नियगेहं पि पलीव, नारी रागानरा पावा ॥१॥ पड़ी मारवा माटे कुमरनो विवाह ममियो. अनेक स्तंनसहित लाखनुं घर क राव्युं. त्यारें वरधनु प्रधानें गंगाने कांते दान देवाने मिषे दानशाला मंमा वी. त्यांथी विश्वासी पुरुषो पासे सुरंग खोदावीने लाखना घर सूधीला व्यो. हवे विवाह थया नंतर लोक सदु घेर गया. वर वढु लाखना घरमां याव्या. वढु वर अने वरधनु नामे प्रधान पुत्र एत्रण वेग ले. बे पहोर रात्री ग. एटले चारे तरफ आग लागी. हाहाकार थयो. कुमरने कांश सूफे न ही. त्यारें मंत्रिपुत्रने पूजवा लाग्यो के ए गुं थयुं ? ते बोल्यो के, जे राजक न्या परणवानी हती तेने तो अमें पत्री लखीने निषेध कस्यो हतो. ते माटे धातो कोई अन्य स्त्री मोकली . तेथी ए स्त्री उपर प्रतिबंध करशो नही. तमे था स्थानके प्रहार करो. जेम थापणे निकली जयें. कुमरे पण ते मज कम्युं. वेदुजण सुरंगने मुखें बाहेर निकल्या. त्यां पूर्व संकेतित विश्वासी बे पुरुष अश्व लेइ उन्ना . ते अश्व उपर चढी बागल चाव्या. इहां ब्रह्म दत्तनी हीमी कहेवी. अनुक्रमें चौद रत्न, नव निधान, चोराशी लाख हा थी, चोराशी लाख घोडा, चोराशी लाख रथ अने बन्नु क्रोड पायदल, चो शठ हजार अंतेनरी इत्यादिक सर्व चक्रवर्तिनी सामग्रीसहित कंपिन्नपुर नगरे आव्या. तेवारें चुन्नणीयें नयें करी चारित्र लीy, थने दीर्घराजायें सं. ग्राम कस्यो. ब्रह्मदत्ते चक्र मूक्युं तेथी दीर्घराजा मरण पाम्यो. पली सर्व राजायें मली चक्रवर्तीपदे अनिषेक कस्यो. कंपिन्नपुरें राज्ये बेग. एम च क्रवर्ती पणुं जोगवतां रहे. इहां विस्तारना अर्थियें ब्रह्मदत्त चरित्र जोQ. Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २६१ हवे अन्यदा ब्रह्मदत्तनी हजूर नाटकीये नाटक मांमधु , पालो प होर बे, एवामां एक दासी फूलनी माला तथा दडा प्रमुख लावी राजा पासे मूकती हवी, ते कुसुम तथा नाटक जोतां राजाने विकल्प थयो, के, एवं नाटक क्यांक में दीतुं , एवो फूलनो दडो पण क्यांक में सुंघ्यो बे. एम विचारतां जातिस्मरण ज्ञान उपन्युं, पज्यो, मूळ आवी, सामं त प्रमुखें चंदन प्रमुख बांट्यां, शीतल वायु नांख्या, एटले चेतन वल्यु. त्यारें पाबले नवे पद्मगुल्म विमाने पोतें सौधर्म देवलोके हतो, त्यांना ना टक सुगंध फूल प्रमुख सांजस्यां, पण ना क्या उपनो ने तेनी खबर न प डी. माटे तेनी खबर काढवा सारु दोढ श्लोक गुप्त करी वरधनु प्रधानने आप्यो. तेनी मारफत नगरमां उदघोषणा करावी के, कोई पबवाडानाबे पद पूरे तेने अदु राज्य चक्रवर्ती थापे. ते सांजली सदु दोढ श्लोक न एणे पण कोथी पाबला बे पद पूराय नही. ते दोढ श्लोक ए ॥ दासा दसन्ने थासी, मिया कालिंजरे नगे ॥ हंसा य गंगतीरा इंसोवागा कासि नूमिए ॥ १ ॥ देवा य देवलोएसु, बासी अम्मे महामिया ॥ इति ॥ एवा अवसरें पुरिमताल नगरें पूर्वला नवें ब्रह्मदत्त राजाना जाइ चित्र नामें हता, ते इन्यपुत्र थया डे, ते जातिस्मरणशान पामी चारित्र ले ब्रह्मदत्तना नगरमां मनोरम उद्याने भावी कामस्सग्गे रह्या , त्यां को अरहट्टनो खेडू पूर्वोक्त दोढ श्लोक नणे , ते सांजली झान उपयो में नाइनुं सर्व स्वरूप जाणीने मुनियें बीजा श्लोकन पश्चाई पूयं. यथा ॥ इमाणे बच्यिा जाइ, यस्मामप्मेण जाविणा ॥ ते सांजलतांज बरहट्ट खे डू, सर्व काम पडता मूकी हर्ष पामतो राजा पासे गयो. जश्ने संपूर्ण बे श्लोक कह्या. ते सांजलीने राजा, नाश्ना स्नेहें मूर्जा पाम्यो. ते वेला राज सना दोनना पामी, पासें उनेला सेवकोयें अरहट्ट खेडूने चपेटायें हण वा मांझयो, मारता थकां ते बोल्यो. ए बे पद में नथी पूयां पण वनमां रहेला मुनियें पूख्यां जे. एम विलाप कस्यो तेवारें मूकी दीधो. ते पोताने ते काणे गयो. चक्रवर्त्तिने पण मूळ वली, तेवारें वृत्तांत सांजलीने जाण्यु के, नाश् आव्या देखाय . ते स्नेहें करी ब्रह्मदत्त चक्री परिवारसहित न द्यानमां वांदवा निकल्या, त्यां मुनिने देखी तेने वंदना करी बेग, मुनिये पण देशना दीधी, संसारनी निर्गुणता देखाडी, कर्मबंधना हेतु देखाज्या, मो Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. हमार्ग वर्णवी देखाड्यो, ते सांजलीने पर्षदाने वैराग्य उपन्यु. ब्रह्मदत्ततो अनावित थकां बोल्या हे जगवन् ! जेम तमें पोतें मुझने मलवाथी आनं द नपजाव्यो, तेम हवे महारुं राज्य अंगीकार करीने हर्ष उपजावो. महा रे श्रावास ; गीत, नाटक, वाजिंत्र स्त्रियो प्रमुख , तेना तमे लोग जो गवो, प्रव्रज्या, तो महाकुःख , में तप कयुं तेनुं फल ढुं पाम्यो टुं अने तमे तो तेवाने तेवाज बो. मुनि बोल्या हे राजन् ! तें निया| कस्युं हतुं ते विपाकें आपणो बेदनो वियोग थयो. वली हे राजन् ! तहारे जेम राजक दिले, तेम महारे घेर पण घणी दिहती. पण में जिनवचन सांजली ने तेनो त्याग कस्यो. वली हुँ तो गीत ते विलाप जाएं डं, नाटक ते विटं बना जाणुं डं, सर्व बाजरण ते नार जाणुं बु.कामनोग तो बालकने मी गलागे , पण पंमितने तो महाकुःखदायी ,जे कोइ मुनिराज कामनो गथी विरम्या, तपोधन थया, शील गुणमां रंगाणा, ते मुनिने जे सुख दे. ते तहारा कामनोगमां सुख नथी ॥ यतः ॥ सवं विलवियं गीयं, सवं नर्से विमंबणा ॥ सवे आजरणा नारा, सवे कामा उहावहा ॥ १ ॥ बालानि रामेसु बुहावहेसु, न तं सुहं कामगुणेसु राया ॥ विरत्तकामाण तवोधणा एं, जं निरकुणो सीलगुणे रयाणं ॥ २ ॥ ते माटे हे राजन् ! आपणे सर्वथी नीच निंदनीक एवी चंमालनी जा तिमा हता. अने इहां एवा कामनोग पाम्या. ते सर्व संयम तप कस्या ते नां फल ले. एवं जाणी प्रमाद न करो, ए अशाश्वता नोग बांझीने घर मांथी चारित्र लेवा नीकलो, ए जीवित अशाश्वतुं , तेमां जे प्राणी. पुण्य न करे, ते प्राणी धर्म कस्या विना मरण इकडं थावे त्यारे परलोकने विषे घणो शोच करे. जेम सिंह होय ते मृगने ले जाय, तेम अंतकाले मृत्यु श्रावी प्राणीने ले जाय. ते वखत माता पिता जाइ प्रमुख कोइ पण स खाइन थाय. वली स्वजन, मित्र, पुत्र, बांधव प्रमुख को पुःख पण वहेंची लिये नही, एकलो जीव पोतेज जोगवे. जे माटे कर्म ते कर्त्तानी साथें जा य, ए सर्व पिद, चतुष्पद, खेत्र, धन, धान्यादिक मूकीने परनवे पोतानां कस्यां गुनागुन कर्म लेइने जाय, वली पोतें मरे, त्यारे तेनी नार्या, पुत्र प्रमुख तेना शरीरने बालीने लोकानुयायी केटलाएक दिवस शोक करीने व ली पोतानो स्वार्थ पोते पूरो पाडे, ते माटे हे राजन् ! तुं नारे कर्म न कयुं. Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. चक्री बोल्या. हे मुनीश ! तमे कहो बो ते ढुं पण जाणुं . पण ए जोग संग कारी अमारा सरखाने पणा उर्जय . में पूर्वे हलिणार नगर ने विषे चक्रवर्तिनी शदि देखीने कामनोगमा गृक्ष थश्ने अशुन नियाj कयुं, ते पडिकम्युं नही, तेनां ए फल ले. जे माटे धर्मने जाणतो पण कामनोगमां मूर्खाणो बुं. जेम हाथी होय ते घणो कचरो अने थोडं पा णी जे स्थाने होय तेमां पेठो थको थलने देखे खरो पण कचरामां खूत्यो होय तेथी कांते आवी न शके. एम ढुं पण कामनोगमा मग्न थयो थको साधुनो मार्ग लेइ शकुं नहीं. मुनि बोल्या नोग अनित्य ले. तेने जो तुंबां मवा असमर्थ बो, तो पण गृहस्थावासमा रह्यो थको आर्यकाम करजे. जो धर्मने विषे रही सर्व जीवनी अनुकंपा करीश, तो पण वैमानिक देव ता थश्श ॥ यतः ॥ जश्तंसि नोए चश्नं असत्ती, अजाइकम्माश्करे हि रायं ॥ धम्मे यिं सबहियापुकंपी, तहो हि सी देवनवि उधि ॥ १ ॥ तु ऊने नोग बांसवानी बुद्धि थती नथी, अने आरंनपरिग्रहमां गृ६ . तेथी एटलीवार विप्रलाप में कस्यो ते फोक थयो. माटे हे राजन् ! हवे ढुं जावंडं ॥ यतः ॥ न तुष्न नोगे जश्कण बुद्धि, गिझोसि प्रारंपरिग्ग हेसु ॥ मोहो क एत्ति विप्पलावो, गहामि रायं अममातिनसि ॥ १ ॥ एम कहीने मुनियें विहार कस्यो. अनुक्रमें उग्र चारित्र पालीने तेज नवें सिदि वस्या. ब्रह्मदत्ते पण कामनोग न बांझ्या, ते उत्कृष्टा कामनोग नो गवीने सातमी नरकें नारकीपणे जश् उपन्यो. ते माटे अरुचिवंतने जे कहे ते सर्व विलाप जाणवो. इति ब्रह्मदत्त कथा. श्रीउत्तरा ध्ययने. __ हवे कोक प्रतमां " अश्य अबे कहिए विलावो” एवो पाठ बे. त्यां एम अर्थ करवो के, (अश्य के० ) गइ डे (के० ) वस्तु जेथी ते अतीतार्थ कहीये. तेनी पासे (कहिए के० ) कह्यु एटले माग्युं. ते पण वि लाप जाणवो. एटले जे पोतानी पासे नथी ते परने झुंबापे ? ॥ यतः॥ योगशास्त्रे ॥ परिग्रहारंजमना, स्तारयेयुः कथं परान् ॥ स्वयं दरिशे न पर, मीश्वरीकर्तुमीश्वरः ॥१॥ इहां श्रीकम अने वीरासालवीनो दृष्टांत कहे जे. हारिका नगरीये श्रीनेमिनाथजी समोसस्या. कम प्रमुखें वंदना कया नंतर प्रनुजीयें देशना दीधी. देशनाने घेते श्रीरुप्में पूयुं के, हे स्वामिन ! साधु चोमासामा विहार केम न करे ? प्रनु बोल्या. हे कम ! चोमासा Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. मां जीवनी नत्पत्ति घणी दोय ने तेथी विहार करतां जीवविराधना था य. माटे वर्षाकालें एक स्थानके अंगोपांग गोपवीने रहे. ते सांजली श्री कृमें प्रतिज्ञा करी के, सोल हजार मुकुटबंध राजाउने जतां अवतां घणी हिंसा थाय, माटे चोमासामां कचेरी नहि जोइं. एम कहीने घेर था व्या. अने सहुने निषेध कस्यो के, चोमासा मध्ये कोइ सनामां श्रावशो न हिं. ते दिवसथी लोकोमा देवस्ती अगीयारश कहेवाय . हवे कृमनो नक्तिवंतो एक वीरो एवे नामें सालवी. ते कस्मनुं मुख जोया विना जमतो नथी. माटे नित्य बारणे श्रावी पूजा करीने जाय. एम चार मास नूरख्यो रह्यो. चोमासु व्यतिक्रांत थयुं त्यारे वीरो अाव्यो. तेने को पूब्युं के, तुं मुबलो केम देखाय डे, त्यारे पासें बेठेला लोकें वृ त्तांत कह्यु. ते सांजली श्रीकृमें विचास्युं के, एनी महारा उपर बावडी न क्ति ! तो दुं सर्वने कही मूकुँ जे एने थावतां कोई रोकशो नहिं. एवं निर्धारी ते प्रमाणे श्रीकृमें सदने संजालाव्युं. हवे कल महाराजने प्रतिज्ञा ले के, पोतानी कन्याने परणाववी नहीं. तेवामां जे कन्याने शणगार करावीने तेनी माता राजसनामां मोकले. ते कन्याने कस्म पूजे जे तमे राणी यशो के, दासी थशो ? त्यारें कन्या कहे राणी थश्लॅ. तेने श्रीकृम कहे के, राणी थवानी इछा होय तो प्रनुजी पासे जश् चारित्र अंगीकार करो. त्यारे ते वात प्रमाण करीने चारित्र लि ये. एम करतां एक दिवस एक राणी पोतानी दीकरीने शीखवी मूक्यु के. ज्यारें कम पूजे जे, राणी थशो के, दासी यशो ? त्यारे तुं दासीपणुं मागजे. एवं सांजली ते कुमरीये पण तेमज कगुं. त्यारे को चिंतव्युं के, हवे ढुं एवं करूं के, फरी बीजी स्त्री ए काम न करे. एम विचारी वीरासा लवीने एकांते तेडी पूब्यु के, तें तहारा नवमां शी करणी करीले? त्यारे ते बोल्यो के, बोरडी नपर बेसीने में पबरें करी काकिंमो मायो हतो, त था पांजणी करवानी पेंशनी कलशीमां मारखी नरी हती त्यारें में तेनी उपर हाथ दीधो हतो, तेथी मदिका गणगणाट शब्द करवा लागी. व ली चोमासामा रथ चालवाना मार्ग मध्ये पाणी चाल्युं जतुं हतुं, त्यारे में आडो माबो पग दीधो हतो, तेथी पाणी रोकाइ रह्यं. ते सांजली श्रीलभराजा तखते बेसी सनामां कहेवा लाग्या के, सां Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १६५ चलो, वीरो सालवी एवो बलियो बे ॥ यतः ॥ जोय रत्तफलो नागो, वसं तो बदरीव ॥ ( पाठांतरे ) श्राह पुढवीसढे ॥ परसवे दर्ज, वेइम ३ याम खत्ति ॥ १ ॥ जेण घोसवइ सेणा, वसंति कलुसी नरइ ॥ धा री वाहने, वेम लाम खत्ति ॥ २ ॥ जेणे चरकुरकया गंगा, वर्ह ती कलु सोदयं ॥ धारिया वामपाएणं, वेमई याम खत्ति ॥ ३ ॥ माटे हुं एने या कन्या खाएं बुं. एम कहीं श्रीकृमें कन्या पी. वीरा सालवीयें तेने घेर लावी. तखते बेसारीने सेवा करवा मांगी. एम केटला एक दिवस गया नंतर हमें पूब्धुं रे वीरा ! घरनां काम करावे वे के, न थी करावतो ? वीरो बोल्यो, हे महाराज ! हुं चाकरनी पेठें सेवा करूं बुं. कृष्म बोल्या, जो घरनां सर्व काम एनी पासें नहि करावे, तो तहारी वात तुं जाणें. ते सांजलीने वीरो घेर यावी स्त्रीने कहेंवा लाग्यो के, न व पेंश रांध्य, पांजणी करू. ते स्त्रीयें कयुं, रे कोलिक ! पोतानी जाति वि चार ! एवं सांजलीने वीरोसालवी ताडना तर्कना करवा लाग्यो. त्या रें ते रोती थकी माता पासे खावीने कहेवा लागी मने महारो धणी मारे बे. ते सांगली राणीयें जइ कम आागल कयुं. कृष्म बोल्यो, हे स्त्री, महारो शो वांक बे ? एणें पोतें दासीपणुं मार्गी लीधुं बे. ते सांजती रा यें कयुं जवायो हवे ए दीक्षा जेशे में कयुं के, वीरासालवीने पूछि यें. एम कही वीराने पूबी उत्सव महोत्सवथी तेने दीक्षा जेवरावी. वी एकदा श्रीनेमिनाथ समोसखा बे. तेमने कृष्णवंदना करवा याव्या. त्यां द्वादशावर्त्त वंदनायें अठारहजार साधुने वंदना करवा मांमी. त्या बीजा पण घणा राजायें कृष्णनी सायें वंदना करवा मांगी अनुक्रमें सहुये थाक्या, पण वीरा सालवी यें कृष्णने अनुजाइये खढारे हजार मुनिने वांद्या. पी कृष्ण प्रभुजीने पूढधुं. हे स्वामिन्! याज थाक घलो लाग्यो. पूर्वे घणा संग्राम करतां पण क्यारें एवो थाक लाग्यो नथी. तेने प्रभुजीयें कयुंके, हे कृष्ण ! एतो तमारो थाक उतस्यो, जाणो. जे माटे सातमा न रकना दलीया त्रोडी त्रीजी नरकनाकस्था, जिननामकर्म उपायै; तथा दायि क समकित करयुं. ते सांजली कृष्ण बोल्या, फरीथी वंदना करूं. जेम शेष त्रण नरकना दलिया त्रुटे, परमेश्वरें कयुं, ते नाव हवे न यावे. त्यारें कृष्णें पू. हे स्वामिन् ! वीराने श्यो लान थयो ? प्रभुजी बोल्या. एकतो तें रूडुं Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. मान्यु, अने बीजं कायक्वेश थयो. ए वे शिवाय बीजो कांश लान वीरासा लवीने थयो नथी. इत्यादिक सर्व अधिकार श्रीयावश्यकनियुक्तिमध्ये ने. वीरा सालवीयें कृष्एनी घणी सेवा नक्ति करी.पण फल कांये न पा म्यो. केम के, कृष्ण पोतेंज वारंन परिग्रहें मग्न हता, पोतानी पासे चारित्र धन न हतुं, तो वीराने संसारथी केम पार उतारे? एम उपनय जोडवो ॥४॥ ॥थसंपहारे कहिए विलावो (असंपहारे के० ) अनिश्चित अर्थ एटले परमार्थ समज्या विना जे अर्थ (कहिए के) कहेवो, ते गामडीया पुरु पनी पेठे ( विलावो के) विलापतुल्य जाणवो. तेनी कथा कहे . कोक गामने विपे कोइक मूर्ख हतो, ते दैवयोगें समस्त राग रागिणी नी जाण एवी कन्या परण्यो. पड़ी ते स्त्रीने आणु करवा गयो. तिहां सा सरे ते मूर्खना सांला.हंता, तेमणे विचार कस्यो के ,आपणे प्रनाते पंचम राग करीयं. ते विचार तेनी नगिनी सांजव्यो. तेणीयें नरतारने कर्वा के, तमने महारा नाश्यो रागनी वात पूजे त्यारे कहेजो के, ए पंचम राग थयो. पबी प्रनाते सालायें तेमज प्रब्यं, त्यारें मूर्ख कह्यु के, ए पंचम राग ले, ते सांजली सालायें मनमा विचाओँ के, एतो अंग पूंड विनानो पशु .प ण कांक घरनो नेद मल्यो, जणाय . एम चिंतवी नगर बहार जश्ने चा रे काने विचार कस्यो के, आपणे प्रातःकालें धन्याश्री राग करवो ॥ यतः॥ षट्को नियते मंत्र, श्चतुष्कर्णो न निद्यते ॥ किर्णस्य तु मंत्रस्य, ब्रह्मा प्यंतं न गवति ॥ १ ॥ एम करी प्रातःकाले धन्याश्री राग करीने पूर्वा के, ए शो राग ? तेवारें मूर्ख बोल्यो ए बहो राग. ते सांजली साला ताली देश ने माहोमांहे हसवा लाग्या. मूर्ख बोल्यो. रे मूखों ! हसो बो झुं ? काले तमे पंचमं राग कस्यो हतो. माटे आज बघोज राग युक्त जे. जे कारणे पांच पी एम तो बाल गोपाल पण जाणे . ते सांजली वली साला घऐज हास्य करवा लाग्या. त्यारे तेनी स्त्रीयें जगाववा माटे धान्यनी हांमली देखाडी. ते देखी मूर्ख बोल्यो. जाण्यु जाण्यु ए तोलड राग .त्यारे वली अत्यंत हांसी योग्य थयो॥ए कथा एज गौतम कुलकनी वृत्तिमां ॥ ॥ विरिकत्त चित्ते कहिए विलावो (विरिकत्तचित्ते के०) व्यादेपवंत चित्त वालाने जे (कहिए के० ) कहे, ते सर्व (विलावो के०) विलापतुल्य जाणवू. ते नपर बटुकनी कथा कहे . Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १६७ कोक गामने विषे एक ब्राह्मण कथा कहेवा बेगे. तेने ज्यारें बे घडी थर, त्यारें ब्राह्मणे पूडओँ के, कांश समज्या ? त्यारें एक बटुक बेगे हतो, ते बोल्यो. समज्या. विप्र कहे गुं समज्या ? बटुक बोल्यो. तमारो हरडियो (गलानी नीचेनो जाग) हालतो हतो. विप्र बोल्यो. आते तें झुं धायुं ? कां कडं बु तेमां प्रमाण कर. बटुक बोल्यो. फरी कथा कहो तो प्रमाण करूं. त्यारें विटें फरी कथा कहेवा मांमी. वली बे घडी थइ एटले पूब्यु के, प्रमाण कयुं ? त्यारें बटुक बोल्यो. आ दरमाथी ७०७ कीटिकाउ नीक ली, अने सातसे सात पेठी. विप्र बोल्यो. चूंमा : एमां शुं प्रमाण कयुं ? हुँ कहूं ते वात धायं. बटुक बोल्यो, फरी कथा कहो. वि फरी कथा कहे वा मांमी. वली वि वे घडी पडी ब्यु. कांश धायुं ? बटुक बोल्यो. हा में धास्यं. विप्र बोल्यो, गुं धायं ? बट्रक बोल्यो के, तमने कथा कहेतां घणी वा र थ. हवें क्यारे मूकशो ? त्यारें विप्रे कह्यु. में फोगट विलाप कस्यो ! मा टे विक्षिप्तचित्तवालाने न कहेवू. ए कथा उपदेशरत्नाकरम ॥ ५० ॥ ॥बहू कुसीसे कहिए विलावो (कुसीसे के०) कुशिष्यने (बहू के०) घ [ ( कहिए के० ) कहे ते युगप्रधान कालिकाचार्यना शिष्योनी पेठे (वि लावो के०) विलाप जाणवो. तेनी कथा कहे . कालिकाचार्यने सर्व शिष्य आलसु मल्या हता. गुरु घणी शिक्षा दीये तो पण वेलाये पडिक्कमणुं पडिलेहण न करे. आंखो चोलता थका असु रा उठे. एक दिवस आचार्य विचायुं के, दूं एमने केटली शिक्षा देखें ! जे कहूं ते सर्व अलेखे जाय जे. एम चिंतवी प्रातःकाले प्रतिक्रमण तथा प डिलेहण करीने एक शय्यातर श्रावकने जणाव्युं के, हुँ अमुक ग्रामे साग राचार्य पासे जावं बूं, कदाचित् अति आग्रहे महारा शिष्यो पूछे तो, महा रुं तेकाणुं बतावजो. एम कही गया. पडी केटलीएक वेलाये चेला उज्या तेणें गुरुने दीठा नही. खोलतां पण जड्या नही. त्यारे विचास्युं के, ज्यां गया हशे ? त्यां शय्यातरी श्रावकने कहीने गया हशे. माटे शय्यातरी श्रावकने घेर जप पूयुं के, गुरुजी क्या गया ? ते बोल्यो, फिट मूर्यो ! पांचशे शिष्य मलीने एक गुरुने जालवी न शक्या ? गुरुने खोइ वेग. ते ने शिष्योयें कह्यु तमने कही गया हशे, माटे अमने बतावो. शय्यातरी बो ल्यो. तमारा दुःखेंज गया , गुरुजी नित्य तमने सबको देता हता, पण Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. तमे मानता नथी. त्यारे गुरुजी युं करे ? हारीने जता रह्या. ते सांजली चेला बोल्या. हवे फरी एवं न करिये. पण हमणा थमने बतावो. शय्यात रीयें कह्यु के, सागराचार्य पासे गया . ते सांजली सर्व शिष्योयें विहार कस्यो. लोक पूले कोण साधु जाय ? त्यारे ते कहे कालिकाचार्य जाय . हवे पूर्वे कालिकाचार्य पण सागरचार्यने उपाश्रये जर जग्या मागी ए कांते तस्या ले. ते सागराचार्य, कालिकाचार्यना शिष्यना शिष्य बे, पण तेणें पोताना दादा गुरुजीने नजरे दीठा नथी. माटे उलख्या नही. पण लोकने महो. सांजव्यु ले के, कालिकाचार्य इहां आवे . तेथी मनमा घणी होंश ने के, दादा गुरुजी आवशे तेमनें वांदीगुं. एम करतां साधुनो संघाडो प्रबतो प्रबतो त्यां श्राव्यो. अने पूजवा लाग्या के,हे सागराचार्य ! हां गुरुजी याव्या .? सांगराचार्य बोल्या. गुरुजी तो याव्या जाण्या न थी. पण एक मोसो प्रादुणोतो आव्यो बे. त्यारे ते बोल्या, अरे जला था दमी ! एज गुरुजी . ते सांजलीने सागराचार्य घणुं लाजी गया. जे मा टे एकतो दादा गुरुजी थाय, अने वली उत्तरख्या नही, बीजुं वली प्रादुणा जाणीने व्याख्यान प्रमुख नत्कर्षथकी घणुं लटकाथी कत्युं. वली शिष्योने वाचना प्रापी. ते पण घणोज पोतानो उत्कर्ष जणाय एम आपी. वली एम पण पुनझुं हतुं के, हे मोसा ! व्याख्यान तथा वाचना प्रमुख अवल रीतें थाय ने के, नही ? ते वखत मोसायें पण कयुं हतुं, जे घणुं रूडीरी तें थाय जे. एवी वातो करीहती माटे घणा साज्या. अने पश्चात्ताप करवा साग्या के, अहो ! ए झानना समुनी आगल में महारो एटलो नत्कर्ष कस्यो ? ए महोटा खेद जेवी वात था. एम विचार करतां सदये याव्या. गुरुने वंदना करी. आहार करीने बहार नूमिकायें गया. त्यांचेलाउने क युं के, जाजनमा वेलु जरी लावो. ते पण वेलु नरी उपाश्रये लाव्या. त्यां चालणी मंगावी. ते वेलु चालपीयें चाली तेमाथी कचरानो ढगलो अल गो कस्यो. पबीते जीपी वेल चेला पासे उपडावीने बीजे ठेकाणे ढग लो कराव्यो. वली त्यांथी उपडावीने त्रीजे ठेकाणे ढगलो कराव्यो. एम करता थोडी थोडी वेलु उनी थतां थतां बधी वेलु खपी गइ. त्यारें चेलायें पूब्युं स्वामि ! ए गुं करो बो ? आचार्य बोल्या, हे शिष्यो ! पूर्व श्रीसुधर्मास्वा मीयें जंबूने श्रुत आप्युं. जंबूस्वामी प्रनवाजीने याप्यु. प्रजवास्वामीयें Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १६ सय्यनवसूरिने आप्यु. एम एकना कोठाथी बीजाना कोगमा आवतां सू नशान तो न थतु गर्यु. एम जतां जतां स्थूल कांकरा सर ाज ज्ञा न रह्यं . तेमां वली अहंकार करवो ते शा लेखे? ते सांजलीने सागरा चार्य विचायं के, अहो ! गुरुजीयें मने शीखामण दीधी. एम चिंतवी गुरु जीने खमाव्या. इत्यादि. माटे घणा कुशिष्य करवा ते विलाप जाणवो. एम श्रीनत्तराध्ययन सूत्र मध्ये गर्गाचार्यना शिष्य पण जाणवा. इति श्री सकलसनानामिनीनालस्थलतिलकायमानपंमितश्रीउत्तम विजयगणिशिष्य पंमितपद्मविजयगणिकतबालावबोधे श्रीगौतमकुलकप्रकरणे सप्तमगाथायां पंचोदाहरणानि समाप्तानि ॥ ७ ॥ दवे बातमी गाथा कहे . तेने पूर्व गाथासाङ्के ए संबंध बे. पूर्व हीणा शिष्यादिक मले, ते विलाप जाणवा. ते माटे यहां कहे . जे हीणा राजा होय, ते दंम करवाने तत्पर होय. ए संबंधे यावी जे आठमी गाथा ते कहे . उहाहिवा दंपरा हवंति, विजाहरा मंत परा हवंति ॥ मुरका नरा कोवपरा हवं ति, सुसाहुणो तत्तपरा हवंति ॥ ७ ॥ अर्थः-उताहिवा दंम्परा हवंति (उाहिवा के० ) उष्टराजा होय ते (दंम के०) प्रजाने दंगवाने विषे (परा के० ) तत्पर (हवंति के०) होय. एटले उष्ट राजा प्रजाने दंमवा माटे तत्पर होय. अर्थात् हीन राजा होय ते प्रजाने दुःख थापे ते उपर बलराजानी कथा कहे . वितिप्रतिष्ठित नगरें बल नामें राजा राज्य करे . ते शत्रुने विषे बल देवनो लघु नाज होय नहिं, एवो बलीयाना पण बलने टालनारो ने. अन्य दा घणो वर्षाद याव्यो. तेणें करी नगर बहार नदी , त्यां पूर आव्युं. ते पूर जोवा सारु नगरना घणा लोक आव्या ले. त्यां कोटवाल पण जो वा आव्यो . ते पूरमां एक महोटुंबीजोळं तणातुंबाव्यु. तेने कोटवालें दीतुं. तेवारें नदीमां पेसी ते बीजो काढी लेइने बलराजाने जई आप्यु. ते बीजोरानो वर्ण पण घणो सुंदर, सुगंध पण घणी, स्वाद पण घणो, Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. पौष्टिकता पण उत्कृष्ट, एवं बीजोतं आस्वादन करीने राजा घणो हर्ष पा म्यो. कोटवालने आदर देने पूबवा लाग्यो. ए बीजोरुं क्याथी पाम्या. कोटवाल बोल्यो, नदीना पूरमा तणातुं श्रावतुं मन्यु. राजा बोल्यो ए बीजोरानी मूल उत्पत्ति खोली काढो. त्यारे ते पण नदीने खोलवाला ग्या. त्यां आगल जतां एक वन दीतुं. ते वनमां पेसवा मांमयुं, एटले पासे गोवालिया हता ते बोल्या रे ना ! जे कोइ एमांथी फल ले डे, ते निश्चें मरण पामे , माटे विचारी काम करजो. ते सांजली कोटवाल पाडो बल्यो. जे कारण माटे “मरण समं नहि नयं” तेणे आवीनेराजा ने कह्यु. राजा पण सर्व मर्यादा मूकीने एम कहेतो हवो के, आपणा नगरमा वारो बांधो. नित्य एकेकुं मनुष्य जश्ने बीजोळं लावे. ते सांजली ने कोटवाल पण नित्य संर्वलोकना नामनी चीती लखी. एक घडामां नाखीने कुमारी कन्या पासे चिती कढावे. तेमां जेना नामनी पत्री नीक ते, ते जमराजानी दूती सरखी लोकने लागे, अने ते पुरुष बीजोसें त्रो डे, एटले मरी जाय, ते बीजोकै कोटवाल लावीने निरंतर राजाने थापे. ए रीतें लोकोनो क्ष्य थतो हवो. सर्व नगरना लोक नयनांत थता रह्या के, आज मरवानो वारो श्रावशे, के काल आवशे. हवे एक दिवसें जिनदास नामें श्रावकनी चिती नीकली. त्यारे ते श्रा वकें, घरदेरासरमां पूजा करी, घरमां स्वजन कुटुंबने खमावीने सागारी प चरकाण कयं के, जो ए उपसर्गथी जीवतो आवीश, तो थाहार पाणी जेश. अन्यथा जावजीव सूधी पञ्चरकाण . पडी ते श्रावक अदीन मन थको जाणिय लीला वनमांज पेसतो होय नहि !!! तेम वनमां बीजो से लेवा जतो हवो. त्यां ते महाबुद्धिवंत, धीर पुरुष, गाढे स्वरें, ' नमो अरिहंताणं' कहेतो थको वनमां पेतो. ते समये ते वननो अधिष्ठाय क दुइ व्यंतरदेव पूर्वनवे व्रत विराधीने उपन्यो , ते नमस्कार सांजल वाथी तेने पाउलो नव सांजस्यो. तत्काल प्रतिबोध पाम्यो. हाथ जोडी प्रत्य ६ थइ श्रावकने नमस्कार करी घणी नक्ति पूर्वक कहेतो हवो के, हे जिन दास ! तमेंज महारा गुरु बो, सदा पूजवा योग्य बो, तमे मने धर्म पमा ज्यो, पापथकी वास्यो, माटे याजयी घेर बेग हुँ तमने बीजोरूपहोचाडीश. जिनदास श्रावक कृतकृत्य थइ पाडा याव्या. राजाने सर्व व्यतिकर Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ गौतमकुलक कथासदित. कह्यो. हवे ते व्यंतर बीजोठं आपे, ते लश्ने शेठ भावी राजाने निरंतर आपे. राजा जिनदासनी घणी स्तवना करे, जैनधर्म वखाणे, एम शास ननी उन्नति थई. शेठ राजाने घणुं मानीतो थयो, सकल नगरना लो कने हर्ष थयो, लोक सर्व नवो जन्म मानता घेर घेर नत्सव मामता ह वा. ए कथा वृंदारवृत्तिमा ले. राजायें एक रस इंडीयनो लोलुपी था सर्व नगरनी हत्या पण हिसाबमां न गणी. नगर दंमयुं. माटें उष्टराजा एवा होय. ॥ विजाहरा मंतपरा हवंति (विजाहरा के०) विद्याधर होय, ते मेघ रथनी पेठे (मंतपराहवंति के०)मंत्रसाधवाने तत्पर होय ते कथा कहे . श्रा नरतत्रने विषे वैताढय नामा पर्वत ते जेम बेद पांखे पंखी फ रशी रहे, तेम बेदु पाखें जरतने फरशी रह्यो .त्यां उत्तरश्रेणीने विषेत्रा नूषण सरवू देवताने पण वजन एवं नगर होतुं द. त्यां बे विद्याधर सगा ना तरुणवयवाला, माहोमांहे प्रीतिवंता एवा मेघरथ बने विद्युन्मा ली नामें होता हवा. ते बेदुजणें नीचकुलनी नपनी कन्या परणीने एक वर्ष सूधी ब्रह्मचर्य पालवू. ते विधिप्रमाणे विद्या साधवा माटें गुरुनी या झा मागीने विचार करता हवा के, आपणे ए विद्या साधवा सारु नूचर मनु ध्य पासे जश्ये. त्यां पापणी विद्या सिह थशे. पडी दक्षिण जरतमां वसंतपुर नगरें चंमालनो वेष करी चंझालना पाडामां आव्या. त्यां बुझिप्रपंचें क रीकोइक महाबुदिनिधान एवा चंमालनी साथे प्रीति मांगी. एकदा मा तंग बोल्यो. तमनें आव्यां घणा दिवस थया. माटे तमे क्याथी अाव्या, अने केम याव्या, ते वात कहो. तेवारें ते वेदु विद्याधर पण पोतानो सन्नाव गोपवीने बोल्या. अमे वितिप्रतिष्ठित नगरथी श्राव्या. अमने अ मारा मातापितायें कुटुंबबहार करी काढी मूक्या. तेम अमे पण रीसें करी नीकल्या. ते फरतां फरतां हां याव्या. मातंग बोल्या सुखें सुखें । हां रहो. जो तमारी श्वा होय तो एक एक कन्या पण देश्ये. पण अमा री कन्यानुं पाणिग्रहण करो तो, अमारूं उचित अनुष्ठान सर्व कर पड शे. विद्याधरोयें कह्यु के, एमज करीशं. ते वेला चांमाले पण पोतानी ए क काणी अने दंतुर एवी बे कन्या तेमने परणावी दीधी. हवे विद्युन्माली तो चंमालनी कन्या उपर घणो राग धरे. कुरूपिणीनीक पर पण मोही रह्यो, तेथी विद्यासाधन करे नहीं. एम करतां अनुक्रमें ते Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. विद्युन्मालीनी स्त्री गर्नवती थइ. अने वर्षपण संपूर्ण थ{. एटले मेघरथ तो साधवा मांमेली विद्याने सिम करीने सिम विद्यावंत थयो, तेवारें प्री तियें करीने नाइने कहेवा लाग्यो. हे नाई! आपणने विद्या सिम था. आपणे हवे चंमालकुल मूकी वैताढयमां जश् विद्याधरनां सुख जोगवियें. तुं चंमालणीने तजीदे, हवे आपणने विद्याधरी कन्या स्वयंवराये आवशे. ते सांजलीने विद्युन्माली पण लहाथी नीचं मुख करी बोल्यो. हे ना! तमे तो कृतकृत्य थया. व्रत राखीने सिम विद्या करी. ते माटे तमे तो सुखें जा. दुतो अधम सत्वनो धणी होवाथी में नियमरूप वृद नांग्टें. माटे मुझने विद्या सिम क्याथी थाय? वली तमे सुविद्यावंत अने हुँ अविद्या वंत माटे साथें श्रावतां पण लाज उपजे ले. वली हमणा महारी स्त्री स गर्ना डे, ते केम तजाय ? ते माटे तमने कल्याण था. तमे विद्यावंत थका सुखें जाउ. ढुं विद्यारहित थको कुटुंबने मुख केम देखाई ? में प्रमादे करीपो ताना आत्माने पोतें ठगाव्यो. हवे उद्यमवंत थश्ने विद्या साधीश. एक वर्ष पड़ी महारा नपर स्नेह राखीने तेडवा आवजो. हुं तमारी साथें यावीश. एम मेधरथ पण चंमालगीनो स्नेह विद्युन्मालीने मूकावी न शक्यो. तेथी पोतें एकलोज वैताढयें गयो. तेने कुटुंबें पूब्यु. एकला केम आव्या ? तमा रो नाइ क्यां ? त्यारे तेणे कुटुंबने विद्युन्मालीनी कथा कही संजलावी. हवे विद्युन्माली पण कुस्वप्ननी पेठे विद्याधरनां सुख वीसारी मूकीने चंमालपीयें पुत्र जण्यो ते देखी हर्ष पामतो हवा. वली पण विद्युन्माली नी स्त्रीयें फरी गर्न धयो. हवे मेघरथथी पण नानो वियोग खमातो न थी, माटे विचारवा लाग्यो. दुं देवांगनासरखी विद्याधरीयोंने जोगबुं . अने महारो ना तो काणी दंतुर चंझालणीने जोगवे . दुं सात नूमि या आवासने विषे रहुं बु. अने ना तो हाडका प्रमुखें सहित मसाण सरखा घरमा रहे . हुं विविध विद्यासहित मनोवांबित करुं बु. अने ना तो जुना वस्त्र पहेरे जे. कदन्न थाहार खाय बे. एम चिंतवतो केमे करी एक वर्ष काढीने वली विद्युन्माली पासें यावीकहेवा लाग्यो. केना s! चालो जइ वैताढय पर्वतें, विद्याधरनां सुख जोगवीये. ते सांजली विद्युन्माली विलखो थबोल्यो. हे नाइ ! महारी स्त्री, वली गर्नवती था . ते चालुं तो तेने कोण थाधार थाय? हुँ तहारी पे Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २७३ - कगरहृदयवंत नथी. ते माटे नाइ तमे जान. वली अवसरें दर्शन दे जो. हमणांतो हूं इहांज रहीश. महारा उपर रीस करशो नही. ते मेघ रथ नाइने प्रतिबोध देतो वट थाकीने पोताने ठेकाणे गयो. जे माटे जडने गमे तेवो उपदेश द्यो, पण लागे नही. हवे ते विद्युन्मालीने बीजो पण दीकरो श्राव्यो. तेवारें तो ते स्वर्गथी पण अधिक सुरव मानतो वस्त्र जोजन- दुःख नोगवे. बेदु बालक खोलामां बेठा. वडीनीत लधुनीत क रे, तो पण ते तेने गंगा स्नाननी पेठे मानतो हवो, चंझालणी तर्जना करे, ते पण दासनी पेठे खमे, स्नेहबंधे करी मेघरथ पण वारंवार तेनी पासें आवीने कहे के, हे कुलवंता! तुं चंमाल कुलें म रहे. जे मानस स रोवरनो हंस होय ते कां घरनी खालकुंमीमां रति न करे. माटे तुं पोता नुं कुल गुं मलिन करे ? एम आलिंगन देने कहे तो पण विद्युन्मा ली माने नहीं. जेवटे हुँ नही था. एम कहीने ते मेघरथ पोताने ठेका णे पहोतो. त्यां पोताना पिता संबंधी राज्यने घणा काल सूधी पाली थ वसरे पोताना पुत्रने राज्य थापी सुस्थित नामा अणगारनी पासें चारि त्रले तप तपीने स्वर्गे गयो. एम जे विद्याधर होय, ते मेघरथनी पेठे मं त्र साधवा तत्पर होय.॥ए थका परिशिष्टपर्वणीमां जंबुस्वामीअधिकारे . ___ अर्थः-मुरका नरा कोवपरा हवंति (मुरका नरा के) मूर्खनर जे हो य ते (कोवपरा के० ) कोप एटले क्रोध करवाने विषे तत्पर एवा ( हवं ति के० ) होय . ते उपर अहिर अने बाहिरीनो दृष्टांत कहे . कोइक बाहिर पोतानी नार्याने साथें लेइने घीनुं गाडं जरीने वेचवा माटे पासेना नगरमा चौटामध्ये आव्यो. घी वेचवानुं मूल्य तेराव्यु. ते घीने उतारवा माटे जरतार गाडीनपरथी घडो थापे, ते आहिरणी हेत ल उनी रही ले. एम करतां किमेक बापतां अथवा लेतां अबउपयोग थकी एक न्हानो घडो बाहिरणीना हाथमाथी पड्यो. ते नांगी खं मोखंम थयो, त्यारें घीनी हाणी थ. आहेरनुं मन उहवाणुं. माटे उलंना दे वा सारु नार्याने कर्कश वचन कहेवा मांमयां. जे हे पापिणी, शीला! कामें विझबना पामी थकी, को रूपवंत तरुण पुरुष सामु जोती थकी रूडी रीतें घडो लेती नथी. त्यारें स्त्री पण कठोर वचन सांजलीने महा कषाय प्रकट थते दोउ फफडावती, स्तन कंपावती, नांपण चढावती, का Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. लां कटाक्ष महा विकराल नेत्र करीने पाबु बोली रे अधम गामडिया ! घीनो घडो श्रापे , तेमां चित्त राखतो नथी ? पण मदोन्मत्त कामिनी नां मुखकमल जोतो रहे . अने सामां मने कठोर वचन कहे जे ? ते सांजलीने बाहिर पण अत्यंत कोपानलें बलतो, जेमतेम असंबंध बोल वा लाग्यो. स्त्री पण तेमज असंबंध, असमंजस बोलवा लागी. एम करतां परस्पर वलग्या, फूमा फूमी थइ, केशे केश पकड्या, मारा मारी आव्या, एटले पग आघो पाडो पडतां घडामांहेलु घीतो प्रायें सघलु इयें ढली गयुं. तेमां केटर्चुक धरतीये शोषी लीधुं. कांक रह्यं ते कूतरां चाटी ग यां. कांक गाडीमा बाकी रह्यं हतुं, ते ताकी रहेला चोरप्रमुख ले गया. हवे एनी साथें बीजा आहिर गाडीयो जरीने घी वेचवा आव्या ह ता, ते सर्व वेचीने परिवस्खा. घेर जवाने उजमाल थका सदु कोइ पोता ने घेर गया. अने ए आहिरने स्त्री साथे लडतां शेष स्वल्प दिवस बाकी रह्यो, त्यारे यु६ शम्यु. कांक प्रथमथी घृत वेच्युं हशे तेनुं व्य लेइने स्त्रीनार पोताना गामजए। चाव्या. मार्गमा सूर्यअस्त थयो, दशे दिशा यें अंधकार व्याप्यो. त्यारें चोर आवीने वस्त्र, बलद अने इव्य ले गया. एम जे मूर्ख क्रोध करे ते दुःख जोगवे. ए कथा उपदेशरत्नाकरमां ॥ ॥सुसादुणो तत्तपरा हवंति (सुसाहुणो के०) जला उत्तम जे साधु मुनिराज ,ते (तत्तपरा के०) तत्त्व जे परमार्थ तेने विषे तत्पर एवा (हवंति के०) होय . ते उपर आर्यसुहस्ति, आर्यमहागिरनो दृष्टांत कहे जे. ___ श्रीथूलिनजीना एक थार्य महागिरि थने बीजा आर्य सुहस्ति ए बे दु शिष्य दश पूर्वना धणी थया. ते पृथ्वीतलने विषे जव्य जीवने उपगार करता विचरे जे. एमने बालक थका यदा थार्यायें मातानी पेठे पाल्या. ते माटे आर्य पद बागलथी प्रतिम पाम्युं ले. अनुक्रमें जगबंधु महागि रि अनेक वाचनायें करी घणा शिष्य निपजावी पोतानो गजपरिवार था र्य सुहस्तिने सोंपी पोतें जिनकल्प विजेद गयो माटे गबनी निश्रायें रहे ता थकांज जिनकल्प वृत्तियें मन थकी एकाकीपणे विचरे ने. एकदा पा मलिपुरें याव्या. त्यां वसुनूति नामें शेठने आर्यसुहस्तियें प्रतिबोध देने जीवाजीवादिक तत्त्वनो जाण एवो श्रावक कस्यो . ते शेत पण आचार्य ने अनुसारें कुटुंबने धर्मदेशना दे, पण को प्रतिबोध पामे नही. ते शेवें Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७५ गौतमकुलक कथासहित. गुरुने कयु, महाराज! महारो प्रतिबोध लागतो नथी, माटे तमे प्रतिबोध यो. ते सांगली आर्य सुहस्तिजी शेठने घेर देशना दीये . एवामां या र्य महागिरि पण निदाने अर्थे त्यां ाव्या. तेमने आर्य सुहस्तिजीयें न ना थश्ने नमस्कार कस्यो. ते जो श्रेष्ठी बोव्या. तमे जगत्ने वांदवा यो ग्य बो. तो तमारो पण कोइ गुरु ? जे माटे तमे पण नमस्कार करो बो? आर्यसुहस्ति बोल्या. ए आचार्य महारा गुरु . ए सर्वदा नांखी दे वातो आहार लश्ने आहार करे . ए निरंतर उपवासी बे. एमना पग नी रज, ते पण महारा सरखाने पगे लागवा योग्य वे. एम आर्यमहा गिरिनी स्तवना करी, शेतना कुटुंबने प्रतिबोध देश पोताने स्थानकें आ व्या. शेठे पण महा नतिवंत थाने कुटुंबने कही मक्युं के, ए गुरुराज ज्यारें निदा लेवा आवे त्यारे अन्न पाणी नांखी देवानो आग्रह देखाडीने एमने वहोरावजो तो महाफल थशे. बीजे दिवसें वली आर्यमहागिरिजी पधाया. तेवारें तेज रीतें शेतना कुटुंबें रूडं अन्न नाखतो देखाडी देवा मांमयुं, अने विनंति करी के,या था हार घमारें कोई खातो नथी, माटे तमे व्यो. गुरु पण उपयोग देश, अकल्प जाणीने ते आहार लीधा विनाज पोताने स्थानकें यावी थार्यसुहस्ति ने कहेवा लाग्या के, तें महारो विनय कस्यो, तेथी बधु अगुन कयुं. त हारा उपदेशे मने श्रावके निदा पवा मांमी. ते अशुभ हती. ते सांन लीने आर्यसुहस्ती बोव्या. फरी एवं नहिं करूं. एम कही आर्यमहागिरि ना पग वच्चे माथु घालीने अपराध खमाव्यो. एकदा उऊयणीने विषे ते बेदु मुनि पधाया. त्यां जीवितस्वामीनी र थयात्रा , तेथी यद्यपि परिवार घणो होवाथी निन्न निन्न स्थानके उताया बे, तो पण यात्रामा सर्व नेगा नीकल्या . एवामां राजमार्गे संप्रति राजायें तेमने दीवा. त्यारें राजायें विचामु के, एवं में क्यांएक दीतुं जे. एम उहा पोह करतां राजाने जातिस्मरण शान नपन्युं. त्यारें गुरु पासे आवी पगे लागी राजा, कहेतो हवो. हे नगवन् ! जैनधर्मनुं गुंफल ? गुरु बोल्या, स्वर्ग तथा मोद. फरी पूज्यु,स्वामिन् ! अव्यक्त सामायिकनुं गुं फल ? गुरु बोल्या, अव्यक्त सामायिकनुं फल राज्यादिक पदवी जाणवी. एम सांजव्युं, एटले राजाने प्रतीति उपनी. तेवारें राजा बोल्यो. मने उलखो बो ? महारुं गुं Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. नाम ? गुरु पण उपयोग दे बोल्या. हुँ रूडी रीतें उलखु बु. ताहारो पा बलो नव सांनल. एकदा अमे वेदु गुरुनाइ कोसंबी नगरीयें आव्या. त्यां वस्ती सांकडी हती, अने अमारो परिवार घणो हतो, ते माटे अमे जुदा जुदा स्थानकें उतस्या हता अने वली ते काले उकाल हतो, पण लोकने थाहार पाणी यापवानी नक्ति अमारा नपर घणी हती. एक दिवस एक शेठना घरमां साधु गोचरीयें पेठा. पनवाडेथी एक रांक पण पेठो. साधुने तो.हा प्रमाणे ते श्रावके श्राहारादि वहोराव्या. ते रांकें दीवा. निक्षा जश्ने साधु वव्या. त्यारें रांक केडे यावीने निदा मा गतो हवो. साधु बोल्या. अमाराथी तो न अपाय. अमारा गुरु पासे माग्य, त्यारे तेणे पण साधुग्नी साथें साथें आवी अमारी पासे थाहार माग्यो. साधुयें पण का के, अमारी पासे एवं थाहार माग्यो हतो, त्यारे अमे पण ज्ञानना उपयोगें करी तेने नावि शासननो उद्योतक जाणीने कह्यु के, जो तुं दीक्षा ले, तो तुऊने अमे आहार आपियें. ते सांजली रांके वि चायुं के, कष्टतो हमणा पण निरंतर सहन करुं बुं. तो ते करतां व्रतर्नु कष्ट सहन करूं तो घणुंज रू९. अने जोजननो लान पण जे. एम चिंत वीने दीदा सीधी. नख्यो हतो माटे मोदक पण यथारुचियें स्वाद करीने पेटनरी खाधां के, जेम श्वासोलासनो वायु पण पेसी न शके ! तेथी तेज रात्रिये मध्यस्थ परिणामें काल कस्यो. मरीने कुणाल राजाना पुत्रपणे तुं उपन्यो ! ते वात सांजलीने राजा बोल्यो. तमारा पसायें दुं राज्य पा म्यो. तमें दीदा न दीधी होत, तथा जैनधर्म न फरश्यो होत, तो महा रीशी गति थात ? ते माटे या नव अने परनवना तमे उपकारी बो. तो हवे मुझने आज्ञा करो जे आप कहो ते करीने ढुं कांशक अरुणी थावं. गुरु बोल्या. या लोक अने परलोकने विषे सुखदाइ एवो जैनधर्म ने ते तुं अंगीकार का. राजा बोल्यो. अरिहंत ते देव, सुधासु ते गुरु, अने अरिहं तें नाष्यो ते धर्म, ए महारे प्रमाण दे, पनी पांच अणुव्रत, सात शिदावत धरतो संप्रति राजा श्रावक थयो. त्रिकाल जिनपूजा करे, साहामी वात्स ल्य करे, जीवदयामां तत्पर थको वर्षोवर्ष संघसहित श्रीजिनेश्वरने पूजे, रथयात्रा करे, तेम दीन अनाथने दान देतो, त्रण खंझनो नोक्ता थश्ने, नरतदेत्रने जैनप्रसादें मंमित करतो हवो. Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७७ गौतमकुलक कथासहित. आर्य सुहस्तीजी त्यांज रहेता कोइक वर्षे संघसहित देहेरानो यात्रोत्स वमांमयो , त्यां निरंतर संघ यात्रा करवा नीकले. त्यारें आर्यसुहस्तीजी श्रावीने मंझप मध्ये बेसे. तेमना मुख बागल संप्रति राजा लघुशिष्यनी पेठे बेसे. ते चैत्य यात्राने अंते संघे रथयात्रा करवा मांमी. जे कारण मा टे यात्रानो उत्सव ते रथयात्रायेंज संपूर्ण थाय. ते वखत सुवर्ण, माणि क्यमय सूर्यना रथ सरखो दशे दिशायें अजुवालु करतो एवा रथमां श्री अरिहंतनी मूर्ति थापीने नीकल्या. तिहां पूजा विधिना जाण, एवा श्रा वंत श्रावक स्नात्र नणावतां, सुगंधी व्ये प्रतिमाने विलेपन करतां, मुखे मुखकोश बांधीने मालती शतपत्रादिकनी मालायें पूजा करतां, कृष्णागुरु प्रमुखना धूप उवेखता, अारति उतारता, श्रीअरिहंतने नमस्कार करी, आगुवानी पेठें पागल थइ रथने खेंचता हवा. अनेक प्रकारनां वाजिंत्र वाजते, घणी सोहागणी स्त्रीयो धवलमंगल गाते, ए रीतें हाट हाट प्रत्ये घर घर प्रत्ये नित्य पूजा थते, घन सार कुंकुमने उत्तम पाणी धरती सिंचते, अनुक्रमें संप्रति राजाने मंदिरे रथ याव्यो. त्यार रोमराजी विक स्वर करी, अष्टप्रकारी पूजा करी, घणा आनंदपूर्वक राजायें सर्व सामंतने बोलावीने कह्यं. जो तमें सार पदार्थनी बाराखताहो, तो सम्यक्त्व ग्रह ण करो. जो मने स्वामीपणे मानो बो,तो श्रमणना उपासक था. महारे तमारा इव्यनुं प्रयोजन नथी. मात्र में कडं ते प्रमाणे करो. एटले महारूं सर्व मनोवांडित कयुं, एम कही सर्वने पोत पोताना देश प्रत्ये विदाय कस्या. ते पण स्वामीनी नक्ति साधुनी सेवा घणी करता हवा. ते सर्व राजा पोतपोताना देशने विषे रथयात्रा प्रवावी. ए रीतें जे प्रांत देश हता, ते पण साधु विहारयोग्य थया. एकदा रात्रिय संप्रतिराजायें विचाओँ के, अनार्य देशमा साधुने विहार करावं. पड़ी अनार्य देशना राजाउने बोला वीने कह्यु के, जेम मने कर आपो बो, तेम महारा जे पुरुष यावे, ते क हे तेम करजो, एम कही पोताना पुरुषोने साधुनो वेष पहेरावीने अनार्य देशमा मोकल्या. ते त्यां जइ अनार्य लोकोने कहेवा लाग्या के अमने बे तालीश दोष रहित वस्त्र पात्र अन्न पाणी आपो. तथा जैनना शास्त्र नणो. इत्यादिक अमारुं कडं करशो, तो संप्रति राजाने रीज उपजशे. अन्यथा नहि उपजे. ए रीतें ते पुरुषोयें कह्यु. ते प्रमाणे ते सर्व करता हवा. Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० जैनकथा रत्नकोप नाग बहो. पली राजायें गुरुने पूज्यु. आर्य देशनी पेठें अनार्य देशमा विहार केम नथी करावता ! गुरु बोव्या, अनार्य देशमा अज्ञानें करी रत्नत्रयीनो वधा रो थाय नही. राजा बोल्या अनार्य देशने विषे साधुने विहार करावो तो तेनी चतुराश्नी मालम पडे. एम राजाना आग्रहथी केश्क साधुने आंध्र इविड प्रमुख देशे विहार कराव्यो. त्यां ते लोको पण ए संप्रति राजाना पुरुष अाव्या बे, एम जाणी तेमने अशनपानादिक शुक्ष्मान आपता ह वा. एवं अनार्य देशमा निरवद्य गुमान आहार मलतो देखी ते साधुन गुरुनी पागल भावी विस्मयनी वात संजलावता हवा. ए रीतें संप्रति रा जायें अनार्य देशने पण साधुने विहारयोग्य कस्या. वली राजायें पाबला नवनुं रांकपणुं संजारीने गामने चारे दरवाजे दानशाला मंमावी. त्यां पो तानो परनो वहेरो वंचो नथी, त्यां सदु रांक प्रमुखने नोजन करावतां जे नगरे, ते रांधणिया तथा चाकर वहेंची ले. एक दिवस राजायें पूज्युं. उ गस्यं नोजन कोण ले ? रांधणिया प्रमुख बोल्या. अमें लेश्यें बैयें. राजा बोल्यो जे अन्न पाणी वधे ते निरवद्य आहारना लेनारा मुनिने आपजो. तेनुं तमने इव्य आपीगुं. ते पण राजाना कह्या मुजब मुनिने बापता ह वा. मुनि पण गु६ जाणी लेता हवा. वली राजायें कंदोश्ने, तेजना वेच नाराने, दहिंना वेचनाराने तथा वस्त्रना वेचनाराने बोलावीने कह्यु के, जे कांश साधुने जोश्ये, ते यापजो तेनुं मूल्य ढुंबापीश. कां पण शंका लाव शो नही. तेवार ते पण घणा हर्ष पामता तेमज करता हवा. जेमाटे वा पियाने तो वस्तु वेचाय, एटले घणो हर्ष थाय. ए सर्व वात आर्य सुहस्तीजी सारीपेठे जाणे , पण शिष्यनो राग ब लवत्तर , माटे बोले नही. त्यारें आर्यमहागिरि बोल्या. अरे अशुद्ध जा पता थकां झुं बाहार व्यो बो ? सुहस्तिजी बोल्या "यथा राजा तथा प्र जा" जेम राजा रागें नक्ति करे , तेम लोक पण तेने अनुयायी पणे जक्ति करे . ए वात सांजलीने महागिरिजी, आर्यसुहस्ति उपर को प्या, अने केहताहवा के, तुं माया करे जे माटेबाजथी महारे असांनोगिक पणुं जे, आहार पाणीनो संबंध नथी, थापणी निन्न सामाचारी थइ,तेथी तहारो महारो पंथ पण जूदो जायजे. ते सांजलीने थार्यसुहस्तिजी कंप ता थका बालकनी पेठे पगे लागी हाथ जोडीने कहेवा लाग्या. हे न Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १७ए गवन् ! हुं अपराधी बु. मने मिहामि मुक्कडं हो. महारो अपराध खमो. फ री एवं नही करूं. आर्यमहागिरिजी बोव्या. तहारो शो दोष ले ? पूर्वे श्री मन्महावीरस्वामी कही गया जे के, महारा शिष्यनी परंपरामां श्रीस्थूलिइजी पड़ी सामाचारी हानि पामशे. अने श्री स्थूनजीनी पनवाडे तो तीर्थना प्रवर्त्तावनार आपणे बेहु थया. ते माटे तें प्रनुनुं वचन खलं कयुं. एम कही निन्न सामाचारी असांनोगिकपणुं थापी, नजायणीने विषे जीवितस्वा मीनी यात्रा करीने, गजानपद पर्वतने विषे अनशन ला स्वर्गे पधास्या. संप्र ति राजा पण श्रावक व्रत पाली देवता थयो. अनुक्रमें मोक्ष जशे. आर्य सुहस्तीजी पण अनुक्रमें अवंतिसुकुमालने प्रतिबोधी, प्रधान शिष्यने गह सोंपी, अनशन करीने स्वर्गे पधावा. ए कथा परिशिष्ट पर्वमां . एरीतें साधु होय,ते तत्त्वने विषे तत्पर होय ॥ इति श्रीसकलसनानामिनीनालस्थल तिलकायमानपंमितश्रीउत्तम विजयगणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिविरचिते श्रीगौतमकुलकबालावबोधे अष्टमगाथायां चत्वार्युदाहरणानि समाप्तानि ॥ हवे नवमी गाथानो प्रारंन करिये बियें. तेने पूर्व गाथा साथै ए संबंध ने के, पूर्व गाथाने अंते कह्यु के, जे सुसाधु होय ते तत्त्वने विषे तत्प र होय, ते सुसाधु तपस्यावंत पण होय, ते तप करीने क्षमा करे ____ तो शोना थाय. ते माटे शोनानी वात नवमी गाथामां कहे .. सोहा नवे नग्गतवस्स खंती, समाहिजोगो पसमस्स सोहा ॥ नाणं सुकाणं चरणस्स सोहा, सीसस्स सोहा विणए पवित्ति ॥॥ अर्थः-सोहा नवे नग्गतवस्स खंती (नग्गतवस्स के०) उग्र तपस्या वंतने (वंती के०) माथकी (सोहा नवे के० ) शोना होय. एटले न ग्र तप करे तेनी शोना शी ? एम शिष्य पूढे थके गुरु बोल्या के, जो दमा सहित तप करे, तोज शोने. ते उपर सुकोसलमुनिनी कथा कहे जे. अयोध्या नगरीयें श्रीषनदेवस्वामीना वंशमां कीर्तिधर नामें राजा थ यो. ते एकदा महोलमां बेठां सूर्यनुं ग्रहण यतुं देखीने वैराग्यजाव नायें विचारवा लाग्यो के, जेम सूर्यनी दणेकमां श्रा अवस्था थर, तेम Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. सर्व जगत् एज रीतें अनित्य ले. माटे चारित्र से ते सारं. ए विचार चिंतवी ते पोतानो अनिप्राय मंत्रीने कह्यो. मंत्री बोल्यो, पुत्रने राज्ये थापीने संयम व्यो. ते राजायें मान्यु. अनुक्रमें सुकोसला राणीने सुकोस ल नामा पुत्र श्राव्यो. तेने राज्यतिलक करीने, कीर्निधर राजायें चारित्र लीधुं. ते मुनि श्रुतान्यास करतां बहुश्रुत थया. अनुक्रमें एकल विहारी थइ तप संयम पालता, ग्रामानुयामे विचरता, बह अहम दशम, मासख मण चारमासी प्रमुख तप करता, गिरिगुफाने विषे रहेता, अनुक्रमें अयो ध्या नगरीयें पधास्या. मासखमणने पारणे नगरी मध्ये गोचरीयें नीकल्या. ते अवसरे सुकोसला राणीयें नरिने धावता देखीने मनमां विचा घु के, जो महारो कुमर एने देखशे, तो एना कुलनी रीत प्रमाणे ए पण कदापि पोताना बाप सार्थे जतो रहे ! एम चिंतवी सुनटो मोकल्या. ते सुनटें जश् गलुं पकडीने मुनीने काढवा मांझ्या. ते जो कुमरनी धाव्य माताने मूळ थावी, धरतीयें पडी, तेने शीतल उपचारें करी कुमरें सऊ करी. तेवारे ते बांसु रेडवा लागी. एटले सुकोसल राजा विनंति करवा लाग्यो. रे माता ! एवडं कुःख तमे शामाटे करो बो ? तमने केणे उहव्यां? त्यारे ते बोली. हे वत्स ! नगरमा महोटु पाप थाय बे. तेथी मने दुःख लाग्यु. जेम पहाड त्रुटी पडे. अथवा समुह पृथ्वीने रेल रेल करे.एवं पाप नगरमा वर्षे . कुमर कहेवा लाग्यो. हे मात! एवं गुं पाप वर्ते ले ? धाव्य माता बोली. तहारो पिता कीर्तिधर राजर्षि वा नगरमां गोचरी करवा था व्या हता. तेने देखीने राणी उपश्व करीने कढावे . एवाधाव्यनां वचन सांजलीने सुकोसल राजाना मनमां घणो खेद उपन्यो. तेज वेलायें थाख माथी बांसु रेडतो उघाडे पगें चालतो नगर बहार जश् मुनिने मल्यो. त्यां सुजटोने हांकी काढया. ते पण जेम सिंह देखी शीयाल नासे तेम नाता. साधुनो उपसर्ग टाल्यो. पडी सुकोसल राजा विनंति करवा लाग्यो. हे स्वा मिन् ! नगर मध्ये गोचरीने अर्थे पधारो एम कर्दा. परंतु मुनियें तो बीजूं मासखमण कयुं. तेथी वहोरवा याव्या नही, पण पुत्रने धर्मदेशना दीधी. ते सनिली पुत्रनेपण वैराग्य उपन्यु. तेवारें पोतानी स्त्रीने गर्न हतो, ते ग जेनेज राज्ये थापीने पोतें चारित्र अंगीकार कयुं. ते पिता पुत्रनी जोडी संयम मार्ग पालतां, उग्र तपस्या करतां, मोह Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १८१ जट साथै संग्राम करता, कहेगी तथा करणी बेदु सरखी राखता, ईर्ष्या समिति शोधतां, पगलां देइ धरतीने पवित्र करता, विचरे बे. मुनिमार्गे सा वधान रहे बे. एवा अवसरें जे वेलायें सुकोसनें चारित्र जीधुं, ते वेलायें रागे करीने तेनी माता सुकोसलायें उपरथी पापात करचो. ते शुनध्यानें म रण पामीने वाघण इ. मुनि पण विचरता चित्रकूट पर्वतें खावी घोर तप करता चोमासुं रह्या. अनुक्रमें पारणाने माटे नगर प्रदेशीने बेदु गोचर जी चाल्या. ते समये ते वाघणें पण तरत अपत्य प्रसव्यां बे. माटे नू खीकी विकराल इ चार दिशें नजर फेरव्यां करे बे. एवामां ते बे मुनि ने यावता दी. मुनिये पण वाघण दीवी. त्यारें कीर्तिधर राजर्षि सुकोस ल मुनिने कहेवा लाग्या. हे वत्स ! ए वाघण उबलती फाल मारती यावे d. ते उपसर्ग श्रमारे सहेवो बे. माटे तमे पढवाडे, रहो. श्रमे श्रागल थ शुं. सुकोसल मुनि बोल्या. हे तात! तमें बना रहो. ए महारा उपर क पा करो तो ढुं महारुं कार्य साधुं त्यारें कीर्त्तिधर मुनि बोल्या, हे वत्स ! तमे बाल बो, वाघण विकराल बे, माटे ए परिसह तमे केम जीती शक शो ? सुकोसल मुनि बोल्या के, नहाना महोटानुं चुं कारण बे. मन दृढ कर जोइये. ते कारणे पारणामां ए सुखडी मने थापो. एम कहीने पो तें घागल नीकल्यो. वाघणी पण नूखी थकी फाल देती यावी. ते वेला यें सुकोसल मुनियें चार थाहारनां पञ्चरकाण करीने चोराशी लाख जीवा जोनी खमावी. जेम शूर सुनट संग्राममां चढे, तेम परिसहनी फोजने म होडे जर खड्या. वाघणी पण मुनिने थापो दे देता पाडी चटचट चमडी चूंटवा लागी, तड तड नसाजाल त्रोडवा लागी, फटफट हाडकां फूटवा मांमया, रुधिर वहेवा लाग्युं. त्यां सुकोसल मुनि परम संवेगं समतायें परिणम्या. पोतानां कर्म यहियासता हवा. कीर्त्तिधर पिता पण निकाम ता हवा. अनुक्रमें सुकोसल मुनि शुक्लध्यानें करी, क्षपकश्रेणी मांमी, घन घाति कर्मनो दय करी, केवलज्ञान पामी, योगारोध करी, चौदमे गुला 1. शैलेशीकरण करीने परमानंद पद पामता हवा. एकथा रामचरित्रमां बे. वे वाघणी पण मुनिमांस भक्षण करती घणुं घणुं राचती माचती, मुनिना मुख सूधी खावा यावी. त्यां सोनानी रेखा दांते कलकती दीवी. ते पूर्व परिचित देखीने जातिस्मरण पामी, त्यारें पश्चात्ताप करवा लागी Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. के, हा हा ! में ए कुकर्म कयुं ? जेमाटे में महारा पुत्रने मास्यो. माथु पट कवा लागी. है है ! ए कर्मथी दं केम बूटीश !!! एम चिंतववा लागी. ते अनुमाने कीर्तिधर मुनियें जाण्यु के, ए कोक जाति स्मरणादिकें समजी देखाय . एम जाणीने मुनि बोल्या. रे वाघणी ! एम करे गुं थाय? हवे चार शरणां करी चारे थाहारनां पञ्चरकाण कस्य के, जेथी कर्म लूटे, ते सानली वाघणी पण अनशन करीने अनुक्रमें देवलोके गइ. कीर्तिधरजी पण अनुक्रमें केवलझान पामी मोदे गया.तेमाटे उग्रतपनी शोना ते दमाने. ___समाहिजोगो पसमस्त सोहा के०) समाधियोग जे जे तेज, उपश मनी शोना . ते नपर सुव्रतमुनिनुं उदाहरण कहे जे. सुदर्शनपुर नगरें सुनाग नामें गृहपति वसे . तेने सुजसा नामें नार्या ले. ते स्त्रीनार में श्रावक ले. ते स्त्रीयें सुव्रत नामें पुत्र प्रसव्यो. अनुक्रमें महोटो थयो. ते यौवन अवस्थायें को मुनिनी देशना सांजलीने प्रतिबोध पाम्यो. त्यारे वगर परणेज माता पिताने पूबीने घणा आग्रहथी दीदा लीधी. अनुक्रमें गीतार्थ थयो, घणो समतावंत थयो; एकल विहार पडि मा अंगीकार करी. एवा महा समतावंत, धैर्यवंत मुनिने देखी सौधर्मे देवतानी सनामध्ये प्रशंसा करी के,सुव्रतमुनि पोताना समाधि योगथीको इना चलाव्या चले नही. ते सांजलीने बे देवता यणमानता परीक्षा करवा आव्या. तेणें प्रथमतो अनुकूल उपसर्ग करवा मांझ्या. तेमां एक देवता बोल्यो. धन्य ने सुव्रत अणगार ! जे तमे कुमार थका ब्रह्मचारीपणे दीदा लीधी. बीजो देवता बोल्यो. एने गुं वखाणे ने. एवं तो कुलसंताननो नले द कस्यो. माटे ए अधन्य ले. एवं सांजल्युं तो पण ते मुनि समाधियोगमा रह्या. वली देवतायें ते मुनिनां माता पिताने विषयने विषयासक्त रहेला देवाज्या. तोपण समाधियोगमा रह्या. वली देवतायें मातापिताने मा रवा मांमयां, त्यारें मातापितायें करुणस्वरें रोवा मांमधु, तोपण मुनि समाधीमा रह्या. पनी दिव्य स्त्री विकुर्वीने विन्रम विलास सहित मुनिने जोवा मांमयु. दीर्घ निसासा नांखीने मुनिने आलिंगन देवा मांमयुं. तो. पण पोताना समाधियोगथी चल्या नही. एम समाधियोगमा रहेता केव लज्ञान पाम्या. अनुक्रमें मोदे गया. इति आवश्यकनियुक्तो योगसंग्रहे कथा॥ ॥ नाणं सुकाणं चरणस्स सोहा (नाणं के०) झान तथा (सुजाणं के०) Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १८३ शुनध्यान, तेज पुष्पभूति याचार्यनी पेरें ( चरणस्स के० ) चारित्रनी ( सोहा के० ) शोना बे. ते पुष्पभूति प्राचार्यनी कथा कहे बे. सिंधुवर्धन नगरने विषे मुमिवक नामें राजा हतो. त्यां पुष्पभूति नामा श्राचार्य बहुश्रुत महागुणवंत होता हवा. ते याचायें राजाने प्रतिबोधी ने श्रावक को बे. ते याचार्यने पुष्पमित्र नामें शिष्य बे. ते बहुश्रुत बे पण क्रिया व्यवहारे शिथिल बे. ते माटे याचार्यथी जूदो रहे बे. सुखमां काल गावे बे. एक दिवसें ते प्राचार्य, सूक्ष्मध्यानमां पेसवानी इष्ठा क रेने. पण ते महाप्राण ध्यान सरखं बे. ते ध्यानमा रह्या थकां चेतना बे के नयी एवं पण जाणवामां न खावे, एवं ते प्रबलध्यान बे. वली ते या चार्यनी पासे जेटला शिष्य बे, ते सघलाये बहुश्रुत बे. तेमाटे खाचायें पुष्पमित्र शिष्य ने बहुश्रुत जाणीने बोलावीने कंयुंके, महारे ध्यानमां प्रवेश करवो बे. माटे तुं पासे रहेतो प्रवेश करुं. ते चेजें पण अंगीकार क सुं. पी एकांते नरडामां बेसी याचार्यै ध्यान करवा मांमधुं. जे कोइ या वे तेने ते पुष्प मित्र मांहे श्राववान दीये, अने कहे के, तमे इहां रहनेज प्राचार्यने वंदना करो. प्राचार्यजीतो कार्यमां व्याकुल बे. एम केटलाक दिवस गये थके साधु मांहोमांहि विचारवा लाग्या के, पूज्यजी शुं करतां हो ? तेमां एक साधुयें जश्ने जोयुं पण प्राचार्य अंशमात्र चले नही, ने बोले पण नहीं. ते जोइ तेणें खावी सर्व साधुने संजनाव्यं ते सर्व Forest पुष्पमित्रने कहता हवा के, जो जो! आचार्य तो काल पाम्या बे. ते तातुं म म नथी कहेतो ? पुष्पमित्रे कह्युं श्राचार्य काल पाम्या नयी, पण ध्यानध्याय बे. माटें खाचार्यने ध्यानमां व्याघात न करो. त्यारे ते बोल्या, ए तहारुं धूर्तपणुं छे. जे माटें याचार्य लक्षणवंता बे. तेने तुं वेताल साधना करनारो मल्यो बे ने थमने तुं ठगे बे. ए रीतें सर्व साधु ते पुष्पमित्र साधें क्लेश करवा जाग्या. अनुक्रमें राजाने तेडी ला व्या. अनेकयुंके, हे राजन जू याचार्य काल पाम्या बे तेने परतंववा देता नथी. राजायें पण आचार्यने रुडीरीतें जोया ने निर्धार कस्यो के, याचार्य काल पाम्या बे. तेवारें पुष्पमित्रनी अवज्ञा करीने शिबिका बनावी. वे याचा पूर्वे पुष्पमित्रने कही मूक्युं वे के, निप्रमुखनो महा उप इव थयो जाणे तो महारो अंगूठो स्पर्शजे. ते संकेत संजारीने प्राचार्यनो Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ जैनकथा रत्नकोष नाग नछो. अंगुठो फरश्यो. एटले श्राचार्य जागृत थ बोल्या. मने ध्यानमां व्याघात केम कस्यो ? पुष्पमित्र बोल्यो. तमारा शिष्योयें व्याघात कयो बे. त्यारें ते श्राचार्ये शिष्योने तबको दीधो. जे ए तमें रूडुं न कत्युं. इत्यादि कथा श्रावश्यक नियुक्तिमा दे, ते माटे चारित्रनी शोना ते ज्ञानध्याने . ॥ सीसस्स सोहा विणए पवित्ति (विणिए के०) जे विनय गुणमा (प वित्ति के०) प्रवृत्ति करवी तेज (सीसस्स के०) शिष्यनी (सोहा के०) शोना . एटले विनयने विषे प्रवर्तवू, तेज शिष्यनी शोना जाणवी. माटे श्री उत्तराध्ययन मध्ये प्रथम विनय अध्ययने उदाहरण कयुं बे. ते कहे . नऊोणी नामा नगरीने विषे अंबऋषि नामें ब्राह्मण वसे ले. तेने मा ढुंगा नामें नार्या ते बेदु श्रावक ले. तेने निंबक नामें पुत्र . अनुक्रमें मालुंगायें काल कयो. ते जोश पिता पुत्र बेहुने वैराग्य उपन्युं. तेवारें बेतु जणे कोक आचार्य पासे दीक्षा लीधी. पण तेमां बोकरो पुर्विनीत .माटे समाधि ल बेठेलानी जगाने कांटें करी खोदे, कालग्रहानी क्रिया कर तां बींके, एम काल गमावे, सर्व सामाचारी विपरीत याचरें. त्यारे सर्व साधुयें मली प्राचार्यने विनंति करी के, तमे ए निंबकने राखो, अथवा अमने राखो. जे माटे निंबक रहेशे तो, अमे सर्व चाल्या जश्यु. ते सां नली आचार्य निंबकने काढी मूक्यो. पिता पण पुत्रना रागें साथें नीक ल्यो. ते बेद कोबीजा प्राचार्यनी समीपे जश्ने रह्या. त्यां पण नोकराने अ पलक्षणो जाणी काढी मूक्यो. एम नलेणीमा पांचवें संघाडामा ते बेतु पिता पुत्र फस्या, पण क्यांहि टकी शक्या नही. एक दिवस पिता पुत्र बहारनूमिकायें गया बे, त्यां पिता रुदन करवा लाग्यो. त्यारें पुत्र बोल्यो. शा माटे रडो बो? तमेज महारुं नाम निंबक दीधुंबे पिता बोल्यो. में सा र्थक नाम दीg, तहारा पुष्कतें करी हुँ पण क्यांय स्थानक पामतो नथी. हवे याचार्य पासे पण जश्न शके, त्यां पण को विश्वास न करे. त्यारे पुत्र बोल्यो. हे पिता हवे एकवार कोश्क ऽथानके जग्या गवेषो. ते सांजली बाप बोल्यो. जो तुं विनीत थाय तो हुँ जग्या खोलु. निंबक बो ल्यो. हवे ढुं विनीत यश. ते सांजली वली मूल आचार्य पासे आव्या. ए टले सर्व साधु दोजना पाम्या. तेमने तेना पितायें कह्यु हवे ए महारो पुत्र अन्याय नही करे. तो पण ते साधु माने नही. त्यारें आचार्य बोल्या. हे Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. बार्यो ! एम न करो. हाल तो ए थापणी पासें प्राहुणा थका रहेशे. ते अाजकाल वे दिवस रहीने जशे. एम करीने बेदु जण रह्या. हवे ते चेलो पडिलेहण वेलायें पडिलेहण करे, उच्चारप्रस्त्रवणनूमिका बहार पडिलेहे, इत्यादिक सर्व सिद्धांतोक्त सामाचारी करतो सर्व साधुने रीम उपजावी, अनुक्रमें उऊयणी नगरी माहेला पांचसे उपासराना सर्व साधु मलीने ते निंबकने अमृतना थांबा सरखो माने. ज्यां जाय त्यांथी नीकलवा न दीये. एवो मदा थयो, महाविनयवंत थयो, घणी यश कीर्त्ति वृदिपामी. एम शिष्यनी शोना ते विनयमां प्रत्ति करवाथी थाय इति निंबककथा आवश्यकतृत्तौयोगसंग्रहे इति सकलसनानामिनीनालस्थलतिल कायमानपंमितश्रीनत्तम विजयगणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिविरचिते श्रीगौ तमकुलकबालावबोधे नवमगाथायां चत्वार्युदाहरणामि समाप्तानि ॥ ए॥ हवे दशमी गाथानो प्रारंज करिये बैयें. तेने पूर्वगाथासाथें ए संबंध ले. जे पूर्व चार प्रकारनी शोना कही, अने हां पण जे गुणें करी शो ने, ते गुण बतावे . ए संबंधे करी आवी जे दशमी गाथा ते कहे . अनूसणो सोहर बंजयारी, अकिंचणो सोहा दिकधारी ॥ बुझीजु सोहर राय मंती, लजाजु सोहर एगपत्ति ॥१०॥ __ अर्थः-“अनूसणो सोहर बंनयारी (बंनयारी के०) जे ब्रह्मचारी बे, ते (अनूसणो के० ) नुषण एटले पानरण तेणें करी रहित होय तो पण (सोहर के०) शोने जे. एटले ब्रह्मचारी पुरुष आनूपण विना पण शोने दे. ते उपर हरिकेशी अणगारनुं उदाहरण कहे . मथुरा नगरीना शंख नामे राजायें धर्म सांजली चारित्र लीg. ते ए कदा विहार करतां गजपुर नगरें गया. नगरीना मार्गनी वचमां आव्या. त्यां स्वनावेंज धरती अत्यंत नाम ले. जेथी चाली न शकाय, पण ते साधु अजाणतां सोमदेव नामे पुरोहितने मार्ग पूबता हवा. त्यारे पुरोहितें हां सीमां तेज मार्ग बताव्यो. साधु ते मार्गे चाव्या. साधुना तपना प्रजावें Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ जैनकथा रत्नकोष नाग छो. मार्ग शीतल थयो. ते व्यतिकर पुरोहितें गोखे वेगं जोयुं, तेवारें विचारवा लाग्यो. के में साधुनी बाशातना करी. पडी उद्यानमां जश् साधुने कहेवा लाग्यो, स्वामिन् ! में पापकर्म कयुं तेथी केम लूटीश? साधु बोल्या,दीक्षा ल्यो, ते सांजली दीक्षा लीधी, दीदा पाली, परंतु जातिमद करयो.तेथी मरण पा मीने देवलोकें गयो. त्यांथी च्यवीने, मृतगंगा कांते बलकोटें हरिकेशी चं मालनो स्वामी ने, तेने गोरी तथा गंधारी नामें वे जार्या , तेमां गोरी नी कूखे उपन्यो. तेणी स्वप्नमां वसंतमास दीठो. फल्यो फूल्यो आंबो दी गे. प्रनाते स्वप्न पाठकोने तेनुं फल पूब्युं. ते बोल्या. तहारे महात्मा पुत्र थशे. अनुक्रमें पुत्र आव्यो. पूर्वनवना मदने दोषे करी शरीरे कालो महा विरूप थयो. बल एबुं नाम दीधुं. नंमणशील क्वेश करे. कोनुं कर्तुं खमे नही. एकदा वसंतनो कांक उत्सव , तेथी सदु नेगा थर जमे , मदिरा प्रमुख पिये डे, बलने तो ननंत जाणीने वेगलो काढी मूक्यो , ते पण वेगलो बेगे जुए . एवामां सहसात्कारें एक सर्प नीकट्यो. तेने सर्वे म लीने मास्यो ! एवामां वली बीजो नेरुंम सर्प नीकल्यो. तेने सहुयें निर्वि प जाणीने जीवतो मूक्यो. ते देखीने बलने चिंता उपनी के, अहो ! पो ताना दोघे करीने जीव क्लेशनो जागी थाय !! ते माटे नक थर्बु, ते ज रूडं. जे नक होय ते नइ पामे. जे कारणे विषसहित सर्प हतो ते हणायो. अने ए बीजो सर्प निर्विष हतो तो तेने जीवतो मूकी दीधो. ॥ यतः ॥ नदए ऐव होयवं,पावर नदाणि न ॥ सविसो हम सप्पो, 5मो तब मुच्च॥ १ ॥ एम विचारतो पोतानी मेलें प्रतिबोध पाम्यो. जातिस्मरण ज्ञान नपन्यं, तेवारें दीदा सीधी. विहार करतां वणारशी न गरीने विषे तिऊक नामे उद्याने पहोता. त्यांब अहमादिक तप करता मंमिक नामे यदने देहेरे रह्या, तपने प्रनावें ते यद अत्यंत मुनिनो रा गी थयो. एकदा त्यां बीजो प्रादुणो यद याव्यो. तेणें मंमिकने कयुं, म हारा वनने विषे तमे हमणां केम नथी पावता? मंमिक यह बोल्यो, हुँ मुनिनी सेवामां . एमना गुणें आवयोथको बीजे ठेकाणे जर शक तो नथी. ते सांजलीने प्रादुणो यद मुनिनो रागी थयो. प्रादुणा यदें मं मिकने कह्यु. एवा मुनितो महारा वनमा घणा उतस्या जे. चालो त्यां ज इने सेवा करियें. एम कहीने बेहु जण त्यां गया. त्यां रहेला मुनिने वि Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २७ कथा करता तथा प्रमादने विषे तत्पर थका दीठा. ते कारणे ते मुनिथी विरक्त थइने ते यद पाडो फरी हरिकेशी बल मुनि पासे भावी प्रणाम करीने निरंतर सेवा करतो रह्यो. एकदा वणारशीना धणी कौशलिक राजा नी ना एवे नामें दीकरी, ते अनेक परिवारें परिवरी, पूजानी सा मग्री लेने त्यां यावी. तेणें ते यदनी प्रतिमाने पूजीने पनी प्रदक्षिणा देतां जेनुं शरीर मलिन अने वस्त्र पण मलिन एवो, महाकुरूपी मुनि दी गे. ते देखीने थुथुकार कस्यो. यदें विचाओँ के, मुनिने तिरस्कार करे . ते माटे एने शिखामण देवी जोयें. पनी तेजवेला यद तेना शरीरमां पे गे. तेथी ते कन्या असमंजस बोलवा लागी. तेने दासीये उपाडीने घेर लावी. राजायें घणाज मंत्रवादी तथा वैद्य बोलाव्या. तेणे आवी अनेक औषधोपचार कस्या, पण गुण विशेष कांश न थयो.. हवे तेने मुखे यद संक्रमीने स्पष्टपणे बोल्यो. एवं महारा देहेरामां रह्यो जे मुनि तेनी निंदा करी जे. ते माटे ते साधुनुं पाणिग्रहण करे तो एना शरीरमांथी नीकबुं. राजायें विचाओँ के, कृषिपत्नी थइने पण जो जी वती रहे तो सारं. तेथी राजायें ते वचन अंगीकार कयुं. त्यारे कुमरी साजी थइ. हवे राजा पण कुमरीने सर्व अलंकार पहेरावी विवाहनां उ पकरण । घणा आम्बरसहित यदने देहेरे लाव्या. त्यां मुनिने पगे लगाडीने विनंति करवा लाग्या के, हे मुनि ! महारी कन्या- पाणिग्रह ण करो. मुनि बोल्या हे न ! ए निंदित वातें सयुं ! साधु तो स्त्री साथै ए क वसतीमां पण वसे नही. वली सिदिरूप नारीनो रागी. एवो जे साधु ते अशुचियें पूर्ण शरीर वाली एवी स्त्रीने केम ले ? एम कर्दा.. पण ते यदें इषितुं शरीर ढांकीने नवं शरीर विकुर्विने कन्यानुं पाणि ग्रहण कयु. संपूर्ण रात्रि त्यां रही. प्रनातें यद दूर थयो. त्यारें स्वनावि करूपें कन्या देवी ते प्रत्ये मुनि बोल्या, रे जइ हुँ संयमी मन वचन का यायें स्त्रीनो संग न करूं. में तहारूं पाणिग्रहण पण नथी कयुं. पण महा रो नक्तिवंत जे यद ते तने विमंबना करे . तें यद हमणां दूर गयो ने, ते माटे तुं वेगली रहे. ते सांजलीने ते ना परगवानी वातने स्वप्ननी पेठे मानती खेद करती घेर गइ. राजाने सर्व व्यतिकर कह्यो. ते वेलायें राजा पासे रुदेव नामें पुरोहित बेठो हतो ते बोल्यो. हे राजन ! ए ऋषि Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GG जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. पत्नी यतियें मूकी माटे ब्राह्मणने यापो. त्याऐं राजायें पुरोहितनेंज खापी. ते सायें विषयसुख जोगवतां केटलोक काल गयो हवे यज्ञकरवानो इबक पुरोहिते तेने यज्ञपत्नी करी. ते यज्ञमंमपे देशांतर थकी घणा विप्र जेगा या वे. तेने माटे जोजनसामग्री तैयार करी ले ते अवसरें ते मुनि पण गोचरीयें जमता यज्ञ मंमपे याव्या. त्याऐं पुरोहितें, हरिकेशी बलने कयुं. रे तुं इहां क्यां प्राव्यो ? यति बीहामणो, वर्णै कालो देखातो, विकराल धुलें खरड्युं शरीर, दर्शन करवा अयोग्य, ते शी खाशायें इहां याव्यो बे ? जा न जर यागलथी ! केम उजो रह्यो बे ? त्यारें ते यह नक्तियें करी मुनिना श रीरमा पेसीने बोल्यो. हुं श्रमण संयति, ब्रह्मचारी, परिग्रहथी निवत्यों, रां धवं प्रमुख न करूं, परने यर्थे जे अन्न नीपन्युं होय, तेमां वध्युं होय तेनी निहा लेनं ते यन्नने गर्थे इहां यज्ञवाडामां ग्राव्यो बुं. वली दीन अना ने पो बो. घेबर, शालि, दाल प्रमुख प्रत्यक्ष पणें तयार बे. अने हुं याच वेज याजीविका करूं बुं. एवं जाणीने अंतप्रांत आहार मने तपस्वीने या पो. त्या विप्र बोल्या. या यवल सुंदर नोजन ब्राह्मणें पोताने यर्थे रांध्यं वे. ते मात्र ब्राह्मणनेंज यापियें, पण बीजाको ने न पियें तो ते उत्तम अन्न तुमने केम पाय ? तेमाटे केम ननो बे. तुं तहारे मार्गे जा. साधु बोल्यो. कर्षणी धान्य वावे बे. ते नीची धरतीयें पण वावे, अने उंची ध रतीयें पण वावे. तेम तमे जोपण नीची धरतीसरखा बो. तोपण मने उंची धरतीसमान जाणीने श्रापो. घने पुण्यक्षेत्र जाणीने प्राराधो. ब्राह्मण बो ल्या. पुण्यक्षेत्र मे जाणियें बियें. ज्यां वाव्यं यकुं घणुं नीपजे. ते तो जे ब्राह्मणजाति विद्यायें करी सहित बे तेज क्षेत्र घणुं मनोहर छे. तेने श्राप्यां घणुं उगे. त्या वली मुनि बोल्यो जेने क्रोध होय, मान होय, हिंसाहोय, तथा जे जुटुं बोजे, वगर याप्यं ले, परिग्रह राखे, ते ब्राह्मणजाति विद्या हीन जावा, ते ब्राह्मणने पापक्षेत्र जाणवा. जो ब्राह्मणो ! तमेतो वेदनो मात्र नार वहो तो, अर्थ नथी जाणता, ने वेद जो बो. ते माटे उंच नीच घेर फरीने जे निक्षा जे बे, ते मुनि उत्तम क्षेत्र जाणजो. त्या विद्यार्थी ब्राह्मण बोल्या. अरे मे पासे रह्या थकां पण तुं अमारा उपा ध्यायना सामुं बोले बे ? ते माटे ए अन्न पाणी सर्व विशी जाउ. पण तने नहि यापियें. मुनि बोल्या, हुं पांच समितें समितो, त्रण गुप्तें गुप्तो, समा Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. जए धिवंत,पांच इंडिय जीतनारो बुं तेने जो तमे ए दोषरहित अन्नपाणी नहि थापो तो था यज्ञनुं फल झुं पामशो ? हवे उपाध्याय बोल्यो. अरे कोई बात्र अध्यापक अग्निपासे बेगे होय ते ए यतिने वांसनी लाकडी को प्रमुख फलें करी मारीने गले पकडीने काढी मूको. एवां अध्यापकनां वचन सांजलीने घणा कुमरो जुवान बात्र दंमें करी, वेत्रं करी, कोरडे करीने ते यतिने ताडना करवा जाग्या. एवा अवसरें लश नामें राजकुमरी ते मुनिने मारता देखीने क्रोधमां आवेला कुमरोने उपशमाववा माटे कहेवा लागी के, मुझने, देवताने बलात्कारें रा जायें एने थापी हती, पण एवं मने बांकी दीधी. ही पण नही. एवो ए ऋषि के. ए नयतपनो धणी महात्मा जितेंश्यि,संयमी,ब्रह्मचारी, महाय शवंत, महामहिमावंत, घोरव्रती, उक्करव्रतवंत, घोरं .पराक्रमी, कषायादि कनो जीतनार एवो जे. एनी हेलना न करो. अपमान न द्यो. रखे तम ने तप तेजें करी बालीने राख करे ! एवां नानां वचन सांजलीने ते य क्षषितुं वैयावृत्य करवाने अर्थे घणा देवताने परिवारें परिवस्यो उपसर्ग ना करनारा कुमरोने निवारतो हवो. ते यदना किंकरदेवो आकाशमां बिहामणे रूपें रह्या थकां कुमरोने लोही वमता करता हवा. ते देखीने ना, ब्राह्मण प्रत्ये कहेती हवी के, अरे! तमे नखें करीने पर्वत खणो बो. दातें करीने लोढं चावो बो. पगेंकरी अग्निने हणो बो. आ निकने अपमान देता एटलावानां करो बो. वली ए आशीविष सर्पसरखा , जेथी मरण पामियें. जेम पतंगियानी श्रेणी अग्निमां ऊंपापात करे, अने मरण पामे, तेम तमे निकुने जोजन अवसरे इंछ करो बो. तेथी मरण ढकडं करो बो. ते माटे जो धन अने जीवितव्यनी इजा करो , तो स वं परिवार सहित मस्तक नमावीने ए ऋषितुं स्मरण करो. नहिं तो एको प्यो थको सर्व लोकने बालीने राख करशे. हवे त्यां सघला कुमर,वांका चुंका थ. हाथ पहोला करी, पड्या ने, आंखो फटकारी करे ,मुखें लोही व मे ने, मुख उंचा रही गया जे, जीन तथा यांखो बहार नीकली, बां हो लांबी करी पड्या ने, हालता चालता नथी. एवा कुमरोना हाल दे खीने ते ब्राह्मण चिंतावंत, विमनस्क, महाखेदवंत थयो. अहो ! ए केम साजा थशे ! एम विचारीने नार्यासहित ऋषिने संतोष उपजावतो हवो. Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. झपिने कहेवा लाग्यो, हे जगवन् ! ए बात्र सर्व बाल ले. एमणे मूढपणे करी तथा अझानपणेंकरीने जे तमारी हेलना करी, निंदा करी ते खमो. ऋषीश्वर तो महाप्रसादवंत होय, पण क्रोध करवा तत्पर न होय. ते सां जलीने मुनि बोल्या. पूर्वे पण महारामां क्रोध न हतो,अने हमणा पण न थी, तेम हवे पनी पण क्रोध करीश नही, परंतु महारी वैयावृत्य करनारा यदें ए कुमरोने हण्या . ते सांजली नपाध्यायप्रमुख बोल्या. तमे शा स्त्रार्थना जाण तथा रुडी रीतें यतिधर्मना पालक थका कोप करो नही, तमे महाप्रज्ञावंत बो. ते कारणथी तमारा चरणे अमे सर्व मलाने शरणे याव्या बीये. तमे पूजवा योग्य बतां अमे तमने पूज्या नही. माटे अमा रो अपराध खमीने शालि.सालणां प्रमुख अमारे घणुं अन्न . ते अमा रा उपगारने अर्थे वहीरो. एवो तेनो आग्रह जाणीने मासखमणने पार णे ते महात्मा जात पाणी लेता हवा. ते वेला सुगंध पाणीनी तथा सुगं ध फूलनी वृष्टि थइ. वली वसुधारा (सोनैयानी) दृष्टि थइ. देवतायें देव उंनी वगाडी. आकाशने विपे “अहो दाणं महा दाणं” एवा शब्द थया. ते जोइ ब्राह्मण हर्ष पामीने कहेता हवा के, ए सादात् तपनो महिमा देखाय . जातिनो विशेष कांइ देखातो नथी. जे माटे हरिकेशी बल चं मालनो पुत्र तेनी एवी सादात् श६ि देखियें बैयें. हवे मुनि कहे . हे ब्राह्मणो! तमारे यज्ञ करतां अग्निनो आरंन कर वो युक्त नथी. तथा पाणीयें करी गुड़ था बो, ते बाह्य शुदिले. ते बा ह्य शुदिने तत्त्वना जाण नथी मानता. वली मान, यानी थंन, तृणां, काष्ठ जे नेगां करो बो, सांजे अने प्रनाते पाणीना कोगला करो बो, ते सर्व प्राण नूतनी हिंसा करो बो,एम करता फरी पाप करो बो,ते सांजली ब्राह्मण पूढे ले के, त्यारे अमो यझने अर्थे केम चालियें ? अमे पापथकी वेगला केम थश्य ? हे यदपूजित मुनि ! तत्त्वना जाण! तमे रूडो यज्ञ के वीरीतें थाय ते कहो ? मुनि बोल्या. जे बकायनो पारंन न करे, मृषा न बोले, अदत्त न लिये, स्त्रीनो संग न करे, परिग्रह न राखे, क्रोध मान माया अने लोन न करे,शियो दमीने यइने अर्थे प्रवर्ते,वली सर्व आश्रव ने संवरे, जीववानी आशा अणकरता जे पोतानी कायाने वोसिरावे, उप Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २०१ सर्गसहित श्रुश्रूषा करता कर्मरूप शत्रु तेज महोटो बे यज्ञ जेने एवो यज्ञ ते उत्तम यज्ञ बे, ते यज्ञ तमे करो. ते विप्रो मुनि पूछता हवा के तमारे ए यज्ञमां अग्नि कयो बे ? तथा नि थापियें ते स्थानक कयुं बे ? तमारे होम करतां चाटुडीथी घी प्रमुख सिंचवाने चाटुडी प्रमुख कयी बे ? तुमारे सिंधूकवाने बाला नो गोर को बे ? तमारे खीजडा प्रमुखनां इंघणां कयां बे ? तमारे शांति htra? के जेणें करी पड्व टले. तमारे होमकानो विधि शो बे? ते सर्व कहो ? मुनि उत्तर कहे . मारे बारनेदनुं तप ते अनि बेनिनुं स्थानक ते जीव बे. मन वचन कायाना योग ते चाटुडी बे. शरीर ते गोर बे. कर्म ते इंधण बे. संयम योग ते शांति बे. ए विधियें अमे यज्ञ करियें बैयें. वली ब्राह्मण अत्यंतर स्नान शुद्धि पूर्व ते. हे मुनि ! तमारे स्नान कर वानो इह को बे ? तमारे संसार समु तरवाने तीर्थ कोण ले ? पाप उ परामावे एवं पुण्यक्षेत्र शांतितीर्थ को बे ? शाने विषे नाह्या थका कर्मरूप रज परिहरो हो ? ए वात मे सांजलवा इबियें बियें माटे कहो. मुनि उत्तर कहे बे. हिंसारहित धर्म ते मारे इह बे, ब्रह्मचर्यरूप शांति तीर्थ बे, ते तीर्थ केवुं बे ? तो के, मिथ्यात्वादिकें महोलुं नथी, जीवने विषे जे निर्मल बेश्या तेणें करी ते निर्मल बे, जेनेविषे न्हायो य को जीव, निर्मल विशुद्धयें कलंकरहित परम शीतलनूत थइने सर्व दोषने बांगे, एस्त्रान तीर्थकरें कयुं बे. मुनिने ए स्नान घणुं प्रशस्त बे. एने विषे स्नान करी महाऋषि शुद्ध निर्मल थइने उत्तम स्थानने विपे पहोता. एट सिद्धि वा. ते माटे ए हरिकेशी मुनिने रूप पण न हतुं, पण पण न हतां, परंतु ब्रह्मचारी पुरुष होवाथी घणुं शोजता हवा. ए कथा श्री उत्तराध्ययन सूचना बारमा अध्ययने बे. 5 ॥ किंचो सोहइ दिरकधारी ( दिरकधारी के०) जे दीक्षाधारी साधु, ते ( किंचो के० ) अकिंचन एटले परिग्रहरहितपणें करीने (सोहर के० ) शोने बे. ते उपर करकंमू प्रत्येक बुधनी कथा कहे बे. ॥ यतः ॥ करकंमू कलिंगेसु, पंचालेसु य डुम्मुहो ॥ नमिराया विदेहेसु, गं धारेय निगइ ॥ १ ॥ वसने य इंदकेक, वलए अंबेय पुष्पिए बोही ॥ करमू डुम्मुहसा, नमिस्स गंधार र य ॥ २ ॥ एनो अर्थ कथा जावो. Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रनकोष नाग हो. ॥चंपानगरीनो दधिवाहन राजा तेनी पद्मावती नामें राणी . ते चेडा महाराजानी पुत्री . एकदा तेने गर्नने प्रनावें दोहलो उपन्यो के, रा जानां वस्त्र हुँ पहेलं. राजा मने बत्र धरे, अने नद्यानमां क्रीडा करूं. रा जा ते दोहोलो पूरवा माटे राणीने हाथी उपर बेसाडीने उद्यानमां चा व्यो. एवामां वर्षानो प्रारंन थयो , तेना योगें माटीनी गंध ववाथी, हाथी मदोन्मत्त थयो थको वननणी दोडतो हवो, तेनी पडवाडे को प होंची शक्यो नही. हाथी थणो दूर अटवीमा गयो. एवामां वेगलेथी ए क वड देखीने राजा राणी प्रत्ये कहेतो हवो के, हाथी वडतलें थश्ने जशे. माटे वडनी शाखा पकडी लेजो, जेवारें वड श्राव्यो तेवारें राजायें तो शाखा पकडी लीधी पण राणी शाखाने पकडी शकी नही, तेथी राणीने ज्यां को मनुष्य पण न मलें तेवी अटवीमां हाथी ले गयो. एवामां ते हाथीयें एक इह दीतो. त्यारे तृषावंत थयो थको जलकेलि करवा लाग्यो. राणी पण हलवे हलवे उतरीने मार्ग अजाणती थकी सागारी पञ्चरकाप करीने एक दिशि जणी चाली. अागल जतां राणीने एक तापस मल्यो. ते बोल्यो रे वत्स ! तुं कोण बो ? राणी बोली. दुं चेडामहाराजानी पुत्री बु. अने दधिवाहन राजानी नार्या बुं.मने हाथी अपहरी लाव्यो . ते तापस चेडामहाराजानो गोत्रिन हतो,माटे राणीने घणी आश्वासना करी ने वनफल खावाने पाणी थाप्यां. केटलाक दिवस त्यां रह्या पत्री तापसें राणीनी साथें चालीने ते अटवी-संघावीने तापस बोल्यो. हवे हलें खेडेली धरती आवी माटे महाराथी चलाय नही ए अमारो आचार नथी, माटे तमे ए मार्गे चाल्या जजो, पागल दंतपुर नगर आवशे. ते सांजलीने राणी दंतपुरे गइ, त्यां साध्वी पासे दीक्षा लीधी, पण गर्ननी वात सा ध्वीने कही नही. परंतु साध्वीजीयें उधाननी वात जाणीने राणीने एकांत जगामा राखी.अनुक्रमें पुत्र आव्यो. त्यारें रात्रिये ते बालकना कंठे नामां कित मुश थापी रत्नकंबलें विंटीने स्मशाने मूक्यो. ते बालकने स्मशा नना रखवाला चंमा लेइने पोतानी स्त्रीने थाप्यो. राणीयें साध्वीजीने कडं के, पुत्र मुएलो आव्यो,माटे परतव्यो डे, एम समजावीने पोतें चंमा लगी साथें सखीपणुं करीने नित्य पुत्रने जोवा जाय. ते बालक वधतो थको बालको साथै रमतां रमतां एम कहे के, हुँ त Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. १ (३ मारो राजा बुं, माटे मने कर खापो. ते दंगमां जे मने खरज यावे ते खरज खो. तेथी करकंमू एवं नाम पड्युं. साध्वीनो ते बालकनी उपर राग घ यो हतो, तेथी सुंदर मोदक निकामां लावीने बालकने यापे. एम करतां ते जुवान थयो. एटले स्मशाननी रखवाली करवा जाय. वामां एक दिवसे वे साधु त्यां यावी चढ्या. तेणें त्यां वंशनी जा मां एक वंश जो दीठो. त्याऐं ते बेमां एक सामुझिक लक्षणनो जाए बे, ते लघु साधुने कहेवा लाग्यो के, जो ए बालक या वंशना दमने चा रांगल वधवा देने पढी ले, तो राजा थाय. ते वचन करकंमूयें सांन युं तथा एक ब्राह्मणें पण सांजल्युं. ते ब्राह्मण मुनिनुं वचन सत्य मा नतो उतावलो चार खांगल धरती खोदी दंग कापीने लेइ गयो. ते देखीने करमूर्ये पण ते ब्राह्मणपासेंथी लाकडी फोंटावी · लीधी. तेवारें ते ब्रा ह्मण नगरीमां पंचातीयाने एकता करीने कहेवा लाग्यो के, महारी लाक डी चंमाल पुत्र पाथी पावो. बालकें कयुं महारी स्मशान भूमि बे, मा टे हुं नहिं पुं. पंचातीयें कयुं, हे विप्र तुं बीजी लाकडी जे. विप्रें कयुं महारे तो एज लाकडीनो खप बे. कार लिया बालकने पूढवा लाग्या. तुं लाकडी केम नथी यापतो ? बालक बोल्यो. ए दंमना प्रजावथी हुं राजा थश. ते सांगली कारलिया हसीने बोल्या के, ज्यारें तुमने राज्य मजे, त्या ए ब्राह्मणने एक गाम श्रापजे. ते वचन बालकें अंगीकार कयुं. प ब्राह्मणें बीजा ब्राह्मणो एकता करीने कुमरने मारवानो उपाय कस्यो, ते वात चंमाजें सांजली. तेवारें तेना मा बाप बोकराने लेने से जा नागं. अनुक्रमें कांचनपुरे गयां नगरनी बाहेर ते चंमालपुत्र. सूतो बे, हवे त्यां पुत्रियो राजा मरण पाम्यो बे, तेथी पंचें मली यश्व अधिवा स्यो बे. तेणें ज्यां बालक सूतो बे, त्यां खावीने हेपारव कस्यो, त्यारें ल ना जाण पुरुष यावीने जोयुं तो लक्षणवंतो बालक जाएयो. जय जय शब्द थयो. बालक उठ्यो तेने घोडा उपरें बेसायो. पण चंमाल जालीने ब्राह्मणोयें नगरमा पेसवा घटकान्युं तेवारें करकंमूयें वजनी पेठें ते वासना दमने हाथमां लीधो. एटले ते दंग अग्निजेवो जाज्वल्यमान दीसवा लाग्यो. ते जो सर्व ब्राह्मण बीहीना थका नाशी गया. करकंमूने सहुयें मली रा ज्ये बेसाड्यो. त्यां वाडवस्थानकवासी जे चंमालो हता, ते सर्वने राजा २५ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. ये ब्राह्मण कस्या. जे मार्ग राजा चलावे, ते चाले ॥ यतः ॥ दधिवाहनपुत्रे ण, राज्ञा च करकंमूना॥वाटस्थानकवास्तव्या,धुमाला ब्राह्मणीकृताः॥१॥ हवे करकं राज्य पाम्यो ते सांजली ब्राह्मण श्रावी गाम मागवा ला ग्यो. राजा बोल्यो, तहारी बा आवे ते गाम माग्य. विप्र बोल्यो महालं घर चंपानगरीये ठे, माटे त्यां एक गाम आपो. त्यारें करकंफू राजायें चं पापुरीनो राजा पोतानो पिता हतो तेने लरव्यु के, ए ब्राह्मणने महोटुं गाम तमारी धरतीमां आपजो. अने तेने बदले तमे कहो ते एक गाम अथवा नगर महारी धरतीमांथी तमने आ. जे कारणे देतां लेतां स्नेह घणो व धे.॥ यतः ॥ ददाति प्रतिगृह्णाति, गुप्तमाख्याति जल्पति ॥ मुंक्ते नोजयते चैव, पड़विधं प्रीतिलक्षणम् ॥ १ ॥ ते लेख वांचीने दधिवाहन राजा को प्यो थको बोल्यो, जे.ए चमालने पोताना आत्मानी खबर नथी. अने म हारी उपर कागल लखे . ते सांजली दूत पाडो जश्ने करकंफूने संनलावतो हवो. करकं पण सर्व लश्कर ले अहंकारे जश्ने चंपा नगरी वीटतो हवो. वेदु राजाने घोर यु६ थवा लाग्युं तेवारें साध्वी करकं पासे जर ए कांते तेडीने कहेवा लागी के, ए राजा तहारो पिता ने. ते सांजली कर कंमूयें चंमाल माबापने पूब्युं, तेणे पण यथार्थ वात कही. नामांकित मुश तथा रत्नकंबल देखाइयुं, ते जोड्ने साध्वीनें कहेवा लाग्यो, हे माता! हुँतो अहंकारथी पाबो न वखं. त्यारें साध्वी चंपापुरीयें राजाना महोल मां गयां, तेमने सदुयें उलख्यां. नमस्कार कस्यो, दासी रोवा लागी, ते सांजलीने राजापण त्यां याव्यो, साध्वीने गर्ननी वात पूबी, साध्वी बो व्यां, जेणें था नगरीनो रोध कयो , ते तदारो पुत्र दे, ते सांजली रा जा हर्षित थ पुत्रने मल्यो, महोत्सव कस्यो, पढी राजा, बेदु राज्य कर कंमूने यापीने पोतें चारित्र तो हवो. ते करकंफू राजाने प्रायें गोकुल घणा प्रिय हतां. एक दिवस शरत्कालें एक वाबडो घणो सुंदर उज्ज्वलवणे दीठो. ते वेलायें दुकम कस्यो के, ए वाबडानी माताने दोहोशो नही. सर्व दूध वाबडाने पीवा देजो. तेम बीजूं दूध पण एने पीवरावजो, गौरखवाले पण तेमज कमु. अनुक्रमें ते बलद घणो मुर्धर थयो. राजा देखीने घणो हरख्यो. एकदा घणा काले गोकुल जोवा गयो. त्यां ते कृषनने बीजा पाडा परानव करता देखीने राजायें गोवालने Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ए पूनथु के, ते वृषन क्यां ले ? गोपालें ते वृषन देखाज्यो. घणो घरडो थयो दीतो. ते देखीराजाने वैराग्य उपन्युं. जातिस्मरण ज्ञान उपन्यु. यदाह नाष्य कारः ॥ सेयं सुजायं सुविहित्तसंगं, जो पासिया वसनं गोठमने ॥ रिदिय रिहिं समुपेहियाणं, कलिंगराया विसमिरक धम्मं ॥१॥ गोठंगणमप्लेढं, कि य सदेण जस्स नयंति ॥ दित्ता वि दरिय वसना, सुतिरकसिंगा समना वि ॥ २ ॥ पोरायण गयदप्पो, गलंतनयणो चलंतवसुतुको ॥ सो चेव मो वसनो, पट्ठय परिघट्टणं सह ॥३॥ अर्थः-श्वेत, उज्वल, सुजात, ग नंदो रहित, रूडां वहेंच्या बरोबर शीगडां ले जेनां, एवो जे वृषन तेने गोष्ट मध्ये, गोकुल मध्ये देखीने राजा चिंतवणा करे के, जेना टंकित शब्द (नांकार शब्द ) सांजलीने बीजा दर्पवंता. तीक्ष्णगंगवाला एवा स मर्थ बलद पण नासता हवा. ते बलीवर्द पुराणिक घरडो गतदर्प एटले गयो ने मद जेनो, तथा नेत्र गलतां , अने होठ चलता , एवो थ को पाडाना परानव सहे . ए रीतें इति पण विपरीत . धिक्कार पडो संसारने ! सर्व प्राणीनी एज स्थिति . ते माटे ए संसारें सयुं. एम वि चारीने करकं प्रतिबोध पाम्या. दीक्षा लेश्ने विहार करता हवा ॥ १ ॥ हवे बीजा हिमुख प्रत्येकबुझ्नी कथा कहे :॥पांचालनामा देशने विषे कांपिन्नपुरे हिमुख नामें राजा हतो. तेणें ए कदा, लोके पूजिजतो एवो इंध्वज अनेक लघु ध्वजायें परिवस्यो दीतो. वती तेज इंध्वज पड्यो थको तेना उपर लोक लघुनीति वडीनीति कर तां उन्ध सहित दीठो. तेथी विमुख राजाने पण वैराग्य नपर्नु, जातिस्मर एझान पामी दीदा लेइने विचरता हवा ॥ २ ॥ यदाह नाष्यकारः ॥ जो इंदकेन सुअलंकियंतं, दहुं पडतं पविलुप्पमाणं ॥ रिहिं अरिहिं समुपहिया एं, पंचालराया विसमिरक धम्मं ॥ १ ॥ ॥ हवे त्रीजो प्रत्येकबुद नमि नामें राजा हतो, एकदा तेना शरीरें महा दाह रोग उपन्यो. ते दाहनी उपशांतिने अर्थे राणीयो चंदन घसवा लागी. घसतां थकां तेनां कंकणनो खडखडाट थाय. ते राजाने काने खमाय न ही. त्यारें राणीयोयें वलय उतारीने मात्र एकेकुं वलय राख्यु. तेथी खड खडाट मटी गयो. राजायें प्रब्युं के, दवे खडखडाट केम नथी थतो ? Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो.. त्यारे पासें बेठेला जनोयें कह्यु के, महाराज! राणीयोयें एकेकुं वलय रा खीने बीजा वलय सर्व उतारी मूक्यां . ते सांजलीने राजाने एकत्वनाव ना आवी. विचाओँ के, एकाकीपणामांज सुख देखाय !!! बदुमा खड बड देखाय . एम चिंतवतां जातिस्मरणझान उपन्यु. वैराग्य पामी दी दालेश्ने विचरता हवा. यदाह नाष्यकारः ॥ बयाण सदयं सुच्चा, एक स्सय असदयं ॥ वलयाण नमीराया, निरकंतो महिलादिवो ॥ ३ ॥ हवे चोथा प्रत्येकबुधनी कथा कहे बे. ॥ गंधार देशने विपे सिंहपुर नामे नगरे निग्ग नामें राजा हतो. ते एक दा राजपाटियें नीकट्यो . त्यां एक फल्यो फूल्यो अांबो दीतो. तेमाथी एक मांजर राजा लीधी. पनवाडे लश्कर याव्युं. तेणे पण कोश्ये पत्र कोश्ये मांजर लीधी. एम अनुक्रमें पनवाडे तुंगो लाकडो रह्यो. रयवाडी थी पाबा वलतां राजायें सेवकोने पूब्यु के, ते आंबो क्यां गयो ? मंत्री बो व्यो. हे राजन् ! तमे एक मांजर लीधी. त्यार पली सेनाना लोकोयें पत्रा दिक लेतां लेतां एवो काष्ठना थंजनूत अांबो रह्यो. राजा विचारवाला ग्यो. राज्य पण ए रीतनुं जे. ज्यां सूधी कति त्यां सूधी शोने. एम वैराग्य पामी व्रत अंगीकार करी निर्मम थका विहार करता हवा, तथाचाह नाष्य सुधांनोनिधिकारः ॥ जो चूयरुरकं तु मणानिरामं, समंजरीपन्नवपुप्फचित्तं ॥ रिहिं अरिदि समुपेहियाणं, गंधारराया विसमिरक धम्मं ॥ १ ॥ ए रीतें चारे साधु विहार करता दितिप्रतिष्ठित मगरे चार हारनुं देव कुल चे, त्यां ावी चढ्या. पूर्वदिशिधारे करकंफू पेठग. दक्षिण दिशि हारे दि मुख पेठा. पश्चिम दिशि हारे नमिराजर्षि पेठा अने उत्तर दिशि द्वारे निग्ग पेठा. देवतायें विचाओँ के, एके झपिने पुंठ केम देनं ? एम विचारीने चार मुख कस्खा. हवे ते करकंमूने बाल अवस्था थकी खरज घणीने, माटे तेने खणवाने अर्थे एक पंको राख्यो . तेणें करी कान खणी पाडो गोपव्यो. ते देखीने हिमुख, साधु करकंमूने कहेता हवा ॥ यतः ॥ जया रङ परिचऊं, पुरं यंतेनरं तहा ॥ लवमेयं परिचऊ, संचयं किं करेसिमं ॥ १ ॥ अर्थःजो राज्य, पुर, अंतेनर सर्व बांमधु तो आ संशय शो करो बो? ते सां नलीने करकंमयें जवाब दीधो नहीं. एटलें नमिराजकृषी, विमुख प्रत्ये बो व्या ॥ यतः ॥ जया ते पेश्ए रो, कया किचं करा बदु ॥ तेर्सि किचंप Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ गौतमकुलक कथासहित. रिचऊं, अऊ कऊपरो नव ॥ १ ॥ अर्थः-ज्यारे पिता संबंधियो राज्यने विषे कामना करनारा घणा, चाकर कस्या ते सर्वनो त्याग करीने बाज नि रर्थक अन्यदोपचिंतक तमे शामाटे था बो ? इति ॥ त्यारे गंधारदेशना वासी निग्ग नामे मुनि, नमिराजकपि प्रत्ये बोल्या ॥ यतः ॥ जया सवं परिचङ, सुखाय घडसी नवं ॥ परं गरीहसी कीस, अत्तनिस्स सकारए॥ ॥ १ ॥ अर्थः-जो सर्व तजीने मोक्ने अर्थे उजमाल थया बो, त्यारें या त्माने निःश्रेयस जे मोद तेना कारक एवा जे तमे ते पारकी गर्दा जे निं दा ते कां करो बो ? ए त्रणे मुनिना वचन सनिलीने करकंफूजी बोल्या ॥ यतः ॥ मुरकमग्गं पवन्नेसु, सासु बंजयारिसु ॥ अहिय निवारंते, न दो सं वत्तुमरिहसि ॥ १ ॥ अर्थः-मोद मार्गने पाम्या एवा साधु. ब्रह्मचारीने विषे अहित अर्थने निवारतां दोष कहेवा योग्यं नथी. ॥ रुस वा परो मा वा, विसं वा परियत्त ॥ नासियत्वा हिया नासा, सपरकगुणकारिया ॥१॥ अर्थः-अन्य रुसो अथवा न रुसो अथवा विष परावर्त था; पण हितकारी, आत्माने गुणकारी एवी जापा कहेवी. इत्यादिक कहेतां करकं मूयें पण सर्व परतव्यु. एम गुरु मुखें सांजलिये बियें. माटे का न राख q ए साधुनी शोना ॥ इति श्री यावश्यक निर्युक्तौ योगसंग्रहे ॥ ॥यर्थः-बुद्धीजु सोहरायमंती. (रायमंती के०) राजानो मंत्री एटले प्रधान, ते (बुद्धीजु के०) बुद्धियें करी युक्त होय, त्यारेंज (सोहर के०) शो ने . एटले बुद्धियुक्त प्रधाने करी राजा शोने बे. ते उपर अनयकुमारादिक अनेकनी कथा , ते प्रसिद, माटे शहां कल्पकनो दृष्टांत लखियें लियें. पामलिपुर नगरने विपे नदायी राजा राज्य करे . पण ते. वर्षावर्ष कटकाइ करे, तेवारें सर्व राजाने तेडावे ते माटे सर्व राजा खेद पाम्या थका मनमा विकल्प कस्वां करे के, केमे करी उदायी राजा मरे तो ठीक थाय. एवा अवसरे कोक राजानो कांक अपराध थयो, एटले नदायी रा जायें तेनुं राज्य हरी लीधुं. तेवारे ते राजानो दीकरो नासतो नायिणी ये जश् चंमप्रद्योत राजानी सेवा करतां ते कुबुझिनो धणी राजाने कहेवा लाग्यो के, नदायीने दुं मारूं; पण तमे सखा थजो. चंप्रद्योतने अंगीकार कझुं. त्यारे ते पण पामलिपुर नगरे गयो. मारवाना घणाये बिजुए पण बि पामे नहि. परंतु साधुने राजानी पासे जता देखीने ते पण कपटी Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रएन जैनकथा रत्नकोष नाग बछो. साधु थयो. तेणें सर्व साधुना विनयादिक करवे करी सर्वने वश कस्या. उदायी राजा पण थाम चौदशे पौषध करे , थाचार्य पण धर्म कथा संजलाववा राजा पासे जाय. एक दिवस संध्या समयें आचार्य चे लाने कह्यु. नपधि व्यो. राजा पासे जवू . ते सांजलीने तत्काल तेणें न पधि लेने कंकलोहनी पाली पण साथे बानी लीधी. प्राचार्य राजकुले गया. धर्मकथा कही. अनुक्रमें पोरिसी नणावीने आचार्य तथा राजा स दुए सूता , ते वखत चेतो उतीने राजाने गले बरी मूकी बहार नीक व्यो, चोकीयातें पण साधु जाणी रोक्यो नही. तेथी ते कपटी यति जतो रह्यो. __ अनुक्रमें नदायी राजाना शरीरनुं रुधिर, गुरुना संथारे श्राव्युं. गुरुयें उठीने राजाने जोया. राजा मरण पाम्या जाणीने गुरु विचारवा लाग्या के, हुँ जीवतो रहूं तो लोकमां कहेवाशे के, गुरुयें राजाने मरावीने चे लाने नसाडी मूक्यो. एम शासनमां नमाह थशे. ते वेला गुरुयें पालो पडिक्कमी सर्व जीवने खमावी तेज पाली पोताने गले मूकी. प्रातःकाले राजा तथा गुरु बेदुजण मरण पाम्या देखीने लोक विचारता हवा के, कोक घातक पुरुष बलें करी बेदुने मारी गयो. पड़ी बेदुनो संस्कार क यो. राजा अपुत्रियो , माटे राज्ययोग्य पुरुष पामवा अश्वने अधिवास ना करीने नगरमध्ये तथा नगरबहार फेरवे . ते अवसरें एक नापितें प्रातःकालें एवं स्वप्न दीहूं. जे महारे यांतर. करी पामलिपुर नगर वीं ट्युं . तेणें ते स्वप्ननुं फल स्वप्नना जाण उपाध्यायने पूज्यु. उपाध्यायें पण तेने पोताने घेर लावीने न्हवराव्यो. पनी पोतानी दीकरी परणावी दीधी. हवे ते अश्व पण जमतो नमतो ज्यां नापित , त्यां थाव्यो. नापि त सामो रहीने हेषारव करवा लाग्यो. त्यारे प्रधान लोको ते नापितने दी पतो देखीने राज्यने विषे थापता हवा. पण राजलोक तेने नापित जाणी ने अमर्षे करी तेवो तेनो विनय न करता हवा. ते जो ते नापित नंद, सुनटोने कहेवा लाग्यो के अहो सुनटो! ए लोकने पकडो. एवं सांन लीने ते सुनटो परस्पर सामु जोश्ने हसता हवा. तेवारें नंद नापित स जायें लेप्यमयी एटले जीतें चित्रित पुरुषोनी साहामुं जोयु. के तत्काल ते लेप्यमय बे पुरुष हाथमा खड्ग ले धावता हवा. तेने जोश केश्क नाशी गया. केश्कने मास्या. ते देखीने सर्व प्रधान पागीया राजाने खमावीने वि Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. एए नय बहुमान करता हवा. हवे ते राजाने प्रधान कोइ नथी, तेने खोले जे. ___ एवा अवसरे ते नगरने बहार एक कपिल नामें ब्राह्मण वसे ले. एक दिवसें सांऊ समयें कोई साधु विहार करता त्यां ाव्या. असुर वेला हो वाथी गाममा जवाय नही. एम जाणी ते साधु कपिल अग्निहोत्रना घर ने विषेज रह्या. त्यां ब्राह्मणें विचारां के, कांक प्रश्न पूवं, जे ए कांस मजे ले ? एम जाणी जे जे प्रश्न पूब्यां ते ते सर्वना उत्तर साधुयें कह्यां. त्यारे कपिल श्रावक थयो. एम केटलाक दिवस गया. पनी साधुयें विहा र कस्यो. एकदा बीजा साधु एने घेर चोमासु रह्या. एवामां कपिलने एक पुत्र आव्यो. तेने जन्मतांज व्यंतरी वलगी जे. एवामां साधु पात्राने का प देता हता, ते पाणीना हेग्ल कपिलें, बोकरो लावीने धस्यो. तेना प्रना वें व्यंतरी नाती. ते जो कपिल पण धर्ममां थिरं थयो. पंबी जे कारणे पि ता धर्मे थिर थया ते ते कारणे करी ते पुत्रनुं नाम कल्पक एबुं दीg.अनु क्रमें तेनी माता पिता कालधर्म पाम्या. कल्पक महोटों थयो. चौद विद्या नो जाण थयो. एवामां त्यां एक ब्राह्मण वसे बे. तेने एक पुत्री डे ते ज लोदर रोगिणी छे. तेथी तेने वर मलतो नथी. ते ब्राह्मणे कोक उपायें कल्पकने ते कन्या आपवामाटे यांगणे कून खोदी तेमां कन्याने मूकी. एवामां कल्पक मार्गमा चाल्यो जाय , तेने जो ब्राह्मणे पोकार क यो. नोकल्पक ! कन्या कूधामां पडी , माटे जे काढे तेनी ए कन्या. ते सांजलीने कल्पक दयायें करी दोडतो यावीने ते कन्याने खेंची काढतो हवो. तेवारें ब्राह्मणें कह्यु ए कन्या तमारी थ, माटे तमे परणो. कल्प क पण लोकना अपवादथी बीहीतो थको ते कन्याने परणीने पड़ी औष धने योगें रूपें रतिसरखी नीरोगी ते कन्याने करी मूकी. __ हवे कल्पक महा संतोषी, कोश्नु दान ले नही, विद्यार्थी आवे तेने न यावे, एम अनेक बायें परिवस्यो चाले. ते वात राजायें सांजली के, कल्प क महाबुद्धिवंत . माटे तेडावीने कडं के, तुं मंत्रीपदवीले, कल्पकें कह्यु, मंत्रीने तो लोनने वशे पाप करवा पडे, अने हूं तो जोजन तथा वस्त्र टाली अधिक परिग्रह पण राखतो नथी. ए वात सांजलीने राजायें विचाखु के, ए कांक वांकमां आवे तो महारी वात मानशे. पनी राजा तेना विश् जोवा लाग्यो, पण प्रायें महोटा पुरुषने नि होय नही. मा Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. टे लिए जड्युं नही. त्यारें राजायें कल्पकना वस्त्रनो धोनारो धोबी हता, तेने बोलावीने कह्यु के, कल्पकनां वस्त्र धोइने पाढा आपोश नही. ते धो बी पण राजानी आझा प्रमाण करीने घेर गयो. एकदा कौमुदीमहोत्स व दकडो याव्यो. त्यारे कल्पकनी स्त्रीय कल्पकने कझुं. राजाना धोबी पासे महारं वस्त्र धोवरावी आपो. जेम ते चोखां वस्त्र थाय. ते धूपीने कौमुदीमहोत्सवना पर्वमा पहेलं. ते सांगली कल्पके विचाओँ के, धोबी ना डाने लोनें, कौमुदीमहोत्सव ढकडो ने माटे मने वस्त्र नही आपे, तो हाथें करीने क्लेश वेचातो लेवो पडशे. एम चिंतवी स्त्रीनुं वचन उवेखी मूक्युं. जे पंमित लोक होय ते स्त्रीने आधीन होय नही. तथापि स्त्रीयें अति आ ग्रह करवाथी कल्पकें ते धोबीने वस्त्र धोवा थाप्यां. कारण के, स्त्रियोनो, बालकनो, राजानो, अने मूर्खनो, कदाग्रह पण बलवंत डे. हवे पर्वदिवस आव्यो, त्यारें कल्पक, धोबीने घेर वस्त्र सेवा आव्यो, पण धोबीने राजानी आझा नथी, माटे आपे नही. केहे के, आजतो जाउ काल आवजो. ए रीतें वायदा करे. एम जेम लहेणीयात देणीयात ने घेर जाय, तेम नित्य धोबीने घेर वस्त्र लेवा जाय, एम करतां वे वर्ष वही गयां, पण धोबी वस्त्र आपे नही. जे माटे अतिमा ते परानवर्नु स्थानक थाय. जय विना प्रीति न होय. एम विचारीने त्रीजे व धोबीने घेर जश्ने कल्पक बोल्यो. तुं चोर बो. महारां वस्त्र तुऊने जड्यां पण जो तहारा रुधिरें वस्त्र रंगीने ले, तो दुं कल्पक खरो जाण जे. अन्यदा रा तना समयने विषे ते कल्पक विद्यासाधक पुरुषनी पेठे साहसिक थको गुप्त बरी राखीने धोबीने घेर गयो. चुकुटी चढावी महा कोपवंत थश्ने धोबीने कहेवा लाग्यो. रे पुष्ट ! तहारे घर में चाकरनी पेठे फेरा खाधा. हवे वस्त्र आपे ले के नही ? ते धोबी पण कल्पकने राक्ससरखो नयंक र देखीने पोतानी स्त्रीने कहेवा लाग्यो. एनां वस्त्र आप्य. तेम धोबणे प । वस्त्र प्रकट करी देखाड्या, त्यारे कल्पकें बरी काढीने धोबीना पेटमा मारी. जेम कोशें करी धरतीने विदारीयें तेम धोबीनुं पेट विदायं. तेना रुधिरें करी वस्त्र रंगी लीधा. ते जो धोबण बुंबारव करती बोली. रे झुं अ मने मारे छे ? राजानी आझायें एटला दिवस तुमने वस्त्र नही आप्यां, ते सांजलीने कल्पक संत्रांत थको विचारवा लाग्यो. अहो! राजानुं वचन Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २०१ में न मान्युं, माटे ए श्यो प्रपंच राजायें कस्यो बे ? हवे में धोबीने माखो. ए अपराधे राजाना पुरुष मने जेइ जशे. माटे तेथी पहेलांज हुं राजानी पासे जानं. एम निरधारीने राजानी पासें गयो. तेने नंदराजायें पण घणा प्रानंदसहित दर याप्यो राजा इंगिताकारनो जाए होवाथी कल्पकने मिलापसहित जाणीने प्रार्थना करी के, तमे श्रमात्यपदवी व्यो. कल्पकें पण पोताना अपराधनुं औषध जालीने, राजानुं वचन मान्युं जे माटे बुद्धिवंत होय ते अवसरना जाए होय. हवे नंदराजा पोताने कृतकृत्य मानतो, कल्पक साथ वातो करतो य को, संदेहनी वातो पूछे. कल्पक पण राजाना सर्व संदेह जांगेले. ए वामां तहां धोबीयो सर्व एकता थइने पोकार करता याव्या. तेणें कल्प गौरवता सहित राजानी पासे वेठेलो दीठो. ते जोइ धोबी पोत पोता ने घेर गया. राजायें पूर्वला सर्व श्रमात्य टालीने एक कल्पकने महामंत्री करो. कल्पक पण अनेक उपाय करीने नंदराजाने धरती ने लक्ष्मी पा वतो वो राजानो पण जसवाद घणो होतो हवो हवे पूर्वला मंत्री कल्पक उपर घणो द्वेष धरे, कल्पकनां बल खोजे. ते इष्टमंत्रियोयें कल्पकना घरनी दासीने वस्त्रादिकापीने वश करी लीधी. तेने कल्पकना घरनी खबर नित्य पूछे. दासी पण लोने करीनें कल्पकना घरनी सर्व वात तेमने कहती रहे. कल्पका पुत्र बे. जे माटे जैनशासनीने प्रायें घणा पुत्र हो य. एकदा कल्पकने पुत्रनुं विवाहमंगल करखं बे, माटे राजाने अंतेवर स हित घेर तेडवानी बा करे बे. ते राजाने व्यापवा सारु मुकुट बत्र चामरा दिक कराववा मांझ्या बे. बीजी पण राजाने योग्य वस्तु करावे . ते सर्व वात दासी पूर्वला मंत्रीयो खागल कही. तेणें पण बल पामीने राजाने कयुं, स्वामिन्! तमारा लेखें यमे कशा कामना नथी. तो पण मे स्वामिना नक्तिवंता बियें, हितवांतक बियें, कुलवंत बियें, माटे हितनी वात कहियें बियें. तमारो वहालो मंत्रीश्वर जे कल्पक, तेणें जे वात मांगी बे, ते सां चलो. तेणें पोताने घेर बत्रचामरादिक राजालंकार कराववा मांझ्या बे. ली वातो में कही. तेनो त्राशयतो तमे महाराज जाणो. जे माटे बुद्धि वंत पुरुषने एक सि जोवामां यावे तो सर्व रांध्यानी खबर पडी जाय. मे महाराजनुं लू खाइने सर्व महोटा थया बियें, ते माटे कहियें ढियें, ए २६ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. पण कल्पकनी ईर्ष्यायें नयी कहेता. कदाचित् श्रापएम जाणो के, एम त्सरें करी कहेठे, तो चरपुरुप मूकीने खबर करावो. ते सांजली राजायें पण चरने जोवा मोकल्या. तेणें तेमज दीk. आ वीने राजाने सर्व कर्दा. तेवारें राजायें पण कल्पकने कुटुंबसहित अंधारा कूयामां उतास्यो. तेने खावा माटें एक से कोश्वा अनें एक नेकरवो पा एणीनो कूवामां मूक्यो. त्यारें थोडं अन्न देखीने कल्पक बोल्यो. आपणने ए क सिन सिब नागे आवशे, परंतु कोलियानी तो वात शी? अने कवल तो शत संख्यायें होय त्यारे नदर पूर्ण थाय. अने सि प्रमाण खातां तो सर्व मरी जश्गुं. ते माटे जे कोइ मंत्रिपदनुं वैर वालवा समर्थ होय, ते एकज जण ए अन्न पाणी वावरो. त्यारे सर्व कुटुंब मलीने कहेवा लाग्यु के,वैर वालवातो तमे समर्थ बो,बीजो कोइ नथी. ते माटे तमे एकला वा वरो. ते सांजली कल्पक ते अन्न वावरे. बीजा सर्व कुटुंबना माणसतोत्र नशन करी देवलोके गया. ते अवसरें सामंत राजायें जाएy के कूपमा रहेतां कल्पकनो अनाव थयो हो, माटे नंदने उपाडी पामलिपुर ले मूकीये. एम विचारी पामलिपुर नगरने सर्व सामंत राजायें मनी वींटी लीधुं. नंद राजायें दरवाजा बंध कस्या. लोक पण महा नयनांत थया. नंद राजाप ण ते शत्रु साथे लढवा असमर्थ थयो थको बेसतां, सूतां, खाता, पीतां कोई स्थानकें पण दाहज्वर पीडितनी पेठे रति न पामतो हवो. त्यारे वि चारवा लाग्यो के, ज्यां सूधी कल्पक मंत्रीश्वर हतो; त्यां सूधी सिंहनी गु फानी पेठे को पामलिपुर सामुं जो न शक्युं. अने कल्पक विना नगरी नी आ अवस्था थइ ! रखवाल विना उपवनने पंथी लोक पण परानव करे. ते माटे जो कल्पक जीवतो होय, तो सर्वने उडाडी मुके. वीजा सर्व मंत्रीतो जोइ रह्या बे, पण कोइने कांश सूजतुं नथी. जे माटे प्रायें हाथी नोनार ते हाथीज नपाडे. एम विचारी कारागारना अधिकारीने तेडीने पूब्युं. त्यारे ते बोल्या. स्वामिन् ! आज सूधी कोइक कोश्वा तो ले , ए म कही तेज वखतें कूयामां मांची मकी. ते मांची नपर बेसारीने जेम निधान काढे, तेम कल्पकने बहार काढयो. कल्पकने सर्व हकीकत कही संनलावी. कल्पक बोल्यो, मने कोटनी रांगें चारे दिशि फेरवीने, शत्रुनी नजरें पाडो. त्यारें राजायें कल्पकने शिबिका उपर बेसाडीने पाका वृदनां Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. 903 पत्र सरखो चारे दिशि कोट उपर फेरव्यो. ते देखीने वैरी विचारवा ला ग्या, जे नंदराजा घणो निर्मल ले. ते कारणथी आपणने कूटकल्पक देखा डीने बीवरावे जे. एम चिंतवी वली घणो उपश्व करवा लाग्या. ते जाणीने कल्पके दूत मोकली वेरीने कहेवराव्यु के, तमो सर्वने मान्य एवो मंत्री प्रमुख जे होय तेने नावमा वेसारीने तमे गंगामध्ये आवो. ढुं पण ना वमां बेसीने आq बुं. आपणे विचार करी जेम तमने गमशे, तेम करीशं. एवं दूतनुं वचन सांजलीने ते संधि करनारा पुरुषो, नावमां बेसीने आव्या. कल्पक पण नावमा बेसीने गंगामा सामो याव्यो. तिहां कोक ना हाथमां शेलडी हती, ते देखीने कल्पकें आंगलीनी संझायें बताव्यु के, ए शेलडीनुं मूल अने बेडो कापी नांखिये, त्यारे शेप झुं रहे ? एम कहे थके ते संधिविग्रहिक पुरुष यद्यपि घणाये बुद्धिवंत हता, घणाये माह्या हता, पण कल्पकना बोलवानो बाशय न समज्या. कल्पकनो आशय ए हतो के, जेम शेलडी मूले वधे, अथवा प्रांते वधे, तेम बेतु संधि सरखी होय, त्यारें दत्रियनी संतति वधे. पण एक सत्य संधिवालो होय, अने बीजो मायासंधिवालो होय, ते केम चाले? ते माटे सत्यसंधिवंत नंद ले, अने मायासंधिवंत तमे डो, तेथी तमाळं कां नही चाले. वली ते स्थान के एक अाहीरणीने माथे दहिंनी हामी देखीने कल्पकें हस्त संझायें देखा डीने कह्यु के, आ दंमें करी जो ए हामी नागी नांखियें, तो झुं थाय ? ए श्राशय पण संधिविग्रहिक पुरुष न समज्या. परंतु कल्पक अमात्यनो ए याशय हतो के, तमारूं लश्कर ते हामीसर ले. ते महारा वीर्यरूप दं में हण्युं थकुं, तमाएं सर्व बल दहिंनी पेठे वेरा जशे. फोदे फोदा थइ जशे. वली कल्पकें पोतानुं नावडं शत्रुना नावडानी वचमां घालीने, त्रण प्रददि णा दीधी. तेनो अभिप्राय पण ते संधिविग्रहिक पुरुपें न जाण्यो. पण ते कल्पकनो अनिप्राय ए हतो के, जेम महारी नावें तमारी नावने श्रावरी, तेम महारुं तेज तमने आवरशे. ए त्रण संझा करी, पण एके संझानो जावार्थ अजाणतां ते संधिकारको, विचार समुश्मा पड्या. जेम काग डानुं बालक मुख विकस्वर करी रहे, तेम रह्या. कल्पकतो वगर बोले पाडो वली पोताने स्थानकें आव्यो. संधिविग्रह पुरुषतो नावार्थ अजाणतां विलखा थइने पोताना लश्करमा गया. तेमने सामंत राजायें पूब्युं. कल्प Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ जैनकथा रत्नकोप नाग हो. के तमने झुं कर्तुं ? ते कहेवा लाग्या के, कल्पकतो असंबंधप्रलापी लबा डी जे. तो पण संधी करवानो जवाब न मलवाथी सामंत राजा फरी फरी तेमने पूबवा लाग्या. त्यारे ते लाज पामीने बोल्या के, अमे तो कल्पकनो अनिप्राय समजी शक्या नही. ते सांजली सर्व वैरी राजायें विचायुं के, क वपकें एने पण कांक व्यादिकने लोनें लपटाव्या देखाय ले. नहिंतो साचुं केम बोले ! तो रखेने ए मांहेला ने थइने आपणने मरावे! तेथी आपणने हवे इहां रहेQ घटतुं नथी. एम जाणीने ते सर्व लश्कर सहित नासवा लाग्या. ते जोइ कल्पकें नंदरांजाने कयुं. हवे अस्वारी करीने जेम तमने गमे तेम लूटो. कोई भाडा हाथ करनार नथी. ते सांजलीने नंदराजाय पण चढाइ करी ते राजाउना हाथी, घोडा, रथ, रत्न नंमार प्रमुख घणां लूटी लीधां. नंदराजानुं राज्य स्थिर थयु. नंदराजा पण पूर्वला पुष्ट मंत्रीने कल्पकने छुःख दायक,अनर्थकारक जाणीने निग्रह करतो हवो. ते कल्पक न्याय नीतियें करी इव्य उपार्जीने राजानो नंमार जरतो हवो. ए कल्पकनी कथा परिशिष्ट पर्वणीमां ने. ते माटे कल्पकजेवा मंत्रि होयतो राजा शोने. अनयकुमार करी जेम श्रेणिक राजा शोनतो हवो. तेम सकल कलामां कुशल एवा कल्पक मंत्रियें करी ते नंदराजा शोनतो हवो.. अर्थः-लक्जाजु सोहर बनयारी. अथवा लजाजु सोहा एगपत्ति. (लाजु के० ) लजायुक्त (एगपत्ति के० ) पतिव्रता स्त्री एटले शीयल वंती स्त्री ( सोहर के ) शोने जे. अथवा सती होय ते लाज मूकीने जे म तेम न बोले, तो घणुं शोने. इहां जिनमतीनो दृष्टांत कहे ले. यथाः___एक अद्भुत नगर हतुं. त्यां प्रबल शत्रुने मर्दन करे एवो, जनाईन ना में राजा राज्य करे ले. त्यां राजाने घणुं मानीतो, महाजनमा मुख्य, परो पकार करवा तत्पर, एवो वसुमित्र नामें शेठ वसे बे. ते शेठने निर्मल गु णवंती यशोमती नामें नार्या बे; ते स्त्री जरिने समस्त मनोरथ पूर्ण थ ते काल जाय जे. पण पुत्र नथी. तेनुं घणुं दुःख धरे ले. ते शे- कुलदेवता आराधी. तेणें तुष्टमान थ वर आप्यो,तेथी पुत्र याव्यो. वधामणां कस्वां, वरदत्त एवं नाम दीधुं. ते अनुक्रमें महोटो थयो, सर्व कला जण्यो, यौवन अवस्था पाम्यो. तेने एक सागर नामें बालमित्र . पण ते वक , अने वरदत्त पोतें सरस डे. अन्यदा को एक कन्याने पोताना घरनी नीचे Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २०५ कंडुकक्रीडा करती देखीने वरदत्तें विचासुं. अहो ! जुन एनुं रूप, लावण्य कांति केवी बे ? एम चिंतवी पोताना सागरनामे मित्रने पूठ्यं. ए कोनी पुत्री बे ? मित्र बोल्यो एज गामनो वसनारो बंधुदत्त नामें शेव तेनी बंधुमती नामें नार्या, तेनी ए जिनमती नामें पुत्री बे. ते सांजलीने वरदत यो. एवामां जिनमतीयें पण तिर्बी दृष्टियें तेने दीगे. वरदत्त पोताना मित्रसहित घेर तो याव्यो. पण बीजो सर्व व्यापार मू की ते स्त्रीने चित्तमां ध्यातो शय्यायें सूतो. त्यां तप्तशिलातले जेम मच तडफडे, ते रीतें तडफडे बे. लांबा निशासा नांखे बे, ते वात तेना पिता ये जीने सागरने पूब्धुं के, वरदत्तने शी अशाता बे ? त्यारें सागरें सर्व वात कही. वसुमित्र शेतें बंधुदत्तने याचना कर के, तमारी पुत्री महारा पुत्रने यापो. बंधुदत्त बोल्यो, तमे युक्त बात कही, तमाराथी बीजो उत्तम कोण बे ? पण महारो नियम ले के, श्रावक विना बीजने पुत्री आपवी नही. ते सांजली शेतें घेर यावीने पुत्रने सर्व बात कही. वरदत्तेपण कन्या परवानी इलायें मुनि पासे जइने श्रावकपणुं अंगिकार करूं ते तेने जा वयकी परिभ्युं पण खरं. ते वात बंधुदत्ते जाणीने पोतानी पुत्री वरदत्त ने परावी. ते स्त्रीर्त्तारिने मांहोमांहे घणो राग थयो, विश्वास थयो, बेदु विषयसुखवतां काल गमावे . अन्यदा वरदत्त बहार गयो जोइने सागर, जिनमती पासे खाव्या. जिन मतीने कवा लाग्यो के रुड्देव शेवनी बहु सायें तमारो नर्त्तार एकांते कांइक विचार करता हता. ते तमे जाणो हो के नहि ? ते सांजली, सरल स्वनाव वाली जिनमती बोली, ते वात तो तेच जाणे, अथवा तमे तेमना मित्र बो माटे तमे जालो. सागर बोल्यो, हुं जाएं बुं; पण पूठ्या विना केम करूं ? जिनमती बोली, तमे कहो शुं कार्य हशे ? सागर बोल्यो, जे महारे तमारी साधें काम ते काम तमारा नर्त्तारिने तेनी सायें वे जिनमती बोली, महारी साधें तमारे चुं काम बे ? सागर बोल्यो तहारो नर्त्तार मूढ बे, जे तहारा सरखी स्त्रीने मूकीने बीजी स्त्री पासे जाय बे, पण विषयरसना यास्वादनो जाण होय, तेने तो तहारो खप केम न होय ? एवं घणुंज दुर्वचन ते जि तिने कटुक लाग्युं, त्यारें कोपे नराणी थकी तिरस्कार करती कहेवा लागी. रे निर्लज ! रे अनार्य ! तुं एवं पाप चिंतवे बे ! ! अथवा जेवुं चि Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. तमां चिंतव्यु होय तेवु वचनपण नीसयुंजणाय ने माटे धिक्कार दो तने! अने तहारां चरित्रने पण धिक्कार हो ! तें महारा नरिने पण कलंक दीg. माटे याहींथी दूर जा. तहारूं दर्शन पण महापापनणी थाय. ते सांजलीने ते सागर चोरनी पेठे त्यांथी निकलतो साहामो यावतां वर दत्तें दीतो. गौहत्याकारकनी पेठे मलिनमुख को देखीने तेने वरदत्तें पूब्युं, तमने शो नग ? श्या कारणे आमण कुमणा देखा बो? सागर निसा सा नांरखी बोल्यो. गुं नगनी वात प्रबो बो! ए वात प्रकाशी न शकियें. तेम गोपवी पण रखाय नही. जेम कुस्थानकें गंवई थयुं होय, तेनी पेठे ए जागजो. एम कहेतो आंसुनी धार रेडतो कपटें करी बानो रह्यो. ते सां जली वरदत्तें विचारा के,एना मनमां कोई महोटो नछेग देखाय ले. वरदत्त बोल्यो. कहेवा जेवू होय ते नहेगनुं कारण कहो. ढुं कुःखनो संविनाग क रीने तमारूं मुख उद्धं करीश. सागर बोल्यो, तमे महारा परम मित्र बोमाटे तमाराथी महारे झुं बार्नु होय ? तमे जाणो बो जे, नारी अनर्थनुं कारण . जेम हिंसा सर्वदुःखनुं कारण जे. जेम अंधकारनुं कारण रात्री के तेनी पेरें स्त्रीपण सर्व दुःखनुं कारण ने. वरदत्त बोल्यो के, आज महारवंती साप एगी सरखी एवी कोइ स्त्रीना संकटमां तमे पड्या हता के, केम डे ? सागर बोल्यो. जिनमतियें मुझने निर्मऊ कस्यो. घणा काल सूधी कंदर्पना विकार असमंजस पणे मुफने एणीय देखाड्या. तेम मुखथी पण विषय सेववा कह्यं खलं. तथापि में जाण्यं.ए आज काल पोतानी मेलें ठेकाणे आवशे. एम विचारीने एटलो काल उवेखी मूकी. पण नित्य नित्य अधिकअधिक अस तीना चाला करती वचन कहेवालागी. परंतु कहेती रही नही. आज हूँ तु ऊने जोवा माटे घेर आव्यो हतो,त्यारे तेणें रासणीनी पेठे बल जोती मने रंधीराख्यो.जेम हरिण वाघरी पाराधी थकी बूटीने नाशे, तेम जिनम तिथकी हुँ महारा यात्माने मूकावीने नयें बीहीनो थको नातो. एवामां तमे मव्या. में मनमां विचास्युं जीव आपवाविना मने लूटको नथी. तेमाटे मरूं तो रूडं. वली विचास्यं जे, मरवू तो युक्त नथी. वली जिनमती नर्ता रने आगल कांक कहे. ते कदापि परोदने माटे महारो मित्र साचुं पण माने. अथवा मित्रने सर्व वात यथार्थ संजलावं. जो एनां चरित्र मित्र जा तो एनो विश्वासतो न करे ! रखे मित्रने कांक आपदामां नांखे! वली Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २०७ में विचास्युं के, ए पण न घटे जेमाटे एक तो में एनी बाशा पूरी नकरी. बीजुं वली एनुं कुशीलपणुं प्रगट कर, एतो चांदा नपर खार चोपड्या सर थाय. एवी विचित्र चिंता चिंतवतो थको मुझने तमे दीठो. माटे हे मित्र ! महारं उगनुं कारण जे हतुं ते में तमने कह्यु. एवां ते पापी मित्रनां वचन सांजलीने वरदत्तने घणो रोपनोनर थयो. ते घेर गयो एटले जिनमती तेनां पग पखालवा पाणी लावीने तेना मुखबागल आवी उनी, तेवारें तेणे रीसें करी बरी लेइने जिनमतीनुं नाक ठेद्यं, तेथी हाहाकार थइ गयो,सर्व सगा कुटुंबी नेला थया, सढुंयें वरदत्तने उबको दीधो, रे पापी, निःकरुण! कुलमां कलंक पण न विचायं? सजनस्नेहपण न गण्यो? या लोकने विपे अने परलोकने विपे कुःखदायी पणुं पण न विचास्युं ! तें ए गुं काम कयुं? ए जिनमती समस्त गुणवंती . तिलतुप मात्र पण जेमा दोष नयी.जे कारणे एर्नु उत्तम कुल, उत्तम जाति, मनोहर रूप, मधुर वाणी, विनयवंती, पर पुरुष सामुं जुए पण नही, लजावती,एना गुणेकरी सकल कुटुंब एने वश थ रह्यु ले, एनुं चश्मा सर निर्मल शील ने, तेने तें गुं कस्युं ? एवो कोलाहल सांजलीने राजपुरुप आवी वरदत्तने पकडी राजा पासे लाव्या. राजायें पूब्युं, रे नइ ! ए स्त्रीयें तहारो शो अपराध कस्यो, जे माटे राजकुले जणाव्या विना तें तहारे हाथेंज निग्रह कस्यो! वरदत्त बोल्यो,महारो सागर मित्र ले. ते एनो सर्व अपराध जाणे . राजायें अनुचरोने कह्यु के, जा सागरने तेडी लावो. ते सांजली कोटवाल तेने खोलवा गयो. खोलतां थकां को वननी कुंजमां नासतो पकड्यो. बांधीने राजा पासें लाव्यो. रा जायें पूडथु. रे मुराचार ! ए महासतीयें शो अपराध कस्यो ? साग़र ध्रुजतो थको कां बोल्यो नही. त्यारे कोरडाना प्रहारें मार दीधो. पनी जेवो हतो तेवो वृत्तांत कह्यो. राजायें बेढुने अन्यायना करनार जाणी बंदीखाने नांख्या. कुलवंती स्त्रीने जरतार गमे तेवी पीडा दे, तो पण ते जरि उपर मातुं न चिंतवे. जेम शेलडीने पीले तो पण मधुर रस आपे. तेम जिनमती नर्ता र उपर अथवा सागर नपर पनो लेश पण हैयामां न धरती, वली जैन मतनी वासनायें वासित थकी एम विचारे ने के, में नवांतरे उष्ट कर्म क स्यां , तेनां ए फल मने उदय याव्यां ले ॥ यतः॥ सबो पूवकयाणं, क म्माणं पावए फलविवागं ॥ अवराहेसु गुणेसु य, निमित्तमित्तं परो हो। Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो.. ॥ १॥ वली विचारे ने के, महारी नासिका बेदाणानुं तो कां कुःख नथी. जे माटे कर्मने वशे जीव शी शी विटंबना नथी पामतो? पण महारा निर्मल कुलने में कलंक लगाव्यं. वीजें जैनधर्मनी में लघुता देखाडी. ए मुझने महाकुःख लागे . एम कहेती घरना देहेरासर मध्ये जश्ने जिन प्रतिमा आगल एकाग्र मनें कानस्सग्गें रही. एवा समयें जिनमतीनुं अ खंम शील देखी शासन देवता घj रीफ पाम्यां थकां जिनमतीनी नासिका सुंदर सरल स्वरूप वाली निपजावता हवा. आकाशथी फूलनी वृष्टि करी, देवांकुनी वागी, जैनशासन जयवंतुं , ज्यां जिनमती सरखी सतीयो वसे बे, एवा घोप कस्या. ए सर्व सतीनुं अत स्वरूप सांजलीने राजा पोतें त्यां आवीने जिनमतीना गुण वर्णव करवा लाग्यो के, हे सति ! तुं धन्य, तुं कृत पुण्य, तहारो जन्म सफल , तहारा शीलनो महिमा अद्भूत . हवे जिनमतीयें हाथ जोडीने कर्वा. हे राजन् ! महारा नरिने तथा जारना मित्रने मूको. त्यारें राजायें तेना वचनथी ते वेहुने मूक्या. जि नमती पण संसारस्वरूप असार जाणीने दीदा लेती हवी. तीव्र तप चारित्र सेवीने सजतियें गश्. वरदत्त पण लोकनी निंदा सांजली कोइने मु ख पण देखाडी न शक्यो, पश्चात्ताप पण घणो थयो. ए रीतें एक पत्नी लजावंत थकी शोने दे. इति जिनमती कथा श्री सुमतिनाथचरित्रे प्रा कृतप्रबंधे पूर्वनवे ॥ इति श्रीसकलसनानामिनीनालस्थलतिलकायमान पंमितश्रीउत्तम विजयगणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिविरचिते गौतमकुलकर करणबालावबोधे दशमगाथायां चत्वायुदाहरणानि समाप्तानि. हवे अगीयारमी गाथा कहे . तेने पूर्वली गाथा साथै ए संबंध . जे पूर्व गाथाने अंते एम कर्दा के, एक पत्नी सती सजावंत होय,ते शोने. ते सतीपणुं तो जो अात्मा स्थिर होय तो थाय,अने स्थिरनुं प्रतिपदीअस्थिरपणुले,माटे एमां यस्थिरपणुं कहे . ए संबंधे करी आवी जे अगियारमी गाथा ते कहे. अप्पा अरी हो अणवयिस्स, अप्पा जसो सीलम नरस्स ॥ अप्पा पुरप्पा अणवयि स्स, अप्पा जिअप्पा सरणं गश्य ॥११॥ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २०ए अर्थः-अप्पा परी दो अणवध्यिस्स (अणवज्यिस्त के०) अनव स्थितस्य एटले जेना मनादिक योग्य तेकाणे न होय, तेने पोतानो (अ प्पा के०) आत्माज (अरी हो के०) वैरी समान होय. एटले चपल चित्त वालाने शेवनी स्त्रीनी पेठे पोतानो यात्मा तेज वैरी जाणवो. ते कथा कहे . श्रीपुरनगरने विषे वसुनामें शेठ वसे बे. तेने गोमती नामें स्त्री .अने धनपाल नामा पुत्र ले.अनुक्रमें पिता मरण पाम्यो. तेना मृतकार्य कस्वां. कालें करी शोक टल्यो. पनी गोमती, पुत्रनी वढू साथें निरंतर क्वेश करे,पु त्रं का. हे माता! तमारे घरसंबंधि चिंता करवानुं गुं प्रयोजन के, तमे बेतां थकां धर्म करो, ढुं तमारो याज्ञाकारी चं, तमे आज सूधी घरना व्यादेपें करी धर्म सांजव्यो नथी, अवधायो नथी, माटे धर्म सांजलो. ए म कहीने कोक शास्त्रना वांचनारने घेर तेड्यो, तेणे शास्त्र वाचवा मां मयु, गोमती सांजलवा बेठी ते वांचनार जेटले बोल्यो, नीष्म उवाच. ए टले खडकीमा अरधो पेगे कूतरो दीगो. त्यारें दूरथी हाड हाड एम कहे ती ते गोमती उठी उनी थ. खडकीना रखवाला उपर रुठी, तेने का कबको दीधो, थोडीक वारेंावीने वली सांजलवा बेठी. वलीवांचनार बोल्यो, नीष्म उवाच. एटलुं कडं एटले रसोडाने ढूकडी बिलाडी दीती, त्यारे वेगलेथी निरि निरि एम कहेती उठी. रांधणीया उपर रूठी रीस क री वली पानी बेठी. वली पुस्तकनो वांचनार बोल्यो, जीष्म उवाच. एट ले वाबडो तूट्यो ते जो उतीने पोकारवा लागी के, अरे वाबडो बूट्यो रे वाबडो बूट्यो. एम करती वाबडाना पालक उपर रीस करती वली सांन लवा बेठी. वली वांचनार वोल्यो, नीष्म उवाच, एटले कागडा कान कान करवा लाग्या, त्यारें मुख वांकुं करीने चाकर उपर रीस करवा लागी. ए म याचक प्रमुखना याववाथी वारंवार उठवे करी एक पहोर थयो. एट ले पुस्तकनो वांचनारो घेर गयो. वली बीजे दिवसे प्रातकाले वांचनार आव्यो. त्यारे पण सांनलवानी जे रीत हती, तेनी तेज रीत हती. वांच नारो थाकीने घेर गयो ॥ यतः ॥ अवज्यिस्त धम्मं, मा दु कहिका सुषु वि पियस्स ॥ विनायं हो मुह, विनाय ग्गिंधमंतस्स ॥ १ ॥ पुनः ।। अप्युनसहुदिनिधिः प्रबोधयेत्,बहूपदेशैरपिकोऽनवस्थितम् ॥ नेत्तुं तडिहि मलं न पुष्करा, वर्नोऽपिधाराशत लक्कोटिनिः॥ ५ ॥ इत्युपदेशरत्नाकरे. Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. हवे बीजा पदनो अर्थकहे . अप्पा जसो सीलम नरस्स (सीलम के०) शीलवंत (नरस्स के०) जे पुरुष होय, तेनो (अप्पा के०) आ त्मा तेज सीलवतीनी पेठे (जसो के) जस पामें. ___ याही शीलवतीनी कथा मूल ए ग्रंथमां लग नग (१२५) श्लोक जेटली संदेपथी.लखेली बे,.परंतु ए पंदर नागमांहेलो चोथो नाग पाइ बहार पडी चूको . तेमां चोथा शीलवतनी उपर दृष्टांतरूपें पृष्ट १एम ध्ये श्लोक ए0 जेटली एकथा उपाइ गयेली . माटे आहीं लखी नथी. त्यांथीज वांची लेवी, ए कथा श्री सुमतिनाथ चरित्रमा विस्तारें ले. तथा ए शीलवतीनो रास पण माहारी पासें श्लोक ३००० ने आसरेनो डे. __ वली शीलवतीनी सासुनुं नाम यशश्री जे. तेने बदले चोथा नागमा श्री एवं नाम उपाश् गयेलुं . तेमज शीलवतीना श्वशुरने पहेला जेवारे पुत्र न हतो, तेवारें यशश्रीयें पुत्र प्राप्तिने माटे पोताना जरतारने कह्यु डे के, हे आर्यपुत्र ! यापणा नगरना उद्यानने विषे अजितनाथ स्वामी ना देरासरना चारदेशे अजितबला नामें देवी ने. ते अपुत्रियाने पुत्र, नि ६नियाने धन, राज्यरहितने राज्य, अविद्यावंतने विद्या, मुखियाने सुख, आंधलाने आंखो, अने रोगीयाने निरोगीपणुं पेडे, माटे तमे पण न इंग करवो पडतो मूकीने ते देवीनी याचना करो तो मनोवांबित पूर्ण थाय. तेवारें शेठ बोल्यो, हेस्त्रि! तें नली याद आपी. एम कही नाही नज्वल वस्त्र पहेरी, पूजाना उपकरण लश्ने, जिनेश्वरने देहेरे गया. श्रीयजितना थस्वामीनी प्रतिमानी पूजा बावना चंदन,बरास, कस्तूरी, अगर,फूल,स्नात्र अर्चायें करी पनी अजितबला देवीनीागल याव्या. तेनी पूजा पण तेज रीतें करीने शेठ बोल्या. हे जगवति ! तमारा पसायें महारे पुत्र थशे, तो हूँ जैनधर्मने विषे तत्पर थयो थको तमारी महोटी नक्ति करीश. तथा पुत्रनुं नाम पण तमारा संबंधी देश. एम कही घेर याव्या. एटली वा त मांहेलो केटलोक नाग तेमां पायो नथी, परंतु बीजी वात तो या प्र त करतां चारगुणी विस्तारें तेमां उपाइ जे. ते जाणवी. हवे त्रीजा पदनो अर्थ कहे . अप्पा उरप्पा अण्वयिस्स. जेनुं चि त धर्मने विषे (अणवयिस्स के ) अनव स्थित एटले अस्थिर , तेने पोतानो (अप्पा के०) आत्माज (उरप्पा के०) पुरात्मा जाणवो. एट Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ११ ले जेनो आत्मा गंगापातकनी पेठे धर्मने विषे न रह्यो, मोहें मूमयो थको वस्तुतत्त्व न समजे. अने वस्तुनुं स्वरूप कोइ कहे तो माने पण नही. तेज उष्टात्मा जाणवो. ते गंगा पाकनी कथा कहे जे. लाटदेशने विषे नरुच्च नगरें गंगानामे पाकें, घणा बालक निशालि याने नणावी नणावीने घणुं धन एकहुँ कमु. पनी वृक्षावस्थायें परण्यो. ते स्त्री तरुण होवाथी तेने विषय समाव विषम थइ पड्यु, तेथी नर्मदा नदीने पहेले कांठे कोक पुरुष साथें रंगाणी . माटे निरंतर रात्री घ डायें करी नर्मदा नदी तरीने पार जाय. त्यां विषय सेवीने पानी आवे. घणी माया केलवीने जरिनुं मन रीजवे. दिवसें कागडाने बलि नाखवा जाय. त्यारे नरिने कहे के,कागडाथीबीदं वं. नार पण सत्य मा नतो तेनी रक्षा करवा पोताना बात्रोने मोकले. कोश्क अवसरे तेने ना रें कडं के अमुक मनुष्यने अमुक कार्यमाटे नित्य तेडी आवजे, स्त्रीयें क युं के, ढुं पुरुष साथें बोली जाणुं नही. त्यारे पाठक पोते बोलावी लावे. ते देखी एक बात्रे विचायुं के, ए सरलनां लक्षण नही ॥ यतः ॥ अत्या चारमनाचार, मत्यार्जवमनार्जवम् ॥ अतिशौचमशौचं च, षड्विधं कूटल क्षणम् ॥ १ ॥ एम विचारीने एनां चरित्र जोवा लाग्यो, ते जोतां जोतां रात्रीयें नर्मदा नदी उतरती दीती. एवामां सामा आवता चोर कुतीर्थे । तस्या, ते चोरने मगरें पकड्यो ते देखीने स्त्री बोली कुतीर्थे गुं करवा उत खा? तोपण नखं थयुं. हजी कांगयुं नथी. तमे ए मगरमत्स्यनीअारख्यो ढांकी मूको. एम कर्दा ते बात्रे सांजलीने विचाङ्गु के, अहो ! जूठ स्त्रीनुं सा हसप' के !॥ यतः ॥ अनृतं साहसं माया, मूर्खत्वमतिलोजता ॥ अशौचं निर्दयत्वं च, स्त्रीणां दोषाः स्वनावजाः ॥ १ ॥ वली एक दिवस बलि नांखवा अवसरे कागडाथी रक्षा करवा माटे पाठकना आदेशथी तेज बात्र स्त्रीनी साथें आव्यो . बलि नाखतां ते बा त्र बोल्यो । उक्तंच ॥ दिया कागाण बीहेसी, रत्तिं तरिसि नम्मयं ॥ कुति बाणि य जाणासि, अहीणं ढंकणाणि य ॥ १ ॥ ते सांजलीने स्त्री वि चायुं के, महारी वात ए जाणतो देखाय छे. तेवारे ते बोली के लोकस्वना व एवोज देखाय बे. माटे मौन करो. आजथी नर्मदा तरतुं मूक्युं. त्यार पनी चंचलपणे करी तेज बात्र साथे संयोग थयो. Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. एक दिवस देशांतर जवा माटे तेज बात्रने घर जलावी पाठक देशांतर गया. पालथी घरमां एक मृत कलेवर लावी रातें अग्नि लगाडीने ते बात्र संगाथे स्त्री नीकली गइ. प्रातःकाले पाठक घेर आव्यो. घर बल्युं ते संबंधी सवें स्वरूप जाण्य. त्यारहा प्रिया ! मरी गइ,एमघगो खेद करतो मृतकारज करी ते स्त्रीनां हाडकां लेइने गंगानणी मार्गे चाल्यो जाय . ते स्त्रीने प ण मास पर्यंत बात्र साथें रम्या पडी कोइक वातने लीधे रुसणुं थयुं छे. त्यारे ते स्त्रीने पश्चात्ताप उपन्यो, के नार मूकीने दुं शहां क्यां यावी ? एवं पोतानुं सर्व स्वरूप,नार त्यां आवी पहोंच्यो, तेने कझुं. त्यारे पाठक बोल्यो. तुं महारी स्त्री सरवी देखाय ने खरी, पण तेतो तुं नथी. तेनाथ स्थितो था महारी गांठे बांध्यां ने. त्यारे स्त्रीयें तेने पूर्वली अनेक प्रकार नी निशानीयो बतावी, तो पण ते हाडका बतावे पण माने नही. त्यारे स्त्रीयें बात्र देखाड्यो, तेने जो पाठकें कर्वा के, ए महारा बात्रसरखो दे खाय बे, पण ते स्त्रीनां हाडतो महारी पासे ले. त्यारे ते स्त्री खेद पामीने नारने तजती हवी. एवा पाठकसरखा पुरुष कोश्नुं कर्तुं सांजले नही, धर्मने विषे नजमाल थाय नही. तेनो आत्मा पुरात्मा जाणवो. ए कथा यावश्यकनियुक्ति तथा उपदेशरत्नाकरमां . हवे चोथा पदनो अर्थ कहे . अप्पा जियप्पा सरणं गश्य (अ प्पा के०) आत्मा ज्यारें इंडियो जीती मनने वश करे, त्यारे ( जिथप्पा के०) जितात्मा थाय, एवो जे आत्मा, तेज (सरणं गईय के०) संसारथी बीहीता एवा प्राणीयोने आश्रय जूत थाय. एटले ते थावचा मुनिनी पेठे कुःखी प्राणीने सुखने अर्थे थाय ते थावच्चा मुनिनी कथा कहे . ते काले ते समयने विषे झारिका नामें नगरी होती हवी. ते पूर्वपश्चिम बार योजन लांबी अने उत्तरदक्षिण नव योजननी पहोली . धनदें नि पजावी , सुवर्णनो कोट , नानाविध पंचवर्णमणिना कोशीशा , धन दनी अलका नगरी सरखी ,जेमां हर्षवंत कीडावंत लोक वसे बे,ते नगरी प्रत्यक्ष देवलोक सरखी . ते हारिकाने बहार ईशान कूणे गिरनार पर्वत बे,ते चंचो गगनथी वातो करतो, अनेक प्रकारनी वनस्पतियें मंमित,हंस, मृग,मयूर,कौच,सारस अने चक्रवाक प्रमुख पदीयोवडें शोजित जे. अनेक देवता तथा देवांगनाना मिथुन,चारण,विद्याधर ए0करी संकीर्ण बे. ते गि Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २१३ प्र नारने कडुं नंदनवन नामें उद्यान बे. ते सर्व ऋतुना फल फूलें सहित घणुं रमणीक बे. ते उद्यानने मध्यभागे सूरप्रिय नामें यनुं देवल बे. ते द्वारिकामां कम नामें वासुदेव वसे बे, ते समु विजय प्रमुख दशे दसार, बलदेव प्रमुख पांच महावीर पुरुष, उग्रसेन प्रमुख सोल हजार राजा, घुम्न प्रमुख साडाण क्रोड कुमर, साम्ब प्रमुख सातहजार दुर्दात कुमर, वीरसेन प्रमुख एकवीरा हजार वीर पुरुष, उप्पन्न हजार बलदेवना पुरुष, रुक्मिणी प्रमुख हजारो स्त्री, अनंग सेना प्रमुख अनेक हजार गणिकाउं, इ त्यादिक तथा वैताढ्यगीरि पर्यंत त्रण खंम चरत्ताईनो अधिपतिपणुं करतां विचरे बे. ते नगरीने विषे यावच्चा नामें गाथापतिली वसे बे. महा ऋद्धिवंत कोने पराजवनीय नथी. तेने थावच्चा नामें पुत्र थयो. ते आठ वर्षनो थयो जालीने उत्तम मुहूर्त जोड़ने कलाचार्य पासे जलवा मूक्यो. अनुक्रमें महोटो थयो त्या सर्व नोग समर्थ जाणीने एके दिवसें बत्रीश कन्यानुं पाणिग्रहण कराव्युं. ते साथेषांचे इंडियनां विषय सुख जोगवतो विचरे बे. एकदा दश धनुषनी काया, श्यामवर्णे शोजित, संयमतपस्यावंत एवा रिहा श्री अरिष्टनेमि, प्रढार हजार मुनिराज, चालीश हजार खार्या जीने परिवारें परिवस्या यथाप्रतिरूप यवग्रह ग्रहीने द्वारिकाने बहार गि रनारनी पासे नंदनवन उद्यानने विषे सूरप्रिय यना देहेराने ढकडुं शोक वृक्ष बे, त्यां समोसा. संयमने विषे ग्रात्माने जावता थका विचरे d. पर्षदा परमेश्वरने वंदना करवा नीकली. ते प्रभुजीने याव्या जाणीने वा सुदेवनी सुधर्मा सनामध्ये कौमोदिकी नामे जेरी रहे बे. ते वजडावता हवा. ते शब्द द्वारिकाने मांहे तथा बहार सघने व्यापतो हवो. ते सांजलीने स र्व लोक दर्ष पाम्या, सदु लोक न्हाई, बलिकर्म करी, वस्त्र आभूषण पहे री, के हाथीपर, केइ घोडा उपर के रथने विषे केइ शिविकायें बेसी ने, के हिंमता थका, पुरुषना समूहें परिवस्था थका कम पासे याव्या. त्यारें कृष्ण वासुदेव सर्व सामग्री सऊ या जालीने चतुरंगी सेना तैयार करावी, विजया नामे गंधहस्ति शणगारी, अनुक्रमें प्रभुजीने वांदवा नीक ल्या. पंचानिगम साचवी प्रभुजीने वंदना करी. यावच्चा पुत्र पण ते वात सांजली वांदवा खाव्या. अनुक्रमें प्रभुजीयें धर्मदेशना दीधी. ते धर्मदेशना सांगली हर्ष पामी यावच्चा कुमर बोल्या, हे स्वामिन् ! जेम तमें कयुं तेम " Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. ज . महारे तमारी पासे चारित्र लेवानुं मन ,पण मातानी थाझा लश आ. प्रनुजी कहे जेम सुख उपजे तेम करो; ए वातमा प्रतिबंध करशो नही. अनुक्रमें माता पासे आवीने कयुं, हे माता ! में नेमप्रनुजीनी देशना सांजली ते मने रुची.माता कहे तुं धन्य कृतार्थ थयो. त्यारें माताने कह्यु जो तमारी आज्ञा होयतो हुँ चारित्र अंगीकार करूं. ते सांजली माता मू र्जा पामी, चित्त वव्या पली मातायें घणा विषयना अनुकूल प्रतिकूल वचन कहीने चारित्रनी उकरता देखाडी, पण थावच्चा पुत्र ते वचनमां न मूंका पा. मातानी बाविना दीक्षानी आझा मागी. तेवारें थावच्चा गाथा पति णी, महोटाने योग्य महोटुं नेटणुं लेइने सङनें परिवर। थकी कामवासुदे व पासे आवी. मुख आगल नेटणुं मूकी एम कहेवा लागी. हे देवाणुप्पिय ! महारे थावच्चा नामें एकज पुत्र ने, घणो इष्ट दे, ते संसारना नयथकीन गि पाम्यो , अरिहा श्रीअरिष्टनेमिपासे प्रव्रज्या लेवा नजमाल थयो ने, तेमाटे दीदा महोत्सव करवानुं मन , तेथी बत्र चामर मुकुट प्रमुख थापो, तो महोत्सव करूं. त्यारे कमवासुदेव बोव्या. ए वातनी तमे फिक र करशो नही. तमे सुखशातामा रहो. ढुं पोतें थावच्चा पुत्रनो दीदामहो त्सव करीश. एम कही कमजी चतुरंगीसेनासहित विजय नामें हस्ति नपर बेसीने थावच्चा गाथापतिणीने घेर आवी थावच्चा पुत्रने एम कहेता हवा. हे देवाणुप्पिया ! तमे दीदा न व्यो, महारी वादुबायायें सुखें रहो, एक तमारा शिर उपर वानकाय स्पर्शे तेने तो दुं वारी न शकुं, पण बीजो को इतमने जो बाधा पीडा उपजावे. तो ते सर्व उपश्व ढुं निवारीश. त्यारें था वज्ञापुत्र बोल्यो. जो तमे जीवितव्यना अंतनो करनार एवो जे मृत्यु, ते ने निवारो, अथवा रूप रंगनी हाणी करे, एवी जे जरा, तेने आवती नि वारो, तो तमारी बाबायाये रहीने मनुष्य संबंधि विपुल कामनोग नोग वतो ढुं विचलं. त्यारें कृष्मवासुदेव वोल्या. हे देवाणुप्पिया! एतो उर्गतिक मणीय जे. एने तो महाबलिया एवा देव दानवपण निवारी शके नही, ए क पोतानां कर्मक्ष्य थाय,तोज जरा मरण टले. त्यारे थावच्चापुत्र बोल्या.. हे देवाणुप्पिया ! एटलाज माटे हुँ अज्ञान मिथ्यात्व अविरत कषायें क रीने संचेताजे कर्म संचय तेनो क्ष्य करवाने . ते सांजलीने कमवासुदेव कौटुंबिक पुरुषने बोलावीने एम कहेता हवा Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. के, क्षारिका नगरी मध्ये शिंगोडाने याकारें मार्ग होय, त्रण मार्ग होय, चार मार्ग पडता होय इत्यादिक मार्गने विषे,तमे हाथी उपर बेसीने ढंढेरो फेरवो,अने एम कहो के, थावच्चा पुत्र संसारना तापथी उद्येग पाम्या बे; जन्म जरा मरणथी बीहीना , ते अरिहा अरिष्टनेमि पासे चारित्र लेवा उजमाल थया , ते माटे हे देवाणुप्पिय ! राजा अथवा अथवा युवराज ना कुमर, ईश्वर, तलवर,कौटुंबिक, माबिक, इन्य, शेत, सेनापति सार्थवा ह प्रमुख जे कोइ थावच्चापुत्रनी साथे प्रव्रज्या लीये, तेने कम महाराजा याज्ञा आपेले. तेने पवाडे मित्र झाति प्रमुख जे आतुर होय, इव्यवा न न होय, तो तेनो घरनो निर्वाह श्रीकम करशे. एज रीतें कौटुंबिकें उ द्घोषणा करी त्यारें हजार पुरुष, उपाडे एवी शिबिका उपर प्रत्येक प्रत्ये के बेसीने एक हजार पुरुष दीदा लेवामाटे थावच्चा पुत्रने घेर अाव्या. ते देखीने कमवासुदेवें महोटे विस्तारें दीदामहोत्सव कस्यो. अनुक्रमें अ रिहा अरिष्टनेमिना त्रातिकत्र देखीने सर्व शिबिकाथी हेता उतस्या. पनी कृमवासुदेव थावच्चापुत्रने बागल करीने प्रनुजी पासे आव्या. त्यां थाव बापुत्रं आनूषण उतास्या, ते थावच्चा गाथापतिणी हंसलदण पट्ट साडी मां लइ, बिन्न मुक्तावलीना हारसरखा आंसु मूकती एम कहेती हवी. हे वत्स ! संयमने विषे यत्न करजो, पराक्रम फोरवजो, ए अर्थने विपे प्रमा द न करवो, एम कहीने जेम याव्यां हतां तेम पाबां गयां. त्यार पड़ी थावच्चापुत्र हजार पुरुष साथे पंचमुष्टि लोच करी. अनुक्रमें अपगार थ या. स्थविर पासे सामायिक आदे दे। चौद पूर्वना ननार थया. घणा च उन बह अहमादिक तप करता विचरे .. प्रनुजीयें ते हजार पुरुष थाव चापुत्रने शिष्यपणे सोप्या. ___ एकदा प्रजुजीने वंदना नमस्कार करीने थावच्चा पुत्र कहेता हवा. हे जगवन् ! तमारी आझायें सहस्त्र अणगारसहित बीजे देशे विहार करवा बुं बुं. प्रनुयें कयुं, हे देवाणुप्पिय ! जेम सुख उपजे तेम करो. त्यारें था वच्चापुत्र अगार बहार देशने विषे विहार करता विचरे ने. ___ एवा अवसरने विषे सेलंगपुर नामें राजा तेनी पद्मावती नामें राणी बे. तेनो मंऊक नामें कुमार युवराज . ते सेलंग राजाने पंथक आदे दे ने चार बुदिना जाण, राज्यधुराना चिंतवनारा एवा पांचवें मंत्री ने. Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. त्यां थावच्चापुत्र अणगार समोसखा. राजा वंदना करवा निकल्यो. गुरुयें धर्मकथा कही. ते सांजली राजा तथा पांचशे मंत्रीश्वर सर्व श्रावकपणुं अंगिकार करता हवा. त्यांथी थावञ्चापुत्र अणगार, विहार करता हवा. एवा अवसरने विषे सौगंधिका नामें नगरी होती हवी, त्यां नीलाशो क नामें उद्यान हतुं. त्यां सुदर्शन नामें नगर शेठ वसे बे. ते महाकदिवंत डे. एवा अवसरें एक शुकनामें परिव्राजक,चार वेदनो पारंगामी,पांच यम पांच नियम सहित शौचमूल दश प्रकारनो परिव्राजकधर्म पालतो तथा दान धर्म करवो,तीर्थ विपे स्नान करवू एवं प्ररूपतो एकदा नगवां वस्त्र पहेरी,दंग कुंमिका, बन्नालय अंकुश, अंगुठी प्रमुख राखतो, हजार तापसें परिवस्यो थको, सौगंधिका नगरीनेविपे ज्यां परिव्राजकनी वसति , त्यां आवी, सर्व उपकरण मूकी सांख्य समयमां यात्माने नावतो थको विचरे बे. ते वात नगरीमा प्रसिद थ. अनुक्रमें लोक सर्व तेने पगे लागवा नीकल्या, सुदर्शन पण नीकल्यो, ते सुदर्शन तेने सांरख्यमतनो धर्म संनलावतो हवो के, हे सुदर्शन ! अमारे शौचमूल धर्म कह्यो बे. ते शौच बे प्रकारें . ए क इव्यशौच अने बीजुं नावशौच. त्यां इव्यशौच ते पाणी अने मृत्ति का, तथा नावशौच ते मान पाणी मंत्री करीने थाय. तेणें जे कांई अप वित्र होय ते पवित्र करियें. एम करतां निर्विघ्नपणे स्वर्गे जयें. ते सांन लीने सुदर्शनशे शौचमूल धर्म अंगीकार कस्यो. अनुक्रमें शुकपरिव्राजक पण सौगंधिका नगरी थकी नीकली बीजे गामे विचरंतो हवो. __ अन्यदा ते थावच्चापुत्र अणगार पण सौगंधिका नगरीयें समोसखा, पर्ष दा वांदवा आवी, सुदर्शनशेत पण याव्या, वंदना करीने एम पूलता ह वा. हे स्वामिन् ! मूलधर्म कयो ? त्यारे थावच्चापुत्र बोल्या. विनयमूल ध में कह्यो बे. ते विनय बे प्रकारनो जे. एक गृहस्थविनय अने बीजो मुनि विनय. तेमां गृहस्थविनय ते पांच अणुव्रत, सात शिदाव्रत अने श्रावक नी अगीयार प्रतिमारूप कह्यो बे. तथा मुनिविनय ते पांचमहाव्रतरूप क ह्यो बे. वली अढार पापस्थानकनुं वोसिराव, दश प्रकारना पञ्चरकाण, करवा, बार निलु प्रतिमा आराधवी, एवो विनयमूल धर्म धाराधीने अनु कमें याउ कर्म खपावीने जीवलोकना अग्रनागे सि६ि वरे. Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३१७ पत्री थावच्चापुत्र अणगारें, सुदर्शन शेठने पूब्युं. तमारो शो मूलधर्म ले? शेठ बोल्यो. अमारो शौचमूल धर्म . यावत् एथी स्वर्गे जयें. त्यारें थावच्चापुत्र बोल्या. हे सुदर्शन ! रुधिरें खरडयुं वस्त्र होय तेने रुधि रें धोयें, तो शुभ थाय ? सुदर्शन बोल्या. गुदन थाय. थावच्चापुत्र बोल्या. तेम तमारे पण प्राणातिपातप्रमुख अढार पापस्थानक सेवतां शुदिन थाय. वली हे सुदर्शन, रुधिरें खरड्या वस्त्रने साजीखारें लीपी अमीयें चढा वी पनी शुद्ध पाणीयें धोये त्यारे ते वस्त्र शुद्ध थाय ? सुदर्शन बोल्या. हा शुभ थाय. ए रीतें हे सुदर्शन ! अमारे प्राणांतिपातनुं विरमण प्रमुख अढारे पापस्थानकना विरमण थकी शुरू थाय. ते सांजली सुदर्शन शेव बू ज्या. थावञ्चापुत्रने वंदना नमस्कार करे. थावच्चापुत्रं धर्म संजलाव्यो. अ नुक्रमें बारव्रतधारी श्रावक थया. जीव अजीवना जाग.थया. इत्यादिक तेणे श्रावकना गुण सर्व अंगिकार कस्या माटे ते सर्व शहां वर्णववा. एम सुदर्शन शेनें शौचमूल धर्म बांझीने विनयमूल धर्म आदस्यो. ते सांजलीने शुकपरिव्राजकें विचारयुं के, ढुं पाबो जश्ने शौचमूल धर्म अंगि कार करावं. एम चिंतवी वली पण एक हजार परिव्राजकसहित सौगंधि का नगरीने विपे आवी, परिव्राजकनी वसतीमां उपकरण मूकी, धान्डं वस्त्र पहेरी, थोडा परिव्राजकने साथें लेने सुदर्शन शेठने घेर आव्यो. सु दर्शन शेठ पण शुक परिव्राजकने आवतो जाणीने उना न थया, वंदना पण न करी, सामा पण नगया, मौनपणे बेशी रह्या. __ त्यारें शुकपरिव्राजक बोल्यो. पागल यावतो त्यारे तुं उनो थतो, सामो आवतो, अने हमणांतो उनो पण थतो नथी. एवो विनयमून ध में तें क्या अंगिकार कस्यो . त्यारे सुदर्शन शेव उना थश्ने एम कहेता हवा के, हे देवाणुप्पिय ! अरिहा अरिष्टनेमिना अंतेवासी थावच्चा नामें अणगार इहां याव्या ले. ते नीलाशोक उद्यानमां विचरे ले. तेमनी पासे में विनयमूल धर्म अंगिकार कस्यो बे. त्यारे शुक बोल्यो. हे सुदर्शन ! चालो थावच्चापुत्रनी पासे जयें. ढुं अर्थ हेतु प्रश्न पूर्बु. तेनो जो मुझने खरो उत्तर आपशे, तो ढुं पण वंदना नमस्कार करीश. तथा जो मुझने खोटो उत्तर आपशे, तो ढुं तेमने हेतु प्रश्ने निःप्टष्टव्याकरण करीश. ए म कही ते शुकपरिव्राजक एक हजार परिव्राजक संघाते सुदर्शन शेठने ते Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. डी यावच्चापुत्र अणगारनी पासें खावीने पूढतो हवो के, तमारे यात्रा बे ? यापनिका बे ? अव्याबाध बे ? प्राशुक विहार बे ? थावच्चापुत्र बोल्या. ए चारे वाना महारे बे. जे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, संयमादिकना योगें महारे यतना वर्त्ते बे. ते महारे यात्रा बे ॥ १ ॥ तथा यापनका वे प्रकारनी बे. एक इंडिययापनिका ने बीजी नोई यि यापनका. तेमां इंडिययापनिका ते पांचे इंदियो महारे वशवर्त्ति बे. नोइंडियापनिका ते क्रोध, मान, माया, लोन ए चारें क्षीण उप शांत बे. ए मुकने उदय यावता नथी ॥ २॥ तथा व्याबाध ते मुने वात, पित्त, श्लेष्म, सन्निपात, विविध प्रका रना रोगातं ते. पण हमला नदीराता नथी ॥ ३ ॥ तथा प्राशुक विहार ते खारामने विषे, उद्यानने विषे, देवकुलने विषे, सजाने विषे, स्त्री पशु पंमक रहित वसतीने विषे, पाडिहार पीठ फलक शय्या संथारो ग्रहीने विचरुं हुं ॥ ४ ॥ एम चारे उत्तर वाल्या. ए एटले वली शुकपरिव्राजकें पूढयं के, प्राकृत भाषायें " सरिसवया " तमारे दवा योग्य बे के, अनदवा योग्य बे ? यावच्चापुत्र बोल्या. स रिसवया ते वे प्रकारना बे. तेमां एक मित्ररूप ने बीजा धान्यरूप बे. त्यां मित्र सरिसवय ते त्रण प्रकारे बे. एक साथें जन्म्या, बीजा साथें म होटा थया, त्रीजा सायें धूनमां रम्या, ए त्रणे तो साधुने नवा योग्य a. ने बीजा धान्य सरिसव जे वे ते वे प्रकारना बे. तेमां एक तो शस्त्रे परिणमेला होय बे, घने बीजा शस्त्रे परिणम्या न होय तेमां जे श स्त्रे नयी परिणम्या ते तो साधुने प्रकल्प बे. अने जे शस्त्रे परिणम्या बे, ते वली वे प्रकारना बे. तेमां एक तो प्राशुक ने बीजा प्राशुक होय. ते प्राशुक तो साधुने न कल्पे, ने जे प्राशुक बे ते वली वे प्रकारना d. एक याचना करी नावेला ने बीजा याचित् होय ते. तेमां प्रयाचे ला तो साधुने प्रक्ष्य बे ने जे याचेला बे ते वली वे प्रकारें बे. एक गुमान ने बीजा अशुद्धमान तेमां जे अशुद्धमान ते न कल्पे, अने जे शुद्धमान, ते बे प्रकारें बे. एक दातारें आपेला, खने बीजा दातारें नयी श्राप्या. तेमां जे दातारें नयी प्राप्या, ते खावा योग्य नथी. अने जे दातारें श्राप्या बे. ते श्रमण नियने खावा योग्य बे. Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. शए इहां पूबनार परिव्राजकनो ए बाशय ले के, जो ए सरिसवय खावा योग्य कहेशे, तो हूं एने उलमां नांखी ने कहीश के,तमारे मित्र पण खावा योग्य देखाय छे. परंतु एमतो थावच्चापुत्र न बलाया. ___ त्यारे वली शुकपरिव्राजक, बल करीने पूजे जे के, तमारे कुलबी खावा योग्य के, न खावा योग्य ? थावच्चापुत्र बोल्या, कुलबी.बे प्रकारे ले, ए क कुलवंती स्त्री ते कुलबी कहेवाय डे, अने बीजं कुलबी जे धान्य विशेष ने, ते जाणवं. तिहां कुलबी स्त्रीना त्रण नेद..एक कुलपुत्री, बीजी कुल माता,अने त्रीजी कुलवधू, ए त्रए तो खावा योग्य नथी,धने जे धान्य कुल थी,ते सरिसवनी पेठे जाणवी. ए प्रश्नमां पण थावच्चापुत्र न बनाया. त्यारें वली बल करीने गुकपरिव्राजक प्रश्न पूछे ले के, तमारे मांस खा वा योग्य के, नहि खावा योग्य ? थावच्चापुत्र बोल्या. मास त्रण प्रकारना बे. एक कालमास, बीजो अर्थमास, अने त्रीजो धान्यमास. तेमां का लमास तो श्रावगथी मामी अषाढ सूधी बार प्रकारना , ते साधुने खा वा योग्य नथी. बीजा अर्थमास ते एक मासो, बे मासा प्रमुख जेथी सो नुं रू' तोलाय, ते अर्थमास कहियें. ते पण साधुने खावा योग्य नथी, त्रीजा धान्य मास, ते अडद कहेवाय जे. ते सरशवनी पेते खावा योग्य न खावा योग्य कहेवा. ए प्रश्नमां पण थावच्चापुत्र न बलाया. त्यारे वली प्रश्न पूछे ले के, तमे एक बो के, बेबो ? अक्षय बो के, अव्यय बो ? के अवस्थित बो? के अनेकनूतनाविनावस्वनाव बो ? था वच्चापुत्र बोल्या, हुँ एक पण « थने वे पण बु, यावत् अनेकनूतना विनावस्वनावं पण बुं. त्यां असंख्यात प्रदेशनी अपेक्षायें अक्ष्य , अव्य य डं, अवस्थित बुं, उपयोगनी अपेक्षायें अनेकनूतनाविनावस्वनाव हुँ बुं, एटले नित्यानित्य बेहु पद सूचव्यां. कोई रीतें खलाया नही. त्यारे गुक परिव्राजक बज्या. थावच्चापुत्र अणगारने वंदना करी, नमस्कार क री, एम कहेता हवा के, स्वामिन् ! हुं तमारी पासे केवलीनो प्ररूप्यो धर्म सांजलवानी ला करुं बूं. थावच्चापुत्रं धर्मकथा कही. ते सांजली घणो हर्ष पाम्या थका थावच्चा पुत्रने एम कहेता हवा के, ढुं तमारी पासे स हस्त्र परिव्राजक साथे मुंम थ प्रव्रज्या लेवा इK . थावच्चापुत्र बोल्या, जेम सुख उपजे तेम करो. ते वेलायें ईशान कूणे दंम प्रमुख एकांते मूकी, Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. पनी पोतानी शिखा उपाडी अनुक्रमें सहुयें प्रव्रज्या लीधी. सामायिक या दि देश चौद पूर्वना नणनारा थया. थावच्चापुत्रं, ते हजार परिव्राजक, सु कने शिष्यपणे सोंपीने पोतें सौगंधिका नगरीथी विहार कयो, अनुक्रमें सिमाचलजीने विषे यावी, एक मासन पादपोपगमन अनशन पाली, केवलज्ञान पामीने, हजार पुरुष संघाते सिदि वस्या. त्यार पड़ी शूकंपरिव्राजक विहार करता, सेलंगपुर नगरने विषे समोस स्या. पर्षदा वांदवा नीकली, सेलंगराजा पण वांदवा नीकट्या, धर्म सांन लीने सेलंग राजा बोल्या. हे स्वामिन् ! ढुं पंथकप्रमुख पांचसे प्रधानने पू बी, मंमुक कुमारने राज्ये थापीने तमारी पासे चारित्र लेश. शुक मुनि बोल्या. जेम सुख उपजे तेम करो. त्यारे सेलंग राजायें घेर अावी, पांच से मंत्रीने बोलावीने पूब्युं, हे देवाणुप्पिय ! में गुक मुनि पासे धर्म सांन ल्यो, ते गम्यो, रूच्यो, संसारना नयथकी उझेग पाम्यो बुं, माटे दीक्षा ले वानुं मन . तमे झुं करो बो ? तमारे हित इहित गुंडे ? ते सांजली मं त्रि बोल्या. जो तमे दीदा ल्यो बो, तो अमारे बीजो कोण अाधार आ संबन ? अमे पण संसारना नयथी नहंग पाम्या बियें. माटे तमारी सा थें दीदा लेगुं. जेम अमारे संसारमा तमे वडेरा बगे, तेम दीदा सीधां पढ़। पण अमारा तमेज वडेरा बो. __त्यारे राजायें मंत्रीश्वरोने कह्यु. तमे तमारा वडा पुत्रोने कुटुंबनो नार सोंपीने, सहस्र पुरुप उपाडे एवी शिबिकाये बेसीने, महारी पासे थावो. ते मंत्रियो पण तेमज अनुक्रमें राजा पासे आव्या. राजा पण मंमुक कु मरने राज्यानिषक करीने, सेलंगपुर शणगारावीने, पांचसे मंत्रि साथें दी दा लेश, अनुक्रमें अगीयार अंगना नणनारा थया. सेलंगराजऋषिने पांच शे मंत्रिने शिष्यपणे सोंपीने अन्यदा गुक अणगार अन्य देशने विषे विहा र करता हवा. अनुक्रमें हजार मुनिने परिवारें परिवस्या थका श्रीसिक्षाच ल उपर अनशनकरी मोक्ष पधावा. हवे सेसंग राजकषिने पण, तुह,सूरवा, अरस,विरस, टाहाडा, नन्हा, कालातिक्रांत, प्रमाणातिकांत एवा आहार पाणी करतां; सुकोमल शरीरें रोग प्रगट थयो. घणी वेदना कंमू, दाघ, पित्त, ज्वर, शरीरें व्याप्यो शरीर घणुं सुकाइ गयुं. अन्यदा विहार करता थकां सेलंगपुरें पधास्था, मंमुक रा Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २२१ जा वंदना करवा नीकल्यो, वंदना करीने पिताना शरीरे रोग उपन्यो दे खीने सेलंग ऋषिने एम कहेता हवा के, तमे महारी यान शालायें यावी उतरो, दुं वैद्यने तेडीने तमारा रोगनी चिकित्सा करूं. सेलंग अणगारे ते वचन मान्युं, मंक राजा पोताने स्थानकें आव्या. सेलंग पण बीजे दिव से प्राःतकाले पांचसे अपगारनी साथे मंसुक राजानी यानशाला मध्ये प्रागुक पीठफलकादिक याचीने रह्या. वैद्य तेडावीने प्रागुक एषणीक औ षधे करी तथा मद्यपानें करी साजा थया. त्यार पडी अशनादिकमां मद्य पानमां मूर्खया, गृ६ थया,पासला थया,उस्सन्नां थया, कुशील थया, संस त्ता थया, पीठ फलक शय्या संथारामां प्रमत्त थया, ते पीठफलकादिक जे मनीपासें याची लाव्या होय तेने पाडां अापतां मन चाले नही. अन्यदा पांचसे प्रधान शिष्यमांहेलो एक पंथक टालीने बीजा अएगा रोने पाउली राते धर्म जागरिकायें जागतां एवो विकल्प नपन्यो जे सेलंग राजायें राज्य बांकी दीक्षा लीधी,पण हवे प्रमादमां पड्या थका रस गृदि बांमी शकता नथी,ते साधुने न कल्पे. माटे प्रातःकाले सेलंगराजर्षिने पूड़ी, पीठफलादिक आपीने, एक पंथक मुनिने वैयावचमा थापीने,आपणे बहार नाविहार करवो कल्पे . एम चिंतवी अनुक्रमें सहुये विहार कस्यो. हवे पंथक मुनि पण शय्या, संथारो, उच्चार, खेल,औषध, नेपज,नात पाणी करी, अगिलानपणे वैयावच्च करे. एम करतां एकदा कार्तिक चो मासाने दिवसे सेलंगराजऋषि विपुल अशनादिक आहार करी मद्यपान करी पाबले पहोरे सुखें सूतो वे. तेवामां पंथक मुनियें चोमासी प्रतिक्रम एग करवा मांझयं. विचाले चोमासी खामणा खामतां गुरुने मस्तकें पग फ रश्यो, ते थकी सेलंग कषायमां ाव्या, रीस चढी, नतीने बेग थया, अ ने एम कहेवा लाग्या के,कोण आ अप्रार्थ्यानो प्रार्थनारो,हीणी चौदशनो नपन्यो,जे मुझने सुखें सूताने संघटे के ? ते वचन सांजलीने पंथकजी जय पाम्या, त्रास पाम्या, हाथ जोडी कहेवा लाग्या, हे स्वामिन् ! ढुं पंथक, दे वसिक पडिक्कमणानो कानस्सग्ग करीने चोमासी खामणा खामुं .तेमां हे देवाणुप्पिय तमने वंदना करतां तमारा पगने मस्तक फरश्युं. ते महारो अपराध खमो. तमे खमवा योग्य बो. एम वारंवार खमावे जे. पंथकजीनां एवां वचन सनिलीने सेलंगराजर्पिने एवो विकल्प उपन्यो Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ जैनकथा रत्नकोष नाग बडो. के में राज्यनार बांमघो. दवे इहां अशनादिकमां गृद्ध थइने विचरुं बुं ते न घटे. माटे प्रातःकाल मंमूक राजाने पूढीने, पडिहार पीठ फलग शय्या संथारो पाठां यापीने, पंथक अणगार संगायें नय विहारे बहार विहार करीगुं. पी जेम विचां तेमज करीने विहार करता हवा. ते वात चारशेनवाणु पगारे सांजली, तेवारें मांहोमांहे कहेवा लाग्या, रे साधु ! सेजंगराज पियें पंथक मुनि सायें बहार देशे विहार कस्यो, तो हवे प्रापणे पण से लंगराज कृषिने अंगिकार करीने तेमनी साधें विचरखं घटे बे ! एम विचा री, सेलंगराजऋषि पासे खावीने, साथै विचरता हवा. घणा वर्ष सूधी घणा तप जप करतां, अनुक्रमें श्री सिद्धाचलजी उपर पादपोपगमन अन शनें केवलज्ञान पामीने सिद्धि वस्या. इति श्री ज्ञातासूत्रे पंचमाध्ययने ॥ हां यावच्चा मुनिने प्रसंगे बीजो अधिकार पण को. या श्रीज्ञातासू मां श्रीशत्रुंजय महातीर्थनुं नाम श्राव्यं. माटे ए तीर्थवंदनीक पूजनीक बे, कपनकूटनी पेठें शाश्वतुं बे, इहां ग्रंथ वधे माटे चर्चा लखी नथी. जो थाव अणगार जितात्मा थया तो पोतानो खात्मा तेहज गति तथा बीजा प्रा ने शरण नूत पण थयो. इति श्री थावच्चा पुत्र अणगार कथा ॥ इति श्री सकलसनाना मिनीनालस्थल तिलकायमानपंमित श्री उत्तम विजयगलिशिष्य पंमित पद्मविजयगणिकृतं श्री गौतमकुलकप्रकरणे बालावबोधे एकादशगा थायां चत्वार्युदाहरणानि समाप्तानि ए बगीयारमी गाथा कहीं ॥ ११ ॥ वे बारमी गाथा कहे बे. तेने पूर्व गाथा सायें ए संबंध बे के, पूर्वे गा थाने ते जितात्मा ते गति शरण थाय एम कयुं, तो इहां जे धर्मी होय तेज जितात्मा थाय. ते व्यधिकारे घ्यावी जे बारमी गाथा ते कहे बे. न धम्मका परमचि कऊं, न पाणिहिंसा परमं करूं ॥ न पेमरागा परमचि बंधो, न वो हिलाना परमचि लाजो ॥ १२ ॥ · अर्थः- :- न धम्माका परमति कऊं ( धम्मकता के० ) धर्मकार्य स मान बीजं (परम के० ) परम अर्थ एटले उत्कृष्ट ( कऊं के० ) कार्य Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २२३ (न के०) नथी. एटले ए नाव के, जगत्ना जीवोयें खावं, पी, पहेर, उढवू, घरबार, स्वजन, कुटुंब परिवार, बैया, बोकरां धणीयाणी प्रमुखनु कार्य, ते पोतानुं करी मान्युं वे. पण ते अज्ञानपणानो विलास . परंतु परमार्थे तो एक धर्मकार्य करवुज योग्य जे. ते उपर मुग्धनट्टनो दृष्टांत कहे . कौशांबी नगरीने ढुकडं शाली नामें गाम ले. तेमां दामोदर नामें नह रहे बे. तेनी सोमा नामें नार्या ले. तेने मुग्धन नामें पुत्र जे. तेने सुलक्षणा नामें नार्या डे. ते स्त्री नरिने सुखें रहेतां केटलोक काल गयो. अनुक्रमें माता पिता मरण पाम्या, अनंतर पितानी लक्ष्मी क्ष्य ग॥ यतः ॥ इं दिरा मंदिरेऽन्यस्य, कथं स्थैर्य |वधास्यति ॥ या स्वसद्मनि पद्मेऽपि, संधाव घि विजूंनते ॥ १ ॥ त्यारे नाना प्रकारनी आपदानुं स्थानक एवं दरी पणुं आव्युं ॥ यतः ॥ निईव्यो हियमेति ह्रीपरिगतः प्रत्रश्यते तेजसा, निस्तेजाः परिजयते परिनवान्निर्वेदमागबति ॥ निर्विन्नः शुचिमेति शोक सहितो बुद्धः परित्रश्यति, निर्बुदिः क्यमेत्यहो निधनता सर्वापदामा स्प दम् ॥१॥ ते मुग्धन, लगायें करी स्त्रीने पण वगर प्रो रात्रिने विषे बानो नगर बहार नीकल्यो. धननो अर्थी थको बार वर्ष सूधी परदेशे न मतो पाबो घेर आव्यो. त्यारें पोतानी स्त्रीने अत्यंत विनयवंत देखीने पू बवा लाग्यो. रे स्त्री! तें बार वर्ष सूधी एकली थकी केम निर्वाह कस्यो ? त्यारे स्त्री बोली. हे प्राणप्रिय ! विमला नामें जैनमती प्रकतें परउपका रणीने. तेणीयें विशिष्ट तत्त्व रसनो उपदेश कस्यो. तेमां मन थर थकी में बार वर्ष ते बार दिवसनी पेठे काढ्या. ते सांजलीने ब्राह्मण घणो वि स्मय पाम्यो. हसते मुखें कहेवा लाग्यो के, ते तत्त्वनी वात मुऊने पण कहे. जेम हुँ पण सुखी थानं त्यारे तेणीये पण जीवाजीवादिक नव त त्त्व रूडी रीतें कही समजाव्या. तेवारे ते विप्र पण सुश्रावक थियो. हवे ते गामना वसनारा अन्य ब्राह्मणो ते स्त्रीनारने घणो आक्रोश करे. पण ते जैनधर्ममां दृढ थकां न चले. जाणे के, जैनधर्म नपरांत बी खं कांइ पण नथी. एकदा माह मासनी ताढ वहाते थके पुत्रने लेइने ता पंवाने अर्थे अंगीठी करीने ज्यां सर्व ब्राह्मण तापे , त्यां मुग्घनदृ पण थाव्यो. एटले सर्व ब्राह्मणे मली तेने तिरस्कार कस्यो. रे पापिष्ठ उष्ट ! हाथी उसर ! उसर दूरजा ! ते सांजलीने नट्ट विलखी थको बोल्यो. नाइ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. एक जिनधर्म तेहज सत्य छे. बीजं सर्व असत्य ले. जो जिनधर्म असत्य होय तो प्रा महारो पुत्र बली जाजो. एम कहीने सहसात्कारें धैर्य धरीने सल गेली अंगीतीमां पुत्रने मूक्यो, ते जो सर्व ब्राह्मण हाहाकार करवा लाग्या, त्यां तत्काल उपयोगवंत शासन देवतायें पासे थकां अग्नि शीतल करी नांख्यो. ते शासनदेवता प्रकट थश्ने जिनधर्मनी प्रशंसा करवा लाग्या. ते शा सन देवतायें पाले नवें चारित्र लेइने विराध्यु हतुं. तेथी मरीने व्यंतरी थई ले ते व्यंतरीयें केवलीने पूर्वा हतुं के, दुं सुलनबोधी के, उर्लनबोधी डं? केवली लगवानें कह्यु. तें पूर्व नवे संयम विराध्यो , तेथी या नवमां कोइने कष्ट पडयुं होय तो तेने सहाय्य करी शासनप्रनावना करीश, तो सु जनबोधी थश्श. ते सांजलीने ते देवी पण ताम नाम जिनशासननी प्रना बना करती त्यां आवी चढी. तेणें मुग्घनन पण सहाय्य कयुं. ते महि मा देखी ब्राह्मण विस्मय पाम्या, श्रीजिनधर्मनी प्रशंसा करता हवा, पडी मुग्घन घणो हर्ष पामतो पोताने घेर अाव्यो. पोतानी स्त्रीने वात कही. त्यारें स्त्रीयें उलटो उबको दीधो. के, तमे ए जोलापणुं केम कयुं ? कदा चित् देवता, सहाय्य न थयुं होत तो, पुत्र बली जात, अने तमे पण ध मन्रष्ट थात, लोकमां धर्मनी अपनाजना थात, ते माटे एम न करिये अनुक्रमें ते स्त्रीनार श्रीअजितनाथ परमेश्वर पासे चारित्र अंगिकार करीने, संयम तप पाली, केवलज्ञान पामीने मोदें गयां. ब्राह्मणप्रमुख पण प्रतिबोध पाम्या ॥ इति आचार प्रदीपे मुग्घनट्ट कथा ॥ ते माटे ध मकार्य उपरांत बीजुं कोइ पण उत्कृष्ट कार्य नथी. ॥ हवे बीजा पदनो अर्थ कहे . न पाणिहिंसा परमं अकऊं (पा णि हिंसा के०) प्राणीनी हिंसाथी को पण (परमं के०) उत्कृष्टुं (अकर्क के० ) अकार्य (न के ) नथी. एटले जीव हिंसा उपरांत कोई पण अ कार्य नथी. ते नपर देवप्रसाद, सामदेव अने वामदेवनी कथा कहे . याज जंबुद्दीपना नरतदेवने विषे पंचाल देशे कांपिढ्नपुर नामें नगर ले. त्यां जयवर्म नामें राजा राज्य करे . तेनेज बावली नामें राणी . तेनी साथें विषयसुख जोगवतो राजा काल गमावे . एकदा राणीयें एवं स्वप्न दीतूं. जे कोक इंटें रत्नजडित मुकुटेंकरी देदीप्यमान एवं राजा नुं मस्तक आयुं, ते मस्तक महारा खोलामां पड्युं. राणी संचम पामीने Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. जागी. राजायें जाण्यु त्यारें पूजयुं के, झुंने ? राणीपण शोकें करी रोवा लागी. राजायें तेनी आश्वासना करी. वली अवसरे पूज्यु. तेणीयें जेम हतुं तेम कह्यु. राजा बोल्यो. ए शोक करवें सख्यं. मुकुटनो धर नार महाराजा तहारे पुत्र थशे. वली राजायें चित्तमां चिंतव्युं के, महालं मरण पण इकडं . एवं ए स्वप्ने सूचवाय D. तोपण नद्यम मूकवो नही. एम केटलोएक काल गयो. हवे राणीने तो गर्न रह्यो ले. एवा अवसरें शूरसेन नामें एनो गोत्रियो प्रधान हतो, तेणें सामंत प्र मुखने वश करीने तेमनी साथै आवीने नगर रोक्यु. त्यारें राजायें पोतार्नु निर्बलपणुं जाणीने राणीना घरथी सुरंग खोदावीने स्मशानसुधी काढी. ते राणीने देखाडीने कयुं के,वैरी प्रबल डे,कार्यनी गति विषम ,कोण जाणे गुं थशे,माटे अवसर जाणोतो था सुरंगमांयी नीकलजो. एम करतांशत्रुयें नगरनंग करवा मांमयु. त्यारें जयवर्म राजा लडवाने सामो नीकल्यो. यु इमां मरण पाम्यो. कोलाहल थयो ते सांजलीने सुरंगे थश्ने राणी नाती. एवामां नयें करी राणीने प्रसव थयो ते बालकने राजानी मुश सहित के बल रत्ने वींटीने मसाणमां मृक्यो. पोते वेगली लताने यंतरे ज बेठी. ___एवा अवसरें तेज नगरमां नइनामें शेठ रहे, तेनी सुनश नामें ना - बे, पण ते मुआ बालक जणे , तेथी शेठे कुलदेवी आराधी. तेणें तुष्टमान थइने कह्यु के, तुं ज्यारें मुथा बालकने परतववा जाय त्यारे त्यां कोइ बालकने देखेतो.उपाडी लेजे. एज रीतें शेठे बालक लीधो. ते लेतो देखीने राणी आगल चालती थ. मनमां घणुं वैराग्य धरती तापसणी थइ. हवे शेठे पण ते वात पोतानी नार्याने न कही; परंतु आपणो बालक तो जीवतो ,एम कहीने पालो पोतानी स्त्रीने आप्यो. एक मास थयो त्यारें वधामणुं कयुं. देवप्रसाद एवं नाम दीg, महोटो थयो, कलानण्यो,यौव न पाम्यो. घणा शेठोनी कन्या आवे पण कुमर सरखी न होवाथी शेठ परणावे नही. एकदा एक निमित्तियो याव्यो. लोकोना मुखथी वखाण सांजलीने तेने शूरसेन.राजायें बोलाव्यो. मुष्टिप्रश्नप्रमुख प्रश्ों रूडो जा एयो. त्यारें राजायें एकांते पूयुं. ए राज्य महारा वंशमा रहेशे के, नही ? निमित्तियो बोल्यो, खेद करशो नही, हुँतो शास्त्रमा कह्या मुजब कहीश. राजा बोल्यो, खेदनो शो अवसर छ ? निमित्तियो बोल्यो. तमारा वंशमां तो Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. नहि रहे, राजायें पूब्युं. तो कोण राज्य करशे ? निमित्तियो बोल्यो. आज थी पंदर दिवसें गायना गोकुलने निन्न ले जतां देखी जे पुरुष ते गोकुल ने पालुं वालशे, तथा तमारा पुत्रनी थाझा नही मानशे, तथा रत्नपुरनो धणी पूर्णचं राजा ने तेनी दीकरियोने जे परणशे, ते तमारुं राज्य जोगवशे. ते वचन राजायें मान्यु, अने निमित्तियाने कुटुं के, कोइ आगल ए वात कहेशो नही. एम कही पूजीने निमिनियाने विसो. शूरसेन राजायें पो ताना पुत्रोने गोकुलमा मूल्यां, बने शीखव्युं के, एक मास सूधी त्यां र हीने गोकुल जालवजो. तेपण अनादर थकी परिवार विना त्यां गया. अ ईमास गयो ते सघला राजकुमर प्रमादमा रह्या, बने निल्ने गोकुल हयुं. एवामां देवप्रसाद सऊनना विवाह कार्य गयो हतो, तेणें मार्गनी वचमां गोकुल हरीजतां निलोने देखीने पराक्रम फोरवी गोकुल पालुं वाल्यु. ए व्य तिकर सांजलीने राजायें जाण्यु के, राज्यनो धणी शेठपुत्र देवप्रसाद थशे. हवे राजपुत्रे पण नगरमां पडह वजडाव्यो. जे युवान पुरुष रमवा नोकलशे, तेने तो राजकुमर प्रसाद करशे. अने जे रमवा नही नीकले तो राजकुमर तेनो अपराध खमशे नही. एम सांजली नगरना घणा कुम र नीकल्या, पण देवप्रसाद न नीकल्यो. मातापितायें कह्यु,हे वत्स ! राज पुत्रनो उत्सव जु, राजानी आझा ते विषम ठे, कुमर बोल्यो,महारुं मा धुं उखे डे, ते माटे बोलशो नही, स्नेहें करी मावित्र पण न बोल्या. ___ एवामां देवप्रसादें वचन सोनल्यु के, रत्नपुर नगरने विषे पूर्णचंद रा जानी लक्ष्मीवती अने कांतिमती नामें बे दीकरीयो ले. ते गंध इव्यना सं योग रूडा जाणे . ते एम कहे जे के,अमे गंधव्य नेगा करियें. तेनो वि शेप जे जाणे तेने परणवं, पण बीजाने न परण. एम निर्धारी ते गंध व्य नेगा करीने घणा राजपुत्रोने दासीने हाथें देखाडे , पण कोक्ने वि शेष मालम पडती नथी. ए व्यतिकरें राजा घणो कुरवीयो ले. तेथी नगर मां पडह फेरव्यो डे के, जे पुरुष कुमरीना गंधनो विशेष कहे, तेने ढुंब धुं राज्य अने ए कन्या परणावं. ते सांजलीने .देवप्रसाद त्यां जवानी चिंतासहित नद्यानमां आव्यो. एवामां नत्सवमां न आव्यो ए वांक का ढीने राजायें देवप्रसादने तेडवा पुरुष मोकल्या. पुरुषं आवीने शेठने कह्यु के, देवप्रसाद क्यां गयो ? राजानी आझानो लोपक उष्ट, महा पापी, क्या Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २२७ ने ? राजानी बाझायें अमारे तेने मारवो डे, शेठ बोल्या, एतो गश्का लें रत्नपुर नगरे मामाने घेर प्रादुणे गयो . माटे ढुं राजा पासे आवु एम कही शेनें, एक पुरुषने शीखवी कुमरपासें मोकल्यो. तेणें जश्ने कु मरने कयुं के, तमारा पितायें कहेवराव्युं ,जे रत्नपुर नगरें मामाने घेर जजो. पली शेठ पण राजा पासे गयो, राजाने सर्व हकीकत कही, राजायें विचाओँ के, निमित्तियानुं वचन साचं जे; तोपण मीतुं वचन बोलीने नपा य करवो ते श्रेष्ठ जे. एम चिंतवी शेठने कह्यु, पुत्रने वहेलो बोलावो. शेवें कयुं आपनुं वचन प्रमाण जे. एम कही शेठ पोताने घेर आव्यो. कुमर पण रत्नपुर नगरे बंधुदत्त नामें मामाने घेर पहोच्यो. त्यां नचित कृत्य क री मामाने का, मने ते गंध देखाडो. मामायें कुमरीनी दासीने तेडावी गंधश्व्य देखाड्यु. देवप्रसाद कुमरें पण,परीक्षा करीने सर्व इव्य जूदा जूदा कही देखाड्या. अनुक्रमें सर्व प्रतीत करावी. ते जाणीने कुमरी हर्ष पा मी, राजाने जणाव्युं. पूर्णचं राजायें विचाओँ के, धनवंत तो खरो पण वाणियो , अने एवो नदार विज्ञानवंत वाणीयो न होय, तेम राजक न्याने पण ए वाणिया नपर राग केम होय ? एवो विचार करे . एवामां देवप्रसादनो कृत्रिम मामो कंबलरत्न तथा जयवर्म राजानी नामांकित मुश लेश्ने राजा पासें आव्यो. राजाने कह्यु, हे राजन् ! महारा बनेवीये कंपि हनपुर थकी माणस मोकल्यो ,ते माणसें मुझने एम कह्यु के, शूरसेन रा जायें तमारा बनेवीने वगर वांकें पकड्याने, ते आपदामां कहेवराव्यु ने, जे ए देवप्रसाद जयवर्म राजानी नामांकित मुशसहित मसाणमांथी ली धो ले. ते मुझयें अमे जाण्यं के, ए जयवर्म राजानो पुत्र बे, पण नयें करी अमे कोइने कह्यु नही, अने महोटो कस्खो. बीजॅतो अमे कांइ जाण ता नथी. वली बीजी वात कढुं बुं, ते सांजलो. शूरसेन राजाने ए कुमर नी उपर घणो शेष ले. एने पकडतां जूटुं मिष करीने में तमारे त्यां मोक ल्यो . माटे एने शूरसेन राजाना क्षेष रूप नयथी राखजो, एवी वात क हीने मुज्ञ तथा कंबल रत्न राजाना मुख अागल मूक्यां. राजायें विचारां, अहो ! जयवर्मनो पुत्रतो महारो नाणेज . एम जाणी हर्ष पाम्यो थको शेठने कहेवा लाग्यो, रे शेत ! तमारा बनेवीने कहेवरावो के, तमे रूडं कयं. जे कुमरने इहां मोकल्यो, अने समाचार जणाव्यो, हवे शूर सेननी Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. अंशमात्र पण बीक राखशो नही. एम कही देवप्रसादने बोलाव्यो. राजायें तेनुं मुख जोइने कह्यु के,अहो ! एतो जयवर्म राजा सरखो बे. एम आनंद पामीने सर्व लोकने ते वात संनलावी. बेतु कन्या परणावी दीधी. एकदा शूरसेन राजायें मारनारा पुरुष मूक्या. ते आवी कुमरने मल्या. कुमरें तेमने पाड्या. कुमरने जमणी नुजायें प्रहार याव्यो. ते सांजलीने राजा त्यां आव्यो: तेणें ते अईमुवेला मारनाराने पकड्या. कुमर बोल्यो. ए मुआने मार, ते घटतुं नथी, एम अनयदान देवरावीने पूज्युं जे खरं कहो तमने केणें मूक्या ? ते बोल्या, शूरसेन राजायें मूक्या , कुमर पोताना बापनो वैरी जाणीने कोपायमान थयो थको, पूर्णचं राजाने वि नंती करतो हवो के, मने तमारूं लस्कर आपो तो, ढुं महारा पितानुं वैर लेतं. राजा बोल्यो. लस्करनुं गुं काम डे ? ढुं साथें आई , एम कही रा जा पोतें नीकल्यो. ते निरंतर प्रयाणे करी कंपिनपुर नगरे पहोच्यो. दूतमु खें कहेवरावी मूक्युं के, हे शूरसेन! तुं हवे राज्य मूकीने धर्म कस्य ! ते व चन शूरसेनें न मान्युं अने संग्राम कस्यो,त्यां घणा उद्यमें शूरसेनने जीत्यो, तेने गाढा प्रहार लाग्या,तेथी अनुक्रमें मरण पाम्यो. देवप्रसाद राज्ये वेगे. पूर्वनी नीतियो थापी. प्रजालोक सर्व आनंद पाम्या. सदु सामंत राजा वश क स्या. देवप्रसाद महाराजा थयो.स्वनावेंज दयावंत कोइंजीवनी हिंसा न करे. ___एक दिवसें देवप्रसाद राजायें, उगता सूर्य सरखं ईशान कूणें अजुश्रा खं दी]. राजायें खबर काढवा प्रतिहारने मोकल्यो. प्रतिहार आवीने कहे वा लाग्यो. हे महाराज! आज कुसुमकरंमक नामा उद्यानने विषे दमसा र मुनिने केवलझान उपन्युं ले. देवता उत्सव करवा आव्या बे. तेनुं एअ जुवालुं ले. राजायें विचायं के, प्रनाते केवलीनां चरण कमल वांदीगुं. ए म चिंतवतां रात्री गइ. सवारमा राजा हाथीनपर बेसी बत्र धरावते, चाम र विंझावते, वंदना करवा बहार नीकल्यो. एवामां जे चाली शकतो नथी, मेष सरखो कालो ,नूखे कूरख पण नणी ,दांत बहार नीकल्या ,हाथ पग सूण्या , कोठें करीने कीडा पड्या , शरीर विणशी गयुं , अगणित माखीयें शरीर ढांक्युं छे, एवा प्रत्यक्ष पापना पुंज सरखा एक जीखारीने देखीने राजाने करुणा आवी. विचारवा लाग्यो के, अहो ! पूर्वनवें पाप कस्यां. तेनुं फल ए रांक नोगवे जे. अनुक्रमें उद्यानमां पहोच्यो.बत्र, बरी Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २२० प्रमुख राज चिह्न मूक्या, केवली जे नमस्कार करी उचित स्थानके बेशीनें राजायें पूब्युं, हे नगवन् ! में मार्गमां एक नीखारी दीठो तेनो पूर्वजव शीरीतें बे ते कृपा करीने मुऊने कहो. तेवारें केवली बोल्या. धनपुर नगरें, जयपाल नामे राजा, त्यां सामदेव ने वामदेव नामे वे जाइ वसे बे. एकदा डकाल पडे थके वामदेवें, सामदेवने कयुं, जोजन मल नथी तो डुकाल केम उतरीधुं ? माटें आपणे खाडो करीने याजी विका करीयें, एम निर्धारी बेहु घटवीमां गया, पारधी कर्म करवा लाग्या. एक हरणने देखी वामदेवें बाल मूक्युं, ते बारा हरणने न लाग्युं, पण वितव्यताना योगें एक जाडने अंतरे नासिकायें दृष्टि थापी, लंबायमान हाथ करीने एक मुनिराज कानस्सग्गे रह्या बे, तेमना मुख खागल पड्युं. ते बाल खोलतां खोलतां त्यां पडेलुं दीतुं. ते देखीने सामदेवनुं श्याम मुख थ ग विचारवा लाग्यो के, अहो ! में कार्य कस्युं, जो साधुने ए बाण लाग्युं होत तो मने नरकमां पण रहेवाने ठेकाणुं न मलत. पी मुनिने पगे लागीने खमावतो हवो, मुनि पण योग्यता जाली कान सग्ग पारीने धर्मकथा कहेता हवा के, जीवनी हिंसा करवी ते महाडुः खदायक बे, एथी नरकें जश्यें ॥ यतः ॥ सधे जीवा विइति, जीविनं न मरिजिनं ॥ तम्हा पाणवहं घोरं, निग्गंथा वजयंति णं ॥ १ ॥ जो कुइ परस्स हं, पावइ तं चैव सो अांतगुणं ॥ प्नंति अंबयाई, न हु निंब तरु मियवियंमि ॥ २ ॥ जो जीववहं कार्ड, करे एा खण मित्तमत्तणो ति ॥ बेयनेयपमुहं, नरयऽहं सो चिरं लहइ ॥ ३ ॥ जं दोहग्गमुदग्गं, जं जलोए हावहं रूवं ॥ जं खरस्ससूलरकय, खास सासकुठाइलो रोगा ॥ ४ ॥ जं कन्ननासकरचलण, कत्तणं जं च जीवियं तुष्टं ॥ तं पुन्वारोविय जीव, डरक रुरकस्स फुर फलं ॥ ५ ॥ नवजलहीत रितुघ्नं, महल्लकल्ला डु मम कुनं ॥ संजलिय सिवसुरकं, समुदयं कुंणह जीवदयं ॥ ६ ॥ ६ त्यादिक उपदेश सांजलीने सामदेव गुरु पासे निरपराधी जीवने हणवो नही, एवी विरति तो हवो. पी गुरुयें कयुं ए व्रत रूडी रीतें पालजो. जे माटे व्रत जंग कर ते महानर्थ जणी याय े. ते स्पष्ट समजाववा माटे इहां कुंदनामा कर्म करनुं उदाहरण कहुं बुं ते सांजलो. मंजीपुर नगरें एक कुंदनामें कर्मकर वसे बे. तेने सोरठ देशमां Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. मंजरीया नामें नार्या . कुंद प्रतियें घणो नश्क विनीत जे. एकदा मे घघोष नामें आचार्य वनने विपे पधाया ने, निरवद्य स्थानके नतस्या , एवामां कुंद पण काष्ठादिक लेवा निमित्तें वनमां जाय . तेणें वचमां आचार्यने दीठा. त्यारे अहो ! धन्य बे एमने एवं बहुमान याचार्यनी न पर नपन्युं. ते वखत नक्तिसहित वंदना करी, गुरुये पण योग्यता जाणी तेने धर्मदेशना दीधी. ते सांजली कुंद प्रतिबोध पाम्यो. कांक व्रत लेनं, एवी इलायें मद्यमांसनी विरति करीने पोताने घेर गयो. त्यां पोतानो सा लो प्रादुणो आव्यो बे, तेने माटे मांस रांध्यु ,ते एने पण पीरइयु, त्या रें एवं निषेध कस्यो. तो पण पोतानी स्त्रीना आग्रहथी घणो विकल्प क रतां मांस खाधुं. पनी घणो पश्चात्ताप करे , एवामां रात पडी. स्त्रीय प्रब्यू, निसासा केम नांखों बो? तेवारें एवं व्रतनंगनुं वृत्तांत संनलावीने कह्यु के, मुफने एनो महोटो संतापले. हे नमी ! तें महारा व्रतनो नंग कराव्यो. ते वचन सांजलीने तेनी स्त्रीने पण उग उपन्यो. ते बोली तमे मने केम न संनलाव्यु. अहोहो! तमे मने पण पापमां नांरखी हवे प्रजाते गुरुने पूबीने जे युक्त हशे ते करीगुं कुंदें पण युक्त वचन जाएीने मान्युं. प्रनाते लजावंत ने तो पण स्त्रीने साथें तेडी गुरु पासें यावी वेठो,पण लाजें करी बोले नही. गुरु बोल्या, ए रीतें आमण उमणो केम थयो बो? ते बोल्यो, हे जगवन ! पापी, बोलवा योग्य नथी, गुरु बो व्या, श्या माटे ? त्यारे तेनी स्त्री गुरुने प्रणाम करीने सर्व वृत्तांत कडुं. गुरुयें विचामु ए घणा रूडा डे के, जेना एवा परिणाम बे. एम चिंतवी ने बोल्या तमे खेद शाने करो बो ? झुं त्रुटो तंतु न सांधियें ? झुं विष्ठायें खरज्यो पग न धोयें ? तेम घणा पश्चात्ता करी अल्पबंध थाय. इत्या दिक देशना दीधी. तेथी बेतु जगने वैराग्य नपन्युं, मदिरा मांसनां व्रत लीधां ते नावथकी पालीने आनखाने क्ये मरीने श्रीकंचनामा देशने वि षे जयंती नामें नगरी त्यां कुरुचं नामें राजा तेने मंगला नामें राणी ते नी कूखे कुंदनो जीव पुत्रपणे आवी उपन्यो. तेज रात्रीने विष राजहंस मुखमा पेसतो स्वप्नमां राणीयें दीठो. जागी त्यारे नरिने विधिपूर्वक सं नलाव्यो. राजा बोल्यो, हे सुंदरी ! तहारे राजहंस पुत्र थशे. राणी प ण तहत्ति कही अंगीकार कह्यु. अनुक्रमें जिनेश्वरनी तथा मुनिनी सेवा करूं. Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २३१ एवो दोहलो उपन्यो, राजायें दोहलो पूर्ण कस्यो. अनुक्रमें पुत्रनो जन्म थयो, वधामणां थयां, शकुनने अनुसारें राजहंस एवं नाम दीg, निमि त्तियें कह्यु ए महोटा राज्यनो धणी थशे. अनुक्रमें पिता मरण पाम्यो. त्यारें राजहंसने बालक जाणीने तेनो काको श्रीचंद नामें हतो ते राज्ये बेठगे, राजहंसने युवराज पदवी दीधी. एवामा पूर्वनवें व्रत नंग कडे , ते दोघे करी तेनी उरमान माता रजा नामें हती तेणी विचायुं के, ए महारा पुत्रनो वैरी, जे माटे ए जीवतां महारा पुत्रने राज्य न मले. एम विचारीने तेणें राजहंस कुमरनी उपर कामण कयुं. तेथी थोडा दिव समां तेने जलोदर रोग थयो. राजायें औषध उपचार घणा कस्या, पण रोग न गयो. एवामां शत्रु राजायें पोतानो देश परानव्यो जागीने राजा धाड लेश्ने ते उपर चडी गयो. पण ते उर्गनूमिबलें जीताणो नही. तेथी तेनो काको श्रीचंद राजा त्यांज विनाश पाम्यो. हवे उरमान राणीना बलें करी परिवार पण राजहंसने कायर करे. त्यारें राजहंसें विचाओँ के, महारे घेर ते परदेश जाणवा माटे परदेश जq रुड़ ने. एम चिंतवीने घेरथी बानो नीकल्यो, महाकष्ट सहेतो, ग्रामानु ग्रामे जमतो, उजायणी नगरीयें गयो. रोगें अत्यंत ग्रहवाणो, चाली पण शके नही एवो थको एक देवकुलने विष रह्यो. त्यां दयायें करी लोक खा वाने आणी बापे, एम महाकष्टें दिवस काढे . ए अवसरें तेनी पूर्व जन्मनी नार्या मंजरी नामें हती ते पण आनखाने दये मरण पामी य की नऊयणी नगरीमा महासेन राजानी सेनानामें राणी तेनी कूरखने विषे देशणी नामें पुत्री थइ. तेने पण पूर्वना व्रतनंगदोपें करी रोग उपन्यो, ने ते औषधादिकें करीने पण न गयो, अनुक्रमें यौवन पामी, एवामां कांक रोग पोतानी मेले पातला पड्या. ए अवसरें महासेन राजा सेवकोने पूजे जे के.तमे कोना पुण्य इति विलसो बो? ते बोल्या. हे स्वामिन् ! तमारापु एये क रीने विलसियें बैयें. ते सांजलीराजायें सर्व सेवकोने यादर पूर्वक विसा . ते वात सांजलीने देणी हसती थकी बोली के, जू राजा लोकने मु ग्धतायें उगे ले. एवं बोली ते तेनी सोक मातानी दासीयें सांजव्युं. त्यारें दासीयें देणी कुमरीने पूब्युं, हे स्वामिनी ! एमां गुं खोढुं छे ? देशणी बो ली पारके पुण्य लक्ष्मी को नोगवे नही. ते व्यतिकरं दासीयें जश् राजाने Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. कह्यो, राजा कोप्यो,देशणीने बोलावी कह्यु, तुं कोने पुण्ये लक्ष्मी नोगवे ले? देणी बोली हे राजन ! परमार्थे पोताना पुण्ये नोगq . जे कारण माटे सर्व प्राणी पोताना कस्यां सुख दुःख नोगवे . पर तो निमित्तमात्र जे. ए q वचन सांजलीने राजाने अधिक कषाय जाग्यो, तेवारें कोटवालने तेडा वीने कह्यु के, तमे को अत्यंत दुःखीयो पुरुष दीठो होय तो तेने यहां वहेलो तेडी लावो. कोटवाल पण राजानुं वचन प्रमाण करीने नगरमां खोलवा लाग्यो. तेणें देवकुखमां राजहंसकुमरने महापुःखीयो दीठो, तेने राजा पासे लाव्यो. राजाय पण अवझायें करी तेने देणी परणावी दीदी ते वदवरने देश निकालो देने वली देणीने विशेषे कह्यं के, हवे तमे पो तानुं पुण्य नोगवो, कुमरीयें कह्यु प्रमाण ले. पली क्लेशे नगरी बहार नी कल्या,मार्गमा उत्तरापथ गामी साथ दोतो. देशणीयें सार्थवाह पासें जश्ने पोतानुं वृत्तांत संजलाव्यु, अने कह्यु के, ढुं महारा पितानो देश मूकुं, त्यां सूधी महारा नरिने ले चालो. ते सार्थवाहें अंगीकार कयुं, एक पामो बेसवा बाप्यो, अनुक्रमें एक देश मूकी बीजा देशे पहोच्या, साथ अटवी मां उतस्यो, देशणीये पण नरिने लेइने पासेना काडतले वृदना पत्रनो साथरो कयो. त्यांराजहंस बने देशणी पण नरिनुं शरीर जोती थकी बेटी ने. ___ एवामां कुमरनी माता मंगला राणी मरण पामीने ते स्थानके व्यंतरी थ. तेणीयें राजहंसने दीहो. तेनी उपर राग नपन्यो. त्यारे दिव्य श क्तियें इंजाल विकूर्वी,तेथी उदेहीना शिखरमांथी एक कालो सर्प निकट्यो, अने कुमरना मुखमांथी एक नज्वल सर्प नीकट्यो. ते सर्प एक बीजाना म म बोलवा लाग्या तेमां कालो सर्प बोल्यो,अरे दुरात्मा,तुं आ राजकुमरना नदरमा रहीने श्यामाटे एनो विनाश करे ? जे माटे इहां को जाण पु रुप नथी. नहीं कां राइ वाटी तक साथें एने पीवरावशे तो तुं मरण पामी श. त्यारें मुखमांथी निकलेलो उज्वलो सर्प बोल्यो, रे कामसर्प ! तुं जे इव्य ने अधिष्ठीने रह्यो बो, ते जो कोइ जाणशे तो तारो बिन्न खोदीने इव्य ल जाशे. ते सर्व वात देशणीयें सांजली. ा राजपुत्र , एम जाणी देणीने घणो हर्ष नपन्यो. चिंतववा लागी के,अहो ! एवं सत्य कह्यु ॥ यतः ॥ परस्परं च मर्माणि,ये रदंति मानवाः ॥ त एव निधनं यांति,वल्मीकोपरि Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २३३ सर्पवत् ॥ १॥ ते माटे मने रोग क्ष्य थवानो नपाय मल्यो. पण तात नो देश मूक्यो, तो हवे इहांज रहीने कांई क्रिया करूं. हवे खोलतां खोलतां एक गोकुल जडयुं. ते गोकुलना स्वामीने वात कहीने प्रार्थना करी. तेणे पण अंगिकार करी देणीने दीकरीपणे राखी. त्यारें सार्थवाहने प्रबीने त्यां रह्या. राइ वाटी तक साथें आपवाथी कुमर थोडा दिवसमा साजो थयो. विद्याधर सरखो अन्य स्वरूप थयो. देशणीह र्ष पामी. विशिष्ट गोरसें करी शरीरे पुष्ट थइ. एकदा देशपीयें पूज्युं. तमे कोण अने क्यांना वासी बो? राजहंसें पण यथार्थ वात कही दीधी. ते सांजलीने, देणी विचाओँ के, एनो विधाता अनुकूल थयो, माटे पोताने देश जq युक्त जे. पबीनतारने कयुं. आपणे पोताने देश जयें. राजहंस बोल्यो, जश्यें तो खरा पण गोकुलना धणीने अपंगार कस्या विना जq युक्त नथी. देशणीयें विचास्युं ए महासत्त्ववंत पुरुष देखाय ले. माटे संपदा पात्र थशे, पनी निधाननो व्यतिकर संजलाव्यो, तेणे पण सर्पनुं स्थानक खोदीने मांहेथी इव्य काढयु, ते गोकुलपतिने यापीने अनुक्रमें जयंतीनगरीयें पहों च्या. बहार उद्यानमां अंबानी बांयडीये बेठा बे. त्यां राजहंसने निश यावी. एवा अवसरेंते नगरीनो श्रीचंदनामें अपुत्रियो राजा मरण पाम्यो बे, नवो राजा शोधवाने पंचदीव्य अधिवासना करीने नीकल्या डे, फर तां फरतां नगरबहार राजहंस पासे आव्यां. जुए तो थांबानी बगया चली नथी. कुमरने मस्तके कलश ढाल्यो, हर्षे करीने नगरमा लाव्या, सर्वै मली राज्यानिषेक कस्यो,पुण्यना बलें सामंतादिकनो मान्य थयो. एम त्यां राज्य जोगवतां केटलोक काल गयो. ___ एकदा उजयिणीना महासेन राजायें सांजल्यु के, राजहंस चंपानगरी नो राजा थयो जे. त्यारें दूत मोकलीने कहेवराव्युं के, सर्व धन नंमार म हारीपासें मोकली देजे, नहितो यु६ करवा सऊ थजे. ते सांजलीने राज हंस बोल्यो, हे दूत, तहारो स्वामी महोटो छे, ते माटे प्रथमथी तो ढुं का ३ नही करूं. अने युम प्रारंज्या पड़ी तो वगर बोल्यो तत्काल जे नचित हशे ते करीश. एम कही दूत विसर्यो, दूत उऊयिपीयें गयो,सर्व व्यति कर महासेन राजाने संनलाव्यो, राजा सांजलीने कोपायमान थयो, तेज दिवसे प्रयाण कयुं, अनुक्रमें देशणी ए वात सांजलीने राजहंस राजाने 10 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. कहेवा लागी के, तमे पण सामा नीकलो. एम सांजली राजहंस पण बमणे प्रमाणे पोताना देशनी सीमा मूकीने महोटासैन्यनी सामग्रीसहित जश्ने पडाव कस्यो. बीजे दिवसे संग्राम थयो, घणा संग्रामें महासेन राजाने पाडीने बांधी लीधी. पली देशणीने बोलावी पूज्युं के, हवे गुं करवू युक्त ने ? देशणी बोली सत्कार करीने विसर्जवं ए सऊनने युक्त बे. राजायें प ण एमज अंगिकार कयुं, प्रहार जगाव्या, वणने विषे पाटा बांध्या, ते अ वसरें देशणीयें आवी प्रणाम करीने राजाने कह्यु, हे तात ! तमे प्रसाद करीने मुफने नार थाप्यो, ते महारं पुण्य जुन ? ते सांजली राजायें दे गीने उत्तरवी, पण बीजो जार कस्यो जाणीने राजा लाज्यो, देशणीयें स र्व वृत्तांत कह्यु, ते सांजली सामंतादिक सर्व हर्ष्या, जे ए कुरुचं राजानो पुत्र राजहंस कुमर ले, अने कुमरी पण महासेन राजानी पुत्री . माटे सरखो योग मल्यो ने. राजा पण विचारवा लाग्यो के, अहो ! में रूडं न कडे! जेमाटे सर्व को पोतानुज पुण्य जोगवे , एम देशणीयें जे कयुं हतुं ते सर्व सत्य बे. हवे राजाने व्रण रुकाया एटले विसर्जन कस्यो. ते राजा एम कहेतो गयो के हूं, वनमां जावं बूं. महारा पुत्र तमारा चाकर , तेनी संनाल करजो. ए रीतें राजहंस, राजाधिराज थयो. अनुक्रमें देशणीने पुत्र थयो, तेनुं राजमृगांक एवं नाम दीधं. एकदा राजाने एवी चिंता थके, मने शा कर्मना विपाक हशे ? ए य वसरे प्रतिबोधवानो समय जाणीने चार ज्ञानना धरनार श्रीज्ञाननानु श्रा चार्य त्यां पधास्या, पुरोहितें आचार्य- ागमन कयुं. राजा पण देण। संघातें वंदना करवा गयो, धर्म सांजव्यो, पूर्व योगें करी धर्म परिणम्यो.स रीने पूर्वा, में पूर्व शा पुण्यपाप कस्यां हतां के, जेथी ढुं सुख तथा उःख पाम्यो ? तेने गुरुयें पाबलो सर्व संबंध कह्यो, ते सांनती राजाने जातिस्मरण झान उपन्युं. त्यारे कहेवा लाग्यो के, हे नगवन् ! जेम तमें कर्तुं तेमज जे. परिजनने पण संनलाव्युं. व्रतनंगना अधिकार सांजलीने घणा लोक प्रतिबोध पाम्या. सिद्धांत सांजलवानी ना थइ. अणुव्रत अंगिकार कस्यां. धर्मना अधिकार घणा कस्या. घणा काल सूधी श्रावकपणुं पाल्यु. पुत्रने राज्ये थापीने, देणी तथा प्रधान परिजननी साथें राजहंसें चारित्रलीधं.सा धुपणुं पालीने स्त्रीन र वेदु ब्रह्मदेवलोके देवता थया, अनुक्रमें सिदि वस्या. Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३३५ एम व्रतनंगना विपाक सांजलीने सामदेव बोल्यो, हे नगवन् ! हुँ प्राण जतां पण व्रतनंग नही करूं. एवो नियम ले घेर गयो. वामदेवतो कर्म ना दोषे करी गुरुवचन पडिवजीने पण प्राणीना वध करवामां प्रवत्यो, मांसनहाण करवा लाग्यो, एवं देखीने सामदेव तेनाथी जूदो रह्यो, तेवारें वामदेव,सामदेव उपर कोप्यो थको जयपाल नामें राजा पासे गयो.ते रा जाने पारधी कर्म वहालुं बे. तेने वामदेव कहेवा लाग्यो के, हे राजन् ! सामदेव कहे डे के, जे पुरुष पारधी कर्म करे, ते महापापी जाणवो. ते सांजली राजा कोप्यो, सामदेवने बोलावीने पारधी कर्म कराववा साथें ले गयो, राजायें कह्यु,जो पारधी कर्म करे तो हूं पसाय करूं.सामदेव बोल्यो, जे प्राणिनी हिंसायें ऋदि पामीये ते कहियें सा! ते सांजली राजायें चा कर पुरुषोने कह्यु के,एना हाथमां शस्त्र बापो,जो ए. हरणादिकने न मारे तो एने मारो, चाकर पुरुषो पण तेमज सामदेवने मारवा लाग्या, तोपण तेरों को प्राणीनो घात न कस्यो. त्यारे राजायें विचारयुं. जे ए लोनथी किंवा जयथी पण जीव नथी मारतो ? ते माटे ए अंगरक्षक घणोज रूडो . एम चिंतवतो अनुक्रमें राजा पण जीववधथी वेगलो थयो. ए रीतें निरतिचार व्रत पालीने सामदेव सौधर्म देवलोके देवतापणें न पन्यो. वामदेवें पण पारधी कर्म करतां कोश्क कालें निरपराधी सूअरने मास्यो. सूबरें पण रोषे रातो थइने वक दाढायें करी तेनी ऊंघाउ बेदी नाखी. एटले नूमियें. पड्यो. सूअरे तेनुं पेट विदायुं. ते वामदेव रौऽध्या नना वशे मरण पामीने प्रथम नरके नारकी थयो. सामदेवनो जीव देव लोकथी च्यवीने हे राजन् ! तुं शहां राजापणे उपन्यो. अने वामदेवनो जीव पण नरकमांथी नीकलीने ए जुमक थयो . ए माटेज एने देखीने तने ल गार पण स्नेह न उपन्यो,एना अति उत्कृष्ट पा करीने तें एनो कां पण उपचार न करो. हजी पण ते पापने प्रनावें दीर्घ संसार रजलशे. तथा तें पूर्व नवें हिंसानी विरति करी, तेथी सैकडोगमे आपदा संघीने राज्य पाम्यो. ते सांजली राजाने जातिस्मरण ज्ञान नपन्यं. त्यारे कहेवा लाग्यो. हे मुनीश्वर ! जे तमें कयुं ते तेमज प्रत्यदपणे में दी. हवे पसाय क रीने मुझने सर्व जीवना वधनी विरति करावो. ते सांजली गुरु बोल्या, हे श्रावक ! सर्व जीवनी विरति तो चारित्र अंगिकार करो त्यारें थाय. रा Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. जा बोल्यो. हे स्वामिन् ! राज्य स्वस्थ करीने दीक्षा लेश्युं. त्यार पडी रा जायें,जय कुमरने राज्ये थापीने विजय कुमरने युवराज पदवीय थाप्यो. अने पोतें दमसार केवली पासे दीक्षा लीधी. तीव्र तपस्या करीने स्वर्गे गया. अनुक्रमें मोपण गया ॥ ए हिंसानी उपर देवप्रसाद, सामदेव अने वामदेवनी कथा श्रीसुमतिनाथ चरित्रमा डे. ॥ हवे त्रीखं पद कहे जे. न पेमरागा परमबि बंधो (पेमरागा के) प्रेमराग एटले स्नेहराग उपरांत कोइ (परमति के०) उत्कृष्ट (बंधो के) बंधन (न के०) नथी. एटले स्नेहराग ते महोटुं बंधन बे. ते न पर आईकुमारनो संबंध कहे . समुश्मध्ये आईपुर नामें नगर ले. त्यां आईनामें राजाराज्य करे जे. तेने आर्श एवे नामें राणी . तेने आईकुमार नामें पुत्र थयो. ते राजा ने एक दिवस श्रेणिक राजायें नेटणुं मोकल्युं , ते नेटणुं देखीने आ ईकुमरें पूज्यु. ए नेटणुं को, थाव्युं ? राजा बोल्या. महारा मित्र श्रे णिक राजा . तेणें मंत्रि साथें नेटणुं मोकल्यु बे. त्यारे कुमरे ते मंत्रि ने पूज्यु के, तमारा राजाने को गुणवंत पुत्र जे ? मंत्रि बोल्यो. अनय कुमार नामें पुत्र . ते सांजलीने अजय कुमारने योग्य नेटणुं जोइया प्यु. तेनी साथे पत्र पण लखी आप्यु. अने कह्यु के, या नेटणुं अनय कुमारने आपजो. तेणें पण राजगृहियें जश्ने राजानुं नेटणुं राजाने आ प्यु, अने कुमर, नेटणुं तथा पत्र अजयकुमारने आप्यु. अनय कुमार विचार कस्यो के, ए महारी साथें मित्रा करवा श्छे बे, अने महारी सा थे जे मित्राइ करे, ते तो अवश्य समकित पामे. एम प्रनुजीयें कह्यु ने. ते माटे ए कोई आसन्नसिद्धियो लघुकर्मी जीव देखाय जे. पण पाबले नवे व्रत विराधीने आव्यो , तेथी अनार्य देशमा उपन्यो . इत्यादिक विचारीने आचरण उपकरण सहित एक श्रीकृषनदेवस्वामीनी प्रतिमाने पेटीमां घालीने पोताना पुरुष साथे प्रतिबोध देवाने माटे बाईकुमरने मोकली. आईकुमार पण एकांते जर अपूर्व नेट जाणीने पेटी उघाडी. त्यारें जिन प्रतिमा देखीने विचारवा लाग्यो. या केवं बानरण दशे ? एम करी काने, कोटे प्रमुख पोताने अंगें मांमी जोइ, पण शोने नही. जेवटे थाकीने मुख आगल मांझी. त्यारे शोनवा लागी. वारंवार सामुंजोतां इहा Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३७ गौतमकुलक कथासहित. पोह करतां जातिस्मरण झान उपन्युं पाउलो नव दीठो. ते आवी रीतें: वसंतपुर नगरें सामायिक नामें कुटुंबी हतो. तेने बंधुमती नामें नार्या डे. एक दिवस धर्म सांजलीने स्त्री जरतार वेदुयें दीक्षा लीधी. निन्न निन्न विहार करतां एक नगरमां नेगा गया. नार्याने पिणे देखीने राग उपन्यो. ते वात आचार्ये जाणी प्रवर्तिनीने कहेवराव्युं के, बंधुमती या र्याने फाउँ बहार निकलवा देशो नही. ते कारण बंधुमतीये जाण्युं, त्यारें विचास्युं के, अहो ! धिक्कार पडो महारा रूपने. के. जे देखीने नारना चा रित्रमा परिणाम बगड्या ! एम चिंतवी थार्यायें अनशन कयं. अनुक्रमें काल करी देवलोके गइ. ते वात सामायिक नामा साधयें सांजलीने तेणें पण अनशन कयं. काल करी देवलोके देवता थयो. त्यांथी ज्यवी ढुं य नार्य देशे उपन्यो बुं. एवं ज्ञानमा देखीने अहो! अजयकुमार विना मने अनार्य देशमां कोण प्रतिबोध आपे ? एम घणो उपकारी जाण्यो; पण थ जयकुमारने मलवा माटे पितायें बाझाापी नही. पितायें तेने वैराग्यवं त जाणीने, पांचसे सुनटने रखवाला मूकीने कह्यु के,कुमरने नजरमा राख जो. एम करतां बहार रमवा जाय, घोडा दोडावतां एक पाटी पोतानो घोडो पागल काढे. एम करतां कोई वेला एक घडीपनी आवे. कोश्वेला बेघडिये पण यावे. एम विश्वास पमाडीने एक दिवस सदुने वंचीने दरि याने कांते गयो. त्यां जहाज उपर बेसीने बीजां सर्व जहाऊ साथें हंकारीने पारकांठे ले गया. कांते उतरीने त्यांथी आर्यदेवें यावी दीदा लेवानुं मन को. देवतायें वास्यो के, हजी तहारे नोगकर्म बाकी ले. तोपण न मानतां दीक्षा लीधी. विचारतां वसंतपुर नगरे पहोंच्या. त्यां कोई यदने देहेरे कानस्सग्गे रह्या , एवा समयमां पूर्वनवनी नार्या देवलोकथी ज्य वीने ए नगरमां शेठने घेर श्रीमती नामें पुत्री थइ , ते सखीयोनी साथें विहार काडा करवा भावी जे. त्या सर्व कुमरीयो पोतें पकडेला थांजाने नार करी माने , एवी क्रीडा करे बे. तेमां श्रीमतीना हाथमां मुनिनो पग आव्यो. तेणें सहसात्कारें कह्यु के, आ महारो वर. ते वेला देवतायें सोनैयानी वृष्टि करी. मुनितो पग बोडावीने जता रह्या. ते इव्य राजायें लेवा मांमथु. देवतायें निषेध कस्यो. ते सर्व इव्य देवताने वचनें शेतने घेर अनामत रारन्यु. कन्या पण बोली के, महारे आ नवमां तो एज वर Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. arat. पण बीजो नही. पठी ते वर पामवा माटे दानशालायें दान देतां बार वर्ष वही गया. तेवारें ते मुनिपण दैवयोगें तेज नगरें खाव्या. मुनियें जाएंयुं के नगरीत तेज, तथापि विचाखुं के, ते वातने बार वर्ष वहीं गयां, माटे वे कोण लखशे ? एम जाली नगरमां गोचरी फरतां तेनेज घेर याव्या. त्यां ते स्त्री पण मुनिने पर्गे पद्म फलकतुं धारी मूक्युं बे, ते नीशा नीयें उलख्या. अनुक्रमें राजा ने शेव प्रमुखें घणो याग्रह कस्यो. त्यारें मुनियें विचायुं के, अंगीकार न करूं तो कन्या मरण पामे तथा देवता ये पण दीक्षा लेवानी ना कहीं हती. एवं जाणीने पाणिग्रहण करूं. अनु क्रमें पुत्र याव्यो, तेने निशाले जणवा मूक्यो. हाईकुमार दीक्षा लेवाने नजमाल थया, ते सांजलीने श्रीमती रें टीयो ने कांतवा बेठी. निशालेथी पुत्र श्राव्यो. तेणें पूछयुं, रे माता ! आशुं मांमधुं बे ? माता बोली, रे वत्स ! तुं लघु बे, अने तहारो बाप दीक्षा ले ले, तो हवे महारे ए रेंटीयोज श्राधार वे.त्यारे पुत्र बोल्यो, हे मा ता ! महारा पिताने हुं नहिं जवा देनं, बांधी राखीश तमें चिंता न करो. एम कही सून कोकडी तापी हती ते जेइने पिताने पगें वींटवा जा यो. कोक ग्रंथे खाटला उपर बेठा हता तेमाटे खाटलाने चारे पासे सूत्र नो तो वटतो जाय ने कहेतो जाय के, पिताने बांधी राखुं बुं. एवा मर्मनां वचन सांजलीने श्राईकुमारें विचायुं के, जो जइनुं, तो बालक sहवाशे, दिलगीर थशे, माटे ननुं, जेटला तंतु हशे तेटला वर्ष र हिगुं. एवामां सूत्र वींटी रह्या पढी बालक बोल्यो, तमने बांधी राख्या बे. हवे क्यां जशो ? त्यारे तंतु गएया तो बार थया. याईकुमारें स्त्रीने कयुं हुं हजी बारवर्ष रहीश. ते पण अनुक्रमें पूर्ण थयां एटले वली पाहुं चारित्र लीधुं. हवे रखवाली करनारा पांचसें सुनटोयें विचायुं के, थापणे राजाने गुं मुख देखाडी यें ? एम चिंतवी खार्यक्षेत्रे खावी चोरी करी, वाटपाडु य पेट राइ करता रह्या बे. त्यां याईकुमार यावी चढया. तेने उलखीने ते पांचसे यावी पगे लाग्या. ऋषियें धर्मदेशना द, पांचसेने प्रतिबोधी दीक्षा दीधी. ते पांचसेने परिवारें परिवरया थका राजगृही नगरीयें प्रभुने याव्या जालीने त्यां जवा लाग्या. मार्गमां जतां गोसालो मल्यो. ते कहेवा लाग्यो के, क्या जाने बो ? मुनि बोल्या. श्री महावीर पासे जइतुं. गोसालो बोल्यो. Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २३ए ते वीर नथी. जे उग्र तप करता, वनमा एकांते रहेता, कोई साथे बोल ता नही, ते सर्व लोकने उगवा माटे करता हता, ते सर्वने ठग्या. हवे तो नित्य थाहार करे , स्त्रीयोना कुंममां बेसे , लाखोगमे लोकोने एक ठा मेलवे ने, चामर विजावे , बत्र धरावे , रूपुं सोनु तथा रत्नना गढ़ मां सिंहासने बेसे . माटे तुं जाणतो होश के, ते वीर , पण ते वीर नथी. मुनि बोल्या. वीर तेवाज . पूर्वे करता तेज करे जे. जे माटे पूर्व एवां कर्म हतां के, तपस्या करीने मौन रहेता, एकांते वनवास सेवतां, त्यारेंज ते कर्म खपे, अने हवे एवां कर्म के, बत्र चामर धरावे, देवता मनुष्यनी पर्षदा मध्ये बेसे, देशना दीये, त्यारें कर्म खपे. इत्यादिक युक्ति यें गोसलाने निरुत्तर करीबागल चाव्या. त्यां हस्ति सांकलें बांध्यो हतो, ते मुनिने देखीने सांकल नांगीने छूट्यो, सर्व लोकं नाता, हाथी आईकुमार ने पगे लागीने वनमां चाल्यो,गयो ते यशवाद नगरमां विस्तार पाम्यो, ते वात राजा श्रेणिकें तथा अनयकुमारे सांजलीने मंत्रिप्रमुख परिवारसहित त्यां प्राव्या. नमस्कार करी मुनिने पूजवा लाग्या, हे जगवन् ! हाथीने बं धनथी केम मूकाव्यो. मुनि बोल्या, ए सांकल त्रोडवी कांड कंठण न ला गी, पण सूत्रनां बार तंतु त्रोडवा घणा मुक्कर लाग्या. राजायें पूयुं. ते के म ? मुनियें आद्यथी पोतानुं वृत्तांत कह्यु. ते सांजलीने राजाने घणो हर्प उपन्यो. अनय कुमारने पण हर्ष उपन्यो, अने विचाओँ के, में प्रतिमा मो कली तेनुं आ फल थयुं . इत्यादिक हर्ष पामता घेर गया. मुनि पण श्री वीरस्वामी पासे जइ, नमस्कार करी, उग्र तप करी. दपक श्रेणि मांझी केव लझान पामी मोदं गया ॥ इति श्री सूत्ररूतांगनियुक्तौ आईकुमारकथा ॥ हवे चोथा पदनो अर्थ कहे . न बोहिलाना परमजिलानी. (बोहि लाना के ) समकितरूप बोधिबीजसमान बीजो कोइ (परमबि के० ) उ कष्ट (लानो के०) लान (न के०) नथी॥ यतः ॥जह चिंतामणि मणिणं, कप्पतरू तरुवराण जह पवरो ॥ तह सम्मत्तं वुत्तं, पवरं सबाग वि गुणा ॥ ॥ परकीण परिकराड, सुराण इंदो गहाण जह चंदो ॥ तह सम्मत्तं पवरं, नणियं सहाण वि गुणा ॥ २ ॥ अमयं सवरसाणं, नरवराण च की मुगीण गणनाहो ॥ तह दंसणपसबं, जागह सबाण वि गुणाणं ॥३॥ जं संमत्त विनत्ता, निरवयं पालिनण ज किरियं ॥ गेविषं पि दु पत्ता, पुणो Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. वि नमिरा नवमपारं ॥ ४ ॥ नरयाइसु उरकाइ, सहति अस्सहाई शह जीवा ॥ न य तेसिं सिवगमणं, मोत्तुं सम्मत्तसंपत्ति ॥ ५ ॥ सम्मत्तं पुण पत्ता, अंतमुदुत्तं पि जंति मुरकंमि ॥ आसायण बदुला वि दु, अवहपरिय हमनंमि ॥ ६ ॥तो अश्यार विमुक्कं, धन्ना पालंति केइ सम्मत्तं ॥ धन्नाण वि धन्नयरा,जे तं जयंति बन्नेसिं ॥७॥ इहां चंपकमालानुं उदाहरण कहे . __ जंबुद्दीपना नरंतदेवमां विंशाला नामें नगरीनो ललितांग नामें धर्मवंत राजा हतो. तेने शीलवंती अने धर्ममां उजमाल एवी प्रीतिमती नामें नार्या हती. तेने पांच पुत्र उपर एक चंपकमाला नामें पुत्री थ. ते पुत्रीने कुमुद चंद पाठक पासे जणवा मूकी. अनुक्रमें लक्षण,साहित्य,ज्योतिष प्रमुख शास्त्र जणी. एकदा राजा, सामंत अने मंत्रिमंगल प्रमुख कचेरी मेलवी बेगे . तेवामा प्रतिहारें यावीने कह्यु,हे स्वामिन् ! कुणाला नगरीनो स्वामी अरि केसरी नामें राजाधिराज तेनो अमरगुरु नामें प्रधान पुरुष इहां आव्यो बे. ते सांजली राजायें कडं, तेने वहेलो मोकल. तेरों पण तत्काल मोकल्यो. राजायें पण ननो थर आलिंगन देने तेने उचित स्थानकें बेसाज्यो. अने अरिकेसरी राजानुं देमकुशल पूब्युं. एवा अवसरमां चंपकमाला पण सखीयोयें परिवरी अध्यापकसहित राजा पासें यावी. राजायें तेने खोलामा बेसाडीने पूब्युं. रे वत्स ! तुं गुं जणी बो ते कहे. त्यारे कुमरी कांबोली नही. ते जो कुमुदचंद उपाध्या य बोल्या हे राजन् ! ए बोली नही पण घणा शास्त्रना परमार्थ जाणे . त्यारें अमरगुरुये विचास्युं. के,जो एअरिकेसरी राजानी स्त्री थायतो घणुं रूडं थाय. एम विचारीने अमरगुरु बोल्या रे राजपुत्री ! तें चूडामणी ग्रंथनो अन्यास कंस्यो ? कुमरी बोली कांक कस्यो बे. त्यारें अमरगुरु बोल्या कहो, तमारो नार कोण थशे ? क्यारें थशे ? केटला पुत्र थशे ? अने के टली पुत्रीयो थशे ? ते सांजली कुमरी लाजथकी बोली नही. उपाध्याय बो व्या. तुं लगायें नथी बोलती पण विद्यानी हेलना थशे. त्यारे विचारीने कुमरी मधुर वचन बोली. अरिकेसरी राजा एक वर्ष पड़ी महारो नर्त्तार थशे. बार वर्ष सूधी राग रहेशे. पडी मास सूधी राग उतरशे. पनी वली राग थशे. वे पुत्र थशे. एक पुत्री थशे. एटली वात तो पूबी ते कही. पण हवे कांक वगर पूर्दा कडं बुं, ते सांजलो. Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २४१ तमारो पुत्र श्राजथी दशमा दिवस उपर मरण पाम्यो . तेज रात्री तमारी स्त्री बीजो लक्षणवंत पुत्र प्रसव्यो . ते सांजली हर्षविषाद सहित मंत्रि पूबवा लाग्यो. पुत्रने परलोके जवानुं कोण हेतु थयुं ? त्यारे कुमरी चूडामणी ग्रंथना परमार्थे विशेषे विचारीने बोली. ज्यारे तमे राजानीया झायें महारा पिता पासें आववाने चाल्या, त्यारें तमारो पुत्र पण तमारी साथें नीकल्यो. वाटमां थाक्यो तेथी तमें मूक्यो, तेवारें मनमां अपमान धारतो पाडो गयो. पोताना मित्रो साथे क्रीडा करतो काल गमावतो एक दा मंत्रिमंमल साथें तमारा पूर्व पुरुषनो खड्गं लेइने उजाणीये जवा मांमयुं. त्यारें मातायें कह्यु, रे वत्स ! ए खड्गरत्न पूजवा योग्य जे. एने हलावियें नही. माटे एने सकीने जा. ते सांजलीने पोताना यात्माने अ पमानतो राते सर्व परिवारसहित माता सूतेथके, कुमर हलवे हलवे घरमांथी नीकलीने उपवनमा जइ वाव्यमा पज्यो के, तेज वखत प्राण जता रह्या. माता प्रमुखें सर्वत्र खोल्यो, पण जड्यो नही. तेथी तमारी पासे माण स मोकल्यो बे. ते हमणां आव्यो बे. एवी वात करे , एटले ते माण स पण याव्यु. तेणें जेम कुमरीये का, तेम सघटु समाचार कह्यु. अम रगुरु बोल्यो. हे राजन् ! तमारे घर आ प्रत्यक्ष सरस्वती अवतरी जे. आ स्थान सनाना लोक सर्व, कुमरीनी घणी प्रशंसा करवा लाग्या. हवे कुमरीयें ज्यारें उपवा मांमधु, तेटले राजायें अंगलम बानूषण कुमदचंदने बाप्यां.बीजा सनालोकें पण आप्यां. बीजं लाख सोनैयानुं आसन आप्यु. चंपकमाला अने अध्यापक पोताने ठेकाणे पहोता. रा जा अमरगुरुने कहेवा लाग्या के, राजायें संदेशो कह्यो होय, ते संदेपें कहीने उतावला घेर जा. त्यारें अमरगुरु बोल्या, तमारा देशनी सीमा ये गढ , ते अमने आपो. त्यारें ललितांग राजा बोल्यो. सर्व राज्य अ रिकेसरी राजानुं . गढनो शो नार ? अमरगुरु बोल्या. तमारा सरखा सऊन कोण हशे ? के,जेणें गढ थाप्यो. एम कही कुणाला नगरीयें गया. अरिकेसरी राजाने ललितांग राजानुं नेटणुं बाप्यु. सर्व वृत्तांत संनलाव्युं. कुमरीनु पण सर्व वृत्तांत को. त्यारें राजा बोल्यो, तहारो एटलो प्रमाद थयो. जे कारणे ते बाला ते मागी नही. तेथी जो ते कोइ अन्य राजाने थापशे तोमने नेत्र थापीने उलाली लीधां एवं थशे. त्यारे श्रमरगुरु बोल्यो. ते Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४३ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. कन्यायेंज एक वर्ष पनी तमे वरशो, एम कडं जे. राजा बोल्यो, तोपण न जरें दीठा विना मने तृप्ति न थाय. ते माटे वली प्रार्थना करवाने मिः त्यां जा. हुं पण माहारो वेष बदलावीने तहारी साथै बचकानो जालनार थश्ने थावीश. एम निरीि अमरगुरु प्रधान पोतानी साथें लश्कर ले। त्यां गयो. राजा पण साथै गयो. ललितांग राजाने अमरगुरु मल्यो. राजायें उचित यासने बेसाडी तरत पाढा आव्या, माटे अरिकेसरी राजानुं कुशल पूब्युं फरी शीघ्र याव्यानुं कारण प्रत्यूं. त्यारें अमरगुरु बोल्यो. महारे मुखें तमारी पुत्रीना गुण सांनतीने अरिकेसरी राजाने घणो राग उपन्यो. एक वर्षनी ढील जाणी तो पण जोवाने मन घणुं उत्सुक थयु. जो राजा कुमरीने न देखे, तोप्राणत्याग करे. ते माटे जेम तमने घटे तेम करो. एवी वात करतां कुमरी पण सरखी वयवंती सखीयोनी साथें पिताने पगे लागवा सारु त्यां यावी. राजायें खोलामांबेसाडीपूज्युं, रे वत्स! ए अमरगुरु शे कारणे या व्या ? कुमरी बोलो एना बचकानो जालनार ते राजा पोते ले. ते सांजली ने विस्मय पामी. ललितांग राजायें आसन थकी तीने बचका जालना र अरिकेसरी राजाने प्रणाम कस्यो.अपर आसने बेसाड्या. पनी कुमरीने तातें पूब्यं. तहारा पाणिग्रहणनो वर्ष दिवसनो विलंब शा माटे ? कु मरी पोताना पगना अंगुठा सामुंजोइने बोली नही. ___ त्यारे पितायें ज्योतिषीने बोलावीने पूब्युं, कुमरीनुं लग्न जोड्ने कहो. ज्योतिषी बोल्यो, या वर्षमा रुडं लम नथा. जे कारणे सूर्यदेवें वृहस्प ति आव्यो २ ॥ यउक्तम् ॥ गुरुदेवगते नानौ, नानुदेवगते गुरौ ॥ विवा हादि न कुर्वीत, वांबन् गुनपरंपराम् ॥ १ ॥ तेरस मासे अहिए, गुरुस्स एगंमि हो रासिम्मि ॥ जं नुत्ति तो वरिसे, गयंमि वसाह मासस्स ॥ २ ॥ एटले वैशाख शुदि अगीयारश उत्तराफाल्गुनीने पहेले पायें ह र्षण योगें सूर्य नाथी दशमे नत्रे गुरू जन जे. जे कारणे पांच ग्रह ने बलें युक्त सूर्य तथा शुक्र उंच स्थानक पाम्या डे. लतापातादिक दोष रहित ले. ते लमदिवस लखावीने पुरोहितने आप्यो. ज्योतिषीने यादर सत्कार करी विसर्जन कस्यो. त्यार पली अरिकेसरी राजाने लक्ष्पाक तेलें मर्दन करावी, नवरात्रीने, वस्त्रादिक पहेरावी. देहेरासरने विषे लावीने फू लगंधादिक थाप्या. ते राजाय पण व्यवहार थकीज पूजा प्रणाम कस्यो. Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासदित. २४३ पली जोजनशालायें लावीने परिवारसहित नोजन कराव्युं, घएं आदरस न्मान देश हाथी, घोडा, रथ, रत्न, बानूषणें पहेरामणी करी सिंहासने बेसाडीने ललितांग राजा एम कहेतो हवो, हे राजन् ! मारवाडनी धर तीयें फरतो हंस क्याथी आवे ? अने आवे तो केटली वार रहे ? तेम थ मारे घेर तमे आव्या. माटे ज्यारें घेर पधारशो त्यारें चंपकमाला तमारी साथै आवशे. ते सांजली राजा बोल्यो. उचितना जाण, कालना जा ण, धीर, वीर, सङनमा धोरी एवा तमारा. सरखा बीजा कोण थशे ? तमाळं लावण्य, तमारो स्नेह, तमारो विनय देखीने ढुं तृप्ति पामतो नथी. पण चंपकमाला साथें न यावे त्यां सूधी जे जाण्युं कार्य ते अधुरुं. ते सां नलीने तरत चंपकमालासहित राजाने विदाय कस्यो.ललितांग राजा तेथ रिकेसरी राजाने वोलावीने पोताने स्थानके आव्यों, अरिकेसरी राजा पण पोताने नगरे पहोच्यो. चंपकमालाने एवो प्रासादाप्यो के, पोताने स्थान के बेग चंपकमालानुं दर्शनराजाने थाय.निरंतर चंपकमालाने यावासे जाय. एक दिवस राजाअमरगुरुने साथै खेश्ने राणीपासें गयो.अमरगुरु बोल्यो कांक कलाविचार कहो. ते बोली. विविध प्रकारनां दर्शन , तेमां तमारें कयो धर्म मान्य छे ? अमर बोल्यो. ए प्रस्ताव विनानी शी वात कहो बो ? ते बोली. प्रस्ताव विनानी केम कहो बो ? जे कारणे सर्व कलामा प्रधान या लोक अने परलोकनो साधनारो तो धर्म डे ॥ यतः॥ बावत्तरी कला पं, कि या वि पुरिसा अपंमिया चेव ॥ सव्व कलाणं पवरं, जे धम्मकलं न जाणं ति ॥ १ ॥ अमरगुरु बोल्यो इहां कोई विचार करवो नथी. जेना पूर्व पुरुषे जे धर्म सेव्यो ते तेनो धर्म जाणवो. जेम माता उःशील होय,अथवा सुशी ल होय, तेना विचारनुं गुं प्रयोजन के ? तथा रोगीने औषध साथै प्रयो जन पण वैद्य गमे तेवो होय. तेनो प्रयोजन नथी. तेम पोताना गुरु प्रमुखें यज्ञ प्रमुख धर्म जेम कह्यो ते प्रमाण. बीजी चिंता करवानुं गुं प्रयोजन ? ___ एम अमरगुरु बोली रह्यो.त्यारें चंपकमाला बोली. तमें कडं ते खरूं हशे, परंतु तमारा सरखा पंमितने एम बोलवू घटे नही. जे कारणे धर्म, अर्थ अने काम ए त्रण पुरुषार्थमां धर्म पुरुषार्थ ते परम पुरुषार्थ जे. जे माटे धर्मथी अर्थ अने अर्थथी काम निपजे . ॥ यतः ॥ धर्मादर्थोऽर्थतः कामः, कामात्सुखफलोदयः॥यात्मानं हंति तो हत्वा, यो युक्त्या न निषे Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. वते ॥ ते माटे धर्मनो विचारतो करवोज घटे . वली तमें कह्यु के, पूर्व पुरुषनो क्रमागत आव्यो ते धर्म,ते युक्ति पण घटे नही. कारण के, पूर्व पुरुष दरी होय अथवा रोगिष्ठ होय, त्यारे तेना पुत्र थाय ते पण गुं रोगीपणुं तथा दरीपिणुं न बांके ? तेम मातानो दृष्टांत दीधो ते पण अयुक्त . जो माता दुःशील होय, अने पुत्र तेनो त्याग न करे, तो ते माता पुत्रने मारे. तथा औषधनो दृष्टांत दीधो ते पण युक्त नथी. इहां वैद्य स्थानीय गुरु लेवो; तेपण रागषरहित, परमार्थनो जाए एवो होवो जोश्ये. तेवा गुरु तो अरिहंत पोते अथवा तेमनी आणाये चालतां कालोचित यतनायें वनता मत्सरर हित एवा गुरु सुसाधु ने अथवा रागादिकें रहित एवा पोतें श्री अरिहंत देव .तेवा बीजा देव नथी. ते सांनजी राजा बोल्यो. इहां युं प्रमाण देखाडो बो ? कुमरी बोली, सर्व शास्त्रमा जे देव कह्याने तेमां देखीये बीयें के, पूर्व सृष्टिनो संहार करवो, नवी सृष्टि उपजाववी, वली स्त्रीने पासे राखवी, शस्त्र धरवां, जपमाला धरवी, इत्यादिक सर्व राग शेषनां लक्षण बे. माटे ते देव नही. इत्यादिक युक्तियें करी निरुत्तर कयां. त्यारें अमरगुरु बने थरिके सरी राजा सम्यक्त्व पाम्या. निश्चलचित्त थया. अमरगुरु बोल्या तें अमने जैनधर्ममा थाप्या माटे संसार समुश्मां तुं अमने जहाजसरखी थ. ___एम करतां एक वर्ष ते एक युगसर कष्टें गमाव्यु. पड़ी लमदिवसें राजा परण्यो. ते स्त्री साथें देवतानी पेठे विषयसुख जोगवतां गयो काल पण जाणतो नथी ! एकदा रात्रीना प्रथम पहोरे चंठ उपर चढीने दक्षिण दिशे जाउं बु एवं स्वप्न देखीने अमरगुरु जाग्या. पनी विचाओँ के, जो ए साचुं स्वप्न हशे तो हवे महारूं यायु अल्प जागवू. एम चिंतवीने राजाने कर्यु के, राणीने महारुं शेष आन पूबो. त्यारें राजा अमरगुरुने राणी पासे लेश याव्या. गुरुयें राजाने कह्यु के, तमे पूडो. एवामां राणीयें वगर पूछे सर्व व्यतिकर संनलावीने कयुं के, दश महिना धानखं बाकी ले. ते सांन लीने फरी पूब्युं हे धर्ममाता! महाराधर्मगुरु क्यां ले ? राणीबोली. इहांथी सो योजनें पुराणपुर नगरें . ते सांजलीने अमरगुरुयें राजा राणीने खमा व्या. राजा बोल्यो. जे इहलोक तथा परलोकना सुखनु कारण एवी चंपकमा लाने देशांतरथी तमे लाव्या. ते तमारो वियोग दुःख महाराथी कोइरीतें नह। खमाय एवो डे. ते वेलाराजायें अमरगुरुना पुत्रने तेडावीने अमरगुरुना पर्दे Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . गौतमकुलक कयासहित. ४५ थाप्यो, धमारीनो पडह वजडाव्यो, बंदीखानां बोज्यां, दीन श्रनाथने दा न दीधां,अमरगुरुपण साधर्मिकने सन्मान देश, जिनमंदिरने विषे पूजा रचा वी, अहा महोत्सव करावी, धर्मकार्ये घणुं श्व्य व्यय करी, शूर वीर सुन टने सखाइलेश, राजाने पूजीने दीदा लेवा चाल्या. राजा वलावीने पाडा वल्या. अमरगुरुये श्री समयजलधि नामें केवलीनी पासे चारित्र अंगीकार कयुं. चारित्र पाली केवलज्ञान पामी मोद पधाया. हवे राजानी जे पूर्वली पटराणी , ते चंपक्रमालानी उपर क्षेष धरती रहे . तेणीयें सुलसा नामें परिवाजिकानी घणी सेवा करीने कडं के, हे जगवती! चंपकमालाने कांक कलंक थापो, जेथी राजा विषमिश्रित अन्न नी पेठें एनो त्याग करे. परिव्राजिका बोली. ए राजा, चंपकमालाना ज्ञान गुणें रीजयो थको एने बहुमान दे दे. वली राजा मूढ आत्मा थको विचा रे, जे परम पदनो हेतु जैनधर्म . ते धर्म एवं मुझने पमाड्यो. एवं जाणी एने बहुमान दीये . ते माटे हुंए चंपकमालाने धर्मथी भ्रष्ट करूं, त्यारें राजा पोतानी मेलें चिंतवशे के, ए जेम मुखथी कहे , तेम करती नथी. तेथी एनो त्याग करशे. माटे पहेलां एने धर्मथी भ्रष्ट करवानो उपाय करी ने पनी कलंक देवानो उपाय करीश. एम राणीने कहीने ते परिव्राजिका पो तानी.मेडिये गइ. चंपकमालाने जैनधर्मथी भ्रष्ट करवानो निरंतर उपाय वि चारतां चिंतवतां जाण्यु के, एने पुत्र नथी. माटे प्रनाते जश्ने एने पुत्रनो उपाय कढुं, एम चिंतवीप्रनाते चंपकमालाना वासनुवने ग. आशीष देश्ने बेठी. एकांते चंपकमालाने कहेवा लागी के, तमारे पुत्र नथी अने पुत्र विना जो न रखें घणुं प्रेम होय तोपण पातलुं पडे, वली पुत्रविना सजति न होय, माटे पुत्रप्राप्तिनो उपाय हुँ कहूं ते करो. या मूली तथा मंत्रेपवित्र रक्षा लेने स्नान करो, तथा तर्पण करीने कालीदेवीनी पूजा करो, काली देवीपासे पुत्र मागो, एम करतां तमारे पुत्र थावशे. ते सांगतीने चंपकमाला सम्यक्त्वमा दृढचित्त राखीने बोली. रे धूर्त! एम बीजा लोक धूताय. पण जे धर्मे नावित होय, जेणें संसारने सुःखरू प जाण्यो होय, ते धूताय नही. पुत्रविना जरतारनुं प्रेम पातर्बु पडे एम जे तें कयुं ते मूर्खनुं वचन जाणवू.जे माटे चक्रवर्तिनी स्त्रीरत्नने पुत्र क्या थाय ने ? अने स्नेहतो भाखा नवपर्यंत रहे बे. वली तें कयुं के,अपुत्रियाने Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. सजति न होय, ते पण अज्ञानविलास बे. पुत्रतो थब्रह्मनो हेतु . माटे ब्रह्मचर्य ते धर्म जे. अने धर्मथी सजति . तथा पुत्रथी जो स्वर्ग होयतो नूंम, शूकरी, कूतरी अने कूकडी प्रमुखने सजति थवी जोश्ये. 'तथा रक्षा प्रमुखें पुत्र थती होयतो, जगत्मां को अपुत्रियो न रह्यो जोश्ये. वली कालीदेवीनी पूजा करो, इत्यादिक जे तें कडं ते कालीदेवी कोण ? ते जो मदिरामांसमां गृह होय तो तेमां देवपणुं पण जे मूर्ख होय ते माने. ते माटे एक जिन अने ते जिनमतमा रहेला जनो तेने टालीने बीजाने हुँ पगें न लागुं. हे नूंमी ! हाथी उपर चढीने गर्दननी असवारी कोण करे ? एम युक्तिये निवारी तोपण ते धूतारी उठी नही. त्यारे प्रतिहारीपासे बाद जालीने काढी मूकावी. तेथी ते परिव्राजिका, कषायें धमधमती की पूर्वसाधित विद्या संजारती हवी. एटले ते विद्या प्रावी. विद्या बोली मुझने केम संनारी ? परिव्राजिका बोली. ए पापणी चंपकमाला पोताना झानें गर्ववंती थकी महारी पण अवज्ञा करे ! माटे ए जीवती थकीज शारीरिक तथा मानसिक दुःख जोगवती रहे, अने राजा एनो त्याग करे, एवं कुशील, कलंक चढावो. हवे जेटले चंपक मालाना वास नवनमां राजा याव्यो, एटले विद्या देवीयें एक पुरुष देखाज्यो तेने जेवामां राजा रूडीरीतें जोवा लाग्यो. एवामां ते पुरुष अदृश्य थयो.त्यारे राजा सहसात्कारें विस्मय पाम्यो थको चिंतववा लाग्यो. जे एना रूपें मोह्यो थको कोक विद्याधरें प्रार्थना करे थके तेने. एणीयें अगीकार क यो देखाय !! माटे धिक्कार पडो स्त्रीना स्वनावने ! स्त्रीने कोरीतें हाथ मां सेवाय नहीं. पण जे तेना मनमां गम्युं ते खलं. ए जिन वचनें वासि त, निर्मल कुलनी उपनी,वली धैर्यवाली बतां पण जो कुशीलता सेवे ,तो बीजी स्त्रीनी शी वात कहेवी! एम विचारीने राजा विरक्तमन थको चिंतवे ने के, हवे ए स्त्री नोगयोग्य तो नथी; तोपण एणीयें मुझने जैनधर्म पमाड्यो. ए महोटो नपगार कस्यो . जेनो लाखो नवसुधी पण प्रत्युपकार करीन शकीयें. माटे एनी साथै नित्य बालाप संताप तो करवो परंतु कागडे वि टाट्युं जोजन खावा कोण हे ? ए रीतें ते साथे नोगनुं मन गोपवीने इंगित आकार गोपवीने राणी पासे गयो. राणी पूर्वनी पेठे उनी थइ. राजा पोतें पण दणेक शय्या उपर बेसीने उग्यो. एम राजा निरंतर जाय, वात वि Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २४७ गत करीने उते, पण नोगनी वात करे नही. त्यारें राणीयें विचायु के, राजा मंदस्नेही शा कारणे थयो हो ? जेमाटे कणेक श्रावीने जतो रहे वे. त्यारे शब्दना अदर लेख्ने चूडामणि ग्रंथनो उपयोग दीधो तेथी जाण्यु के, ए परिव्राजिकानो विलास बे. तोपण परिव्राजिकानी उपर लेश मात्र खेद धयो नहीं. जाण्यु के महारे ब महिना सूधी नोगांतराय . ते का ढवाने ए निमित्त थ . तथा एमां अंतराय पण शो में? एतो अज्ञानी जीव मोहवशे अनादि कालनो अन्यास सेवे . माटे विशेष धर्मने विषे उद्यम करवो घटे जे. ते धर्म सकल सुखनुं कारण ने. पनी ते राणी, कोक दिवस मधुर कंवें सप्लाय करे, कोक दिवस सु गंधी फूलें देवपूजा करे, कोइक दिवस संसार स्वरूप नावे, कोश्क दिवस देवगुरुना गुणग्राम करे. एम दिवस गमावे के वली सखियो सहित सा मायिक प्रतिक्रमण करे. एम अरतिरहित रात्रिदिवस गमावे . एक दिव स महार्दिक सखी राणीने पूब्युं. तमारा उपर राजानो मंदस्नेह केम दे खाय ? चंपकमाला बोली, चंडमानी कलानी पेठे स्त्रीने नारनो स्नेह घटे पण खरो, अने वधे पण खरो. वली हे सखी ! वात सांजलो, विषय नां सुख किंपाक वृदनां फल सरखांबे. देखातां तो रूडां पण अंते प्राण हरे, एवा अने वली पोतानी मेलें न संपजे तो तेमां अयुक्त ? सखी बोली. एमज हो. पण लोकमां पर पुरुषना संगमनो अपवाद चाल्यो जे. ते सांजलीने सऊबोनां हृदय बले . चंपकमाला बोली, लोकमां शी रीतें वात चाले ? सखी बोली. कोक विद्याधर तमारी सार्थे रमे ले. चं पकमाला बोली तें साचुं कह्यु. में पण चूडामणि ग्रंथें करी जाण्यु, लोक मां अपकीर्ति पण परिव्राजिकायें करी. तथापि हवे एवो उपाय करीशु के, जेम तमारा सरखां सऊनोनां मुख उज्वल यशे. एम सांजलीने सखी न ती. एटले राजा आव्यो. चंपकमाला बोली हे राजन् ! तमे नरमांचूडामणि रत्नसरखा बगे. तमारा गुण कोण गणी शके ? जेरों प्रत्यक्ष दोष देखीने पण महारी उपर एटलोराग राख्यो. तथा बांच्या नोजननी पेठें तमे महाराथी जोग बमयो. ते में चूडामणीग्रंथना उपयोगे जाण्यु. शय्याने विषे महारी साथें रमतो पुरुष तमे दीठो. तथा लोकमां पण अपकीर्ति थ. ते पण में ज्ञान उपयोगे जाण्यु. ते कारणे लोक प्रत्यक्ष तमे मुझने आकरूं धीज Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ចុមច जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. करावो. जेथी महारं अपजस टले. राजा बोल्यो, क्यारें करावियें ? ते बोली प्रनातें करावो. राजा बोल्यो. झुं धीज करशो ? ते बोली, नगरना महर्दिक लोक कशे ते करीगुं. राजायें हाकार मान्यो. राणीने पूीने उग्यो. रा जा अन्य स्थानकें जा सूतो. पाबली राते जाग्यो, त्यारें विचारवा लाग्यो. के, राणी धीज करशे, अने जो कदाचित् शुभ थशे नहि त्यारें थमने बमणी अशाता थशे.इत्यादिक मोलायमान हृदयथका प्रातःकाल थयो, राजा सना मध्ये थाव्यो. परिजनने तथा नगरना लोकोने तेडाव्या. राजा बोल्यो, चंपकमाला कुशीलणी , एवो लोकमां पडधोष चाल्यो , ते रापीयें सां जल्यु. हवे कहे जे के, धीज करीने शुरू थश्श, तो जोजन करीश. ते मा टे तप्तमाषनुं धीज करावीयें, तेनी सामग्री तैयार करो. त्यारे ते बोल्या. पामरलोकना वचन मात्र एव९ करवू घटे नही. राजा बोल्यो. जे अवर्ण वाद विस्तस्यो ते महोटा पुरुषनो महिमा हणे. गामना मुखें गर| बंधाय नही. ते सांजली लोक बोल्या, जेम आपने गमे तेम करो. त्यारें राजायें दिव्य स्थानके जश्ने राणीने तेडवा मोकली. राणी पण पौषध पारी, विधि पूर्वक देवपूजा करी, शिबिका उपर बेसीने त्यां यावी. मुलह देवी प्रमुख अंतेनर पण जवनिकाने आंतरें राजानी आझायें जोवा बेग, लोकमां को लाहल थ रह्यो. जे आज देवी गुरू थशे. हवे कारणीया पुरुष जाज्वल्यमान अनि तैयार करी तेमां प्रचुर तेल घालीने कढा चढावी. पनी जेटले मांहि माष (अडद) नांख्या एटले सहसा कारें प्रलयकालनी अनि सरखी अनलज्वाला उठी, तडतड करी थाकाश विवर पूरी काढया, खडहडाट करतां प्रासादनां शिखर त्रुटी पड्यां, माता पुत्रने मूकी नासती हवी, पुत्र माताने मूकीने नासवा लाग्या, प्रासादने अग्रे, कोइ कोट उपर चढे बे, को पोकार करे , कोइ विलाप करे , को हाहाकार करे ले, रे पुत्र! रे माता! रे पिता! इहां अमारी शीग ति थशे ? अमने राखो, इत्यादिक लोकनो शब्द विस्तार पाम्यो. एवामां आकाशें रही शासन देवतायें कह्यु. ए हजी थोडं ? परंतु चंकला सर खी निर्मल स्त्रीनुं अपजस बोलता एवा तमे पोताना आत्माना वैरी बो. माटे जुन हवे गुं थाय के ? ते सांजलीने लोक नये बीहीता थका चंपक मालाने पगे लागीने बोल्या, रे देवी ! बलती एवी था अनाथ नगरीने तुं Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ए गौतमकुलक कथासहित. राख! राख ! ! अविनीत लोकने पण महोटा पुरुष वेखे नही. यतः॥न पजीविकेषु विमुखाः, सुजना न जवंति पुर्विनीतेषु ॥ वत्सव्यथितेऽप्युरसि, सुरनिर्न संहरेत् दीरं ॥१॥ राजा बोल्यो, रे राणी ! स्फटिक सर उजलु तहारूं शील तेने मूढ लोकें कलंक चढाव्यो. तेज पापरूप विष वृदनां फू ल अनुनवे . पण तेने तहारो पसाय टालीने बीजं को शरण नथी. ते सांजली चंपकमाला बोली, जो अरिकेसरी राजा मूकीने बीजो को म हारा मनमां न वश्यो होय, तो ए अग्नि उलवाई जान. या सर्व लोक बलु बलु करे . ते स्वस्थ था. एवं कह्यु, एटने शासन देवतायें तेमज कडे. वली जे देवता कौतुकना लीधा नक्ति नावथकी पाव्या हता, तेणें जयजय शब्द कस्यो, कुसुमनी दृष्टि करी,देवउंनि वगाड़ी,आकाशे देवांगना नाटक करवा लागी, लोकपण पृथ्वीने विपे नगरमां कुंकुमना बांटा देव राता हवा, चंदनमालानां तोरण बंधाव्या, सर्व बाल,१६, स्त्री पुरुष एम कहेता हवा के, चंपकमाला चिरंकाल जीवती रहो. एवं अति अनुत कौतुक देखीने नययकी वोहीनी एवी परिव्राजिका विचारवा लागी के, यहो ! ए अनर्थनुं मूल था ! माटे हवे मने मरण तेज शरण . लरको पापनी करनारी एवी हुँ पापिणीने हवे लाखो गमे दुःख सहेवां पडशे. ए महापापनो निस्तार तो जिनमतना निपुण पुरुपो अप्रतिष्ठान नगर कहे , त्यां जातं. त्यारे थाय तो पण महार जे उष्टच रित्र ले ते सर्वलोक प्रत्यदे कहीने ए महासतीनां चरण कमलने पगे लागुं. एम करवाथी हुँ पापनरें नराणी बु, तेथी हलकी थइने जो त्यां कदाचित् मुझने मरण आवशे तो पण रूईं. एम धैर्य अवलंबी,परिव्राजिका त्यां दिव्य नूमिकायें यावी, वेगनेथी नुजादंम ऊंचा करीने कहेती हवी के, जिनशा सन जयवंतु वत्तों. ए महासतीने प्रनावें दिव्य प्रातिहार्य प्रत्यद बाज प ए देखाय जे. एम कहीने चंपकमालाने पगे लागीने. कहेवा लागी, हे दे वी! तहारुं शील जयवंतु वनों,तुं समकितने विषे निश्चल बो,बाजथकीत हारा पसायें मने पण समकित हो,जावजीव सूधी जे तहारा देव ते महा रा देव, तहारा गुरु ते महारा गुरु,एम समकित अंगीकार करीने चंपकमा लानुं कलंक विशे टालवाने लोकोमा पोतानुं उष्ट चरित्र कही देखाडती Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. हवी. के ए देवी सतीमां शिरोमणि जे. में विद्याशक्तियें करीने एनी साथे रमतो पुरुष देखाज्यो. में नगरना सर्व लोकमां एनुं अपजस कहेवराव्युं. तेने राजा पूबवा लाग्यो, ए तुमने शा माटें करवू पडयुं ? परिव्राजि का बोली. कूडकपटनी नंमार ढुंज g. बीजुं कोण कारण होय ? राजा बोल्यो, जेम तमारुं दुष्कृत तमें कयुं तेम तेनो हेतु पण कहो. नहि क होतो तमारो विनाश थशे. परिव्राजिका बोली, ए दुःख ते केटलुं थशे ? हजी मने तो पागल नरकनां कुःख घणां जोगववां . राजा बोल्यो, रे रे सुनटो! एनी उपर नम तेल सींचो. जेटले ते काम करवा सुनट मल्या, तेटले चंपकमाला बोली, रे स्वामी ! वारो वारो! ए काम न करो, तमा रा सरखा दयावंत पुरुष एवं काम केम करे? ए परिव्राजिका पोताना प्रा एणत्यागें करी परना प्राण नगारे. वली पोतानुं पुष्कृत लोकमध्ये प्रत्य द पणें कहे ते पुष्कर , ए तो जेने जिनवचन चित्तमा रम्युं होय, ते ज कहे. ते एवं कर्तुं माटे एनी पूर्व अवस्थातो गइ. हवे ए तो तमारी साध र्मिक थइ, माटे एनुं वात्सल्य करवू घटे . यतः॥ साधर्मिकवत्सलता,क पलता संपदां प्रसवे ॥ यस्मात्तस्मात्तत्रै, व कृतधियः कुर्वते यत्नम् ॥ १ ॥ राजा बोल्यो, ए युक्तायुक्त तमे जाणो. पडी राजा चंपकमालासहित पोताने घेर आव्यो, परिव्राजिका पण शांत थइ थकी, पश्चात्ताप सहित निरंतर चं पक माला पासे जश्ने गृहस्थयोग्य धर्म सांजलती हवी. हवे पुनह देवीये पण पोताना प्राण त्याग करवा धास्यं. ते वात च डामणीना बलें जाणीने चंपकमाला त्यां गयां, अने पूबवा लाग्यां. गं काम करो बगे ? राणी बोली. तमाराथी गुं अजाण्यं ले? चंपकमाला बो ली, ए अपजसनो ए प्रतीकार नथी. हमणां तमे धर्म करता दिवस कहा डो. पनी अवसरे नपाय बतावीगुं. उनहदेवी बोली हे अपकार करे ते न पर उपकारिणी, विश्नी ढांकनारी, कुलवंती, तुफ तने नमस्कार था. एम कही धरणीयें मस्तक नमावीने फरी कहेवा लागी,हे सती ! तमारा चरण ते शरण जे ॥ यतः ॥ निर्गुणेष्वपि सत्त्वेषु, दयां कुर्वति साधवः ॥ नहि संहरति ज्योत्स्नां, चंइश्चमालवेश्मसु ॥ १ ॥ ए रीतें चंपकमाला साथें घ पी प्रीति धरती रहे. राजा पण ते देखीने चित्तमा चमत्कार पाम्यो थको चिंतववा लाग्यो के, चंपकमाला सुकुमार नपनी . माटे ए नपर मत्सर कर Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. वो घटे नही ॥ यतः ॥ वरं ज्वालाकुल्ने वन्ही, वन्हाय निहितं वपुः ॥ न पुनर्गुणसंपन्ने, कृतः स्वल्पोऽपि मत्सरः ॥ १॥ ए रीतें राजा तेना गुणो नो बहुमान करतो, जिनधर्मने विपे विशेषे प्रवर्ततो, गाम गामने विपे, नगर नगरने विपे, जिनश्वरनां देहेरां करावतो हवो. तेमां पण पोताना देशमां विशेषे करावतो हवो. सुविहित जननी, नक्ति बहुमान वसती प्र दानादिक करे, घणां सामीवल करे, बहुमानपूर्वक सिद्धांत सांजले, संघ से अमारी पडह वजडावे, श्रावकलोकना व्यापारमा दाग मूकी दे, राज्य कार्यमा अनवद्य पणे प्रवर्ते, एम करतां गुजलन गुनमूहूर्त चंपकमाला यें पुत्र प्रसव्यो. प्रियंवदा दासीयें राजाने वधामणी दीधी. राजायें एक मु कट टालीअंगलग्न सर्व बाजूषण दासीने यापी तेनु दासपणुं टाल्यु. वधाम णी दीधी, जिनेश्वरनी पूजा प्रमुख करी. नगरमां पंण घर घर गीत गान करावतो ध्वज तोरण प्रमुखें शोनित करे ! एम एक मास पर्यंत उत्सव क रीने ते बालक, नुवनानंद एवं नाम पाडता हवा. अनुक्रमें कलाप्रमुख नगीने प्रवीण यये थके युवराज पदे थापता हवा. अनुक्रमें करसिंह ना में बीजो पुत्र थयो. पली जयसुंदरी नामें एक पुत्री यावी. एम काल ज ते थके एक दिवस चंपकमालायें जारने कयुं. रे राजन् ! हवे आपने म होटा पुरुषोनो मार्ग आदरवो घटे . राजा बोल्यो, तमे युक्त वात कही, पण ढुं कर्मवशे करीने हजी तमारुं मुखकमल जोवाने तृप्मावंत मुं. राणी बोली, एवं वचन म कहो, अने ढुं कडं ए रीतें पोताना आत्माने शिवाम ग आपो. जेम के,रे आत्मा ! तुं मनुष्यनो नव उर्लन पामीने स्त्रीने माटे केम हारे ले ? स्त्रीना शरीरमां तुंशी मनोहरता देखे जे ? जो आ शरीरनी बहार ले ते मांहे करियें, अने मांहे ने ते बहार करिये. तो ए शरीरने का गडा कूतरा चूंथे एबुं ले. वली स्त्रीनुं शरीर,तो चमें, हाड, रुधिर,मूत्र, वि ष्ठामय महा उन्धी बे. जेवं तहारुं स्त्रीने विपे चित्त रंगा| दे, तेवु जिन धर्मने विषे चित्त रंगायतो तुं तेज न संसारनो दय करे. वली जेनो स्नेह ते वीजलीनी पेठे चपल ले. माटे ते पुरुषनी रेखा पण नूंशी नारखो, ते पं मितनी जिव्हा पण शतवंम था. चंचापुरुषसरखा ते पुरुष जाणवा के, जे स्त्रीने वर्णवे ने. रे रे यात्मा ! तुऊने गुं कहियें ! तुं महाकष्टें जिनशासन पाम्यो, ते फोकट हारे , मदोन्मत्त हाथीनी पेठे विषयने विषे राचे , Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ य जैनकथा रत्नकोप नाग हो. सुशील रूप वनराजीने नांजे में, जिनवाणीरूप अंकुशप्रहार मानतो नथी, अमृतसर. जिनमत पामीने विषयरूप हालाहल पीये , ते धतुरो खा धो ले, जे माटे जाणतो थको पण, अज्ञान मोहेंकरी विषयरूप विषने सु ख करी माने जे. रे आत्मा ! धिक्कार पडो ! ! तहारी महोटाइने ! तथा कलाना महिमाने, जे कारणे तुं विवेक पामीने विषय जोगववा ! जीवित तो इंधनुषसर चपल , माटे तुकने विषयनी शी तृमा रहे ने ? एम जाणीने निरंतर नवस्वरूप ध्यावो के, जेणे करी जन्म जरा अने मरणनाकुःखनुं हरनार एवो संवेग रसायन पामो. एवां चंपकमालानां वचन सांजलीने ते राजा संवेग रसें नावित थको चंपकमालाने स्नेहें करी कहेवा लाग्यो के, तें मुझने मिथ्यात्वरूप कचरा मांथी नदस्यो. जेणे करी पानवने विपे अने परनवने विपे सुखनुं कारण एवो धर्मनो उद्यम थयो. जो राज्यनार धरवाने समर्थ एवं बीजुं पुत्ररत्न मुझने थयु. तो पण हुँ पूर्वनवना अन्यास थकी रागदावानलें विधुर थयो बुं. माटे हवे आत्महित करवाने शीघ्र उद्यम करूं. ___ एवा अवसरमा चारझानना धणी श्रुतजलधि नामें आचार्य बहु शि प्ये परिवस्या थका अवसर जाणीने नंदनवन उद्यानमां समोसस्या. उद्या नपालकें वधामणी दीधी. तेने प्रीतिदान देने, सात बात पगलां सामा जश्ने, वंदना करी पनी मंत्रिश्वर राणी अने कुमरोना परिवार परिवस्यो थको, पंचालिगमन साचवतो, ते राजा, आचार्य पासे पहोतो. चंपकमाला तथा उनहदेवीयें परिवस्यो थको. आचार्यने नमस्कार करीचित स्थानके बेतो. आचार्य पण गंजीर स्वरें देशना दीधी. ते नवस्वरूप देशना सां जली राजा हाथ जोडीने विनंती करतो हवो के, हे स्वामिन् ! मुझने दी दारूप नावायें करी नव समुझ्नो पार पमाडो. गुरु बोल्या. विलंब न करो. पली ते राजायें, पोताना कुमरने सिंहासने बेसारी सर्व समदे राज्ये था पीने मंत्रीप्रमुखने कहेतो हवो के,ए नुवनानंद कुमारने महारी पेठे देखो, जो. एम कहीने पोताना कंठथी हार उतारी कुमरना कंठे नांखी वली कु मरने कहेवा लाग्यो के, जेम प्रजा अने परिवारने एटला दिवस में राख्यो तेम तमे राखजो. पडी परिजनने कडं के, जेम तमे महारी आणा मस्तके वहेता हता,तेम हवे ए राजानी आणा वहेजो. हवे चंपकमाला पुत्रने क Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २५३ हे के, हे जात ! ए राज्य पामीनें सम्यक् रीतें निर्वाह करजो, हे पुत्र aौकिक शास्त्रे धर्म अर्थाने काम ए त्रण पुरुषार्थ कह्या बे, तेमां धर्म थकी अर्थ तथा काम पामीयें परमार्थे मोनुं कारण ते धर्मज बे, पण बीजुं नथी, अर्थ काम सेव्या थकांतो केवल नवडुःखनीज हेतु थाय. ते माटे रेवत्स ! अर्थ काम ते पुरुषार्थ नहीं, धर्म तेज़ पुरुषार्थ बे, एम रागद्वेषरहित एवा श्री जिनेश्वरें कयुं बे. ते माटे अप्रमादी थइने श्रात्माने धर्मने विषे प्रवर्त्तावजो तेम लोकने पण जिनधर्मने विषे प्रवर्त्तावजो जो पण तुं सकल कलामां कुशल हो, तो पण हुं अपत्यना स्नेह माटे तुक ने जैनधर्मनो उपदेश देनं बुं, जुवनानंद राजायें पण ते उपदेश अंगीकार करी नवीने माता पिताने प्रणाम करया पी राजा चंपकमाला प्रमुख राणीयोयें परिवस्त्रो थको चारित्र अंगीकार करतो वो परिव्राजिकायें पण गुरुचरणे चारित्र लीधुं. प्राचार्य पण चंपकमाला प्रमुख यार्याउने आनंद श्रीना में यार्याने सौंपता हवा. भुवनानंद राजा पण, मुनिराजने वंदना करीने हर्षविपादसहित घेर पहोतो. जे नगरी, जे घरना प्रदेश जे कां पितायें शोजित हता, ते सर्व नही देखवाथी जुवनानंद राजा शोकातुर थयो, अनुक्रमें कालांतरे शोक बांमीने, रूडी रीतें राज्य पालतो, रिपु समूहने याक्रमतो, विचरे वे धरिकेसरी रा जऋषि पण रात्र दिवस सूत्रान्यास करता अनुक्रमें गीतार्थ थया. तेमने याचार्ये याचार्यपदे याप्या. बीजो तेनो परिवार जे साधु साधवीनो ह तो ते पण एमना परिवारपणें सोंप्यो. अनुक्रमें रिकेसरी ऋषि, घनघा ती कर्मकरीने केवलज्ञान पाम्या नव्य जीवने प्रतिबोध दे, शैले शीकरण करी, नखाने अंते परम पद पाम्या यव्याबाध सुखी यया. चंपकमाला पण साध्वीयें परिवस्यां गीयार यंग जयां. गुरुणीयें प्रवर्त्ति नी पदे याप्यां. विविध तपस्या करतां पृथ्वीने विषे विचरे बे. घणां नव्य प्राणीने नरकनां दुःख निवारती, गुरुसेवा वैयावच्चादिकें पूर्वकरण करी पकश्रेणी यारोही, दुस्तर मोहसमुइ तरीने निर्मल केवलज्ञान पामती एक मासनुं अनशन करीने सुसाध्वीयें परिवस्यां थकां चंपकमाला सिद्धि वस्त्रां. शाश्वता सुखनां जोगी थयां एम समकितना लान उपरांत लान नथी, ते उपर चंपकमालानी कथा कही ए कथा सुपार्श्वचरित्रमां बे ॥ इति Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. सकलसनानामिनीनालस्थलतिज़कायमानपंमितश्रीउत्तमविजयगणिशिष्यपं मितपद्मविजयगणिविर चते श्रीगौतमकुलकप्रकरणे बालावबोधे हादशगा थायां चत्वार्युदाहरणानि समाप्तानि ॥ हवे तेरमी गाथा कहीयें बीयें. तेने पूर्व गाथानी साथें ए संबंध . जे पूर्व गाथायें चार वस्तु उत्कृष्ट देखाडी. हवे चार वस्तु जघन्य अधम जे. ते माटे तेनो त्याग करवो, ते देखाडवाने संबंधे आवी जे तेरमी गाथा ते कहेले. न सेवियवा पमया परका, न सेवियबा पु रिसा अविद्या ॥ न सेवियबा अहिमान हीणा, न सेवियवा पिसुणा मणुस्सा ॥१३॥ अर्थः-न सेवियत्वा पमया परका (परका के०) पारकी (पमया के०) प्रमदा एटले स्त्री ते (न सेवियबा के०) न सेववी. तेलपर वीरकुमरनी कथा कहे . श्री निलय नामा नगरें रिपुमर्दन नामें राजा राज्य करे . तेने कमल श्री नामें नार्या हती. अने वीरकुमर नामें महारूपवंत पुत्र हतो. पण ते शूर, वीर, धीर, वादी, कस्या गुणनो जाण, विनयवंत, कला, घर, कलंक रहित ले. ते कुमर एकदा महा बटवीने विपे आहेडे गयो. पण ससलो के मृग प्रमुख कोइ जनावर नजरे न याव्युं. त्यारे विस्मय पामतो परि वारसहित बागल चाल्यो, एटले एक स्थानकें ससला, मृग, महिप, ग ज, तृपन, वाघ, चितरा, प्रमुख सर्व तीर्यच नेगा बेला दीग. ते परस्प रे वैरी पण मित्रनी पेठे वैर बांझीने रह्या ले. वली मेघनी पे गंजीर श ब्दें करी कर्णने विपे अमृत सरखो लागे एवो सप्लाय ध्यान करता एवामु निनो शब्द सांजल्यो. एटने कुमरना परिवारें नाना प्रकारनां शस्त्र तिर्यंच उपर नांख्या, पण तिर्यचना शरीरें एके न लाग्युं. त्यारे कुमरें विचाओँ के, जनावरनां वैर शम्या. जे. अने एके शस्त्र न लाग्युं. ते सर्व मुनिनो प्रनाव वे. एम जाणी मुनिना चरणकमले नमस्कार कस्यो. उचित स्थानके बेतो. ते देखीने तेना परिवारें पण तेमज कडे. मुनिवर पण धर्मलान देइने देश ना देता हवा के, जे प्राणी जीवहिंसा न करे, ते सौजन्यता पामे. सर्व पा Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. पमां जीवहिंसानु पाप महोटुंबे. परम नरकनुं कारण . सर्व जीवने सदा काल पोतानुं जीवितव्य वहालुं . जेम मरण पोताने अनिष्ट , तेम स कल जीवने मरण अनिष्ट जाणवू ॥ यतः ॥ अमेध्यमध्ये काटस्य, सुरें स्य सुरालये ॥ समाना जीविताकांक्षा, समं मृत्युनयं ध्योः ॥ १ ॥ पुर्व चन, गाल, घात, परानव, नवबंधन तथा मरवू ए जेम पोताने अनिष्ट मे, तेम परनेपण अनिष्ट जाणवू. माटे जेने जे वहालुं होय,तेने ते देवू ते परजवनुं शंबल ले. तथा वली एक जगने कोइ एक एक बजे राज्य आपे, तथा को एक जीवित आपे, ते वेदुमां जीवितनी आपनार वधे. वली ध न, बांधव, स्वजन, पुत्र, कलत्र, सर्व करतां पोतानुं जीवित घणुं इट ले. एतो सहुने अनुजवसिमले. वली जो मनुष्यथको पण मांस खाय, रुधि र पीये, तो कागडा कूतरा करतां तेमां शो विशेष ? ते माटे जीवता अशरण अनाथ जीवोने मारीने जे तेनुं मांस खाय, रुधिर पीये, ते नरक टालीने बीजुं स्थानक नहि पामे. वली प्रवर, स्वादवंत जे सूखडी प्रमुख जोजन ले. तेने मूकीने जे अशुचि अपवित्र वस्तु एबुं मांस , तेने ते निःशुक निःकरुण पणे खाय, तेमां शी अधिकाइ देखे ले ? इत्यादिक गुरु नी देशना सांजलीने कुमर समकित पाम्यो.संकल्पीने स्थल निरपराधी प्रा णीने हणवु नही. तया परस्त्री सेववी नही. तथा मांस नहाण करवू न ही एवा नियम लीधा. तेम कुमरना परिवार पुरुषोयें पण जेने जे गम्युं तेणें ते नियम लीधो. मुनि पोताने स्थानकें गया. कुमर पण घेर अाव्यो. हवे एकदा राजा, बुदिनी परीक्षा करवाने अर्थे सर्व कुमरोने जेगा क रीने पूछे ले के, पंचालदेशने विपे फोजदार मूकिये बियें. तेमां एक तो घ गो निपुण अने प्रकृतियें अवंचक ,ते एम कहे . के ढुं दश लाख सो नैया एक वर्षमां उपजावी यापीश, अने बीजो कहे के, ढुं पन्नर लाख सोनैया नपजावी यापुं. ते हकीकत यमे दश लाखना नपजावनारने कही, त्यारे तेणें कह्यु के, महाराथी तो दशलाखथी वधु न नपजे, पनी राजाने गमे तेम करो. ते माटे हे कुमरो ! तमे कहो के एनुं गं करवू ? ते सांजली सघला कुमर बोल्या के, जे घणुं इव्य नपार्जी आवे तेने मोकलो. त्यारें वीर कुमरने राजायें कह्यु. तुं केम नथी बोलतो? वीर कुमर बोल्यो,ए वात मुफने गमती नथी. मने तो जे तमे प्रथम पुरुष कह्यो जे अवंचक, निपु Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. ण, तातने हितकारी, प्रजाने पीडे नही, माटे तेने मोकलवो योग्य लागे बे. कारण के, प्रजा पीडाय नहि त्यारे व्यापारी व्यापारादिक सुखें क री शके, तेथी राजाने न्यायनो दोकडो घणो थावे अने वली न्यायें चा लवाथी धर्मनी पण वृद्धि थाय .ते माटे जे थोडं पण न्यायें धन उपार्जे. तेने अधिकारी करवो योग्य .बीजो पुरुष पन्नर लाख अन्यायें उपार्जे ते अन्यायथी तमने पंण अधर्म थशे. तथा अपयश थशे. वली एक वर्ष तो पन्नरलाख श्रावशे. पण पड़ी बीजे त्रीजे वर्षे एक लाख पण नहि उपजे. ॥ यतः ॥ अत्युपादानमर्थस्य, प्रजान्यः पृथिवीनुजां ॥ उग्धमादाय धे नूनों, मांसाय स्तनकत्तेनम् ॥१॥ ते सांनतीने राजायें विचाखु के ए कुमर वयें तो लघु बे, पण बुद्धि यें करी सर्वथी गुरुं . मांटे राज्यनारनी धुरी ए वहेशे. तेथी यद्यपि ढुं एना गुण प्रकट नहि करूं, तो पण नगरमा एना गुण नाना नहि रहे. अने सर्व कुमरथ। ए विपरीत बोल्यो ने, एटले सदु एना नपर मत्सर ध रशे, ते माटे इहांथी एने देशांतर मोकलं. एम चिंतवीने राजा बोल्यो, हे कुमर ! तहारा गुण घणा , माटे तहारे बापनी श६ि नोगववी युक्त न थी, तेथी तुं ए शदि अने या देश मूकीने परदेश जा. ते सांजली ते कु मर, राजाने प्रणाम करीने मतिसागर प्रधाननो पुत्र विमल नामें हतो, तेने सायें लेने निकल्यो. तेनी रखवाली माटे राजायें पंथीलोकने मि बाना सुनट मूक्या. तेणें परिवस्यो कोसलपुरना परिसरे.जश्ने विश्राम कस्यो. एहवामां घणो कोलाहल सांजल्यो. घणां वाजिंत्र सांजव्यां त्यारे प्रधानपुत्र विमलनी मारफत कुमरें पूनाव्युं के, शहां शो महोत्सव जे ? विमलें पण कोकने मुंखें सांजलीने कुमरने कह्यु. के इहां रणधवल राजाने पोताना प्राणथकी पण अतिवहाली. एवी पुरुषषिणी कुरुमती नामें एक कन्या जे. तेने परणाववा माटे तेना पितायें कुलदेवीनुं आराधन कयुं त्यारें कुलदेवीयें कह्यु, तमारो पट्टहस्ति, जेनाकंठमां फूलनी माला बारोपे, ते पुरुष, कुम रीनो नार थशे, अने कुमरी पण ते उपर राग धरशे. ते सांजलीने रा जायें पट्टहस्ती शणगारी तेने पूजीने, तेनी नपर कुमरीने बेसाडीने, अंकुश रहित लूटो मूक्यो बे. ते हाथी मालीने हाटेथी संढमां माला लीधी . हमणा ते सर्व राजकुलीसाथें नगरमां नमे ले. एवी वात करे ले, एवामां Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २७ त्यां पट्टहस्ती पण आव्यो, तेणें कुमरने कंठे माला घाली. वीरकुमरने सूं ढे करी पोताने खंधे आरोपतो हवो. ते कुमर रूपेंकरी कंदर्पावतार जेवो देखीने, राजा घणो हर्ष पाम्यो. कुमरी पण देखीने घणो यानंद पामी. ते वेलायें कुमरना शरीरथी धूल फटकावणीने माटे दशहाथी, एक ला ख सोनैया, अने एक हजार घोडा राजायें आप्या. बाया लग्नेज कुरुमती नुं पाणिग्रहण कराव्युं, करमोचन वेलायें राजायें एक हजार गाम आप्यां. रहेवाने प्रासाद प्राप्यो. कुमर त्यां रह्यो. विलास करे ,ए सर्व वृत्तांत कु मरना पितायें जे बाना पुरुप पंथीने वेपें कुमरनी पंडवाडे मूक्या हता,तेणें जश्ने कुमरना पिताने संनलाव्यं. राजाने घणो आनंद उपन्यो. हवे विवाह दिवसे मांसादिकवर्जित जोजन कुमरें कयुं. त्यारें राजायें तेनो हेतु कुमरने पूब्यो. कुमर कहेवा लाग्यो, पंचेंशियनो वध कस्या वि ना मांसनहाण थाय नही. अने पंचेंशियनो वध, ते नरकें जवानुं परम हेतु दे. इत्यादिक देशना देतां मांसना घणा दोष देखाघ्या. त्या प्रसंगे साधुनो तथा गृहस्थनो धर्म पण कह्यो. वली पोतें श्रावकनो धर्म यंगी कार कस्यो , अने मांसप्रमुखनो परिहार कस्यो , ते पण कर्तुं. ते सां नली राजाने धर्म उपर बहुमान उपन्युं. परम विश्वास थयो. राजायें मांस जहाण वज्यु. वली देव, गुरु अने धर्म ए त्रण तत्व अंगीकार कस्या. एक दिवस संध्यासमयें एक स्त्री आवीने कहेवा लागी. हे कुमर ! रा जानी नार्या, मंत्रिनी नार्या, शेतनी नार्या, अने प्रतिहारनी नार्या, ए चा र जणीयें तमने दीता, तेथी चारे कंद विह्वल थ . जूदी जूदी चारें जणीयें मुझने मोकली. ते चारे पण माहोमांहे जेम न जाणे तेम त मारो संगम थाय, तेवी करुणा करो. ते सांनतीने कुमर पोताना चित्तथी निश्चय करीने बोल्यो. के प्रावती राते पहेले पहोरे प्रतिहारीने मोकल जे, बीजे पहोरें शेवाणीने मोकलजे, त्रीजे पहोरे मंत्रिनी नार्याने मोकल जे, अने चोथे पहोरे राणीने मोकलजे. ते स्त्री पण सांजलीने हर्ष पाम ती, कार्य सिह मानती, स्थानके जइ सहुने वात जणावती हवी. हवे कुमर राजाने कहेवा लाग्यो. हे राजन् ! जो दीतुं अणदीतुं करो तो ढुं कांक वात देखाईं. राजा बोल्यो, तुं महारे पुत्रसरखो बो, वली तें मुमने धर्म समजाव्यो, आ महारो जन्म सफल कस्यो, ते माटे तहारे ग Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. मे त्यां अमने जोड. त्यारे कुमर बोल्यो, आज संध्यासमये महारा श्रावा सने विषे बाना बावजो. राजा बोल्यो ढुं आवीश. हवे संध्या समये राजा बानो अाव्यो, कुमरें पोताना पल्यंकनी पासे ना पत्यक उपर राजाने बेसाड्यो. हवे हरकोई मिष करीने प्रतिहारी घरथी नीकली, कुमर पासे आवीने बेठी. कुमर कहेवा लाग्यो, रे स्त्री ! विषय जे बे. ते आलोकने विषे दुःखनुं हेतु , अने परलोकने विषे नरकनुं कारण ने ते माटे कागडानुं मांस अने कूतरें बोटयु,ए नखाणो साचो .तथापि जो तृप्ति थती होय तो विषय पण नोगवीयें,जो मिष्ट नोजन होय तो तृप्तियें बांमीयें, पण विषय जोगवे तृप्ति न होय. अने परलोकें नरकनुं कारण एबे दंम केम सहीयें ? वली ए जीवें विषय तो देवताना नवमां सागरोपमनी संख्याना काल सूधी जोगव्यो. तोपण तृप्ति न थ. तो थोडो काल मनुष्य ना नवनो तुबनोग नोगवें केम तृप्ति थशे ? यद्यपि विषय आपातमात्र मनोहर लागे, तोपण किंपाक वृदनां फलसरखां परिणामे सुःखदा . ते माटे विपयने बांझी इंश्यि मनने दमीने मोक्षमार्ग समजीने तेने विषे उद्यम कर. तथा मोदनो मार्ग ते सम्यकझान, सम्यक्दर्शन, सम्यक्चा रित्ररूप रत्नत्रयीनुं स्वरूप विस्तारें समजाव्युं. तेथी प्रतिहारी प्रतीबोध पामी. बीजे पहोरें शेवाणी यावी त्यारे, प्रतिहारीने जवनिकाने आंतरे बेसा डीने शेवाणीने प्रतिबोध दीधो. त्यारे तेपण तेमज प्रतिबोध पामी. त्रीजे पहोरें मंत्रिनी नार्या यावी, तेने पण प्रतिबोधी रूडे मार्गे थापी ने तेने पोतानी पूंठे जवनिकाने आंतरे बेसाडी. चोथे पहोरें राजानी राणी आवी. त्यारे कुमरें श्रासनथी नतीने प्रणा म कस्यो. राणी बोली, हे नाथ ! ए गुं करो बो? हमणां उना थवानो शो अवसर जे? तथा प्रणामनो शो अवसर जे ? पोताना अंगसंगरूप अमृतें करीमने शीतलता नपजावो. विरहानलरूप अग्नियेंकरी बलती एवी मुजने दणमात्र पण नवेखशो नही. जो नवेखशो तो महारं हृदय फाटी जशे. ते सांगलीने कुमरें तेनी सामुं पण जोयुं नही. अने विचाओँ के, हजी ए मदोन्मत्तपणाथी उपदेश योग्य नथी. राणी.बोली, जे सत्पुरुष होय ते सत्य प्रतिज्ञावंत होय ॥ यतः ॥ सरूदपि यत्प्रतिपन्नं, तत्कथमपि न त्यति सत्पुरुषाः ॥ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. श्य इत्यादिक मुकने एकांते तेडीने हवे उपरांग केम थइ रह्या बो ? त्यारें कु मर बोल्यो. तमने बोलावीने जिनधर्मने विषे थापीने परलोकने विषे दुःख अपनाएं एवां डुष्ट चरित्रथी दूर राखीगुं. राणी बोली तेमज करो. पण एकवार तमारा अंगनो संग कस्था पढी जेम कहो तेम हुं करूं. कुमर बो ल्यो, पाणिग्रहणना दिवसथी मांमीने याज दिवस सूधी कंदर्पावतार रा जानो निरंतर संगम करतां तमोने तृप्ति न थइ ? तो महारो संगम ते पण बली चोरी करवो. तेथी तृप्ति केम थाय ? माटे ए डुर्बुद्धि त्यागीने निर पराध सन्मार्ग सेवो. इत्यादिक पूर्वोक्त युक्तियें करी घणुये राणीने समजा वी पण समजी नही, ने कहेवा लागी के, हुं सर्व तमारुं कत्युं करीश, पण तमे महारी दूतीने जे वचन कयुं बे ते पालो. कुमर बोल्यो, जे में दू तीने कयुं ते न करो, तमारे या जन्ममांतो मनोवांबित पूरुं नहि पडे. एवं ते कुमरनुं साधारण सत्त्व देखीने अने पोताना डरध्यवसाय जोने, वैराग्य पामी थकी कुमरना चरणे प्रणाम करीने राणी बोली, हे बांधव ! हुं पापी जगिनी ! तेलीयें तुमने पराभव कस्यो. दवे ए पापथी हुं क्यां लूटीश. हुं तमारी नरमान मातानी पुत्री लघु बहेन बुं. तमे पोता ना कुलरूप आकाशमां चंड्मासरखा थया. तमे परनारीने नगिनी करीने ग. ने हुं कलंकें सहित प्राण केम घरी शकुं ? माटे महारे तमारी प्राज्ञा तेज शरण बे. पती कुमरनी प्राज्ञायें पोताने स्थानकें गई. बीजी त्रणे स्त्रीयो पण परपुरुषनो नियम करी समकित पामी कुमरने प्रणमीने कुमरनी शिक्षा सांजलीने पोताने स्थानकें गई. राजा पण कुमरने कहेवा लाग्यो, रे महाजसना धणी ! या संसार नाटक देखाडवे करीने तमे म हा उपर घणो उपगार कस्यो हवे खाज्ञा करोतो महारे स्थानके जावं. त्यारे कुमर राजाने पहोचावीने पाठो याव्यो. प्रातःकाले कुमर तथा राजा बेदु साथै बेठा बे. एवामां सहसा कारें ईशानकूति अद्भुत तेजनो विस्तार दीगे. प्रतिहारने पूठ्यं, या शुं बे ? तेणें खबर करीने कयुं. इहां एक केवली भगवान् समोसा बे. तेमने देवता वंदन करवा यावे बे. तेनी ए कांति देखाय बे. ते सांगली ने राजा पण कुमरने सायें तेडीने अन्य कार्य सर्व मूकीने सर्व ऋद्धि स हित वंदनानिमित्ते गया, त्यां विधिपूर्वक वंदना करीने परिवारसहित पर्ष Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० जैनकथा रत्नकोप नाग बहो. दामां वेठा. कुमर पोताना धर्मदायक जाणीने बोल्यो. हे वीतराग ! तमें म ने पवित्र कस्यो. घणो प्रसाद कस्यो. जे कारणे पोताना चरणकमलनुं मु फने दर्शन कराव्यु. राजा बोल्यो मने पण पवित्र कस्यो. सर्व पर्षदा उ ठी त्यारें राजायें परिवारसहित कुमरने लेश्ने अवग्रह बहार आवी मुकुटा दिक सर्व अलंकार कुमरने बाप्या. पली पोताना परिवारने एम कहेतो हवो के, ए तमारो राजा, परिवारसहित कुमरने प्रणाम करीने केवली पासे जश्ने दीदा अंगीकार करे बे. एमकही दीवालीधी. तेमज कुमर तथा राजा बेहुने पूबीने पोताना पापनी शुद्धिकरवा माटे राणी पण दीदा लेती हवी. बीजी पण घणी राणीयो चारित्र लेती हवी. कुमर पण वंदना करीने पो ताने स्थानके आव्यो.राजाने पाटे वेगे, केवली पण केक दिवस रही ने विहार करता हवा. राजा पण न्यायें राज्य पालतो,जिनशासन प्रनावतो थको मंत्रिश्वरने पण सर्व कार्यमांबागल करीने पोताना सरखो करतो हवो. हवे रिपुमईन राजायें कागल मोकव्यो, ते वेलायें विमल मंत्रिने राज्ये थापीने श्रीनयपुर नगरे पहोतो. ते वीर कुमार पोताना पिताने धर्म संन लाव्यो. राजायें पण धर्मतत्त्व समजीने पुत्रने राज्य थापी चारित्र अंगिकार कह्यु. पाउलयी वीर राजा पण घणा काल सुधी राज्य पाली, यंते रणधव ल राजऋषिनी पासे चारित्र ले, नाना प्रकारना देशने विपे विचरी, घन घाती कर्म क्य करी, केवलज्ञान पामीने अक्रियपदने वरता हवा. एम कंदर्प नो मद जांगीने लोकोने चमत्कार देखाडीने वीरकुमर, कल्याणनी परंपरा पाम्यो. ए रीतें परस्त्री न सेववी. इति श्रीवीरकुमर कथा सुपार्श्व चरित्रेः॥ हवे बीजा पदनो अर्थ कहे .न सेवियत्वा पुरिसा अविद्या (अविद्या के०) अविद्यावंत एटले विद्यारहित एवा (पुरिसा के) पुरुष जे होय तेने (न सेवियत्वा के ) न सेववा. ते उपर अगीतार्थनी कथा कहे . वसंतपुर नगरने विपे एक अगीतार्थ संवेगीसरखो आचार्य हतो. तेनी साथें गब विचरे . ते गढमां एक संविझसरखो साधु रहे . ते निरंतर पाणी प्रमुख खरडे हाथें आदिक दोपसहित अशुभमान आहार पाणी ले आवीने, नित्य आवश्यक वेलाये संवेगीनी पेठे घणो खेद धरतो, गुरु पासे आवीने सर्व पाप बालोवे. गुरु पण नित्य तेनुं प्रायश्चित्त थापे. ते यालोयण आपतां गुरु पोतें अगीतार्थ होवाथी नित्य एम कहे के,अहो ! Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २६१ ए शिष्य जून को धर्मश्रद्धावंत बे ! ए महानाग्यवान् बे. धर्म तो सुखें सेवाय; पण खालोवनुं ते घणुं डुक्कर बे. ते माटे शुद्ध बे. ते देखीने बीजा मुग्ध साधु विचारवा लाग्या के, अहो ! बालोववुं तेज श्रेय बे. ते माटे प्रकृत्य करवामां कां दोप नथी पण यकृत्य करीने तेने खालोव जोइ यें, एम सर्व साधुयें धायुं; पढी ते सर्व साधु एमज वर्तवा लाग्या. एम 'केटलोएक काल गयो, एकदा कोइ गीतार्थ साधु त्यां प्राहुणा याव्या. ते ए सर्वविधि दो, त्याऐं विचारवा लाग्या. के, ग्रहो ! ए गीतार्थे स नाश माड्यो. एम चिंतवीने पढी ते गीतार्थं साधुयें पहला गीतार्थ याचार्यने कयुंके, हे श्राचार्य ! तमे कृत्य सेवी साधुनी प्रशंसा करतां गिरिनगरना राजा तथा त्यांना निवासी लोक सरखा था बो. कथा हुं हुं हुं, एक गिरि नामें नगर हर्तुं त्यां एक कोटीश्वर वाणि यो से बे. ते वैश्वानरनो (अमिनो ) नक्तिवंतो बे. ते वर्षोवर्ष एक उरडो र जरीने तेनेनि लगाडे. ते देखीने राजा तथा नगरना सर्व लोक मली ते शेती प्रशंसा करे के, जून, ए शेठ वैश्वानरनी केवी भक्ति करे बे ? जे अनि नामा जगवानने वर्षोवर्ष रत्ने करीने संतोषे बे. एम प्रशंसा करता रहे. ते शेवपण हर्पे करीने प्रतिवर्षे रत्ननो वरडो मियें बालीने अनि देवन क्ति करे. एक वर्ष जेवो शेठें अग्नि लगाड्यो के, तेज वेलायें जावि नावी प्रचंम वायरो पण वाह्यो, तेणे करी अनि विस्तार पाम्यो. तेथी राजाना महोल प्रमुख सर्व नगर बलीने राख ययुं. त्यारे राजा तथा नगरना जो विचायुं के, पूर्वे एने निषेध करखो होततो घणुं सारुं यात. यापणें ए नी फोकट प्रशंसा करी. एवो पश्चात्ताप करी दंमीने ते वालियाने काढी मूक्यो. ए रीतें हे याचार्य ! तमे पण विधियें प्रवर्त्तता, एवा सांधुनी नित्य प्रशंसा करतां, पोताना ग्रात्मानो तथा गहनो नाश करो बो. ते माटे म थुरा नगरीनो राजा तथा तन्निवासी लोकसरखा था तो अनर्थना ना गीन था. तेन कथा हुं तमने कहुं हुं, ते सांजलो. मथुरा नगरीने विषे एमज पूर्वोक्तरीतें वैश्वानरनो जक्त एक वाणियो रतो हतो, तेणे रत्नें घर नरीने अनि लगाडवा मांमयो, एटले राजायें तथा नगरना लोकें तेनो तिरस्कार कस्यो, दंमघो, सुदु कहेवा लाग्या के, वीमां जइ घर करीने अनि केम लगाडतो नथी ? एम कहीने तेने न Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ जैनकथा रत्नकोष नाग नहो. गरमाथी काढी मूक्यो. एम हे प्राचार्य ! तमे पण करशो तो आत्माने तथा गलने अनर्थथी राखशो. एवी युक्तियें शीखामण दीधी. तो पण अ गीतार्थपणा माटे ते थाचार्य पोतानो कदाग्रह न मूक्यो. तेज रीतें प्रव तवा लाग्यो. त्या प्रादुणा साधुयें गन्ना साधुने कह्यु के, एवा मूर्ख गुरु नी सेवा करवें करी तमारो नहार केम थशे ? माटे एने तजो. नहितो तमने ए अनर्थ जणी थशे. ते सांजलीने गबना साधुयें गुरूने बांमयो. ए रीतें अविद्यावंत पुरुषने न सेववा, ए कथा विशेषावश्यकमां बे. ॥ हवे त्रीजा पदनो अर्थ कहे . न सेवियवा अहिमानी हीणा ( अ हिमानी के० ) अनिमानी पुरुष तथा ( हीणा के० ) हीन एटले नीच पुरुष जे होय तेने (न सेवियना के०) न सेववा. ते उपर श्रीवीरस्वामी अने गोसालानुं उदारण कहे . ___ाम नाम गोसालाने कुलदणे करीने केक लोक प्रनुजीने मारवा आव्या. कोइए प्रनुने बेडीमां नांखवा मांमया. इत्यादिक कथा श्रीकल्पसू त्रादिकने विषे प्रसिह , त्यांथी जाणवी. ए गोसालो अनिमानी उतां नीच पुरुष हतो. अथवा आज नरतदेवने विषे क्षितिप्रतिष्ठित नामे नगरमां उष्टबुदि अने सुबुद्धि नामें बे वाणिया वसे . पण ते बेनुं जेवू नाम तेवाज परिणाम जे. एम लोकमां प्रसिदिपाम्या ने. बे निर्धन , पण कर्म संयोगें बेदुने मित्रा थ, ते बेदु कांक क्रियाणां लेने परदेशे धन उपार्जवा गया. अनुक्रमें कोइक पुरातन गामने विषे केटला एक दिवस लोनें करी रह्या. एक दिवसें सुबुद्धि देहचिंताये गयो , एवामां को जुना खमेरमां थी कांइक निधान जडधुं. ते उष्टबुद्धिने देखाड्युं. हजार सोनैया थया, ते लेश्ने पोताने नगरे आव्या. ते वारे ते उष्टबुद्धि, सुबुद्धि साथें विचार करवा लाग्यो के, ए धन जो यापणे बेद अर्यो अईलेश्ने गाममा जा गुं, तो लोकमां बापणो जार वधशे. त्यारें राजा जाणशे के, एमने नि धान जडथु बे. माटे लूंटी लेशे. पडी जेवा हता तेवाज दरीशि थश्लॅ. माटे सो सो ऽव्य लेइने वीजें इव्य जो तमारी हा होयतो वडतले दाटीये. ते वात सुबुद्धिये पण मानी; पढी राते दाटीने प्रातःकाले बेदु घेर गया. हवे उष्टबुद्धि तो अणविचायुं खरच करतां थोडा दिवसमां व्य खाइगयो. त्यारे सुबुदिने साथे लेइने वली सो सो इव्य काढी लाव्या. एक दिवस उष्ट Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. बुधिये विचायुं के, शेष इव्य जे रघु ने, ते एने ठगीने ढुंज लश् था. एम चिंतवीने रात्रीने समय ते धन पोतें लाव्यो. प्रातःकाले सुबुद्धिने कहेवा गयो के, हवे आपणे दाटेढुंश्व्य घेर लावीयें, तो चित्तमांथी चिंता टले. ते वात सरल आशयना धणी सुबुध्येि मानी. प्रनातें घेदु जण ते स्था नके गया. त्यां जोयुं तो निधान न दीतुं. तेवारें कूड कपटनुं घर एवो ते उष्टबुद्धि बूंब पाडीने कहेवा लाग्यो के, अरें दं गाणों!! कोश्क धन ले इगयो !!! पबर लेश माथु कूटवा लाग्यो, अने सुबुद्धिने कहेवा लाग्यो के, ए धन तें ली, जे. जे कारणे आपण वेदुविना बीजो कोइ ए स्था नक पण जाणतो नथी. ते सांजली सुबुद्धि बोल्यो. जो मने ए इव्य तहा राथी गृप्तपणे लेवु होत, तो प्रथमथीज तने गुं करवा देखाडत ? माटे तुं पोतेंज जेम ठग बो, तेम बीजाने पण उग जाणे जे. एमं बेहुजण क्वेश क रता राजधारे गया. राजा आगल ते उष्टबुदि कहेवा लाग्यो. हे महाराज ! अमने निधान जड्युं हतुं, ते अमे तमारी बीहीके बहार दाटयुं. ते एवं मुमने वंचीने एकलें लीधुं. माटे हवे जे युक्त होय ते करो. राजा बोल्यो, ए वातमां कोई सादी ? उष्टबुद्धि बोल्यो के, महोटा वृदने हेतल दाटयुं डे, ते वृद सादी , बीजूं तो कोई नथी. ते महावृद जो एम कहे के, अमुक पुरुपें लीडूं, तो तमे मने सत्य वचननो धणी जाणजो. राजा बोल्यो, जो एम करशो तो तमे सर्व लोकमां सत्यवादी कहेवाशो, ए परीक्षा काले करीश्रृं, एवं उष्टबुड़िये कहे थके राजायें बेदुने विसा , बेदु जण घेर गया, सुबुदि मनमां विचारे ले के, अहो ! ए उर्घट वात केम बन शे? पण धर्मथी सदा जय ने. मुष्टबुदिपण घेर जश्ने नइ नामे पोता ना बापने कहेतो हवो के, हे पिता ! इव्यतो हुँलाव्यो , मांटे राते टुं तमने वडना कोटरमां घालीश. लोक नेला थाय, त्यारे कोटरमांथी एम कहे जो के, सुबुड़िये इव्य लीधुं बे. ते बोल्यो, रे उष्ट ! तें ए उष्ट काम का, ले पण ढुंतहारा आग्रहें ए काम करीश. तेणे पण तेमज करा. हवे प्रातःकाले राजा तथा नगरना लोक साथें उष्टबुदि सुबुदि प्रमुख सर्व त्यां आव्या. वडनी पूजा करीने पनी उष्टबुदि बोल्यो, हे वृद ! तमें कहेशो ते साचुं ठरशे. ते माटे सत्य कहो के, ए धन कोणें लीy डे ? त्यारे वडना कोटरमा रह्यो मोसो बोल्यो. ए धन सुबुदियें लीधुंबे. ते Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ जैनकथा रत्नकोप नाग हो. सांजली सर्व लोक चमत्कार पाम्या. राजा सुबुद्धिने कहेवा लाग्यो के, अपराध तमारो तस्यो. माटे धन आपो. सुबुड़िये विचायं, कदापि कालें वृद बोले नही. ए सर्व उष्टबुदिनी कूट गूढ रचना देखाय . वडना को टरमांथी वाणी नकली तेथी कोक पुरुष संकेत करीने मांहे घाल्यो बे. एम निर्धारी पड़ी सुबुद्धि राजाने कहेतो हवो. हे राजन् ! अवश्य महारे ए धन बापq. पणं महारे कांक कहेवू दे, ते बाप सांजलो. राजा बो व्यो. जे कहेवू होय ते कहो. सुबुदि बोल्यो. धनतो में लीधुं पण घेर ले ३ गयो नथी. में लेश्ने वडना कोटरमा मूक्युं हतुं. पली बीजे दहाडे ले वा अाव्यो. त्यारे फणाटोप मामी रह्यो एवो नयंकर सर्प दीपो. तेथी में विचाओँ के, ए धन देवाधिष्ठित थयुं देखाय छे. ते माटे हे राजन् ! तमा री आझा होय तो ए सपने कोइक उपायें दुं माझं. राजा बोल्यो, एमज करो. तेवारें सुबुधिये पण बहार बने मांही बांणां प्रमुख नयां, पड़ी थ नि लगाड्यो, ते बांणांनो धूमाडो आव्यो तेथी याकुल व्याकुल थयो थ को नशेठ प्रथ्वीयें पड्यो, लोकोयं उत्तरख्यो, कौतुकथी लोक पूबवा ला ग्या. अरे नशेठ ! ए झुं ? ते बोल्यो ए इटें मने कूटसारखीयो कस्यो, थ लीक वचननुं फल मुझने हमणाज मन्यु, ते माटे कोई जूतुं बोलशो न ही. ते सांजली राजायें नए शेठने राख्यो. अने सर्व धन ले उष्टबुद्धिने नगरमाथी काढी मूक्यो. तथा सुबुद्धिने वस्त्रालंकारादिकें पूज्यो. सत्यवा दी माटे लोकमां घणी प्रशंसा थइ. उष्टबुदि तो प्रथमथीज लोकमां मान हीन हतो, तेनी संगतें सुबुद्धिने आपदा थइ. माटे मानहीननी संगत न करवी ॥ ए कथा श्री शांतिनाथ चरित्रमा ने. ॥ हवे चोथापदनो अर्थ कहे जेः-न सेवियत्वा पिसुणा मषुस्सा (पिसु णा के०) पिशुन एटले चाडिया (मणुस्सा के ) मनुष्य जे होय, तेने ( नसेवियवा के० ) ने सववा. ते उपर चक्रदेवनी कथा कहे जे. - महा विदेह देवने विषे चक्रवाल नामें नगर ले. त्यां अप्रतिहतचक ए वे नामें सार्थवाह वसे , तेनी सुमंगला नारीनी कूखनो उपन्यो चक्रदे व नामें पुत्र ते घणो विनयवंत . एवामां एज नगरमा सोमशर्मा नामें पुरोहित वसे ले. तेनी नंदीवईना नामें स्त्री . तेने यज्ञदेव नामें पुत्र थयो. ते चक्रदेव तथा यज्ञदेवने घणी मित्रा थर; पण तेमां चक्रदेवने Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६५ गौतमकुलक कथासहित. तो सनावें प्रीति ने अने यझदेव तो कपटें प्रीति राखे , ते यज्ञदेव एनां बिइ जोया करे, एनी संपदा देखी खमाय नही ॥ यतः॥ खलः सक्रिय माणोऽपि, ददाति कलहं सताम् ॥ उग्धधौतोऽपि किं याति,वायसः कलहं सताम् ॥ १ ॥ तो पण बिस्तो न जड्युं, त्यारें मनमां विचाओँ के, ए तो बलातो नथी, माटे हवे कोई एवो उपाय करूं के, जेथकी ए आ गाममांज रंही शके नहि ! जे माटे एज नगरनो रेवासी चंदन नामा सार्थवाह , तेना घर थकी इव्य चोरी लावू, ते एने जर सों', ए पण महारी मित्रा ३ दावे राखशे, पनी हुँ राजाने संनलावीश त्यारें राजा एने दंमशे, मार शे, कूटशे, अने एनां घर पण लूंटी लेशे. पडी जेम विचास्युं तेमज कडे. इव्य चोरी लावीने चक्रदेवने कहेवा लाग्यो. हे मित्र ! ए महारूं इव्य प्र बन्नपणे राखजो. परंतु कुवेलाये लाव्युं माटे चक्रदेव न राखतो हवो, तो पण घणो आग्रह करतां दक्षिणतायें ना न कही शक्यो. अने धन गुप्त करी राख्यु. एवामा लोकमां वात प्रसिह थ के, चंदन सार्थवाहनुं घर कोइक मुशी गयो. ते वात चक्रदेवें सांजली, एटले मनमा शंका उप नी, त्यारें यझदेवने पूजवा गयो. यझदेव बोल्यो, रे मित्र ! ए झुं कहो हो? ढुं तमने केम दुःखमां नाखु, ए इव्य तो महारा पितानी बीके में तमारे घेर मूक्युं ले. त्यारे चक्रदेवने शंका हती ते टली गइ. हवे चंदन सार्थवाह राजानी पासे फरियाद गयो, त्यारें राजा बोल्यो, तमारूं गुं गुं इव्य गमु ? शेठे पण राजाना दफतरमा लखाव्युं. राजायें त काल ढंढेरो फेरव्यो. रे लोको ! सांजलो. चंदन सार्थवाहनुं घर को मूशी गयो ने. ते जो कोयें लीधं होय तो ते प्रावीने राजाने कहे. राजा ते नो गून्हो माफ करशे. तथा कदापि जो जाहेर नही करशे,अने पड़ी रा जा जाणशे तो राजा तेने याकरो दंम देशे, तेना प्राण लेशे. ते ढंढेरो फेरव्या पनी पांच दिवस गया, एटले यज्ञदेव राजा पासे जश्ने कहेवा लाग्यो, हे राजन् ! वात कहेवी युक्त नथी, मित्रनुं लिए केम कहेवाय ? तो पण राजारे तो जेQ जाणीये तेवं कहीयें ए नीति जे. वली यद्यपि जो मित्र ने, तो पण आलोक अने परलोकनो विरुवाचारी पोताना श्रा माने पण कुःखदायक ते मित्रने झुं करूं ? राजाने केम नवे ? जे नज रें दीढं ते तमने कटुं . राजा बोल्यो जेवू होय तेवू कहो, पण न्याइने Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. अन्याइ कहेशो नहि. यज्ञदेव बोल्यो,हे राजन् ! में कानें सांजव्युं बे,जो च क्रदेव न माने तो एनुं घर प्रचन्नपणे जुड़, में परिजन पासे सांजव्यु ने ते खलं , पनी मन माने तेम करो, तमे महोटा बो, माफ करो तो घणुं सारं, महारो महोटो नाइवे. राजा बोल्यो, ए वात केम मनाय? यज्ञदेव बो व्यो तमे कयुं ते साचुं , परंतु रूडा माणसनु मन पण लो. काचुं यह जाय . एमां कुलनो पण शो वांक ले ? जे माटे फूल घणुं उत्तम होय; अने सुगंधी होय तो पण तेमां कीडो निपजे . बणामां वींडी थाय जे, तो तेमां कुल झुं करें ? ते माटे कोक प्रकारे बाप एनुं घर जोवरा वो. राजायें पण ते वात युक्त जाएगीने पंच बोलाव्या, वली घणा न्याय वंत महाजन नेगा करीने कर्तुं के, चंदन सार्थवाहना नंमारीने साथे ल इने चक्रदेवन घर जुन. त्यारें कारणिया विचारवा लाग्या के. राजा गुं बोले ले ? कां पण तोल करतो नथी ! चक्रदेवने धर्मनो रंग चोल जेवो डे. वली विचारे डे के, बापणे गुं करियें, आपणेतो आझाकारक थया, एम करी आंखमां आंसु करतां सर्व जेगा मलीने त्यां गया. पाउलो पहो र दिवस रह्यो, त्यारें आव्या. तेने चक्रदेवें घणुं आदर सन्मान दे वेसवा ने आसन याप्यां. कारणिया बोल्या, हे शेठ ! कोई व्यापार करतां कांश वस्तु लाव्या होय तो कहो. चक्रदेव शंकारहित पणे बोल्यो. दुं कांई जा गतो नथी. कारणिया बोल्या, तमे कोप न करशो, राजानी आझा तमा सं घर जोवानी . चक्रदेव बोल्यो,श्हां कोपनो शो अवसर ने ? जे राजा होय ते न्यायें अन्यायें जुए एतो रीतिज ने. हवे कारणिया पण नगरना वृक्षपुरुषोने साथें लेइने राजपुरुषोने हाथें जोयुं, जोतांथकां विविध प्रकारचें धन दीतुं, ते नाम पण चंदनना नाम सहित दीठां. माहेथी नपाडी सर्व बहार लाव्या,चंदन शेठना मारीने दे खाड्या, ते पण देखीने हैयामां दुःख धरतो बोल्यो, संनवेतो वे पण चि त्तमा संशय आवे जे. कारणिया बोल्या, पत्र लख्यु डे ते वांचो, तेमां ए दागीना बे के नहि ? पत्र जोयुं तो सर्व ते प्रमाणे दीडं. त्यारें सहुयें थर हया. कारणियायें चक्रदेवने पूब्युं तमारे घेर ए ६ क्यांथी यावी ? त्यारे चक्रदेवें विचास्युं के, मित्रनुं नाम केम देवाय ? जो एने माथे चोरी यावेतो महारी सङनता केम रहे ? वली महारा प्राण उगारीने परना Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. प्राण केम हणुं ? एम चितवीने कयुं के, ए नाम महारा घरना जे. कारणि या बोल्या, ए नांमनी उपर चंदन सार्थवाहनुं नाम केम ? तेणें कयुं तेतो खबर नथी, कोण जाणे फेरफार थयो हो ! कारणिया बोल्या, शी संख्यायें तमारांनांक ? चक्रदेव बोल्यो,सांजरतुं नथी: पनी कारणियायें पत्र वंचाव्युं, तो दश हजारनो माल थयो, ते पत्रमा ज़खेलां नांम बरा बर मयां, नगरना लोक तथा कारणिया विस्मय पाम्या के, युगांते पण चक्रदेव पारकुं धन न ले. फरी पूबवा लाग्या, हे चक्रदेव ! जे होय ते प्रक ट वात कहो के, ए केम ले ? एम फरी फरीने प्रजे, पण चकदेव तेज जवा ब आपे. वली फरीने पूधु, कांक विचारीने कहो. तोपण चक्रदेवें कांइन कह्यु. त्यारें कोटवाल कोपीने राजा पासे लाव्यो. राजाने सर्व वात संन लावी. राजा बोल्यो, ए उनय लोकनो जाण ते धावू हीj काम केम करे? चक्रदेवने राजायें पूब्युं, जे परमार्थ होय ते कहो. त्यारें चकदेवें, अांख मां बांसु लावीने प्रर्वनी पेठे कर्तुं. राजाने चक्रदेव नपर शंका नपनी, प ण चक्रदेवना बापनो आदर जाणीने कां कडं तो नहि; परंतु नगरथी बाहेर काढी मूक्यो. राजाना चाकरें नगरनी पासे वन डे त्यां जश्मूक्यो. त्यां चक्रदेवें मनमां विचाओँ के, मुझने यावडो परानव थयो, लोकमां अप यश थयुं माटे हवे महारे जीवq घटे नही. एम चिंतवीने त्यां देवलनी पासे एक वड , तेमां गजेफांसो दीधो. ए अवसरे वनदेवी अवधिज्ञानें जोयुं तो वात घणी विपरीत थती दीती. चक्रदेव नपर करुणा आवी, तेथी ते वनदेवीयें राजानी माताना दिलमा श्रावीने जेवी वात हती तेवी कहीने कयु के, नगरना बहार च क्रदेवें मरवाने फांसो घाल्यो , ते जश्ने वारो, अने घणा बादरथी नग रमा तेडी लावो. ते सांजलीने राजा कुःखथी टलवलतो बोल्यो के, उरा चारी यज्ञदेवने पकडी लावो. एम दुकम करीने पोते उतावलेो बोले साथे नगर बहार जतां थकां दूरथी चक्रदेवने फांसो खातो देखीने सोर करतो आवीने फांसो दूर करीने पोतानी पासे बेसाडयो. चित्तमां घणो आनंद उपन्यो. राजा बोल्यो,हे जूमा ! में तने फरी फरीने पूजयुं पण तें कां वात कहीज नही. तुं साचो , तहारं सर्व स्वरूप वनदेवी महारी माताना दि Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ១៩០ जैनकथा रत्नकोष नाग रहो. लमा श्रावीने कयुं. तेणें यकदेवने जूठो कह्यो, अने तने साचो कह्यो. ते सांगलीने चक्रदेवें विचास्युं,अहो ! ए काम मातुं थयु. राजा बोल्यो, तहा। श्रवा करी ते ९ खमार्बु ढुं, तुं खमजे, में परमार्थ जाण्या विना क्रोधे करी तने घणी केदर्थना करी ने कष्टमां नांख्यो. चक्रदेव विचारे , जे ए महोटो अनर्थ थयो जे माटे यकदेवने आपदा आवी. ते वारें राजाने कहेवा लाग्यो. हे राजन् ! तमे प्रजाना पालक बो, यझदेवनी खरी खबर काढो, राजा बोल्यो, अमे खरी खवर काढीने, ए महामुष्ट ने, सऊनने दुःख दायी ले. चक्रदेव बोल्यो, ए महारो मित्र एम करे नही. राजा बोल्यो, देवी खोटं बोले नही. चक्रदेवें विचाङ्गु महारो ना डे,तेमां ए वात केम संनवे ? ___ एटलामा यज्ञदेवने बांधीने राजा पासे पाण्यो. राजायें कह्यु, एनी जी न कापो, एनी बे आंखो नपाडो, एनुं घर लूंटी लावो, एने यष्टिमुष्टि प्रहारें मारीने पडी देशमाथी काढी मूको. त्यारे चक्रदेव राजाने पगे पडी घणी घणी उलग करी कहेतो हवो के, महारे बीजुं कांश जोश्तुं नथी, यझदेवने मूको. जो यकदेव आपदा पामे तो मने खामी यावे. राजा बो व्यो, ए वाततो युक्त नथी, ए साते धातें उष्ट से, विश्वासघाती , एने रा खे झुं थाय? माटे बीजुं कांश माग, बीजी जे वात कहे ते ढुं मानु, तुं क हेतो तुमने सर्वनो शिरदार करी था, पण यझदेवने तो नहि मुकुं. फ री चक्रदेव बोल्यो, एने जीवितदान यो, एटले तमे मने सर्व आप्युं. रा जा बोल्यो, तहारे वचनें मूक्यो. चक्रदेवें कह्यु, ए तमें महारी नपर महो टो प्रसाद कयो, एम कही राजाने पगे लाग्यो. राजायें चक्रदेवने घणो श्रादर दीधो. घणी रीतें बोलाव्यो. लोक कहेवा लाग्या. राहतुं पाणी रा हे गयु. यझदेव महाजघन्य थयो. एतो जीवतोज मुजाणवो. चक्रदेवतो नंमा कुवानी पेठे महागंनीर जाणवो. सवैयो ॥ बहिरें गीत नदु सुण्यो,न मरे चंप नदु दीठो, सोलकला संपूर्ण चंद अंधलें न दीठो, करहीणें पांगु में कठिनको बाण न ताण्यो, जुवती कंठ विलग्ग मुग्धे रसनेद न जाण्यो, कूणही पूत कपूत गीत नाद चित्त नवि धास्यो, कवि गद्द कहे रे उकुरो तो गुणवंताहि गुण ग्रह्यो ॥ १ ॥ चक्रदेवने वैराग्य नपन्युं, अहो ! मित्रने पण एवडो खेद, अहो कर्मनी विचित्रता, अहो संसारनी असारता, पर Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हए गौतमकुलक कथासहित. चित्तनो पार न पामीयें, जो मित्रज एम शेही थाय तो कोनी साथै चि त्त मेलवीयें ! जो एनो त्याग करीयें तो सुख पामीयें ॥ यतः ॥ वरं न रा ज्यं न कुराज्यराज्यं, वरं न मित्रं न कुमित्रमित्रम् ॥ वरं न दारा न कुदा रदारा, वरं न शिष्यो न कुशिष्य शिष्यः ॥ १ ॥ . एवा अवसरने विपे अग्निनति नामा गणधर उद्यानने विषे अवग्रह जाचीने रह्या . तेमने चक्रदेव नद्याने गयो हतो, तेणें दीठा, त्यारे घणो राग नपन्यो,जश्ने प्रणाम कस्यो,गुरुयें धर्मलाज़ दीधो, चक्रदेवें धर्म पूज्यो, गुरुये पण खंति प्रमुख दश प्रकारनो मुनिधर्म वखाण्यो, ते सांजलीने घणी शाता नपनी, कर्मे विवर दी, त्यारे मिथ्यात्व त्याग क, समकित पाम्यो, वधते परिणामें देशविरति फरश्यो, वली चढते अध्यवसायें संवे ग वध्यो, पुण्योदयें करी कर्म गव्यां, वीर्य नन्नास वध्यो, कर्म स्थिति घणी त्रुटी, दीदाना परिणाम थया, गुरुने कहेवा लाग्यो, तमे मने नपगार क स्यो. हवें जे कहो ते करूं. गुरु बोल्या, तुं योग्य जीव बो माटे चारित्र अं गीकार कर. ते गुरुनुं वचन सांजली चक्रदेवें चारित्र यादयुं,ानवा पर्य त पादयु, काल करीने पांचमे देवलोके नव सागरोपमनायाउखें देवता थयो. यज्ञदेव मरीने बीजी नरके नारकी थयो. हवे बागल ए चक्रदेव यज्ञ देवना पूर्वनवनी वार्ता घणी जे. ते सर्व समरादित्य चरित्रथी जाणजो. शहांतो चाडियानी संगत न करवी, ते उपर ए नवनुं प्रयोजन हतुं, ते क झुं. चाडियानी संगत. मूकी त्यारे सुखिया थया. अनुक्रमें चक्रदेव त्रण चा र नवे मोद जशे. यज्ञदेवतो अनुक्रमें बही नरके जश्. पड़ी अनंतो काल संसारमा रऊल. इति चक्रदेव कथा ॥ ७६ ॥ इति श्रीसकलसनानामिनीनालस्थलतिलकायमानपंमितश्रीनत्तम विजयग णिशिष्यपंतिश्रीपद्मविजयगणिविरचिते गौतमकुलकप्रकरणे बालावबोधे त्रयोदशगाथायां पंचोदाहरणानि समाप्तानि ॥ %22 %3D Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 990 जैनकथा रत्नकोष नाग हो.. हवे चौदमी गाथा लखीये लियें. तेने पूर्वगाथा साथै ए संबंध बे के पू र्व गाथायें न सेववा योग्य अधम पुरुष देखाड्या, थने आ गाथा ___ मां तेना प्रतिपदी, सेवा करवा योग्य उत्तम पुरुष देखाडे जे. जे धम्मिया ते खलु सेवियबा, जे पंमिया ते खलु पूपियवा ॥ जे साहुणो ते अग्निवंदि यबा, जे निम्ममा ते पडिलानियबा ॥१४॥ थर्थः-जे धम्मिया ते खलु सेवियवा (जे के० ) जे पुरुष ( धम्मिया के ) धर्मि एटले धर्मवंत होय, ( ते के ) ते पुरुष ( खलु के ) नि चयें ( सेवियवा के) सेववा, एटले अंगीकार करवा. ते नपर श्रीकृषन देव स्वामीनो पाबला वैद्यना नावनो दृष्टांत कहे . ___ जंबुद्धी महाविदेह क्षेत्रने विषे दितिप्रतिष्ठित नामें नगर ले. त्यां सु विधिनामें वैद्य तेनो जीवानंद नामें पुत्र हतो. ते कालेज बीजा चार बा लक उपन्या. ते जाणियें दान शील तप अने नावनानी मूर्तियोज होय नहि ! तेमां एक प्रसन्नचं राजानी कनकावती नार्या तेनो महीधर ना में पुत्र थयो, बीजो सागरदत्त सार्थवाहनी थनयमती जार्या तेनो पूर्णन इनामें पुत्र थयो. त्रीजो गुनासीर नामा प्रधाननो सुबुदिनामा पुत्र थयो, चोथो धननामा शेवनी शीलवती नार्यानो गुणाकर नामें पुत्र थ यो. अनुक्रमें महोटा थता हवा. साथें पांसुक्रीडा करे. कंलाना कलाप साथें नणे. तेज नगरमा इश्वरदत्त नामें शेतनो केशव नामें पुत्र , ए ब जणने मांहो मांहे आकरी मित्रा थइ. ते पंचेंघिय अने उतुं मन तेनी पेठे, विरहरहितपणें रहे. जीवानंद पोताना पितानी विद्या आयुर्वेद संपू र्ण जण्यो, अष्टांग औषधी रसनी वातोनुं फल सर्व जाणे, हाथीमां जेम ऐरावण, ग्रहमा जेम सूर्य, तेम सर्व वैद्यमां शिरोमणि थयो. जण साथें कीडा करतां एक दिवस एकने घेर रहे, बीजे दिवसें बीजाने घेर बए नेला रहे, एम सदा सघलाये गा रहे. एकदा जीवानंद वैद्यने घेर सघला जेगा मलीने रह्या , एवामां पृथ्वीपाल राजानो पुत्र गुणाकर नामें Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २०१ जे, तेमणे अंगना मेलनी पेठे राज्य मीने चारित्र लीधुं , ते जेम नष्णकालना तापें नदी उबली थाय, तेम तपस्यायें करी पुर्बल थया बे, तेमने अकाले अपथ्य नोजने करी कोढ नीकल्यो , तेमां सर्व अंगे कृमि नपन्या जे, तो पण औषध जाचता नथी, जै माटे मुनिराज होय ते शरीरनी अपेक्षा न करे. ते मुनि बनने पारणे घर घरने विपेन मता जीवानंद वैद्यने घेर थावता मित्रोयें दीहा. त्यारें महीधर कुमार वै य पुत्र जीवानंदने हांसीमां कह्यु, जगत्मां वैद्य शिरोमणी तुं कहेवाय जे, तुमने रोगनुं ज्ञान ,तहारी पासे श्रौषध पण घणा , चिकित्सामां पण माह्यो बो, पण तहारामां कांश दया नथी. जे सदा आर्त होय ते तु जने प्रार्थना करे तो पण तुं वेश्यानी पे इव्य विना तेनी सामुं पण न जुए. माटे एकांतें व्यना लोनी न पश्ये, कांक धर्म आश्रयीने पण चि कित्सा करीये, तहारी वैद्यविद्या, तहारो परिश्रम तेने धिक्कार पडो, जे माटे एवं रोगवंत पात्र आव्युं,तेने नवेखे ! ते सांजलीने जीवानंद पण सकलविज्ञानरूप रत्ननो रत्नाकर ले ते बोल्यो. हे महानाग ! तें नलु संजा युं जे माटे ब्राह्मण अषी न होय, वाणियो अवंचक न होय,शोक्य अ नावंत न होय. शरीर नीरोगी न होय. पंमित, धनवंत तथा गुणवं त एत्रण निरहंकारी न होय. स्त्री अचंचल न होय. राजपुत्र सुचरि चना धणी न होय. ए सर्व प्रायें न होय, माटे ए महामुनि चिकित्सा करवा योग्य . पण औषधनी सामग्री महारी पासें पूरी नथी. ए वच मां अंतराय नडे . जे माटे एक लक्षपाक तेलतो महारीपासें ले, पण गोशीर्ष चंदन अने रत्न कंबल ए बे वस्तु नथी. ते सांजलीने पांचे मित्र बोव्या. ए वे वस्तु बमे लावीयु. एम कहीने पांचे जण हाटनी श्रेणी गया. साधु पण पोताने ठेकाणे गया. हाटवाला वाणियाने पांचे जणे कडं. मूख्य लेश्ने अमने बे वस्तु यापो. एम कहे थके वाणीयो बोल्यो. ए बे वस्तुनुं प्रत्येके लाख इव्य मूल्य थाय . पण तमे ए वस्तुने झुं करशो ? जे प्रयोजन होय ते कहो, ते बोल्या. तमे मूल्य लश्ने अमने गो शीर्ष तथा रत्न कंबल आपो, अमारे साधुनी चिकित्सा करवी जे. ते सां जलीने वाणियो विस्मय पामीने विकस्वर लोचन करी रोमराजि विकस्व र करीने चिंतववा लाग्यो. एर्नु उन्माद प्रमाद मदन, स्थानक एवं यो Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोप नाग बहो. वन क्यों ? ने महारी विवेकनुं स्थानक एवी वृद्धवस्था क्यों ? जरायें जर्जरित शरीरवालो हुं हुं तेथी ए कार्य मने कर घटे, ते ए करे बे. एम चिंतीने वृद्ध वालियो बोल्यो, जो नइ ! ए वे वस्तु मूल्य दीधा वि नाज ल्यो. तमने कल्याण था. एनुं मूल्य सर्वथा नहिं जेनं तमे मने जा इनी पेठें धर्ममां संविभागी कस्यो. एम कही ते शेठें बेदु वस्तु पीने पोतें चारित्र लइ तेने निरतिचारपणें पाली केवलज्ञान पामी मोदे गयो. ते पांचे सत्पुरुष पण प्रौषध सामग्री लेइने जीवानंद वैद्यने साधें ते डीने मुनि पासें गया. मुनि वडना वृक्ष हेग्ल निश्चलपरों का स्सग्गे र ह्या बे. तेमने बये जण प्रणाम करीने बोल्या, हे जगवन ! तमारी चिकि त्सा करवे करीने धर्ममां विघ्न करीगुं. पण अमने प्राज्ञा करो. तथा पु एनो अनुग्रह करो. एम मुनिनी अनुज्ञा लेने एक गायनुं मडुं जेइ याव्या. हवे मुनिने अंग प्रत्यंगे ते तैलें मर्दन कस्थं. जेम नीकें करीने पाणी क्यारामां यावे, तेम शरीरमां तेल संचारता हवा. ते तेजनुं वीर्यनम ले, तेथी मुनि चेतन या. जे माटे उग्रव्याधी शमाववाने उग्र औषध जो इये, हवे तेजें करीने कमिया कलेवरमां व्याकुला थया. पढी मुनिने शरी रें रत्नकंबल लपेटी लीधुं. ते रत्नकंबल शीतल बे, तेथी त्वचागत कमी हता ते सर्व बाहार नीकल्या. तेने रत्नकंबलमां जेइने हलवे हलवे गायना शव मां खंखेया. कारण के, सत्पुरुष होय ते सर्वनी दया पाले. पढी जीवानं दें गोशीर्ष चंदनें करी मुनिना शरीरे विलेपन कयुं. तेथी आश्वासना उप नी. वली तेजें चोल्युं तेथी मांसगत कमी नीकल्या. पढी रत्नकंबल याबा दन क. तेथी ते कमि रत्नकंबलमां याव्या. ते पण गायना शमां खं खेला. उपर गोशीर्ष चंदन चोपड्युं. तेथी मुनि शीतल यया हो ! वै द्यनुं कुशलपणुं जू कहेतुं वे ! वली तेल चोल्युं तेथी हाडगत कृमी नी कल्या. बली रत्नकंबले लेइने गोशबमां परठव्यां वली गोशीर्ष चंदनें विले पन क. ज्यारें बलीयो रुपे त्यारें वज्रपंजरमां पण रहेवानुं स्थानक नमजे. मुनि निरोगी था. पती संरोहिली प्रौषधियें नवी कांतिसमान मुनिनुं देह यो. सुवर्ण सरखी काया थइ. त्याऐं मुनिने खमावीने उए जल पोता ने स्थानके गया. मुनि पण अन्यत्र गया. पती गोशीर्ष चंदन रह्युं. ते त या रत्नकंबल वेचीने सुवर्ण लीधुं. ते सुवर्ण ने पोतानुं सुवर्ण जेली म Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २७३ होटुं मेरुना टुंकनी पेठे एक चैत्य करावी, तिहां जिनप्रतिमानी पूजा क रतां, गुरुसेवामां तत्पर थकां काल गमावता हवा. ते बये जण एकदा वैराग्य पामीने चारित्र ले ग्रामानुग्रामे विचरता, बठ अमादिक तपस्या करता, मधुकर वृत्तिये आहार लेता, सुनटनी पेठे परिसह सहेतां, द मादिकें करी चार कषायनो जय करता, इव्य नावथी संलेषणा करता, नशन करीने पंच परमेष्ठितुं ध्यान करता, बारमा देवलोके वीश सागरोपम ने आखे इंइना सामानिक देवता थया. श्दा एटलुं प्रयोजन हतुं माटे एकज नव कह्यो . बीजा नव श्रीहैम षन चरित्रथी जाणवा ॥ ७ ॥ हवे बीजा पदनो अर्थ कहे . जे पंमिया ते खलु पूबियवा (जे के०) जे पुरुष (पंमिया के० ) पंमित होय, (ते के०) ते पुरुष ( खलु के० ) निश्चे (पूनियवा के०)पूबवा योग्य जागवा. ते उपर तुंगिया नगरीना श्रावकनो दृष्टांत कहीयें बीयें. ते काले ते समयने विषे, तुंगिया नामें नगरी हती. तेनुं वर्णन क रवं. ते नगरीनी बहार पूर्व अने उत्तर दिशिना वचमां, ईशान कूणे पु ष्पवती नामें उद्यान हतुं. तेनुं वर्णन करवं. ते नगरीमा घणा श्रमणोपा सक वसे . ते केवा जे ? तो के, धन धान्यादिकें परिपूर्ण अने प्रसिद, अथवा पोताना धर्ममां दर्पवंता , घणा विस्तारवंत एवा नवनशयनास नवाहने करी नयां डे, घणां अणिमादिक धनवंता डे, जेने घणुं सुवर्ण, घणुं रू', घणां धनबमणी वृद्धियें अथवा व्याज वृधियें वधारता .जे में विपुल विविध प्रकारनां अशन पान नात पाणी बदलोकना जमवाथी बांमयां ने, नांखी दीधां , जेने घणा दास दासी गाय पाडा गामर प्र मुख ले. जे घणा लोकोने अपरानवनीय ने. जीव अजीव जाणे बे. पुण्य पाप उलखे . आश्रव संवर अने कायिकी प्रमुख क्रिया, अधिकरण गाडी यंत्र प्रमुख बंध मोक्ष तेना हेय उपादेयमां कुशल तथा स्वरूपना जाण .आपदा प्रमुख आवे पण देवता प्रमुखनी साहाय्य नथीश्वता. पोता नां कस्यां कर्म पोतें जोगवे, एम विचारीने अदीनमन थका विचरे बे. अंथवा पाखंमी प्रमुख समकितथी चलाववा आवे तो पण परनी साहा य्य नथी हता, पोतेंज तेनो प्रतिघात करवा समर्थ डे. जिनशासनमां अत्यंत नावित , ते माटे नवनपति व्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिक देवता Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. पण तेमने धर्मथी चलावी शके नही. निर्यथना प्रवचनमा निःशंकित,निः कंपित, निर्विचिकित्सावंत, अर्थ सांजलीने लाधा अर्थ जेणे, अर्थने अ वधारण कया , संशय नपने अर्थ पूज्या डे, ते पूज्या अर्थना निश्चय कस्याने, पर्याय अर्थ पण जाण्या , एटलाज माटे तेने अस्थि मिंजायें सर्व छ वचननी प्रीतिरूपरंग लाग्यो . कसुंबादिकना रंगें रंग्यानी पेठें रंगाणा जे. तेज देखाडे . ते श्रावको, पोताना पुत्रादिकने बोलावीने एम शिक्षा दे ले के, हे पुत्रादिको ! हे.आनखावंतो ! ए निर्यथ प्रवचन जे अर्थ डे, तेज परमार्थ जे. बीजुं धनधान्य, पुत्र, कलत्र, मित्र कुप्रवचन ते सर्व अनर्थ D, नन्नत के एम कहे. जेनुं चित्त स्फटिकनी पेठे निर्मल ले. निर्यथ प्रवचन पामवें करी जेनां मन परितुष्ट ने. मुंगलो उंची मूकी . बारणां उघाडां मूक्यां ने. अतिशय उदारता .माटे अतिशयवान दाता . जे निळु थावे तेने कोइ निषेध न करे. जेणें परघर प्रवेश गंमयो बे. अथवा थंतेनरमां तथा परघरमा प्रवेश ते प्रीतकारी बे. एटले अतिधर्मीपणे करी कोइने शंका उपजे नही. हादश व्रतना धरनारा, पोरिसी प्रमुख पञ्चरकाण पर्व दिवसे उपवास प्रमुखना करनारा, वली पौषधना करनारा, श्रमण नियने प्रा गुक एषणीक अशन, पान, खादिम, स्वादिम, वस्त्र, पात्र, कंबल, पाय पुबण, पीठ, फलक, शय्या, संथारो, धौषध, नेषज्य पडिलानता थका विचरे से, तथा यथाप्रतिपन्न तप करता थका विचरे ने. ते काल ते समयने विषे श्री पार्श्वनाथ स्वामीना संतानिया घणा स्थ विर, जातिसंपन्न, कुलसंपन्न, बलसंपन्न, रूपसंपन्न, विनयसंपन्न, ज्ञानसंप न, दर्शनसंपन्न, चारित्रसंपन्न, लजासंपन्न, लाघवसंपन्न, यौषधप्रमुखें हलका, उयंसी, तेयंसी, वच्चंसी, मनें धैर्यवंत, शरीरें तेजस्वी, वचनें यादेय वंत, एत्रणे पदने जोडीयें. जस्संसि क्रोध, मान, माया अने लोन जी त्या . निश जीती जे. इंघिय जीत्यां . परिसह जीत्यां जे. जेने जीव वानी याशा तथा मरनो जय नथी. तपप्रधान, गुणप्रधान, करणप्र धान, चरणप्रधान, इहां चरणकरणशब्दें चरणसित्तरी तथा करण सित्तरी लेवी. निग्रहप्रधान, निश्चयप्रधान, मार्दवप्रधान, धार्यवप्रधान, लाघवप्रधानं, दांतिप्रधान, मुत्तिप्रधान, विद्या, मंत्र, तप, ब्रह्मचर्य नयनियम, सत्य तथा शौच प्रधान, चारुप्रज्ञा, सर्व जीवना मित्र, नियाण रहित, नकतारहित, Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २०५ तेजोलेश्या बहार न काढे, श्रमणपणाने विषे राता, जेनां प्रश्न उत्तर दूषण रहित, कुत्तियावण नूत बे. एटले स्वर्ग मृत्यु ने पातालमा जे वस्तु बे, सर्व कुत्तियावना हाटमां मले. ते रीतें अणगारमां पण इति अर्थ नि पजावे, एवी लब्धिवंत बे. तथा सम्यक्त्वगुणवंत बे. माटे उपमा दीधी. एवा पांचसे अणगारें परिवस्या ग्रामानुग्रामे विचरता ज्यां तुंगिया नामें न गरी, ज्यां पुष्पवती चैत्य बे, त्यां घावता हवा. यथां प्रतिरूप अवग्रह ग्रीनें संयम तपस्याने विषे श्रात्माने जावता थका विचरे बे. त्यारें तुंगिया नगरीमां एक दिशियें लोक जता देखीने ते श्रमणोपास जाये के परस्परें तेडावीने नेगा यइ एम कहता हवा के, हे देवापिय ! श्री पार्श्वनाथस्वामीना अपत्य स्थविर भगवान पूर्वे वर्णव्या तेवा पधारया बे. हे देवाणुप्पिय ! तथा रूपस्थविरं नग़वानंनां जो नाम गो त्र सांगलीयें तो महाफल थाय, तो सामा जइयें, वंदना करीयें, नमस्का रकरीयें, प्रश्न पूढीयें, सेवा करीयें, अर्थ गृहियें तेना फलनुं तो कहेवुंज शुं ! ! ! ते कारण माटे हे देवाप्पिय ! यापणे जइयें, वंदना करीयें, मस्कार करीयें, यावत् सेवा करीयें. ते आपणने यानवने विषे, परजवने विषे, सुखकारी, देमकारी, यावत् सार्थे श्रावशे. एम मांहो मांहे वात कबूल करी, पोत पोतानें घेर गया. न पढी घेर जइ न्हाइने पोताना घर देहेरासरनी पूजा प्रमुख करी, गुरुवंद नायें परवा योग्य मांगलिककारी वस्त्र पहेरीने, जेनुं बहुमूल ने नार थोडो एवां प्रानूषण पहेरीने पोत पोताना घरमाथी नीकलीने एकता म ली पगे चालतां थका पुष्पवती चैत्यने विषे यावी सचित्तव्यनो त्याग करे, चित्त पासे राखे, एक साडी उत्तरासंग करे, मुनिराजने नजरें दीवा हाथ जोडी अंजलि करे, मन एकाग्र करे, ए पांच निगम जालवता स्थ विर जगवंत पासें यावी, त्रण प्रदक्षिणा देइ सेवा करे. त्यारें ते स्थविरें श्रमणोपासकने चार महाव्रतरूप धर्मदेशना दीधी. त्यारे ते श्रमणोपासक देशना सांजलीने हर्ष पाम्या त्रण प्रदक्षिणा देने एम पूबता हवा. हे न गवन् ! संयमनुं छं फल ? तथा तपनुं गुं फल ? स्थविर बोल्या, हे खायों ! संयमनुं य फल. ( अह्नाय के० ) अनाश्रव नवां कर्मनुं प्रणजेवुं. तनुं फलते वोदा (वोदाल के० ) पूर्वकृत कर्मरूप वन गहननुं जू Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. वुं. अथवा कर्मरूप कचरानुं शोधन करवुं. त्यारे श्रमणोपासक बोल्या, हे भगवन् ! जो संयमनुं ह्रयं फल बे ने तपनुं वोदास फल बे, तो दे वता देवलोकने विषे शा निमित्तें उपजे बे ? त्यारें कालिय पुत्र नामा स्थविर एम कहे. हे यार्यो ! पूर्व तर्फे देवता देवलोकने विषे उपजे बे. ( पूर्वतप के ० ) सराग व्यवस्थानाबी तप अने वीतराग अवस्था जावी तप, ए वे अपेक्षायें सराग तप ते पूर्व तप कही यें. त्यारें मेहल नामा स्थविर एम कहेता हवा, हे खाय ! पूर्व संयमे दे वता देवलोकने विषे उपजे बे. पूर्व संयम ते यथाख्यात चारित्र एटले सराग संयम कहीयें. रागनो अंश ते कर्मबंधनुं हेतु बे. वली दरक्षित नामा स्थविर एम कहे, हे खार्यो ! कर्मे करी देव ता देवलोकने विषे उपजे बे. कर्म ते शेष कर्म दय न थयां तेथी, उपजे बे. वली कासव नामा स्थविर एम कहे, हे यार्यो ! संग पणें देवता देव लोकने विषे उपजे बे. संग ते इव्यादिकने विषे संग तेणे करी उपजे बे जे कारणे संयम सहित होय. तोपण संग ते कर्मबंधनुं हेतु बे इति ॥ हे आर्यो ! ए अर्थ साचो बे मे मारी बुद्धियें नथी कहेता. त्यारें श्रमणो पासक एवा प्रश्न उत्तर सांजलीने हर्ष पाम्या. संतोष पाम्या. स्थविर नग वानने वंदना नमस्कार करी प्रश्न पूछी तेना अर्थ यही स्थविरने विषे त्रण प्रदक्षिणा देने वंदना नमस्कार करीने पोत पोताने घेर गया. ते स्थविर पण बीजा देशने विषे विहार करता हवा. ते काल ते समय विषे राजगृह नगरे जगवंत श्रीवीरस्वामी समोस या. यावत् पर्षदा वांदवा यावी. देशना दीधी. यावत् पर्षदा पाटी गई. ते काल ते समयने विषे श्रमण भगवंत श्रीमहावीरस्वामीना वडा अंते वासी इंड्नूति नामा अणगार तेनुं वर्णन करवुं यावत् जेणें विपुल तेजो लेश्या संदेपी ले, अने निरंतर बघ बघनां पारणां करतां संयम तपस्याने विषे खात्मा जावता का विचरे बे. त्यारें बहने पारणे पहेली पोरिसीयें सनाय करे, बीजी पोरिसीयें ध्यान करे, त्रीजी पोरिसीयें मुहपत्ति पडिले हीने जाजन वस्त्र पडिलेहे, पूंजे, प्रमार्जे, पढी जाजन व्यवगाहीने प्रभु पासे यावे. वंदना नमस्कार करीने एम कहे के, हे जगवन् ! तमारी श्राज्ञायें राजगृह नगरमां गोचरी जवा बुं बुं. त्यानें प्रभुयें आज्ञा दीधे Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २०७ थके उतावला नही, चपलपणें नही, र्यासमिति शोधता, धूसरा प्रमाण दृष्टि देश, राजगृहमां गोचरी फरे जे. तेमणे फरतां थकां एम सांजव्यु, जे तुंगिया नगरीने बहार, यावत् श्रमणोपासकें एम पूज्यु. तथा तेने स्थविरोयें जे उत्तर दीधुं. ए वात केम मनाय ? एवी लोक वातो करे बे. ते गौतमस्वामीयें सांजल्यु. पनी गोचरी करीने पाला प्रनुपासें श्राव्या. इरि 'यावहि पडिक्कमी गोचरी बालोवी नात पाणी देखाडी एम कहेता हवा के, हे नगवन् ! तमारी आझायें दुं गोचरी गयो. ते गोचरी फरतां लोक एवी वात करवा लाग्या, ते में सांजली. हे स्वामिन् ! ते स्थविर, श्रमणो . पासकने ए अर्थ कहेवा समर्थ के नहि ? ते अविपरितपणें कहे के, न क हे ? ते उपयोगी, ज्ञानी, खरा के नहि ? ते समस्त प्रकारे जाणे के नही ? प्रनुजी बोव्या, हे गौतम॥ ए अर्थ कहेवा समर्थ बे. अविपरीतपणें कहे, ते उपयोगी ज्ञानी , समस्त प्रकारे कहे. गौतम बोल्या, हे स्वामिन् ! तथा प्रकारना मुनिराजनी सेवानुं फल ? प्रनु बोल्या, विज्ञान एटले हेय न पादेयनो विवेक यावे, सिद्धांत सांजलीयें, ए फल. विशिष्ट ज्ञानथी पाप त्याग करेज. गौतम बोल्या, पञ्चरकाणनुं गुं फल ? प्रनु बोल्या, संयम फल. पाप पञ्चरव्यु एटले संयम थायज. गौतम बोल्या, संयमनुं हुं फल ? प्रनु बोल्या, अणएहय फल. संयमवंत थाय एटले नवां कर्म न ग्रहे. एम अण एहयतुं तप फल. अनाश्रव थयो थको तप करेज. तपस्यानुं वोदाण फल. तपस्यां करतां पूर्वकर्म निर्जरे, ते वोदागर्नु अकिरिया फल. अक्रिया ते यो गनिरोध. कर्मनिर्जरा थाय, त्यारे योगनिरोध थायज. अक्रियानुं सिदिपर्य वसान फल. तेथी पागल फल नथी॥ इति श्रीनगवतीसूत्रे बीजे शतके पांचमे नद्देशे. ते माटे जे पंमित होय ते पूबवा योग्य जाणवाः हवे त्रीजा पदनो अर्थ कहे .जे साधणो ते अनिवदियवा. ( जे सा दुणो के० ) जे साधु मुनिराज , (ते अनिवंदियवा के ) ते समस्त रीतें वांदवा योग्य जाणवा. ते उपर विजयसेन आचार्यनो दृष्टांत कहे जे. जंबुद्दीपना पश्चिम महाविदेह क्षेत्रने विषे गंधार नामें देश त्यां गंधार नामें नगर ले. त्यां लक्ष्मीसेन नामें राजा तेनो विजयसेन नामें पुत्र . तथा सुवसु नामें पुरोहित. तेनो विनावसु नामें पुत्र ले. ते राजकुमरने तथा पुरोहित पुत्रने घणी मित्रा थर. एक दिवस पुरोहित पुत्रने रोग Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. थयो, तेथी ते मरण पाम्यो एवा अवसरने विषे त्यां विहार करतां गं धार पर्वतने विपे चार मुनि पधास्या. ते त्यां चोमासुं रह्या. त्यारे चर पुरुषे यावी राजकुमरने कयुं. ते राजकुमरने मुनि घणा वहाला बे. माटे वां दवा गयो. मुनिने सप्लाय करतां दीठा. वांदतां घणो यानंद पाम्यो. गु रुयें धर्मलान दीधो. कुमरें सुखशाता पूजी. पडी वांदीने घेर गयो. एम निरंतर वांदवा जायं, मुनि पणं चारें मास मासखमगनुं पारणुं करे. च' रिम दिवसे पाबली राते कुमरें विचायुं, अहो ! प्रातःकाले मुनि विहार करशे ! त्या गुं करी' ? एम विचारी पाबली चार घडी रात लेश्ने नी कल्यो. थोडी न गयो एटले सुंगधि वायरो वायो. आकाशे अजुयालु थपुं. गंधार पर्वत गाजवा लाग्यो. जयजयकार शब्द सांजव्यो तेथी कुमरना मनमा घणो हर्ष थयो. आगल गयो एटले पृथ्वी समी करेली दीठी. तृ पादिक सर्व दूर करेलां दीवां. सुगंधी पाणीनी तथा सुगंधी फूलनी वृष्टि दीती. थोके थोके देवता मलीने एम स्तवना करे ने के,अहो ! धन्य तमारो अवतार ! तमे राग हेप क्य कस्या ! कर्म सैन्य जीत्यु ! जव समुश् शोप व्यो. एवा वचन सांजलीने कुमरें विचाओँ के, गुरु केवलझान पाम्या देखाय ३. जन्म जरा मरणनां कुःख कापीने, शाश्वता सुख पाम्या. पबी देवतायें सिंहासन रच्यु. त्यां मुनि बेठा. कुमरें केवल ज्ञाननो निश्चय कस्यो. वंदना करी. केवलीयें देशना दीधी. देव मनुष्य पोत पोताना संदेह पूबवा लाग्या. कुमरपण पोतानो संदेह पूछे . हे स्वामिन् महारो मित्र विनावसु क्यां उपन्यो ? काल कस्यां घणा दिवस थया. महारं हृदय घणुं बले बे. ह मणां झुं अनुनवे ? केवली बोव्या, एना नव तमे सांजलो तो ते महा कुःखदा. जे माटे धर्म कस्याविना सुख न होय. आज नगरमां नसुदिन नामें धोबी वसे ले. ते धोबीने घेर मधपिंग नामें कूतरी तेना पेटनो उपन्यो कूतरो थयो . ते कूतरो रासडीये बांध्यो थको तेनी पासे एक गईनी बांधी जे. तेना पाटु प्रहार खमतो बुंबारव करतो रहे जे. एवं अनुनवे . पण तहारे जे पूर्वनी प्रीति ने ते सांजल. ___ पुष्कराना जरत क्षेत्रे कुसुमपुर नगरने विषे तुं कुसुमसार नामें शेव हतो. ए मित्रनो जीव तहारी सिरिकांता नामें स्त्रीपणे हतो. तेनी साथें स्नेह घणो हतो. ए प्रीति जायजे. ते सांजलीने कुमरें, उसुदिनने घेर चा Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. U कर मोकली कूतराने मूकावीने अन्नपाणी आणी बाप्यु. त्यां लेश्याव्या. घणां चांदां पड्यां बे, कीडा पज्या बे,लोही करे , शरीर दीण थयुं बे, चाली पण शकतो नथी, जीन बहार काढे , सघला दांत नजरे आवे , ते देखीने कुमरने संवेग उपन्यो. कूतरो पण राजकुमरभे देखीने पूंबडं ह लावतो आंखमां बांसु नराते नन्हावा लाग्यो. त्यारे कुमर, केवलज्ञानी 'ने पूछेने, ए कूतराने कांइ ज्ञान ? ज्ञानी बोल्या. ज्ञानतो नथी पण सामान्य प्रेम . वली पूब्युं, शे कम ए एम फुःखी थयो ? झानी बोल्या. एवं जातिमद कस्यो हतो. तेथी दुःखी थयो में. फरी पूब्युं श्यो मद क स्यो हतो ? झानी बोल्या. ए अनंतर नवे गणिका हती. ते गणिकाना दं दमा तरुण पुरुषं परिवरी थकी वसंतनी क्रीडा करवा नीकली. एवामां धोबीना समूह मुखागल नीकल्या. वेश्यायें जातिमदें करी विचाओँ के, ए नीचजाति अमारा मुख बागल केम नीकले ! एम करीने नसदिन धो बीमा मुख्य हतो, तेथी उस दिनने घणी कदर्थना करी. जकड बंधनें बां धीने बंदीखाने नंखाव्यो. ते मदना परिणामथी तेणीयें अशुन आनखुं वांध्यु. पढी नगरना लोकें मलीने उस दिनने मूकाव्यो. ते वेश्या ए कर्म थी कूतरी थई. ते सांजलीने कुमरें विचायुं,अहो! संसार ते महाउःखदाइ ! पनी कुमरें हाथ जोडीने पूब्युं, हे स्वामिन् ! एने ए कर्मनो अंत क्या रें आवशे? तथा ए नव्य ले के, अनव्य के ? ए बीज पाम्यो जे के, न थी पाम्यो ? त्यारे ज्ञानी बोल्या, ए कर्मनो अंत थशे ते सांनलो. नुस दिन आश्रीने मद कस्यो तेथी ए कूतरो थयो. हवे ए धोबीनीज रासनीने पेटे गर्दनपणे उपजशे. घणो जार वदेतो घणो क्लेश खमतो, त्यांथी काल करीने उस दिनना घरनो माइदिन नामें चंकालनी नार्या अणंगा ले तेनी कूखे नपुंसक माल थशे. रूपें महाउनांगी थशे, ते सिंहना हाथें मरीने एज चंमालणीनी कूखे पुत्रीपणे यावी उपजशे, तेने बालकालमांज सर्प करडशे, तेथी ते मरीने उसदिन्नने घेर दत्तिया नामें दासीनी कूखे जाति अंध नपुंसकपणे नपजशे. शरीरें वामणो, सद् परानव करे एवो थशे. ए वामां नगरमां दाह लागशे. तेमां बली मरण पामीने तेज दासीनी कूखे स्त्रीपणे उपजशे, ते एक दिवस राजधारमा हाथी मारी थकी काल करी ने तेज धोबीनी कालंजणी नामें स्त्रीनी कूखे पुत्रीपणे उपजशे. Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JGO जैनकथा रत्नकोष नाग बडो. ते यौवन पामशे त्यारें उसरक्षित नामें दरिड़ी धोबीने परणावशे. अ नुक्रमें गर्भवती थशे त्यारें प्रसव समये तेनी वेदनायें मरण पामीने पढी ए नीज कूखे पुत्र पणें उपजशे. ते बाल कालमांज रमतो रमतो गंधार न दीने कांठे शे. ते नदीमां पाणी घणुं नं बे. एवा समयने विषे उसदि ननो शत्रु चिलात एवे नामें त्यां यावशे. ते बालकने गले शिला बांधी ने नदी ख. त्यां मरण पामशे. एणें जातिमदें कर्म बांध्यं तेनो एयंत याव्यो: वीए सनव्य बे, सिद्धिगामी बे, पण बीज नथी पाम्यो जीवने क बांधतां तो खबर न पंडे, पण जोगवतां महाडुःखें जोगवे. फरी कुमरें पूठ्युं, हे जगवन् ! जलमरणथी खागल क्यां उपजशे ? अने समकित क्या रें तथा कया मे पामशे ? ते कृपा करी कहो. केवली बोल्या, जलमां म र पामतां रूडा परिणाम थशे. तेथी मरीने व्यंतर देवमां उपजशे. ते aani iद नामें तीर्थकरनी पासे मोक्षरूप कल्पवृक्षना बीजनूत स समकित पामशे. त्यार पढी चार गतिरूप संसारमां संख्याता जव भ्रमण करीने गंधार देशमां राजा थशे. त्यां यमरतेजा नामें याचार्यनी पासे चा रित्र अंगीकार करशे. ते शुद्ध चारित्र पाली अनुक्रमें पकश्रेणी मांमी घा तियां कर्म य करी केवलज्ञान पामीने मोके जो. ए वात सांजलीने कुमरने वैराग्य उपन्यो. तेणें संसार प्रसार जाएयो, ने माता पिताने पूढीने इंइदत्त गुरुपासे चारित्र अंगीकार कयुं. अनुक्रमें परम क्षमावंत शुद्ध चारित्र पालता सूत्रान्यास करता गीतार्थ थया. गुरुयें प्राचार्यपदे थाप्या. तेणें ग्रामानुयामे विचरतां अनेक नव्य जीवने प्रतिबोध करीने शिष्यपणें कथा तेने अनेक शिष्यना परिवारथी विचरता शुद्ध ध्यवसायें चोथुं मनः पर्यवज्ञान उपन्युं अनुक्रमें मोह गया. ए साधुने वंद ना करवा गया, तेथ एवा गुण प्रगट्या. ते माटे साधु मुनिराज ते वंदन करवा योग्य बे, इति श्रीसमरादित्य चरित्रे विजयसेन खाचार्य कथा. हवे चोथा पदनो अर्थ कहे बे. जे निम्ममा ते पडिलानियवा. (जे के० ) जे साधु ( निम्ममा के० ) निर्मम एटले निरहंकारी होय, अथवा जे मुनि शरीरने विषे ममत्व नयी राखता, (ते पडिला नियता के० ) तेवा मुनियोने प्रतिलानवा. एटले प्रशनादिक वहोराववा. ते उपर सुदत्तनी कथा कहे ले. Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. . १ साकेतपुर नगरमां घणा धनवंत पुरुष वसे बे. त्या प्रकृतीयें घणोज न इक एवो सुदत्त नामें कर्मकर वसे . पण तेने दाननी घणी ला रहे ले. तथापि पोते इव्यरहित , तेथी घणो खेद पामे . ॥ यतः॥ हयविहिणो उविलसिय, उगंपि एवं विमंबणावीयं ॥ किंविनाणधणं तह, निक्षणाण दाएं मिजं वना ॥१॥ हवे ते सुदत्त, नित्य वनमा काष्ठ लेवाने घणो दूर जाय, 'नोजन पण साथें ले जाय. दान, व्यसन , माटे दान आपीने जमे. एम करतां एकदा तेणें प्रतिमा प्रतिपन्न मुनिराजने वनमां दीठा. का नस्सग्ग करी उना . मुनि नपर बहुमान उपन्यु. मुहूर्त प्रमाण विसम्यो. एवामां कृषि कानस्सग्ग पारीने निदाने माटे चाव्या. सुदत्ते निदानी निमं त्रणा करी. मुनिये पण घणो लान जाणी उपयोगपूर्वक निदा लीधी. सुदत्त घणोज आनंद पाम्यो. आत्माने कृतार्थ मानतो घेर व्यो. धणियाणी बागल वात कही. स्त्रीपण हर्ष पामीने अनुमोदना करती हवी के, हे स्वा मी! आज जीवितव्यनुं फल पाम्या. एवी नावनामां केटलोक काल गयो. हवे सुदत्त मरण पामीने एज साकेतपुरने विषे श्रीतेज नामें राजानी ना नुमती नामें सहेजें सौनाग्यवंती स्त्री ने तेनी कूरखने विषे बीपमां मोतीनी पेखें उपजतो हवो. तेज राते राणी सुपनमां रत्ननी राशि देखती हवी. जागे थके जरिने सुपन संनलाव्युं. नारें कयुं तहारे महातेजवंत पुत्र थशे, राणी ते वचन अंगीकार कस्यु. तेज दिवसे राजाने निधाननी प्रा प्ति थइ. अनुक्रमें राणीने मोहलो उपन्यो. जे ढुं राजा साथे नदीने कांवे दान देती क्रीडा करूं. ते मोहलो राजायें पूरो पाड्यो. पुण्यवंत प्राणीने काइ उक्कर नथी. ते नदीने कांते राजा राणी कीडा करतां नदीनी खड पडी. तेमांथी मणिरत्ने पूस्या कलशना समूह निकल्या. गर्जनों प्रनाव जा णी लोक विस्मय पाम्या. अनुक्रमें जेनुं सूर्य सरवू तेज बे एवो पुत्र प्रस व्यो. जन्ममहोत्सव कस्यो. मास पूरो थये राजायें सर्व लोकने सन्मान दे तेनुं वसुतेज एवं नाम दी. अनुक्रमें सर्व कला नण्यो. यौवन पाम्यो. हवे पूर्वनवनी स्त्रीपण कोसंबी नगरीने विषे जुगबादु राजानी विमल मंती नामें स्त्रीनी कूखे पुत्रीपणे उपनी.अनुक्रमें जन्म थये तेनुं मदनमंजरी एवं नाम पाडयुं. ते समस्त कलानो समूह जणी. यौवन अवस्था पामी. एवामां जयमंगल राजानो मंगल नामें पुत्र तेणें कोइक पंथी लोकने Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए. जैनकथा रत्नकोष नाग हो. पूज्यु के, तमे देशांतर नमो बो, पण त्यां कोई कन्यारत्नादिक दीनी होय तो कहो. पंथी बोल्या, हे कुमर ! कोसंबी नगरीने विषे जुगबाद राजानी पुत्रीने मिसें इंशणी अवतरी बे. तेना विरहें बल्यो जे इंश ते सहस्रनेत्रना बलें क मलपत्र जागीयें टाढकने अर्थ लगाव्या . के गुं! ते सांजली मंगल कुमरने राग उपन्यो. पोताना पुरुषोने मागवा मोकल्या. पण ते मागतां अपशकु न थया. तेथी कन्याना पितायें निषेध कस्यो. पुरुष पाना वली याव्या. हवे मदनमंजरी जरिने. अर्थे रोहिणी देवीने आराधे, नियम उपवास करे, नूमिकाये सूये, तेनों मंत्र पण नित्य जपे, नागरवेलीय सोपारीना वृक्ने आलिंगन दीधुं होय, ते तले शयन करे. एम करतां केटलाएक दिवस गया. अन्यदा साकेतपुर नगरे एक मंत्रसाधक पुरुप डे. ते बीलां प्रमुख नेगां करी नगरने बहार नद्यानमा विद्या साधे जे. एवामां वसुतेज कु मर घोडो खेलाववा नीकल्यो बे, ते त्यां ावी चढयो. तेणें मंत्रसाधकने प्रब्युं, तुं या गुं करे ले ? तेणें विद्या साधवानी वात कही. कुमरें चाक रने दुकम कस्यो के, मंत्रसाधनमां एने जे वस्तु जोश्ये ते आणी पो. तेणे पण तेमज कल्यु. वली एक वर्ष पनी कुमर त्यां व्या. जूएतो हजी विद्या साधे . कुमरें विचा. हजी एने विद्या सिम थर नथी. त्यारे कुमरें यावी नमस्कार करीने पूब्युं, रेन! गुं साधो बो? ते बोल्यो, यणी साधु बु. कुमर बोल्यो, एटले कालें पण केम सिदि न पाम्या ? साधक बोल्यो, उत्तम वस्तुनी तरत सिदि थाय नहीं. वसुतेज बोल्यो, त्रण बीलां मने आपो. साधकंत्रण बीलां प्राप्यां. तेल एने घणो संक्लेश थाय ने एम कहीने कुमरें, तेमांथी एक बीलुं होम्यु. वली एजें कुःख देवी महाराथी खमातुं नथी, एम कहीने बीजुं बीलु होम्यु. एटले जा ज्वव्यमान कुंममाथी देदीप्यमान दशे दिशि उद्योत करती यदपी प्रगट थ इने, कहेवा लागी के हे कुमर ! तुं कहे हुँ झुं कार्य करूं? वसुतेज बोल्यो, हे देवी! या साधक पुरुष जे कहे ते करो. एम कहीने कुमर जतो रह्यो. ॥ यतः ॥ नवयरि नाह परेसिं, जं पजुवयारनीरुणो गरुया ॥ तत्तो हुँति निरीहा, तं ते संचरिय मच्चरियं ॥ १ ॥ यक्षपीयें साधकने कडे.जें काम होय ते कहे तो ढुं करूं, त्यारे साधक बोल्यो. कार्य तो हमणां रद्यु पण मने कहो के तमे एटले कालें पण मने दर्शन केम न दीर्छ ? तथा कु Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासदित. एन्३ मरने क्वेश विना पण केम सिम थया? यहाणी बोली, एने निश्चय हतो. जो ढुं प्रगट न थ होत तो ए पोतानुं मस्तक पण होमत ! साधकें वि चायं, ए महानुनाव ए महासत्त्वनो धणी एतो कांश तो नथी, पण ढुं कौतुक निमित्तें रूपपरावर्तिनी विद्या एने आपुं. एम विचारी कुमरने आदरमानसहित बोलावी रूपपरावर्तिनी विद्या बापी. कुमरे पण जाण्यु 'के, एवा पुरुष ते मानवा योग्य जे. एम विचारी विद्या लीधी. हवे मदनमंजरीने पण तेज दिवसे रोहिणी देवीये तुष्टमान थश्ने तेने सुपनमां वसुतेज कुमर देखाज्यो. अने कह्यु के, रे नई ! ए तहारो न र थशे. तथा वसुतेज कुमरने पण सुपनमा मदनमंजरी देवाडी, थ ने कह्यु के, ए तहारी घरणी थशे. बेदु जपने नाम ठाम कुलप्रमुख बता व्यां. एम करीने आरोग्योदनामें समुश्थी उपन्यो.एवो मुक्ताफलनो स मूह तेथी निपन्यो एवो एकावली हार मदनमंजरीने दीधो, अने कह्यु के ए हारने एकवीश वार पाणीमां परखालीने ते पाणी जेने बांटशो, तेने श स्वादिकना प्रहार तत्काल रुका जशे. तमे स्त्री जार वे जण टालीने ए हारने योग्य बीजो कोइ नथी. एम कही देवी अदृश्य थ गइ. हवे प्रातःकाले जेटले मदनमंजरी जागी, एटले जाणियें तारामंमल गलीने हेतलज आव्युं होय नहीं! एवी साक्षात् मोतीनी माला पोताना हाथमां दीती. त्यारे विचारयं जे वसुतेज कुमर मुझने परणशे. एवं जाणी नव सफल मानती. थकी सर्व वात सखीने संजलावती हवी. सखीयें कुमरीनी माताने कयुं. मातायें पोताना नारने कयुं. अनुक्रमें कुमरीना पितायें वसुतेज कुमरने ते कन्या दीधी, थने कुमरना पितायें ते वा त अंगीकार करी. ए वात मंगलराजायें जाणी. तेवारें कंदर्प पीडा पामतो थको चिंतवतो हवो के, कुमरीने परणवा जतां मार्गमाथी प कडी लश्श. एम विचारीने धाड तैयार करी. हवे पितायें कुमरीने महा विस्तारें परणवा मोकली, दैवयोगें मार्गमा मंगलराजानी धाड नेगी थइ हती, तेणें पोतानी योग्यतानो विचार क या विना संग्राम करीने कुमरीने हरण करी. मार्गमां तापसना पाश्रम पदे उतारा कस्या. तिहां मदनमंजरीयें तापसणीने देखी, एकांते तेडी तेने पोतानुं वृत्तांत कमु. पडी एकावली तापसणीने हाथे आपीने कयुं के, या Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शन्। जैनकथा रत्नकोष नाग हो. दार योग्य पुरुषने बापजो. तापसणीयें माला लीधी, ते दिवस गयो, दै वयोगें बीजे दिवसे घोडें अपहस्यो वसुतेज कुमर पण त्यां आव्यो. तेने तापसणीयें दीठो. त्यारे जाण्यु के, ए महानुनाव , माटे एकावलीने योग्य ने. पडी घणो आदर करीने एकावली आपी. ते कुमरें अंगीकार क रीने वात पूजी, जे ए माला क्याथी यावी ? तेणीये पण कुखसहित सर्व व्यतिकर कह्यो. ते सांजलीने वसुतेज कहेवा लाग्यो, अरे ते उष्ट चरित्रनों धणी मंगल! क्या ? एम क़हेतो तेनी पनवाडे चाल्यो, ते अटवीमां नेगो थयो. कुमर विचारवा लाग्यो. जे एकवार कुमरीनुं चित्त जोतं. पड़ी घटती वात करीश. एम चिंतवी रूपपरावर्तिनी विद्यायें वामणानुं रूप कह्यू. को तुक जाणी दासीयें कुमरीने देखाड्यो. कुमरीने पण पूर्वनवना अन्यासथी हर्ष उपन्यो, माटे पूब्यु के, तमे क्याथी याव्या ? वामणो बोज्यो. ढुं साके तपुरथी आव्यो, ते सांजली तेने पोताना ससराना कुलथी याव्यो जाणी मदनमंजरी चित्तमां हरखी. वली नारना वियोगर्नु दुःख सांनयु, तेथी संताप करती हवी. वामणो बोल्यो, रे कुमरी तहालं चित्त विषादवंत दे खाय ने. त्यारे राजकन्या दीर्घ निसासो नांखी बोली, ए महारा विषादनी कथायें सयुं ! रे महानाग्य ! हुं मंदनाग्यनी धणियाणी बु. एवं कहेतां गद्गद्वाणी थइ गइ. ते जो वामणे विचायुं, ए महारे माटे एटलो वि पाद करे ! तो पण पार जोलं, जे माटे कंदर्प उर्जय के. एम विचा री बोल्यो, रे राजकुमरी ! विषाद मकर, में पण तहारो व्यतिकर सांजल्यो जे, तहारा मातापितायें तने वसुतेज कुमरने दीधी हती; परंतु वचमा तु ऊने मंगल राजायें अपहरी, ते पण ढुं जाणुं . पण हवे ए वात युक्त . जे माटे मंगल राजा पण सामान्य पुरुष नथी. हवे ए वातमां बीजो उपाय नथी. तथा अवश्य जे नावि होय तेज थाय. पुराणमां पण एवी कथा सांजलीयें बीये.जे ए रीतें पण स्त्री परणे . वली ते वसुतेजने पण में दीतो . ते करता था मंगलराजा घणो सुंदर ने. अने विवेकी प्राणी ने सुंदर पुरुषनो लान थाय तेमां शो खेद करवो. ते माटे हे कुमरी ! ह वे तुं हर्ष कर. एवां वामणानां वचन सांजलीने ते कुमरी रीसें करी हो फडफडावती बोली, रे वामणा ! तुं साकेतपुरथी थाव्यो बो. माटे में ए महारा कानमां ए ताहारा कहेला कड्डयां वचन सांजव्यां तो पण हूँ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ गौतमकुलक कयासहित. बोली नहीं, परंतु तें कह्यु के, ए सामान्य पुरुष नथी. पण ढुं एम कडं बुं के. ते रूडो पुरुष होय तो एवो अनाचार आचरेज नहीं. अने वली तें कमु के, ए वातमां नपाय नथी. ते केम उपाय नथी ? तुं जोतो खरो हुँ क्षणेकमां तरणानी पेठे एनो जीव काढी ना. त्यारे केम उपाय नथी? तथा तहारा कहेवा प्रमाणे अवश्य नाविनाव ते वली गुं थशे? जे माटे 'पुरातन कथामां एथी विपरीत वात पण सांजलीयें बीयें के, बलात्कारें जे जतां स्त्रीयो प्राणत्याग पण करे , अने.वली हुँ एम जाणुं बुके, तें कंदर्पावतार जेवा वसुतेज कुमरने दीवाज नथी, तेथीज तुं मंगलराजाने व खाणे ,तथा सुवर्णथकी पीतल रूडं डे,एम कहेनारोतुंहवे हांथी जतो रहे. ते सांगली वसुतेज कुमरें विचागुं. अहो ! ए स्त्रीनुं मन केवु ले ? माटे हवे प्रगट थानं के, नहि था ? वली विचारे ले के प्रगट थशतो, एकलो जाणी पुःख धरशे. एम चिंतवीने बोल्यो, रे सुंदरी ! तहाळं चित्त में न उतरव्युं, ते माटे दुं एम बोल्यो, ते महारो अपराध खमजो. तहारूं वांबित काम सिह थान,दं पण तहारा नारनो मित्र बं, तहारी खब र जोवा आव्यो हतो. माटे हवे जाउंडं एम कही त्यांथी वामगो निकल्यो. एवा अवसरने विषे त्यां लश्कर आव्युं जाणीने कोलाहल थयो. कोकें पूब्युं, के कोनुं लश्कर बे ? बीजो बोल्यो, वसुतेजनुं लश्कर ले. ते सांजलीने वामणो बोल्यो, रे राजकुमरी ! तुं धीरी थजे, ते वसुतेजनुं लश्कर आव्यु ने, हवे ते लश्कर थोडं जाणीने, मंगलराजा वसुतेज कुमरना लश्कर सामो 'थयो. ते यद्यपि वसुतेजनुं अल्प लश्कर हतुं,तो पण सिंह नी पेठे प्रबल शत्रुने जीतीने बांधी लीधो. जे माटे ज्यां धर्म त्यां जय . ___ दवे वसुतेजने पण प्रहार लाग्या बे, ते देखीने मदनमंजरी हर्ष वि षादें ग्रहेवाणी थकी कहेवा लागी, अरे ! इकडं तपोवन . त्यां हे नाथ! तापसणीने हाथे एकावली हार देवतानो आपेलो आव्यो बे. तेनुं पाणी पखालीने बांटो इत्यादि ते हारना सर्व गुण कह्या. एटले राज कुमरीनी धाव माता त्यां जश्ने ते पाणी ले आवी, तेवारें कुमर बोल्यो, प्रथम मंगल राजाने साजो करो, कुमर महाप्रनावनो धणी जे. एम विचारती मंगलराजाना शरीरे ते पाणी बांटयु. तेथी कणेकमां तेना प्रहार रुका Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. णा. साजो थयो जे माटे सऊन पुरुष ते अपकारना करनारने पण उपकारज करे ॥ यतः ॥ अवयारपरे वि परे, कुएंति उवयारमुत्तमं नूण ॥ सुरहे चंदणमो, परसुमुहं बिऊमाणोत्ति ॥ १ ॥ त्यार पड़ी ते पाणीयें करी वेदु दलनां सुनटोने सङ कस्या, पनी तेज पाणी करी वसुतेज कुमरने सज कस्यो. मंगल राजाने पण घणो आदर देश्ने मूक्यो. वसु तेज पण मदनमंजरी तेशने साकेतपुरें श्राव्यो. घणा आम्बरें मदनमंजरी परण्यो. अनुक्रमें मदनमंजरी साथे विषयसुख नोगवतां एक पुत्र आव्यो. हवे श्रीतेज राजा, वसुतेजने राज्ये थापीने, तपोवने गया. वसुतेज पण महाराजा थयो, घणा राजाउने पोतानी आज्ञा मनावी, सूर्यनी पेठे तेजवंत थयो. एकदा सुवर्णमय गोखने विषे बेला राजाना मस्तकना केश राणी जुए बे. एवामां एक पलित दीठो त्यारे राणी बोली दूत याव्यो. ते सांजली वसुतेज राजायें चपलष्टियें दशे दिशायें जोवा मांमयं, त्यारें मदनमंजरी वोली हे नाथ ! तमें घणा संग्राममां जय कस्या, अने या दूतनी वातमां केम थरहस्या ? राजा हसीने बोल्यो. दुं दूतनी बातें नथी थरहस्यो. पण तुं ते दूतने देखे , अने ढुं नथी देखतो. तथा वली पूर्व मुमने खबर क स्या विना धारपाल पण ते दूतने मांहेली कोरें केम पेसवा दे. बीजुं महा री दृष्टि करतां तहारी दृष्टि निर्मल पण नथी. ए वातना कौतुकथी हुँ चप ल दृष्टियें जो बु. राणी बोली, ढुं मनुष्य दूत नथी कहेती. में तो पलि यो देखीने धर्मदूत कह्यो बे. एम कही राणीयें राजाना मस्तकमांथी प लियो काढीने हाथमां बाप्यो, ते देखीने राजानुं मन कुमलाइ गजु, नेत्र मांथी बांसुनी धारा चाली. ते बांसुने राणी वस्त्रना बेडे खूबती थकी हसीने बोली. हे राजन् ! तमे जराथी लाज्या ? तो हवे नगरमां दुं पडह वजडावं के, जे कोइ महाराजाने घरडा कहेशे, तेने चोरनो दंग देवाशे. राजा बोल्यो, रे सुंदरी ! निर्विवेकीने तो ए वात खरी बे, जे माटे जीव जरा थकी लाजता यौवन बाणवाने अनेक प्रकारना रसायन सेवे , व ली केश धोला टालवाने निमित्तें मर्दन औषध प्रमुख करे , तरुण स्त्रीना मुख बागल युवाननी पेठे लीलायें चालवा जाय , कोई पूछे तो घणां वर्षने स्थानकें थोडां वर्ष मुझने थयां ने एम बतावे ने, यौवनावस्था गये Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ១០១ गौतमकुलक कथासहित. थके पण यौवन विकार देखाडे , ए सर्व अविवेकी पुरुषो करे ले, पण हे राणी ! महारा पूर्व पुरुषोयें तो पलीत दीठा विनाज पुत्रने राज्ये थापी बलता तृण पूलानी पेठें राज्य बमीने परलोक साधवा उजमाल यता. अने ढुं एटला काल सूधी बेसी रह्यो बु.माटे हवे ए राज्ये संयुं! हुँए सर्व नो गनो त्याग करीने परलोकनुं हित करीश. एवा कानने विषे कडु वचन राजानां सांजलीने राणी मूळ खाइने धरतीये पडी. ते शीतल नपचारें क री स्वस्थ थइ थकी बोलवा लागी के, हे राजन! पलित देखाडवाने मि में हांसी करी, ते में पोताने असवारें करी पोतानी नगरी उपर धाड करावी ! अथवा पोताने हाथें अंगारानुं आकर्षण कयुं, हवे हे राजन् ! तमे प्रसाद करीने राज्य म बांमो, हांसीनी वात साची करी मानवी ए तमने घटे नही. राजा बोल्यो, रे देवी ! जन्म, जरा अने मरण प्रमुखना उःखेंकरी नयो ए वो जे संसार तेमां हवे महारी मति रमती नथी. ते माटे हवे ढुं राज्य बमीने अवश्य आत्महित आचरीश. जेनुं आलोक अने परलोकने विपे हित थाय, ते मनुष्यनो नव प्रशंसनीय छे. एवा समयने विपे प्रतिबोधनो अवसर जाणीने चार ज्ञानना धणी थ मरतेज नामें आचार्य तिहां पधावा. ते वात पुरोहितें राजाने कही. ते सां जली हर्षना वशे राजानी रोमराजि विकस्वर थइ. मदनमंजरी साथें वंद ना करवा निकट्यो, गुरुयें धर्मदेशना दीधी, ते सांजलतांज ग्रंथिनेद थयो, वैराग्यना अतिशय चारित्रपरिणाम थयो, पनी जिननुवन तथा संघपूजा करी पोताना पुत्रने राज्ये थापीने राणी साथें राजायें गुरुचरणे दीदा लीधी, रूडी रीतें साधु पणुं पाली, घोर तप करी स्वर्गे गया. अंनुक्रमें अ प्रतिपातित धर्म थका राणी सहित देवता मनुष्यनां सुख जोगवीने वसु तेज राजा सातमे नवे मनुष्यावतार पामी शिवगति पाम्या. ए सुदत्तना नवमां निर्ममत्व मुनिने पडिलान्या, तेनुं फल नग्युं ॥ इति सुमति चरित्रे सुदत्तकथा ॥ इति श्रीसकलसनानामिनीनालस्थलतिलकायमानपंमितश्रीन त्तमविजयगणिशिष्यपंमितपद्मविजयगाणलते गौतमकुलकप्रकरणे बालाव बोधे चतुर्दशगाथायां चत्वायुदाहरणानि समाप्तानि ॥ १४ ॥ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनकथा रत्नकोष नाग छो. हवे पन्नरमी गाथा कहे . तेनो पूर्व गाथा साथें ए संबंध में के, पूर्व गाथाने यंते एम कडं जे, निर्ममने पडिलानवा. त्यां मुनि सर्व वातें निर्मम बे, तोपण शिष्यादिकनी वृद्धि तो अवश्य करे. ते माटे लोकोत्तर मार्गे शिष्यादिकनी वृद्धि करवी, अने संसार मार्गे शिष्य तथा पुत्रादिक ए बेतु सरखा ले. एवी सरखासरखी देखाडतो पंदरमी गाथा कहे . पुत्ताय सीसा यसमं विजत्ता, रिसीय देवाय समं विनत्ता॥ मुका तिरिरका य समं वि नत्ता, मुत्रा दरिदाय समं विनत्ता ॥१॥ अर्थः-पुत्ता य सीसा य समं विनत्ता. (पुत्ता य के० ) पुत्र अने (सी साय के०) शिष्य, ए बेदु ( समं के० ) सरखा ( विनत्ता के० ) जाणवा. एटले लौकीकपदें पुत्र, अने लोकोत्तरपदें शिष्य, ए बेदु सरखा कह्या. ते उपर आचार्यनो शिष्य तथा राजानो पुत्र तेनुं दृष्टांत कहे जे. __ कोक राजा तथा कोश्क आचार्य एक दिवस वेता हता. तेवामां ते बे दुने वाद थयो तिहां राजा बोल्यो. राजपुत्र विनीत होय, अने आचार्य बोल्या साधुना शिष्य ते विनीत होय. पबीते वेमा प्रथम राजपुत्रनी परीक्षा करवानो ठराव करयो. एम सांजलीने राजायें विनीत पुत्रने बोलाव्यो, अने कह्यु के, गंगा किये मुखें वहे जे ? ते जो आवो. राजकुमर बोल्यो, एमां गुं जोवू डे ? गंगा पूर्वानिमुखें वहे , एतो प्रसिह . एमां गुंजोवाजवा जेवू ले. तोपण घणी मेहेनत करी तेने मोकल्यो. पली वाटे जतां तेने मि त्र पुरुष मंख्या, तेणें पूज्युं क्यां जाउ बो? राजकुमर बोल्यो. राजायें वेठ जलावी . ते वेठ करवा जावं लु. अनुक्रमें वचमांथी पाडो आव्यो. अने राजाने कहेवा लाग्यो. हुं त्यां जश्ने जोश्याव्यो.जे गंगा पूर्वाभिमुखें वहे . हवे आचार्य, साधुने कहेता दवा के जाउ, गंगा किये मुखें वहे जे ? ते जो श्रावो. साधु विचारवा लाग्या, गंगा तो पूर्वाभिमुखें वहे , ते ढुं जाणुं बुं, अने गुरु पण जाणे . तेम बतां मने जोवा मोकले डे, त्यारे कांक कारण हो. एम विचारीने जाणतां यकां पण गंगायें गया. गंगा पूर्वा निमुखें वहे . एवं पोतें जोश्ने निर्धार कस्यो. वली लोकने पूज्युं तेणें Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासदित. नए पण एमज कह्यु. एवी रीतें निश्चय करी गुरु पासे आवीने कह्यु के,गंगा पूर्वा निमुखें वहे . महारी नजरें तो एम आवे . एनुं तत्त्वतो गुरुजी जाणे. हवे वेहु जणनी पडवाडे चर पुरुष मूक्या हता, तेणे आवी बेहुना समा चार कह्या, राजाय पण गुरुनु वचन अंगीकार कयं. एरीतें राजानो पुत्र तथा आचार्यनो शिष्य ए बे बरोबर.॥इति आवश्यक टिप्पनके.॥वली श्री सय्यंनव याचार्यने मनक नामें पुत्र अने तेज शिष्य थया ए बराबर जाणवा. हवे बीजा पदनो अर्थ कहे . रिसी य देवा य.समं विनत्ता (रिसी य के०) कृषि एटले मुनि, अने ( देवा य के ) देवता, ते (समं के०) सरखा (वि जत्ता के० ) जाणवा. एटले ए नाव के, ऋषि पण जे, कोइधर्म न पामतो होय, तेने हरकोई उपायें धर्म पमाडे. तेम देवता पण हरकोई उपायें ध में पमाडे. इहां प्रथम ऋषि धर्म पमाडे, ते उपर उदाहरण कहे जे. ॥ अजमेरनी पासे हर्षपुर नामें नगर , तेनो सुनटपाल नामें राजा ने, त्यां त्रणशे जिननुवन डे, चारसे लौकिक प्रासाद , अढारसें ब्राह्म पनां घर , बत्रीसें वाणियानां घर बे, नवसें आराम , सातसें वाव्यो बे, बस्से कूवा , सातसें दानशाला . ते नगरने विपे एकदा प्रियग्रंथ नामें आचार्य पधास्या. त्यां एक दिवस ब्राह्मणोयें यझमां बकरो मारवा मांड्यो, ते वृत्तांत श्रावकोयें प्रियग्रंथ आचार्य ने कह्यु, आचार्य वास अनिमंत्रीने श्रावकने प्राप्यो, अने कह्यु के, ए बकराने मस्तके नांख जो. ते श्रावकें तेमज कयुं. तत्काल बकराना शरीरमां अंबिका आव्यां, तेथी बकरो आकाशे जश्ने बोलवा लाग्यो. तमे मने अग्निमां होमशो तो आवो मने बांधो, मारो, जोनं तो खरो पण जो हुँ तमारा सरखो निर्दय थानं, तो तमने सर्वने हकमां मारूं. जो महारा चित्तमा दया न होय तो जेम कांक कषायमां ावीने हनुमंतें लंकामां कयुं तेम ढुं याकाशमा रह्यो करूं. इत्यादिक वचन सांजलीने ब्राह्मण बो व्या. तुं कोण बो ? त्यारे ते यात्मा प्रकट करी बोल्यो, हुं पावक बु. ए म हारुं वाहन ले. तेने तमे फोकट केम मारो बो ? शहां प्रियग्रंथ नामा आ चार्य पधास्या , तेमनी पासे जश्ने धर्म पूडो. तथा ते धर्म अंगीकार करो. ते प्राचार्य, जेम नरेंड्मांचक्रवर्ती, जेम धनुर्वादीमांधनंजय, तेम सर्व सत्य वादीमां शिरोमणि ले. ते सांजलीने ते ब्राह्मणोयें पणाचार्यने धर्म पूज्यो. Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ quo जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. ते धर्म सांजलीने सर्व तेमज आचरता हवा ॥ इति कल्पसूत्रस्थविरावल्यां, ॥वली बीजुं उदाहरण कहे . आनीर देशने विपे अचलपुर नगर. तेने इकडी कन्ना अने वेन्ना एवे नामें वे नदी ले. तेनी मध्ये ब्रह्महीप . त्यां पांचसे तापस हता. तेमां एक तापस पगे लेप करने नूमिकानी पेठे ज ल उपर चाले . ते पाणी अणखरडे पगें बेन्ना नतरीने पारणुं करवा जाय. त्यारे लोक प्रशंसा करे के, जू था तापसनी तपशक्ति कहेवी ? एवो जैनमां को प्रनाविक नथी. ते सांजलीने श्रावकोयें श्रीवयरस्वामीना मामा आर्यसमित आचार्यने माणस मोकली तेडाव्या. अने ते स्वरूप प्राचार्यने कह्यु. आचार्य बोल्या, एमां थोडीशी पादलेपशक्ति जे. बीजु कां नथी. त्यारे श्रावकोयें तापसने पारj कराववानी निमंत्रणा करी. ते जो बीजा लोकोयें जाण्यु के, आपणा गुरुपासें श्रावक आवता नही ते पण एमना तप प्रनावें आव्या. तापसें पण पारणानो हाकारो कस्यो. हवे प्रर्वरीतें वेन्ना उतरीने श्रावकने घेर पारपुं करवा तापस आव्यो, श्रावकें पण तापसना पग जोमरें करी नुहम पापीयें धोइने चोखा कस्या. पावडियो पण धोक्ने चोखी करी. पबी नोजन कराव्यु. ते तापसें पण मन मां फिकर सहित जोजन कस्यूं. अनुक्रमें सर्व श्रावक तथा बीजा पण घ पालोकोनी साथें तापस नदीने कांते आव्यो. धित अवलंबीने नदीमां पेसवा मांमधु, एटले बूडवा लाग्यो, तेथी ते तापसनी घणी अपनाजना थई, कोलाहल थ गयो. त्यारें पूर्व संकेतें आर्यसमितजी त्यां आव्या. आ वीने लोकने प्रतिबोधवा माटे योगचूर्ण बेन्ना मध्ये नांखीने आचार्य बो व्या हे ! वेन्ना अमें पेलेपार जश्लॅ. एवं कहे थके नदीना बेदु तट मली गया, ते जोश लोकने घणो चमत्कार थयो.पढी आचार्य तापसने आश्रमे जइ, तेमने प्रतिबोधीने पांचसेने दीक्षा दीधी ॥ इति कल्पसूत्रस्थ विरावल्यां या र्यसमितकथा॥ एम कृषि होय ते उपाय करीने पण प्रतिबोध दीये. हवे धर्ममां स्थिर करे, ते उपर उदाहरण कहे . ॥श्रीवीरस्वामीने मोद गया पडी बरों ने अहवीश वर्षे पांचमो निह्नव थयो. तेनी कथा कहे . उनुका नामें नदी. तेथी उलखाणो माटे ते देश- नाम पण नुनक बे. ते नदीने एक कांते धूलना कोट सहित गाम बे, माटे तेने खेड कहीयें. बीजे कांते उच्नुका नामें नगर ,त्यां महागिरि Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासदित. २०१ प्राचार्यना शिष्य धनगुप्त नामा आचार्य अपर तटे रहे बे. तेना शिष्य गंग नामा आचार्य हता ते पूर्व तीरे रहे बे. ते अन्यदा शरत् काल विषे याचार्यने वंदना करवा माटे गंगानदी उतरे बे. तेने माथे टाल a. तेणें करीने तडके माथानी ताल तपे बे. तथा पसें नदीना पाणीयें शीतलता अनुभवे बे. ते अवसरें कोइक मिथ्यात्वमोहिनीना उदयथी ते • शिष्य चिंतववा लाग्यो के, सिद्धांतमां तो एक समये 'समकाले बे क्रिया नुं अनुवतुं निषेध्युं बे. खने हुं तो एक समये शीतता तथा उष्णता ए वे क्रिया साज अनुन बुं. ते माटे अनुनवविरुद्ध होवाथी श्रागममां युं ते रूडुं नथी लागतुं. एम विचारी गुरुपासे खावीने ते वात केहतो हवो. गुरु बोल्या, तुं कहे बे के, हुं एक समये वे क्रिया अनुभवुं बुं. पण ते अनुक्रमेंज निपजे, परंतु समकाले न निपजें. जे माटे समय यावलि कानो का सूक्ष्म बे. मति प्रतिचपल बे. जे कालें जे इंडियसंयुक्त मन थाय, ते कालें ते ज्ञाननुं हेतु याय. ते माटे पाद ने मस्तक ए वे दूर अवयव बे तेनो उपयोग एके काले केम होय ? जे कारणे सकल त्र्यसं ख्याते समय एक वस्तुनो उपयोग थयो पढी बीजी वस्तुना उपयोग य वामां जीवनो कयो अंश बाकी रह्यो ? के, जेथी बीजो उपयोग थाय ! ते माटे काल सूक्ष्म तेथी अनुक्रमें उपयोग यतो बतां पण ब्रह्मस्थपणा माटे तुं जाणे ने के, हुं समकाले वेक्रिया अनुनबुं बुं. जेम कोइ जुवान पुरुष कमलनां शतपत्र उपरा उपर मांगीने वांधे, पी एम जा के, में समकाले वींध्यां, पण एक वीधाणां विना बी जुं न विधाय. जे माटे पहेलुं पत्र वधवानो काल जुदो बे, ने बीजुं पत्र वधवानो काल पण जुदो बे. ते पढी त्रीजुं पत्र वधाय तेनो काल पण जुदो बे. एम तुं पण अनुक्रमें उपयोग जाएणजे. पण युगपत् न होय. तथा वली जेम नंबाडियो करीने फेरवे बे, ते चक्रसरखं देखाय बे. पण ते नंबाडियो ज्यां वे त्यां एक दिशे बे. परंतु चक्रनी पेठे सर्व दिशायें नथी. तथापि मणकाल शीघ्रपणा माटे चक्र जेवुं देखाय बे. तेम इहां पण जाणजे. तथा वली जेम लांबी ने फली तथा पापडने कोइक खातां कां चकु रूप देखे बे, तथा नासिकायें तेनी गंध पण यावे बे, रसनें दियें स्वाद पण यावे बे, फरसइदियें तो, ते हाथमां थया ने माटे स्पर्शज्ञान Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शए जैनकथा'रत्नकोष नाग हो. पण थाय . तथा खातां थकां शब्द , ते श्रोत्रंडिये सानले . ए पांचे ज्ञान, सर्व अनुक्रमें केडावे. थाय . पण काल सूक्ष्मपणा माटे तथा मन शीघ्रचारी , ते माटे समकाले पांचे अनुनबुं , एम नासे बे, तेम तुं पण जाणजे. जो एम न होय तो जेम देवदत्त उघाडी आंखें बेठो होय,अने तेनुं मन बीजामां होय,तो मुख बागलथी हाथी चाल्योज तो होय तेने पण न देखे. एम गुरुये कयुं. त्यारे गंग आचार्य बोल्या. जों एम दे तो समकाले केम ग्रहण कस्या? आचार्य बोव्या. ग्रह्यानीना कोणे कही ले ? अमे तो बे उपयोगनी ना कहीयें बैयें. स्कंधावारादिकनो सामा न्य उपयोग एक थाय,पण हाथी घोडा प्रमुखनो विशेष उपयोग समकाले बे न होय, इहां घणी वक्तव्यता , पण ग्रंथ वधवाना जय माटे नथी लखता. विशेषना अर्थी जे होय ते विशेषावश्यक ग्रंथ जो जो. एम कहे थके पण गंग आचार्य पोतानो कदाग्रह न मूक्यो. त्यारे गुरुयें तेने गड बहार कस्या, संघबहार कस्या, ते विहार करता राजगृह नगरें याव्यो. त्यां मणिनाग नामा नागनुं चैत्य बे. ते चैत्यनी समीपे रह्यो. त्यां पर्षदा मली त्यारें गंग आचार्य देशना देतां एक समये वे क्रियानो उपयोग था य एवं प्ररूप्युं. ते मणिनागें सांजल्युं. त्यारें मणिनाग कहेवा लाग्यो. अरे इष्ट शिष्य ! तुं एम शुं प्ररूपे ले ? जे कारण माटे एज स्थानकें श्रीम न्महावीरस्वामीनुं समवसरण थयुं हतुं. ते समवसरणमां अनु श्री वर्ड मानस्वामीयें एक समये एक क्रियानुंज वेदतुं प्ररूप्युं हतुं. ते इहां थकां में पण सांजव्युं . ते प्रनुजी करतां पण तुं प्ररूपनारो ‘अधिको थयो के केम? जे माटे समकाले बे उपयोग प्ररूपे ले ? माटे ए हव्वाद मूकी दे. जो ए खोटी प्ररूपणा नहि मूकेतो हुँ मारीश. तुं नाश पामीश. इत्यादिक जय वचन सांजलीने तथा पूर्वोक्त युक्तिये पण प्रतिबोध पाम्या. मिहामि मुक्कडं पण दीg, पजी गुरु पासे जश् बालोइ पडिक्कमीने रह्या. इत्यादि अधिकार श्रीविशेषावश्यके, पंचम निन्दवाधिकारें ले. ए रीतें देवता पण प्रतिबोधीने ठेकाणे लावे. ए अपेदायें कृषि तथा देवता सरखा जाणवा. हवे त्रीजा पदनो अर्थ कहे . मुरका तिरिरका य समं विनत्ता (मु स्का के० ) मूर्ख अने ( तिरिरका य के तिर्यच ए बेहु (समं के०) स Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. २०३ रखा (विजत्ता के०) जाएवा. एटले मूर्ख ने तिर्यचने सरखा कह्या बे. तेनी उपर मरुकनो दृष्टांत कहे बे. एक ने विषे एक साधु लब्धिवंत हतो. पण ते कोइ बाल अथवा गिलाननुं वैयावञ्च न करे. एक दिवस तेने याचार्यै कयुं. के, तुं वैयावच्च केम नथी करतो ? त्यारें साधु बोल्यो, मने कोई साधु कहेतो नथी, जे म "हारुं वैयावच्च करो ? ते सांगली याचार्य बोब्या, तुं सांधुनी प्रार्थनावांबे बे ए तहारी नूल बे. ते उपर तुमने मरुकनी कथा कहुं बुं ते सांजल. एक मरुक नामें ब्राह्मण ज्ञानमदें करी मत्त हतो. ते कार्त्तिक पूर्णि माने दिवसे देशने विषे राजा दान देवा उजमाल थयो बे. त्यारें सहु क को ३ दान लेवा जाय वे पण मरुक न जाय पी जायें प्रेयो के तुं दान जेवा जा. मरुक बोल्यो, एक तो शूना हाथनुं दान जेवुं ने बीजुं व लीतेने घेर सामुं जाऊं. ए केम बने ? माटे जेने सात पेढी सूधी गरज होय ते याहीं चावीने मने पी जाय. एम करतां जावजीव सूधी ते ब्राह्मण दरि रह्यो . एम मरुकनी पेठें हे साधु ! तुं पण चूके बे. जो बाल वृद्धनी वैयावच्च करतो निर्जरा थाय. तथा वैयावच्चना करनारतो बीजा साधु घाये बे, पण तहारे लब्धि बे ते यम नियम सर्व विजय जाय d. एम गुरुयें कहे थके ते साधु बोल्यो. जो वैयावच्च करतुं तमे रुडं जा पोबो, तो तमें पोतेंज वैयावञ्च केम नथी करता ? त्यारें प्राचार्य बो व्या. तुं वानरानी पेठें मूर्ख बे. ते वानरानी कथा हुं कर्तुं बुं. सांजन. कोक जाने विषे एक वानरो रहेतो हतो. ते वर्षाकाल याव्यो. त्या रें ताढ वायरों ने वर्षायें फुकलाइ जाय बे. तेने जोइ सुग्रीवपंखिणी बोली. रे वानर ! तुं पुरुष सरखो बे. वे हाथ फोकट धारे बे जे माटे रहे वाने घर केम नथी करतो ? ताढें मरे बे, दुःख खमे बे, ते सांजली वान रो बोल्यो नही. वली सुग्रीवें बीजीवार त्रीजीवार कयुं. त्यारे वानरो रूठो थको बलीने सुग्रीव पंखिणीनो मालो चूंथी नांखतो वो सुग्रीव जश्ने बीजे जाडे बेठी. त्या वानरो बोल्यो ॥ यतः ॥ सुचीमुखी दुराचारे, रंगे पंमि तवादिनी ॥ समर्थी गृहारंने, समर्थो गृहनंजने ॥ १ ॥ तेम तुं पण मुकने वैयावच करवा कहे बे. पण महारे निर्जराधार घणावे तेथी निर्जरा घणी बे. जो वेयावच्च करवा जाऊं तो ते लाजथी चूकुं. इत्यादिकथा यावश्यक Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शए४ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. नियूक्तिमा ले. ते माटे मूर्ख साधु अने वानरो तिर्यंच ए बेदु बराबर जाणवा. हवे चोथा पदनों अर्थ कहै बे. मुथा दरिदा य समं विनत्ता (मुथा के० ) मरण पामेला अने ( दरिदा य के० ) दरिडी ए बेहु ( समं के) सरखा ( विनत्ता के०) जागवा. ते नपर सारण जुवटियानी कथा कहे . नऊयणी नगरीने विषे सारण नामें एक जुआरी वसे ले. ते रमतां र मतां एक दिवस सर्व धन हास्यो. घरमां एकवखत जमवा जेटलुं पण का ३ रघु नही. पड़ी ते जुआरी रात्रीने विषे घेर घेर जमतां एक वाणियाने घेर पिता पुत्र वातो करे . ते सांजलवा उनो रह्यो. पितायें कह्यु, रे पुत्र! आपदा मटाडवाने अर्थे कांइक धन राखीयें, तो ठीक. पुत्रं हाकारो नण्यो. पितायें कह्यु. दश हजार सोनैया मसाणमां दाटी मूकीये. ते वात जुधारीयें सांजली त्यारें पागलथीज मसाणमां ज इ ज्यां अनाथ मृतक पड्यां हतां तेनी जेगो जश्ने सूतो. एवामां बाप दी करो बेदु जण इव्य लेश्ने आव्या. इव्य धरतीय मूक्यु. शेठे प्रत्रने कझुं. रे वत्स ! रूडी रीतें चारे दिशे जोड्ने प्राव्य. रखे कोई कपटचरित्रवालो होय ! ते आपणुं दाटेचु देखशे, तो काहाढी लजशे. पुत्रं जोयुं, त्यारे अनाथ मडा मध्ये सारणने दीठो. मडं जाणीने शंकायें रूडी रीतें जोयो. मुख तथा नाकनो पवन जोयो. ते वायु पण निकलतो न दीठो. वली ह लावी जोयो त्यारें मुएलो जाण्यो, पडी पिता पासें ावी सर्व वात कही देखाडी. पिता बोल्या, रे वत्स ! रखे कोइ मायावी कपटी पड्यो न होय!! माटे फरी जश्ने रूडी रीतें निर्धारीने जो. तेवारें बीजी वार पण त्यां गयो उबाली जोयो. वली टांटीयो खेची घसरडीने वेगलो पणं नांरख्यो. पनी आवीने पिताने कह्यु के, ते तो मुळ पड्यो ने. तेने पितायें कह्यु के तुंज इने तेनुं नाक बने कान कापी लाव. पबीजणाशे. पुढे जश्ने नाक बने कान पण काप्यां, तोपण ते धूतारो बोल्यो नही !!! हवे ते पिता पुत्र इव्यने धरतीमां घालीने पोताने घेर गया. पनी धूर्त पण निधान लेइ नगरमां पेतो. यथा श्लायें विलास करवा लाग्यो, अन्य दा शेठे पुत्रने का. जानिधान जो घावो. पुत्र पण जोड्ने पालो आँ व्यो. निधान न दीतुं. शेठने कह्यु इव्यतो कोक लगयुं जे. शेवें कयुं आ पणे ऽव्य गोपवती वखतें जेनां नाक अने कान कापेला ,तेणे लीधुं . Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. पनी ते नगरमां बाप दीकरो बेदु जण खोलवा लाग्या. त्यारे तेने शे तें दीठो. प्रधान वस्त्र पहेस्यां , आजूषण पण पहेखां , चाकर हाथमा पाननुं बीडु कालीने पासे ननो ने, नाक तथा कान बेदु काप्यां ने, एवो जुवटुं रमतो एक पुरुष दीतो. त्यारें शेठे निश्चय कस्यो के, एज चोर बे; प बी शेठ पनवाडेथी आवीने जमणा हाथनी आंगलिये फरश्यो. सारणे प 'ण पवाडे जोयुं, तो शेठने दीना. शेवें संज्ञा करी एकांते तेज्यो. शेठ ल गारेक हसीने बोल्या. अहो ! तमें पुष्कर कां ? सारण बोल्यो. प्रयोजनें कडे ? पण कोश्य पराणे नथी कस्यं. शेठ बोल्या, खाधा पीधाथी शेष रह्यु ते लाव्य. तेमांथी पण कांक तुमने आपोश. पण जो कजियो करीश तो सर्व राजघारे जशे. ते सांजली जुआरी पण समज्यो. शेप इव्य रयुं हतुं ते शेठने पावं प्राप्यु. शेठे पण तेमांथी कांक व्यं तेने आपीने मकी दीधो. ए रीतें दरिडीने मर्यु ए वे बराबर जाणवा. दरिडीहतो ते मडं थइ पड्यो. इत्यादि सहस्रमनकथायाम् ॥ इति श्रीसकलसनानामिनीजालस्थलतिल कायमानपंमितश्रीनत्तमविजयगणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिविरचिते गौत मकुलकप्रकरणे बालावबोधे पंचदशगाथायां पडुदाहरणानि समाप्तानि ॥ हवे सोलमी गाथा कहे . तेने पूर्वली गाथा साथै ए संबंध में के,पूर्व गाथायें पुत्रने शिष्य, कृषिने देवता, मुर्खने तिर्यंच, अने मुआने निईन द रिडी ए सरखा बताव्या. ए जेम सरखा तेम कोकथी कोश्क वस्तु अधि क पण होय. ते माटे सम देखाडीने हवे या गाथामां अधिक देखाडे जे. सबा कलाधम्मकला जिणाई,सबा कहाध म्मकहा जिणाई॥ सवं बलं धम्मबलं जि णा, सबं सुहं धम्मसुहं जिणाई॥१६॥ अर्थः-सबा कला धम्मकला जिणाई, (सवा कला के० ) पुरुषनी बों तेर कला अने स्त्रीनी चोशन कला, ए सर्व कलाथी (धम्मकला के०) धर्म नी कला,ते (जिणाई के०)जीतनारी .ते उपर सहस्त्रमननी कथा कहे : आज जंबुद्दीपना नरतत्रिने विषे वजनामा देशमा कोशांबी नामा न Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शए जैनकथा रत्नकोप नाग हो. गर। त्यां सहस्रमल्ल नामें कुलपुत्र वसे बे. ते अनेक कूड कपट बलनेद करतो, परने उगवामां तत्पर, विषना कांटानी पेठे सर्व लोकनो दयकारी, लोकोने घेर चोरी करीने इव्यनी हागनो करनार, महासाहसिक एवो डे. तेनो पिता मरण पाम्यो , मदिरानो प्रसंगी , लोकनुं इव्य व्याजें काढीने विलसे, अने लोक मागे त्यारे कहे के, महारी पासें कांश नथी, तेथी लोकोयें बांड्यो. को पासे कांश मागे तो पण ते न आपे. पली व्य सनें परानव पाम्यो थको चोरी करवा जाय. चोरनी सर्व कला शीव्यो. वाणिया ब्राह्मण प्रमुखनो वेष करवाने घणोज कुशल ले. नाना प्रकारनी देशनाषामां विचरण .जमी नमीने निर्धन अने धनवाननां घर जुए. ___ एम करतां एक दिवस रत्नसागर नामें वाणियाने रत्ननो व्यापार कर तो दोतो. त्यारें पोतें वाणियानो वेप करीने तेनां हाटे गयो. रत्न कढावी ने जोयां. फरी प्रब्यं एटलांज ले के, बीजां पण कां ? रत्नसागर बो व्यो, बीजां पण जे. ते बोल्यो, ते पण देखाडो.वाणियें हाटमां पेशीने खा ड खोदीने रत्ननो माबडो उघाड्यो, तेमांथी रत्न काहाडीने तेने देखा ड्यां, अने मूल्य पण कयुं. ते बोल्यो,या रत्न ढुं ले जलं . मूल्य प्रजाते यापीश. वाणियो बोल्यो, हुँ कोइने उधार आपतो नथी, एम कही रत्न पाबां जश्ने राख्यां. ते चोर पण रत्न राखवानुं स्थानक जोड्ने पोताने घे र गयो. राते चोरनो वेप करी वाणियाने हाटें आव्यो. त्यां खातर पाडी ने प्रथमथी पग घाल्या. एटले शय्यामां रह्यो रत्नसागरनो दीकरो तेने फ रश्यो. तेणे पण चोरनो प्रवेश जाण्यो त्यारे शय्याथी ती चोरना वे पग पकड्या. त्यां खेंचातांण करतां चोरनुं शरीर घसागुं. वाणियाने दीकरे मूकी दीधो. नाशीने पोताने घेर गयो. सर्व वात माताने संनलावी. बीजे दिव से वेदनायें करी कणमातां मातायें कह्यु, रे पुत्र! जे पारकुं धन लेवा जाय ते सारण जुयारीनी पेठे सर्व सहे. ते सारणनी कथा पाउला पद मां कही आव्या बीयें, ते तेने मातायें कही सांजलावी. ते माटे पारकुं धन ले ते सर्व सहे. अनुक्रमें ते साजो थयो. तेवरें वली चोरी करवा मांमी. पुरोहितने घेर खातर पाडयुं. सार इव्य काढयुं. लावीने माताने आप्यु. मातायें पूज्युं. रे वत्स ! ए धन तुं क्याथी लाव्यो ? ते बोल्यो, तहारे ए चिंतानुं गुं काम ? पण लोकवाक्य सांज Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. IVI लीने मने कहेजे. प्रातःकाल्ने नगरमा गइ पण कां माताने तेवी वातनी खबर पडी नही. त्यारें नगर बहार नीकलीने पणघटने मार्ग बेली.दणेक थएटले पुरोहितनी पुत्री जल नरवा निमित्ते आवी, तेने कोक स्त्रीयें पूब्युं जे पुरोहित, घर चोर मूशी गयो, ए वात साची? ते बोली हा साची जे. फरी पूजा का शुदि मली? ते बोली महारा पितायें राजाने 'संनलाव्युं ने, राजायें कोटवाल पण बोलाव्यो, एवा समयें धनसार नामा शेत अने नापित ए बे जण का कार्य विशेपें राजा पासे आव्या हता,त्यां शेठ बोल्या,एवं घणुं धन लीधुं ने माटे प्रधान वस्त्र पहेरशे. ते वस्त्र महारे हाटे सेवा आवशे. तेम वली नापित बोल्यो, महारी पासे पण नख उत राववा मुंमन कराववा अावशे. त्यारें पकडीने तमने सोंपीयं. ___ ए वात पुरोहितनी पुत्रीना मुखथी सांजलीने चोरनी माता घेर गइ. जेवं सांजव्युं तेवु पुत्रने कयुं. ते पण वाणियानो वेष करी नापितने घेर गयो. नापितें महोटं आसन आप्युं, नख नतस्या, वाणियानो वेष देखी ने नापितना मनमां घणो आनंद नपन्यो, विश्वास उपन्यो, तस्करसं झा गइ, चोरें पण उठती वेलायें कह्यु के, कोश्कने महारी साथें मोकलो तो तेने पैसा अपा. नापितें पोताना बोकराने मोकल्यो, चोर धनसार शे उने हाटे गयो, शेवें आसन आप्युं ते नपर बेठो. शेठ बोल्या,शे प्रयोजनें याव्या. चोर बोल्यो,घणा अवल सुंदर वस्त्र देखाडो,शे वस्त्र देखाड्यां, ते माथी प्रधान वस्त्र लेइने उठ्यो. शेव बोल्या,एनुं मूल्य कोण आपशे ? चोर बोल्यो, ढुं व्य लेइने हमणा आबुं . त्यां सुधी आ बोकराने मूकी जान बु. शेठे कयुं सुखें जाउ. तेवारें चोर घेर गयो. वस्त्र माताने सोप्या. वली माताने कह्यु के, लोकनी वात सांजली श्रावो. माता सांजलवा गइ. सांजलीने पुत्रने कहेवा लागी के, हे पुत्र ! शेठ अने नापित वेदु ज एवं राजा आगल फरियाद करी के, हे राजन ! अमने चोर मूशी गयो. ए वामां पासे सोदागर बेठो हतो ते कहेवा लाग्यो. हे देव ! ए धणीने घोडा विना नहिं चाले. अने प्रधान घोडामहारा विना कोइने घेर नथी. ते मा टे महारीपासें घोडा सेवा आवशे, तेवारे एने पकडीने महाराजने सोंपी श. बीजी कामपताका गणिका बेठो हती ते बोली, हे महाराज महारा घ र विना ए बीजे क्यां नहि वसे. माटे ढुं सोध काढोने तमने सोंपीश. Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शएG जैनकथा रनकोष नाग बहो. राजा बोल्यो एमज करो, ए वात मातायें पोताना पुत्रने कही ते सांन लीने ते चोर सार्थवाहनो वेष करीने नगर बहार नीकल्यो. सोदागर पासे आव्यो. सोदागरें आसन आप्यु. फूल तंबोलादिक आपीने प्रतिपत्ति करी. रोक वातो करी सोदागरने पूजयं, तमे नगर बहार केम तस्या बो? ते बोल्यो, अमारे यहां घर नथी. सहस्त्रमन्न बोल्यो, महारे घेर केम नथीया वता? आवो तो त्यां तमारा घोडापण वेचाशे. सोदागर बोल्यो,परघर प्रवे शे महारुं मन नथी चालतं. ते बोल्यो, सऊनने घेर ज, तेमा सऊनने शी शंका ? ए पोतार्नु घर जाजो. अने ज्यां प्रेम थयो त्यां कपट गुं ? सो दागरें विचायुं. अहो ! एनी महानुनावता! अहो! एनुं विशालचित्तपणुं! यहो ! एनुं गिरुआपणुं! अहो ! एनुं गनीरपणुं! अहो ! एनुं धीरपणुं, अ हो ! एनुं विचहणतानुं वचन ! ते माटे एनी प्रार्थना नंग न थाय. एम विचारीने सोदागर बोल्यो, जे तमे कहो ते करीयें. ते बोल्यो, महारे घेर श्रावो. सोदागरें ते वचन मान्यु. त्यारे सहस्त्रमन्न आगलथी उठीने काम पताका वेश्याने घेर गयो. प्रथम तेनी दासी मली तेने कह्यु. तहारी स्वामि नीने पूब के, तमारूं घर महोटुं जाणीने सोदागर उतरवा ले . दासी यें वेश्याने प्रलयं. वेश्या पण लोनमां बावीने बोली सुखें घावो, तमारु घर बे. तेणें तेज वखतें घर- आंगणुं लींपी गुंपी चोरकुं कस्युं. सहस्रमन्न पण सोदागरने तेडी लाव्यो. तेना घोडा वेश्याने बांगणे बंधाव्या. __कामपताका पासे गयो. तेणें आसन आप्यु. पग धोवा पाणी ला वी. सहस्त्रमन बोल्यो. हमणां पग धोवानुं काम नथी. हूँ हजी राजाने मल्यो नथी. महारी पासे यानूषण नथी. माटे रोकवार तमारां आ नृपण आपो तो दुं राजाने मली आवं. तेणीये पण सोदागर जाणीया नूषण आप्यां. ते लइ सहस्त्रमन पण सोदागर पासे गयो, यने कहेवा लाग्यो. हमणां रूडं मुहूर्त जे. तमारा घोडानुं स्वरूप कहेवा माटे शीघ्र राजा पासे जा. माटे एक अवल घोडो आपो तो तरत जा पहोचुं. सोदागरें पण घरधणी व्यवहारियो जागी सुंदर घोडो आप्यो. ते घोडा नपर बेसी पोतानें घेर गयो. केटलिक वेला थइ त्यारे वेश्याने शंका नप नी. तेणे सोदागरना माणसने पूज्यु.जे हजी सूधी सोदागर केम न था व्या ? ते बोल्यो,बारणे बेग डे. वेश्यायें तेनी पासे जश्ने पूड्युं के,सोदागर Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. पए तमे हो ? ते बोल्यो हा ढुं बुं. वेश्या बोली. महारां बानूषण ले गयो ते कोण हतो ? सोदागर बोल्यो. गुं ते घरधणी नही हतो ? वेश्याबोली, अहो मने मूसी महारां आनूषण ले गयो. सोदागर बोल्यो, मने पण गीने महारो घोडो ले गयो . पड़ी ते बेदु जण राजापासे गया. राजाने सर्व व्यतिकर संनलाव्यो. राजा कोप्यो थको कोटवालने बालावीने तिर 'स्कार करी कहेतो हवो के, अरे ! पांच दिवसमां चोरने खोली काढो. कोटवालें ते वचन अंगीकार कडे. ___ सहस्त्रमनें वली पण माताने कह्यु. के लोकनी वातो सांजलीने मुझने कहो. तेणीये पण सांजली बावीने पुत्रने कझुं. रे पुत्र ! आज कोट वालने, क्रोध करीने राजायें कह्यु, कोटवालें पण बी९ नव्युं . ते माटे सत्व राखीने काम करजे. ते बोल्यो, तमे बीहो नही. जुन गुं बने बे ? हवे ब्राह्मणनो वेप करीने नगरमध्ये पेगे. नमतां नमतां एक देवकु लने विषे कोटवालने जुवटें रमतो दीतो. चोरपण विप्रनेवेपे त्यांज वेतो. कोटवाल साथै रमवा लाग्यो. कोटवालें पोतानुं नामांकित मुशरत्न रम तां रमतां प्राप्यु. एवं पण साटे कांइक आप्यु. एवामां राजानो धारपा ल थाव्यो. तेणें यादेप करीने कोटवालने कयुं तमने राजा बोलावे के माटे शीघ्र चालो. कोटवाल तेनी साथै गयो. सहस्त्रमन्न पण कोटवालने घेर गयो. कोटवालनी नार्याने कर्तुं. घरमा जे सार सार वस्तु होय ते पापो. ते बोली, तुकने को मोकल्यो ? ते बोल्यो, कोटवालें मोकट्यो जे. स्त्री बोली कोटवाल क्या ? ते बोल्यो, तेने तो राजपुरुष बांधीने राजा पासे ले गया. त्यारे कोटवालें मने कानमां कह्यु के, तमे महारे घेर जश्ने सार सार वस्तु बहार काढो,में निशानी मागी त्यारें मने पोता नुं मुशरत्न याप्यु , ते आ महारीपासे . तमे जूओ. ते जो तेणीयें पण प्रतीत आणीने सार सार इव्य आप्यु. ते लेइने चोर पोताने घेर गयो. केटलेक कालें कोटवाल घेर याव्यो नार्यायें पूब्यं. केम मूकाणा? कोटवाल बोल्यो, केणे बांध्यो हतो, के जेथी तुं मूकवानुं पूरे दे. स्त्री बो ली, राजायें बांध्यो हतो. कोटवाल बोल्यो, तने कोणे कयुं ? ते बोली, तमारा चाकरें कयुं. तेने तमे निशानीमां पोतानी मुज्ञ आपी हती. ते नीशानी में घरमांथी सार सार इव्य आप्यु. कोटवाल बोल्यो, में तो Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० जैनकथा रनकोष नाग हो. कोइने मोकल्यो नथी. पण तुमने कोक गी गयो देखाय . पबी कोट वाल राजा पासे गयो. प्रणाम करीने विषादसहित कहेवा लाग्यो, हे दे घ! ते चोरें मने पण ठग्यो. ते संबंधि सर्व वृत्तांत कडुं. त्यारें गर्व धरीने राजा बोल्यो, तमे सर्व वेठा रहो. हवे ढुं पोतेंज एने खोली काढुं . जो आकाशमां जाशे अथवा पातालमा जाशे अथवा समुश्मा पेसशे. ज्यां हशे त्यांथी लावीश. कोटवाल बोल्यो, तमे लावो एमां शो संदेह ! चोरें पण माताने कपु. के लोकवात सांजलीने मुझने कहो. तेणे पण सांजली आवीने पुत्रने कयुं. रे वत्स ! हवे तहारा प्राणनो पण संशय . कारण के, राजा कोप्यो २ ते पोतें प्रतिज्ञा करीने नीकलशे. चोरें प ण गर्वसहित कोट उंची करीने माताने कर्तुं. हे अंबे! तमे अंशमात्र पण जय राखशो नही. सहस्रमन्ननु साहस कोइ नपाडी शके एवं नथी. पनी ब्राह्मणनो वेप करीने राते राजधारे गयो, चारपालने कॉ. राजा ने जाने कहो के, विज्ञानमा घणो माह्यो एवो एक देशांतरथी यंगमई नियो ब्राह्मण बारणे आव्यो बे. तेणे पण जराजाने कह्यु. राजा बोल्यो, एने रूडी रीतें महारीपासें मोकलो. पोलीयें जश्ने तेने मोकल्यो. राजानुं अं गमर्दन करवा मांमधु. राजानां थानरण लेइने एक स्थानके मूक्यां. रा जाने नंघ श्रावी गइ, त्यारें रूडी रीतें सूता जाणीने आनरण उपाडी बाहार नीकल्यो. अंगमईनियो जाणीने कोश्यें निवास्यो पण नही.. तेथी कुसा पोताने घेर गयो. प्रनाते राजा जाग्यो, त्यारें अंगमई नियाने दीठो नही. तथा बानूषण पण न दीगा. त्यारें राजानुं मन विल थरं. या मण कुमणो थको राजा प्रजातनुं कृत्य करीने प्रास्थान सनामां आवी वेतो. सामंत मंत्री प्रमुख कचेरी मली. मंत्रीश्वरें पूज्युं हे राजन् ! आज तमे आमण पुमणा केम देखाउने ? राजायें यथार्थ वात कही दीधी. मंत्री बोल्यो, ए को गुप्त खबर काहाडनार धणी देखाय . ए चोरनी मालम पडती नथी. ते माटे कोई बीजो उपाय करीये. राजा बोल्यो,शो उपाय ? मंत्री बोल्यो, सर्व पाखंमीने अनुक्रमें बोलावीये. पनी मंत्र करीने अथवा होरायें करीने अथवा केवलिकायें ज्योतिष ग्रंथ करीने तेयो चोरनी शोध करशे. पडी थापणने आवी कहे शे. राजा बोल्यो, एमज करो. मंत्रिये पण जिनचंदन नामें श्वेतांबर मुनिने बोलाव्या. ते मुनि पण Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३०१ समृ६ नामें श्रावकना जिनरक्षित नामें पुत्र ले, तेने साथै लेइने राजा पासे आव्या ॥ यतः ॥ जीवदया दश्या, निच्चंचि य समवगूढदेहाणं ॥ अरिहंताएं पणमिमो, तिदुअणसुपहियजसाणं ॥ १ ॥ एम तीर्थकर ने प्रणाम करीने पडी राजायें बापेला आसननी उपर वेग. मंत्रीश्वरें मुनिने कह्यु, चोर गूढ श्राचारनो धणी जे. नगरने लगे . ते माटे तमारी केवलिकायें निर्धार करी देखाडो. मुनि बोल्या, ए याचार मुनिनो नथी. प्रधान बोल्यो ए तमने अकल्प ले तो पण राजाने वचने करो. एटने जि नरक्षित श्रावक बोल्यो, में केवलिकानो अन्यास कस्यो ने. माटे जे कहो बो ते जोइने कहीश. मंत्री बोल्यो, अमारे चोर मल्यानुं प्रयोजन , माटे तमारे जोश्ये एम करो. ते सांजली जिनरदितें पाननं बीई ली धुं. राजायें तेने विसयो. ते पोताने ठेकाणे गयो. ए वात चोरें जाणी के, मने जिनरक्षित केवलिकायें जाणशे. त्यारे ते चोर, कपट श्रावक थइ, श्वेतवस्त्र पहेरी, धोतीनुं नत्तरासंग करी फलनी बाबडी हाथमा राखी, अ नुक्रमें चैत्यवंदना करतो, श्रीमहावीरस्वामीने देहेरे गयो. त्यां जिनरहित पण वेठा ले. ते चोरने विधिपूर्वक चैत्यवंदना करतो जिनर दितें दीठो. त्यारे साधर्मिकना रागें जिनरहित बोल्या, हे महानाग ! तमें क्याथी श्राव्या ? कोण बो ? क्यां जशो ? ते बाल्यो, चंपानो वासी जिनदास नामें श्रावक , दीदा लेवानो निश्चय करीने तीर्थयात्रा करवा नीकल्यो खें. तमे पण सिक्षाचालजी,गिरनारजी,समेतशिखरजी,मथुरा,आयोध्या,तद शिला, कलिकुंजी अने बीजां पण घणां चैत्योने वंदना करो. जिनर दितें पण त्यां बेग नक्तियें करीने चैत्य वांद्या. पबीते चोरनी प्रशंसा करीक ह्यु के, धन्य के तमने. जे माटे तमारा एवा उत्तम परिणाम होवाथी म नुष्यनो नव लेखे कस्यो. आज हवे तमे महारा घर चैत्य वांदो. ___ कपटी श्रावकें पण चैत्य वांद्या. पनी नीकलतां थकां जिनर दितें तेने जोजननी निमंत्रणा करी, ते बोल्यो ए घटे नही, जिनरहित बोल्या, म हारा जीवने शाता उपजावो तो, जोजन करवा रहो. चोर बोल्यो, नहुँ, तमे कहो बो, तो नोजन करीलं, पनी परम विनयथी नोजन कयु. व ली जिनरहित बोव्या, ज्यांसूधी शहां रहो, त्यांसूधी नोजन महारे घेर करजो. हे महानाग! आ घर तमाळं . अमेतो रखवाला बीयें. चोरें पण Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ जैनकथा रत्नकोष नाग बो. तेनुं वचन मान्युं रात पडी त्यारें जिनरक्षित बोल्यो, तमे खाज महारे घेर सु. एम कहीने घरमां ढोलीयो देखाड्यो. अनेकयुं के, खाज रात्रें चोरनी खबर काहाडवा सारुं महारे मंत्र जाप करवो बे, जे माटे राजा नी श्राज्ञा केम उलंघाय ? चोर बोल्यो, तमारा मनोरथ सिद्ध था. पी जिनरहित जाप करवा बेठा, सर्व परिजन सूता, अवसर पामीने कपट श्रावक घरनुं सार मूसीने नागे. वहाणुं वायुं, त्यारें जोयुं तो घरनुं सार' सर्व ले गयो दीठो. ते जिनरहिते राजाने संजनाव्यं के, कोइ धृतारें म हारुं घर सर्व मूस्युं, ते संबंधी सर्व वृत्तांत कयुं. राजाये मंत्रीने कयुं के, एने विसर्जन करो, ए दुःखीयानी केवली कायें सयुं. मंत्रियेंतेने विसयों. वली मंत्री बोल्यो के, हवे दिगंबरने बोलावो, राजायें कयुं सुखें बोलावो. मंत्रिये पण विमलकीर्त्ति नामें दिगंबरने बोलाव्यो. ते राजा पासे याव्यो ते पण परमेश्वरने नमस्कार करीने बेतो. राजायें तेने प्रणाम कस्यो. मं त्रियें कयुं, हे जगवन् ! तमारी केवलिका जोइने राजाने, चोर प्रकट करी पो. तेणें कयुं मे रात्रे निरुपण करीने कहीगुं. राजायें तेने सन्मा न देश विसर्जन कस्यो, ते पोताने स्थानके गयो. चोरें पण ते वात जाणी, विमलकीर्त्ति पासे जइ वंदन करीने " धम्मवुद्धि होन" एवं कत्युं तेने कृषि पू. तमेक्यांथी धाव्या ? ते बोल्यो, डुं श्रीपुरपाटणथी श्राव्यो बुं, संसारना नयथी उद्वेग पाम्यो बुं, तमारी पासे दीक्षा लेवानुं मन. बे. त्या रें ऋषि बोल्या, तमे केटलाएक दिवस छात्रपणें रहो. ते वचन तेणें अंगी कार क. ऋषिये पण तेने कोइ रासल नामें पोताना पूर्वला छात्रने जला व्यो. घने कत्युं के, ए तमारो लघु नाइ बे. एनी सार्थे प्रीतिथी वर्त्तजो. ते बोल्यो, जे खाप प्राज्ञा करो ते महारे प्रमाण बे. पती रात पडी. वि मलकीर्त्ति एकांते केवलिका जोवा बेठो, बेदु छात्र मग्मां सूता, पढी मूल बाने निधीन थयेलो जाणीने ते चोर नासी गयो प्रजातें रासन बा त्र उठ्यो, त्यारें लघुनाइने दीठो नही, तेणे ऋषिने ज कयुं के, हे जगव न ! बात्र देखा तो नथी, ऋषिपण शंका पामीने मग्मां श्राव्यो. रासलने कयुं. तुं यापणुं मठ रुडीरीतें जो, ते पण मठ जोइने बोल्यो, हे जगवन् ! औषधनी वर्त्तिका, जोगपट्टो, केवलिका ने पुस्तक प्रमुख सर्व देखातां न थी. ऋषि बोल्या, मूश्या, नाइ मूश्या हवे कमंगल पीढी जावो. तो कोटवा Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३०३ लने संनलावं. बात्र कममल पीबी जोइने आव्यो. अने कयुं हे नगवन् ! कममल पण नथी. अने पीडी पण नथी. ऋषि बोल्या. एणे आपणने व गोव्या, जेमाटे आपणो लिंग पण ए मूर्ख ले गयो. मात्र बोल्यो, श्रीशां तिनाथ पूज्य तमने प्रसन्न थान, आपणे वली बीजुं उपकरण करी लेछु. वली ते ऋषीश्वर, एकाग्र चित्त करीने ऐक पली बोल्यो. अहो हो कष्ट! 'रे कष्ट ! एम कहेतां मूळ आवी गइ, पढी मौन रह्यो, त्यारें बात्र, विनय करी हाथ जोडीने पूवा लाग्यो. हे जगवन ! प्रसाद करीने कहो के, तमे आवडो खेद करो बो तो वली बीजं पण कां ले गयो में के झुं ? पनी जे वारें चेतना पाम्यो, तेवारें ऋषि बोल्यो, रे रासल ! औषधने निमित्तें वीश सोनैया राख्या हता, ते पण लइ गयो, ए धन हरतां पापीयें अमारुं कांश न मूक्यु. ते सांजलीने गडे पण गुरुनो खेद उतारवा माटे परिग्रहनी गा थानो अर्थ पूज्यो. ऋषि बोल्यो, हे वत्स ! तें रूडो उपयोग दीधो के, जे थकी में विपाद मूक्यो, हवे राजझारे ज . त्यारें बात्र बोल्यो, राजाने पूजाना नाजन थाउ, नगवती चक्केसरी तमारु सांनिध्य करो. पड़ी दिगं बर राजा पासे गयो, राजायें वंदन सन्मान का, आसन आप्यु, त्यां वे ग. मंत्री बोल्या, हे जगवन् ! तमारी केवलिकानो ए कल्प डे के, कमम ल अने पीबी विना पण राजधारे जवु ? कपि बोल्या हे प्रधान,ए पापीनो क्य था, मने पण ते पापीयें ठग्यो, कमंमल अने पीबी पण ले गयो, तेमज पोथीपानां पण सर्व ले गयो. त्यारें मंत्री बोल्यो, केवलिका तो अ मने कहो. ते बोल्यो, हे प्रधान ! अमारी केवलीकापण ते ले गयो. ते सांजली राजायें कयुं हे प्रधान एमने वहेला विसर्जन करो, मंत्रिये पण तेमने विसर्जन कस्या, ते पोताने ठेकाणे गया. हवे चौद विद्यानो पारगामी नारायण नामें ब्राह्मण ने तेने प्रधाने तेड्या, तेपण राजा पासे आव्यो ॥ यतः ॥ कमलासगो वेअमुहो, चउवयणो प उमगस समवन्नो ॥ सचराचर विस्सपिया, पयावर जयई पयडो ॥१॥ एम ब्राह्मणने नमस्कार करीने आसने बेठो. मंत्रियें कयुं तमारी विद्यायें तस्क रं खोलीने राजाने बतावो,ब्राह्मणें कह्यु, प्रातःकाले कहीश राजायें तेने स न्मान देश विसयों, ते पोताने ठेकाणे गयो. हवे माताने मुखें व्यतिकर सांजलीने सहस्रमन्न पण, बटुयानो वेष करीने नारायण जट्टने घेर था Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ जैनकथा'रत्नकोष नाग हो. व्यो, नहने पगे लाग्यो. नारायणें पूज्युं तुं क्याथी आव्यो, ते बोल्यो ढुं सावजीनगरीनो वासी खंदिला नामें विप्र बुं, ते तमारी पासे वेद जगवा आव्यो बु. नारायण बोल्यो,मने त्यां को उलखे ? तस्कर बोल्यो तम ने त्यां घेर घेर सर्ष को नखे , तमारी प्रसिदता सांजलीने मने पण आववानुं मन थयुं,ते माटे आदर करीने आव्यो बुं. विप्र बोल्यो, तुं बीजे ठेकाणे जश्श नही, ढुं तुमने वेदनो पारगामी करीश. सहस्त्रमने कह्यु, ढुं परमाणुसरखो बूं माटे मने पार उतारो. एम कही पगें लाग्यो, रात्र पडी त्यारें ब्राह्मणे कयुं हुं घरमां सुइ रहेजे, ढुं तो प्रयोजन वशे बीजे ठेकाणे रहीश. पनी रात्रे त्रीजे पहोरे ज्यारे सर्व निामां आव्या, त्यारें घरमांथी सार इव्य लेश्ने सहस्त्रमन्न नाशी गयो. प्रातःकाल थयो त्यारें लूटाणा, नाइ लूटाणा ! एवो शब्द घरनामाणसें कस्यो. ते पोकार सांजलीने ब्राह्मण पण त्यां आव्यो ते राजानी पासे जश्ने पोकार करी कहेवा लाग्यो, के हे महाराज! महारुं घर धूतारो लूंटी गयो. ते सांजली राजायें तेने विस र्जन कस्यो, ते पोताने तेकाणे गयो. तेवार पड़ी राजाये शिवधर्मी शिवधर्मना आचार्यने बोलाव्यो. ते रा जानी सनामां आव्यो ॥ यतः ॥ केलासकय निवासं, एगगवं चंदसे हरं सुदहं ॥ गंगागोरीसमागम, पमुदियमणसं सिवं नमिमो ॥१॥ ए रीतें महादेवने नमस्कार करीने वेगे. मंत्री बोल्यो, हे जगवन् !. अलद थको चोर नगर मूसे डे, तेने तमारी केवलिकायें प्रगट करो. शिवधर्मी बोल्यो, प्रनाते जाणीशं. राजायें तेने सत्कार करी विसर्यो, ते पोताने ते काणे गयो,ए वात जाणीने "ते सहस्त्रमन्न पण शिवधर्मी पासे गयो. त्यां नमः शिवाय” एम कहीने बोल्यो, हे जगवन् ! ढुं तमारा व्रतने योग्य बुं, तो कालविलंब न करो, मने दीदा द्यो. तेणे पण अघोर शिव प्रमु ख चेलाने पूज्यु. चेलायें कह्यु, हे जगवन् ! एने शीघ्र दीदा द्यो. जेमाटे "धर्मस्य त्वरिता गतिरितिवचनात्” त्यारे तेणे ते चेलाने दीदा दीधी. रात्रिस मये केवलिका जोवाने शिवधर्मी एकांते बेगे, ते चोर पण चेलानी साथें सूतो. रात्रे मठ मूशीने नातो. प्रनाते जाण्युं त्यारें शिवधर्मी राजा पासे पो कार करवा गयो,हे राजन् ! केवलिका महारे माथे पडी,तेने मंत्रियें पूज्यु, ते केम? तेवारे ते बोल्यो,केवलिका माटे मठ मूकीने ढुं एकांते जश् सूतो. Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३०५ एवामां कोश्क तस्कर धूतारो मठ मूशीने नाशी गयो, राजायें कह्यु एने पण विसर्जन करो, प्रधाने तेने काढी मूक्यो. ते पोताने ठेकाणे गयो.. हवे बौक्षमतनो धणी मंजुसिरि नामें निकुने बोलाव्यो, ते पण आ व्यो. पोताना बुदेवने नमस्कार करी बेतो. मंत्रियें कयुं तमारी केवलि का जोड्ने गूढ चोरने जाणीने राजाने कहो, ते बोल्यो, प्रनाते निश्चय क हीj. राजायें सत्कार दीधो,ते पोताने ठेकाणे गयो. सहस्रमन्ने पण एर त्तांत जाण्यु, त्यारें बौना श्रावकनो वेष कस्यो. मंजुसिरिने विहारस्था ने जर वंदना करी. मंजुसिरियें पूब्युं, हे श्रावकं ! तमे क्याथी याव्या ? ते बोल्यो,ढुं दक्षिण पंथथी आव्यो बु,हे जगवन् ! महारा उपर उपगार क रो, जे माटे आज सर्व निकुने नोजन महारे घेर आप बे. मंजुसिरी बोल्यो, तमे परदेशी बो, तमारा घर नथी, माटे केम करंशो ? ते बोल्यो. श्हांज रहीने करीश. ते वचन मंजुसिरियें कबूल कयुं. तेणे पण बजार मांथी मोदक मांमा प्रमुख लावीने यथाश्नायें सर्वने नोजन कराव्यु. स दु ते श्रावक उपर प्रसन्न थया, विश्वास पाम्या, मंजुसिरितो एकांते केव लिका जोवा बेगे, बीजा निकुयें ते श्रावकने पूजयं, तमे क्या सूझ रहे शो ? ते बोल्यो, तमारां चरणकमले निश लश्श, निलुयें कह्यु, सुखें सूक्ष रहो.पली रात्रीने समये ते तस्कर बिहार मूशी नाशि गयो. विहार मूश्यो जा णीने निदु सर्व खेद पाम्या, तेणें मंजुसिरीने कयुं, ते पण राजा पासे जय खेदसहित बोलवा लाग्यो,हे महाराज! धूतारो विहार मूशी गयो. ए हाथ केम आवे ? राजा बोल्या, एने पण विसर्जन करो, मंत्रियें तेने विसर्यो. हवे कपिलनो नक्तिवंतो परमहंस नामा कापिलने बोलाव्यो, ते तत्का ल राजा पासे आव्यो. मंत्रियें कह्यु, तमे तमारी केवलिकायें चोरनी ख बर राजाने बतावो. परमहंस बोल्यो, प्रनाते कहीगुं. राजायें तेने आदर देने विसो , ते वात चोरें सांजली, चोर पण परम हंसनो सेवक था तेनी पासे गयो, तेने बे गदियाणा सुवर्णे पूज्यो, पगे पज्यो, गोष्ठी करवा मांमी, चोर बोल्यो,हे जगवन् ! मुझने ध्याननुं स्वरूप कहो, ते बोल्यो,तमे प्रथम अन्यासी बो, माटे महारो हंसनामा शिष्य ने तेनी पासे अन्यास करो, चोर तेनी पासे गयो. तेने हंसें कह्यु, रात्रे ध्यानमां निपुण थयें. चोर बोल्यो,जो एम ने तो,हुँ रात्रे श्हांज रहीश. हंस बोल्यो रूडं.पली ज्या Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ जैनका रत्नकोष नाग हो. रेंरात पडी त्यारें परमहंसतो एकांते केवलिका जोवा बेठो. चोर पण हंस पासे ध्याननो लेश मात्र शीखीने सूइगयो. पनी सदु को सूइ रह्या एटने आश्रम मूशीने चोर जतो रह्यो. सूर्य उग्यो एटले हंसें थाश्रममां कांश दीतुं नही. त्यारें परमहंसने जश् सनलाव्युं. तेणे पण राजाने कह्यु, हे रा जन् ! महारा आश्रमने गूढ चरित्रनो धणी चोर लूंटी गयो, माटे अमारी सार संजाल करो. मंत्रि बोल्यो, तमे जश्ने पोतानुं स्थानक शोनावो, का कुं बोलशो नही. एम सांजली ते पण पोताने तेकाणे गयो. हवे सुरप्रिय नामे नास्तिकवादी पाखंमीने बोलाव्यो. ते राजा पासे आव्यो. ते वृहस्पति नामे पोताना देवने नमीने बेठो. मंत्रि बोल्यो, त मे तमारा झाने करी गूढ चरित्रवंत चोरने शोधीने कहो. ते बोल्यो, प्रना ते एनो निश्चय करीश. तेने प्रधानें विसयों थको पोताने ठेकाणे गयो. ए व्यतिकर सहस्त्रमन्ने जाण्यो त्यारे ते गणिकावाडे गयो. त्यां प्रथम यौवन वयमां वर्तती, परम रूपवंती, अनुत वेषनी धरनारी, जाणे कंदर्प नी राजधानीज होय नहि !!! एवी अनंगसुंदरी नामें एक गणिका पासें जश कपूरसहित तंबोल आप्यु. वेश्याने कयुं, जो महारुं कार्य साधे तो ढुं तुमने दश दीनार अने अवल प्रधान वस्त्र आपुं. ते वात सांजली वेश्यायें कडं सारूं, त्यारें चोर बोल्यो, आज तुं कां बोलीश नही, जे हुँ कहूं ते मौनपणे करजे. ते वेश्यायें अंगीकार कयुं, तेवारें वेश्याने लेइने सुरप्रिय पासे गयो. तेने नमस्कार करीने कतो हवो के,हे जगवन् ! ए महारी नगि नी. ते नास्तिक मतमा वासित ,माटे तमारे हाथें दीक्षा सेवा ले ले. सुरप्रिय बोल्यो, बदु सारी वात, पण अमारी दीक्षानो ए आचार डे के, प्रथम दीदा लीधी एटले पोताने हाथें एक पशु मारवो, मदिरा पीवी, महार। साथें एक नाजनमां वेसी नोजन करवू, जाश्ने पण धणीनी न जरें जोवो, चोर बोल्यो, ए सर्व करशे, वेश्यायें पण तेमज कस्युं. रात्री पडी त्यार सूरप्रिये धूतने कडं. महारे तो कोई प्रयोजन वशे एकांते सू बुं बे. माटे ए तहारी नगिनीने लइ तमे सदु महारा शिष्य साथै मदिरा पान करो. धूर्त बोल्यो, हे गुरु ! जे बाप आज्ञा करो ते प्रमाण. सुरप्रिय एकांते बेगो, तेणें पए मदिरापान प्रकट कयुं, अनंगसुंदरीने वचमां बेसा डी ते पण घणा विकार प्रकट करती मदिरापान करती हवी, एम सदुयें Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०७ गौतमकुलक कथासहित. मदिरा पीधी,तेनी चेतना नाती, विसंस्थल केश थया,सदु धरतीये पज्या, चोरें अवसर जाणीने सर्व सार लीधुं, सर्वनां वस्त्र पण लीधां, सर्वने य थाजात एटले जेवा माताना नदरथी जन्म्या तेवा करीने नातो, पोताने घेर गयो. प्रनात थयो एटले सर्वनो मद उतस्यो, सदुये उन्या. ते मांहो माहे लाज पामता मठमां पेता. सहुयें वेश्याने पूब्युं, ए तहारो नाइ ह • तो के ? वेश्या बोली ए महारो नाइ न हतो, सहुयें सुरप्रियने वात क ही, सुरप्रियें राजा पासे जइ पोकार कस्यो के, हे राजन् ! चोरें महारो म तो लूंव्योज, पण महारो सर्व परिवार नग्न करीने गयो. माटे ए कोई क महा धूतारो तस्कर ले. राजा लगारेक हसीने बोल्या, रे मंत्री ! ए चो र धूतारें अमने एटलो तो गुण कस्खो के, अमारा वस्त्र ले गयो नही!!! ए नास्तिकाचार्य पण करुणा उपजे एवो विलाप करे , माटे एने का ढी मूको, ए फुःखीनां वचन सोनलवें सयुं, प्रधाने पण सुरप्रियने विस ज्यो, ते पोताने ठेकाणे गयो. ए रीतें बए दर्शनना झाननो अहंकार म दी नांरख्यो. एवं घर नथी, अथवा एवं राजकुल नथी, अथवा एवं देवकु ल नथी के, जेने ए धूत्तै कपट क्रिया करीने नथी लूटयु ! हवे राजा महा राज विपादवंत थयो, मंत्रीनी बुद्धि पण एमां न चाली, पांखमी सर्वने ते धर्ते विलखा कस्या, तेमज घणा जीवोनो संहार पण करे, यथा श्वा यें परस्त्रीयो पण नोगवे, ते निर्दय पापीनी जूगश्नो तो पारज नही. ए रीतें नो काल जाय बे. पण ते मायावी मूढ चरित्रवंत राजा प्रमुख को इना हाथमां न आवे. नरक प्रायोग्य तीव्र कर्मनां आचरण करतो कर्म बांधे. एवा अवसरनें विषे ग्रामानुग्रामे विहार करतां सुविशुभ नामें केवली जगवान त्यां पधास्या. राजा वंदना करवा गयो, नगरना लोक पण वंद ना करवा गया, ते चोर पण घणा लोक नेगा मल्या जाणीने चोरी कर वाने परिणामें गुटिका प्रयोगे वेष फेरवीने त्यां याव्यो. केवली लगवाने पण धर्मदेशना दीधी. ते यावी रीतें केः-प्राणीनी हिंसाथी, पारकी चोरी करवाथी, महा कडा विपाक आवे. इत्यादिक धर्मदेशना दीधी. ते सांन जीने को समकित, कोई देश विरति, कोइक नश्कनावी इत्यादिक अंगी कार करीने सर्व पर्षदा पोताने ठेकाणे गइ. सहस्त्रमन त्यां रह्यो, केवली ने वंदना करीने कहेवा लाग्यो के, हे नगवन् ! एवं कोई कुकर्म नथी के, Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०७ जैनकथा' रत्नकोप नाग हो. जे में नथी कयुं ! में अघोर पाप कस्यां ले. हवे तमारां वचन सांजलीने संसारवास थकी महारं मन विरम्युं बे. महारामां योग्यता होय तो मुफ ने जैनदीदा देने अनुग्रह करो. केवली बोल्या, हे देवाणुप्पिय ! निर्विघ्न थान, प्रतिबंध न करो, पण अागलथी मन वचन कायाना योगनी शुद्धि करो, यात्मा निर्मल करो, पनी निःशल्य थइने दीक्षा व्यो. सहस्त्रमन बो व्यो, हे नगवन् ! महा मुष्टकर्मनो कर्त्ता ढुं बुं, इहांनो राजा महारी नपर' घणो देषी जे, ते माटे बीजे नगमे जश्ने दीक्षा लेलं. केवली बोल्या, रे न इ! तुं वीहीक न करीश, प्रनाते राजा वंदना करवा आवे, त्यारे तुं शहां आ वजे, सर्व रूडु थशे, एम सांजली प्रमाण करी ते चोर पोताने घेर गयो. प्रनाते राजा केवलीने वंदना करवा आव्या, नगरना लोक पण वंद ना करवा अाव्यां, सहस्रंमल्न पण यावीने केवली पासे बेठो, धर्मदेशना प्रारंजी, अनेक जीवोना अतीत अनागत वर्तमान कालना संदेह द्या. राजायें केवली जगवानने पूजयं, हे जगवन् ! ते चोर कोण हतो ? अने हमणां ते क्या ? केवली बोल्या, हे राजन् ! ते महारी पासे बेगो . पण ते उपर ईप करवो नही. जे कारण माटे एनुं मन हवे कुकर्म थकी निवयु जे; कर्मरूप पर्वतर्नु उन्मूलन करवाने वजाग्नि सरखं एवं जे चारित्र ते लेवाना एना परिणाम थया बे, ते माटे हे महाराज! ए मोदनुं अंग पाम्यो, तेने साहाय्य करवू घटे ने. राजा वोल्यो, आ जे आड़ा करी ते प्रमाण. पली राजाने तेडीने सहस्त्रमन पोताने घेर आव्यो. जे धन चोयुं हतुं ते सर्व उत्सवावीने धणी धणीने आप्युं, राजायें दीक्षानो महो त्सव कस्यो, सहस्त्रमनें केवली पासे चारित्र लीधुं, सहस्त्रमननी मातायें पण चारित्रं लीधुं, प्रथम दिवसेज केवली पासे अनिग्रह कस्यो के, महारे जावजीव सूधी मास मासखमणे पारणुं करवं. गुरुयें तेनी घणी प्रशंसा करी. सहस्त्रमने पण ग्रहण तथा बासेवन शिक्षा ग्रहण करीने पांच स मितें समिता त्रण गुप्तियें गुप्ता, मुनिराज थया. कोइ काले एक मास, को काले वे मास, कोई अवसरे त्रण मास, कोई समये चार मास, को वेला पांच मास अने को वेला उ मास, एम उक्कर तपस्या करतां अनेक वर्ष वही गयां, उर्गति निबंधनकर्म पितप्रायें थयु,कोश्कवेला गुन अध्यवसा य उलयां, तेथी पकश्रेणी मांझी, अपूर्वकरण कयुं. अनुक्रमें अवेदी Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०ए गौतमकुलक कथासहित. थया. पनी मोहदय थयो, एटले दीणमोही थया. त्यां ज्ञानावरणाया दिक कर्म क्ष्य करीने केवलज्ञान पाम्या. केटलो एक काल केवल पर्यायें विचरीने योग निरोध करी,शैलेशीकरणे सकलकर्म क्य करीने मोदे गया. इति सहस्त्रमन कथा. जे माटे एमां बीजी घणीये कला हती, तथापि जो धर्मनी कला न आवी होत, तो उगर्तियें जात.अने जो धर्मकला आवी, • तो सिदि वस्या. माटे धर्मनी कला ते सर्वकलाने जीतनारी ॥ हवे बीजा पदनो अर्थ कहे . “ सबा कहा धम्मकहा जिणाइं (स वा कहा के० ) सर्व कथामां (धम्मकहा के ) धर्मनी कथा ( जिणाई के ) जितनारी . एटले ए अर्थ के, स्त्रीकथा, जक्तकथा, राजकथा अने देशकथा प्रमुख अनेक जातनी कथा , पण ते सर्व कथाने ध मकथा ते चीतारानी पुत्रीनी पेठें जितनारी जाणवी. ते कथा कहे . जंबुछीपना नरत देवने विपे वसंतपुर नगरमां शत्रुमर्दन नामें राजा राज्य करे . एकदा राजसनायें वेठां एक बटुक आव्यो. राजायें तेने आसन आप्यु. ते उपर बेठो देश देशनो फरनार जाणीने राजायें पूब्युं, रे विप्र ! बीजा राजानी पासे वस्तु होय तेथी महारी पासें जे वस्तु ओबी होय ते कहो. ते सांजलीने तेणे पण घणा महापणे उत्तर वाल्यो के, हे राजन् ! बीजा राजानी वाततो वेगली रहो, पण इंश्ने एक उच्चैःश्रवा थ श्व ले. तथा एक ऐरावण हाथी. अने तहारे तो अनेक हाथी घोडा बे. महादेवने एक पनडे अने तहारे तो लाखो गमे तृपन जे. कृष्णने पण एकज लक्ष्मी जे. अने तहारे तो अनेक लक्ष्मी जे. कंदर्पने रति अ ने प्रीति ए बें स्त्रीयो ने, अने तहारे तो अनेक स्त्रीयो छे. स्वर्गमा एकज कामधेनु , अने तहारे तो कोडोगमे बे. राजा बोल्यो, रे बटुक ! तने महारी प्रशंसा करवा बोलाव्यो नथी. माटे जे पूडं ते कहे. त्यारे बटुक बोल्यो, हे राजन् ! तमारे सर्व डे पण एक चित्रसना नथी के, जे देखी स जालोकनां चित्त रीके. ते सांजलीने बटकने विसर्जन करी, चित्रकारने बो लावी, सहुने चित्र करवाने नींतना जाग करी वहेची आप्या. • एवामा एक चित्रांगद नामें चितारो इव्यरहित अने वयें घरडो एक लो ने तेने एक अनंगसुंदरी नामें महारूपवंती पुत्री . ते निरंतर पिताने काजे जमवासारु जातुं लेश यावे. एक दिवस राजपंथमां जातुं लेइने या Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. वे , एवामां राजा पण घोडो दोडावतो सामो आवे ने. त्यारें रखे मने घोडो मारे ! एम विचारी घणो यत्न करीने ते पुत्रीपण चित्रसनाये आवी. जातुं मूकीने एकांते रही. एटले तेनो बाप कार्यचिंताने अर्थे बहार गयो. ते कन्याने पण बरजु काम नथी, तेथी जीतने विषे एक मोरनु पी चितस्यु. __ एवा अवसरने विषे राजा चित्रसना जोवा आव्यो. चितारानां चित्र जोतां चितारानी कुमरीयें चितरेलुं मोरनु पी७ देखीने विचारवा लाग्यो: अहो ! ए के, मनोहर ले ? एम विचारीने हाथे लेवा गयो. राजा नखें 5 खायों, एटले चितारी ताली कूटी हसीने कहेवा लागी. हे राजन् ! मूर्ख ना त्रण पाश्यानो मांचो हतो, तेमां चोथो पाइयो तमे थया. राजा बो ल्यो,रे स्त्री!त्रण पाझ्या तें कया कल्प्या ? के.जेनीसाथें दं चोथो थयो!! ते बोली. एकतो ते मूर्खनो शिरोमणी, के लोकें संकीर्ण राजमार्गेघोडो दो डावतो आवतो हतो. बीजो मूर्ख महारो बाप .जे निरंतर नोजन आवे ते वेलायें निहारने अर्थे जाय. त्रीजो ते मूर्ख के, जेने घणा दीकरा हता तेने अने महारा बापने बराबर जग्या चितरवाने वडेंची आपी. अने चोथा तमने जाण्या के, जे इहां पीबु सत्य के, असत्य समज्या विना ते लेवा गया. राजा पण विस्मय पामी विचारवा लाग्यो. अहो ! चितारानी दी करीयें त्रण मूर्खना जेवो चोथो मनेज गण्यो ? अहो ! एनी मतिनो घणो विलास ! अहो ! वचन विलास! अहो! रूपनी अचूतता ! माटे महारे एने परणवी॥यतः॥बालादपि हितं ग्राह्य, ममेध्यादपि कांचनम् ॥ नीचाद प्युत्तमा विद्या, स्त्रीरत्नं उष्कुलादपि ॥१॥ पड़ी ते चिताराने प्रार्थना करीने राजा परणतो हवो. ते स्त्रीने जुदो आवास थाप्यो. त्यां सुखें वसे छे. एकदा चितारीने घेर वारो अाव्याथी संध्याकर्म करी तेने घेर गयो. ढोलीयें वेठो. एवामां चितारीयें दासीसाथे संकेत कस्यो , ते दासीयें चि तारीने पूब्युं, हे स्वामिनि ! रात्री महोटी . राजा जागे . ते माटे मन विनोदने माटे कोक कथा कहो. राणी बोली, राजाने निशनो नंग थाय. माटे कथा कहेवी युक्त नथी. राजा संध्या पड़ी कहीॉ. राजायें विचाओँ के, महारी लाजे ए नहि बोले. माटे कपटनिश करूं. एम विचारीने कपटनि ज्ञ करवा लाग्यो. त्यार पड़ी राणी बोली. कोश्क गामने विपे उत्तम गुणवंत शेठ वसे ले. तेने यौवनवंती एक क Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३११ न्या बे. तेनो बाप, तथा नाइ तथा माता ए त्रण जणें जाणते जूदे जूदे ठेकाले विवाह कस्यो. लग्न माटे जे दिवस उराव्यो हतो, ते दिवसे त्रणे परणवा व्याव्या. माता पिता सदु चिंतातुर थया के, कन्या एक ने वर त्रण माटे हवे केम करी गुं ? एवा अवसरमां कन्याने साप करड्यो, तेथी मरण पामी. तेवात त्रणे वरें जाणी, त्यां याव्या. तेमां एकतो कहेवा लाग्यो 'के कारिमो प्रेम शा कामनो ? जे साथ प्रेम होय, तेनो वियोग केम खमाय ? माटे एनी सायें हुं बली मरीश. बीजो अन्नत्यागी अनशन लइ वेगे. त्रीजो बुद्धिवंत हतो तेणें विचायुं के, कायर यतुं नही, उद्यम करीयें तो सर्व सीजे. एम चिंतवी, देवता याराधवा वेतो तेणें तुष्टमान थने संजी वन मंत्र याप्यो, ते मंत्रनी अचिंत्य शक्तिकी कन्याने जीवती करें।. हवे परवा माटे पहेलो बोल्यो में डुक्कर करणी करी बे. जेमाटे ढुं ए साथै मिमां पेसतो हतो. बीजो बोल्यो, तें गुं डुक्कर कयुं ? में तो एनी पवाडे याहार त्याग कस्यो त्रीजो बोल्यो, तमारी सर्व महेनत फोगट बे, तमने तथा ए स्त्रीने में जीवता राख्या बे. एटली वात कहीने राणी बोली, हे दासी ! कन्या एक अने वर त्रणे कन्या परवाना अर्थी बे ते माटे ए कन्या कोने यापीयें ? ते तुं कहे. दासी बोली, हे स्वामिनि ! मने खबर नयी पडती, माटे तमे कहो के, ए कन्या कोने व्यापवी ? चितारी राणी बोली, रे सखी! निशमां महारी यांखो घूमाय बे, माटे हमणातो घी : काल एं बात कही गुं. राजाने विस्मय उपन्यो, परमार्थ न जड्यो, माटे बीजे दिवसे पण राजायें एने वारो थाप्यो, वली बीजे दिवसें राजा याव्यो त्या दासी बोली, स्वामिनी ! कालनी कथा अधुरी ने ते कहो, ते नुं मने घणुं कौतुक बे, घनंगसुंदरी बोली, तेनों प्रागल राजा ने प्रधानें मी विचार कर के, जेणें जीवाडी बे तेतो कन्यानो बाप तस्यो, अने जे कन्यानी साथें बलवा तयार थयो हतो ते एनो नाइ ग्यो, माटे जे अनशन करीने बेठो तो तेने कन्या यापवी. सांजलीने वली दासी बोली, बीजुं पण कोइक सुंदर दृष्टांत कहो, त्यारे चितारी कहेवा लागी. कोइक नगरमां राजानी प्राज्ञायें अंतेनरने माटे यानूपण घडाववासारु वे सुवर्णकारने नूंइरामां . राख्या ते मणिरत्न ना जानें काम करे. बहार निकलेज नही. ते बेदुमां एक बोल्यो, हे Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. न! हमणां रात्री ने के दिवस ? बीजो बोल्यो, रात्री जे. एटली वात सांजलीने दासी पूबवा लागी के, हे स्वामिनी ! सदा उद्योतमय स्थानके रहेतां तेणें रात्री केम जाणी? केमके त्यांचं सूर्यनीतो खबर पडती न थी ? राणी बोली, हे सखी ! में आज दहिं घणु स्वादवंत हतुं ते अधिकुं पी, जे. माटे मने गंघ घणी यावे . तेने लीधे शेष कथा काले कहीश, एम कहीने सूझ गइ. राजायें विचाओँ के, ए आगल झुं कहेशे ? ते सांनी लवा माटे त्रीजे दिवसे पए एने वारो आप्यो. त्रीजे दिवसें दासी बोली. हे स्वामिनी ! तमे कहोके तेणें रात्री केम जाणी? त्यारें अनंगसुंदरी बो ली, ते सोनी पोते रात्यंधो हतो माटे तेणें रात्री जाणी ॥ २ ॥ वली दासी बोली,कांइक सरस कथा कहो. तमने हाथ जोडीने कटुंबुं. राणी कहेवा लागी कोश्क राजाना नगरमां बे चोर रहे बे. तेणे एक दिव स विचाओँ के, कोश्क धनवंतनुं घर फाडी धन लेश्यें. एम चिंतवीने को क धनवंतना घरमा पेठा, त्यां वाप दीकरो व्यापारनुं लेबु करे , तेमां एक कोडीनो मेल मलतो नथी, ते माटे बा बेटाना मुख उपर खासढुं मायुं, ते देखी चोरें निर्वेद पामीने विचास्युं ॥ यतः ॥ आजानुलंबितमली मसशाटकानां, मित्रादपि प्रथमयाचितनाटकानाम् ॥ पुत्रादपि प्रियतमै कवराटकानां, वजं दिवः पततु मूर्ध्नि वराटकानाम् ॥ १ ॥ ते माटे वाणी याने इव्य घणुं वहालुं होय, तेथी एना घरे चोरी करीj तो हृदयस्फोट थशे. ते माटे बीजे तामे ज्यां घणुं धन होय, त्यां जश्य. एम चिंतवी वे श्याने घेर गयो. त्यां वेश्या एक कोढी पुरुषने कहे जे. तुं महारो स्वामी परमदेव बरोबर , या प्राणपण तमारा , एम सांजली चोरोयें विचायुं. के,ए पण महाकप्टें इव्य नेगुं करे ,माटे एy इव्य ले तेपण युक्त नथी, ते माटे को राजानुं घर फाडीये. एम चिंती राजानुं घर फाडीने तेमाथी इव्य तेश्ने निकलतां तस्कर जाणीने चोकीयातें पकड्या, राजा पासेला व्या, राजाय पण धन लेश्ने चोरोने पेटीमां घाली ते पेटीने नदीमा त पाती मूकी दीधी, ते वहेती थकी केटलेक दिवसें कांते यावी, ते पेटीने कोइके दीवी, धननी आशायें कहाडीने उघाडी, त्यारें बे मनुष्य दीठा, तेने लोकें पूब्युं, तमने पेटीमा केटला दिवस थया? त्यारे तेमांथी एक बोल्यो, आज चोथो दिवस जे. एटली वात कहीने राणी बोली हे सखी! तुं कहे Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१३ गौतमकुलक कथासहित. के, पेटीमा रह्या थकां सूर्य चंइतो देखातो नहीं त्यारें चोरें केम जाण्यु के, आज चोयो दिवस के ? दासी बोली हे स्वामिनी ! ए वातमां अमे मूर्ख माणस झुं समजीये? एतो तमेज कहो, त्यारे राणी बोली, हे सखी ! आजे मध्यान्ह समये ढुं सूती न हती माटे चंघ आवे ,तेथी काले क हीलं, एम कहीने सूती. राजायें विचारयुं एनो उत्तर शो हो ? ते लाज • थी पूबी पण न शक्यो, त्यारें वली चोथे दिवसे उत्तरं सांजलवाना कौतु के वारो थाप्यो. चोथे दिवसें दासी बोली, हे स्वामिनी ! कृपा करीने क हो के, ते चोरें चोथो दिवस केम जाण्यो ? राणी बोली एने चोथीयो ता व आवतो हतो तेना अनुमानथी जाण्युं ? ॥ ३ ॥ दासी बोली. वली बीजी को चमत्कार उपजावे एवी कथा कहो के, जेथी चतुर लोकने नणतां सांजलतां दिवस जांय ॥ यतः ॥ गीतशास्त्रवि नोदेन, कालो गति धीमताम् ॥ व्यसनेन हि मूर्खाणां, निझ्या कलहेन च ॥ राणी बोली, एक गाममां बे शोक्यो हती, तेमां एकनी पासे रत्न ह तां, ते वीजी शोक्योनो विश्वास न करे. त्यारे तेणें विचायुं. जे ए रत्न पे सतां निकलतां महारी नजरें आवे एवं करूं. पडी ते रत्न तेणें एक घडामां घाली ते घडा, मोहोढुं लीपी मूक्युं. त्यारें बीजी शोक्ये अवसर पामी ते रत्न काढी लीधां. पाडो घडो तेमज लीपीने मूक्यो. पहेलीयें जतां आव तां रत्न न दीनां त्यारे जाण्यु के, कोश्ये काढी लीधां. एटली वात कहीने राणी,.दासीने कहेवा लागी के, हे दासी! तमे कहो के, घडो लीप्यो हतो तोपण रत्न गयां एवं केम जाण्यु ? दासी बोली,ए तमेज कहो. राणी बो ली, बाजे घं आवे ने माटे काले कही. वली राजायें बीजे दिवसे वा रो आप्यो. बीजे दिवसें दासीयें पूब्युं, शोक्ये रत्न काढी लीधा एवं तेणे के म जाण्यु ? राणी बोली ते घडो काचनो हतो तेनी थानायें जाण्युं ॥४॥ दासी बोली, वली पण बीजी कथा कहो. राणी बोली:-एक नगरने विषे एक राजा तेने एक दीकरी तेनी मातायें एक दिवस तेने स्फार शृंगार पहेरावीने राजसनामां मोकली. राजायें खोलामा बेसाडी. एवामां आका शथी को विद्याधर ते कन्याने अपहरी गयो. हवे राजाने चार पुरुष रत्न जे, तेमां एक निमित्तियो, बीजो रथकार, त्रीजो सहस्रयोको अने चोथो वैद्य. ए चारेने राजायें कमु. जे महारी पुत्री लावे तेने अर्थ राज्य अने Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. पुत्री आपू. एम सांजलीने निमित्तियो बोल्यो, कुमरीने विद्याधर पूर्व दि शायें ले गयो ले. ए ढुं निमित्तने बलें कहूँ . त्यारें रथकारें आकाशगा मी रथ बनाव्यो. तेमां चारे जण बेसीने विद्याधरनी पड़वाडे चाल्या. अ नुक्रमें संग्राम थयो त्यां सहस्त्रयोधीयें विद्याधरने प्रहार दीधो. विद्याधरें जाण्यु, ए स्त्री महारे नोग्य न आवी. ते माटे एने हाथें केम जवा दे ये? एम विचारी तेणे कन्या मस्तक . ते मूक देखीने सहुये खेद पा • म्या. एटले वैयें संजीवनी औषधीये तेने जीवाडी. हवे ते परणवाने माटे परस्परे क्वेश करता राजा पासे अाव्या. त्यारे राजकुमरी बोली,सहुये विवादक्तेश केम करो बो ? ढुं अग्निमां पेसुं ,मा टे महा। साथे जे अमिमां पेसे ते महारो नार. एटली वात कहीने रा एगी बोली, हे दासी ! तुं कहे के, कोण अग्निमां पेसे ? दासी बोली, तमे कहो ? राणी बोली आजे निा आवे ने माटे काल कही. राजायें व ली वारो आप्यो. वली ते दिवसें दासीयें पूजयुं. कोण अग्निमां पेगे? म ने विचार करतां रात गइ पण खबर न पडी. राणी बोली. रे दासी : नि मित्तियो टालीने त्रणे जणे विचाओँ के, ए अग्निमां पेसेतो सुखें पेसे पण पापणें तो नही पेसीयें. सोनानी बरी होय, तो पण पेटे मराय नही. जो जीवता रहीशुं तो घणीये कन्या मलशे. एम चिंतवी बेगा. अने नि मित्तियें निमित्तमां कुशल दीतुं. त्यारे ते बोल्यो, ढुं राजकन्यानी साथें अ ग्निमां प्रवेश करीश. राजकुमरीये पण विश्वासी लोकना हायें चयथी सुरं ग खोदावी राखी , पनी सदु लोक देखतां इष्ट स्मरण करीने बेदु जण अग्निमां पेठां, काष्ठ नस्या, चय लगाडी, ते बेदु जण सुरंग मारगें नीकलीने पा बां त्यांाव्यां,लोक चमत्कार पाम्यां, राजायें निमित्तियाने कन्या परणावी. वली दासी बोली, बीजी कथा कहो. राणी बोली, एक स्त्रीने विवाह प्रमुख कारण हतुं माटे बीजी कोई स्त्री पासे कडां माग्यां, तेणीये पण रूपैया ठरावीने आप्यां, तेमां रूपैया पण थोडा घणा आप्या,एम करतां अनुक्रमें विवाहादिक कारण तो थ रह्यु,त्यारे कडां आपनारीयें कडां मा ग्यां, पण ते पानां आपे नही. एम करतां घणां वर्ष गयां. एक दिवस क ली कडां माग्यां. त्यारे ते कहेवा लागी के, आपुं. एम कहीने कडां का ढवा मांमयां पण शरीर स्थूल थर गयुं तेथी हाथमाथी नीकल्यां नही. Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३१५ त्यारें तेणीयें का, जे रूपैया तेराव्या ले तेमां जे अधुरा होय ते व्यो. प हेलीयें कह्यु. ढुंतो कडां लेश्श. ते बोली, हाथतो कपाय नही. ते माटे त मने एवांज बीजां कड करावी आपुं. तो पण तेणीयें न मान्युं अने एम कह्यु के, महारां एज कडां आपो. एटली कथा कहीने राणी कहेवा लागी, हे दासी! तुं कहे ए- केम थाय? दासी बोली तमे कहो. राणी कह्यु आज तो उंघ आवे वे. फरी बीजे दिवसे दासीयें पूडवाथी. राणी बोली ते कडां मागीलावनारीयें कह्यु के, जे रूपैया में तमने बाप्या हता तेज रूपैया तमे मने पाबा आपो. तो कडां पण तेंज पाबां आपुं! ए रीतें अनेक कथा कहेतां, राजा साथें नोग जोगवतां ब महिना वही गया. त्यारें बीजी राणीयो शाकिनीनी पेठे क्षेष करती लिए जोवा लागी. एक दिवस चित्रकारपुत्री मध्यान्ह समये पोताना महोलनां कमाड देश्ने पू वलो वेष पहेरीने एम चिंतन करे ले के,हे आत्मा! तुं विवेक धर,तहारी चित्रकारनी जाति , तहारा बा तो आ स्थूलशाडी प्रमुख अापी . श्रा पट्टकुलादिक वस्त्र प्रमुखतो सर्व राजानां प्रापेला, या आजूषण पण राजानां , वली उग्रकुलनी उपनी एवी घणी राणीयो ए राजाने बे, अने तेने मूकीने तुऊने राजा आदर दे दे तो तेनुं रखेने तुं अहंकार करती होय ? एम निरंतर कमाड देने ते चित्रकार पुत्री आत्मनिंदा करे. शोक्यो पण ते नि पामी राजाने कहे के, हे राजन् ! पोताना आत्माने रूडी-रीतें जलव ज़ो, स्त्रीयोमां कपट घj होय, तेमां पण नीच जाति नी स्त्रीनें तो झुं पूq!! ते माटे चितारीनो विश्वास करशो नही. ए नि रंतर एकांते कांइक कामण करे . ते सांजली राजा पण चिंतववा ला ग्यो के, ए स्त्रीयोने शोक्य उपर ष . ते माटे बुद्धिवंतें काने सांजव्या मात्र करवू नही ॥ यतः ॥ माहोहसूयअगाही, मपत्तियं जं न दिहिप चरकं ॥ पञ्चरकंमि य दिले, जुत्ताजुत्तं वियारिजा ॥ १॥ ते माटे हुँ, बा नो रहीने ए चीतारीनुं स्वरूप जोनं, अने सांनटुं. एम विचारीने बानो को न जाणे तेम जोयं. चितारीनां आत्मनिंदानां वचन सांजलीने, रा 'जा चमत्कार पाम्यो, तेने सर्व राणीयोमा पट्टराणी करी ॥ इति आवश्य क निर्युक्तौ ॥ ते माटे चितारीने कथा तो घणीये कहेतां बावडती हती, पण यात्मनिंदा ए धर्मकथानो अंश हतो तेथी राजाने रीफ थ. ते न Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. होत तो कांइक अनर्थ यात. ते कारण माटे सर्व कथामां धर्मकथा ते जीतनारी बे. इति चित्रकारनी दीकरीनी कथा. हवे त्रीजा पदनो अर्थ कहे बे. सवं बलं धम्मबलं जिलाई. ( सर्व बनं ho ) सर्व बलने ( धम्मबलं के० ) धर्मबल, ते ( जिलाई के० ) जिंतना र. एटले हाथी, घोडा, रथ, पायक, स्वजन, कुटुंबपरिवार इत्यादिक स dard एक धर्मबल जिंतनार बे. ते उपर कोकारानुं उदाहरण कहे बे. तत्रने विषे कुंकण देशमां सोपारक नामा नगर बे. ज्यां जीवित स्वामी बे, त्यां विक्रमधरं नामें राजा राज्य करे बे. ते नगरने विषे सोमी नामें रथकार से बे. ते राजाने परम प्रसादनुं कारण, त्रण जगत्मां साधारण कला कुशल बे. तेनी सोमा नामें नार्याने विमल नामें पुत्र a. तेज रथकारनी द्वासीनो पुत्र ब्राह्मणथी उपन्यो कोकास नामें बे. हवे ते रथकार पोताना पुत्रने निरंतर उद्यम सहित कला ग्रहण करावे. ॥ यतः ॥ पितृनिस्ताडितः पुत्रः, शिष्यश्व गुरुशिक्षितः ॥ घनाहतं सुवर्ण च, जायते जनमंगलम् ॥ १ ॥ पण ते पुत्रनी तेवी बुद्धि नथी, तेवी ह यशुद्धि पण नथी, तेवो उद्यम पण नथी, तेवो जाग्ययोग पण नथी, तेणेंकर पिता घोये उद्यम करे, पण ते पुत्र कांइ कला निपुण थयो नही. ते रथकार घणुंज यत्न करे पण अंधोपलनी पेठें ते निर्मल न थाय. परंतु त्यां दासीनो पुत्र कोकाश जे हतो, ते बुद्धियें बृहस्पतिसरखो निरंतर तेनी पासें बानो बेसे. तेथी ते तत्काल समस्त कला शीख्यो, अनुक्रमें रथ arrel पण अधिक कलावंत थयो । यतः ॥ स्थाने बीजं गुक्तौ, स्वातिजनं सति च सत्कृतिश्चैव ॥ पात्रे दानमति विद्या, वक्तरि वाच्यंच वृद्ध्यै स्यात् ॥ रकारनो पुत्र तो शून्य हृदयवंत, कलारहित, राहुसरखो थयो . अनुक्रमें सोमिल रथकार स्वर्गे गयो. राजानी याज्ञायें तेना पदे कोकाश वेगे. जे माटे विद्या ते कामधेनुसरखी बे ॥ नक्तंच || विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रचन्नगुप्तं धनं, विद्या जोगकरी यशःसुखकरी विद्या गुरूणां गु रुः ॥ विद्या बंधुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतं विद्या राजसु पूज्य ते नहि धनं विद्याविहीनः पशुः ॥ १ ॥ हर्तुर्याति न गोचरं किमपि शं पु यात सर्वात्मना यर्थिन्यः प्रतिपाद्यमानमनिशं वृद्धिं परां गति ॥ क पांतेऽवपि न प्रयाति निधनं विद्याख्यमंतर्धनं येषां तान प्रति मानमु " • Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१७ गौतमकुलक कथासहित. प्रत जनाः कस्तैः सह स्पईते ॥ २ ॥ दासेरोऽपि गृहस्वाम्यमुच्चैः का म्यमवाप्तवान् ॥ गृहस्वाम्यपि दासेरः अहो प्राच्ये गुनागुने ॥ ३ ॥ हवे ते कोकाशे एकदा गुरुनी पासे एवं सांजल्युं के,धर्म ते दयामूल एक रूपें डे, तथा ज्ञान क्रियायें करीवे रूपें ने, ज्ञान, दर्शन अने चारित्र करीत्रण रूपें , दान शील तप अने नावनायें चार रूपें , पांच महा 'व्रतें करी पांच रूपें बे, बकाय रदायें रूपं . सातनय नैगम, संग्रह, व्यवहार, जुसूत्र, शब्द, समनिरूढ अने एवंनूत ए सात नये सात प्र कारें , पांच समिति अनेत्रण गुप्ति ए आठ प्रवचन मातायें आठ प्र कारें ले. जीव, अजीव, पुण्य, पाप,आश्रव, संवर, निर्जरा बंध अने मोद ए नव तत्त्वे करीनव प्रकारें ले. दमा, मादेव, आजेव, मुक्ति, तप, संयम, सत्य, शौच, अकिंचनत्व अने ब्रह्मचर्य ए दश प्रकारना यतिधर्मे दश प्रका रें . पण ए सर्व सम्यक्त्व रूप मूलें करी दृढता पामे. देव गुरु धर्मनी श्रा ते समकित कहीये. तेना प्रपंच “चनसदहणत्तिलिंगेत्यादि " सडसह ने ले. तेनुं व्याख्यान सर्व एज पुस्तकना त्रीजा जागमां बापेला दर्शनशित्तरी प्रकरणथी जाणवू. एम सांजलीने ते कोकाश जिनमतमां निपुण अने सम्यक्त्वमा दृढ मननो धणी थयो. सुरखें काल गमावे , तेनी उपर राजानो पण घणो प्रसाद ने. एवा.समये नऊयणी नगरे यथार्थनामवालो विचारधवल राजा राज्य करे ले. तेने अंभुत चमत्कार कारी एवा चार पुरुष रत्न डे. तेमां एक सू पकार, बीजो शय्यापालक, त्रीजो अंगमर्दक अने चोयो नंमारी. ते चार मां रांधणियो मनोवांबित एवी रसोइनिपजावे. जे रसोई खाधाथी कणां तरे, तथा पहोरे, बे पहोरे, एम त्रण चार पहोरें, तथा एक बे दिवसे, त्रण दिवसें, चार दिवसें, यावत् पद मासादिकें एम अवधिना प्रमाणे नूख लागे, पण तेथी आगल न लागे तेम पाउल पण न लागे. तथा श व्यापालक पण एवी शय्या पाथरे ने के, जेनी नपर सूतां थकां परम पुरुष नोगवतां, इहित कालें घडी रात्रि दिवस प्रमुखें जागें. तथा अंगमईकने हाथे पण ब शेर,त्रण शेर, चार शेर, पांच शेर, ब शेर, सात शेर अने आठ शेरादि प्रमाण अथवा घj पण तेल मसलावे, पावू पण कढावे, परंतु ते थी अंशमात्र दुःख न पामे, घणुंज सुख उपजे. तथा नंमारी एवोनंमार Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ जैनकथा 'रत्नकोष नाग बठो. रचे के बीजाने ते जंमारनं बारएं तो जडेज नहीं, कोई, खातर प्रमुखतो देश शकेज नहि, कदाचित् कोइ जंमारमां पेसे तो पण देखाड्या विना सूक्ष्म दृष्टिपण कोई चीज न देखे. एवो नंमार राखे. ए चार रत्न सहित ते राजा सुखें धर्ममां तत्पर को राज्य पाले ते. पण पूर्वला दुर्दैववशें तेनी राणीने को ३ पुत्र ययो नही. त्याऐं राजा विरक्त थयो थको दीक्षा लेवानी इलायें को २ गोत्रीयाने जेटले राज्य व्यापवानी इछा करे बे, तेटले पामलिपुरना धणी जितशत्रु राजायें चार रत्नना लोनें करी " वीर जोग्या वसुंधरा. rat विचार करीने सैन्यसहित यावीने नऊयणीने वींटी लीधी. जेटले मध्यपुरुषे युद्ध करवा मामयं तेटले डुर्देवना वश थकी विचारधवल राजा ना पेटमां शूल उपन्युं दाऊया उपर शोटक प्राय महावेदना प्रकट थइ, राजा विचारे ने के, ॥ यतः ॥ धीरे वि मरियवं, कायरिए एवि व्यवस्स tri || एप हु मरियवे, वरं सुधीरते एा मरिवं ॥ १ ॥ एम विचारतो अनशन करीने देव लोके गयो ॥ उक्तं च ॥ सूलविस यहिविससु पाणीयसग्गिनमेहिं च ॥ देहंतर संकमणं, करे जीवो मुहुत्ते ॥ १ ॥ त्या अमात्यादि नाथरहित सैन्य जालीने दरवाजा उघाडा मूक्या, नगरना लोके नेटणां प्रमुख करीने जितशत्रु राजाने नगरी सोंपी, ते रा जायें पण हर्षित ने सर्वने पोत पोताना व्यापार सोप्या, ते राजा चा रे रत्ननी परीक्षा करे. ते करतां, अंगमर्दकें अंगमर्दन करतां पंचकर्ष प्र माणें तेल एक जंघामां पोतानी कलायें समाव्युं, वली सर्व शरीरमाथी तेल पालुं काढयुं. पण राजानी खाज्ञायें जांघनुं तेल न काढयुं. बीजो को कलानो निमानवंत होय, ते तेल काढो, एवं राजांयें सनामांक ह्युं. ते सांजलीने कलामां पंमित, अनिमानवंत एवा घणा संवाहक पुरु पते तेल काढवाने बहु बहु उपाय करें, तो पण ते तेल असाध्य व्या धिनी पेठें न नीकल्युं. अंगमर्दक रक्षक पण ते दिवसेंज काढी शके, पण बीजे दिवसें काढी न शके. कूपनी बायानी पेठें ते तेज त्यांज रहे. एवो नियम हतो, माटे तेल निकल्युं नही, त्याऐं तेना विकारथी राजानी जंघा nish स्थूल ने प्रतिकाली थइ. ते दिवसथी ते राजानुं काकजंघ एवं यथार्थनामविस्तार पाम्युं महोटा लोक पण लोकोक्ति वारी न शके ? लोक बोकनुं मुख कोण बांधी शके ? ए वात प्रसिद्ध बे. माष तुष, कूरग धीर इ, "" Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३१५ डू अने सावद्याचार्यनी पेठे, ते काकजंघ राजा परिक्षा करीने ते चारे क लावंतने घणो आदर सन्मान देतो हवो. ते चारे रत्न पुरुष पोताना स्वामीनी तेवी अवस्था देखीने वैराग्य पामता हवा ॥ यतः ॥ किं राज्ये न धनेन ध्यान निचर्यदेवर्षिसभूषणैः, पांमित्येन नुजाबलेन महता वा चापटुत्वेन च ॥ जात्याप्युत्तमया कुलेन शुचिना गुगुणानां गणे, रात्म न्येन न मोचितोऽतिगहनात संसारकारागृहातं ॥१॥ वरमेका कला रम्या, ययाधः क्रियते नवः॥ बव्हीनिरपि किं तानिः, कलंको यासु वर्तते ॥२॥ते राजानो चारेनी नपर प्रतिबंध हतो, तो पण घणां आग्रह थकी राजानी आज्ञा मागी दीक्षा लइ उक्कर तप करी केवल ज्ञान पामी सिदि वस्या. एवा अवसरने विषे कुंकण देशमा निर्धन लोकनो संहार करवा महा राक्षस सर एवं उर्निद थतुं हवं. जे उकालने विपे धनवंत पण निर्धननी पेठे आचरण करे, राजा ते रांकनी पेठे आचरे, साहसिक ते कायरनी पेठे आचरे, साधु शिरोमणि ते चोरनी पेठे आचरे, महा शेठ ते तुबनी पेठे आचरे, दानेश्वरी ते मव्युं रांधे, सुधर्मी ते निर्धर्मीनी पेठे आचरे, गु नकर्मना करनार ते अगुनकर्मोनी पेठे आचरे, लजावंत ते निर्लकनी पेठे आचरे, स्नेही पण निस्नेहिनी पेठे आचरे, सलूक पण निःशूकनी पेठे आचरे, कोमलहृदयवालो पण कठोरहृदय वालानी पेठे आचरे. संतो पी पण असंतोषीनी पेठे आचरे, प्रतिष्ठावंत ते निःप्रतिष्ठावंतनी पेठे या चरे, सुबुद्धि पण निर्बुधिनी पेठे आचरें, किंबहुना ! जे उकालने विपे बु नुदारूप महा रादसीयें करी परवश चित्त थया थका पितादिक पण पो ताना घणा वनन एवा पुत्रादिकने चाकरनी पेठे वेची नाखे, मुबानी पे - निःशंकपणे बांकी दे, तेनां मांसनणादिक असमंजसपणुं आचरे ॥ ॥ नक्तंच ॥ मानं मुंचति गौरवं परिहरत्यायाति दीनात्मतां, लजामुत्म जति श्रयत्यदयतां नीचत्वमालंबते ॥ नार्याबंधुसुहृत्सुतेष्वपतिनानावि धैश्चेष्टितैः किं किं यत्न करोति निंदितमपि प्राणी दुधापीमितः ॥ १ ॥ सर्व उपवथी अति बीहामणुं एवं परचक्र यावे, अग्नि लागे, इत्या दिक उपश्वमां कांक पण गरे. परंतु पुर्निमां कां न उगरे. एवं 3 निद वर्त्ततां कोकाश पोताना कुटुंबनो पण निर्वाह करी शके नही. त्या रें पोतानुं समस्त कुटुंब लेइने मालवदेशे उजयणी नगरीयें जतो हवो. प Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. ण त्यां साथे परिचित नथी, को उलखीतो नथी तेने लीधे राजाने मली ने पोतानी कला देखाडी शके नही. तथा कलापात्रनो निर्वाह पण राजा विना थाय नही. यद्यपि ते कोकाश एवो कलापात्र हतो तो पण को दृष्टेकरी सामुं न जुए. तो स्थानक आपq तो वेगलुं रहो. त्यारे ते सर्व पंथीनुं उतरवार्नु जे साधारण स्थानक हतुं तेमां रह्यो, त्यां तेणें शैकडो गमे काष्ठना पारेवा बनाव्या. कोइ खीली प्रयोग एवो कस्यो के, जेणे करी. ते पारेवा राजाने कोगरे जश्ने जीवतानी पेठे चंचूयें करी कण चुंगे. ते शालिकणे पेट जरीने पांबां आवे, ते कणे पोताना कुटुंबनो निर्वाह करे. एक दिवस शालिरक्क पुरुषो तस्करने खोले . तो त्यां करें पूस्यां पारेवां नजरे पाव्यां. ते त्यांथी जहाजनी पेठे निसरतां दीवां. त्यारे चम त्कार पाम्यो थको पारेवां पूं चाल्यो. यावत् कोकाशने कण काढी लेतां दीतो. त्यारें चोर मल्यो. एम हर्षित थका ते कोकाशने राजानी पासे ले गया. राजायें तेने स्पष्टपणे पूब्युं. कोकाशे पण पोतानुं सर्व वृत्तांत यथा र्थ कयुं ॥ यतः ॥ सत्यं मित्रैः प्रियं स्त्रीनि, रलीकमधुरं पा ॥ अनुकूलं च सत्यं च, वक्तव्यं स्वामिना सह ॥ १ ॥ राजा पण तेने सत्यवादी जा एणीने तथा तेवा काष्ठना पारेवा नीकल्या जाणीने हर्ष पामीने पूबवाला ग्यो के, हे अतुलकलाविलास ! हे कोकाश तुं बीजुं गुं गुं चमत्कारी विज्ञा न जाणे ले ? कोकाश बोल्यो, तमारा प्रसादें समस्त वीजा कलावंतनो गर्व हरे एवं रथकारनुं सर्व विज्ञान जाणुं बु. मनोवांबित स्थानके ले जाय एवो मनोहर काष्ठमय मयूर, गरूड, सूडा, कलहंस प्रमुख मनोवांबित सर्व विश्वकर्मानी पेठे करूं. जेणेकरी कीलिकादि प्रयोगें मनोवांवित स्थान के जावं. तथा प्रासाद घर प्रमुख मनोवांबित सर्व विश्वकर्मानी पेठे करूं. ते सांजलीने कौतुकप्रिय राजा बोल्यो, आकाशे गमनागमन करे एवो ए क गरुड बनावो. जेणे करी सकल पृथ्वीममल मनोवांबित जोश्यें. ते सां नलीने कोकाशे पण तत्काल गरुड निपजाव्यो. ते जाणे वासुदेवनो गरु डज होय नहि !!! एवो महोटो गरुड देखीने काकजंघ राजा हर्षित थ यो. तेना विस्मय थकी घj धनकनकरत्नादिक तथा निवास योग्य आवा स प्रमुख जे उपयोगी हता ते कोकाशने आप्या. त्यारें सकल नवी साम ग्री पाम्यो थको राजाने मान्य एवी प्रसिक्ष्ताने पाम्यो थको ते कोकाश Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२१ गौतमकुलक कथासहित. कुटुंबसहित सुखें त्यां रहे ले ॥ यतः ॥ लवणसमो नदि रसो, विन्नाणस मो अ बंधवो नजि ॥ धम्मस्स समो नदि निही, कोवसमो वेरि नजि ॥१॥ एक दिवस कौतुकयुक्त थको राजा पटराणी सहित जेम लक्ष्मी साथें कम निकले तेनी पेठे ते गरुड नपर कोकाश साथें वेसीने आकाश मार्गे नाना प्रकारनां वन, नदी, नगर, ग्राम, सीम, पहाड, पर्वत नजरें जोतां 'उल्लंघन करतां थोडी वारमा जरुषच्च नगरना माथा उपरथी जतां राणी राजाने पूजे जे, हे स्वामिन् ! था देवलोक सर कियुं नगर के ? अने गं गा सरखी निर्मल एवी या जलवाही कोण ? ते सांजलीने राजा सम्य क स्वरूप अजाणतो थको मौन करी रह्यो. त्यारे कोकाश बोल्यो, हे स्वा मिन् ! वीशमा तीर्थकर श्रीमुनिसुव्रतस्वामी पोतानां चरणकमलें करी पवित्र कम्युं. एवं था जरुअच्च नामे नगर में. अने ए नगरना लोक ने सुखदाइ, हंस, चक्रवाक, सारस प्रमुखना युग्मनीकीडायें सहित, या काशचारी विद्याधर किन्नर प्रमुखने पण कौतुक हास्य थाय, एवीए न मैदा नामें नदी ले. ते नगरने विपे सुरासुरसेवित केवलज्ञानी एवा श्रीमु निसुव्रतस्वामी पण दक्षिण दिशे रमु एवं जे प्रतिष्ठान पुर नगर त्यांथी एक रात्रिमा साठ योजन ननंघीने आव्या. त्यां यज्ञमा होमातो स वांगसलदाणवंत एवो पोताना पूर्वनवनो मित्र जे अश्व तेने पूर्वनव क थनादिकें करी जातिस्मरण ज्ञान नपजावीने प्रतिबोधता हवा. तेथी ते अश्व सर्व सचिंत्तनो त्याग करी, धर्मने विषे दृढ राग धरीने, सौधर्म देव लोकें सामानिक देवता थयो. ते देवता कतझपणा माटे त्यां स्वामीना समवसरणने स्थानके एक रत्नमयी अङ्गत महोटुं चैत्य बनावतो हवो. तेमां घणीज मनोहर जीवितस्वामी एटले श्रीमुनिसुव्रतनाथनी मूर्ति थाप तो हवो. वली पोताना पाबला नवनी अश्वमूर्ति थापतो हवो. ते दिव सथी इहां अश्वावबोध तीर्थ प्रसिद थयु , अने ते देवता पण आसन्नसि दिया माटे नित्य प्रनुपदपद्मनी सेवा करतो. जे यात्रायें आवे, तेना म नोवांछित परतो तीर्थनो महिमा वधारतो हवो. • वली कालांतरे एक वटनी समली हती तेनी उपर पाबला जवना वै रथी एक म्लेन्हें बाण मूक्यु. तेथी वींधाणी थकी पाबले नवें एक वार जि नवंदन अने साध्वीनी शुश्रूषा करी हती, ते पुण्य करी अंतसमये साधुयें Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. तेने नवकार दीधो. तेथी शुनध्यानें मरण पामीने सिंहल छीपना राजा नी सात पुत्रनी उपर एक पुत्री थइ ते अनुक्रमें यौवन पामे थके एकदा एक शेठ रुची याव्यो. तेने राजसनामां ठींक यावी. त्याऐं ते शेठें नमोरिहंताणं ए पद कयुं. ते सांजली ते पुत्रीने जातिस्मरण ज्ञान उ पन्युं पढ़ी माता पिताने याग्रह करी सातसें जहाऊ जेइने नरुच्चे या वी. त्यां चैत्यनो उद्धार प्रमुख करी घणुं पुण्य उपार्जती हवी. ते दिवस थी ते तीर्थं नाम समलिका विहार एवं प्रसिद्ध पामतुं हवं. अनुक्रमें वली अंबड मंत्रीश्वरें एं तीर्थनो उद्धार कस्यो. इत्यादिक घणो विस्तार बे. aal बीजां लौकिक तीर्थपण इहां घणां बे. एवो ते कोकाशने मुखें महि मा सांजलीने राजा, राणी तथा कोकाश ते तीर्थने नमतां हवां. वली गरुड नंपर बेसी खागल जतां दक्षिण दिशें एक महानगर उपर यजतां तेमज राणीयें पूब्धुं राजा न बोल्यो, त्यारें कोकाश बोल्यो, हे स्वामिन्! ए घणुंज प्रसिद्ध एवं पद्मपुर नामें नगर बे. इहां विद्यमान श्रीचं इन स्वामीना वचनें सौधर्में पासेथी लीधी एवी चंदकांतरत्नमयी श्रीचंड् प्रजजीनी प्रतिमा ते खागल मांमी. तेवारे महायागनी सिद्धी य‍ तेथी हर्ष पामीने त्यां श्रीचंदन विहार करावतो हवो. वली अनुक्रमें श्रीरामचंजी पोताना पितानुं वचन पालवाने वनवास मां रह्यां थकां रावनी नगिनी शूर्पनखा नो पुत्र बारवर्ष सूधी वंशनी जालिमां रह्यो हतो, तेनुं मस्तक छेद थयुं देखीने मारनारनुं पगलुं शोध थी शूर्पनखा श्रीरामचंजीनी पासें श्रावी. रामचंड़ने देखीने व्या मोह पामी थकी जोगनी प्रार्थना करती हवी, तेने रामचंदजीयें निषेध की लक्ष्मणजी पासे गइ. तेणें पण नोजाइ जाणी निषेध कस्यो. तेथी क्रोधें राणी एटले नाक काप्युं त्यारें ए नगरनुं नाम नासिक्यपुर कहेवाएं. वली रामें, रावणने मारीने सीताने ब्रेइने पाठा वलतां इहां श्रीचंद्रन चैत्यनो उद्धार कस्यो. वली पांडुराजानी पटराणी कुंतियें एकाग्रमनें जैनधर्म श्राराध्यो, ते महिमायें श्रीयुधिष्ठर याव्या. तेणें ए चैत्यनो उद्धार कस्यो. त्यां कुंतिविहार एवं नाम थयुं. इहां गोदावरी नामें ए नदी देखाय बे.. वली यागल जतां समुड्ने विषे सुवर्णमय नगर देखीने तेमज राणी ये प्रश्न करतेने राजायें कांइ उत्तर न छाप्यो त्यारें कोकाश बोल्यो, हे Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३२३ राजन् ! ए लंका नामें नगरी . कूट दुर्ग तथा महासमुंश्नी खाइ तेणें क री शत्रु एनी सामुं जोइ न शके, ए पुरीने विपे प्रकृतियेंज अहंकारी एवो रावणनामा प्रतिवासुदेव जेनी लाखो विद्याधर सेवा करता, तें पूर्वे राज्य करतो हतो. तेणें अहंकार धरते चंसूर्यादि देवता तथा विद्याधरोने वि विध प्रकारनी सेवाछारें पोताना आत्माने इंस्थकी पण अधिक मान्यो 'हतो. लौकिकमां तो एनी शदिनुं स्वरूप एम कहे .. रावणने नव ग्रहतो शय्याने पाये बंधाणा, मृत्युने बांधीने पाताले मू क्युं, वायुदेवतातो वाशी वाले, बारे मेघ ते सुगंधं पाणी वरसावे, वनस्प ति पुष्पप्रकर करे, एमज पोताने पाडें करी जल लावे, साते समुश् तेने म ऊन करावे. साते माता आरती उतारे, विश्वकर्मा शृंगार करावे, शेष ना गें बत्र धरे, गंगा यमुना चामर वींजे, पट्कतु ते पुष्पकारक थया, सर स्वति वीणा वजाडे, रंनातिलोत्तमादिक नाटक करे, तुंबरु गायन करे, नारद ताल वजाडे, सूर्य रसोइ करे, चंमा अमृत जरे, मंगल नेश दूहे, बुद्ध आरिसो देखाडे, वृहस्पति घडियाला वजाडे, शुक्र मंत्रीश्वर थाय, शनिश्वर पृष्ठरदा करे, तेंत्रीश कोड देवता सेवा करे, अग्याशी हजार ३ वि पाणीनी पर्व चलावे, नारायण दीपिका धरे, चंड माला करे, ब्रह्मा पुरोहित थयो, जीमूत रूपी बोकराने रमाडे, विश्वानर वस्त्र धोवे, कार्ति केय कोटवाल थयो, गणेश गधेडां चारे, लक्ष्मी वस्तुनी रक्षा करे, नारद ते दूतकर्म करे, धनद मारी थयो, इत्यादि घणा दर्शनीन असत् प्रलाप करे बे. एवो अधिवंत पण परस्त्री लंपट पणायें करी पुर्बुदि उपनी, तेथी सीता ने हरी गयो. ते महापापथी तेनुं सर्व बल निष्फल थयु. सम्यक न्यायवंत रामचंइ,लक्षणे तेने लीलामात्रमा सकल परिवार सहित संहरीने परलोकें प होचाड्यो. ए संकाने विषे विद्याधरनां इंशेयें तीर्थनूत घणा प्रासाद जव्य जनना मनने आनंददायक एवां कराव्यांबे. ते सांजली राजाराणी अने कोकाशे त्यां देव वांद्या. वली आगल चाव्या, अनुक्रमें पाला वव्या. __ वली एक दिवस कोकाशना मुखथी श्रीसिमाचलजी तथा गिरनारजी नो महिमा सांजलीने त्रणे जण देववंदना करवा जता हवा. एम उत्तर दिशे अष्टापद जेनुं बीजुं नाम कैलास पर्वत , ते नाना प्रकारना आश्चर्य मय, विशिष्ठ स्फटिक शिलामय, बाउ योजननो चंचों , तेने विषे श्रीनर Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. तचक्रवर्तीये कराव्यो एवो जे सिंहनिषद्या नामा प्रासाद तेने विषे चोवी शे परमेश्वरनां स्वस्वप्रमाण वर्णादिकसहित नवीन रत्नमय बिंब थापेलां जे. एवं श्री अष्टापदतीर्थ प्रसि६ . तथा वली श्रीसमेतशिखर जे अ जितादिक वीश परमेश्वरना निर्वाण स्थानकने विषे दिव्यस्वरूप रत्नमय स्थू, अलंकृत ने. वली आगल जतां शाश्वत चैत्य प्रमुख आश्चर्ये जयो एवो वैताढ्य पर्वतं दीठो. त्यां श्रीषनदेवस्वामीनी सेवाथी धरणिं तुष्ट' मान थया तेथी अडतालीश हजार विद्या नमि अने विनमि ए बे नाइने आपी. ते बेतु नाइ दक्ष्णि श्रेणियें पचास नगर, उत्तर श्रेणियें सात न गर वसावीने रह्या. इत्यादिक प्रबंध तेमने बुद्धिवंत कोकाशे कह्यो. __ वली दिवसांतरे पूर्व दिशे श्रीअयोध्याने विषे षनादि पांच तीर्थक रना जन्म कल्याणिकादिक महीमा वर्णव्यो. तेमज तिहांपण नमस्कार क खो. वली दक्षिणानर नगरे आव्या. तेनुं वर्णन पण कोकारों कयं. जेम के, शांति कुंथु अने अर ए त्रणे तीर्थकर तथा सनत्कुमारादिक पांच च क्रवर्ती वली चरम शरीरी पांच पांमव प्रमुख अनेक उत्तम पुरुषर्नु नत्प त्ति स्थानक ए . वली श्रीरुपनदेवस्वामीने वरसी तपनुं पारणुं कराववा श्रीश्रेयांसें प्रथम दान दीg, ते ए स्थानक जे. श्रीशांति, कुंथु अने अरनाथना एक मोद कल्याणिक टाली शेप चार कल्याणक इहां थयां डे. श्री शां त्यादिक त्रण तथा मनीनाथ एमनां समवसरण इहां थयां डे. वली शहां विष्णु कुमार लाख योजननुं रूप करीने साधुना हेपी नमुचीने शिक्षा क री. वली सौधर्मेना जीव कार्तिक शेवें राजाना आग्रहथी गैरिक ताप सने पीरसतां वैराग्य उपन्यो, तेथी शेठे एक हजार ने आंत वाणोतर सा थें दीक्षा लीधी. इत्यादिक अनेक वृत्तांत इहां नपन्यां ने, इत्यादिक वर्णव तां शांत्यादिक चक्री इहां थयां. ए वात आमां कहेवाणी. ते सांजलीने चमत्कार पामतो राजा चक्रवर्त्तिनुं स्वरूप कोकाशने पूब तो हवो, त्यारे सर्व वातमां निपुण एवो जे कोकाश ते कहेतो हवो. हे रा जन् ! सांजलो. चक्रवर्तिने जरतदेवना ब खंम, नव निधान अने चौद रत्न होय, त्यां प्रथम नव निधाननां नाम कहे जे. नैसर्पि, पांमूक, पिंग ल, सर्वरत्न, महापद्म, काल, महाकाल, माणवक अने शंख ए नवे निधा नमां शाश्वतां पुस्तक लख्यां . तेमां ते ते वस्तुनी नत्पत्ति तथा विश्व Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३३५ स्थिति लखी बे. कोइक कहे के, सादात् ते वस्तु बे. प्रत्येकें ते आठ चक्र अधिष्ठित . आठ योजन चंचां. मंजूषाने आकारें बे. सदा गंगा ने कांते रहे . नव योजन विस्तारें ले. बार योजन पहोला . तेने वैमू र्य मणिनां कपाट ने. चंमा सूर्यनां लक्षण ने. समक्दने सहित ले. एक पट्योपमने आनखें प्रत्येक निधानने नामें एकेक देवता तेनो अधिपति डे. इत्यादिक निधाननुं स्वरूप प्रवचन सारोवार ग्रंथ बंपायुं तेथी जाणवू. हवे सेनापति प्रमुख चौद रत्न कहीयें बीयें. तेमां एक सेनापति रत्न ते गंगा सिंधुने पहेलेपार विजय करवा समर्थ, अप्रतिहत शक्तिवंत जे. बीजुं गृहपति रत्न ते शाल्यादि सर्व धान्य, सर्व फल, सर्व शाक, तत्काल निप जावनार होवाथी चक्रिना सर्व सैन्यने पूरूं पाडे एवं .त्रीजुं पुरोहित रत्न ते सर्व कुशेपश्वने शांतिकर्म करनार होय. चीथु हस्तिरत्न तथा पांचमुं अश्वरत्न अत्यंत वेग वाला पराक्रमवंत ले. बहुं वार्दिकरत्न ते सर्व सैन्यने तत्काल जे अवसरे जेवा जोश्ये तेवा सर्व जातना नवन करवा समर्थ तथा नन्मना निमग्ना नामें नदियोमा सुगम पाऊ बांधवा समर्थ होय. सातमुं स्त्रीरत्न ते सर्वथी अतिशायी कामसुखनुं निधान होय. आठमुं चक्ररत्न ते हजार आरानु, वाम प्रमाणे, सर्व अायुद्धमा मुख्य, ब खंम पृथ्वीनुं मार्ग देखाडे. तथा ए अमोघशस्त्र होय. नवमुंबत्ररत्न ते पण एक वाम प्रमा णे होय, ते स्वामीना हस्तस्पर्शथकी बार योजन विस्तारवंत थाय, वली वैताढ्यथी उत्तर दिशाना जे म्लेड राजा तेना आज्ञाकारी, मेघकुमार देव ता ते जेवारें मुसलधारायें वर्षाद वरसावे, त्यारे ते धारानो निवारनार थाय, नवाणुं हजार सुवर्ण शलाकायें ग्रथित, कांचनमयी दंमें शोनित, वस्तिप्रदेशे पंजरे विराजित, तथा जेनो पुंतनो नाग ते अर्जुन नामा नज्व ल सुवर्णना ढांकणेकरी ढांक्यो , शीत, ताप, वायु, वृष्टि प्रमुख दोषोना नारानुं करनार बे. दशमुं चर्मरत्न ते बे हाथ प्रमाणे होय, वैताढय पर्वत थी उत्तर दिशाना जे म्लेबराजा ते ज्यारें मेघनो अत्यंत नपश्व करे, त्या रें ए स्वामीना हायस्पर्शे बार योजन विस्तारवंत थाय, तेनी नपर बत्र रत्न धरे, एटले माबडा सरखं थाय, तेमां रघु चक्रवर्त्तिनुं सैन्य तेने पृथ्वी नी पेठे आधारनूत थवाथी तेमां प्रातःकाले वावे, . अने पाबला पहोरे धान्य निपजे, एम एरत्न शाल्यादिक धान्य उत्पत्तिनुं निमित्त जाणवू. अगी Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. यारमुं मणिरत्न ते चार अांगल दीर्घ अने बे आंगल पहोलुं. वैमूर्य रत्नम य त्र्यंस्त्र बहांसी बनने वस्ति प्रदेशे रघु उद्योत करे. अथवा हाथीने स्कं धे रयुं थकुं बार योजन प्रकाश करे, कुइ नपश्व टाले, हाथमां मणिरत्न होय तो यौवन अवस्थित रहे,अथवा हाथीने स्कंधे रह्यो थको तेनुं यौवन अवस्थित रहे. तथा केश अने नख ए अवस्थित रहे. बारमुं कांगणीरत्न अष्ट सोनैया प्रमाणं होय, चार आंगल समचोरस होय, सर्व विषने हरे, ' तथा तमित्रा, खंक प्रपाता गुफामां बार योजन सूधी अंधकार हरे. चक्र वर्तीना सैन्यमां मूक्युं थकुं सूर्यनी पेठे प्रकाश करे. चक्रवर्ती तमिस्रा त था खंम्प्रपाता गुफामा पूर्व पश्चिमनी जीत प्रत्ये योजन योजनने अांतरे पांचशे धनुषना पहोला चक्रनेमिनी पेठे गोल गोमुत्रिकाकारें एक नीते प वीश अने बीजी नीते. चोवीश, एवां गणपञ्चाश मामलां करे. ते एकेक योजन संधी द्योत करे. कोश्क एम कहे जे के, एकेक नीते Hए मांग लां करे. ए मते ए मांझलां थाय एम श्रीजंबुद्दीपपन्नत्तिनी वृत्तिमां कह्यु बे, ते पण खडीनी पेठे सुखें लखता चाले. ते मामला जरतदेवना नत्त राईनो विजय करवा माटे ज्यांसूधी चक्री होय त्यांसूधी रहे, अने गु फा पण त्यांसंधी उघाडी रहे. तेरमुं खड्गरत्न ते बत्रीश आंगल प्रमाण होय, तेनी संग्रामने विषे अप्रतिहत शक्ति होय. चौदमें दंमरत्न रत्नमय पंचलताक वजसार, एक वाम प्रमाण होय. वैरीनी सेनानुं वित्रासक, लं ची नीची जग्याने सम करे, शांतिकारक, मनोरथपूरक, सर्वत्र अप्रतिहत शक्तिवालुं, ते दंग एक हजार योजन सुधी नहुँ जाय. ए चौदे रत्न प्रत्येकें हजार यदें अधिष्ठित . ए चौदमा सेनापति प्रमुख सात पंचेंश्यि रत्न ले, अने चक्रप्रमुख सात एकेंशिय रत्न ले ते पृथ्वी परि पाम ले. ते सातेने अनुयोगधार तथा वाणांग ए बेदुनी वृत्ति तथा मलय गरिकत वृहत्संग्रहिणीनी वृत्तिने अनुसार प्रमाणांगुलें कडं . अने श्री अनुयोगहार सूत्रने अनुसारें उत्सेधांगुलें जणाय . तथा प्रवचन सारो दारनी वृत्तिमा यात्मांगुलें जणाय . ए त्रण मतमां निर्णय तो केवली जाणे. इति चौद रत्न स्वरूपम् ॥ वली चक्रवर्तिने शोल हजार देवता सेवा करे, तेमां चौदरत्नना चौद हजार अने बे हजार बे जाना जाणवा. तथा बत्रीश हजार मुकुटबंध Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३२७ राजा सेवा करे, चोसठ हजार अंतेवरी, एक लाख अठावीस हजार वा रांगना, बीश हजार देश, बहोतेर हजार महापुर, अडतालीश हजार पाटण, नवाणुं हजार शेणमुख, बत्रीश हजार वेलावल, चौद हजार ज लमार्ग, एकवीस हजार संनिवेश, बत्रीश हजार महोष्टी नगरी, सोल ह जार रत्ननी खाएयो, नवाणुं हजार सुवर्णादिकनी खाएयो, वीश हजार सामान्य खागर, सोल हजार द्वीप, उप्पन्न अंतर्दीप बन्नुं क्रोड ग्राम, गणपचास हजार उद्यान, उगणपचास कुराज्य, सोन हजार म्लेब रा जा, चोराशी लाख हाथी, चोराशी लाख घोडा, चोराशी लाख रथ, बन्नुं क्रोड पाला, सर्व सैन्यमां प्रढार कोड स्वार, चौद हजार मंत्री, एंशी ह जार पंमित, चोराशी हजार कोटवाल, चोराशी हजार सूत्रधार, चोराशी हजार अनरण्धारक, त्रण क्रोड नियोगी, सांत क्रोड कुटुंबिक, से साठ रसोइया ते तो एकज मात्र चक्रवर्त्तिना जोजनने माटे होय. बाकी तो बीश हजार बीजा होय. चोसठ हजार कल्याण महाकल्याण कार क, बत्रीश कोड अंगमर्दक, त्रण लाख शस्त्रधर, पांच लाख दीवीधर, त्रण क्रोड वाजिंत्र, चोराशी लाख निशान, दश क्रोड ध्वजा, बत्रीश हजार बत्रीबद्ध नाटक, त्रण लाख जोजन स्थानक, बत्रीस कोड कुल, एक क्रोड गोकुल, प्रहार श्रेणि प्रश्रेणि, बीजा पण घणा शेठ सार्थवाहादिक होय. तथा गंगा सिंधु ए वे नदीयोनी अधिष्टा वे देवियो मप्रपाता ने तमि त्रा गुफानी बे देवीयो, मागध, वरदाम, प्रजास तीर्थना त्रण देवता, हि मवंत पर्वत ने कूपन कूटना अधिष्ठायक वे देवता, ए सर्व चक्रीने वश वर्ती होय. इति चक्रिस्वरूपम्. ए रीतें निरंतर कौतुककारी नवी नवी वातो सांजलतां कोकाशने रा जायें पूब्यं, हे महाभाग ! तुं ए तीर्थना महिमा प्रमुख केम जाणे बे ? कोकाश बोल्यो, हे राजन् ! सोपारक नगरने विषे वसनारा, जैन सिद्धांत रूप वनने विषे सिंहसरखा, एवा गीतार्थ आचार्यनी पासे यादरें करी ने में सांजल्युं बे. जे माटे देवता प्रमुखनी सेवा ते घणे काजें फलवंती थाय. ने साधुनी सेवा ते तत्काल फल खापे ॥ तकं ॥ सेविक‍ सी हगुफा, पाविक मुत्तिया य गयदंतो ॥ जंबू घरे लग्न, खुरखंमं च म्मखं च ॥ १ ॥ एम साधुना गुण सांजलीने राजा य निधाननी पेठें Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२७ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. साधु संगम दोहिलो मानतो हवो. जैनमुनिनी नपर बहुमान धरतो हवो. संगतें करी अचेतननुं पण परिणमन तथा प्रकारें थाय तो सचेतननुं गुंज कहेवू ? ॥ नक्तंच ॥ एके नेजुर्यतिकरगतास्तुंबिकाः पात्रलीलां, गायत्यन्ये सरसमधुरं गुवंशे विलमाः ॥ एके केचिद्रथितसुगुणा कुस्तरं तारयंति, तेषां मध्ये ज्वलितहृदया रक्तमन्ये पिबंति ॥ १॥ एम कोकाशनी सा हाय्ये ते राजा, महाबलवत्तर राजाउने पण गगन मार्गे अकस्मात् ज इने बांधी लीये, तेथी ते राजा घणोज बलीयो थयो. ___ एकदा उद्यानने विपे पांचसे मुनिने परिवारें परिवस्या महा महिमा वंत एवा धर्मानंद आचार्य पधारता हवा. तेमने वंदन करवाने कोकाश साथें घणा आम्बरें घणा हर्षे राजा जता हवा. परिवारसहित आचार्यने प्रणमी यथोचित स्थानके वेगा. गुरुयें साधुधर्म श्रावकधर्म विस्तारसहित धर्मदेशनामां कस्यो, तेथी प्रतिबोध पामीने राजायें पोतानी इलायें सम कितमूल बार व्रत यथाशक्तियें आदस्यां. तेमां पण बहा दिगव्रतने विषे य द्यपि कोकाशनी सहाय्ये घणां शैकडो योजन पर्यंत एक दिवसा जवा नी शक्ति ने. तो पण पवित्र चित्तनो धणी ते राजा एक दिवसे सो योजन थी उपरांत न जवानो नियम करतो हवो. ते धर्म अंगीकार कस्यो एटले पुराणा घणां कर्म खपावतो हवो. गुरु पण राजानी प्रशंसा करता हवा. वली गुरु राजाने कहेता हवा के, नो महानाग ! तुं चिंतामणिनी पेठें 5 सैनधर्म पाम्यो, एटले सार्थक थयुं एम जापजे. किंतु अंगिकार करीने वि धियें पाराध्यां सार्थकता थाय.जे माटे एकतो जीवने स्वनावेंज घणो प्रमाद होय. वली राज्यना व्यासंगमां विशेष प्रमाद थाय.ए प्रमाद ते अग्निसरखो . जे माटे थोडी वारमा व्रतनो संहार करे, ते माटे अप्रमादी थश्ने जेम व्रत लीधांडे, तेम निरंतर संनारीने सम्यकरीतें धाराधवां. थोडोये अती चार न लगाडवो. एम करतां गृहस्थपणे पण तमे मोक्ष सुख साधशो. एम शिदा सांजलीने राजा घणो संतोष पामतो हवो, अनुक्रमें घेर गयो. हवे धर्म, अर्थ अने काम ए परस्पर बाधा न पामे, एम ते राजा, व्र तने सेवतो हवो. राजाने बीजी विजया नामें राणी . ते एम चिंतवती हवी के, राजा, निरंतर जसोदेवी राणीने बहुमानसहित कौतुक प्रमुख देखाडवा पासे राखे , पण मने यनिष्टनी पेठे कांश कहेतो नथी. तो Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३२॥ राजाने महारी अवज्ञानुं फल देखाडं. एम विचारीने एक अन्य रथकार ने बोलावीने गरुडने पालो वालवानी कीलिकाने स्थानके बीजी कीलिका घडावी. पनी मूलगी कीतिका लेश्ने गुप्त स्थानके मूकी. अने तेने स्थान के नवी कीलिका घाली. एवं कृत राणीयें कह्यू. हवे एकदा राजा राणी सहित गरुड उपर बेसीने कोकाशनी साथे पू 'वनी पे कोश्क देशे चाल्या. यावत् थोडी वेलामांज नवनवां कौतुक जोतां ते कौतुकथी आक्षिप्त मन थक्ने राजायें घणो मार्ग नल्लंघन कस्यो. एटले राजाने दिगवत सांन{. कोकाशने पूबवा लाग्यों, रे प्रिय मित्र ! आपणे केटली धरतीय व्या ? महाप्रज्ञावंत कोकासपण, निश्चय करीने बोल्यो, हे राजन् ! बस्से योजन अाव्या. एवं करवतनी पेठे हृदयस्फाटन करतुं वचन सांजलीने राजा बोल्यो, रे रथकार ! शीघ्र शीघ्र गरुड पाडो वालो. एम कहीने शोच करवा लाग्यो के, है है मुझने महोटुं पाप लाग्युं ! अहो! महाहं व्रत कामकुंचनी पेखें फोगट नंग थयुं. अहो ! प्राणीने अनुपयोगें वर्त्त, ते अनर्थनुं मून, जे. अहो ! कुतूहल प्रिय प्राणी जे ले ते पोताना आत्माने अहित थाय ते पण न जाणे. हा! अपार संसारने विपे पूर्वे क्यारे पण न पाम्यो, एवं जे धर्मरत्न तेने नव्यत्वना परिपाकें पामीने, मलिन कयुं. इत्यादिक सर्व इव्य गयानी पेठे, राजा शोच करतो हवो, रथकारने बागल चलाववानो निपेध कस्यो, एटने रथकार पण गरुड पानो वालवाने कीलिका लेवा गयो त्यां बीजी कीलिका दीती, त्यारें चिंता करतो राजाने कहेवा लाग्यो के, हे राजन ! कोश्क दुष्टें उर्दैवना वशथी कीलिका फेरफार करी जे. जे माटे ए महारा हाथनी कीलिका नथी, अने महारी कीलिका विना गरुड पाडो फरे नही, माटे आगल बादकड़ नगर देखाय ने. त्यां कोइक सूत्रधारने घेर जश्ने नवी कीलिका करूं. तो ते प्रयोगें पाबा विघ्न रहित श्रापणे स्थानके जयें. हमणा एनो ए उपाय ले.नहीं कांतो हाथीज नीचे पृथ्वीनपर जा पडणुं इत्यादि अनर्थ थशे. जीवितनी पण शंका थशे. ते सांजलीने राजा, जेम कुवैयें बतावेलु नैषज्य ते मुखें तो मीतुं प एं परिणामे उष्ट होय तेनी पेठे ढुंढुंकार करतो अरुचीनी पेठे बोल्यो, हे कोकाश ! तुं हुं ए अयोग्य अवक्तव्य वात बोल्यो. तुं.धर्म मर्मनो जाण तां जो धर्मने ध्वंस करे, एवं वचन बोले जे तो, धर्मव्यवस्थाकारी वच Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. न कोण बोलशे? कोण एवो मूढ होय के, जव जवने विषे पाम सुल न एवं बालोक संबंधी सुख छे, तेने माटे अनंता जवमां दुःखें पामवा योग्य एवं परलोकनुं परम शंबल नृत धर्म तेने मारवाडमां कल्पवृक्षनी पेठें उन्मूले. जे कारण माटे अजाणपणें जो नियमनंग थाय, तो व्रत मलिनतारूप प्रतिचार लागे. तथा जालीने जो थोडंये व्रतनंग करे, तो व्रत नांगे, माटे जे प्रतिचारें करी खंमित व्रत ययुं होय ते काचा कुंजनी पेठें सुखे सांधी शकीयें. परंतु व्रत नाग्युं ते पाका घटनी पेठें कोण सांधी शके ? ते माटे जे यनार होय ते था. परंतु प्राणांते पण चागलतो एक पगलुं जनुं तेपण महारे कबूल नथी. महोटा पुरुष जे अंगीकार करयुं ते नोज निर्वाह करवो. ते माटे बीजी चिंता मूकीने गरुड पालो वालवाने ए जकीलिका घालो. कदाचित पुण्ययोगें जो गरुड चाले तो चाले. एवां रा जानां वचन सांजलीने कोकाश चित्तमां चमत्कार पाम्यो थको विचार वा लाग्यो के हो ! ए राजानी धर्मनेविषे दृढता कहेवी ने के, जेने पोता ना जीवितनी पण अपेक्षा नथी ! कोकारों यागज जवानो उपदेश करयो हतो माटे कोकाशने लगा उपनी, तेथी नीचुं जोयुं. पढी कोकाशें पण अ नन्य गतिकने करवाने माटे, देवने श्रालंबीने, पूर्वे प्रयुंजी जे गमनकीलिका तेने काढीने, गरुडने वालवाने बीजी कीलिका घाली. एटजे बेदु पांख मली गइ थी जण पुरातन पुण्यें करी नीचें सरोवरमां पड्या. अखं शरीरे सरोवर तरीने कांठे याव्या ॥ यतः ॥ वने रणे शत्रुजलाग्निमध्ये, महार्णवे पर्वतमस्तके वा ॥ सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा, रति पुण्यानि पुराकृतानि ॥१॥ त्यां कडुं एक नगर देखीने राजा कोकाशने पूढता हवा, हे मित्र ! सर्वांगे शोभावंत एवं ए कोण नगर बे ? त्यारें सर्व वातमां विचक्षण एवो कोकाश बोल्यो, हे राजन् ! कलिंग नामा देशने विषे कंचनपुर नामें नगर वे. त्यां कनकप्रन नामें राजा राज्य करे बे. ते अतिशय मानवंत बे. देव तायें पण स एवा तेजवंत हुर्यहने तमे वश करो बे. जेमाटे अनिमा नीने अपमान थाय ते महा संतापनं हेतु बे ॥ यतः ॥ तरुणजनो निर्वि नवः, तरुणी विधवा गुणी निरनुनावः ॥ श्रपमानितोऽनिमानी, यदुःखं वं हति तदनुपमेयम् ॥ २ ॥ ते दुःखें नालो थको कदाचित् तमने मित्रनी पेठें मजे, तोप तमारे एनो विश्वास न करवो. जे माटे दुं नगरमा जइने को • Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३३१ sari शस्त्र लेने नवी कीलिका करीने हुं पाठो खावं, त्यांसूधी तमारें सावधानपणें वृने स्थाने तथा वाढीने यांतरे देवीसहित जेम कोइ न जाणे तेम रहेतुं. ए रीतें अत्यंतपणे कहीने ते कोकास नगरमा निःशंकप गयो. त्यां को सूत्रधार रथचक्र घडवाने उद्यमवंत थयो छे, पोताना घरनी बहार शालामां वेगे बे, त्यां जश्ने कीलिका घडवा माटे विशिष्ट • उपकरण याच्यां, ते सूत्रधार उपकरण जेवा घरमध्ये गयो, एटले कोकाश घडवाना विज्ञाननो रसियो होवाथी ते रथचक्र दोकमां निपजावतो ह वो. जे चक्र पोतानी मेजें उनुं रहे, हाथथकी मूक्युं यकुं दिव्यचकनी पेठें पोतानी मेजें फरतुं यागल जाय, नींत प्रमुखने विषे हणायु यकुं तेमज पाहुं यावे, श्रहो ! कलानी निपुणतानो रस केवो असमंजस ले के जेथी प्राणी पोताना हितनी वात पण न चिंतवे. हवे ते कोकाश परीक्षाने थे रथचक्र फेरवे बे. एटले ते सूत्रधार पण घरमाथी उपकरण लेने बा हर याव्या. त्यां ते अनुपम चक्र देखीने महापणपणें विचारवा लाग्यो के, निश्चयें ए असाधारण कलावालो कोकाश बे, एवो कलावंत पृथ्वी मंगलने विषे अन्य कोई दीठो नथी, ने सांजल्यो पण नथी, माटे ए वात राजाने जला. जेमाटे ए राजाना द्वेषीनो मित्र बे. तेथी राजा महारी उपर प्रसन्न थशे. एवं दुर्ध्यान करीने पोताना पुरुषने कयुं के, एने नजरमा राखजो, ढुं यावं त्यांसुधी जवा देशो नही. एम कही राजा पासे जश्ने कयुं. हे देव ! तमारा नाग्यो याकष्यों, सर्व सूत्रधारमां शिरोमणी महा कलावंत जे कोकाश ते क्यांकथी महारे घेर ग्राव्यो वे. जेणें गरुड निपजाव्यो ते काकजंघ राजा दुर देशांतरवर्त्ती राज्य संपदा पोताने वश करतो हवो. ते वात सांजलीने राजा साधु साधु एम बोलतो पोतानां पुरुषोने कोकाशने बांधवा मोकलतो हवो. तेणें पण कोकाशने बांधी खाएयो. तेने राजायें कौंच बंधने बंधावी यति कदर्थना करते पूढयं, हे कोकाश ! काक जंघ क्यों बे ? पुष्ट बुद्धिना धणी एवा कोकारों पण कांइक चित्तमां चिंत वने काकजंघ राजानुं स्थानक प्रमुख देखाडी दीधुं. अथवा गुद्ध बुद्धिवंत पुरुषनो प्राशय समुनी पेठें कोण जाणी शके ? हवे कनकप्रन राजा परम हर्षे करीने जाणवा लाग्यो के, खाज हुं त्र ए जुवननुं राज्य पाम्यो. एम विचारी यम सरखा सुनट साथै लेइने नी Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३७ जैनकथा रत्नकोष जाग बहो. कल्यो. रे काकजंघ ! क्यां गयो ? क्यां गयो ? इत्यादिक बोलतो त्यां गयो. काकजंघ राजा पण उंचां वचन सांजलीने गुं ययुं ? एम व्याकुल व्याकुल यतां जेटलामां नासवा मांगे बे, एटलामां तो सुनटो खावी तेने मयूरिका बंधनें वांधीने बंदीघाननी पेठें राजा राणीने कपायवरों नाना प्रकारनां कु वचन कहेतां अनेक विटंबनापूर्वक नगरमा लावीने काष्ठपंजरमां नांख ता हवा. काकजंघ राजायें विचायुं के, यहो ! ए रथकार खलयकी प खल ले. नहिंतर मे बाना रह्या हता तेने ए विटंबना केम यावे ? मा टेत पाणीमांथी यग्नि नवी, चंदमंगलथी गरल ऊयुं, अथवा एमां ए नो शो वांक ? पोतानाज इष्टकर्मनो ए विपाक बे, नहि तो एवा सननुं मन डुर्जननी पेठें केम याय ? इत्यादिक चिंता करे बे, जन्मथको पल एवी यापदा तेणें नथीं जोगवी, एम ते राजा वचनातीत मानसिक पीडा जोग तो एवाने पण ते राजा ग्रन्न मात्र नयापे. तेथी पासे रह्या जे लोक, ते करुणायें करी कनकप्रन राजानी बीहीकें वायसपिंमनी पेठे कांइक अ न नांखता हवा. ते दिवसथी वायसपिंग प्रवयों. जेमाटे लोक कां पर मार्थ जाता नथी. ए रीतें वायस पिंकीयें राजा राणी बेदु पोताना प्रा घरे. जून के, महोटा पुरुषोने पण एवी अवस्था वे बे ! अथवा नव स्थिति सर्वत्र प्रसिज ले ॥ यतः ॥ को इब सया सुहिने, कस्स य थिराइ पिम्मा | को मिला न गहिउ को गिद्ध नेव विसएसु ॥ १ ॥ एक दिवस कनकप्रन राजायें विचायुं के, सर्व अनर्थनुं मूलं ते ए कोकाश बे. माटे एने राखवो नही. एम विचारीने कोकाशने चोरनी पेठें मारवा नो हूकम को तत्काल सुटो तेने विटंबना पूर्वक पगुनी पेठें वधस्थानके जत पूर्वनाशुकर्मना वरों अनुकंपायें नगरना लोकोयें दीवो. त्याऐं लोकोयें नेगा थइने घणो याग्रह करी राजाने विनंती करी के, हे महा राज ! हे महा निर्मल यशना धणी ! जे काम करिये ते विचारीनें करियें, तो परिणामे सुखदा याय ॥ यतः ॥ शव्यवन्हिविषादीनां सुकरैव प्रतिक्रिया ॥ सहसा कृतकार्योत्थानुतापस्य तु नौषधम् ॥ १ ॥ दैववशें एवो कलापात्र, काकुंननी पेठे इति अर्थनो साधक जे पंमित होय तेनो को विध्वंसं करे ? जे कलावंत होय तेनी साधारण वृत्ति होय, तेने पोतानो तथा परनो एम न होय, ते सर्वने बहुमान करवा योग्य होय, माटे एवा कलावंतने Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक अर्थसहित. ३३३ पोतानी पासे राखो,एना महिमाथी सर्व राजाथी अधिक तेजवंत तमे था. एवं सांजलीने राजायें ते कोकाशने तेडावीने पूब्युं के, तुं हुं विज्ञान जाणे जे ? ते बोल्यो, हे राजन् ! समस्त सूत्रधारनुं अतिशय विशेष विज्ञा न हुँ जाणुं बूं. त्यारें राजा बोल्यो, हे कलाकुशल ! महारे योग्य कमला कर नामा एक मंदिर बनावो. कमलनी पेठे सो पांखडी करी तेनी मध्य कर्णिका उपर महारुं नवन, तथा सो पाखडी नपर सो पुत्र योग्य सो नवन निपजावो, एवी कलानो अतिशय करो, जेम सकल राजा थकी अधिक नवनादि महारे थाय. एवो आदेश कोकाशे प्रमाण कस्यो. तेथी बंदिखानादिक परवशपणुं दूर थयु. पडी ते नुवन नीपजाववा माटे राजा ये काष्ठ लेवानी याज्ञा करी. हवे गूढ आशयनो धणी एवो जे कोकाश तेने जीववानी आशा था. महेल करवाने जमाल थयो थको काकजंघ राजाने मलवाने अत्यंत जा करे , पण कनकप्रन राजानी आझा विना मली शके नही. त्यारे विचाओँ के, काकजंघ राजा महारा उपर घणुं हीणुं मानता हशे, मनमां एम जागता हशे जे, अमे राजा राणी वेद जण गुप्त रह्यां हतां तेने को काशे बताव्यां, माटे ए कोकाश असमंजसनो करनार उऊन थयो, एवो तेमने संदेह थतो हशे. ते संदेह टालवाने कोकाश पोतानो अभिप्राय सूचक एक श्लोक लखी मोकलतो हवो. ते या प्रमाणेः-“कर्कशकर्मणि निषजा, विहिते मा मंद उर्मनायिष्ठाः ॥ सपदि गुणायैव तवै, तन्नविता निश्चिनुष्वेति ॥ १ ॥ अर्थः-वैयें अति कर्कश औषध दीg, तेथी रे मंद ! आमण उमणो न थश्श. जे कर्कश औषध डे ते तत्काल गुणमाटेज . एम निश्चय करजे. ते अन्योक्ति वांचीने राजा विचारतो हवो के, कोकाशे मने हित जाणीनेज नगरमां तेडाव्यो जणाय . अन्यथा कनकप्रन रा जा मने कोण जाणे? मारत के, युं करत ? ए उक्तियें जाणुं बूं के, को काश बंधुनी पेठे महारी पासेज छे, मने ए क्वेशथकी मूकावशे, एम निश्च य करीने ते राजा त्यां काल गमावतो हवो. हवे कोकाश पण पोताना स्वामीने मूकाववानो उपाय चिंतवतो चक्र वर्तिना वार्षिक रत्ननी पेठे विशिष्ट आवासनी रचना करे ले, तेवामां ते राजानो दीपिकाधारक प्रतिये घणो सत्य पुरुष , तेणें विचाङ्गु के, र Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. खे या पुरुष रत्ननो विनाश थाय ! एम विचारीने कनकप्रन राजानो गृ ढमंत्र जे हतो ते कोकाशने कह्यो के, हे विज्ञानीमां शिरोमणी ! राजायें तुमने मारवानी इवा करी हती, पण न माखो. परंतु नवो प्रासाद निप जाव्या पती ते घरप्रवेशनुं मुहूर्त्त करीने तेज दिवसे निवें तुमने तथा त हारा स्वामीने मारशे. ते वचन सांजलीने कोकाश महा कषायवंत य कलिंगदेशना कनकप्रन राजाने नगरसहित ध्वंस करवानो इबक थयो थको, तत्काल काकजंघ राजानो पुत्र जे विजय एवे नामें बे, तेनी पासें ए क पुरुषने प्रन्न वृत्तियें मोकलीने कहेबरावतो हवो के, तमे सार सार परिवार जेइने प्रखन्नपणें या देशनी सीमायें यावी रेहेजो. ते सांजलीने विजय राजा पण, पोताना पितानुं वैरनिर्यातन करवाने उजमाल थको जे थोडं पण घणा लश्करनुं काम करे, एवं सारसार सैन्य लेइने बानो कं चनपुरने टूकडो दैत्यनी पेठें कोई जाणे नहीं ए रीतें रहेतो हवो. कोकारों पण विचित्र याश्चर्यकारी एवा तोरण द्वार प्रमुख ते प द्माकर नामा प्रासादने विषे निपजाव्यां, ते देखीने कनकप्रन राजा घणो हर्षवंत थयो न मुहूर्ते महोत्सवपूर्वक ते राजा पोताना पुत्रो सहित प्रासादमां पेगे, त्यां सर्व घणो विस्मय पामता याकुल व्याकुल थका प्रासाद जोवा लाग्या, घणुं प्रशंसवा लाग्या, कोकाशने प्रासाददान दीधुं. कवा लाग्या के, अहो ! कोकाश ! में पूर्वे नथी दीठो, नंथी सां नव्यो एवो ए प्रासाद न संनविये एवी. तहारी विज्ञान चातुरीयी नीपज्यो d. अथवा पृथ्वीने विषे गुं न संनवीयें ? ॥ यतः ॥ दाने तपसि शौर्ये च, विज्ञाने विनये नये ॥ विस्मयौ नैव कर्त्तव्यौ, बहुरत्ना वसुंधरा ॥ १ ॥ वे गूढ निप्रायवंत एवो जे कोकाश ते कनकप्रन राजाने एम कहे तो हवो के, हे राजन् ! ए महोटा एक स्तंनिया प्रासादने विषे एकज की लिका बे ते कीलिका जो रूडी रीतें प्रयुंजी होय तो, ए व्यावास, पोतानी मेजें विमानन पेठें खाकाशें चाल्यो जाय. ते सांजलीने कौतुक जोवानो र सियो एवो ते राजा ते यद्यपि कोकाशनुं बोलतुं जुतं हतुं तथापि तेने प्रांत चित्तथकी सत्य मानतो घणा सन्मान सहित कोकाशने एम कहेतो हवो के, हे विज्ञान रचना करवामां निपुण ! तुं ए कौतुक अमने देखाड्य, के जे Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३३५ थी करी अमे प्रवर महोटा नगर जोश्ये. कोकाश बोल्यो, तमारा पुत्र स हित तमने तत्काल अपूर्वतर देखाडं. माटे हे राजन् ! तमे तथा तमारा पुत्र सदु पोतपोताना स्थानके वेसो, पडी हुँ कीलिका प्रयोगें करी तमो ने अतुल कौतुक देखाडं. ते सांजलीने जेम उकालमा नख्या रांकजनो होय ते नोजन करवा बेसे, तेनी पेठे शीघ्र शीघ्र ते राजा तथा राजाना शो पुत्रो मलीने सद्ध ते प्रासादने विपे पोत पोतानी पांखडियें बेसी गया. हवे ते कोकाश पण जेम को बंदिरखानाथ निकले तेनी पेठे प्रासाद मांयी बहार नीकलीने बोल्यो. के जो जो रे मूखों ! तमे महारो प्रनु जे काकजंघ राजा तेने मारवानी इबा करी तेनुं किंपाक वृदनी पेठे महा दा रुण फल देखाईं एम कहेवाने समकालेंज, नत्सुकपणे कीलिका प्रयूंज तो हवो. ते प्रयोगथकी तत्काल सर्व प्रासाद मलीगयो. त्यारे जेम कमल मां चमर रही जाय, तेना मनोरथनी पेठे तेमा रह्यो थको राजा पोता ना पुत्र सहित सोर बकोर करवा लाग्यो. ॥ यतः ॥ अन्योक्तिः ॥ रात्रिर्ग मिष्यति नविष्यति सुप्रनातं, नास्वानुदेष्यति हसिष्यति पंकजश्रीः ॥ छ विचिंतयति कोशगते हिरेफे, हा हंत हंत नलिनी गज नऊहार ॥ १ ॥ एवा अवसरने विपे कोकाशने संकेतें विजय राजा पण प्रलय कालना मे घनी पेठे, कनकप्रन राजानो वध करवा माटे नगर बहार आव्यो. ते वे प्रकार, असमंजस देखीने हाहाकारें व्याकुल एवो सर्व नगरने विषे बुं बारव थतो हवो. एवं देखीने कनकप्रन राजानो सेनानी नगर बहार नी कल्यो, तेणें विजय राजाने नगरमा पेसतां कणेक थोनाव्यो. अने त्यां पोतानु घणुं पराक्रम फोरवीने विजय राजानी साथें अत्यंत यु६ कझुं. तेमां शरें शर, कुंते कुंति, दंमें दंमी, खड्गे खड्गी, शक्ने शक्ति, पटिशायें प द्विशी, मुजरें मुजरी, शव्यायें शल्यी, शूलिये शूली, चक्रे चक्री, यष्टियें यष्टी, मुष्टियें मुष्टी, केशे केशी, बाहुयें बादु, कूपरें कूपरी, करायें करी, स्कंधा यें स्कंधी, शीायें शीर्षि, पगें चालनारा साथें पगें चालनारो, पादें पा दी, ए रीते ते उपर क्रोधे बेहु तरफना सुनटोयें संग्राम कस्यो. " परं हतं सैन्यमनायकं" ॥ इति वचनात् ॥ परंतु नायकविनानुं सैन्य हणायो त्यारे हलवे हलवे कनकप्रन राजाना सेनानीना लोक नाग. ते जोइ विजय राजानुं सैन्य गाममा पेसीने सर्व नगरनो ध्वंस करतुं हवं. ते ध्वंसने अ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. नंतर जेम कोइने नरकमांथी काढीये तेम विजय कुमर काष्ठ पंजर मध्ये थी पोताना माता पिताने काढतो हवो. पली संपूर्ण मनोरथवंत एवो वि जय राजा ते कोकाशने साथें लेने निःप्रकंप मनथको नगरमाथी नीकली ने चतुरंगी सेनायें परिवस्यो शीघ्र देम कुशलें पोताने नगरें पहोतो, माता पिता तथा कोकाश ते सर्व महामहोत्सवें पोताना नगरमा पेसता हवा. हवे काकजंघ राजा ते, कृतज्ञ शिरोमणि, परोपकारी एवा कोकाश न णी, अगणित मणिसुवर्णादिक अति घणी, अति अनुत एवी विनूति देतो हवो. तथा सूर्य रथना अश्व सरखा हजारो अश्व, शेकडोगमें ऐरावण स रखा हाथी, घणा शक्विंत गाम, बापतो हवो. एम कोकाशने पोताना सरखो करतो हवो ॥ यतः ॥ कृतज्ञस्वामिसंसर्ग, मुत्तमस्त्रीपरिग्रहम् ॥ कु वन मित्रमलोनं चं, नरो नैवावसीदति ॥ १ ॥ यद्यपि विजयाराणीयें कीलिका परावर्त्तादिक होणुं काम कयुं. पूर्वे पण शोक्य नपर घणी इर्ष्या राखती, तेथी राजायें निश्चय कस्यो के, ए कीलि का परावर्तन राणीयें कयं. तेम राणी पण नित्य शंकाती रहे, परंतु राजा पोतें अति गंजीर ने माटे राणीनी कां पण वात प्रकट न करतो हवो. ॥ यतः ॥ अर्थनाशं मनस्तापं, गृहे सुश्चरितानि च ॥ वंचनं चापमानं च, मतिमान्न प्रकाशयेत्॥१॥राणी साथें रोप सर्व निष्फल करतो हवो. राजायें मनमा एम विचाओँ के, प्रायें घणुकरी स्त्रीलोक ईर्ष्यालुज होय ॥. यतः॥ अवंचको वणिग् विप्रः, संतोषी दत्रियः दमी ॥ वायुः स्थास्नुरनुस्मोनि, र्योपानीनिवेत् क्वचित् ॥ १ ॥ . __ हवे कांचनपुरे पद्माकर नामा महोल हतो ते कालिकायें करी संको चाइ गयो, तेने नघाडवाने मंत्री प्रमुख कोइ समर्थ न थया, त्या राजा तथा कुमरने काढवा माटे कुहाडाना घात नारख्या, एटले महोल मध्ये यंत्रे करी प्रयुंजेला जे एकसोने एक मनुष्य तेने काष्ठना घा मस्तक नपर पडे. पोतानी मेलें नबलीने माथा नपर टक्कर मारे. तेथी ते एकशो एक ज ण उहवाणा थका पंजरमां पंखीनी पेठे पोकार करता आक्रंद करे. त्यारे कोइ पण उपायें पोताना स्वामीने राखवो, एम प्रधान लोकोयें विचारीने ते अनन्य गतिपणे उतावला उतावला नऊयणीयें यावी, कोकाशने जा ने पगें लाग्या. अने घणो अाग्रह करी पोताना स्वामीने जीवाडवानी नि Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. दा मागी. त्यारे कोकाशे अवकाश पामीने, पोताना कनकप्रन राजाना घ रना दासनी पे ते सर्व सेवा करे. एq तेमनी पासें कबूल करावीने तत्काल ते नगरीयें जश्ने, प्रासादनी कीलिका काढी. त्यारे ते एकसो एकनी आशा सहित ते कमलाकर नुवन विकस्वर कयुं. ते सर्व कंठगत प्राण थया हता, तेने जेम गर्नावासथी कोइने काढीये तेम ते एकसोने एक जणने प्रा सादमांथी कोकाश काढतो हवो. ते पण सर्व नवा, अवतारमां आव्या. एटला माटे ते राजा पण, सूत्रधारने पितानी पेठे आराधतो हवो. चाकर नी पेठे सूत्रधारनी सेवा करतो हवो, पद्माकर नामें महोल पण काकजंघ राजाने आपतो हवो. राजायें विचाओँ के, अहो! या कोकाशनी कला के वी अतुल्य डे के, जेणे हिंसादिक कर्मविना पण पोतानो स्वामी बंधाणो हतो तेने मूकाव्यो! वैरीने स्वकला देखाडीने वश कस्यो. अथवा एनो रा जा पण धर्मी डे माटे धर्मीने जे कार्य विषम होय तेपण सम थ जाय. हवे एकदा चारझानी मुनिराज पधास्या. तेमने राजायें वंदनादिक वि धियें वांदीने पनी पोताना अने कोकाशना पूर्वनव पूख्या. मुनि बोल्या, गजपुर नगरने विषे तुं जैनी राजा हतो, अने कोकाश जैनी ब्राह्मण ह तो. तुमने प्रसादनुं पात्र सूत्रधार हतो. ते जैनी ब्राह्मणने वचनें तें थ नेक जैनजीणोधार कराव्या, नाना प्रकारना रत्नमयी बिंब नराव्या. ॥यतः॥ नवणं जिणस्स न कयं,नय विंबं नेव पूश्या सादु ॥ उदर वयं न धरियं; जम्मो परिह्मरि तेहिं ॥ १ ॥ हवे सूत्रधार पण राजाना कह्या थकी वली अधिकतर नवी नवी रूप शोनानी रचनाने धर्मबुड़ियें चैत्यादि कमां करतो हवो ॥ यतः ॥ कला कलयतः सैवं, श्लाघनीया मनीषिणा म् ॥ यां श्रीसर्वज्ञसुरवदां, हेतुत्वेनोपयुंजते ॥ १ ॥ एकवार ते सूत्रधारें जातिमद करखो. वली एकदा कोश्क राजाथी नाठो. तेवारें जैनमतधारक जैन सूत्रधार महा कलावंत त्यां आव्यो. त्यारे तेणें कलाना मात्सर्य माटे राजा यागल चाडी करीने ायें कोई बीजा साध र्मी सूत्रधारने बतावी दीधो ॥ यतः ॥ कलावान धनवान् विहान, क्रिया वानपमानवान् ॥ नृपस्तपस्वी दाता च, स्वतुल्यं सहते नहि ॥१॥ राजा कानना काचा होय, तेमाटे घडी सूधी तेने धरी राख्यो, पडी पश्चात्ताप करीने तेने मूकाव्यो, सत्कार करो ॥ यतः ॥ साधर्मिकाणां सत्कार, स्तिर Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३७ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. स्कारः किलापदाम् ॥ तेषां पुन स्तिरस्कारः, पुरस्कारः सुतेः ॥ १ ॥ ते राजा अने सूत्रधार बेदु जण अण बालोश्ने सौधर्म देवलोकें देव तानी दिनोगवीने तमे वहां उपन्या. तें पूर्वे श्री अरिहंतनी जक्ति क री हती, माटे एउली ठकुराइ पाम्यो, तथा कोकाश अतुल्य कलामां कुश ल थयो, एक वार जातिमद कस्यो हतो, तेथी दासीपुत्रपणुं पाम्यो. फोकट बघडी सूधी साधर्मिकने धरी राख्यो, माटे बमास सूधी वेदु जगने कनक राजायें धरी राख्या. पनी साधर्मिकने मक्यो, माटे शहां पण बंदीखानाथ मूकाणा ॥ यतः॥ वाचिकं कायिकं मान, सिकं कर्मपुराकतम् ॥अवंध्यबीज वदत्ते, स्वानुरूपं पुनः फलम् ॥ १ ॥ अनालोचितशल्यत्वे, विपाकोयं वि दन्नपि ॥ बालो नालोचयेवल्य, महोबाल्य विजूंनितम् ॥ २ ॥ एवां ज्ञानी नां वचन सांजलीने विचाओँ के, अणालोयुं पाप ते घणा विपाकने या पे. एम जाणीने राजायें, दिगव्रतमा जे अतिचार लाग्यो हतो ते रूडीरीतें आलोयो, गुरुये जे प्रायश्चित्त आप्युं ते आचरीने वेदु पोताने ठेकाणे आव्या. ए रीतें राजायें घणा काल सूधी राजकदिनोगवीने, अवसरे पोता ना पुत्रने राज्य आपीने, बेदु राणी साथे प्रव्रज्या लीधी. ते राजा, चारि त्र पालीने सौधर्म देवलोके देवता थयो, फरी मनुष्यावतार पामी राजा थइने सिदिनां सुख अनुनवशे. कोकाश पण राजा साथे चारित्र लेइ घ या काल सूधी चारित्र पालीने माहें देवलोकें इंइनो सामानिक, देवता थश्ने पनी मनुष्यावतार पामीने सिदि पामशे. ॥ ए.काकजंघ राजा तथा कोकाशनी कथा आचार प्रदीप प्रकरणमा जे. ते माटे राजाने तथा कोकाशने बीजु घणुयें बल हतुं तो पण जो ध मरूप बल तुं, तो बंदिखानामांथी नीकल्या. तथा जो धर्मबल हतुं तो अंते सिदिने पाम्या. माटे धर्मबल ते सर्व बलने जीतनार .इति तृतीयपद. हवे चोथा पदनो अर्थ कहे जे. “सवं सुहं धम्मसुहं जिणाई. ( सवं सु हं के०) सर्व सुखने (धम्मसुहं के०) धर्मसुख (जिणाई के०) जीते. एटले सर्व सुखने धर्मसुख जीतनार बे. ॥ यतः ॥ तणसंथारनिसन्नो, मुणिवरो नरागमयमोहो ॥ जं पावs मुत्तिसुहं, कत्तो तं चक्कवट्टी वि ॥१॥ एटला माटे श्री नगवती सूत्रे बार मासनी दीक्षा पर्यायवंत मुनियें अनु त्तर विमानना सुरखने पण नलंध्या .ते उपर संयति राजानो दृष्टांत कहे . Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३३ ॥ कांपिल्लपुर नगरने विषे संयति नामें राजा राज्य करे बे. ते एकदा स मये हाथी घोडा रथ पायक चतुरंगी सेनायें परिवस्यो मृगया करवा नी कल्यो. रसनो गृध्र थयो थको मृगने हणे बे, ते राजा, केसरी नामा उद्याने गयो. त्यां एक मुनिराज अणगार तपोधन सनाय ध्यानयुक्त धर्मध्यान ध्याय बे, वृक्षादिकें व्याप्त नागरवेली प्रमुखना मंरुपमा रह्या बे, पाप या 'श्रव खपाव्या ले, एवा मुनिनी पासे एक मृग याव्यो. तेने संयति राजा यें हो. ते वेलायें घोडो दोडावीने शीघ्र त्यां राजा श्राव्यो. मृगने मू देखीने पगार दीवा. त्यारें राजा संत्रांत थयो थको विचारे ने के, रेक मुनिनें में दया . हो ! हुं घातक बुं, मने हणवानुं शील बे, दुं मंद पुण्यनो धणी बुं. एम चिंतवी, घोडाने विसर्जन करी, मुनिने विनयसहि त वंदना करीने, एम कहेतो हवो के, हे जगवन् ! तमें महारो अपराध लगा मो. परंतु मुनि पण ध्यानमा रह्या थका राजाने बोलावे नही, त्यारें जयांत थको राजा विचारे बे के, या मुनि रखे मुऊने नीच जातीने घ यो कोप करे ! ! ! एवं जाणीने बोल्यो, हे जगवन् ! हुं संयति राजा बुं. मने बोलावो, जो साधु कोष करे तो क्रोडोगमें मनुष्यने बाली नांखे. हवे मुनि बोल्या, हे राजन् ! तुमने अनय बे. तुं पण सर्व जीवने न नो देना था. या अनित्य जीवलोकमां हिंसा करीने गुंरीऊ पामे बे ? तथा शरीर नित्य बे. सर्व बांमीने अवश्य जतुं बे, माटे राज्यमां गुं म नथयो बो ? जीवित तथा रूप तो वीजलीसरखुं चंचल बे, तेमां तुं मूं कालो बो, ने परवने यर्थे कांई बूकतो नयी. स्त्री, पुत्र, मित्र, बांध व, ते सर्व पोतें जीवतो होय, त्यांसूधी सर्व खावा पीवा जोग जोगव वा मजे, पण मुत्रा पढी कोइ केडे न यावे. मुखा पी जो पिता मु होय तो दुःखीया थका तेना पुत्र तेने बालवा काढे. पुत्र मुर्ग होय तो पिता बालवा काढे, बांधव मूर्च होय तो बांधव काढे. पढी जे ते जीव 5 व्य उपार्जी गयो होय ते, पढवाडाना लोक, हर्ष करी करीने संतोष पा मी पामीने, अलंकारादि नोग जोगवे. अने जे मुतेणें तो जे गुनाशुन कर्म बांध्यां, ते कर्म सहित परजवे जाय. ते माटे हे राजन् ! गुनने हेतु ये तुं तप अंगिकार कर. ते सांजलीने राजा, महा संवेग निर्वेद पाम्यो. राज्य बांगीने गईनाली मुनिनी पासे जिनशासनने विषे परमसुख रूप Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० जैनकथा रत्नकोष नाग हो. एवं चारित्र लेता हवा. पनी अनियत विहार करता थकां, तथाविध को ३ गामने विपे आवता हवा. एवामां को अनिर्दिष्ट नामा दत्रिय जाति नो उपन्यो राजा ते स्वर्गथी च्यवीने आव्यो . तेणें कोइ निमित्ते जाति स्मरण ज्ञान उपन्याथी वैराग्य पामी राज्य मीने दीक्षा लीधी . ते पण विहार करता त्यां आव्या. ते संयति मुनिने देखीने एम कहेता दवा के, हे मुनि! तमारूं नाम गुं ? गोत्र गुं? माहणपणुं शाने अर्थ लीधुं ? • आचार्यनी सेवा केम करो बो? अने विनीत केम कहेवाबो ? तेवारें संयति मुनि बोल्या, महारुं संयति एवं नाम . तथा ढुं गौतमगोत्री बु. गर्दजाली नामें महारा आचार्य , दुं जीवघातथी निवयों बुं माटे मा हण बुं, मुक्तिने अर्थे क्रिया करुं बुं. अने ते आचार्यना दुकुम प्रमाणे ते मनी सेवा करूं हूँ. एटलांज माटे विनीत कहेवावं बुं. वली वगर पूज त्रिय मुनि बोल्या. हे मुनि ! क्रियावादी, अक्रिया वादी, विनयवादी, अने अज्ञानवादी, ए चारेने जे नव तत्त्वना जाण पुरु पोडे ते कुत्सित कहे , हीणा कहे , एम तत्त्वना जाण दायक ज्ञानी श्रीमन्महावीरस्वामी कहे . तेनुं फल देखाडुंलु के, जे पापकारी पुरुष होय ते, घोर नरके पडे ले. तथा जे गुम प्ररूपणा रूप धर्म सेवे , ते प्राणी दिव्यगति पामे ले. ते माटे क्रियावादी प्रमुखना जे वचन , ते मा यावी होवाथी परमार्थे शून्य ले. तेनी मृषानाषा , ते कारणे दुं तेनां व चन अण सांजलतो पोताने योग्य स्थानके वसुं बु,गोचरी प्रमुख जानं बुं. एवीरीतें ते क्षत्रिय मुनियें संयतिराज ऋषिने स्थिर करवा माटे तेणें एम कह्यु. हवे वली ते वादीना वचनथी सांजलतो तेनो हेतु कहे . ते क्रियांवादिप्रमुख मिथ्यादृष्टि, अनार्य सर्वने में जाण्या , परलोक बतो डे, महारो यात्मा सद्योगरीतें जाणुं लु, ढुं पांचमे देवलोके महाप्रा ण नामा विमानने विषे महा कांतिवंत उत्कृष्ट आनखें देवता हतो, त्यां थी च्यवीने मनुष्यना नवमां आव्यो, ए सर्व जातिस्मरण झाने करी हुँ जाणुं बुं, वली विशेष ज्ञानेकरीने पोतानुं अने परनुं आन जाणुं बुं. ते माटे अनेक वादीना मतनो जे अनिलाष ते पोतार्नु स्वबंदपणुं ले जे अनर्थकारी संयमना. घात हेतु ते सर्व हे संयतिमुनि ! तमे वर्जजो. वली सांजलो हुँ गुनागुनसूचक प्रश्न, तथा गृहस्थना घर संबंधि Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४१ गौतमकुलक कथासहित. कार्यना जे विचार कहेवा तेथी निवत्यो बुं. माटे जे कोइ एवा मार्गे चा ले, ते आश्चर्यकारी जाणवा. तथा में जे कयुं के, हुँ आउखा प्रमुख जाएं बु, ते विज्ञान श्री जिनशासनमां बे, पण बौदादिकना शासनमां नथी, ते माटे श्रीजिनशासनमा नद्यम करवो. नद्यम करवायीज टुंपण जाएं बुं, तेम तमे पण जाणशो. ते माटे तमोने उपदेश देतां कहूँ लु के, तमेष - स्तिस्वनाव अंगिकार करजो, नास्तिकस्वनाव तजजो, सम्यक्झानें संयुक्त थयाथका कुःखें आचराय एवं धर्माचरण करतो. __ वली पण दत्रिय मुनि महापुरुषोनां उदाहरण देश्ने संयति मुनिने स्थि र करतो कहे के के, एवी पूर्वोक्त वातो सांजलीने जरत राजायें नरत देत्र बांमधु, सगर राजायें सागरांत पृथ्वी त्यागी, एम मघवा चक्रवर्तीयें, जर तनाब खंम बांकी दीक्षा लीधी,सनत्कुमारे पण पुत्रने राज्ये थापीने तप अंगिकार कस्यो, लोकने विषे शांतिना करनार श्रीशांतिनाथस्वामी पण जरत देवनाब खंम पृथ्वीनुं राज्य बांमी अनुत्तर गतिने पाम्या, एमज इक्ष्वाकु कुलराजामां वृषन सरखा विख्यात कीर्तिना धणी कुंथु नामें राजाधिराज सिदि वस्या, तथा श्रीअरनाथ पण ब खंम त्याग करीने शाश्वत सुख पा म्या, तेमज महापद्म चक्रीयें उत्तम नोग जमीने तप अंगिकार कस्यो, व ली एक उत्री धरती साधीने श्रीहरिषेण चक्रीयें अव्याबाध सुख वयं तेम जय नामें चकी एक हजार राजा साथें दीदा लेश्ने शाश्वत सुखना नोगी थया, वली दशानाजा दशाएं देशनुं राज्य मीने दीक्षा लेता हवा. जेने सादात् 'इंश महाराजायें घणी झदि देखाडीने धर्मने विषे प्रेस्या, तथा नमिराजा तो साक्षात् परीक्षा करतां पण न चल्या. त्यारें इंई वारं वार प्रणाम कस्यो. पण नमिराजायें पोताना आत्माने न नमाव्यो. वली करकंमू कलिंगदेशने विषे उपन्या, उर्मुख राजा पंचाल देशने विपे उपन्या, नमिराजा विदेह देशने विषे उपन्या, निग्गइ राजा गंधार देशने विषे उपन्या, ए सर्वे राजाउमां वृषन सरखा थका पोताना पुत्रोने राज्ये था 'पीने जिनशासनमां दीक्षा लेता हवा, वली सौवीर देशनो धणी उदाइ रा जा राज्य बांमी दीक्षा ले अनुत्तर गति पाम्यो, तेम काशी देशना धणी नंदन नामें सातमा बलदेवें संयम ले कर्मशत्रुने हण्या, तथा विजय ना Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. मा बलदेवें गुणसमृ६ राज्य मी दीक्षा लीधी, वली महाबल राजर्षि उग्र तपस्या करीने माथा साटे सिदि वस्या. ___एम ते क्षत्रिय मुनियें, संयति मुनिने महा पुरुषोनां उदाहरणे करी झान पूर्वक क्रियानो महिमा कहीने हवे उपदेश दे ले के, हे संयतिमुनि! ते माटे ते नरत राज़ा प्रमुखनां नदाहरण सांजलीने उन्मत्त प्रलाप सरखा क्रियावादी आदिकना नामने कोण अंगिकार करे ? जेमाटे श्रीजिनमत अंगिकार करीने केशक संसार समुश् तस्या, माटे जे बुद्धिवंत होय ते प्रमाद न करे. एटले एम कर्दा के, जिनशासन अंगिकार करवू,ते अंगिकार करीने केशक संसारसमुह तस्या, के तरे बे, केश तरशे. ए कहेवाथी सिद्धिरूप फल बताव्यु. अनुक्रमें. दत्रिय मुनि तथा संयति मुनि वेदु सिदि वरशे, ॥ इति श्रीउत्तराध्ययन सूत्रे ॥ एटले प्रस्तुत पदने एम जोडीये, जे सर्व सुखने जीतनार एक धर्मसुख , तेथी जरत राजा प्रमुखें व खेमनां राज्य सुख बांकीने चारित्र अंगिकार कस्वां ॥ इति श्रीसकलसनानामिनीनालस्थ लतिलकायमानपंमितश्रीनत्तमविजयगणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिविरचिते बालावबोधेगौतमकुलकप्रकरणेषोडशगाथायांचत्वायुदाहरणानिसमाप्तानि॥ हवे सत्तरमी गाथा कहे . तेनो प्रर्वगाथा लाथें ए संबंध में के, प्रर्वगा थामां चार वाना थकी पण धर्म उत्कृष्ट एम कही देखाड्यो. ते माटे हवे सात वाना सेवतो धर्मनो प्रतीपदी अधर्म थाय जे. ते अधर्मना कार्यनूत जे धन प्रमुख ने तेनो नाश देखाडे जे. एसंबंधे आवी सत्तरमी गाथा कहे ने. जूए पसत्तस्स धनस्स नासो, मंसं पसत्तस्स दया नासो ॥ मज पसत्तस्स जसस्स ना सो, वेसापसत्तस्स कुलस्स नासो ॥१७॥ अर्थः-"जूए पसत्तस्स धस्स नासो” जे प्राणी ( जूए के) जूवटुं रमवाने विषे ( पसत्तस्स के ) आसक्त होय, ते प्राणीनुं (धणस्स के० ) धननो (नासो के० ) नाश थाय, एटले जवटुं रमवामां आसक्त होय तेना धननो नाश थाय. ते उपर नलकूबरनो दृष्टांत कहेवो. तेनी कथा Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३४३ एज पुस्तकना बीजा नागमां श्री नेमीश्वर नगवानना रासमां आवेली होवाथी शहां लखी नथी. तथा पांव चरित्रमा पण उपाइ गइ . हवे बीजा पदनो अर्थ कहे . “ मंसं पसत्तस्स दयाइ नासो” जे प्राणी ( मंसं के० ) मांसने विपे ( पसत्तस्स के० ) यासक्त होय, ते प्रा पीने ( दया के० ) दयानो ( नासो के ) नाश होय. ते प्राणी हिंसा करीने कडुया विपाक नोगवे. ते उपर सोदामनो दृष्टांत कहे जे. ___ एकदा श्रीकृष्णना पिता वसुदेवजी फरता थका त्रण सोषक पुरने विपे आव्या, त्यारे रात्री हती तेथी बहार देवकुलमां जश्ने सूक्ष रह्या. ए वामां एक राक्षस श्राव्यो, तेणें वसुदेवजीने उगाड्या. उपाडी लेइने जवा . मांमयु. एटले वसुदेवजीयें मुष्टिप्रहार कस्यो. एम करतां बेहु जणने युद्ध थ\. प्रथम बादुयु कयुं, पड़ी शस्त्रयु-६ कयुं, पडी पकडीने जेम धोबी शि ला उपर वस्त्रने पबाडे, तेम शिला उपर पढ़ाज्यो. तेथी राक्स मरण पाम्यो. एवामां वहाणुं वाह्यं, घणा लोक नेगा थया, ते घणु यादरमान देश, श्री वसुदेवजीने रथ उपर वेसारी घणां वाजिंत्र वाजते नगरमां से गया. सदुए मली वसुदेवजीने पांचसे कन्या देवा मांझी. परणवानो आ ग्रह कस्यो. वसुदेवजी बोल्या, हमणां दुं पाणिग्रहण नही करूं. एक वार तमे मने ए वात कहो के, ए अधम पुरुष कोण हतो ? जेने मास्यां थकां तमने पावडो हर्ष उपजे ने ! ! त्यारे तेमांथी एक पुरुष बोल्यो. ___ कलिंग देशे कांचनपुर नगरने विषे जितशत्रु नामें राजा राज्य करे . तेने सोदाम नामें पुत्र थयो. पण ते सोदामने सहज स्वनावें मांस खाधानो ढाल पड्यो. ते घणो मांसनो लोलुपी थयो. जेनो जे स्वनाव पड्यो ते टाल्यो टले नही. जेम श्वान एक पग उँचो राखी मूतरे तेने श्यां चीर खरडाय के, जे माटेएने एक पग उँचो करवो पडे ? तेमज दरजी कप डानो शिवनार पोतानी अांगली चाटे जे ते क्या अांगली मधनी मीठासें खरडी ? तथा मोची टांको मारे ने कराजे एटले मोची चामडाने टां को मारे अने घणो नार ताणनार जेवो आकार देखाडे ते क्या चालीश मणने गामले जोतस्यो ? तथा कागडो पाणीयें नरेलुं सरोवर मूकीने कुंनने जश विटाले ने ए सर्व तेमनी टेव पडी गयेली मे ते कां मटे नही. इत्यादिक दृष्टांतें सोदामने मांस खाधानो ढाल पज्यो ते मटे नही. Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ जैनकथा रत्नकोष नाग छो. राजा पोतें तो घणो परोपकारी , पण दीकरो उष्ट थयो तेथी बुटयु जाय नही. माटे राजायें नित्य एकेका मोरना मांसनो दुकम कस्यो. ते वं शगीरि नामा पर्वतमांथी एकेको मोर, एने नदण करवा माटे आणीपे. एकदा रांधणिये मोरनुं मांस लावीने म्रक्युं, अने पोते क्यांक आडो अवलो गयो, एवामां मांजार आवीने मांस ले गयो. त्यारें रांध लिये नय थकी कोश्कनुं बालक मारीने रांध्यु, तेने सोदाम नहण कर वा बेठो. तेनो स्वाद घणो सारो लाग्यो, त्यारें रांधणियाने पूज्यु, ए केनुं मांस हतुं ? रांधणियायें सर्व हकिकत कही संनलावी. त्यारे सोदामें रांध णियाने कह्यु के, तुं निरंतर मोरने बदले मनुष्यनुं मांस लावीने रांधजे. पडी ते उष्ट सोदाम, निरंतर लोकोनां बालक ले जाय. एम करतां ए कदा राजायें ते व्यतिकर जाएयु. त्यारे राजा को कलकल्यो थको ते सो दामने, नगरमाथी काढी मूकावतो हवो, ते पण पिताथी बीहीतो थको पर्वतमा जश्ने वश्यो. परंतु ते निरंतर आ नगरमाथी एकेकुं मनुष्य ले जतो हतो, तेने तमे यमपुरीये पोचाडयुं ते काम घणुं रूडं कह्यु. ए तमे घणा मनुष्यनी हत्या उतारी. ते सांजलीने वसुदेवजी घणो हर्ष पाम्या. त्यां पांचसे कन्यानुं पाणिग्रहण कडे. ए रीते मांसना खानारने दया न होय, ते माटे मांस नक्षण न करवं. मांसना खानार प्रायें नरके जाय, एवं श्री जगवतीजी सूत्रमा कयुं . ॥ ए सोदामनी कथा श्रीनेमिचरित्रमा बे. हवे त्रीजा पदनो अर्थ कहे जेः-" मऊं पसत्तस्स जसस्स नासो”॥ जे प्राणी ( मऊ के० ) मदिराने विपे ( पसत्तस्स के० ) आसक्त होय. ते प्राणीनुं ( जसस्त के ) यश जे जे ते ( नासो के० ) नाश पामे. ते नपर राजाना पुत्रनी कथा कहे . ' साकेतपुर नगरना राजानी मदनलता राणीनी कूरखने विषे पुत्र या व्यो, ते पुत्र अनुक्रमें महोटो थयो, राजाने घणो वहालो हतो, ते यौव नावस्था पाम्यो, एटले तेने मदिरा पीवानी टेव पडी. गइ तेणे कर्मदोर्षे करीने एकदा मदिरा पीधी ने तेथी मदोन्मत्त थयो, थको राजानी माता ने आक्रोश गालो ताडना तर्जना करवा लाग्यो. ते वृत्तांत राजायें जाएयुं. तेणें पुत्रने तेडीने घणो उबको दीधो. त्यारें मदिराना परवशथी ते राजा ने पण थाक्रोश करवा लाग्यो. तेथी राजाने घणो कषाय जाग्यो. राजायें Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३४५ विचाघु के, सुवर्णनी बुरी होय तोपण पेटमां मारवाने काम न आवे, ते माटे ए महारो पुत्र बतां पण जो महारी माताने थाक्रोश करे, अने मने खातरमा न गणे, तो ते महारे शा काममां आवे ? एम विचारी पु वनी जीन कपावी. तेथी तेनो मद उतरी गयो. लोकमां घणु लाज्यो. न गरीमा घणो अपयश थयो, पली एक मासनुं अनशन करीने ब्राह्मणनो दी करो थयो. इत्यादिक विशेष अधिकार श्रीसमरादित्य चरित्रथी जाणजो, हां मदिरानुं प्रयोजन हतुं तेटलीज वात कही. एम वली सांबकुमर प्रमुखें मदिरा पीधी, तेथी अनर्थ थयो ॥ यतः॥ शैवशास्त्रेऽपि ॥ मूलं समस्तदो पाणां, मद्यं यस्मादिरीतम्॥ मद्यपानं कथं कार्य, नरेणाशुचिनदणम् ॥ ॥ १ ॥ इत्यादि ॥ दूहा ॥ अंब फले पति राखके, मदुथा फले पत खोय ॥ ताको रस मुखमां पडे, क्युं न हीन बुद्धि होय ॥२॥ इत्यादि ॥ हवे चोथा पदनो अर्थ कहे :-वेसापसत्तस्स कुलस्स नासो” जे प्रा णी (वेसा के ) वेश्याने विपे ( पसत्तस्स के) आसक्तदोय, ते प्राणी ना (कुलस्स के०) कुलनो (नासो के०) नाश थाय. एटले कुल वधे न ही. ते नपर ननित कुमारनो दृष्टांत कहे . यथाः वाणिज्य गाम नगरने विषे शान कूणे यतिपलाश नामें नद्यान हतुं. तेमां सुधर्म यदनुं देहेरूं ले. त्यां मित्र नामें राजा राज्य करे . तेने श्री नामें देवी . ते नगरमां कामध्वजा नामें गणिका वसती हती. ते वेश्या बहोतेर कलानी पंमित, चोसन गणिका गुणें सहित, एकवीश रति गुणें प्र धान, बत्रीश लक्षणा पुरुषने वश करती, अढार देशनी नाषामां विशारद, महारूपवंती, हजारोगमे गणिकानुं अधिपतिपणुं जोगवती विचरे बे. वली ते नगरने विषे महारंदिवंत एवो विजय मित्र नामें सार्थवाह वसे ले. तेने सुना नामें नार्या बे. तेने ननित नामें पुत्र ले. एकदा नगवान श्री महावीरस्वामी समोसस्या. तेमने राजावंदना करवा नीकट्यो, धर्म सांजलीने पर्षदास्थानके गइ. पढी जगवंत श्री गौतमस्वामी बह बहनु, पा रणुं करता पारणाने दिवसे वाणिज्य गाम नगरने विषे गोचरी पधास्या, रा जमार्गमा याव्या, त्यां घणा हाथी घोडा सुनट संनब थइ, हाथमां विविध प्रकारनां हथियार धयां , तेना द्वंदमां मध्य. नागे एक पुरुष ने, ते बंधनें बांध्यो ने, कान नाक काप्यां , वध्य मंमनें मंमित डे, गले Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. कणेरनी माला घाली , तिलनी पेठे बेदतां तेनुंज मांस तेना मुख मां खवरावता, कांकराना सेकडो तेणें मारी जतो, अनेक नरनारीयें परि वस्यो , राजपुरुष चोतरे चोतरे उद्घोषणा करे डे के, जे कोइ उनित कुमर नी पेठें अपराध करशे, तेने पोतानां कर्म अपराधी करशे. ते वात गौतम स्वामीयें सांजली, यथापर्याप्त आहार लेइने प्रनु पासे आवी, थाहार दे खाडी, वंदना नमस्कार करीने एम कहेता दवा के, हे जगवन् ! में नगर मांबाज पूर्वोक्त वृत्तांत दी, ते पुरुष पाबले नवे कोण हतो ? प्रनु बोल्या. आ जंबुद्दीपना जरतदेवने विषे हबिणार नामें नगर हतुं. त्यां सुनंद नामा राजा राज्य करतो हतो, ते नगरने विषे एक महोटुं गोमंमल हतुं, त्यां घणां गोरूप अनाथ होय, सनाथ होय थादिक सर्व नगरीनी गायो, बलदिया, पाडा, वृषन संर्वने चारोपाणी संपूर्ण मलें, तेथी निरुपसर्ग थका सुखें रहे ले. ते नगरमा एक नीम नामें कूटयाह वसे बे, ते घणो अधर्मी जे,तेनी नुत्पला नामें नार्या ने तेने एकदा गर्न रह्यो. ते गर्न त्रण मासनो थयो त्यारे उत्पलाने, एवो दोहोलो उपन्यो के, जे स्त्रियो, गायो अने वृषन प्रमुखना कान, नाक, अांखो, जीन, होठ, गलकंबल, खांधां प्रमुख नां सोला करी तली लुंजी संस्कारी मदिरा प्रमुख सहित आस्वादन कर ती हशे, तेने धन्य जे. एवा पदार्थ जो होयतो हुँ पण नोजन करूं. एम विचारती दिवसे दिवसे दूबली थाय, मुख कुमलाय, यथोचित पुष्प, वस्त्र, गंध, माव्य, अलंकार नोगवे नही, ते नीम कूटयाहे जाण्यु. त्यारे उत्पलाने पूजेथु के, तुंबली केम थबो ? त्यारे तेणीयें दोहोलानी सर्व वात कही. नीमें कह्यु, तहारो दोहलो हुँ पूरो पाडीश. तुं मूबली न थश्श. पडी एकदा नीम कूटयांह मध्यरात्रे एकलो निर्वीकपणे संन ब६ हथियार पडि हार लेइने गोमंमलमां जश्ने कोइना कान, कोश्नी आंख, कोश्ना खांधा, इत्यादिक कापी कापीने से श्राव्यो. उत्पलाने याप्यां. तेणें तेज रीतें वावस्यां. दोहोलो संपूर्ण थयो. अनुक्रमें नव मास पूरा थया, पुत्र थाव्यो, ते महोटे महोटे शब्दें आरडवा लाग्यो, घणुं विरूप विस्वर आरज्यो. ते बोकरानो शब्द सांजलीने आखा हलिणार नगरनी गायो तथा गामनां वा बडां बलदिया प्रमुख त्रास पाम्या थका चारे तरफ नासवा लाग्या. तेमाटे तेना मातापितायें तेनुं गोत्रास एवं नाम दीधुं. अनुक्रमें ते महोटो थयो. Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४७ गौतमकुलक कथासहित. एवामां तेनो पिता जीम मरण पाम्यो. त्यारे तेना मित्र झाती स्वजन प्रमुखें घणुं रोतां आक्रंद करतां तेनुं मरणकार्य का. एकदा सुनंद राजायें ते गोत्रासने कूटग्राहपणे थाप्यो. जे कोइ मार्ग प्रमुखमां हीणाचारी होय, तेने पकडे, दंम करे, त्या गोत्रास निरंतर अ. ईरात्रीसमये संनबह प्रमुख आयु६ लेश, गोमंमल मध्ये जश्ने, कोश्ना नाक, कोश्ना कान, कोश्ना गलकंबल, बेदीने घेर लावें. तेना सोला प्रमुख निपजावीने नक्षण करे. एम घणां पापकर्म आचरी पांचसे वर्ष, आयु पाली, आर्तध्याने मरीने, बीजी नरके त्रण सागरने आउखें जर उपन्यो. हवे इहां विजय मित्र सार्थवाहनी सुनश नार्याने बालक थावे जे, ते जी वतां रहेतां नथी, एवामां ते गोत्रास नारकीथी नीकलाने सुनानी कूखें भावी पुत्रपणे उपन्यो, प्रसव्या पनी उकरडे नांखी देश वली पाबो त्यां थी उपाडी लीधो. पडी अनुक्रमें महोटो कस्यो. बारमें दिवसे उकरडाथी लीधो माटे गुणनिष्पन्न उनितकुमार एवं नाम दी . अनुक्रमें ते खीरधाव्य, मङनधाव्य, मंझनधाव्य, खिलावणधाव्य, अने अंकधाव्य, ए पांच धाव्ये पालीजतो महोटो थाय. एवा अवसरे विजयमित्र सार्थवाह गणिम धरि म मेज पारिवेद्य ए चारे प्रकारनां नाम लेने लवण समुश्मा जहाजे चढयो. त्यां जहाज नाग्युं, सर्वनांम बज्या, सार्थवाह अशरण थको मरण पाम्यो, त्यारे ते मु जाणीने, घणा ईश्वर, तलवर, माइंबिकादिक हता ते बाह्य हस्तगतं सर्व व्य ले गया. सुना सार्थवाही पण नरिनुं मरण सांजलीने घणो शोक संताप करती आर्तरौ ध्यान धरती रोती थाकंद क रती विलपती की रही. मित्र, झाति, स्वजनादिकें मली मरण कार्य कझुं. ___ अन्यदा नश सार्थवाही सायनो विनाश, जहाजनो विनाश, न र नो विनाश चिंतवती थकी, कालधर्म पामी. तेने मरण पामी जाणीने को टवालें श्रावी उन्नित कुमारने घरमांथी काढी मूक्यो, अने ते घर बीजाने आप्युं. ते उनित कुमार पण पोताना घरमांथी नीकट्यो थको वाणिज्य गामने विषे जुवटुं रमतां त्यां वेश्याना घरने विषे फरतो रहे, कोइ वारना 'र नही तेथी स्वश्वायें नोग नोगवतो थको विचरे. स्वचंदाचारी, मद्यप्र संगी, चोरप्रसंगी, यूतप्रसंगी, वेश्याप्रसंगी थको एकदा कामध्वजा गणि का साथै लाग्यो, ते साथें नदार विषय सुख जोगवतो विचरे . Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. एवा वसरे इहां मित्रराजानी राणी श्रीदेवीने योनिशूल प्रकट थयुं. माटे मित्रराजा पोतानी राणी साधें मनुष्य संबंधी जोग जोगवी शके न ही. त्याऐं राजायें उचित कुमारने कामध्वजा गणिकाना घरथी काढी मू काव्यो, धने पोते ते कामध्वजागणिकाने अंगिकार करी. हवे ति कुमार ते वेश्या उपर गृद्ध थयो, तेमांज तल्लीन थयो थको मूर्हित थयो तेने बीजुं कांइ गमे नही. ए गणिकानोज अवसर ताकतो फरे. एकदा ते अवसर पामीने कामध्वजा गणिकाना घरमा गयो. का मध्वजा गणिका साथें जोग जोगववा लाग्यो. एवा अवसरे मित्रराजा स्नान करी, बलिकर्म करी, सर्वालंकारें विभूषित था, मनुष्यना वृंदें परि aat ज्यांगलिकानुं घर बे, त्यां याव्यो. एटले उचित कुमारने गणिका साधें जोग जोगवती दीठों. त्यारें कषायमां यावी, त्रिवली चढावीने च नित कुमारने पोताना पुरुष पासे पकडावी यष्टि मुष्टि ढींच ने कूं लीने प्रहारें करी मुवा सरखो कस्यो. प वजे बंधनें, बांधीने हे गौतम ! जेम तमे जोइ याव्या एवी अवस्थायें पमाड्यो ले. " एम गवाने कहे थके श्री गौतमस्वामी पूबे बे के, हे नगवन् ! ए sai काल करीने क्यां जशे ? प्रत्रु बोल्या, ए उचित कुमार, पचीश व नुं परम श्राखुं पालीने रत्नप्रनायें नारकी थशे. त्यांथी नीकलीने वानर टोलामां वानरो यशे, ते यौवनमां तिर्यचना जोगनेविषे गृद्ध थयो थको एक वानर साथै युद्ध करतां मरण पामीने एज नरतक्षेत्रे इंईपुर नगरमां गणिकाना कुलने विषे पुत्रपणें उपजशे. त्यां जन्मतांज तेना माता पिता वर्द्धित कर्म करीतेने नपुंसक कर्म शिखवशे. प्रियसेन कुमार नाम थापशे. ते नपुंसक, यौवनावस्था पामे थके, रूपलावण्य उत्कृष्ट पामशे. पक्षी ते प्रियसेन कुमार इंश्पुर नगरने विषे राजा प्रमुख घणा लोकनी विद्या, योग, मंत्र, चूर्ण, वशीकरण प्रमुखें मनुष्य संबंधी उदार जोग जोगवतो विचरशे. तेथी घणां पापकर्म उपार्जशे. एकवीशसें वर्षनुं परम श्राचखं पालीने रत्नप्रनायें नारकीपणें उपजशे. त्यांथी च्यवीने अनुक्रमें तिर्यच ना व प्रमुख प्रांतरे साते नरकमां उपजशे पढी जलचर, थलचर, खे चर, चरः परिसर्प, नुज्ञपरि सर्प तेनी जेटली जाति जेटली कुलकोडी वे ते मां एकेकमांक लाख बार उपजशे तेमज चोरिंडियमां, तेइंडियमां, प्र · Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३४ए बेइंडियमां एकेक जातिमां अनेक लाखवार नपजशे. एम कडवी वनस्पति प्रमुखमां तथा वाउ, तेल, थप अने पृथ्वीमां अनेक लाखवार उपजशे. त्यांथी आज जंबुद्दीपना नरतदेवने विषे चंपा नगरीमा पाडापणे उपज शे. ते पाडाने गोठील पुरुष मारशे. त्यांथी व्यवी एज चंपा नगरीमा शेव ने कुले पुत्रपणे उपजशे. ते यौवनावस्था पामशे, त्यारें स्थविरनी पासे ' समकित पामी, चारित्र शे. पांच समितें समिता, त्रण गुप्तें गुप्ता थर, घणां वर्ष सूधी साधुपर्याय पाली, बालोइ पडिक्कमी, समाधिमां काल करीने, सौधर्म देवलोके देवता थशे. त्यांथी च्यवीने महाविदेह क्षेत्रे नत्त म कुलमां उपजी केवलझान पामीने मोद जशे. ए ननित कुमारनी कथा श्री विपाक सूत्रना बीजा अध्ययनमां बे, माटे विस्तारना अर्थिये त्यां जोवू. ते ननित कुमार वेश्यासंगी थयो तो पुत्रसंतति न थइ, अने माता विपाक पाम्यो. माटे वेश्यासंग तजवो ॥ इति श्रीसकलसनानामिनीना लस्थलतिलकायमानपंमितश्रीनत्तम विजयगणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिवि रचिते बालावबोधे गौतमकुलकप्रकरणे सप्तदशगाथायां चत्वार्युदाहरणानि. हवे अढारमी गाथा कहे . तेनो संबंधतो पूर्वे मेलव्यो . हिंसापसत्तस्स सुधम्मनासो, चोरीपसत्त स्सं सरीरनासो ॥ तहा परकीसु पसत्तय स्स, सबस्स नासो अहमा गई य॥१॥ अर्थः-" हिंसापसत्तस्स सुधम्मनासो” जे प्राणी ( हिंसा के ) जी वहिंसाने विषे (पसत्तस्स के०) आसक्त होय, ते प्राणीना (सुधम्म के ) जला धर्मनो (नासो के) नाश थाय. इहां गुरु प्रत्ये शिष्य पूछे बे के, ज्यारें हिंसा करतां धर्मनो नाश थाय, त्यारे दान देवपूजा प्रमुख करतां धर्म केम थशे ? कारण के, तेमां तो हिंसा थाय . हवे गुरु म हाराज उत्तर आपे डे के, हे शिष्य ! श्रीसूयगडांग सूत्रमा अर्थदंझने अ धिकारे नागने हेतें, नूतने हेतें, यदने हेतें, जो पूजा करे, तो हिंसा था य, पण जिनपूजाने हेतें हिंसा नथी कही. एटले पूजा यज्ञ ए दयाना Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० जैनकथा रत्नकोष नाग छो. नाम श्रीप्रश्नव्याकरण सूत्रमा कह्या जे. तेमाटेज श्रीज्ञाता धर्मकथांग मध्ये शेपदीयें, तथा रायपसेणीमध्ये सूर्यानदेवतायें, श्रीजीवानिगममध्ये विज य देवतायें, पूजा करी कही . तथा "हाया कयबलिकम्मा" एवा नगम वाम पाठ . त्यां बलिकर्म कहेतां पूजा कहीयें. ए ज्ञातासूत्र मध्ये म हनी कन्या पिताने पगे लागवा गइ, त्यारें ब राजा उरडामां आव्या, त्यां एवो पाठ ३ ॥ तएणं से महिनविदेह रायवरकन्ना एहाया जाव पायचित्त सवालंकार विनूसिया बदुहिं खुजाहिं जावपरिरिकत्ता इति ॥ ए बे तामे सरखो पात . ते माटे मनीयें वे वार देवपूजा करी. वली "अप्पणो पडिमं कारे" कहेतां मनियें पोतानी प्रतिमा जरावी. वली यतिना पडिक्कमणा सूत्रमध्ये॥ ममी पादुडियाए, बलिपादुडियाए, (मंमीपादुडिया ए के०) नैवेद्यनुं धान्य लेवू नही. कदापि अजाणतां वहोरीने खाधुं हो य तो तेनुं मिहामि उक्कडं. अढार नाम मालामां“ पूजाहणासपर्यार्चा उपहारबली समौ” (बलिपादुडियाए के) नैवेद्य जाणवू. तथा महा निशीथ सूत्रमा धूप दीपने बलिपूजा कही. तथा आवश्यक नियुक्तिमां गा ममा जे वडेरो होय ते दश शेर रांध्या चोखानो बलि नबाले. त्यारे तीर्थ कर व्याख्यान मूके. वली वास्तुकशास्त्र, ज्योतिषशास्त्रने विषे घर देवतानी पूजा करीने नूतने बलि देने पेसवु कह्यु २ ॥ यतः ॥ गृहप्रवेशं सुविनी तवेषः, सौम्येऽयने वासरपूर्वनागे ॥ कुर्याध्धिायालयदेवताची, कल्याणदां नूतबली क्रियां च ॥१॥ एम जोजराजाने वारे श्रावसे वर्ष पहेला कालि दासें मेघदूत मध्ये (बलि के०) नैवेद्य कर्तुं ले. अने सूत्रमा तो गम गम बति ते पूजा कही. ते माटे पूजामां हिंसा नथी. ते हिंसा उल खवा माटे हिंसाना त्रण प्रकार कहे . एक हेतुहिंसा, बीजी स्वरूप हिंसा, अने त्रीजी अनुबंधहिंसा. हेतुहिंसा जे अयतनायें प्रवर्त्तवं ते, स्वरूप हिंसा जे जीवनी हिंसा थाय ते, अने अनुबंध हिंसा ते जेना कडुआ विपाक आवे ते. तेमां अयतना अने अनुबंध ए बे हिंसा न जोश्य. अने स्वरूप हिंसा जो थती होय तो पण तेथी सिधिवरे.जेम समुहमां पडता सिद्धिथाय तेनी पेठे जागवं. एटला माटेज हिंसा अहिंसा अनेक प्रकारें अहिंसाष्टकमां कही ॥ अविधायापि हि हिंसां, फलनाजनं नवत्येकः ॥ कृत्वाप्यपरो हिंसां, हिंसाफलनाजनं न स्यात् ॥ १ ॥ नावार्थः-केश्क हिंसा न करे, थने हिं Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५१ गौतमकुलक कथासहित. सानां फल नोगवे. ते तंऽलमत्स्य तथा जमालीनी पेठे जाणवा. केक हिंसा करे पण हिंसानुं फल नोगवे नही. जेम कोणमोही संयोगीने, ३ त्यादि ॥ १ ॥ ते माटे परमेश्वरनी आझा सहित दया पालवी. ते आज्ञा विना हिंसा करतो धर्मनो नाश करे, तेना उपर यमपाशनी कथा कहे . आज जंबुछीपना नरतदेत्रमा वणारसी नामे नगरीने विषे जुर्मर्षण ' नामें राजा तेनी कमलश्री नामा राणी . ते नगरीमा यमपाश नामें चं माल वसे, पण ते कमें चंमाल नथी. वली ते नगरीमा एक नलदाम नामें वाणियो वसे ले. तेनी सुमित्रा नामें स्त्री तेने मम्मण नामें दीकरो ने. __एकदा कोइ सोदागर घोडालाव्यो. राजा, तेनी परीक्षाने माटे एक घोडा उपर चढ्यो. एवामां को वैरी राजानो देवता घोडाना शरीरमां पेशी रा जाने आकाशे ले गयो. तेणें कोक वनमा ज मूक्यो. त्यां राजा घोडा थी तो उतस्यो, एटले घोडो मरी गयो. एवामां एक हरिण राजाने देखी ने जातिस्मरण पाम्यो. ते हरिण नूमि नपर अक्षर लखीने एम कहेतो हवो के, ढुं तमारो देवल नामा चाकर हतो. ते आर्तध्याने मरीने तिर्य च थयो . तेणें पागल थश्ने राजाने पाणीनुं स्थान देखाडयुं. राजा पाणी पीने स्वस्थ थयो. एटले पोतानुं सैन्य आवी पहोच्युं. राजा कस्या गुणनो जाण होवाथी ते हरिणने नगरमां लश्याव्यो. राजायें नगरमां सर्व गमे उद्घोषणा करावी के, कोश्ये पण या हरिणने मारवो नही. पडी निर्नयथको ते हरिण नगरमा स्वेबायें फरतो रहे. एकदा ते हरिण नमतो नमतो मम्मणने हाटे याव्यो, कोई पाबला नवना वैरथी मम्मणने कोप चढयो, बापने कहेवा लाग्यो के, ए मृग अ पराधी , माटे एने मारो. त्यारे तेनो पिता नलदाम बोल्यो, वाणियाना कुलमा अपर जीव पण न मारवो, अने ए तो वली राजाने इष्ट .माटे नज मराय, तो पण पिता कांक व्यादेपमा रह्यो, एटले मम्म० ते मृग ने मारी नांख्यो. पण वेगला रह्यां कोटवालें अने यमपाशें दीतो, ते वृत्तां त कोटवा राजाने कह्यु. राजा बोल्यो, ए वातनो साक्षी कोण ? ते बो यो, एनो बाप सादी ? राजायें एना बापने तेडावीने पूज्युं, तेणें साचे साधु कयु के, महारा पुत्रं मास्यो तो खरो. राजायें तेने सत्यवादी जाणी ने पूज्यो, भने मम्मणने मारवानो दुकम कस्यो, यमपाशने मारवा सोंप्यो, Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. एटले यमपास बोल्यो हे राजन् ! हुँ हिंसा नही करूं. राजा बोल्यो. तुं चंमाल थइने हिंसा केम न करे ? त्यारें चंमाल बोल्यो, सांनलो. हस्तिशीर्ष नगरने विषे दमदंत नामें वाणियो हतो, तेणें श्रीअनंतना थ तीर्थकर पासे धर्म सांजलीने चारित्र लीधुं. तपस्या करता थकां अनेक लब्धिवंत थया. तथा गीतार्थ थया. ते दमदंतकृषि विहार करता था नग रे पाधास्या. स्मशानमां काउस्संग्ग करीने रह्या. एवामां महारो पुत्र अति मुक्तक नामें के तेने कोई व्यंतर प्रमुखना उपसर्गे घणा रोग उपन्या हता. ते स्मशानमा गयो. मुनिने नमस्कार कस्यो, एटले मुनिनी शक्तियें निरोगी थयो. ते पुत्रं घेर थावीने मने सर्व वृत्तांत संनलाव्यु,ढुंपण कुटुंबसहित रोगी हतो, ते कुटुंबने ले मुनिपासे गयो. अमे सदु रोगथकी मूकाणां, त्यारें दुं श्रावक थयो, में जावजीव हिंसा करवाना पञ्चरकाण कस्यां, अने साधुने वैराग्यनुं कारण पूब्युं, त्यारे ते साधुयें पोतानुं सर्व वृत्तांत मने प्रति बोधवा माटे कही सांजलाव्यु, तेथी ढुं जाणुं बु. ते सांजलीने राजायें हर्ष पामी तेने पूज्यो. अने सर्व मालमा तेने वडेरो कस्यो. बीजे चंमालें मम्म णने मास्यो. यमपाश मरीने स्वगै गयो॥ एकथा श्री शांतिनाथ चरित्रमां. अर्थः-" चोरीपसत्तस्स सरीर नासो " जे प्राणी (चोरी के० ) चो रीने विषे ( पसत्तस्स के) आसक्त होय, ते प्राणीना ( सरीर के) शरीरनो ( नासो के०) नाश थाय. ते उपर टुंमिक चोरनी कथा कहे ले मथुरा नगरीने विषे शत्रुमर्दन नामें राजा राज्य करे बे. ते राजा स ऊन लोकने पितानी पेठे हितकारी . बने पुर्डनने यमसरखो ले. त्यां एक जिनदत्त नामें श्रेष्ठी श्रावकमां वडेरो ले. ते करुणारसनो समुह अने सत्वरूप रत्ननो सागर हतो. ते नगरने विषे क्याथी पण एक लुमिक नामा चोर यावीने को न जाणे एवीरीतें चोरी करे. पण ते सर्वत्र प्रसिदले. एकदा ते चोरें कोई व्यवहारियानां घरमां खातर देने सुवर्ण लीधुं. एवामां घरना लोक जाग्या. तेणें पोकार कस्यो एटले कोटवालें चारे तर फ वींटीने तेने धनसहित पकड्यो. खलं जे के, बिल बिलने विषे गोधा न होय. प्रातःकाले सूर्यने उदये चोरनी वात राजाने कही. राजायें कह्यु, ए जगत्नो शत्रु ,माटे.एने विटंबना देश्ने मारो. त्यारे कोटवालें लींबडाना पत्रनी माला तथा कणेरनीमाला, सरावलानी माला तेणे करी वध्य मंमनें Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३५३ मंमित करो, जुनां सडेनां सुपडानुं तत्र धयुं, चोखुं धन गजे बांधयुं, गई न उपर चढाव्यो, दंगेरानुं वाजुं वागते चोतरें चबुतरे एम कहेता के रे रे लोको ! सांजलजो. या रीतें हुंमिक चोरें चोरी करी ते माटे एने मारवा जइयें बीयें. तेथी कोई चोरी करशो नही. जे चोरी करशे, तेनो य न्याय, राजा न्यायी बे माटे नहीं खमे तेज़ वेला यष्टिमुष्ट्यादिक ताड नायें ताडी जतो. तिहां निर्दयपणें लोक एम कहेता हवा के, जून ए पोता ना पापनुं फल के पाम्यो बे ? एम सकन लोक नजरें जोता, लांगिया लोक हांसी करता, मुनिराज कर्मनां फल विचारता कहे ते के, एवां पा पकर्म न करवां. चारे तरफ हुदैत बोकरें परिवस्यो कोइ दिशि सूके नही, एम डुं वलुं जोतो, विटंबनापूर्वक बधा नगरमा फेरवीने कोटवालें वध स्थानके प्रायो, शूलीये आरोपीने चर पुरुष बाना. जोवाने मूक्या, के जो एने को कांइमदत करे तो तेनो पण निग्रह करीयें. एवी अवस्थाने विपे ते चोरने तडकानो ताप लागते, लोहीनी धार नीकलते, अत्यंत तृषा लागी. तेवारें जे कोइ मार्गे दूकडो नाकले, तेनी पासे पाणी मागवा लाग्यो, पण राजानी बीही कें कोई पाणी आणी यापे नही. · एवा अवसरमा जिनदत्त श्रावक ते मार्गे याव्या. ते शेठ पासे तेणें पाणी माग्यं. त्या शेठ दयावंत थका बोल्या, तने हुं पाणी पाइश. पण पंच परमेष्ठिनो नमस्कार संनारे तो तुं स्वर्गे जाय. ते सांजलतांज तेणें पाठ संजलाववा विनंती करी, श्रावकें नमस्कार कह्यो, ते वारंवार संचार वा लाग्यो. श्रावक पण जेटले घेरी पाणी लाव्या, एटले उतावलो उता वो नमस्कार संचारतो मरण पाम्यो. मरीने महर्दिक यक्ष पणें उपन्यो. एवा प्रवसरे चर पुरुपें रांजाने जिनदत्तशेठनुं वृत्तांत संजनांव्यं. राजा ये शेठने पण मारवानो हुकम कस्यो. कोटवाल पण ते शेठने शीघ्र गर्दने चढावीने जेटले विटंबना करवा तैयार थयो एटले ते यक्षराजें अवधिज्ञा नें जाएयुं के, हो ! महारा गुरुने यावी व्यवस्था यावी ! एम विचारीने मायायें एक महोटो पर्वत रच्यो पढी सहुने कहेवा लाग्यो, अरे ! राजा प्रमुख लोको, सांजलजो हुं या पर्वतें सर्वने चूरीश, जे कारण माटे या शेठ दयानो समुड्, जगतनो हितवांतक बे, तेने तमें खारीतें विटंबना करो बो ? ए तो महारो प्रभु बे. ते सांजलीने राजा संत्रांत थको पुरना लोक सहित 21. Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. फूल प्रमुखें ते देवतानी पूजा.करवा लाग्यो.जे कारणे मरणनीबीहीक ते महोटी बीहीक . पड़ी राजा प्रमुखें ते यक्षराजने विनंति करी के, हे स्वा मिन् ! अमे अज्ञानथी जे अपराध कस्यो ते खमो, महोटा पुरुषने नम्या एटले ते अपराध खमे एवी नीति , त्यारें यह बोल्यो, तमे ए श्रावकनुं शरण करो, अने पूर्व दिशायें महारुं देहेरुं करो, ते सांजलीने राजायें शे ठने हाथी उपर बेसारीने नत्सवें सहित पुरमा प्रवेश कराव्यो. वारंवार शे उने खमावीने, वली पूर्व. द्विशे यदनुं देहेरं कराव्यु. तेमां शूलिये चढावे लो चोर तथा तेनी पासे ते श्रावक एवी मूर्ति कराव। ॥ इति ढुंमिक क था ॥ ए नवकारना प्रनावथी देवता थयो, पण चोरीथकी तो शरीरनो नाश थयो. इहां चोरी करतां शरीरनो नाश थाय, ए अधिकार है. हवे त्रीजा तथा चोथा पदनो गो अर्थ कहे . "तहा परवीसु पस तयस्स, सवस्स नासो अहमा गई य” ( तहा के० ) तेमज, जे प्राणी (प रहीसु के० ) परस्त्रीने विषे (पसत्तयस्स के) यासक्त होय, ते प्राणीने ( सवस्स के० ) सर्व इव्य अथवा सर्व गुणनो ( नासो के० ) नाश थाय. अने वली (अहमा गईय के० ) अधम गति पामे. एटले उर्गतियें जाय. ते उपर रावण प्रमुखना घणा अधिकार प्रसिह . पण इहां परस्त्री सेवन करवाथी फुःख पाम्या, अने जेणें परस्त्रीनो त्याग कस्यो ते सुख पाम्या. ते नपर सुरप्रिय कुमरनो दृष्टांत कहे . मगध देशने विपे राजगृह नगरमा प्रजास नामा.श्रीवीरना अगियार मा गणधर तेना ना यज्ञप्रिय नामें ब्राह्मण श्रावक वसे . तेने यज्ञज सा नामें स्त्री , तेनी कूखे सुरप्रिय नामें पुत्र थयो. पण ते रूप सौना ग्यशीलादिक गुणें करीने देवताने पण घणो वन्नन . अन्यदा धर्मरुचि मुनिने, प्रनास गणधरजीयें कह्यु हतुं के, तमें राजगृ हनगरें, यज्ञप्रिय ब्राह्मणने धर्मोपदेश करजो. ते सांजली अनुक्रमें धर्मरु चि अणगार राजगृहे पधाया. विचरता थका यज्ञप्रियने घेर अाव्या, या प्रिये पण संन्रमसहित उना थइने आसन आप्युं, ते वासने मुनि बेग, मुनिने यज्ञप्रियें परिवारसहित वंदना करी, मुनि पण वीरप्रनुना गणधर नो परिवार होवाथी घणी प्रशंसा करीने कहेवा लाग्या के, प्रनास गणध रजीयें महारे मुखें कहेवराव्युं जे. जे मनुष्यनवादिक सामग्री उनन पा Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३५५ धर्मकार्य विषे लगारे प्रमाद करशो नही, ब्राह्मणें पण ते वचन त हत्ति पणें अंगिकार करूं, वली मुनि बोल्या, तमारा व्रतनो सुखें निर्वाह थाय बे ? विप्र बोल्या, तमारा पसायथी एटलो कालतो सुखें निर्वाह य यो बे, हवे गलत न जाणीयें के, केम बनशे. जे माटे सुरप्रिय कुमार सौभाग्यादिक प्रतिशयवंत बे, तेने पगले पुगले स्त्रीयो प्रार्थना करे बे. ते माटे हे जगवन ! जो ए निर्मल शील खंमशे, तो शरत्कालना चंद्रमा सर खं मारुं कुल बे, तेमां कलंक लागशे. ते सांजलीने मुनि बोल्या, हे वि प्र ! तमे विषाद न करो, ए पुष्यानुबंधी पुण्यवालो बे, माटे ते प्रकार्य केम करे ? ते वात सांजली मुनिने वंदना करीने यज्ञप्रियें पूढ के, एणें पूर्वज वे गुं सुकृत करूं ते कहो, त्यारें मुनि बोल्या, ए पाउला जवने विषे वणारसी नगरीना रिमर्दन राजानो जयमालि नामें पुत्र हतो. ते एकदा वसंत तिलक नामा उद्याने क्रीडा करवा गयो. त्यां अशोकवृक्षतले चारण मु निने बना दीवा तेने नक्तियें नमस्कार करी तेमना मुख व्यागल बेगे. वामां नंगकेतु नामें एक विद्याधर स्त्रीसहित त्यां याव्यो, ते मुनिने वंदना करीने वेठो, त्यारें मुनियें विद्याधरने पूब्युं, हे विद्याधर ! ए रूपवं ती अबला कोण बे ? त्यारें ते चारण मुनिने नमीने लकायें माधुं नीचुं करीने बोल्यो, ए ताराचंद नामा विद्याधरना स्वामीनी पुत्री बे, एनो न तर मातंगी साथै रक्त थयो, त्यारें ए नर्त्तारि उपर विरक्त थर, एवं जाली एगिकार करी बे. मुनि बोल्या, हे नए ! परस्त्रीगमन ते पुरु पने पोताना कुलमा कलंक बे, तथा वैर खने अपजसनुं कारण बे, तेम परवे नरकने विषे घोर दुःख थापे, परमाधामी बलती त्रांबानी पुतली साथै लिंगन करावे, एवं मुनि कहे बे. एवामां ते स्त्रीनो जत्तरि उघाडे शस्त्रे ते अनंगकेतुने अत्यंत तर्कना करतो त्यां थाव्यो, अनंगकेतु पण लडवा माटे तेनी सामो थयो, अने कहेवा लाग्यो के, हे मातंगीना धणी ! आज तुं पोताने कर्मे मुनु, एम यादेप करतो युद्ध करवा लाग्यो, ते बेहु जण घणी वार युद्ध करतां बन्ने मरण पाम्या. ते स्त्री पण अपरपति जे अनंगकेतु, तेनुं शरीर लेइ अग्निमां बली मुइ. त्यारें चारण मुनि शोक करवा ते देखीने जयमा लियें पूढयं. तमे शोकवंत केम यया हो ? मुनि बोल्या, ए विद्याधर संसारपणें महारो नाइ बे, ते हमला नवकारवर्जित क Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ जैनकथा रत्नकोप नाग हो. स्मात् पापें करी मरण पाम्यो, ते अमने शोकनुं कारण थ६ पड्युं . एवं सांजली, नमस्कार करीने जयमालि एम कतो हवो के, हे जगवन् ! मने परस्त्रीगमन व्रत आपो, त्यारें मुनि बोल्या, प्रथम ए व्रत नुं स्वरूप हुँ कहूं ते सोनलो. पर स्त्री वेनेदें . एक वैक्रिय शरीरसं बंधी, अने बीजी औदारिक शरीरसंबंधी. तेमां पण यौदारिक बे नेदें , एक मनुष्यसंबंधी, अने बीजी तिर्यचसंबंधी. तेमां वली मनुष्यसंबंधी प ण वेदु नेदें , एक परणेली, अने बीजी संग्रह करेली. एटला नेदमां जे नांगे व्रत लेवं तेनी विरति ते चोथु व्रत . ए व्रतना पांच अतिचार बे, ते कडं . तेमां प्रथम अपरिगृहीतागमन, बीजुं इत्वर ते अल्पकाल सू धी कोई स्त्रीने जाडे राखे, ए वे अतिचार सेवतां व्रत नांगशे, एवं पोतें जाणतां बता सेवे तो व्रतनंग थाय, तथा कदाचित् विधवागमन अथवा वेश्यागमन करवा गयो अने व्रत सांजस्युं के, महारे तो परस्त्रीनां पञ्च रकाण ने यने ए कोई परनी स्त्री तो नथी. तो एथी महारुं व्रत शामाटे नांगे ? तथा बीजे अतिचारें नाडे राखी होय तेमां एम विचारे के, ए म हारी स्त्री, तेमां महारुं व्रत शा माटे नांगे ? एम व्रतसापेक्षपणे अ झानपणे विचारी जोगवे तो अतिचार लागे. तथा जाणीने नागवे तो व्रतनंग थाय. त्रीजो अनंगक्रीडा अतिचार ते स्त्रियादिकने वलन चुंब नादि करे तो लागे. तथा पारका विवाह प्रमुख मेलवे, साटां करे, ए प रिविवाहकरण चोथो अतिचार. तथा तीव्र अनुराग. राखे, रात्री दिवस कंदर्पमा चित्त राखे तो ए पांचमो अतिचार. ए पांच अतिचार वर्जवा. ए व्रत पाल्यानुं फल कहे . आ लोकने विपे यश कीर्ति सौनाग्य वधे. पर लोकें स्वर्ग तथा अपवर्गनां सुख पामे. तथा जे प्राणी, ए व्रत ने ग्रहण न करे, अथवा ग्रहण करीने नांगे, ते प्राणी उ गिया थाय, न पुंसक थाय, अने उर्गतियें जाय. ते सांजली राजकुमरे पण विशेषे तत्त्व जाणीने मुनिपासे चोथु व्रत अंगिकार कयं. ते चारण मुनि पण आकाश मार्गे गरुडनी पेठे उडीने बीजे गमे ग या. राजकुमर पण पोताना आत्माने कृतार्थ मानतो घेर आव्यो. ते कु मरने सौनाग्यादिक गुणें करी अपरिगृहीता परस्त्रीयो घणी मले, तोपण . ते कुमरें पोतानाव्रतमां अतिचार न लगाव्यो. अने शील खंमित न कयुं. Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३५७ एकदा राजसनामां बेगं वर्णावर्णनी वात नीकली, तेमां एम कहेवा j के, सर्व वर्णमां कृत्रिय वर्ण जे जे;ते सर्वने राखे बे; माटे क्षत्रिय वर्ण प्रधान जे. ते सांजलीने जयमालिने जातिमद उपन्यो. अनुक्रमें त्यांथी मरीने पहेले देवलोके देवता थयो. त्यांथी च्यवीने तमारो पुत्र थयो. ए रीतें पाबले नवे एवं चोयुं व्रत रूडी रीतें पाल्युं छे. तेथी ए सौजागी थ यो . सुरूपी थयो ले तथापि पोतानुं शील खंमन नही करे. ते वात मुनिना मुखथी सांजलीने सुरप्रिय.कुमारने जातिस्मरण ज्ञान उपन्युं. त्यारे पिताने कहेतो हवो के, हे पिता ! मने आझा आपो, जेम हुँ चारित्र अंगिकार कलं. त्यारें यज्ञप्रिय बोल्यो, हे वत्स ! केटला एक काल पडखो, अवसर पामीने श्री प्रनास गणधरजी पासे चारित्र लेगुं. ते सांजलीने धरुचि मुनि पासे यद्यपि. यतिधर्मनो रागी , तथापि पिताना वचनथी सुर प्रिय कुमार श्रावकनां व्रत अंगिकार कस्वां. मुनि पण शिदा देश विहार करता हवा. सुरप्रिय कुमार पण गुरू बुद्धि यें श्रावक धर्म पालता हवा. ___ एकदा समयने विपे सुर प्रिय कुमार नद्यानने विपे केलिना घरमा सू ताजे, एवामां एक रूपवंत व्यंतरी यावी ते कुमरनुं रूप देखी मोह पामी. थकी कुमारिका स्त्रीनें रूप करी विकारनां वचनो बोलवा जागी त्यारें कुमरें विचाओँ के, निश्चयें ए मनुष्यस्त्री नथी. जे माटे एने लाज नथी. तथा एनी यांखो मींचाती नथी. एम चिंतवीने पोताने घेर याव्या. ते व्यंतरी पण पोतोना जरि पासें जइ कहेवा लागी के, ए ब्राह्मणें मने घणी प्रार्थना करी, पण ते उष्टथी धैर्य बालंबीने हुँ नाती. ते सांजलीने व्यंतर पण कोपायमान थयो. संध्या समये जेटले कुमरने मारवा था व्यो, एटले कुमर पण पोताना वासनवनमा आव्या. स्त्रीने पूजवा ला ग्या. आज तुं वनमां केम आवी हती ? स्त्री पण कान ढांकीने बोली. अहो ! ए वात झुं बोल्या ? हे स्वामिन् ! बीजी स्त्री पण कुलवंती होय ते एकली न जाय. तो हं श्रीप्रनासजीनी स्नुषा थश्ने एकली वनमां 'केम जावं !!! पण मने साची वात कहो. जे ए वात पूबवानुं गुं कार ण ले ? त्यारे कुमरे पण व्यंतरीनी सर्वे वात यथार्थ कही. दीधी ते वात सांजलीने बाहेर रहेलो व्यंतर विचारवा लाग्यो. अहो! महारी स्त्री, उष्ट : Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५७ जैनकथा रत्नकोप नाग हो. चेष्टित ! ए मुशीलनुं घर , एबी नारीने धिक्कार पडो. पड़ी ते व्यंतर सुर प्रिय कुमारने पोतानी सर्व वात कहीने कहेवा लाग्यो. दुं तहारा शीलें करी तुष्टमान थयो . कांक वर माग्य. कुमर बोल्यो. ढुं धर्म पाम्यो . माटे महारे बीजं का प्रयोजन नथी. फरी व्यंतर बोल्यो, देव दर्शन खाली न जाय. माटे कांइक पण माग्य. त्यारे कुमर बोल्यो, कहो महारं थान रखं केटनु ? व्यंतर बोल्यो, धानखं ढकडं. एम कहीने कुमरनी घणी स्तवना करी एना घर आगल सोनैयानी वृष्टि करीने व्यंतर अदृश्य थयो. __ कुमरें पण अरिहंतनी पूजा करीने संथारो कस्यो. एक मासनी सलेष एगा करी समाधिसहित मरण पामीने बारमा अच्युत देवलोके देवता थ यो. त्यां उत्कृष्ट बावीश सागरोपमनुं प्रायुः जोगवी मनुष्यावतार पामीने नुत्कृष्ट व्रतना प्रनांवथक़ी नत्कृष्टुं शाश्वत स्थानक पामशे. एम अनंगके तु विद्याधरने परस्त्री थकी सर्व इव्य नाश पाम्यु, अने जीवथी गयो, 5 गतियें पहोंच्यो. ते माटे परस्त्रीनो त्याग करीने सुरप्रिय कुमरनी पेठे शी ल पालवू ॥ ए कथा खंदारवृत्तिमां ने ॥ इति श्रीसकलसनानामिनीनाल स्थलतिलकायमानपंमितश्रीउत्तम विजयगणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिविर चिते बालावबोधे गौतम कुलकप्रकरणे अष्टादशगाथायां त्रीएयुदाहरणानि॥ हवे गणीशमी गाथा कहे जे. पूर्वनी गाथाना अंते कयुं के, जे परस्त्री मां बासक्त थयो तेने सर्व व्यनो नाश थाय. अने अधम गति था 'य. हवे शहां कहे जे के, उत्तम गति केम थाय ? तो के, दान देतां थाय माटे दान दे. अने जो शक्ति न होय ते उक्कर वात जे. एम देखाडे जे. दाणं दरिदस्स पहुस्स खंती, इछानिरोहो य सुहोश्यस्स ॥ तारुन्नए इंदियनिग्गहो य, चत्तारि एयाणि सुक्कराणि ॥१॥ अर्थः-" चत्तारि एयाणि सुक्कराणि” (एयाणि के०) ए एटले बा. गत जे (चत्तारि के०.) चार वांनां कहेशे ते उत्तम पुरुषोने तजवां, ते . ( सुकुक्कराणि के०) उक्कर जाणवां. ते चार वांनां कयां कयां ते कहे . Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३पए “दाणं दरिहस्स" ( दरिदस्स के० ) दरिने (दाएं के०) दान देवू, ते उक्कर. एटले पासे इव्य न होय अने दान देवू ते उक्कर ले. तेम बतां प ण जो दान दे, तो सजति पामे. ते नपर अमरसेन वयरसेननो दृष्टांत कहे जे. आ नरतदेवने विषे षनपुर नामें नगर, त्यां बनयंकर नामें शेठ वसे जे.ते महाव्य पात्र डे एनां आगल लोक वैश्रमणने श्रमण सरखो माने वे. तेने कुशलमति नामें नार्या जे.तेने घेर बे चाकर ले. ते चाकर शेठने जिन पूजाने विष तथा मुनि दान प्रमुखने विषे रक्त. देखीने चिंतववा लाग्या के, धन्य छे ए शेठने ! जे,ए रीतें धर्म करे !!! अमे अपुत्रिया झुं करीयें! एम करतां अन्यदा चोमासानो दिवस धाव्यो. त्यारें शेठ पोताना बेदु चाकरने देहेरे तेडी गया. तेमने जिनप्रतिमा पूजवाने माटे शेठे फूल श्रा पवा मांमयां पण तेणें सीधां नही. अने कहेवा लाग्या के, जेना फूलथी पूजा करिये तेने धर्म थाय. अमारे तो केवल वेठ थाय. तेने शेनें घj समजाव्या तो पण ते समजे नही त्यारें शेठ गुरुपासें तेडी लाव्या. गुरु यें कह्यु. तमें फूलें करी परमेश्वरनी पूजा केम नथी करता? ते बोल्या, अमे पोताना इव्ये फूल लेश्ने पूजा करियें. अने ऽव्य तो अमारी पासे नथी. एक बोल्यो के, महारा पासे पांच कोडी जे, ते अति थोडी वे मा टे तेटला फूलें मन चालतुं नथी. गुरु बोल्या, पोतानी शक्तियें जो थोडं दीये तो पण ते विपुल फल पामे. धर्मने विपे तो मात्र नाव तेज प्रधान बे. ते सांजलीने ते पांच कोडीनां फूल वेचाता लेइने जिनपूजा करतो ह वो. बीजायें मनमां विचाओँ के, एनी पासें तो एटलुं पण इव्य हतुं, परंतु महारामां तो एटली शक्ति पण नथी. ते माटे टुं युं करूं? एम विचारतां एक जणने पञ्चरकाण करतो तेणे दीठो. त्यारें गुरुने पूबवा लाग्यो, हे जगवन ! एम पञ्चरकाण करतां पण गुं कांइ धर्म थाय ? गुरु बोव्या, एमां पण घणो धर्म थाय . ते सांजली तेपण नपवास, पचरकाण करीने घेर गयो, त्यां विचारवा लाग्यो के, जो आज साधु आवेतो महारी नुजायें उपायु अन्न आ', अने घणुं फल पामुं. एम विचारतां एक मुनिराजें कोई ग्ला न गुरुनु वैयावच्च करवाने कारणे उपवास नथी कस्यो, ते त्यां वहोरवा पधास्या. ते मुनिने वधते परिणामें पोतानी पाती, अन्न जे शेठपासेथी खावा मले डे, ते पोतें तो उपवास कस्यो , माटे ते अन्न शेठपासेथी मा Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० जैनकथा रत्नकोप नाग हो. गीने साधुने आप्यु. ते अवसरे गुनफलसहित परनव- आठवू बांध्यु. ___ एवा समयने विषे कलिंग देशनो सुरसेन नामें राजा तेनुं राज्य गौत्रि ये पडावी लीधुं . तेने लीधे ते राजा त्यांथी कुरुदेशे जश्ने गजपुर नगर ना राजानी उलगमा रह्यो . ते गजपुरना धणीयें तेने चार गाम बाप्यां. ते चार गाम मांहेला शालीशीर्ष नामा ग्रामें वास करीने रह्यो. तेनी विज या नामें राणी , तेनी कुखे ते वे नाश्मांथी जे साधुने दान देनारो नाइ हतो ते प्रथम पुत्रपणे जइ.उपन्यो. अने बीजो श्रीजिनपूजानो करनारो नाइ ते लघुपुत्र पणे जइ उपन्यो. अनुक्रमें वे पुत्रनो जन्म थयो. महोटा पुत्रनुं नाम अमरसेन अने न्हाना पुत्रनुं नाम वीरसेन दीधुं. पूर्व सुकत ने प्रनावें रूप लावण्यना गुणसहित थया. कलाना कलाप जण्या. अनुक्र में यौवन अवस्था पाम्या. विविधप्रकारनी क्रीडा करतां आमा अवला श्रा मंबरथी फरता फरे. ते देखीने तेनी शोक्य माताने कपाय उपन्यो. उलगथी नार याव्या. तेणें राणीने कोपमा वेठी दीती. त्यारे नत्तीरें आग्रह करीने कोपर्नु कारण पूज्युं. राणी कहेवालागी के, जे दिवसथी तमे उलगे रह्या ते दिवसथी तमारा पुत्रं मने जोग निमित्ते उपसर्ग करवा मांमधु ठे, ते एटला दिवस सूधी तो में महारी दृढता राखी. हवे तो तुंतहारं जाणे. ते सांजली राजायें कोपमां आवी चंमालने तेडावीने कह्यु के, तहारा मातं गोने तेश्ने गामनी सीमायें कुमरो कीडा करे , तेनां मस्तक लेश्याव्य. ते सांजली मातंगें विचायुं के, राजाने झुं नूत व्यंतर वलग्युं ले ? के, एवी घाझा करे . अथवा रूडं थयुं के, मने आज्ञा करी जो कदापि बीजा कोश्ने करी होत तो एमांथी अनर्थ थात एम विचारी राजानो या देश प्रमाण करीने ते चंमाल कुमर पासे गयो. कुमरने कह्यु के, ताते तमोने मारवानी अाझा यापी . त्यारे कुमर बोल्या, तातनुं वचन प्रमाण करो. अमारा अपराध विना तात आझाापे नही. त्यारे चंमाल बोल्यो, महारी प्रार्थनायें तमे देशांतर जाउ. पाहीं तमने कुटुंबसहित तमारो पिता अ नर्थ करशे. दुं तमारे प्रनावें सर्व समाधान करीश ? पण तमे जा. एम कहे थके कुमरो देशांतर गया. चंमाल पण कुमरोने बेसवाना बे घोडाले चितारा पासे जर कुमरनां मस्तक सरखां बे मस्तक करावीने राजाने सं • ध्या समये दूरथी देखाड्यां. राजा बोल्यो, ए मस्तक गोपवी मूको, जेम को Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३६१ इ देखे नही. चंमालें पण तेमज कयुं. ते जोइने शोक्य माता घणो हर्ष पामी. वे कुमरने खागल जतां खटवीमां एक सरोवर व्युं, त्यां सूर्य या थम्यो हाथ पग धोने यांबाना वृक्ष हेवल पांनडांनो संथारो करीने बे दुइ वेता. वयरसेने महोटा नाईने पूब्धुं के, तातने रोप चढवानुं कार तमे कां जाणो वो ? महोटो नाई बोल्यो, द्वं नथी जाणतो, पण ईर्ष्या ये शोक्य माता रूठी देखाय बे ! एवं में इंगित खाकारें जाएयुं. तेथी तातें ए काम कर जाय े. स्त्रीना प्रेखा रागांध पुरुष शुं शुं न करे ? अथवा ए माता उपगारणी थइ, नहिंकां प्रापणने देशदर्शन क्यांथी यात ? एम वात करीने महोटो जाइ सूतो, खने न्हानो जाइ चोकी करवा जागतो रह्यो. एवा वसरने विषेांबा उपर एक सूडो ने सूडी रहे बे. तेमां सूडो डीने हे बे के, आपणा वृद्ध हेतल वे पुरुष प्राव्या ने ते प्रादुपागती करवा योग्य बे, पण गुं करिये आपणी पासे कांइ नथी. सूडी बोली, त मने सांनरतुं नथी. छापणे सुकूट पर्वतने विषे गयां हतां, त्यारे विद्याधरें मंत्रीने वे यांबा वाव्या हता, ते वखत ते विद्याधरोयें परस्पर एम कयुं के, एक खांबानं लघुफल बे, ते खाधा पढी तेनुं फल गले ने ज्यां सू धी ते पेटमा रहे, त्यां सूधी निरंतर सूर्यने उदये पांचसे इव्य मुखमांथी पडे. बीजुं महोटा खांबानुं महोटुं फल बे. ते फल जे खाय ते सातमे दिव से राज्य पामे, ते माटे ते फल लावीने एकेकुं फल प्रापणे एने पापीयें. पीते शुकयुगों तेमज ते फल खाणी प्राप्यां वयरसेनें वे फल पड्यां दीगं, ते जेने बेडे बांध्यां यने विचारवा लाग्यो के, शुं ए वात साची हो ? अथवा विद्यामंत्रनो प्रनांव व्यचिंत्य बे, माटे कोइ कही शकाय नहीं. वे मोटो जाइ निड़ा करी उठ्यो तेवारें लघुना सूतो, प्रजातें बेडु नाइ खागल चाल्या, महोटा नाइने परमार्थ कह्या विनाज न्हाना जाइयें तेने महोद्धुं फल खाप्युं, खने लघुफल पोतें गल्युं. पती एकला थइने सरो वर पासे जइ मुखशुद्ध करी एटले मुखमांथी पांचसे इव्य हेतां पड्यां. तेलइने महोटा जाइ साथें मलीने जोजन वस्त्रादिक सर्व सुख जोगववा मां ते इव्य कामे लगाडे. महोटा नाइयें पूढयुं. तहारी पासे इव्य क्यांथी ? लघु नाइ बोल्यो. आपला पिताने दारानुं इव्य यावतुं हतुं ते में जंमार मां मूक्युं नही, खने महारी पासें राख्युं बे. एम आागल जतां कंचनपुर . ४६ ● Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६५ जैनकथा रत्नकोष जाग बहो. नगरे पहोच्या, त्यां श्रमरसेन यांचा तले सूतो, वयरसेन जोजन प्रमुख न सामग्री करवा नगर मध्ये गयो. एवा समयने विषे त्यां पुत्रियो रा जा मरण पाम्यो बे. पांच दिव्य प्रकट करया वे. ते ज्यां अमरसेन सूतो बे, त्यां याव्या, तेने हस्तियें पोताने खंधे बेसायो, उत्रधारकें मस्तकें उत्र ध, बेदु पासे चामर विंजते नगरमां लइ चाल्यो. वयरसेन पण ते वृत्तां त जाणी विचारवा लाग्यो के, पारका मुखसामुं जोवुं पडे ते रूहुं नही. एम चिंतीने मगधा नामें गणिकाने घेर गयो. त्यां विविध क्रीडा करतां दिवस गमावे बे. राजायें लघुनाइनी शोध करावी, पण जड्यो नही. त्यारे चिंतातुर थको राज्यचिंतामां यादेपें करी दिवस गावे बे. एकदा कुट्टी यें मगधाने कयुं. एने पूढो के, एवडं इव्य क्यांथी ला वे बे ? कां व्यापारतों करतो नथी. वेश्यायें पण एज रीतें पूढयुं. त्यारें तेणें पण सरल स्वनावें जेवी वात हती तेवी कही दीधी. कुट्टिणीयें ते वृत्तांत जाणी कोइ इव्य संयोगें तेना पेटमांथी वमन करावीने ते याम्र फल पोताना थालमा लेने वयरसेनने घरमाथी काढी मूक्यो. ते पण चिंतातुर थको जमतो जमतो रात्रीने विषे नगर बहार देवकुलमां पहों च्यो. त्यां चार चोर चोरी करी लाव्या बे, ते वर्हेचल करतां पोत पोता मां क्लेश करे बे. ते जाणी कुमरें तस्करसंज्ञा करी. त्यारें चोरें जाएयुं, ए चोर देखाय बे. एम जाणी तेने नेगा थइ पासे बेसाड्यो. पोतानी वात लावी के, एक कंथा, बीजी लकूट, खने त्रीजी पावडीं, ए त्रण वस्तु लाव्या ठीयें. कुमरें पूग्धुं एथी शुं कार्य याय ? चोर बोल्या, जे एक सिद्ध पुरुष मास सूधी मसाणमां विद्यादेवी खाराधी. ते विद्यादेवीयें तुष्ट मान ने ए त्रण वस्तु तेने प्रापीने तेना फल या रीतें कह्या. एक तो निरंतर कंथा फाटकीये तो पांचसे रत्न पडे. बीजी लकूट ( लाकडी ) जो मस्तक उपर नमाडीयें, तो प्रहार न लागे. त्रीजी पावडी पगमां पहेरीये तो प्रकाश मार्गे य इचित स्थानके पहोंची यें. एवां फल देवतायें कह्या, त्या मे पण मास सूधी तेनी केड पडीने ते सिद्ध पुरुषने मारी ए त्रण वस्तु लीधी. हवे वस्तु त्रण बे, घने खमे चोर चार जण ढैयें माटे वर्हेची शकता नथी. कुमरें कयुं, शा माटे युद्ध करो हो ? हुं तमारो वि वाद टाली खाएं. मने एकवार ए वस्तु परीक्षा करवा थापो. एम कहीने Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३६३ हाथमा लाकडी लीधी. अने अंगमां कंथा पहेरी तथा पगमां पावडी घा लीने आकाशे चाल्यो, नगरने बीजे पासे घावी रह्यो, ते जो चोर पण विलखा थइ पोत पोताने ठामे गया. कुमर पण कंथा फाटकी तेमांथी पांचसे रत्न पड्यां ते ग्रहण करी, पडी वेष फेरवीने नगरमां आव्यो. त्यां नित्य जुवटुं रमतो जोग विलास करतो फरे. तेने कोश्क रीतें क्या एक कुट्टिणीयें दीतो. तेणें घेर जश् सर्व व्यतिकर मगधाने कह्यो.अने मगधाने श्वेत वस्त्र पहेरावी वेणींबंध रचीने कुमर पासे तेडी लावी ने कह्यु के, में पापणीयें तने काढी मूक्यो, पण मगधातो तहारे विरहें आरीतें रोती रहेती नथी. इत्यादिक कपट वचन सांजली कुमरें विचाओँ के, ए रंमायें वली कूड कपट करवा मांमधु, डे, पण नबुं जे थशे ते आगल जणाइ रहेो. एम चिंतवी अक्काने प्रणाम करीने कुमर बोल्यो, तहारी पुत्रीने एमज घटे, हवे महारे गुं करवू ? अक्कायें कह्यु, हवे एनी साथे घेर चालो. एम कही घेर तेडी लावी. केटला एक दिव स पबी कुट्टिणीये कुमरने पूजा. रे वत्स! तहारे इव्यनी उत्पत्ति क्याथी थाय ले ? कुमर बोल्यो, हे माता ! या पावडी पहेरी देशांतर जावं डं. त्यांथी लोकनुं व्य अपहरीने लावू बुं. कुटिनी बोली, जो एम जे तो म हारो मनोरथ पूर्ण करो केम के, ज्यारे तहारो विरह हतो त्यारे में मा न्युं हतुं के, जो कुमर मलशे तो समुझ मध्ये देवलमा काम देवनी प्रति मा .तेनी ढुं.पूजा करीश. ते माटे मनें त्यां ले जाउ. कुमरे पण तेने नपाडीने समुश्मध्ये कामदेवने देहेरे मूकी. हवे कुमर पाउका मूकीने कामदेवना देहेरामां पूजा करवा गयो, ए टले कुट्टिणी पाउका पहेरीने आकाशमार्ग नडी पोताने घेर ावी. कुम रें विचाडे. अहो ! ए महा प्रपंचवंती रंमाये वली पण मुझने ठग्यो ! एम चिंतातुर थको रहे बे. एवामां एक विद्याधर त्यां व्यो तेणें कुमर ने देखी पूब्युं. तु शहां केम आव्यो ? कुमरें सर्व वृत्तांत मांझीने कडुं. वि द्याधर बोल्यो, तुं खेद म कस्ख. महारे महोटुं काम डे ते काम करीने पा बो वढं त्यां सूधी एक पखवाडियुं श्हां कामदेवती पूजा करतो रहे, जे प बी तने तहारे स्थानकें मूकीश. पण ए देवलने धारदेशे बे वृक्ष डे, तेनी समीपे तुं जश्श नही. कुमरें ते वचन यंगिकार कयुं. विद्याधर पण पंद Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ जैनकथा रत्नकोप नाग हो. र दिवस सूधी खाय एटला लाडुआ आपीने आकाशे गयो. एक दिवस कुमरें कौतुकें करी एक वृदनुं फूल सुंघ्यु, एटले गर्दन थ गयो. __ हवे पन्नर दिवसने अंते विद्याधर आव्यो, तेणें गधेडा रूपें कुमरने दीठो, त्यारें बीजा वृदनुं फूल सुंधाव्युं तेथी पाडो मनुष्य थयो, विद्याधरें उलंनो दीधो. कुमरे पण पोतानो दोष कह्यो. कुमरें विद्याधरने पूब्युं. या अचरि ज झुं ? विद्याधर बोल्यो, ए बे वृद खर अने मनुष्य निमित्त करी वा व्यां ने. तेनो ए प्रनाव जे. एम कही विद्याधर कामदेवनी पूजा करवा गयो. एटले कुमरें बेहु रुखना बेदु फल लीधा. जुदी जुदी गांठे बांध्यां. विद्याधरें कुमरने कंचनपुर नगरे मूक्यो. त्यां निरंतर विलास करे . वली एकदा तेने अक्कायें दीतो. देवीने विस्मय पामी. घेर जश् मगधाने वात कही. मगधायें तेने वारी के, जवा दे. हवे ए उगवानुं काम न कर, तो प ण कपटें करी ढींचणे कुणीये पाटा बांधीने कुमर पासे गइ. कुमरने पण अमर्ष नपन्यो. तथापि इंगित थाकार गोपवीने बोल्यो, रे माता ! आ गुं ? ते पण रोती थकी बोली, हे कुमर, तुं कामदेवना देहेरा मध्ये गयो, त्यां एक देवतायें पाङका हरीजवा मांझी त्यारें दुं तेने वलगीने तेनी सा थें श्राकारों नडी पण तेणे मुकने नन्नालीने हेठी नांखी दीधी, ते पुण्य यो गें हुं था नगरमां पडी पण पडतां थकां महारा हाथ पग नांग्या. कुमर बोल्यो, रे माता ! धूल नांखी पावडी गई तो, जवायो, तेनुं कांशःख उ पजतुं नथी, पण तमने जीवतां दीठां एटले सर्व मली. गो... . पनी अक्का, कुमरनो हाथ पकडीने घेर लावी. वली लोनवंती थइ कु मरने पूज्युं. तमें इहां केम आव्या, अने एवा विलास क्याथी करो बो ? कुमर बोल्यो, में कामदेव आराध्यो ते मने प्रत्यद थयो, तेणें मने घj इव्य थापी इहां मूक्यो. वली अक्कायें पूब्युं, बीजुं कां कामदेवें आप्युं ? कुमर बोल्यो, आप्युं ले ! ते बोली, झुं बाप्यु ? कुमर बोल्यो, जे औषधी सुंघे, ते वृक्ष होय तो जुवान थाय. एवी औषधी यापी त्यारें अक्काहर्ष पामीने कहेवा लागी के, ते औषधी मने आपो. कुमर बोल्यो, हे माता ! ढुं तमारे माटेज लाव्यो , एम कहीने कुमरें लकुट पोताना हाथमां लीg; पड़ी फूल सुंघाव्यु. एटले ते गईनी थइ गइ, ते गईनीने चपेटो देश पुंठ उ . पर चढी बेगे, लकुटें करी मारतो नगर मध्ये नीकल्यो, मगधा हर्ष पा Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक अर्थसहित. ३६५ मी के, कुमरें योग्य कयुं, एने लोननुं फल देखाड्युं, बीजा लोक पोकार करवा लाग्या, कोटवाल आव्यो, तेणे नगरने परिसरें कुट्टिणीने मारतो कु मर दीठो. कोटवालें हांकीने कह्यु, अरें झुं एवं असमंजस काम करे ? कु मर कोप करी बोल्यो, जे महारे गमशे ते दुं करीश. तमारामां शक्ति हो य तो निवारण करो. त्यारे कोटवाल नाला खड्ग प्रमुखें करी प्रहा र करवा लाग्यो, कुमर पोताना मस्तक उपर लकुट नमाडे, एटले एके प्रहार न लागे, ए व्यतिकर सांजलीने राजा त्यां आव्यो, तेणें तरत ना इने उलख्यो, त्यारें हाथीथी हेठो सतरीने आलिंगन देतो हवो. कुमर बो व्यो, मूक मूक नाइ ! एकवार हाथनो रस पूरो लेनं. राजा बोल्यो हे व त्स ! एवडं ? वात कहो, त्यारे सर्व व्यतिकर कह्यो. पडी ते गईनी ने नगर मध्ये थांने बंधावीने, पोतें हाथी उपर बेसी राजा साथें नगर मां पेतो. कुट्टिणीने ते अवस्थायें रहेली देखीने लोक कहेवा लाग्या ॥ यतः ॥ अतिलोनो न कर्तव्यो, लोनं नैव परित्यजेत् ॥ यतिलोनानिनूता हि, कुहिनी गर्दनारुतिः ॥ १ ॥ पढी राजायें घणो आग्रह करीने बीजें फूल सुंघावीने मनुष्यणी करावी, पावडी लेश्ने मूकी, वयरसेन युवराजा थया, नला जोग जोगवता हवा, पिताने तेडावीने कडं, अमे तमारा प सायें राज्य पाम्यो लियें, एम कहीने शोक्यमाताने स्थिर करी. एकदा वे ना गोखने विपे वेग जुए डे, एवामा धुसरा प्रमाण दृष्टि दे. र्यासमिति शोधता, महा तपस्यावंत एवा मुनिनुं युगल राजपंथें चा लतुं देखीने, जातिस्मरण शान उपन्युं. जश्ने मुनिने वंदना करी. एक मु नियें अवधिझाने जाणीने तेमनो पूर्वनव कह्यो, अने कह्यु के, तमे थोड पुण्य कडे हतुं, तेनुं था फल पाम्या, ते माटे जिनपूजा अने मुनिदानने विपे घणुं पुण्य नपा|. ते ना पण मुनिवचन अंगिकार करी धर्ममा उद्यमी था विपुल जोग जोगवी अनुक्रमें सुगति पाम्या. ए दान दे, उक्कर पण जो दीधुं तो एवा फल पाम्यो. ते उपर श्रीसुमतिनाथ चरित्रमा गणधरदेश नाने अधिकारें अमरसेन वयरसेननी कथा वे ते कही. • तथा बीजो "पदुस्स खंती” (पदुस्स के० ) प्रनु पणामां ठकुराइपणामां (खंती के०) क्षमा करवी, उनन बे. ते उपर सहरमननी कथा कहे . या जंबुद्दीपना नरतदेत्रे शंखपुर नामें नगर के. लक्ष्मीय विचाओँ के, . Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. महारा नाइने नामे ए नगर ले माटे महारे अंगिकार करवा योग्य से, ए, जागीने दीरसमुनी पुत्रीये त्यां वास कस्यो ले. त्यां कनकरथ ना में राजा राज्य करे , तेनी सेवा नला जला सुनट दूरथी पण यावीने जमरानी पेठे करे ..एक दिवस राजा पर्षदामां बेटो बे, एवामां तेनी सेवा करवा माटे वीरसेन नामें एक सुनट धावतो हवो, तेने वृत्तिमां सो गाम राजायें आपवा मांमयां, पण तेणें न लीधां, एमज सेवा करवा रह्यो. हवे कालसेन नामें कोई ममंबनो स्वामी बे, ते कमें कमें आवीने क नकरथ राजानो देश लूटी जाय. ते जाणीने राजायें पोतानी सनामां न जर करी के, को कालसेनने जीतीने लावे एवो शूरवीर ले ? ते सांन ली सर्व नीचां मुख करीने बेठा. त्यारे वीरसेन बोल्यो, हे देव ! दुकम करो तो हुँ कालसेंनने.जीतीने महाराजने चरणे सावं. बीजाने युं कर वा कहो हो ? राजा पण विशेषनो जाण बे. माटे एकलानेज आज्ञा क रतो हवो वीरसेन पण सनालोकनां मुख श्याम करतो अनुक्रमें पोतानी सीम नलंघीने बागल पहोंच्यो. एटले कालसेने विचायुं के, ए एकलो गुं करशे ? एम अवझायें साहामो आव्यो. बाण खेंची खेंचीने मूकवा मां मयां. ते पण बाणने ढाल आडी करीने धरतो, विकराल तरवारें केश्कनां तो कमलनी पेठे मस्तक छेदतो, केश्कनी लुजा कमलनी पेठे उखाडतो, केश्कनी राखो राखो एवी वाणी सांजलतो, प्रलयकालनी अग्मिनी पेवें कुःखें जोवा योग्य थतो हवो.अनुक्रमें पोतें कालसेनने बांधीने कनकरथ राजाने नेटणुं करतो हवो. त्यारें राजाषण, अहो ! सहस्रमनना पुरुषा त्मापणानो महिमा ! एम स्तवना करतो, ते राजा कस्या गुणनो जाए ले माटे तेणें महा सामंतपणे तेने थापीमे, महोटा नगरनुं राज्य प्राप्यु, तथा सहस्त्रमन्न एवं नाम दी. कालसेनने पण पोतानी आज्ञा मनावीने पालो तेने स्थानके माकल्यो. ___ एवा अवसरने विषे विहार करता, नव्य जीवने उपदेश देता, सुदर्श न नामें आचार्य तिहां पधास्या, सहस्त्रमन पण मुनिने वंदना करवा आ व्यो, गुरु पण तेने देशना देवा लाग्या के, जो न! जेम बाह्यशत्रु जी. तवानो प्रयत्न कस्यो, .तेम हवे अंतर शत्रु जीतवानो उद्यम करो के, जे , थी तमने शाश्वत राज्यनी लक्ष्मी मले. ते सांजली सहस्रमन विनंति क Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३६७ रतो हवो के, हे नाथ! हुँ बाह्यशत्रुनो जय तो जाणुं , पण अंतर शत्रु नो जय नथी जाणतो. शत्रु कोण अने जीताय केम? ते कहो. गुरु बो व्या, है वत्स ! अंतर शत्रु कर्म , ते जीतवां घणां दोहिलां , तेतो प्रव्र ज्यानी सेन्या तथा दमारूप खड्ग जे हाथमा ले, ते अंतर शत्रुने जीती ने मोदनगरीना राज्यतुं सुख पामे. ते सांजली सहस्त्रमन तृणानी पेठे रा ज्य मीने गुरुने चरणे दीक्षा लेता हवा. ते अनुक्रमें गीतार्थ थया, कमें करी नत्सर्गमार्ग जिनकल्प अंगिकार कस्यो, ते विहार करतां कालसेन राजाने नगरे पधाया, तिहां पर्वतनी पेठे अचल थका काउसग्गे रहेता हवा. एवा समये ते कालसेन पण रयवाडीये रमवा नीकल्यो. ते मुनिने दे खी उष्टपणे विचारवा लाग्यो के, अहो ! था तो तेज सहस्रमन , ते स्व नावें शत्रु ले पण कपटें मुनि थश्ने फरी मुझने पकडवा आव्यो . ते मा टे आज एने अवश्य मारु. एम विचारीने ते उरात्मायें नाना प्रकारना मारवाना उपाय करवा मांझ्या. सहस्त्रमन्न तेने जीतवा समर्थने, तोपण एम विचारतो हवो के, हे आत्मा ! ए अप्रीतिकारी पण परलोके सार्थवा हनी पेरें तुमने मल्यो बे, माटे कोप न करीश, समतानेज नजजे, पोता नां कस्यां कर्म उदय आव्यां , तेमां कोनो वांक दे ? एवी पीडा तहारे सहेवी घटे , जे पुरुष समर्थ उतां पण सहन करे. ते तेने महापुण्यनगी थाय. एवा गुनध्यानने विषे तत्पर थया थका सहस्त्रमनझषि समाधिमां काल करीने सर्वार्थसिदि विमाने देवता थया. त्यांथीमनुष्यावतार पामी, मोद जशे ॥ इति प्रश्नोत्तररत्नमालायाम ॥ हवे बीजा पदनो अर्थ कहे जेः- "बानिरोहो य सुहोइयस्स" (सुहो। यस्स के०) जे प्राणी सुखों चित्त होय, तेने (इला निरोहोय के०) बानो रोध करवो, ते धर्मराजाना पूर्व नवनी पेठे महाउज़न डे. ते कथा कहे जेः कमलपुर नगरने विष कमलसेन राजा राज्य करे बे. तेनी पासे एक दिवस एक निमित्तियो श्राव्यो. तेणें कह्यु के, हे राजन् ! बार वर्ष उकाल पडशे. ते सांजलीने राजा महा चिंतातुर थको सनामध्ये बेगो . एवा अवसरे आषाड शुदि नवमीने दिवसे मांखीनी प्रांख जेटलुं वादलुं थयुं, ते क्षणेकमां वधवा लाग्युं, वधतां वधतां वरसवा लाग्युं, वरसतां थकां जल थल सर्व एक थयु. अनुक्रमें खेतीवाडीथी घणा धान्य निपन्यां, लो Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६७ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. कोनां पाप अने उकाल सर्व विसराल थयां, तेवारें सदु को अहो ! नि मित्तियोतो महोटो ज्ञानी !! इत्यादि वचने तेनी हांसी करवा लाग्यां. । अन्यदा त्यां चार ज्ञानना धणी श्री जुगंधर नामा प्राचार्य पधारता हवा, राजा प्रमुख लोक वंदना करवा नीकल्या, जश्ने गुरुने विधिपूर्वक वंदना करी, अवसर पामीने राजा पूबवा लाग्यो, हे नगवन् ! निमित्तिया नु वचन केम न मट्यु ? गुरु बोल्या, ग्रहाचार योगें करीने बारवर्षी उका ल पडत एवं हतुं, पण कोइ पुण्यवंत जीव तहारा नगर मध्ये उपन्यो, ते ना पुण्य उकालने ठेली काढयो. ते सांजली राजा बोल्यो, हे स्वामिन् ! ते केम ? त्यारे तुरु बोल्या, सोनल तेनुं स्वरूप कहुँ . पुरिमताल नगरे प्रवर नामें कोई कुलपुत्र वसतो हतो, पण तेनुं कुल उचिन्न थयुं ने, दरीस्थिको फरे, वली ते अविरतिनो धणी , कोइ वात नो नियम कस्योनथी, सर्वनदी जे हाथमां यावे ते खाय, एम करतां खा धानो धडो रह्यो नही, तेथी अजीर्ण थयुं, कोढ रोग उपन्यो, ते कोढीयो देखीने लोकें धिक्कार कस्यो, नगर बहार नीकल्यो, फरतां थकां को स्था नके मुनि दीठा, त्यारे पूबवा लाग्यो, हे जगवन ! मने कोढ रोग केम थ यो ? अने ए रोग केमक्ष्य जाय ? त्यारे ते ऋषिबोल्या, रे न! अविरति आत्मा ते असंतोषी होय,ते जो कांश्पण वस्तु न वावरे तोपण तेने विर तिनो लान न थाय. जे माटे इव्य कोश्ने घेर मूक्युं होय पण जो व्याज मुखें बोल्यो होयतो ते आपे, अन्यथा न आपे. ते माटे .विरति करे त्या रें विरतिनो नफो थाय. तथा जेम एकेंघिय जीवो कां पाप करता नथी, कां वावरता नथी पण विरतिविना अढारे पापस्थानक तेने लागे .ते म तें पण अविर तिने जोरें ज्यां ज्यां अता जे जे वेलाये जे जे मल्युं ते ते खाधुं, पण रात्री दिवस कांजोयुं नही, तेथी तुमने अजीर्ण थयु. ते अजी फनी प्रबलतायें कोढनो रोग उपन्यो. माटे जो विरति करे, चारे थाहार नुं परिमाणथी जोजन करे, तो रोग जाय, परम कल्याण थाय. ते सांजलीने तेणें गुरुनु वचन तहत्तिपणे अंगिकार कयुं गुरुने कहे वा लाग्यो, हे जगवन् ! आजथी महारे एक अन्न लेवू, एक विगय वाव रवी, एक शाक खावु अने अचित्त पाणी वावर, एरीतें प्रमाणोपेत नोजन करीश. गुरुयें कयुं, जेम बोल्या. तेमज पाल जो, पाख्यानो महोटो लान Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३६ जे. ते गुरुनु वचन प्रमाण करीने पोताने स्थानकें याव्यो. अनुक्रमें पू क्ति नियम पालतां निरोगी थयो, त्यारे धर्मनो महिमा जाएयो, धर्म उ पर घणो आदर थयो, व्यापार करवा मांमयो, ते पण निःपापत्तियें व्यापार करे. एम करतां धर्मने प्रजावें कोटि धन पाम्यो. तो पण पोतें नियम लीधुं बे, तेने खंमित न करे, सुखीयो थको पण बानो रोध क रतो हवो, नियमित आहार जोजन करतो थको, सुपात्रे दान देतो, दीन अनाथने दान देवाने विषे तत्पर थको रहे .. ___ एकदा सुर्निद पडणुं त्यारें एक लाख मुनिने एषणीय घृतादिक, दान देतो हवो, गुप्तदान देने लारकोगमे साधर्मिकनो नचार करतो हवो, एम जावजीव दृढव्रती थको काल करीने सौधर्म देवलोकने विपे इंनो मह र्थिक सामानिक देवता थयो, त्यां ते देवतापणे एवी जावना करे ॥ य तः ॥ सावयकुलंमि वरदु, ऊ चेड नाणदसणसमे ॥ मिनुत्तमोहियमइ, वरं न राया चक्कवट्टीवि ॥ १ ॥ अर्थः-श्रावकना कुलने विपे उपजीने जे दासपणुं पाम, ते पण झान दर्शन सहित होय माटे रूडं जाणवू. पण मिथ्यात्वमतियें मुंफाणो थको चक्रवर्त्ति राजा पणुं पण न था ॥१॥ इत्या दिक नावना जावतो देवतानो नव पूरी करी त्यांथी ज्यवीने या तहारा नगरमां शुक्ष्वोध नामें शेठनी व्योमला नामें धणियाणीनी कूरवने विषे पुत्रपणे आवी उपन्यो. एना पुण्यना उदयें करी उष्टयहचारें उकाल उप जवानो हतो, ते पण नाश पामतो हवा. एवां गुरुनां वचन सांजलीने राजा घणो विस्मय पामतो हवो, सर्व नगरना परिवार सहित राजा शुधबोध शेठने घेर आव्यो, त्यां ते पुत्रने उत्संगे ल कहेवा लाग्यो, जो पुण्यशाली ! नो जगदाधार ! जो मुर्निद नंजक ! तने नमस्कार था. इहां परमार्थ विचारतां राजा तो तुंहिज बे, ढुं तो तहारो कोटवाल बुं, एम कहीने धर्मराजा एवं तेनुं नाम देइने, राजा घेर गयो. अनुक्रमें ते कुमर यौवनावस्था पाम्यो, त्यारे घणी राजकन्या परणतो हवो. तेना पुण्यना प्रनावथी प्रजाना उर्निद प्रमुख 'ना अशिव उपश्व सर्व नाश पामता हवा, प्रजा प्रमोदमय रहेती हवी, घणा जन समकित मूल बार व्रत आराधीने नक्त नोगी थइ दीदा अंगि कार करता हवा. ते मुनिराज प्रमोदें उग्र तप करी पक श्रेणी मामी घाति . Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० जैनकथा रनकोप नाग हो. कर्म दय करी केवल झान पामीने तेज नवे मोदें गया. ए रीतें सुखो चितने चारोध करवो, ते उक्कर ले. अने जो बारोध कस्यो तो संसार पार पाम्या. माटे जानो रोध करवो ॥ इति उपदेशरत्नाकरे ॥ हवे त्रीजा पदन अर्थ कहे . " तासन्नए इंदियनिग्गहो य” ( तारु नए के ) तरुण अवस्थाने विपे ( इंदिय के०) इंडियोनो ( निग्गहोय के ) निग्रह करवो, ए उक्कर ले. ते नपर काम पालनी कथा कहे . __ धातकीखंमहीपे जरतक्षेत्र मध्ये लक्ष्मीपुर नामा नगरने विषे जयध में नामें राजा राज्य करे . एकदा प्रस्तावें राजा सना जोडी बेठो . ए वामां प्रशस्त शास्त्रनो जाण कोक पंमित आव्यो. तेनी साथें गोष्ठी कर तां राजायें पूब्युं. " किं गहनं ? ” एटले गहन झुं ? पंमित बोल्यो, "बीचरियं ” एटले स्त्री, चरित्र ते गहन . ॥ यतः ॥ सायरजलप रिमाणं, सुरगिरिमाणं तिलोयसंगाणं ॥ जाणंति बुद्धिमंता, महिलाचरि यं न याति ॥ १ ॥ ते सांजली राजायें विचायं के, स्त्रीमा ते एवं गुं सत्व ? शो व्यवसाय ? के, जे माटे पंमित पण एम कहे डे ! ते माटे याज महारे स्त्रीचरित्र जोवू. एम विस्मय पामीने रात्रे अंधार पडेडो । ढी चोकीदारने वंचीने राजा पोताना घरथकी नीकल्यो, विप्रनो वेष क रीने अग्निशर्मा ब्राह्मणने घेर गयो. त्यां अग्निशर्मा वेद पाठ करे , ते वे दपाठ करतां बोल्यो. रे न! तुंगुं मागे ले ? राजा बोल्यो. दुं देशांतरथी आव्यो लु, अने ब्राह्मण ढुं, माटे मने सुवाने जग्या आपो. विप्र बोल्यो, महारे घेर जग्या नथी. राजा बोल्यो, तमने उत्तम ब्राह्मण जाणीने हुँ शहां याव्यो बुं, जे माटे शूने घेर ब्राह्मण नही जाय. ब्राह्मण बोल्यो, म हारे जग्या नथी तो पण नटुं.ा फुपडीमांतमे पण वसो. राजा त्यांजरह्यो. एवा समयमां नहाणी ब्राह्मणने कहेवा लागी, रे नट्ट ! आ पुत्रने व्यो. तमारा नाइने घेर बही जागरिका , माटे हुँ अपात्र आपवा जावं बुं. नट्ट बोल्यो, तुं केमे करतां उतावली नहिं आवे, अने डोकरो रोतो थ कां मनें कदर्थना उपजावशे, माटे पुत्रने साथें ले जा. जहाणी बोली, महारे त्यां झुं काम छे ? अपात्र आपीने तरत आq बु. एम कही न हने पुत्र आपीने नीकली. राजा पण स्त्रीचरित्र जोवा तेनी पुंठे चाल्यो. एवामां जहाणी हाट शेरिये आवी, त्यां पूर्वसंकेतिक कोश्क युवान पु Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३१ रुष उनो , ते पुरुषे नहाणीने पूब्युं. शृंगार करीने क्यां जाय के ? न डाणी बोली, वधावणाने कामें दीयरने घेर जानं बुं, पण तरत आवीश एम जाणजे. माटे तुं शहाज उनो रहेजे. राजायें विचायुं के, एर्नु चरित्र जोलं. राजा पण त्यां उनो रह्यो. युवान पण वाट जोतो त्यांज ननो रह्यो. तेवामां नहाणी यावी. त्यारे युवान बोल्यो, आपणे रतिसुख कये स्थानके नोगवीशुं ? नहाएं। बोली, तुं महारे घेर यावीने नट्ट पासे रहेवानी जग्या माग्य. त्यां महारा घरमा सुखें निर्विघ्नपणे कामक्रीडा करीशुं. ते सांजली युवान चाल्यो. नहाणी पण वेषपरावर्तन करी पूंते चाली. राजा पण कौतुकनो लीधो पूंठे चाल्यो. युवान पण नट्ट पासे जर वेद अध्यय न करीने बोल्यो, हे नट्ट ! टुं पनपुरमां वसुं, अने या महारी स्त्रीले एने में कांक शिखामण दीधी एटले ते रीसाइने पुत्रने मूंकीने इहां श्रावती रही. ढुं पण एनी पूंठे शहां याव्यो. थावतां थकां असुर थ गयु. माटे हुँ ब्राह्मण वं.मने रात्री रहेवानी जग्या आपो. तमे पण ब्राह्मण बो.बे पहो रनुं काम . पड़ी तो घेर जश्यु. एम कहे थके नट्ट बोल्यो, बीजी जग्या तो नथी पण रांधवानी जग्या दे, त्यां रहो, त्यारे ते वेदु जण त्यां पेतां. हवे मध्यरात्रे बोकरे रोवा मांझ्यु, त्यारे युवान बोल्यो, रेनट्ट ! ए बालक केम रुए ? नट्ट बोल्यो, एनी मा दियरने घेर गजे. में जतां वारी पण न रही, बोकरो नूरख्यो थयो बे, तेथी रोतो रहेतो नथी, ए प ए न आवी माटे गं करूं ? युवान बोल्यो, महारी ब्राह्मणीनो दीकरो घेर रह्यो , तेथी तमारो पुत्र आपो, ते धावशे, एटले सुखें घशे. नट्टे पुत्र प्राप्यो, तेणें धवरावीने पाडो आप्यो, बोकरो सुखें सूतो. हवे जहाणी अने युवान पुरुष ए बेहुयें रतिक्रीडा करीने ज्यारें प्रनात संमय थयो त्यारे युवाने नट्टने कह्यु. अमे जायें बीयें, तमे पण प्रादुणा अमारे घेर आवजो. एम कही बेदु जण हार देशे गया. युवान जतो रह्यो.अने नहाणी पूर्वनो वेष करी तंबोल सहित थाल लेइने घेर आवी. नट्ट पण आको श करवा लाग्यो, रे रंगे ! रात्रे केम न यावी ? तहारा पुत्रं मने संता 'प्यो. नहाणी बोली, आज तें घरमां राम घाली देखाय . घरमां लघु नीतियें खरडयुं कुंएं , शीकुं हेतुं पडयुं जे. ज्यारे ढुं बहार जावं बु,त्यारे तुं एवां फेल करे .जो रूडा लोकने ए वात कहूँतो तने दक्षिणा पण कोण . Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७३ जैनकथा रत्नकोप नाग हो. आपशे ? एम सांजली ते ब्राह्मण आक्रोश पामतो घरमांथी बहार निकव्यो. हवे राजा नट्टाणी पासे आव्यो. आवीने पूबवा लाग्यो, हे नहाणी ! तुं जयवर्म राजाने उलखे ? ते बोली, हा एनी नगरीमां तो ढुं वसुं बु. अने राजा तो जगत्प्रसिह ले तेने केम न उल ? राजा बोल्यो, ते ढुंज बु. ते बोली तमे एवो वेष केम कस्यो के ? राजा बोल्यो, स्त्रीचरित्र जाण वा माटे कस्यो बे. ते बोली, स्त्रीचरित्र के होय ? राजा बोल्यो, तमारा जेवू होय. एम कहीने सर्व वृत्तांत प्रत्ययसहित कयुं,ते सांजलीने नहाणी क्षणेक लाज पामी, पड़ी धैर्य धरीने महोटे स्वरे बोली, तमे महारुं चरित्र गुं दीतुं. पण तहारा नगरमां एवी स्त्रीयो वसे ले के, मने पगे बांधीने उडे ! राजा बोल्यो, एवी एक स्त्रीनी वासतो मने संनलाव. त्यारे ते बोली. आज नगरमां महाधनपात्र, दानेश्वरी, मनोरथ नामें शेठ वसे . ते ने लक्ष्मी नामें नार्या ले. तेने चार पुत्र नपर घणा मनोरथें रूपें सुरसुंद री सरखी एवी सुंदरी नामें एक पुत्री थर. तेने परणावी एटले नर्त्तार त रत मरण पाम्यो. त्यारे शेवें दीकरीने कह्यु संसार एवोज . सुर असुरनुं पण मरण आगल न चाले.माटे तुं खेद करीश नही.महारा घरमां रही थकी सुरखमां काल गमावजे. घरनु कामकाज पण करीश नही. पुत्री पण बापर्नु बोल अंगिकार करी सुखें रहे . __ एकदा तेणें गोखने विपे बेला देशांतरथी यावेलो कामपाल नामें राज पुत्र तेने राजमार्गे जतो दीतो. ते विशिष्ट रूपवंत, विशिष्ट वस्त्र, विशाल हृदय होवाथी तेने जोई प्रत्यक्ष कामदेवनो नम थयो, तेथी तेणें उपर थी फूलनी माला नांखी. कटादें जोयुं, एवामा बिरुदावलीनो बोलनार बोल्यो, वंगदेशनो राजा नुवनपाल, तेनो पुत्र कामपाल, तेनुं अतिशय रू प देखी जेने देवांगना पण , ते कामपाल जयवंतो वत्तॊ. ते सांन लीने सुंदरीये तेनुं नाम ठाम धायुं, कामपाले पण लगारेक रागसहित 5 चुं जोयु, तेथी ते स्त्रीनेज चिंतवतो, पोताने आवासे गयो, कामज्वरें ग्रहे वाणो, श्रेष्ठिपुत्री पण कामवशे पीडाती जोइने शेठ घणो खेद करवा लाग्यो. एकदा एक परिव्राजिका निदाने अर्थे ावी तेने शेठे कडुं. रे नई ! महारी पुत्री अशातावंत , तेने साजी करो. परिव्राजिका बोली, ढुं नज रें जोवं. एम कही कुमरी पासे गइ, जोयुं तो कंदर्प विकार जाण्यो. पड़ी Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३७३ कहेवा लागी, हे नई ! आशातानुं कारण जाण्यु. जेवी वात होय तेवी कहे. सुंदरीयें विचाओँ के, बीजो उपाय नथी, एम विचारीने जेवी हती तेवी वात कही. परिव्राजिका बोली, कांश खेद करीश नही, तुं आदित्य वारे आदित्यने देहेरे आदित्यनी पूजा निमित्ते याबजे, ढुं तेनी साथें त हारो संगम करावीश. एम कहीने परिवाज़िका नती, शेठने कह्यु, कांक तो दोष टल्यो . पण सघलो रोग तो आदित्यनी पूजाथी जशे. एम क हीने कामपालने मंदिरे गइ. त्यां तेना चाकरें कडं, हे जगवती! कांजा यो बो ? ते बोली, सर्व जाणुं . काम होय ते कहो, ते बोल्यो, अमारा स्वामी राजपुत्रने घणी अशाता , तेने साजो करो, एम कही राजपुत्र पासे लाव्या. तेणें एकांते राजकुमरने कयुं, तें शेउनी पुत्री दीठी बे, ते दिवस थी तुमने कंदर्प पीड्यो , तेनी ए अशाता . त्यारे लगारेक हसीने राजकुमर बोल्यो, हे जगवती! तमें केम जाण्यं ? अथवा तपस्वी होय ते दिव्यज्ञानवंत होय, ते माटे मने शाता थवानो उपाय तमेज विचारो. ते बोली, में तो उपाय विचारी मूक्यो . तुं आदित्यवारें आदित्यने देहेरे जाजे. त्यां तुऊने तेनी साथै समागम थशे. हवे श्रेष्ठिपुत्री पण स्वजनने परिवारें परिवरी आदित्यने देहेरे गइ. था दित्यनी पूजा करी, बहार नीकलतां राजकुमरें हाथे पकडी. एटले, सुंद रीयें पोकार कस्यो. रे रे ! मने पर पुरुष फरश्यो. हवे अग्निविना महारी शुद्धि नथी. ते. मादे काष्ठ काढो. एम कहेतां पितायें घणी विनंती करी समजावी. पानी वाली घेर पाएगी, त्यां तेज राजपुत्रने तेडीने परिव्राजि का प्रावी. बेदु जनो संगम कस्यो. सुंदरीये विचाओँ के, ब काननो मंत्र नेदाय ॥ यतः ॥ पटकों नियते मंत्रः, चतुष्कर्णो न निद्यते ॥हिकर्णस्य तु मंत्रस्य, ब्रह्माप्यंतं न गहति ॥१॥ एम विचारीने घरमां बाग मूकी, बे जण नीकल्यां, बार| बंध करा, मांहे परिव्राजका बली मूह, राजपुत्रने आवासे गयां, शेठे पण परिव्राजिका मूइ देखी जाण्यं के, महारी पुत्रीब ली मुइ. विलाप करवा लाग्यो. हा पुत्री ! पर पुरुषनो स्पर्श थयो, ते छः खें तें अग्नि माग्यो, पण में न आप्यो. ते माहे पोतानी मेलेंज अग्नि सा ध्यो. एम विलाप करी मरण कृत्य कस्यां. हाड हतां ते तीर्थे मोकल्यां. हवे राजपुत्र पण केटलेक दिवसें धन खूटयुं. त्यारे सुंदरीने कहेवा । Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ जैनकथा रत्नकोप नाग बहो. लाग्यो, रे नड़े ! चाल महारे, देश जइयें. सुंदरी बोली, त्यां जवानुं सुं काम ? आपने हांज रह्यां महारो पिता सर्व कां पूरशे तमे शेव ने हाटे जइने महामूलनी पटसाडी मूजे मागो. ते पण हाटे गयो. तेमज कयुं. ते साडी देखाडवा जार्या पासे मोकली. तेने गमी नही. माटे पा बी मोकली. एम वे त्रण वार पाठी मोकली. शेठ बोल्यो, तहारी नार्याने sai aani j टांटिया घासे बे ? ते नार्याने तेडी लाव्यो. ते देखी शेठ बोल्यो, राजपुत्रे महारी पुत्रीने फरस कस्यो, त्यारें मने महा कोप उपन्यो. पण करूं तुं राजपुत्र बो, माटे हुं बोल्यो नही. राजपुत्र बोल्यो, में म हारी जार्याने फरशी हती. तहारी पुत्रीने कोण अडक्युं बे ? शेठ बोल्यो, गुं ए महारी पुत्री नही ? राजपुत्र बोल्यो रे शेठ ! तुं स्नेहें करीने घेलो यो बो ? तहारी पुत्री अग्निमां बली मुइ. ते नथी सांजरतुं ? शेठ बोल्यो, सत्य कयुं. सरखापणें करी हुं मूढ थयो. तो पण सरखापणें करी में ए नेदीकरी पणें कबूल करी, ते माटे जे जोइये ते महारा हाटेंथी जेजो. ए रीतें नहाणीनुं चरित्र देखीने तथा शेठ पुत्रीनुं चरित्र सांजलीने न वर्मराजायें प्रतीत कररी के, स्त्रीचरित्र गहन बे ए खरुं बे. एम निर्धारी वैराग्य पामी शीलंधर गुरु पासे चारित्र अंगिकार करी, तेणें आत्मकार्य साध्युं. ए कथा श्रीसुमतिनाथ चरित्रमां पूर्वजव अधिकारे बे. ते माटे त रुण अवस्थाये इंडियोनो रोध करतो ते डुक्कर ने ॥ इति कामपालकथा ॥ ते इंडियनो रोध करवो एवात यौवन अवस्थामां. डुक्कर ले तो पण तेने जेणे रोध को ते उपर गुणधर्म राज्यकुमरनी कथा कहे बे. या नरदेवने विषे सूर्यपुर नामें नगर त्यां दृढधर्म नामें राजा तेने शीलशालिनी एवा यथार्थ नामें राणी वे, तेनी कुखने विपे गुणधर्म ना में पुत्र उपन्यो ते लोकने चंड्मानी पेठें वल्लन, कलावंत बे, कंदपविता र, तेथी करीने स्त्रीयोने घणो वल्लन बे, सोनागी, सरल, शूर, सत्य बे, तेने एक प्रियंवद नामें दृढ मित्र बे. ते सुरूपी ने सर्वगुणसहित बे. वामां वसंतपुर नगरने विषे इशानचंद्र राजानी कनकवती नामें पुत्री बे, तेनो स्वयंवर मंरुप मांमधो बे, त्यां बीजा घणा राजा याव्या बे, तेमां गुणधर्म कुमर पण आव्या बे, राजायें यावास दीधा, त्यां उतारो करीने धर्म कुमर स्वयंवरा मंरुप जोवाने याव्या, कुमरी पण मंरुप जोवा Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३७५ यावी, त्यां वेंदु जाने परस्परे राग उपन्यो, स्वस्व स्थानके गया. संध्या ara कुमकुम पासे एक दासी मोकली, ते दासीयें एक चित्रपट्टि का पी. तेमां एक हंसिका प्रालेखी बे. तेना हेवल एक श्लोक लख्यो बे. ते श्लोक कुमर वांचे बे ॥ यतः ॥ श्रादौ दृष्टे प्रिये सानु, रागासौ कुल हंसिका ॥ पुनस्तद्दर्शनं शीघ्रं, वांत्येव वराक्यहो ॥ १ ॥ श्रर्थः - धुरथी पो ताना प्रियने दीठां थकां कलहंसी रागी य, ते वराकी फरी शीघ्र तेनुं द र्शन वे बे. ते वांचीने कुमरें पण बीजुं हंसनुं रूप यालेखीने तेनी नी चे एक श्लोक लख्यो तथाहि ॥ कलहंसोऽप्यसौ सुन्नु, क्षणं दृष्ट्वानुरागवा न् ॥ पुनरेव प्रियांदृष्टु, महो वांडत्यनारतम् ॥ १ ॥ अर्थ :- हे सुच्चु ! कल हंस पण दक दीवाथी रागवंत थयो. फरी निरंतर देखवा वांबे ने ए नावार्थ जावो. दवे कुमरीयें मोकल्युं जे तांबुल, विजेपन तथा फूल कुमरें लेने फूलने मस्तके बांध्यां, तांबुल वावसुं ने विजेपन अंगें ल गाव्यं, दासीने संतोषदानमां हार खाप्यो वली दासी बोली, स्वयंवरा मंमपे वरमाला तमारे गळे घालीश, एम कुमरीयें कह्युं बे. पण विषयसेवा कांक काल रहने पती करवी, ते वात कुमरें अंगिकार करी. प्रातःकाले एमज गुणधर्म कुमरने वरमाला घाली बीजा राजाने विसज्य, राजायें गुणधर्म कुंवरने पाणिग्रहण कराव्युं, अनुक्रमें ससरानी श्राज्ञा मागीने स्त्री ने पोतानी सायें लेने कुमर पोताने नगरे खाव्या. " यल एकदा कनकवी कयुं के, कोइक प्रहेलिका कहो. कुमर बोल्यो, मां उपनी ने, जलमा स्वेवायें विचरे बे, पण जल पीती नथी, ते स्त्री को जाणवी ? कुमरीयें कयुं, नांवा जाणवी. हवे कुमरीयें पूढधुं पयोधरने ना रें करी कमी बे, पातलुं शरीर बें, गुणसहित बे, पुरुषने खंधे बेटी बे, ए स्त्री कोण ? कुमर बोल्यो जे पाणी उपाडी खाववाना काममां यावे कावडी जावी. एम कोक विनोद करीने पोत पोताने ठेकाणे गया. हवे कुमर स्नान जोजन करी स्थाने बेठो बे, एवामां एक कापडी याव्यो. ते बोल्यो, हे कुमर ! नैरवाचार्ये तमोने तेडवा माटे मुकने मोक ल्यो बे, कुमर बोल्यो, ते क्यां बे ? कापडी बोल्यो, नगर बहार अमुक स्थानकें बे. कुमर बोल्यो, प्रातःकाले यावीश. ते सांगली कापडी ठेकाले गयो. अनुक्रमें रात्री. ग, प्रातःकाल थयो त्यारें कुमर पण पोतानो परिवार Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. इने भैरवाचार्य पासे गयो. तेने व्याघ्रचर्म उपर वेगे देखीने पगे लाग्यो. योगीं पण श्रासन बताव्युं त्यां वेगे. योगी ने कहेवा लाग्यो, हे प्रनो ! मेमने कृतार्थ करो. योगींद बोल्यो, तुं महारे सर्वथा मान्य बे, पण हुं निःकंचन बुं माटे धुं प्रापीने तमारुं स्वागत करूं ? कुमर बोल्यो, तमारा सरखानो आशीर्वाद तेज स्वागत बे. योगींद बोल्यो, जक्ति, प्रेम, मीगं वचन, सन्मान, विनय ए सर्व वानां जे बे ते कांइक दीधा विना शोने नहीं. कुमर बोल्यो, सम्यकदृष्टियें जोवुं तथा सम्यक् प्राज्ञा देवी ए तमारुं दान बे. योगींद बोल्या, हे नइ ! महारे एक मंत्र बे. तेनो में आठ वर्ष सूधी जाप कस्यो . हवे एक रात्रीनुं काम बे, तेमां विघ्न याय माटे तुं साथ क रहे तो माहरो सर्व प्रयास सफलो थाय. कुमर बोल्या, हुं क्यारे खातुं ? योगींद बोल्यो, कालीचौदशनी रात्रे तुं स्मशानमां श्रावजे, हुं त्यां त्रण चेलासहित रहीश, ते सांनजी कुमर घेर गया. कालीचौदशनी रात्रे कुमर स्मशाने गया, योगींद बोल्यो, हे कुमर ! इहां जे जे विघ्न यज्ञे तेथी तुं राखजे. बीजा त्रण उत्तरसाधक रहेशे. कुमर बोल्यो, स्वस्थ चित्तपणें मंत्रसाधन करो, डुं रखवालो बेठो बुं, तमने विघ्न कोण करनार बे ? हवे योगिंड़ें एक मंगल करी, तेमां एक शब थाप्युं, जाज्वल्यमान य किरीने होमविधिकरखो, एटले जाणे दिशाचक्रने पूरतो, गगन स्फोटि करतो, महा व्याकरो निर्घात थतो, विश्वने बधिर करतो, धरतीने फा डीने पातालमाथी महा बिहामणी एवो एक कालो पुरुष नीकल्यो: ते बो ल्यो, रे पापी ! दिव्यकांताना अभिलाषी ! तुं मेघनामा क्षेत्रपालने नयी लखतो शुं ? जेमाटे महारी पूजा कथा विना मंत्र सिद्धि इसे बे, ए राजपु त्रने पण तें ठग्यो बे. एम कहीने तेने मारवा माटे ते देत्रपालें सिंहनाद star एटले योगिनां त्रण शिष्यतो पृथ्वीयें पड्या. हवे कुमर बोल्यो रे क्षेत्रपाल ! तुं फोकट गर्जारव केम करे बे ? जो समर्थ होयतो महारी साथ युद्ध कर पढी ते खेत्रपालनी पासे खड्ग न हतुं माटे कुमरें पण पोताना खड्गने मूकी दीधुं. मात्र प्रचंम नुजादंमेंज ते नी सायें युद्ध करतां, कमां ते क्षेत्रपालने जीत्यो. ते तुष्टमान थयो थ को बोल्यो, तें मने जीत्यो, माटे कांइक तहारुं इचित करूं. त्यारें कुमर पो ताना हाथ मांथी तेने मूकीने कहेवा लाग्यो के, जो तुं तुष्टमान थयो होय, Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३७७ तो, ए योगीनु मन वांनित पूरूं कर. क्षेत्रपाल बोल्यो, तहारा प्रनावें एने वांछित फलंदायक मंत्र सिह थयो, पण तुं कांइक माग्य, जे माटे देवद शन खाली जाय नही. त्यारे कुमरें कह्यु, महारी नार्या कनकवती , ते महारे वश थावे तेम करो.देत्रपाल झाने जोश्ने बोल्यो, ते तमारे वश थशे, पण कामितरूपें वश थशे, ते कामितरूप तहारूं थशे, एम वर देश ने अदृश्य थयो. योगी पण विद्यामंत्र सिंह यये थके कुमरनी प्रशंसा करतो हवो, कुमरने कहेवा लाग्यो, हे परोपकारी ! मने संनारजो, एमक ही शिष्यसहित पोताने ठेकाणे गयो, कुमर पण अंग पखालीने पोताने घेर याव्यो, वीरवेष मूकीने शय्याने विषे सूतो. बीजे दिवसे पहोर रात्री गये थके अदृश्यरूपें पोतानी स्त्रीना महोल मां गयो, त्यांबे दासी सहित कनकवतीने दीठी, ते अवसरें कनकवती दासीयोने पूबवा लागी के, रात्री केटली गई? दासीयो बोली, हजी मध्य रात्री नथी गई, त्यां जवानी वेला थाने. त्यारे कुमरीयें स्नान विलेपन करी, वस्त्रालंकार पहेरीने, कणेकमां विमान रच्यु, तेमां दासीसहित बेठी. ए टले गुणधर्म कुमरें विचाओँ के, अहो ! अहो ! एणीयें दोकमां विमान केम रच्युं ? तथा ए रात्रीने विपे क्यां जशे? अथवा ए कल्पनानुं गुं प्रयोजन ले? अदृश्यरूप थको ढुं पण एनी साथेज जलं, अने कौतुक जोनं के, ए त्यां जश् शंकरे ? एम चिंतवीने विमानने एक देशे बेसीने चाव्या. दूरदेशे जश्ने विमान चतयु. एक महा सरोवरने इकडं अशोक वन , तेमां एक वि द्याधरने कुमरें दीपो. कुमरनी स्त्री.पण विमानथी उतरीने विद्याधरने प्रणा म करी बेठी, ए रीतें बीजी त्रणं स्त्रीयो आवीने तेने प्रणाम करीने बेठी, बीजा पण विद्याधर अाव्या; वली ते वनखंमना ईशान कूणे एक मनोहर विशाल निर्मल श्रीयुगादि परमात्मानुं चैत्य , तेना सुवर्ण मणीनां पग थीयां ले, अनेक स्तंन सहित , देवतानुं विमान जागीय अटवीमा उ तयुं होय नही, एवं ते चैत्य ! कणेकमां सदुए ते देहेरे याव्या. त्यां विद्याधरोयें जिनस्नात्र महोत्सव करवा मांम्यो. विद्याधरे बोल्यो, बाज कोनो वारो के ? ते सांजलीने कनकवती उठी, पोतानां वस्त्र तीकठाक क रीने नाटकनी नूमिकाने विष पेसीने हावनाव करवामां घणी माहीयकी नाटक करती हवी. बीजी त्रणमां एकें वीणा, बीजीयें वेणु, त्रीजीयें ताल Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. बजाववा मांझी, ते देखीने गुणधर्म कुमर महा विस्मय पाम्यो सर्व स्वरूप नजरें जोतो हवो. तेवामां कनकवतीने नाचतां केडथकी सोनानी घुघरीनी माला त्रुटी पडी, ते प्रजन्न पणे गुणधर्म कुमारे लीधी. नाटक कस्या पली घणीये जो पण जडी.नही, पनी सदु पोत पोताने स्थानके गया, कनकव ती पण दासीसहित पोताने स्थानकें यावी, गुणधर्म कुमर पण स्वस्थानकें आव्या, यावीने शेष रात्रीयें सूक्ष रह्या, विमान संहगुं. हवे प्रातःकाले मतिसागर नामें प्रधाननो पुत्र, ते कुमरनो मित्र ले, ते ने घुघरीनी माला यापीने कुमरें कयुं के, आ घुघरी अवसरे महारी स्त्री ने आपजे. एम कहीने ते मित्र साथे स्त्री पासे गयो, स्त्रीये पण उनी थ ३ आसन आप्यु, कुमर त्यां बेग, मित्र पण पासे बेगे, सोगटां पासे रमतां कुमरी जीती, पडी कुमरी बोली कांक यानूषण आपो, त्यारे कुमरें मित्रना सामुं जोयुं. मित्रं पोताना वस्त्रमाथी काढीने घुघरमाला आपी. ते देखी ने स्त्री बोली, एतो महारुं भानूषण ले ते तमने क्याथी जडयुं ? कुमर बोल्यो, क्यां पड्यु हतुं ? ते बोली स्थानक तो मुझने सांजरतुं नथी. कु मर बोल्यो, महारो मित्र निमित्तनो जाण बे, ते तमारूं अनूषण पाडवानुं स्थानक केहशे, मित्र बोल्यो, दुं कहीश. पडी कुमर पोताने मंदिरे याव्या. वली बीजी रात्रे तेमज जैनचैत्ये गया, स्त्रीयें वीणा वजावतां पगमां हेलुं नेउर कोइकरीतें नीकली पडद्यु, ते कुमरे पूर्वनी पेठे लीधु, तेपीयें खोल्युं पण जडयुं नही, स्वस्थानके आव्या, कुमरें नेचर मित्रने प्राप्यं. बीजे दिवसे वली मित्र साथें लेश्ने कुमर गयो, तेणीये आसन थाप्यु, ते उपर बेसीने कोक शास्त्र गोष्ठी करीने स्त्रीय नतिसागरने प्रब्युं. रे न! तमे निमित्त जोयुं होय ते कहो. ते बोल्यो, र तन्वंगी ! हुँ निमित्त बलें ए म जाणुं , के तमारं कांक बीजुं पण बानूषण गयुं . ते सांजलीने स्त्रीना चित्तमा शंका नपनी तो पण ते गोपवीने बोली, गं पानषग गयं ? ते निमितें जाणीने कहो. त्यारे गुणधर्म कुमर बोल्या, ते तुं नथी जाण ती ? ते बोली जाणुं बुं, पण पडवानुं स्थानक नथी सांजरतुं. कुमर बो व्या, मने कोइकें कह्यु जे.के, तुं दूर गइ हती त्यां नेचर गयुं, ते जेने हाथे व्यु, तेने दुं उलझुं हुं, तेना हाथमाथी बलात्कारें में लीधुं. ते सांज लीने कनकवती विचारवा लागी. कोक प्रयोगें करी निश्चे महारा नारें Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३ए महारुं सर्व वृत्तांत दीतुं वे ॥ यतः ॥ कुरचई कला चांडी, चौरिका क्रिडि तानि च ॥ प्रकटानि तृतीयेऽह्नि, सुबन्नं सुकतानि च ॥१॥ एवं विचारीने बोली, ते नेचर क्या वे ते वेला कुमरनी आझाये मित्रं आप्यु. पडी ते बो ली, सत्य कहो, ए तमने क्याथी जड्युं ? कुमर बोल्या, तमे क्यां पाडयुं ते कहो. एम करतां ते बोली, हे नाथ ! ज्यां.पडयुं ते स्थानक तमे दी होय तो रूटुंबे, अन्यथा कोइ कही देशे तो महारी अग्निमां पेसतां पण गुदि नथी. एम कही माबो करतल गलस्थल दे नीचु जोतीशोकातुर थकी बेठी, कुमर पण कांक हांसीनी वात काढी तेने हसावीने पोताने ठेकाणे गयो. __ वली रात्रे अदृश्य थका आव्या. सखीयोयें कनकवतीने कयुं, हे स्वा मिनी ! वेला जाय . विद्याधर रीश करशे. त्यारें तें लांबो निसासो नां खीने बोली, ढं मंदनाग्यवंत गुं करूं ? विषम कार्य प्रांवी पडयं. जे मा टे ढुं, ज्यारे पिताने घेर हती, त्यारें कुमारीपणे विद्याधरें मने सम दीधा हता जे, महारी आशाविना तहारे नर्तार सेववो नही. अने विमा न नपर बेसीने नित्य रात्रं महारी पासे आवq. त्यार पड़ी माता पिता ना याग्रह थकी तथा महारो पण राग हतो, तेथी हुँ राजकुमरने परणी. महारे तो ए पण प्रमाण दे, ते बेदुने पण ढुं मानुं बु. पण हे सखी ! त्यां जतां मुझने महारा नारें कोक रीतें जाण्यं ने. एवं विद्याध रने सादात् दीगो ले. ढुं विद्याधरने तथा एने सामान्य बुं, तेमाटे कां तो विद्याधर, नरिने मारशे, अथवा विद्याधर मने मारशे. माटे शोक करूं बु. वली हे सखी ! तुं सांत. महारी यौवनावस्था , ते घणा अ पायसहित ने, तथा पितानुं अने सासरानुं कुल घj उत्तम बे, अने लो कतो महा विषम , जेम गमे तेम बोले. ते माटे कार्य गहन ले तेथी आकुली थानं बुं. ते सांजली सखी बोली, हे स्वामिनि ! जो एम जे तो त मे इहांज रहो, ढुं तिहां जावं बुं जो विद्याधर पूबशे तो ढुं कहीश के महारी स्वामिनीने शरीरे शाता नथी. तेवारें कनकवती बोली, एमज करो एम करीने विमान रची आप्युं. ते उपर दासी बेठी. गुणधर्म कुमरे पण एम चिंतव्यु, जे ढुं आज एनुं विद्याधरनु स्वामी पणुं ठालीश, जीवलोकने नाटक जोवानी इला टालीश, एम चिंतवीने अदृश्यपणे विमानमा आरुढ थयो. हवे विद्याधरें जिनेश्वरनुं स्नात्र करवा मांझ्युं, एटले विमानथी उतरीने Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. दासी पण देहेरामा गइ. कुमर पण बानो रही जुए में, एटले एक विद्या धरें दासीने पूब्युं, आज घणी वेला केम लागी ? अने तहारी स्वामिनी क्यां ले ? दासीयें कह्यु के, महारी स्वामिनीना शरीरें शाता नथी माटे म ने मोकली. ते सांजली विद्याधरेंड्ने कोप उपन्यो, होठ फडफडवा लाग्यो, बीजा विद्याधरोने का, तमे षनप्रनुनु स्नात्र करो, हुँतो ए दा सीना शरीरनी चिकित्सा करीश, एम कहीने तेणें दासीनी वेणी पकडी. एटले कुमरे पण निबिडपणे परिकर बांधीने खड्ग तैयार कयुं, नाटकमां नंगाण पडद्यु, विद्याधरें कह्यु, प्रथम ए दासीना रुधिरें करी ढुं महारो को पामि शमा, पनी जे युक्त हशे ते करीशुं. ते माटे रे दासी ! तुं तहारो इष्ट देव संनार, तहारो मरणसमय . माटे तहारे गमे तेनुं स्मरण कर. दासी बोली, श्री सर्वज्ञ इंइ नरेंड्ने पूजनिक एवा इष्टदेव तो श्री ऋषन प्रनु , तेनुं दुं स्मरण करुं बु. तेनुं या अटवीमां में शरण कयुं, शरण प ॥ श्री झषनप्रनु , कोइ बीजो नथी. पण ढुं एम कर्दू के, शूर, धी र, महा नदार, वैरीरूप हाथीनी घटाने विषे सिंह सरखो, महा गुणवंत एवो ते आर्यपुत्र एक मुझने शरण हो. विद्याधर बोल्यो, रे अधर्म ! ते था र्यपुत्र कोण ले ? ते वखते कुमरें विचास्यं, के एवं रूडं पूज्यं,महारा चित्त मां पण ए संदेह हतो. हवे दासी बोली हे विद्याधर ! जेने अमारी स्वा मिनी स्वयंवरा मंझपमां वरी, जेने दीवां थकां पाप न रहे, ते. गुणध म कुमरनुं में शरणुं कस्युं. ते सांनली जेवामां ते विद्याधर तरवार घा डीने मारवा जाय जे, एवामां उघाडी तरवार करीने कुमर बोल्यो, सान ल रे अधम ! तुं था अबलाने केम मारे ले ? ॥ यतः ॥ विश्वस्ते आकुले दीने, बालवृक्षाबलाजने ॥ प्रहरंति च ये पापा, ध्रुवं ते यांति उगर्तिम् ॥ ॥ १ ॥ अरे तुं स्त्रीहत्यानुं पाप करवा उजमाल थयो ? तेनुं प्रायश्चि त्त देवाने ढुं तहारो गुरु थश्श. त्यारे विद्याधर हसीने बोल्यो, तुऊने त्यां जश्ने महारे मारवो हतो. ते तुं तो इहांज मरवा श्राव्यो के. एम कहीने यु६ कयुं, कोइ बल पामीने गुणधर्म कुमरें महा प्रयत्न करी विद्याधरनुं मस्तक छेदन कयुं, सैन्य पण स्वामि विनानुं थयुं थकुं पोताने स्थानके गयुं. ते जो पहेली त्रण स्त्रीयो बोली, हे स्वाधीन् ! अमने जेम गुरु प्रस न थश्ने मूकावे, तेम विद्याधरथी तमे मूकावी. कुमर बोल्या, तमे कोनी Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३१ पुत्रीयो बो? त्यारे एक बोली, शतपुर नयरनो धणी दुलन राजा तेनी ढुं कमलवती नामें पुत्री बुं, एना नये करी में विवाह न करो, जे कारण माटे महारा महोल थकी एवं अपहरी, पड़ी जीन कापवा मांमी. मने कह्यु, महारी आझा थाय त्यारे तहारे परणवू, महारी आझायें तहारे निरंतर विमान थशे. तेनी नपर बेसीने रात्रे महारी समीपे अवश्य प्राव . एम करेतो हूँ तुमने जीवती मूकुं, मने सम दीधा, में कबूल कयं, ए ऐ मने नाटक प्रमुख कला शीखवी, ए रीतें बीजी त्रणे जणीने एवं ने गी करी, ते माटे तमे एने मारतां थकां सर्वने सुख कयं. एम सांजलीने कुमरे सदुने पोत पोताने घेर मोकली, कुमर पण दासीनी साथें घेर था व्या. कनकवती देखीने दासीने पूबती हवी के, अरे! आज महारे नारें मुष्ट विद्याधरने मास्यो ? दासीये पण कुमरीने सर्व वृत्तांत कह्यु, पोताना जरिनुं पौरुष सांजलीने कुमरी घणो हर्ष पामी, गुणधर्म कुमर पण स्त्री साथे वातो करीने शेष रात्रे त्यां स्नेहथकी सूतो. हवे ते विद्याधरना नायें कषायना वशथी कुमरने नपाडीने समुश्मा नांख्यो. कनकवतीने पण समुश्मां क्यांक जूदी नांखी. एवामां पाटीयुं हाथ आव्युं तेथी सात रात्री दरियामांरहीने कुमर कांगो पाम्यो, त्यां ए क तापस दीठो, ते तापस साथें अाश्रमे पहोंच्यो, त्यां पोतानी स्त्री कन कवतीने दीठी, कुमर पण कुलपतीने प्रणाम करीने बेठो. कुलपति बोल्यो, रे न ! आ तहारी स्त्री ? कुमरे हा कही. कुलपति बोल्यो, ए आज थी त्रीजा दिवसें वृदसाथे गले. फांसो घालीने मरती हती ते में दीठी, त्यारें एनुं पास दीने, बलात्कारें में राखी. ज्ञानब. करीने तहारं आ व में एने कह्यु. पबी केलि प्रमुख वृदना फल्ने प्रावृत्ति करीने रात्रे ए कांते स्त्री नार सूतां ले. त्यां वली पण ते विद्याधरें नपाडीने बेहुने समु इमां नांख्या, वली बेदु जणने पाटीयां मल्या, तेथी कांठो पामी नाविनावें फरी मव्यां. कुमर बोल्यो, अहो ! विधातानो विलास जु! अथवा विष यासक्त चित्तवालाने शीशी आपदा न आवे ? • एवामांज वैराग्ये समस्त परिग्रहनो त्याग करी ममत्व बांझीने महास त्वना धणी एक मुनिराज त्यां तपस्या करे , तेमने जो कनकवती बोली, हे नाथ ! पुरुषोत्तमपणुं पामीने खेद शो करो बो ? हजुं मनुष्य । Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. नवनुं फलतो पाम्या नथी ! दीन जननो उधार नथी कयो, एकत्री पृथ्वी नथी करी, विषय नथी जोगव्या, एवा कनकवतीना वचनथी रात्री जा गता रह्या. एवामां ते विद्याधर याव्यो, तेने कुमरें,जीतीने जीवतो मूक्यो. हवे कुलपतीनी 'आझा मागीने कोश्क पाटणने विपे गया, ते पाटण ने बहार गुणरत्न महोदधि नामें प्राचार्यने दीठा, तेमना चरणने स्त्रीन तारें वंदना करी, पडी मोहनिश निवारनारी पुण्यवृदनी शीचनारी ए वी धर्मदेशना सांजलीने प्राचार्यने वंदना करी, वीजे स्थानकें गया. कुमर वैराग्यवंत थको स्त्रीने कहेवा लाग्यो, रे स्त्री! आपणे सद्गुरु पासे दी का लेये. त्यारे ते स्त्री विपयथी अणविरमी थकी बोली, यापणुं नवं यौवन डे, ते माटे व्रत केम लश्यें ? त्यारे कुमर बोल्यो, वृद्धावस्थायें प ण केश्कने विषयनी हा देखीयें जीयें ॥ यतः॥ अंगं गलितं पलितं मुंमं, दशन विहीनं जातं तुमम् ॥ ततो याति गृहीत्वा दम, तदपि न मुंचत्या शापिमम् ॥ १॥ तेम केश्कने यौवन अवस्थाये पण वैराग्य देखीयें बी यें, त्यारे स्त्री बोली, कोक ज्ञानीने पूजीने जेम युक्त हो तेम करी गुं. गुणधर्म ते वचन अंगिकार करी स्त्रीने त्यांज बेसाडी आहार करवा माटे पोते नगरमां कांक जोजन लेवा गयो. __एवा अवसरने विपे गुणचं नामे राजकुमर वनमां आव्यो, ते त्यां यौवन अवस्थाये स्त्रीने देखीने रागवंत थयो, स्त्रीने पूज्युं, रे स्त्री तुं को ए? इहां एकली शा हेतुयें बेठी बो ? गुंतहारे नार नथी? स्त्रीयें प ण तेने रागी जाण्यो, अने पोतानो नगर ।वरक्त जाण्यो, माटे पोतानुं सघलुं वृत्तांत तेने कह्यु. ते पण प्रार्थना करतो जाणी कुमरी तेनी नपर अनुरागिणी थश्ने बोली के, महारा नारने वंचीने हुँ तमारे घेर आ वीश. ते सांजलीने गुणचंद कुमार पोताने घेर गयो. __हवे गुणधर्म कुमरे पण नगरमां जश् जूवटुं रमीने कांक इव्य उपा यु, पडी मामा करावीने नद्यानमां आव्या, प्रिया साथें नोजन कयं. प ण स्त्री शून्यचित्तवती, धरती खणती दीती. कुमरे पण तेनो नाव जाण्यो के, ए अनासक्त यश्. एम जाणीने कुमर विलखो थका वनमां नमवा लाग्यो. एवामां एक पुरुषे पूब्युं तमे इहां राज कुमरने दीठो ? कुमरें पूब्युं. राजकुमर ते कोण ? ते बोल्यो. गुणचं नामे राजानो कुमर, इहां आ Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. ३८३ व्यो हतो, ते कोई स्त्री सायें वातो करवा तत्पर थयो, अने मने बीजे कामे मोकंल्यो हतो, ते हुं प्राव्यो. माटे पूबुं बुं के, ते स्त्री कुमरने मंदि रे गइ के नयी इ. गुणधर्म कुमर बोल्या, ते त्यां गइ एम कहीने कुमरें ते पुरुषने विसर्ज्यो. कुमर चिंतववा लाग्यो, स्त्रीने उपकार करतां खने ते महारुं पराक्रम देखतां थकां पण रही नहि. तथा स्त्री कुलशील मर्यादा पण गणे नही ॥ यतः ॥ रहो न जायते यावत् श्रार्थयिता न च ॥ सतीत्वं तावदेतासां, नारीणां नारदोऽब्रवीत् ॥ १ ॥ त्यार पछी स्त्रीने क डे नगरे मामाने घेर मूकीने कोइ टूकडा मुनिराज मव्या. तेमनी पासे कुमरें, चारित्र अंगिकार करयुं. ते उग्र तपस्या करीने देवलोके गया, त्यांची च्यवी मनुष्यावतार पामीने मोह जशे. स्त्री पण मामाना घरथकी कोइ कमिपें नीकलीने, कनकवती गुणचंदनी धणियाणी थं. ते गुणचंदनी बी जी स्त्रीयें कनकवतीने फेर दीधुं. त्यां रौड़ध्यानें मरीने चोथी नरके ना रकी 5, त्यांथी नीकलीने घणो काल संसारमां रजनरों. कुमरें यौवना वस्थायें विषय त्याग कस्यो, अने इंडिया जीती ए डक्कर ले ॥ ए कथा श्री शांतिनाथ चरित्रमां बे ॥ १९ ॥ इति श्री सकलसनाना मिनीनालस्थल तिल कायमान पंमितश्री उत्तम विजयगलिशिष्यपंमितपद्मविजयग शिविरचिते बाला बोधे श्री गौतमकुलके एकोनविंशतिगाथायां पंचोदाहरणानि समाप्तानि. हवें वीराम ! गाया कहे . तेने पूर्वी गाथा सायें ए संबंध बे, जे पूर्व गाथामां चार वानी डुक्कर देखाड्यां, ते डक्कर जे करे ते धर्म पामे. तेमाटे जीवित शाश्वतुं देखाडी ने धर्मोपदेश करे बे. तथा ग्रंथने अंते मंगल जो इये, त्यां धर्म ते उत्कृष्ट मंगल बे.." धम्मो मंगलमुक्कि " ॥ इति दशवैका लिक सूत्र वचनात् ॥ माटे धर्मरूप मंगल देखाडे बे. ए संबंधें खावी जे वीशमी गाथा ते कहे बे. सासयं जीवियमादु लोए, धम्मं चरे सा हु जिणोवइ ॥ धम्मो य ताणं सरणं गई य, धम्मं निसेवित्तु सुहं जहंति ॥ २० ॥ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. अर्थः-" असासयं जीवियमादु लोए" आ संसाररूप (लोए के० ) लोकने विषे (जीवियं के ) जीवितव्य जे जे ते श्रीजिनेश्वर महाराजे (असासयं के० ) अशाश्वतुं (यादु के०) कह्यु बे. एटले लोकने विषे आन अशाश्वत दे. एम परमेश्वरें कह्यु डे ॥ इति नावः ॥ इहां जीवनां आउखां बे प्रकारें बे. एक सोपक्रमी जे. अने बीजा निरुपक्रमी जे. तेमां देवता, नारकी, युगलियां, त्रेश उत्तमपुरुष तथा चरम शरीरी जे जीवो ले ते सर्वनां आउखां यद्यपि निरुपक्रमी . तो पण ते अशाश्वत जे ॥ यतः ॥ जय तालव मसुरा, विमाणवासीवि परिवडंति सुरा ॥ चिंतिंऊं ते सेसं, संसारे सासयं कयरं ॥ १ ॥ इति उपदेशमालायाम् ॥ वली निरुपक मी आनखावाला एवा युगलिया पण अपर्याप्ति अवस्थायें त्रण पल्योप मर्नु अपवर्तन करीने अंतर्मुहूर्तमां मरण पामे. तथा सोपक्रमी आनखा वालानुं पानखु सात प्रकारे घटे २ ॥ यतः ॥अनवसानिमित्ते, याहार वेषणापराधाए ॥ फासे आणापासू, सत्तविहं फिनए थान ॥ १ ॥ इति यावश्यकनियुक्तौ ॥ तेमां अध्यवसाये करी जे यान घटे, तेना प्रकार कहे जेः-कोइक गामने विपे तस्करें गायो लीधी, तेनी वाहार चढीने लोको गायो मूकावीने पाबा वल्या, तेमां एक पुरुष रूपवंत युवान , तेने पाणीनी तृषा लागी. तेणे कोक स्त्री पासे पाणी माग्युं, ते स्त्रीयें पाणी लावीने पावा मांमधु, त्यारे ते स्त्री पेला पुरुषy रूप देखी व्यामोह पामी. हवे पाणीपीने पेट नया पली ते पुरुष होकारो कयां करे तो पण ते स्त्री पाणी रेडती रहे नही. त्यारे ते पुरुष तो एमज मूकावीने चाल्यो गयोः स्त्री पाणी जूमीयें रेडती अनुक्रमें पुरुष सामी दृष्टि राखती हवी ते पुरुष बागल जातां जातां जेटले अदृश्य थयो. एटले ते स्त्री तेने न देखवाथी मरण पामी. ए रागना अ ध्यवसायें करी आयु घटे ते उपर दृष्टांत कह्यो. इति राग उपर दृष्टांत. हवे स्नेहे करीने आउ घटें, तेनो प्रकार, कहे जेः-कोइ नगरने वि पे स्त्री नारने परस्परे प्रीति घणीने, एकदा पुरुष व्यापारे गयो, त्यांथी पाबो वट्यो, ज्यारें पोतानुं गाम एक मजल बेटे रह्यु, त्यारे तेना मित्र विचाओँ के, जोश्ये ! तो खरा के, ए वेदुने मांहो मांही अत्यंत प्रीति , ते साधु के, जूतुं ! एम चिंतवीने तेना मित्र परीक्षा करवा माटे तेनी Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कवासहित. ३न्य स्त्री पासे आवीने कयुं के, तमारो न र मरण पाम्यो. ते सांजलीने स्त्री बोली, झुं साचुं ! साचुं ! ! साचुं !!! एम प्रणवार कहेतांज ते स्त्रीनां प्राण नीकली गया, वली ते वात तेना जरिने कही, एटले तेणे पण त्रणवार पूज्युं के, गुं साचुं! साचुं ! ! साचुं ! ! ! एम कहेतांज ते मरण पाम्यो. ए स्नेहें करी आनखं घटे ते नपर दृष्टांत कह्यो. हवे नयें करी आन घटे, तेनो प्रकार कहे . देवकीजी कोक स्त्री पुत्रने धवरावती देखीने अधैर्य करवा लागी. कृष्णे पूज्यु, अधैर्य केम करो बो ? ते बोली, हे पुत्र ! कोई पुत्र में धवराव्यो नही. कृष्ण बोल्या, अधैर्य न करो, ढुं तमने देवताने प्रनावे पुत्रसंपत्ति करूं . कृष्णे देवता आराध्यो. तेणे कयुं. दिव्य पुरुष पुत्र थशे. अनुक्रमें पुत्र आव्यो, तेनुं गजसुकुमार एवं नाम दीधुं, ते सर्व यादवने घणो वहालो थको सुखें सुखें रमे डे. अनुक्रमें सोमिल नामा ब्राह्मणनी दीकरी अत्यंत रूपवंती जाणीने ते ने परणावी, पनी गजसुकुमारे पण श्रीनेमिनाथस्वामी पासे धर्म सांजली प्रव्रज्या लेइ प्रनु साथै विहार कस्यो. तेथी ब्राह्मणने पण अप्रीति उपनी. अन्यदा वली जगवंत साथें हारिका नगरीयें आव्या, स्मशानने विषे कास्सग्गे रह्या, तेमने सोमिल ब्राह्मणें दीवा त्यारें कषायमां आवीने मस्तके माटीनी पाल बांधी, तेमां धगधगता अंगारा नखा, ते उपसर्ग स म्यक् गतें अहियासतां केवलझान उपन्यु, अंतगड केवली थया, कमें था वी श्रीनेमिनाथ नगवानने वांद्या, शेष साधुने पण वंदना करीने पूब्युं के, हे जगवन् ! गजकुमार क्यां गया? प्रनु बोल्या मसाणमां कास्सग्गे रह्यो .श्रीकृष्ण त्यां जोवा गया तो गजसुकुमारने काल करेला दीता. त्यारे को पमा बावीप्रनुने पूब्युं हे स्वामिन् ! जाने कोणे मास्यो ? नगवंत बोल्या, तमने नगरमा पेसतां देखी जेनुं मस्तक फूटशे, तेणें मास्यो. हवे सोमिल पण बहार जवा माटे नीकल्यो एवामां वासुदेवने सामा धावता दीठा, त्यारे नयें करीने मस्तकना सो खंम थया. ए जयथीयाउबुं त्रूटे ते उपर दृष्टांत कह्यो. हवे निमित्तें न त्रूटे, तेनो प्रकार कहे जे. • निमित्त ते दम, कोरडा, शस्त्र, रङ्गु, अग्नि, पाणी, विष, सर्प, शीत, उ ष्ण, अरति, जय, दुधा, पिपासा, रोग, वडीनीतिनो रोध अने अजीर्ण प्र मुखना निमिने आन त्रूटे. घणो थाहार करे, अथवा मूलगो आहार Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. न करे, तो बानखं घटे. मस्तकं अने नेत्र प्रमुखनी अत्यंत वेदनायें बाउ खं घटे. वली पराघातें आन घटे. पराघात ते वीजली पडवाथी तथा खाडा प्रमुखमां पडवाथी आउखु घटे, ते पराघात कहियें. तथा फरसें आ नखं घटे एटले त्वचामा सर्पनुं विष फरसे तेनाथी मरण पामे. अथवा ब्र ह्मदत्त चक्रियें काल कस्यो त्यारे तेनो पुत्र, चक्रवर्तिनी स्त्रीरत्नने कहेवा लाग्यो के, तुं महारी साथें जोग नोगव्य. ते बोली, तुं महारो फरस ख मी शके नही. एम कहे थके पण पुत्र माने नही. त्यारें एक घोडो मंगावी ने तेनी नपर मुखथी मामीने केहेड सूधी हाथ फेरव्यो, एटले घोडो फरी ने मरण पाम्यो. ते डोकरायें दीठो तोपण माने नहि, त्यारें लोढानो पुरु ष करावीने आलिंगन दीधुं. एटले लोढानो पुरुष गली गयो. ते देखीने मा न्यु. एम फरसथी आनग्धू घटे. तथा श्वासोवासनो निरोध करवाथी पण आनखं घटे . एम प्रथम पदे पांच उदाहरण थयां. हवे बीजा पदें ते आन अशाश्वतुं ने माटे " धम्म चरे सादु जिणो व” ( सादुजियोव के०) साधु जननो उपदेश्यो जे (धम्मं के०) धर्म तेने (चरे के ) आचरजे. ते उपर चिलातिपुत्रनी कथा कहे . विद्युन्माति नामें एक ब्राह्मण ते पंमित मानी, जिनशासननी हेलना नो करनार. ते एम कहेतो हवो के, जे मुझने जीते, तेनो हुँ शिष्य था 5. एकदा श्राचार्य तेने सनामां जीत्यो. ते माटे बलात्कारें शिष्य .कयो. पबी देवतायें समजाव्यो, स्थिर कस्यो, पण उगंन्हा मूके नहि, तेनी स्त्रीय स्नेहें करी कामण कडूं, तेथी मरण पामीने देवलोके गयो. नार्या पण ते निदें दीदा ले अण आलो काल करीने देवलोके गइ. ते ब्राह्मण च्यवीने राजगृह नगरने विषे धननामा सार्थवाह तेने चिलातिका नामें दासी तेनी कूखे पुत्र पणे उपन्यो. तेनुं चिलातिपुत्र नाम दीg.अने तेनी स्त्री पण देवलोकथी च्यवीने तेज शेनां पांच पुत्र नपरें सुसमानामे पुत्री था. चिलातिपुत्र तेने रमाडे,रमाडतां अपलक्षण करे, ते जाणीने शेनें घरमांथी का ढीमूक्यो.ते फरतो फरतो सिंहगुफा नामे चोरनी पाले गयो. ते पन्नीपतिने घणोवहालो थयो. अनुक्रमें पल्लीपति मरतां थकां एने पत्नीपतिपणे थाप्यो. ___ एकदा तेणें चोरने कयुं के, राजगृह नगरे धनसार्थवाहने घेर सुसमा नामें पुत्री , ते आवेतो महारी अने जे धन आवे ते सर्व तमारं. एम ठे Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कम्पासहित. ३८७ राव करी धनसार्थवाहने घेर खावी अवस्वापिनी निश देइ धन जूंटी सुसमा पुत्री लेइ वल्या. ते वेला धनसार्थवाह नागे. पी धनसार्थवाहें कोटवालने कयुं, महारी पुत्री पावो, धन यावे ते तमे लेजो. त्यारें को टवाल, धनसार्थवाह तथा पांच पुत्र ए सर्व चोरनीतूंते थया. अनुक्रमें लोक धन लेने पाठा वल्या. शेठ पांच पुत्र सहित चिला तिपुत्रनी पूठे गया. हवे चिलतिपुत्रपण, सुसमानो नार लेइ दोडी शके नहि, शेठ पण इकडा खावी पहोच्या. त्यारें चोर पण सुसमा पुत्रीनुं मस्तक लेइ धड पडतुं मूकीने नागे. ते जो शेतें विचायुं के, जेनामाटे केड करता हता ते तो मरण पामी ! हवे जवानुं शुं प्रयोजन बे ? एवामां ते अटवीमां शेठ प्रमु खने घणी नूख लागी, त्यारें शेठें पुत्रोने कह्युं तमे मने मारीने नक्षण क रो, घने कुशल खेमें नगर सूधी पहोचो. पण ते वातं पुत्र माने नही. त्यारें महोटो पुत्र बोल्यो, मने मारो. एम यावत् लघु पुत्रे कयुं, त्यारें ते नो पिता बोल्यो, थापणे कोइने जीवता चुं करवा मारीयें ? या सुसमा ने चंमालें मारी बे, तेनुं नक्षण करीने कुधा शांत करियें. पढी तेनुं मांस खाधुं . एम साधु पण कारणे मात्र एक संयम निर्वाह करवा माटे पुत्रीना मांसनी उपमायें आहार करे बे. परंतु लोलुपिपणें नहि. ते शेठ पण न गरे पहोच्या. सुखी यया. एम साधु पण मोसुखना जोगी थाय. · ते चितिपुत्र पण हाथमां मस्तक लेइने जतां दिशामूढ थयो. एवा समयने विषे तापना जेता एक साधु दीता. देखीने कहेवा लाग्यो के, संक्षेपें धर्म कहो. नहिंतो या रीतें तमारुं पण मस्तक बेदीश मुनि बो ल्या, उपशम, संवर ने विवेक ए त्रण पद सांजलीने चिलातिपुत्र एकां ते चिंता लाग्यो जे, क्रोधादिकनो उपशम करवो, अने हुंतो क्रोधें न यो बुं ! वली विवेक ते तो धन सननो त्याग करवो, अने महारे तो रागथी सुसमानुं मस्तक हाथमां बे. त्याऐं खड्ग तथा मस्तक मूकी दी धुं. तथा संवर ते पांच इंडियनो संवर ने नोइंडिय तें मननो संवर, ते प महारामां एके नथी. एम विचारी संवर करी त्यांज कावस्सग्गे उनो रह्यो. हवे लोहीयें खरडी काया हती तेनी गंधयों की डियोयें खावी खावा मांमी. तेणें चालणी जेवुं शरीर कखुं. पगथी कीडी पेसे ते मस्तकथी नीकले. एवो थयो तो पण ध्यानथी न चव्यो. एवो उपसर्ग व्यढीदिवस Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३नत जैनकथा रत्नकोष नाग हो. खम्यो. एवा उक्कर ध्यान करनारंने वंदना करुं . पडी ते काल करीने देवलोके गयो ॥यतः॥ जो तिहिंपएदेसम्म, समनिग संजमं समारूढो॥ नवसमविवेगसंवर, चिलाइपुत्तं नमसामि ॥१॥इत्यादि आवश्यकनियुक्तौ॥ हवे त्रीजा पदनने अर्थ कहे जे. “धम्मो य ताणं सरणं गश्य " (ध म्मो य के० ) धर्म तेज (ताणं के० ) त्राण बे. एटले अनर्थनो घातक जे. वली कर्मरूप उपव्यथी बीहीता एवा प्राणीने (सरणं के०) शरण करवा योग्य . वली दुःखीया प्राणीने सुख आपवाने अर्थे (गश्य के०) रूडी गतिनो आपनारो के. एमां धर्म त्राण ने तेनी उपर कमलशेठनी कथा एज पुस्तकना चोथा नागमां पृष्ठ १४५ मध्ये पा , त्यांथी वांचवी. तथा कर्म नपश्वथी बीहीना एवां जे प्राणी तेने धर्म शरण थाय जे. ते उपर महानंद कुमरनी कथा एज पुस्तकना चोथा नागमां पृष्ठ २५१ मध्ये सविस्तर उपाइ ग डे त्यांथी वांचवी. आबे कथा विषे या ग्रंथमां पण लखेलूं हतुं जे ए श्रारूप्रतिक्रमणा सूत्रनी वृत्तिमांथी लीधी . हवे जे सुःखीयो जीव होय ते सुरखने अर्थे धर्मने आदरे, आश्रये तो रू डीगती पामे. ते गति कहीये. तेनी नपर वसुदेवजीनो जीव पाबले नवे नंदि षेण नामें साधु हतो तेनो दृष्टांत कहेवो. ते कथा एज पुस्तकना बीजाना गमां श्रीनेमीश्वर नगवानना रासमां पृष्ठ ११३ मां पाई गई . हके चोथा पदनो अर्थ कहे :-" धम्मं निसेवित्तु सुहं लहंति”.जे प्रा पी (धम्मं के०) धर्मने (निसेवित्तु के०) सेवे , ते प्राणी.( सुहं के० ) अव्याबाध सुख अर्थात् शाश्वतां सुख अथवा.गुन मांगलिकने (लहंति के०) पामे डे. ते उपर लक्ष्मीधर शेठनो दृष्टांत कहे . या नरतत्रने विषे लक्ष्मीपुर नामा नगरमां लक्ष्मीविलास नामें रा जा राज्य करे . ते नगरमां जिनमार्गमां रक्त, महासत्त्ववंत, एवो ल कमीधर नामें शेठ वसे बे. तेने कमलमुखी अने कमलदलनयना एवी क मला नामें नार्या . एक दिवस शेठे रात्रीने समये सूतां थकां उज्वल वस्त्र आनूषणवंती एक स्त्री दीती. त्यारें शेखें पूब्युं, हे नई ! तुं कोण ने ? ते बोली, हुँ तहारा परनी लक्ष्मी बु. शेव बोल्या, केम यावी ? ते बोली, हुं हवे तहारा घरमांथी जवानी , माटे तमने कहेवा अावी . त्यारें महा सत्त्वनो धणी ते शेत पण तेने पाटु प्रहार देश्ने बोल्यो, जो पड़ी Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३नए गौतमकुलक कथासहित. तुमने जवु दे तो हमणांज जा ॥ यतः॥.पुरिसा तेञ्चिय वुचंति, जे विर ते जणे न रऊंति ॥ तं मिवि जे अणुरायं, कुणंति तेसिं फुससुलिहं ॥१॥ त्यारें लक्ष्मी अन्य स्थानकें गइ. प्रातःकाले शेत उल्या. नित्य करणी करीने पली व्यापारने अर्थे धण, कण, कप्पड, चोपड, सुवर्ण प्रमुख कांश घरमां न दी. त्यारें चिंतववा लाग्यो के, ए बापड़ी रांक ग तो झुं थयुं, महारुं सत्व तो नथी गो, ते माटे उद्यम करूं. एम विचारीने पाडोशी पासेथी कांक इव्य उजी, लेइ तेनुं तेल मीतुं प्रमुख लइ कोथलो जरीने नगरमां पाडे पाडे जमवा लाग्यो. ते क्रय विक्रय करतां पाडोशीनुं इव्य जे नबीनू लीधुं हतुं ते तेने पा, पी, घेर आवी देवगुरुनी पूजा करी अतिथिने पण कांश्क आप्युं, एम निरंतर करतां जे कां लान आवे तेमाथी आ जीविका चलावे. पण घणो लान न थयो. तेवारें पोटलो लेइने पासेनां दकडा गामोमां जश् माल वेचे, एम कालनिर्गमन करे ले. हवे लक्मीपण कृपणने घेर गइ, त्यां ते कृपण पोते पण न खाय, अ ने परने पण न आपे, खाड खोदीने तेमां इव्य घाली राखे, तेथी लक्ष्मी याकलं दुःख नोगववा लागी त्यारे नवेग पामीने चिंतववा लागी के. अ हो ! में अयुक्त कयुं ! जे कारण माटे ते महानुभावने में मूक्यो ! हवे तेने घेर पाडी जावं, पण ते मुझने घरमा पेसवा देशे नही, ते माटे को श्क नपाय करीने आगलथी तेने प्रसन्न करुं अने पढ़ी जालं. ' हवे शेत गामडेथी पाबा वलीने वडना काड हेठल विसामो सेवा प्रा वतां एक स्त्री संपूर्ण कलश हाथमां लेने वड हेग्ल उनी रही, तेने शेवें दीती. त्यारे विचाओँ के, ए कोश्क परस्त्री उनी जे. एम चिंतवीने वडथी वेगलो चाट्यो, वली बीजे दिवसे पण सामी यावी, शेठने बोलाव्यो, त्यारें शेत पण उत्तर दीधा विना चाव्यो गयो. त्रीजे दिवसे शेठना बे प गनी वच्चे वलगीने रही, त्यारें शेठ बोल्या, तुं कोण ? ते बोली, तहारा घरनी लक्ष्मी डं, हवे हुँ तहारे घेर आवीश. शेठ बोल्या, तहाराथी सयुं ! तहारामां शो ढंग ? माटे महारा पग मूकीने वेगली जा. लक्ष्मी बोली, महारा नपर प्रसन्न थान, अने घरमा आववानी हा पाडो, तमे महोटा बो तेथी महारी प्रार्थना नंग करवी घटे नही, एम घणो आग्रह करे थ के शेत बोल्या, तुं चपल डे माटे हुँ जाणुं हुं के, तहाराथी एक ठेकाणे Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ए जैनकथा रत्नकोष नाग हो. रहेवाशे नही, ते माटे ज्यारें तने जवानी श्वा होय, त्यारें मने एक वर्ष पहेलां कहेजे तो हुँ तुमने महारा घरमां पेसवा देवं ? लक्ष्मीये ते वचन मान्यु. शेठ घेर अाव्या, शेवगणीये पण घणो आदर कस्यो, घरमां पण जुएतो नाम नाम धनना ढगला पड्या , ते ऽव्ये करीने धण धरम कप्पड प्रमुख घरमां लावी. शेत पण यथेबायें लक्ष्मी जोगववा लाग्यो, दीन अनाथने दान दीयें, एम लक्ष्मीनुं फल लेतां केटलाएक दिवस वही गया. ___ एकदा रात्रे लकमी आवीने शेठने कहेवा लागी. तने मूकीने हवे हुँ एक वर्ष पली बीजे ठेकाणे जश्श. ए वात सांजलीने शेठे प्रातःकाले सूत्र धार शिलावटने तेडी तेने घणुं इव्य आपीने एक जिनमंदिर कराववा मां मथु, साधुने वस्त्र पात्र वसती प्रमुख देवा मांझी, सिद्धांत लखावीने सा धुने आपया तथा पुस्तकोना नंमारा करवा मांमया, जीवोने अजयदान देवराव्या, कुटुंब मित्र बंदीवान दीन दुःखी जनोना नदार कस्या, एम सर्व इव्य पापीने एक कबोटी वाली, तृणांनो संथारो करीने, शेठ सूता. वली लक्ष्मी यावी रोतीथकी कहेवा लागी, हे शेठ ! देव गुरु धर्मने कार्य लक्ष्मी वावरीने तें मने बली, तो हवे हुँ नागी थकी क्यां जालं? ते माटे हवे बीजे ठेकाणे नही जनं, दासीनी पेठे आलोटती तहारेज घेर रहीश. शे उ बोल्या, जेम तने गमे तेम कर, किं बहुना ! वली पण शेठने घेर पूर्व नी पे- लक्ष्मी विस्तार पामी. त्यार पनी लक्ष्मीधर शेत पण देव, गुरु तथा धर्मकार्यने विषे घणाकाल सूधी लक्ष्मी वावरीने स्वर्ग गया. घंनुक्रमें मोद जशे. शाश्वता काल सुखीया थशे. ते माटे धर्मधीज शाश्वतां सुख उपजे. हवे सिमनुं स्वरूप ग्रंथांतर थकी कांइक लखिये बैयें आ नवमां समस्त कर्मनो दय करी तथा यात्मप्रदेशनो घन करी चरम शरीरनी जेटली अ वगाहना , तेमां त्रीजो जाग घटाडीने एक समयमां रुजु गतियें था घापाबा आकाश प्रदेशने अण फरसतां लोकना अपनागे जा रह्या. जेने रोग नथी, शोक नथी, जन्म जरा अने मरण नथी. अव्यय, अ चिंत्य, अक्ष्य थया. अशरीरी, अणाहारी, अविनाशी, शाश्वत काल सुखी थया, सादि अनंतनांगें स्नि थया. ज्यां एक सिम नगवान , त्यां अनं ता सिह रह्या , तेथी देशे प्रदेशे फरशीत असंख्यातगुणाले, पण को -- कोश्ने नीड न करे, पोत पोतानी सत्तामा रहे, जे माटे सर्व सिह नगवा Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतमकुलक कथासहित. 31 नवव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल अने स्वनाववंत जे. केवलज्ञान केवल दर्शनना धणी एक समयमा लोकालोकना अतीत अनागत अने वर्तमान कालना नाव सर्व उत्पाद व्यय अने ध्रुव पणे जाणे , पण कोई परनावमा रा गहषे परिणमता नथी. एटलाज माटेअक्रोधी, अमानी, अमायी.अलोनी, अरागी, अशेषी, अक्लेशी,अवेदी, अयोगी, निईही, निर्लेपी, अवर्णे, अगंधे, अरसे अने अफासे एवां विरुदधारक कहियें. वली नहाना नथी, महो टा नथी, वृत्त नथी, व्यत्र नथी, चौरस नथी, केवल ज्योतिमय स्वसत्ता ना जोगी, परजावना अनोगी, स्वनावना कर्त्ता, परजावना अकर्ता, स्वना वरमणीय, कोश्ने कांश थापे नहि, लीये नही, कोश्ने सुख फुःख करे नही, अव्याबाध सुखना धणी एवा सिह परमात्मा ते जिन सिक्षादिक पन्नर नेदें ले. जेने आठ कर्मना क्यथी पाठ गुण प्रकट थया ने. अथवो अस्त कर्मना अनावें विशेषथी एकत्रीश गुण प्रकट थया ते या प्रमाणेः झानावरणीय कर्म गये पांच गुण प्रगट थया, दर्शनावरणीय कर्म गये नव गुण प्रगट थया, वेदनीय कर्म गये बे गुण प्रगट थया,मोहनीय कर्म गये बे गुण प्रगट थया, थानखा कर्म गये चार गुण प्रगट थया, नामक में गये बे गुण प्रगट थया, गोत्रकर्म गये बे गुण थया, अंतराय कर्म गये पांच गुण थया, एम एकत्रीश गुण कहेवा // तथाचोक्तं // खीण मश्ना गावरणे 1 खीणसुयनाणावरणे 2 खीणहीनाणावरणे 3 खीणमणपऊ वनालावरणे 4 खीगकेवलनाणावरणे 5 एवं खीण चरकुदंसणावरणे / खीणनिहे 5 एवं 14 खीरासायवियणिले एवं 16 खीण दंसण मोह मिले, खीण चरित्त मोहणिजे, एवं 17 खीण नरगानए इत्यादि / एवं 22 खीण सुनणाम खीण असुनणाम, एवं 25 खीण उच्चगोत्ते, खीणनीचगोत्ते एवं 26 खीरा दाणांतराइए, 5 एवं 31 गुण जावा. वली आवश्यक नियूक्तियें बीजी रीते सिपना एकत्रीश गुण कह्या बे. पांच वर्णने अनावे पांच गुण, बे गंधने अनावे बे गुण, एवं 7 पांच रसने अनावे पांच गुण, एवं 12 आठ फरसने अनावे आठगुण, एवं 20 पांच संस्थानने अनावे पांच गुण, एवं २५त्रण वेदनें अनावे त्रण गुण, एवं 27 असंगीपणुं 1 अशरीरीपणुं 2 अरूपीपषु एवं 3 एवं 31 गुण थया. इत्या दिक सिम स्वरूप मुखथकी कोण कही शके ? यद्यपि केवलज्ञानी केवल Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 जैनकथा रत्नकोष नाग हो. झाने करी सिमनुं स्वरूप जाणे जे, तो पण संसारमा नपमा विना कही शके नही. तेमाटे धर्मजे नावधर्म तेने सेवन करीने एवं सिम स्वरूप पामे, ॥अथ प्रशस्तिः // ॥सूरिविजयदेवांख्यं, स्तपागनाधिनायकः // विख्यातस्त्रिजगत्यासीत्, वि यया गुरुसन्निनः // // तस्य पट्टोदयाझै श्री,-विजयात् सिंहसूरिराट् // आदित्य इव तेजस्वी, सिंहवच्च पराक्रमी // 5 // सत्यादिविजयस्तस्यां,-ते वासी सत्यनापकः // क्रियोवारः कतो येन, प्राप्यानुझां गुरोरपि // 3 // विनयस्तस्य कर्पूर,-विजयः सात्विकः सुधीः // कीर्त्तिः कर्पूरवद्यस्य, प्राप्ता सर्वत्र विश्रुता // 4 // मादिगुणसंदर्न,-हमा विजय इत्यनूत् // तस्य शि प्यो विनीतात्मा, शिष्यानेकसमन्वितः // 5 // शब्दशास्त्रादिशास्त्राणां, वेत्ता शिष्यगणान्वितः // जिनादिविनयाह्वान,-स्तस्यासीबिष्यरूपनाक् // 6 // कर्मप्रकतिप्रनृति,-शास्त्रतत्त्वविचार वित् // उत्तमाधिजयस्तस्य, शिष्योऽनू भूरिशिष्यकः // 7 // तस्य पादयुगांनोज, मुंगतुल्येन चाणुना // पद्मविजयशि व्येण, स्वपरानुग्रहाय वै // 7 // रागवैदौ तथा नाग, चंशविति (1744) च वत्सरे // वसंतपंचमी घस्ने, विक्रमात् बुधवासरे // / // गौतमं कुलकं ना म, प्रोक्तं श्री गौतमर्षिणा॥मया बालावबोधोऽयं, कृतस्तस्याल्पबुदिना॥१०॥ (त्रिनिर्विशेषकम्) यत् किंचितिथं प्रोक्तं, मतिमांद्यादजानता // तत्सर्वधी धनैः शोध्यं, विधाय मयि सत्कपाम् // 11 // वीरस्य शासनं यावत्, वर्तते विश्वदीपकम् // तावद्दालावबोधोऽयं, तिष्ठतु,शुश्वासनः // 12 // इतिप्रशस्तिः इति श्रीसकलसनानामिनीनालस्थलतिज़कायमानपंमितनत्तम विजय गणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिविरचिते बालावबोधे श्रीगौतमकुलकप्रकरणे विंशतितमगाथायां नवोदाहरणानि समाप्तानि // इति श्रीगौतमकुलक बालावबोधः संपूर्णः // तत्समाप्तावयं जैनकथारत्नकोषस्य षष्ठनागः समाप्तः॥ Page #405 -------------------------------------------------------------------------- _