________________ 32 जैनकथा रत्नकोष नाग हो. झाने करी सिमनुं स्वरूप जाणे जे, तो पण संसारमा नपमा विना कही शके नही. तेमाटे धर्मजे नावधर्म तेने सेवन करीने एवं सिम स्वरूप पामे, ॥अथ प्रशस्तिः // ॥सूरिविजयदेवांख्यं, स्तपागनाधिनायकः // विख्यातस्त्रिजगत्यासीत्, वि यया गुरुसन्निनः // // तस्य पट्टोदयाझै श्री,-विजयात् सिंहसूरिराट् // आदित्य इव तेजस्वी, सिंहवच्च पराक्रमी // 5 // सत्यादिविजयस्तस्यां,-ते वासी सत्यनापकः // क्रियोवारः कतो येन, प्राप्यानुझां गुरोरपि // 3 // विनयस्तस्य कर्पूर,-विजयः सात्विकः सुधीः // कीर्त्तिः कर्पूरवद्यस्य, प्राप्ता सर्वत्र विश्रुता // 4 // मादिगुणसंदर्न,-हमा विजय इत्यनूत् // तस्य शि प्यो विनीतात्मा, शिष्यानेकसमन्वितः // 5 // शब्दशास्त्रादिशास्त्राणां, वेत्ता शिष्यगणान्वितः // जिनादिविनयाह्वान,-स्तस्यासीबिष्यरूपनाक् // 6 // कर्मप्रकतिप्रनृति,-शास्त्रतत्त्वविचार वित् // उत्तमाधिजयस्तस्य, शिष्योऽनू भूरिशिष्यकः // 7 // तस्य पादयुगांनोज, मुंगतुल्येन चाणुना // पद्मविजयशि व्येण, स्वपरानुग्रहाय वै // 7 // रागवैदौ तथा नाग, चंशविति (1744) च वत्सरे // वसंतपंचमी घस्ने, विक्रमात् बुधवासरे // / // गौतमं कुलकं ना म, प्रोक्तं श्री गौतमर्षिणा॥मया बालावबोधोऽयं, कृतस्तस्याल्पबुदिना॥१०॥ (त्रिनिर्विशेषकम्) यत् किंचितिथं प्रोक्तं, मतिमांद्यादजानता // तत्सर्वधी धनैः शोध्यं, विधाय मयि सत्कपाम् // 11 // वीरस्य शासनं यावत्, वर्तते विश्वदीपकम् // तावद्दालावबोधोऽयं, तिष्ठतु,शुश्वासनः // 12 // इतिप्रशस्तिः इति श्रीसकलसनानामिनीनालस्थलतिज़कायमानपंमितनत्तम विजय गणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिविरचिते बालावबोधे श्रीगौतमकुलकप्रकरणे विंशतितमगाथायां नवोदाहरणानि समाप्तानि // इति श्रीगौतमकुलक बालावबोधः संपूर्णः // तत्समाप्तावयं जैनकथारत्नकोषस्य षष्ठनागः समाप्तः॥