SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गौतमकुलक कथासहित. शए इहां पूबनार परिव्राजकनो ए बाशय ले के, जो ए सरिसवय खावा योग्य कहेशे, तो हूं एने उलमां नांखी ने कहीश के,तमारे मित्र पण खावा योग्य देखाय छे. परंतु एमतो थावच्चापुत्र न बलाया. ___ त्यारे वली शुकपरिव्राजक, बल करीने पूजे जे के, तमारे कुलबी खावा योग्य के, न खावा योग्य ? थावच्चापुत्र बोल्या, कुलबी.बे प्रकारे ले, ए क कुलवंती स्त्री ते कुलबी कहेवाय डे, अने बीजं कुलबी जे धान्य विशेष ने, ते जाणवं. तिहां कुलबी स्त्रीना त्रण नेद..एक कुलपुत्री, बीजी कुल माता,अने त्रीजी कुलवधू, ए त्रए तो खावा योग्य नथी,धने जे धान्य कुल थी,ते सरिसवनी पेठे जाणवी. ए प्रश्नमां पण थावच्चापुत्र न बनाया. त्यारें वली बल करीने गुकपरिव्राजक प्रश्न पूछे ले के, तमारे मांस खा वा योग्य के, नहि खावा योग्य ? थावच्चापुत्र बोल्या. मास त्रण प्रकारना बे. एक कालमास, बीजो अर्थमास, अने त्रीजो धान्यमास. तेमां का लमास तो श्रावगथी मामी अषाढ सूधी बार प्रकारना , ते साधुने खा वा योग्य नथी. बीजा अर्थमास ते एक मासो, बे मासा प्रमुख जेथी सो नुं रू' तोलाय, ते अर्थमास कहियें. ते पण साधुने खावा योग्य नथी, त्रीजा धान्य मास, ते अडद कहेवाय जे. ते सरशवनी पेते खावा योग्य न खावा योग्य कहेवा. ए प्रश्नमां पण थावच्चापुत्र न बलाया. त्यारे वली प्रश्न पूछे ले के, तमे एक बो के, बेबो ? अक्षय बो के, अव्यय बो ? के अवस्थित बो? के अनेकनूतनाविनावस्वनाव बो ? था वच्चापुत्र बोल्या, हुँ एक पण « थने वे पण बु, यावत् अनेकनूतना विनावस्वनावं पण बुं. त्यां असंख्यात प्रदेशनी अपेक्षायें अक्ष्य , अव्य य डं, अवस्थित बुं, उपयोगनी अपेक्षायें अनेकनूतनाविनावस्वनाव हुँ बुं, एटले नित्यानित्य बेहु पद सूचव्यां. कोई रीतें खलाया नही. त्यारे गुक परिव्राजक बज्या. थावच्चापुत्र अणगारने वंदना करी, नमस्कार क री, एम कहेता हवा के, स्वामिन् ! हुं तमारी पासे केवलीनो प्ररूप्यो धर्म सांजलवानी ला करुं बूं. थावच्चापुत्रं धर्मकथा कही. ते सांजली घणो हर्ष पाम्या थका थावच्चा पुत्रने एम कहेता हवा के, ढुं तमारी पासे स हस्त्र परिव्राजक साथे मुंम थ प्रव्रज्या लेवा इK . थावच्चापुत्र बोल्या, जेम सुख उपजे तेम करो. ते वेलायें ईशान कूणे दंम प्रमुख एकांते मूकी,
SR No.010251
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy