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________________ श्‍ प्रस्तावना. वली जे समतात्मरमणे रमण करनार, समतारूप गुन ध्यानानिवडे कर्मरूप काटने बालनार, विनाव परिणतिने वमनार, वह हमादि तपश्चर्या करनार, शुद्ध चारित्राचार गालनरूप प्रवहणें करी संसारसमुड्ने तरनार, इत्यादिक अनेक गुणोना करंमक, साधुवर्य मुनिश्री मोहनलाल जी माहाराज, पोताना गुणयुक्त पशिष्योसहित, अमारो या हो नाग पूर्ण थयो के तुरत या मुंबइमां पधार्या बे, ते पण या प्रमारा शुभकारी बा जाने मंगलदायक कार्य थयुं, एम स्पष्टरीतें देखाय बे. कारण के तेवा मु नीश्वरोनो विहार तो घणुं करी श्रीगुर्जर, मालव, कोंकण, मारवाड, बं गाल, काठीयावाड, ने कल वगेरे देशोमां थाय बे, परंतु जीवयत्नाने माटे आहार विहार करवामां केटलीएक अडचण पडवाने लीधे या मुंबइमां लगनग चालीस हजारं श्रावकोनो समुदाय बतां पण पूर्वोक्त महामुनि जीनुं यागमन यतुं नथी, तेम बतां पण ते मुनिराज मुंबइना तथा सुरतना निवासी श्रावकोनी सविनय व्यतिप्रार्थनाथी मुंबइमां पधारथा, तेथी या अस्मदीय श्रावक वर्गना बडा नागरूप ज्ञानवृद्धिकारक कामने परिपूर्ण मां गल्यसूचक कार्य थयुं, ए वातमां काइ पण संशय नासतो नथी. ग्रंथ जे वखत संपूर्ण थयो, ते वखतमांज पूर्वोक्त मुनिराजजीं याहिं शुभागमन थयुं वे माटे या अमारा ग्रंथना प्रगट थवानी साथें ते मुनिवर्यना मुंबइमां शुभागमननी उत्प्रेक्षाकरी बे. वली याहिं कोई नाइने संदेह उत्पन्न थशे के या तमारो बो नाग तो हालज बाहेर पड्यो घने ते महाराजश्रीयें चैत्रमासमां याहिं पानधाखा बे ? तो त्यां कदेवानुं के या बोजाग तो चैत्रमासमांज तैयार थयो छे, परंतु यमारा शेठ नीम सिंहनाइ देवलोक थया, तेथी तेमना अपशोषना कारणथी तथा केटली एक अडचणने लीधे ते वखतमां या ग्रंथ बाहेर पड्यो नहि अने हाल जारें बापवानुं काम सरु करूं, तारे या प्रस्तावना बापवी प्रव शेष रहि हती ते प्रस्तावना तथा प्रथम चैत्रमासमां उपाइ रहेलो या ast नाग, बाहेर पाड्यो . अनमति सुइजनेषु शुनं जवतु. शा० शामजी लागण.
SR No.010251
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size46 MB
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