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गौतमकुलक कथासहित.
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राजा सेवा करे, चोसठ हजार अंतेवरी, एक लाख अठावीस हजार वा रांगना, बीश हजार देश, बहोतेर हजार महापुर, अडतालीश हजार पाटण, नवाणुं हजार शेणमुख, बत्रीश हजार वेलावल, चौद हजार ज लमार्ग, एकवीस हजार संनिवेश, बत्रीश हजार महोष्टी नगरी, सोल ह जार रत्ननी खाएयो, नवाणुं हजार सुवर्णादिकनी खाएयो, वीश हजार सामान्य खागर, सोल हजार द्वीप, उप्पन्न अंतर्दीप बन्नुं क्रोड ग्राम, गणपचास हजार उद्यान, उगणपचास कुराज्य, सोन हजार म्लेब रा जा, चोराशी लाख हाथी, चोराशी लाख घोडा, चोराशी लाख रथ, बन्नुं क्रोड पाला, सर्व सैन्यमां प्रढार कोड स्वार, चौद हजार मंत्री, एंशी ह जार पंमित, चोराशी हजार कोटवाल, चोराशी हजार सूत्रधार, चोराशी हजार अनरण्धारक, त्रण क्रोड नियोगी, सांत क्रोड कुटुंबिक, से साठ रसोइया ते तो एकज मात्र चक्रवर्त्तिना जोजनने माटे होय. बाकी तो बीश हजार बीजा होय. चोसठ हजार कल्याण महाकल्याण कार क, बत्रीश कोड अंगमर्दक, त्रण लाख शस्त्रधर, पांच लाख दीवीधर, त्रण क्रोड वाजिंत्र, चोराशी लाख निशान, दश क्रोड ध्वजा, बत्रीश हजार बत्रीबद्ध नाटक, त्रण लाख जोजन स्थानक, बत्रीस कोड कुल, एक क्रोड गोकुल, प्रहार श्रेणि प्रश्रेणि, बीजा पण घणा शेठ सार्थवाहादिक होय. तथा गंगा सिंधु ए वे नदीयोनी अधिष्टा वे देवियो मप्रपाता ने तमि त्रा गुफानी बे देवीयो, मागध, वरदाम, प्रजास तीर्थना त्रण देवता, हि मवंत पर्वत ने कूपन कूटना अधिष्ठायक वे देवता, ए सर्व चक्रीने वश वर्ती होय. इति चक्रिस्वरूपम्.
ए रीतें निरंतर कौतुककारी नवी नवी वातो सांजलतां कोकाशने रा जायें पूब्यं, हे महाभाग ! तुं ए तीर्थना महिमा प्रमुख केम जाणे बे ? कोकाश बोल्यो, हे राजन् ! सोपारक नगरने विषे वसनारा, जैन सिद्धांत रूप वनने विषे सिंहसरखा, एवा गीतार्थ आचार्यनी पासे यादरें करी ने में सांजल्युं बे. जे माटे देवता प्रमुखनी सेवा ते घणे काजें फलवंती थाय. ने साधुनी सेवा ते तत्काल फल खापे ॥ तकं ॥ सेविक सी हगुफा, पाविक मुत्तिया य गयदंतो ॥ जंबू घरे लग्न, खुरखंमं च म्मखं च ॥ १ ॥ एम साधुना गुण सांजलीने राजा य निधाननी पेठें