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युगवीर-निवन्धावली कारण वसुदेवजीके समयके वे पुराने ( सर्वज्ञभाषित) रीति-रिवाज उठकर उनके स्थानमे वर्तमान रीति-रिवाज कायम हुए, उन्हे लक्ष्य करके साफ लिखा गया है कि उनका "ऐसा कहना और ठहराना दु साहस मात्र होगा, वह कभी इष्ट नही हो सकता और न युक्ति-युक्त ही प्रतीत होता है ।" इससे लेखमे वसुदेवजीके समयके रीति-रिवाजोकी कोई खास हिमायत नही की गई, यह
और भी स्पष्ट हो जाता है। केवल प्राचीन और अर्वाचीन रीतिरिवाजोमे बहुत बडे अन्तरको दिखलाने, उसे दिखलाकर, रीतिरिवाजोकी असलियत, उनकी परिवर्तनशीलता और लौकिक धर्मोके रहस्यपर एक अच्छा विवेचन उपस्थित करने और उसके द्वारा वर्तमान रीति-रिवाजोमे यथोचित परिवर्तनको समुचित ठहरानेके लिये ही वसुदेवजीके उदाहरणमे उनके जीवनकी इन चार घटनाओको चुना गया था। इससे अधिक लेखमे उनका और कुछ भी उपयोग नही था । और इसीसे लेखके अन्तमे लिखा गया था कि___ "इन्ही सब बातोको लेकर एक शास्त्रीय उदाहरणके रूपमे यह लेख लिखा गया है।"
लेखकी ऐसी स्पष्ट हालतमे पाठक स्वय समझ सकते हैं कि समालोचकजीने अपने उक्त वाक्यो और उन्ही जैसे दूसरे वाक्योद्वारा भी पुस्तकके जिस आशय, उद्देश्य अथवा प्रतिपाद्य विषयकी घोषणा की है वह पुस्तकसे बाहरकी चीज है प्रकृत लेखसे उसका कोई सम्बन्ध नही है और इसलिये उसे समालोचक द्वारा परिकल्पित अथवा उन्हीकी मन प्रसूत समझना चाहिये । - जान पडता है वे अपनी नासमझीसे अथवा किसी तीव्र कषायके वशवर्ती होकर ही ऐसा करनेमे प्रवृत्त हुए हैं। परन्तु किसी भी