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विवाह-दोन-प्रकाश
रीति-रिवाजोकी स्थिति, उनके देशकालानुमार परिवर्तन तया लौकिक धर्मोके रहस्यको सूचित किया गया है। साथ ही, यह बतलाया गया है कि "वर्तमान रीति-रिवाज कोई सर्वज्ञ-भापित ऐसे अटल सिद्धान्त नहीं है कि जिनका परिवर्तन न हो सके अथवा जिनमे कुछ फेरफार करनेसे धर्मके डूब जानेका कोई भय हो, हम अपने सिद्धान्तोका विरोध न करते हए देश-काल और जातिकी आवश्यकताओके अनुसार उन्हे हर वक्त बदल सकते हैं, वे सब हमारे ही कायम किये हुए नियम हैं और इसलिये हमें उनके बदलनेका स्वत. अधिकार प्राप्त है।" परन्तु उनमे क्या कुछ परिवर्तन अथवा तबदीली होनी चाहिये, इसपर लेखकने अपनी कोई राय नहीं दी। सिर्फ इतना ही सूचित किया है कि वह परिवर्तन (फेरफार) “यथोचित' होना चाहिये, और 'यथोचित' की परिभापा वही हो सकती है जिसे "आगमकी दृष्टि' बतलाया गया है और जिसे सुरक्षित रखते हुए परिवर्तन करनेकी प्रेरणा की गई है।
इसके सिवाय, वसुदेवजीके समयके विवाह-विधानोकी इस समयके लिये कहीपर भी कोई हिमायत नहीं की गई, वल्कि "ऐसा नहीं है" इत्यादि शब्दोके द्वारा उनके विषयमे यह स्पष्ट घोपित किया गया है कि वे आजकल स्थिर नही है और न उस उत्तम तथा पूज्य दृष्टिसे देखे जाते हैं जिससे कि वे उस समय देखें जाते थे और इसलिये कहना होगा कि वे सर्वज्ञ भगवानकी आज्ञाएँ अथवा अटल सिद्धान्त नही थे और न हो सकते हैं। जो लोग वसुदेवजीके समयके रीति-रिवाजोको सर्वज्ञप्रणीत और वर्तमान रीति-रिवाजोको असर्वज्ञभाषित कहते हो और इस तरह अपने उन पूर्वजोको कलकित तथा दोपी ठहराते हो जिनके