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दशम अध्याय ..... हो जाता है। वर्षा के समय जिधर देखो उधर हरा-भरा मैदान दि
खाई देता है। उसे देखकर मन में हिंसा एवं प्रतिहिंसा की ज्वाला ... नहीं जगती, बल्कि मन में शान्ति का झरना वहता है, विचारों में ...
सौम्यता आती है, नेत्र शीतलता की अनुभूति करते हैं। परन्तु किसी : पशु-पक्षो को सामने देख कर शिकारी एवं मांसाहारी की आंखे एक
दम वदल जाती हैं। उसके मन में क्रूरता अटखेलियां करने लगती है। - उसके प्राणों का अपहरण करने की भावना साकार रूप लेने लगतीः .. .... है। जब-वधिक उस मूक एवं असहाय प्राणी पर प्रहार करता है, तव : .
तो उसकी क्रूरता मानवता को सीमा को लांघ जाती है । और इधर .. मरने वाले प्राणी के मन में भी प्रतिहिंसा के भाव उदबुद्ध होने लगते हैं। वह भी प्रतिशोध लेने का प्रयत्न करता है। यह वात अलग है .... कि कमजोर होने से वह वधिक का कुछ भी विगाड़ नहीं सकता।
परन्तु उस समय उसके आवेश युक्त नेत्रों से यह स्पष्ट प्रतीत होता है... ...कि उसकी भावना वधिक को भी समाप्त करने की रहती है.। इस: ..
हिंसा-प्रतिहिंसा एवं क्रूर भावना के परमाणु उसके सारे शरीर में ...
फैल जाते हैं । इसलिए मांसाहार को तामसिक भोजन कहां है । वहः । .. वध्य एवं वधिक दोनों के मन में हिंसाःएवं क्रूरता की भावना को .. - जगाने वाला होता है, इसलिए मांसाहार मनुष्य के लिए सर्वथा त्याज्य : ...... है । वह मनुष्य के मन में काम-क्रोध एवं वासना की आग को बढ़ाने .. .. वाला है, उसकी मानवीय प्रकृति को विषम बनाने वाला है.। इसी ...
कारण श्रमण भगवान महावीर एवं अन्य विचारशोल विचारकों ने
मांसाहार का सर्वथा निषेध किया है। ::::शाकाहार और मांसाहार में एक अन्तर और है। वह यह कि । जैन दर्शन में संसारी जोव में दस प्राण * माने गए हैं । एकेन्द्रिय
* जिसके संयोग से जीव जीवित समझा जाता हैं. और वियोग होते ही