Book Title: Karmagrantha Part 5
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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बम कमेन्य
के नानादि स्वरूप का उपघातादि करते रूप होता है । अर्थात् चाहे शरीर हो या न हो तथा भव या क्षेत्र चाहे जो हो लेकिन जो प्रकृति अपने फल का अनुभव ज्ञानादि गुणों के उपधातादि करने के द्वारा साक्षात् जीव को ही कराती है, उसे जीवविपाकी प्रकृति कहते हैं।
(१५) मक-विपाकी प्रकृति-जो प्रकृति नर नारकादि भव में ही फल देती है उसे भविपाको प्रकृति कहते हैं। इसका कारण है वि वर्तमान आयु के दो भाग व्यतीत होने के बाद तीसरे आदि भाग में आयु का बन्ध होने पर भी जब तक पूर्व भव का क्षय होने के द्वारा उत्तर स्वयोग्य भव प्राप्त नहीं होता है, तब तक यह प्रकृति उदय में नहीं आती है, इसीलिये इसको भवविपाकी प्रकृति कहते हैं । ___ (१६) पुद्गलनिपाको प्रकृति - जो कर्म प्रकृति पुद्गल में फल प्रदान करने के सन्मुख हो अर्थात् जिस प्रकृति का फल आत्मा पुद्गल द्वारा अनुभव करे, औदारिक आदि नामकर्म के उदय से ग्रहण किये गये पुद्गलों में जो कर्मप्रकृति अपनी शक्ति को दिखावे, उसे पुद्गलविपाकी प्रकृति कहते हैं। यानी जो प्रकृति शरीर रूप परिणत हुए पुद्गल परमाणुओं में अपना विपाक-फल देती है, वह पुद्गल विषाकी प्रकृति है।
इन सोलह प्रकृति द्वारों की परिभाषायें यहां बतलाई हैं। शेष प्रकृति, स्थिति आदि दस द्वारों की व्याख्या प्रथम, द्वितीय कर्मग्रन्थ में यथास्थान की गई है । अतः अब आगे की गाथाओं में ग्रन्थ के वर्ण्य विषयों का क्रमानुसार कथन प्रारम्भ करते हैं 1 प्रबन्धी प्रकृतियां
सर्वप्रथम क्रमानुसार ध्रुबबन्धिनी प्रकृतियों की संख्या व नाम बतलाते हैं
वन्नचाउतेयकम्मागुरुलहु निमणोषघाय मयकुच्छा । मिच्छकसायावरणा विग्धं षुवधि समवत्ता ॥२॥