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प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले उन दस-दस अन्तकृत केवलियों का वर्णन है, जिन्होंने भयंकर उपसर्गों को सहकर अन्ततः मुक्ति प्राप्त की। अणुत्तरोववाइयदसाओ (अनुत्तरोपपातिक्रदशा)-इसमें ऐसे महापुरुषों का चरित दिया गया है, जिन्होंने घोर तपश्चरण और विशुद्ध संयम की साधना के
पश्चात् मृत्यु को प्राप्त कर अनुत्तरविमानों में देवत्व प्राप्त किया। . 10. पण्हावागरणाइं (प्रश्न-व्याकरण)-इसमें युक्ति और नयों द्वारा आक्षेप और
विक्षेपरूप प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। 11. विवागसुयं (विपाक सूत्र),-इसमें उदाहरण के माध्यम से कर्म-सिद्धान्त को
स्पष्ट किया गया है। पुण्य-पाप के विपाक का विचार इस अंग की विशेषता है। 12. दिट्ठिवाओ (दृष्टिवाद)-इसमें संसार के समस्त दर्शनों और नयों का
निरूपण किया गया है। 363 मतों का निरूपणपूर्वक खण्डन दृष्टिवाद अंग का विस्तार है।
वाचना
__भद्रबाहु के बाद दिगम्बर और श्वेताम्बर आम्नाय की आचार्य परम्पराओं में पूर्ण भेद हो जाता है। दिगम्बर आम्नाय में महावीर के बाद 683 वर्ष में 33 संघ-नायक आचार्य हुए, परन्तु उनमें इन्द्रभूति गौतम, सुधर्मा, जम्बू और भद्रबाहु को छोड़कर श्वेताम्बर परम्परा में मान्य किसी संघ-नायक का नाम नहीं है। श्वेताम्बर आम्नाय में महावीर निर्वाण संवत् 609 तक 19 आचार्यों का नाम है, जो सभी इन्द्रभूति गौतम, सुधर्मा, जम्बू और भद्रबाहु को छोड़कर दिगम्बर आम्नाय की सूची से भिन्न हैं। भद्रबाहु के बाद श्वेताम्बर परम्परा में स्थूलिभद्र (स्थूलिभद्र) का उल्लेख है और वहीं से श्वेताम्बर आम्नाय की भिन्नता प्रारम्भ होती है। स्थूलिभद्र का आचार्यत्व का काल महावीर निर्वाण संवत् 170 से 215 (ईस्वी पूर्व 357-312) रहा; वह अन्तिम चतुर्दशपूर्वी थे और भद्रबाहु के शिष्य रहे थे।
श्वेताम्बर आम्नाय के अनुसार स्थूलिभद्र की शिष्य परम्परा में वज्रसेन के समय महावीर संवत् 606 या 609 (79 या 82 ईस्वी सन्) में जैन संघ अन्तिम रूप से दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायों में विभक्त हो गया।
श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार द्वादशवर्षीय दुर्भिक्ष की समाप्ति के बाद महावीर निर्वाण संवत् 160 (367 ई.पू.) में पाटलिपुत्र में एक सम्मेलन हुआ, जिसमें श्रुत का वाचन किया गया। इसमें भद्रबाहु तथा अन्य कोई दिगम्बर आचार्य भी सम्मिलित नहीं हुए। अतः यह प्रथम वाचना निष्फल रही। पुनः उसी परम्परा में महावीर निर्वाण संवत् 827-840 (300-313 ई.) में आर्य स्कन्दिल की अध्यक्षता में मथुरा में एक वाचना सम्मेलन हुआ और वल्लभी में भी नागार्जुन सूरि की अध्यक्षता में एक सम्मेलन हुआ;
44 :: जैनधर्म परिचय
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