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हुए केवलज्ञान की उपलब्धि वैशाख शुक्ल दशमी को 12 वर्ष 6 मास व 15 दिन के अपने साधना काल के उपरान्त हुई थी। चैत्र शुक्ल त्रयोदशी महावीर का जन्मदिवस मान्य है, जो ईस्वी सन् से 599 वर्ष पहले माना जाता है। उनको केवलज्ञान की उपलब्धि 42 वर्ष की आयु में ईस्वी सन् से 557 वर्ष पहले हुई। श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार भगवान् की देशना केवलज्ञान प्राप्ति के तुरन्त बाद ही प्रारम्भ हो गयी, परन्तु दिगम्बर मान्यता के अनुसार देशना का प्रारम्भ श्रावण कृष्ण प्रतिपदा को राजगृह में विपुलाचल पर्वत पर हुआ।
दिगम्बर आम्नाय में यह मान्यता है कि अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर द्वारा दिव्यध्वनि के माध्यम से उपदिष्ट ज्ञान को उनके प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम द्वारा शब्द-रूप में ग्रथित किया गया था। गौतम स्वामी द्वारा ग्रथित ज्ञान 4 अनुयोगों में संकलित माना जाता है। प्रथमानुयोग में महापुरुषों के जीवन से सम्बन्धित पुराण और चरित आते हैं। करणानुयोग में लोक-अलोक और काल से सम्बन्धित विवेचन है। चरणानुयोग में श्रावकों और साधुओं के चारित्र सम्बन्धी निर्देश हैं। द्रव्यानुयोग में तत्त्वदर्शन का विवेचन है, जो जैनधर्म के आध्यात्मिक पक्ष को प्रस्तुत करता है।
भगवान् द्वारा जो उपदेश दिये गये थे, वे 12 अंगों में विभक्त थे और इसीलिए उनके द्वारा दिये गये उपदेशों को द्वादशांग श्रुत कहा जाता है। सम्पूर्ण द्वादशांग श्रुत का ज्ञान गणधर इन्द्रभूति गौतम को था और दिगम्बर आम्नाय की मान्यता है कि उन्होंने ही इस श्रुतज्ञान को 12 अंगों या विभागों में ग्रथित किया।
श्वेताम्बर आम्नाय में मान्यता कुछ भिन्न है। इस मान्यता के अनुसार जम्बूस्वामी ने गणधर सुधर्मा से प्राप्त ज्ञान को संकलित किया। महावीर के बाद उनके प्रथम गणधर इन्द्रभूति गौतम संघ-नायक रहे। गौतम के पश्चात् सुधर्मा संघ-नायक हुए। सुधर्मा भगवान् के 11 गणधरों में से एक थे। इनके कार्यकाल के विषय में दोनों आम्नायों में मतभेद है। दिगम्बर आम्नाय के अनुसार गौतम का नायकत्व काल 12 वर्ष था और तत्पश्चात् सुधर्मा का नायकत्व काल भी 12 वर्ष का था, परन्तु श्वेताम्बर-आम्नाय में गौतम का कार्यकाल तो 12 वर्ष ही है, सुधर्मा का कार्यकाल मात्र 8 वर्ष है। तथापि तीसरे संघ-नायक के रूप में जम्बूस्वामी की मान्यता दोनों आम्नायों में है। दिगम्बर आम्नाय के अनुसार उनका कार्यकाल 38 वर्ष का था और श्वेताम्बर आम्नाय के अनुसार 42 वर्ष का। दोनों आम्नायों में यह मान्यता भी है कि महावीर के बाद तीन केवली हुए और वे गौतम, सुधर्मा और जम्बू थे। ____ यह उल्लेखनीय है कि महावीर के सभी गणधर (मुख्य शिष्य) वेदज्ञ ब्राह्मण
थे, परन्तु जम्बूस्वामी चम्पा के एक श्रेष्ठी के पुत्र थे अर्थात् वैश्य वर्ण के थे, और यद्यपि वह महावीर के प्रभाव से उनके शिष्य हो गये थे, परन्तु उनकी गणना गणधरों में नहीं थी। दोनों ही आम्नायों के अनुसार सुधर्मा के बाद जम्बूस्वामी संघ-नायक हुए।
42 :: जैनधर्म परिचय
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