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की प्राप्ति हुई। अब वे सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, अर्हत्-परमात्मा हो गये । दिगम्बर परम्परा के अनुसार राजगृह (पंचशैलपुर) में स्थित विपुलाचल पर्वत पर श्रावण कृष्ण प्रतिपदा को उन्होंने अपना सर्वप्रथम उपदेश ॐकार रूप दिव्यध्वनि के रूप में देकर अपने धर्मचक्र का प्रवर्तन किया । दिव्यध्वनि को गौतम गणधर शब्द रूप में ग्रथित करके लोकभाषा में महावीर के उपदेश को प्रसारित करते थे । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार भगवान स्वयं ही लोकभाषा में अपना उपदेश देते थे । तीस वर्ष तक उन्होंने स्थान-स्थान पर विहार कर लोगों को अपने उपदेश से लाभान्वित किया ।
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महावीर के उपदेशों का सार अहिंसावाद, कर्मवाद, साम्यवाद और स्याद्वाद है। इन उपदेशों के द्वारा उन्होंने करुणा, पुरुषार्थ, समानता और विवेक - जन्य सहिष्णुता को मानवीय - आचरण का आधार निर्दिष्ट किया। सभी प्राणियों को आत्म-कल्याण करने का समान अवसर प्रदान करने की दृष्टि से उनकी धर्म सभाओं को समवसरण कहा
गया।
महावीर के प्रधान शिष्य ग्यारह गणधर थे, जिनमें प्रधान इन्द्रभूति गौतम थे । अन्य गणधरों के नाम अग्निभूति, वायुभूति, शुचिदत्त (आर्यव्यक्त), सुधर्मा, मण्डिक (मंडित), मौर्यपुत्र, अकम्पित, अचल, मेतार्य और प्रभास हैं । ये सभी ब्राह्मण थे और वेद-शास्त्रों के प्रकाण्ड पण्डित थे, परन्तु उन्होंने महावीर के उपदेशों से प्रभावित होकर उनका शिष्यत्व स्वीकार कर लिया था और वे श्रमण परम्परा में दीक्षित हो गये थे । ये गणधर महावीर के मुनिसंघ के नेता थे । महासती चन्दना उनके आर्यिकासंघ की अध्यक्षा थीं । मगध सम्राट् श्रेणिक-बिम्बिसार उनके प्रमुख श्रावक थे और श्रेणिक की पत्नी साम्राज्ञी चेलना श्राविका - संघ की नेत्री थीं ।
महावीर के चतुर्विध संघ में साधु समुदाय में मुनि और आर्यिका तथा गृहस्थ समुदाय में श्रावक और श्राविका थे । अनुश्रुति के अनुसार उनके जीवनकाल में उनके लगभग पाँच लाख भक्त अनुयायी हो गये थे, जो उनके द्वारा सुव्यवस्थित चतुर्विध संघ के सदस्य थे। उनमें सभी वर्गों एवं जातियों के स्त्री-पुरुष सम्मिलित थे।
महावीर के निर्वाण के बाद जैन संघ का नायकत्व उनके प्रधान गणधर इन्द्रभूति गौतम को प्राप्त हुआ और उन्होंने महावीर के उपदेशों को श्रृंखलाबद्ध व्यवस्थित एवं वर्गीकृत किया, कहा जाता है। इन्हें महावीर स्वामी से 12 वर्ष बाद निर्वाण प्राप्त हुआ । तत्पश्चात् महावीर के ही एक अन्य गणधर सुधर्माचार्य संघनायक हुए और निर्वाण प्राप्त होने तक 12 वर्ष उन्होंने नायकत्व किया। तत्पश्चात् महावीर निर्वाण संवत् 24 में सुधर्माचार्य के शिष्य जम्बूस्वामी जैन संघ के नायक हुए और उन्होंने 38 वर्ष तक संघ का नायकत्व किया। जम्बूस्वामी ने महावीर संवत् 62 ( ईस्वी पूर्व 465 ) में मोक्ष - लाभ किया। महावीर की शिष्य-परम्परा में जम्बूस्वामी अन्तिम केवली थे । श्वेताम्बर परम्परा में जम्बूस्वामी को ही महावीर के उपदेशों को आगम रूप में संकलित करने
40 :: जैनधर्म परिचय
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