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के चतुर्थ काल में जब तीन वर्ष और साढ़े आठ माह शेष रह गये थे, तो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को इस काल-खण्ड के चौबीसवें
और अन्तिम तीर्थंकर वर्धमान महावीर ने निर्वाण-लाभ किया था। बारह चक्रवर्तियों में हरिषेण और जयसेन स्वर्ग गये और सुभौम और ब्रह्मदत्त नरकगामी हुए। शेष आठ मोक्षगामी हुए, जिनमें तीन तीर्थंकर भी थे।
बलराम बलदेव के अतिरिक्त सभी बलदेव या बलभद्र मोक्षगामी थे। बलराम पूर्णसंयम पालकर ब्रह्मस्वर्ग में गये, वहाँ से चयकर आगामी भव में कृष्ण के जीव तीर्थंकर के तीर्थ में मोक्ष-गमन करेंगे। सभी वासुदेव या नारायण और प्रति-वासुदेव (प्रति-नारायण) नरकगामी थे। प्रति-वासुदेव के नामों में कुछ भिन्नता भी मिलती है, परन्तु वह विशेष विचारणीय नहीं है।
महावीर के साथ शलाका-पुरुष युग समाप्त हो जाता है।
तीर्थंकर महावीर
वर्तमान में भगवान महावीर का तीर्थ चल रहा है। श्रमण जैन परम्परा में महावीर चौबीसवें और अन्तिम तीर्थंकर मान्य हैं। __ वर्धमान महावीर का निर्वाण जैन काल-गणना का विशिष्ट पथ-चिह्न है। अनुश्रुति के अनुसार काल-चक्र के प्रवृत्त कल्प के अवसर्पिणी काल खण्ड के चतुर्थ काल में जब तीन वर्ष और साढ़े आठ माह शेष रह गये थे, तो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को इस काल-खण्ड के चौबीसवें और अन्तिम तीर्थंकर वर्धमान महावीर ने निर्वाण-लाभ किया था। परम्परा के अनुसार यह तिथि विक्रम संवत् से 470 वर्ष पहले और शक संवत् से 605 वर्ष 5 माह पूर्वगत थी, अर्थात् ईस्वी सन् से 527 वर्ष पहले यह घटना घटी थी। महावीर ने 71 वर्ष 6 माह 18 दिन की आयु पायी और तदनुसार उनका जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को ईस्वी सन् से 599 वर्ष पहले हआ था।
भगवान महावीर के जन्म के समय उत्तर भारत में कोसल, मगध, वत्स और अवन्ति में राजतन्त्रात्मक सत्ताएँ संगठित हो रही थीं, परन्तु वज्जिसंघ के रूप में एक शक्तिशाल गणतन्त्र भी विद्यमान था। वज्जिसंघ आठ कुलों का संघ था, जिसके सभी गण सदस्य 'राजा' कहे जाते थे। इन कुलों में लिच्छवि और ज्ञातृकुलों से महावीर का सम्बन्ध था। ज्ञातृवंश और काश्यप गोत्र के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ तथा उनकी पत्नी त्रिशलादेव प्रियकारिणी क्रमश: महावीर के पिता और माता थे। महावीर का जन्म वैशाली के निकर स्थित कुण्डग्राम (क्षत्रियकुण्ड) में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में मार्गशीर्ष कृष्ण दशर्म को ईस्वी पूर्व 569 में महावीर ने गृह-त्याग किया। बारह वर्ष तक उन्होंने तप-साधन की और 42 वर्ष की आयु में वैशाख शुक्लं दशमी को ईस्वी पूर्व 557 में उन्हें केवलज्ञान
इतिहास के प्रति जैन दृष्टि :: 35
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