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श्री राष्ट्रसंत शिरामणि आभनंदन गंथा
उपाश्रय के बारे में पूछा । पुजारी ने कहा सामने वाली गली में एक उपाश्रय हैं । किसका हैं? यह वहां जाकर तलाश करलो । मैं घूमता फिरता उपाश्रय के पास पहुंचा । उस पर राजेन्द्र जैन उपाश्रय का बोर्ड लगा था । बोर्ड देखकर मेरी खुशी का कोई पार नहीं रहा । मन खुशी से झूम उठा । जैसे किसी को गढ़ा धन प्राप्त होता हैं मुझे भी बहुत खुशी हुई । मैंने परम पिता परमेश्वर को कोटि कोटि नमन किया और उपाश्रय में प्रवेश किया । जैसे ही मेरा प्रवेश हुआ ऊपर की मंजिल से आते हुए मैंने अपने चिरपरिचित मुनि श्री भानुविजयजी के दर्शन का लाभ प्राप्त किया । वे मुझे ऊपर ले गये । वहां मुनि विद्याविजय महाराज सा.मुनि मण्डल के साथ विराजमान थे । शाता पूछने के बाद मैं वहां बैठ गया । उन्होंने पारा, रानापुर आदि ग्रामों के हाल चाल पूछे । मैंने कहा-बावजी सब कुशल हैं । मुनि विद्याविजयजी म.सा. से भी मैं परिचित था । मेरे हृदय में खुशी दुगनी हो गयी । विद्या बावजी ने पूछा और पारा से कौन कौन आया हैं । मैंने कहा बावजी और कोई नही आया हैं । मैं ही अकेला आया हूं। कैसे आना हुआ? परीक्षा देने आया, तब कहीं भी ठहरने की व्यवस्था नहीं हुई हैं । बावजी बोल्या आखी धर्मशाला खाली पड़ी है। कहीं भी ठहर जाओ । बावजी ने मुनि श्री भानुविजयजी को बुलाकर मेरे ठहर ने का इन्तजाम करवाया । मैंने भानुविजयजी के कमरे के पास एक खाली कमरे में अपना आसन जमाया ।
_परीक्षा के अध्ययन के साथ ही मुझे देवदर्शन, पूजन, और व्याख्यान का भी लाभ मिल रहा था। 2-3 दिन बाद मुझे मुनि श्री हेमेन्द्रविजयजी म.सा. का भी परिचय प्राप्त हुआ । 1-2 दिन में मैं इतना मिल जुल गया कि जैसे जनम जनम का साथ हो । परीक्षा कार्यक्रम समाप्त हुआ । गुरुदेव का साथ मिला दिन भर धार्मिक बातों के बारे में गुरुदेव मुझे समझाते थे । मन्दिर जाना, हिंसा नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना, पूजा करना, बड़ो का आदर करना, साधु महाराज की सेवा करना आदि कई प्रकार की बातें वे मुझे समझाते थे । मुझे भी उनकी सेवा का लाभ मिला । गुरुदेव मुझ पर बहुत ही स्नेह रखते थे, गोचरी व पानी लेने जाते वक्त मुझे साथ ले जाते थे । इन्दौर नगर के कई परिवार वालों से मेरा परिचय भी करवाया । मैंने गुरुदेव से कहा गुरुदेव, 15-20 दिन हो गये हैं । कल सुबह मैं पारा जा रहा हूं । गुरुदेव ने कहा कल से पर्युषण शुरू हो रहे हैं । पर्युषण पर्व का लाभ उठालो। ऐसा मौका बार-बार नहीं आता है । मैंने हाँ करली । व्रत उपवास प्रतिक्रमण आदि धार्मिक कार्य चल रहे थे । मुझ में भी बड़ा उत्साह था । प्रतिदिन व्याख्यान होते थे । गुरुदेव व्याख्यान में जीव हिंसा, पर विशेष जोर देते थे । कल्पसूत्र का भी वांचन होता था । मैं सब बातें ध्यान से सुनता था । कई बातों ने मन मन्दिर में घर कर लिया । जिसे मैं आज भी अपना रहा हूं।
_पर्युषण समाप्ति के पश्चात मैं अपने घर पारा वापस आ गया । अविस्मरणीय स्मृतियां लेकर । गुरुदेव की वाणी, प्रेम, ममत्व, प्यार सब मेरे दिल में समा गया । आज पर्यन्त गुरुदेव की बताई बातों का मैं पालन कर रहा हूं।
_36 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद राजगढ़ नगरमें गुरुदेव चातुर्मास हेतु पधारे । मन मयूर खशी से झूम उठा। राजगढ़ नगर में गुरुदेव हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के सान्निध्य में चातुर्मास पूर्णावधि में है । नगर में उल्लास और उमंग है । खूब धार्मिक कार्य हुए । प्रति गुरुवार को श्री मोहनखेड़ा तीर्थ की यात्रा का भी श्रावक-श्राविकाओं को लाभ प्राप्त हो रहा है ।
शान्तस्वभावी, मधुरवक्ता, बाल ब्रह्मचारी गच्छनायक श्रीमद हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. सदैव चिरायु रहें । हमें उनकी वाणी का लाभ प्राप्त होता रहा । ऐसी गुरुदेव से कामना करते हैं ।
आपका वरदहस्त हमारे ऊपर हैं और रहेगा ऐसी आशा करते हैं अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन के अवसर पर अपनी ओर से कोटिश वंदना के साथ हार्दिक अभिनंदन ।
मेन्द्र ज्योति हेमेन्या ज्योति 52
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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