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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
1. हडप्पा:-सिन्धु घाटी का प्रमुख केन्द्र हड़प्पा पाकिस्तानी पंजाब में पड़ता है । यहां से प्राप्त कुछ मोहरें कायोत्सर्ग मुद्रा में प्राप्त होती हैं । इस सभ्यता का समय ईसा पू. 7000 वर्ष आंका गया है, जो भगवान पार्श्वनाथ से पहले का है। इतनी बड़ी सभ्यता में किसी भी वैदिक क्रियाकाण्ड से जुड़े धार्मिक स्थल या यज्ञशाला का प्रमाण उपलब्ध नहीं होता। वस्तुतः यह सभ्यता यहां के मूल द्रविड़ लोगों की सभ्यता थी, जो श्रमण संस्कृति के उपासक थे । यहां से प्राप्त नग्न प्रतिमा की तुलना लुहानीपुर (पटना) से प्राप्त मौर्यकालीन प्रतिमा से की जा सकती है । दोनों प्रतिमाओं के आकार में अंतर जरुर है। दिगम्बर आचार्य मुनि श्री विद्यानन्द जी म. ने बहुत सी मुद्राओं का अध्ययन कर यह सिद्ध किया है कि कई मुद्राएं भरत बाहुवली से सम्बन्धित है । मोहनजोदड़ों से प्राप्त ध्यानस्थ योगी की प्रतिमा का सम्बन्ध विशुद्ध श्रमण परम्परा से है । वैदिक धर्म में ध्यान की परम्परा बाद की है। 2. कासन :- हरियाणा के गुड़गांव जिले में पिछले दिनों एक प्राचीन जैन मन्दिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं । इस मन्दिर के 3 शिखर हैं। बीच में 16 आले हैं, जो सम्भवतः 16 विद्या देवियों के स्थान रहे होंगे । यह प्रतिमाएं धातु की हैं, सभी प्रतिमाओं का समय सं 1300 से 1400 वर्ष से 400 वर्ष तक आंका गया है । मूल प्रतिमा में भ. पार्श्वनाथ और भ. महावीर स्वामी की प्रतिमा बहुत ही आकर्षक है । इस मन्दिर को अब दिगम्बर अतिशय जैन तीर्थ का रूप दिया है । यहां से 14 प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी । प्रतिमाएं भगवान मल्लीनाथ मुनिसुव्रत स्वामी अभिनंदन जी स्वामी की एक एक प्रतिमा है | दो यंत्र के एक चरण प्राप्त हुए हैं 4 प्रतिमाएं अष्टधातु की है । 3. पिंजौर :- पिंजौर ग्राम हरियाणा के कालका जिले में पड़ता है । अपने मुगल गार्डन के लिए प्रसिद्ध इस स्थल से कुछ दूर बहुत सी विशाल जैन प्रतिमाएं निकली थी, जो भूरे रंग की हैं । इसका समय 8वीं सदी जान पडता है । प्राचीन साहित्य में इस गांव का नाम पंचपुर था । यह जैन कला का अच्छा केन्द्र रहा है । यहां से प्राप्त प्रतिमाएं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में देखी जा सकती है । इन में ज्यादा प्रतिमाएं तीर्थंकर ऋषभदेव, पार्श्वनाथ व महावीर की है। 4. अग्रोहा :- अग्रवालों को लोहिताचार्य ने प्रतिबोधित कर दीक्षित किया था । आजकल अग्रोहा की खुदाई में बहुत पुरातत्व सामग्री प्राप्त हुई है । एक दरवाजे का ऊपरी भाग प्राप्त हुआ है, जो सम्भवतः किसी मन्दिर का भाग रहा हो । इस पर भ. नेमिनाथ जी की सुन्दर प्रतिमा अंकित है । यह कृति आजकल हरियाणा पुरातत्व विभाग चण्डीगढ़ में देखी जा सकती है। 5. थानेश्वर :- कुरुक्षेत्र या थानेश्वर के स्थल का सम्बन्ध भ. महावीर से भी रहा है । भ. महावीर अपने तपस्या काल में धूणाक सन्निवेश पधारे थे । यह स्थल गीता स्थल के नाम से प्रसिद्ध है । यहां एक तीर्थंकर का सिर प्राप्त हुआ है । इसके समय का अंदाजा नहीं लगता, पर यह भूरे पत्थर का है । यह कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में रखा है । 6. अस्म्भलवोहल:- अगर आपको विशाल खड़ी कायोत्सर्ग श्वेताम्बर प्रतिमाओं का भण्डार देखना हो, तो आप देहली - रोहतक रोड़ पर एक नाथ सम्प्रदाय के डेरे में देख सकते हैं । सारी प्रतिमाएं लंगोटे धारण किए हुए हैं, जो राजा सम्प्रति काल या गुप्त काल की होनी चाहिए । भ. पार्श्वनाथ की प्रतिमाओं के अतिरिक्त किसी तीर्थंकर को पहचानना मुश्किल है। बहुत से शासनदेव-देवियों की प्रतिमाएं भी उस युग की हैं, शायद यह प्रतिमाएं कहीं से लाकर यहां छुपाई गई हों । पर सब प्रतिमाएं सुरक्षित हैं । 7. सिरसा :- यहां के सिकंदराबाद ग्राम व सिरसा से 9 से 11 वीं सदी की बहुतसी जिन प्रतिमाएं उपलब्ध हुई है। इसके अतिरिक्त नींव से प्रभु ऋषभदेव की 9वीं सदी की भव्य प्रतिमा प्राप्त हुई है । एक तीर्थंकर का खण्डित शीश झज्झर के भक्त से प्राप्त हुआ था जो 10वीं सदी का है । 8. हांसी :- दिगम्बर जैन धातु प्रतिमाओं का विशाल भण्डार हांसी से प्राप्त हुआ था । इसके किले में एक ईमारत देखने का हमें सौभाग्य मिला है । वह बाह्य; आकार से किसी जैन मन्दिर का प्रारूप है । हो सकता है, किले में विशाल मन्दिर हो और उसी की प्रतिमाएं किले में आक्रमणकारियों के भय से छुपा दी गई हों । अब यह प्रतिमाएं दिगम्बर जैन समाज के पास हैं । यह प्रतिमाएं परिहार राजाओं के समय की हैं और पुनः नये मन्दिर में स्थापित की जा रही है ।
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