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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
17. दिल्ली :- यह क्षेत्र पुरातत्व से भरा पड़ा है । महरौली में कुव्वते इस्लाम, मस्जिद के खम्बे जैन प्रतिमाओं व चिन्हों से भरे पड़े हैं । मस्जिद की गुम्बदों की छतों पर तीर्थंकरों के जन्म कल्याणक की प्रतिमाएं खुदी हैं । पास में प्राचीनता की दृष्टि से खरतरगच्छ के प्रभावक मणिधारी दादाश्री जिनचन्द सुरीश्वर की दादावाड़ी है । पूज्य जिन कुशल सूरि की दादावाडी अब पाकिस्तान (सिंध) में है । 18. कल्याण :- यह गांव पटियाला से नाभा जाने वाली सड़क पर 5 क.मी. पर है । यहां इन पंक्तियों के लेखक व पुरातत्व विभाग के कर्मचारी श्री योगराज शर्मा को कुछ खण्डित प्रतिमाएं मिली, जिन्हें गाँव के बाहर दरवाजे पर लोग सिंदूर डालकर भैरव मानकर पूजते थे । कोई प्रतिमा सही सलामत नहीं थी । इन खण्डों को विभाग में लाकर साफ किया गया है यह प्रतिमा श्वेताम्बर सम्प्रदाय की है । इन खड़ी प्रतिमाओं के लंगोट धारण किए हैं, इनका समय 8-9 शताब्दी माना गया है । यह अधिकतर भ. पार्श्वनाथ व भ. ऋषभदेव की है । इनके चिन्ह भी प्रतिमाओं पर अंकित है । 19. झज्जर :- हरियाणा के गांव झज्जर से भी एक खण्डित तीर्थंकर की प्रतिमा मिली है । 20. खिजराबाद :- यह गांव रोपड़ जिले में पड़ता है । यहां ब्राह्मी लिपि में अंकित एक जैन तीर्थंकर की प्रतिमा निकली थी, जिसे पुरातत्व विभाग ने भ. महावीर की प्रतिमा माना है । इसका समय 8-9 सदी है । 21. ढोलवाहा :- यह गांव जिला होशियारपुर से 37 मील दूर है । इसका संबंध जैन व हिन्दू-दोनों धर्मों से रहा है। यहां 8वीं सदी की एक चतुर्मुखी प्रतिमा निकली है, जो आजकल साधु-आश्रम होशियारपुर के म्यूजियम में है। 22. सुनाम :- यह एक प्राचीन नगर है, जिसका सीता माता से सम्बन्ध जोड़ा जाता है । यहां एक सन्यासी श्री भगवन्त नाथ के डेरे में 7-8वीं सदी की भ. पार्श्वनाथ की काले रंग की खंण्डित प्रतिमा थी, जिसे लेखकों ने आंखो से देखा था । पर कुछ दिनों बाद मन्दिर का पुजारी इस प्रतिमा को लेकर भाग गया । उस डेरे में खण्डित प्रतिमा ही जगह एक भ. पार्श्वनाथ की प्रतिमा आज भी स्थापित है । उसका समय व स्थापनकर्ता का पता नहीं । अभी कुछ दिन पहले सुनाम के पास लोहाखेड़ा गांव में अनेक खण्डित प्रतिमाएं निकली । जिनका वर्णन पंजाबी ट्रिब्यून में आया। पर अब यह प्रतिमा कहां हैं, पता नहीं चला । इसी प्रकार फरीदकोट से एक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा निकलने का समाचार तो आया, पर अब वह प्रतिमा कहां है, किसी को पता नहीं । 23. भठिण्डा :- पंजाब के प्रसिद्ध शहर और सबसे बड़े जंक्शन भठिण्डा में एक सज्जन श्री हंसराज वांगला के खेत से तीन परिकर युक्त प्रतिमा, एक जिनकल्पी मुनि की प्रतिमा निकली थी । समाचार पाते ही हम कैमरा लेकर वहां पहुंचे। प्रतिमाओं को साफ किया गया । सफेद संगमरमर की प्रतिमाएं थी, किसी बड़े मन्दिर की मूर्तियां थी, क्योंकि मूलनायक की इतनी बड़ी प्रतिमा पंजाब में और कहीं भी नहीं मिली । उसका शिलालेख वीर पाव पूरिया से शुरू होता था। हमने उसका अर्थ वीर निर्वाण संवत लगाया है । चिन्हों के आधार पर इसे भ. नेमिनाथ की प्रतिमा घोषित किया गया । विशाल प्रतिमा परिकर युक्त सफेद संगमरमर की है । साथ में श्री संभवनाथ भ. की प्रतिमा प्राप्त हुई है । एक जिनकल्पी मुनि की प्रतिमा तीर्थंकर सादृश्य है पर उसके कंधे पर छोटा सा वस्त्र (संभवतः) मुखवस्त्रिका है । सामने रजोहरण पड़ा है । ये प्रतिमा श्वेताम्बर है । आजकल यह धरोहर पटियाला स्थित सरकारी म्यूजियम मोती बाग में है । 24. माता श्री चक्रेश्वरी तीर्थ :
यह क्षेत्र सरहिंद में पड़ता है । विशाल जंगल में भ. ऋषभदेव की शासनदेवी चक्रेश्वरी माता स्थापित है। ऐसी किवदन्ती है कि 8-9 सदी में कुछ तीर्थयात्री कांगड़ा जा रहे थे, उनके पास यह प्रतिमा थी । यह यात्री खण्डेलवाल जाति के थे, जो मध्यप्रदेश से आए थे । माता के आदेशानुसार यह इसी क्षेत्र में बस गए । माता का मन्दिर पिण्डी रूप में स्थापित किया गया, जो आज भी विद्यमान है । आज यह क्षेत्र खण्डेलवालों तक ही सीमित
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