________________
AK
श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ कष्टों एवम् विषमताओं की औषधिः समता
-साध्वी किरणप्रभाश्री म. वर्तमान समय में समूचे विश्व पर हम चाहें सरसरी दृष्टि से देखें या गहरी दृष्टि से देखें, हमें चारों ओर विषमताओं के दिग्दर्शन होते हैं । विश्व के एक भी कोने में, किसी भी एक क्षेत्र में, कहीं भी नाम मात्र की समता भी दिखाई नहीं देगी। इसके फलस्वरूप आज सारे विश्व में अशांति, दुःख और परेशानियों का बोलबाला है । जीवन का कोई सा भी क्षेत्र ले लें कही भी समता नही है । सामाजिक क्षेत्र को देखें तो ऊँच-नीच, छोटा-बड़ा, छूत-अछूत, जातिगत भेदभाव, रंगभेद, राष्ट्रभेद, वर्गभेद आदि का जाल बिछा हुआ है । जब मनुष्य मात्र ही नहीं प्राणिमात्र एक है तो फिर यह विषमता क्यों? विश्वमैत्री क्यों नहीं? किन्तु जब हम विश्वमैत्री की बात करते हैं तो हमें परिवार में ही मैत्री का अभाव दिखाई देता है । ऐसी स्थिति में विश्वमैत्री की बात करना निरर्थक प्रतीत होता है । वस्तु स्थिति तो यह है कि आज प्रायः सबके मन में भेदभाव, राग-द्वेष, मोह-घृणा आदि विषमताओं का साम्राज्य है और जहाँ इनका साम्राज्य हो वहाँ मैत्री और शांति कैसे रह सकती है ।
आर्थिक क्षेत्र को लेते हैं तो हम पाते हैं कि वहां रुपया ही सब कुछ है । उसे प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार के अनैतिक कृत्य किये जा रहे हैं । आर्थिक क्षेत्र में विषमता का हाल यह है कि घर घर में खाद्य सामग्री सड़ रही है, बर्बाद हो रही है, तो दूसरे किसी घर में भर पेट रोटी भी नहीं मिल रही है । एक व्यक्ति प्रतिदिन 5, - 10 रु. कठोर परिश्रम करके प्राप्त कर पाता है तो एक को सहज ही बैठे-बैठे केवल जीभ हिलाने मात्र से हजारों का लाभ मिल जाता है ।
राजनीतिक क्षेत्र की विषमताओं के सम्बन्ध में आज के युग में जितना कहा जाय या लिखा जाय कम होगा। सत्ता प्राप्ति के लिए झूठ-फरेब षड्यन्त्र, हत्या, दंगा, हड़ताल, दलबदल, सौदे-बाजी आदि सभी अनैतिक उपाय काम में लाये जा रहे हैं जो व्यक्ति इतने अनैतिक तरीके से सत्ता प्राप्त करेगा, भला वह किस प्रकार नैतिक रह सकेगा। जब नैतिकता की बात आती है तो वर्तमान में पनप रही अन्याय, अनीति, बेईमानी, विश्वासघात, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, चोरी आदि की बढ़ती हुई प्रवृत्तियां सहज ही स्मरण हो आती हैं । इन सबके होते हुए समता कैसे सम्भव है?
धर्म तो अमृत वर्षा करता है, समता, प्रेम, मैत्री का संदेश देता है । किन्तु दुःख इस बात का है कि धार्मिक क्षेत्र में भी विषमता का बोलबाला है । सम्प्रदायवाद बढ़ता जा रहा है । एक सम्प्रदाय के लोग दूसरे सम्प्रदाय पर कीचड़ उछाल रहे हैं, नीचा दिखाने के लिए नित नये हथकण्डे अपना रहे हैं | परस्पर बैर का बोलबाला है । गुण ग्राहकता समाप्त सी हो गई और दोष खोजने की प्रवृत्ति ने जन्म ले लिया। धर्मान्धता का विष समाज में धुल गया है । आजकल तो इस क्षेत्र में मारा पीटी, झूठे आक्षेप लगाने, बदनाम करना आदि बातें आम हो गई है । एक धर्मवाला अपने धर्म की श्रेष्ठता प्रतिपादित करने के लिये दूसरे धर्म को हीन बताता है । धर्म गुरु अपनी प्रतिष्ठा और साधना को उच्च बताने के लिये और सम्मान पाने के लिये दूसरे को नीचा दिखाने के लिए सब कुछ हथकण्डे अपनाने लगे हैं ।
जब चारों ओर ऐसी विषमताएं हैं, आपाधापी हैं, स्वार्थ है, महत्वाकांक्षाएँ हैं तो फिर वहां सुख और शान्ति की कल्पना व्यर्थ है।
इन सब बातों के लिए यह कहा जा सकता है कि यह सब अपने-अपने कर्मों का परिणाम है । जो जैसा कर्म करता है, उसे उसके अनुरूप फल मिलता है । किन्तु भाइयो ! कर्म भी मनुष्य ही करता है । अशुभ कर्म का फल भी अशुभ ही मिलेगा । अशुभ कर्म करने वाले व्यक्तियों का जीवन अशान्त और दुःखी है । वे सदैव चिंतित और भयग्रस्त दिखाई देते हैं / तनाव में जीते हैं । जो अमीर होते हैं वे भी खाते तो अन्न ही है किन्तु वे भी किसी न किसी प्रकार की चिंता से ग्रस्त अवश्य रहते हैं, वे भी तनाव मुक्त नहीं रहते । कारण निश्चय ही विषमता है।
आज विषमता की यह खाई दिन प्रतिदिन गहरी होती जा रही हैं और इस गहरी होती खाई में मानव कराह रहा है। अपने इस दुःख के लिए वह कभी भगवान् को कोसता है, कभी अपने माता पिता और परिवार वालों को कोसता हैं । अपने इन दुःखों की जवाबदारी भी वह दूसरों पर डालता है किन्तु वह कभी अपनी ओर नहीं देखता।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 122 हेमेन्द्रज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
allonal used