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मुख्या सहयोगी
स्व.श्रीमान् किशोरचंद्रजी एम. वर्धन एवं
श्रीमती शांतिदेवी वर्धन
स्व. श्रीमान् किशोरचंद्रजी एम. वर्धन मूलतः भीनमाल - मारवाड़ राजस्थान के निवासी थे और वे प.पू. ग्रंथनायक आचार्यश्री के परम गुरुभक्त थे । देव-गुरु
और धर्म के प्रति उनकी अट आस्था थी। हसमुख एवं सरल स्वभावी श्री किशोरचंदजी वर्धन श्री मोहनखेड़ा तीर्थ के आजीवन कोषाध्यक्ष रहे। वे जैनशासन
की सर्वोच्च संस्था भारत जैन महामंडल के अध्यक्ष रहे। वे जिन संस्थाओं में रहे, सदैव उनके विकास में अपना योगदान देते रहे। इस के अतिरिक्त आपकी साहित्य में भी अच्छी रूचि थी और समय समय पर आपने जैन धर्म विषयक आलेख भी लिखकर प्रकाशित करवाये । अधिकतर जानने वाले लोग आपको "मास्टरजी' के नाम से भी जानते थे। परमात्मा द्वारा प्रदत्त लक्ष्मी को आपने शासन प्रभावना के अनेक धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यों में लगाया जिनका वर्णन करना मुश्किल कार्य होगा।
आपके अनुरूप ही आपकी धर्मपत्नी श्रीमती शांतिदेवी वर्धन है। श्रीमती शांतिदेवी “यथा नाम तथा गुण" की कहावत को चरितार्थ किये हुए है। आपके पुत्रों के नाम है श्री चम्पालालजी वर्धन, श्री उम्मेदराजजी वर्धन एवं स्व. श्री भरतकुमारजी वर्धन | आपके पुत्र द्वय भी आपके बताये मार्ग पर चल रहे हैं और वे भी पू. राष्ट्रसंत शिरोमणी गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के अनन्य गुरुभक्तों में से हैं।
श्री वर्धन परिवार का अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशन में सराहनीय योगदान रहा है । भविष्य में भी आपका ऐसा ही सहयोग बना रहे, यही विश्वास है।
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