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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
बागरा नगर के बाह्य प्रांगण में श्री महावीर स्वामी भगवान का जिनालय बस स्टेण्ड के निकट स्थित हैं। इसी जिनालय के समीप उससे लगा हुआ पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय धनचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का समाधि मंदिर स्थित है। समाधि मंदिर की दीवार पर निम्नलिखित लेख लिखा हुआ है
श्रीमद् विजय धनचन्द्र सूरि समाधि मंदिर - बागरा (राजस्थान)
दादागुरु श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी के पट्टधर आचार्य श्रीमद् विजय धनचन्द्र सूरिजी महाराज का बागरा नगरी पर असीम उपकार है । वि. सं. 1977 भाद्रपद शुक्ला 1 सोमवार को पर्व पर्युषण में महावीर प्रभु जन्म वांचन के दिन संध्या समय आपकी आत्मा बागरा की धर्मशाला में समाधिपूर्वक स्वर्गगमन कर गई । इस पावन आत्मा की शाश्वत स्मृति में यह समाधि मंदिर श्रीसंघ ने निर्मित कर वि.सं. 1998 मार्गशीर्ष शुक्ला 10 को श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरिजी के कर कमलों से प्रतिष्ठित कराया वि.सं. 1972 माघ शुक्ला 13 को बागरा नगर के मध्यस्थित श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ मंदिर के सौंधशिखरी जिनालय में श्री पार्श्वनाथ भगवान की तीनों मनोहर प्रशमरस निमग्न जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा आपने ही उपाध्याय श्री मोहनविजयजी के साथ सम्पन्न करवाई थी। तदनंतर इस उत्तुंग 24 जिनालय में भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर स्वामी तक (श्री पार्श्वनाथ भगवान को छोड़कर) 23 देव कुलिकाओं में जिन प्रतिमाएं एवं दादागुरुदेव की प्रतिमासं 1998 मार्गशीर्ष शुक्ला 10 को श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरिजी के शुभ हस्तों से श्री जिनमंदिर में श्री महावीर स्वामी आदि प्रतिमायें व समाधि मंदिर में श्री धनचन्द्र सूरिजी की प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई । श्री धनचन्द्र सूरिजी का जन्म सं. 1897 चैत्र सुद 4 को किशनगढ़ में हुआ था । आपकी सगाई हो गई थी, पर वैराग्य रस में निमग्न धनराज ने सांसारिक बंधन में फंसने का निर्णय कर लग्न मुहूर्त के दिन ही 1914 वैशख सुद 3 का धानेरा में बाल ब्रह्मचारी अवस्था में 17 वर्ष की उम्र में श्री लक्ष्मीविजयजी के हाथों दीक्षा ग्रहण की शुरु के आपके चार चातुर्मास उदयपुर, कलकत्ता, करांची और मद्रास जैसे शहरों में हुए । गुरुदेव श्री राजेन्द्र सूरिजी के साथ आपने सं. 1925 आषाढ वद 10 के दिन जावरा में वट वृक्ष के नीचे क्रियोद्वार किया और कठोर पंच महाव्रतों के संवेगी पथ को ग्रहण किया। दादागुरु के स्वर्गवास के पश्चात् 1964 वैशाख शुक्ला 3 को बरलूट प्रतिष्ठा महोत्सव पर आपको आदर पूर्वक श्रीसंघ ने आचार्य पद से अभिमंडित किया । सं 1965 ज्येष्ठ शुक्ला 11 के दिन जावरा में आपको गच्छाधिपति पद अपर्ण किया गया । आपने सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान डां हर्मन जेकोबी और श्री चिदानन्दजी महाराज के साथ तत्व व दर्शन संबंधी चर्चाएं कर उनकी शंकाओं का समाधान किया । श्वेत पीत वस्त्र एवम् स्तुति संबंधी चर्चाएं सर्व श्री चंद्रसिंह सूरि, बालचंद्रजी, उपाध्याय ऋद्धिसागरजी, झवेरसागरजी, आनंदसागरजी, प्रभृतिविद्वानों के साथ सफलता पूर्वक करके कतिपय ग्रन्थ भी आपके प्रकाशित हुए थे । आपश्री द्वारा सम्पन्न प्रतिष्ठाओं में काणदर, जसवंतपुरा, जावाल, बरलूट, मगदर, मंडवारिया, सियाणा एवं बागरा मुख्य है । विजयवाडा (प्रतिष्ठा सं 1966 माघ सुदी 13) और हुबली (प्रतिष्ठा सं. 1976 माघ सुदि 13) के दक्षिण भारतीय जिनालयों का शिलान्यास मुहूर्त आपने ही दिया था । तथा दोनों प्रतिष्ठाओं के शुभ अवसर पर श्री संघ के आग्रह से मंत्राभिषिक्त वासक्षेप भी प्रदान किया था । अर्थात् दोनों जिन मंदिरों का निर्माण एवं प्रतिष्ठा आपके सदुपदेश और आशीर्वाद के ही सुफल है। ऐसे परमोपकारी परम पावन गुरुदेव श्रीमद विजय धनचन्द्र सूरिजी के चरण कमलों में बागरा सकल श्री संघ के अगणित वंदन ।
बागरा नगर पर परम पूज्य व्याख्यान वाचस्पति आचार्यदेव श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का भी महान् उपकार रहा है । आपश्री ने सात चातुर्मास बागरा में किये थे। वि. सं. 2002 में उपधान तप भी करवाया था। वि. सं. 1998 में प्रतिष्ठा करवाई थी। वि. सं. 1975 में बागरा में ही परम पूज्य वर्तमान गच्छाधिपति श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी का जन्म हुआ था विशेष पू. गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. । का संवत् 2040 का चातुर्मास एवं संवत् 2047 में श्री पंचमंगला महा श्रुतस्कंध उपधान तप की महान आराधना तपस्या का सौभाग्य भी बागरा जैन श्री संघ को प्राप्त हुआ । मुनिराज जयकीर्तिविजयजी भी यहीं जन्मे थे । वि. सं. 2035 में बागरा नगर में प्रवचनकार मुनिप्रवर श्री देवेन्द्रविजयजी म.सा. ने उपधान तप करवाया था और इस उपधान तप में 326 आराधक थे । बागरा नगर साध्वी श्री मोतीश्रीजी, साध्वी श्री कंचश्रीजी, साध्वी श्री तिलकप्रभाश्रीजी, साध्वी श्री कुसुमश्रीजी, साध्वी श्री कुमुदश्रीजी एवं साध्वी श्री दिव्यदर्शना श्रीजी आदि साध्वियों का जन्मस्थल भी है । ऐसे इतिहास प्रसिद्ध बागरा नगर की जितनी प्रशंसा की जाय, उतनी कम है । जय जिनेन्द्र !
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