Book Title: Hemendra Jyoti
Author(s): Lekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 641
________________ मोहनदीप यतीन्द्र विहारी शिष्य गुरु के आज्ञाकारी हर्ष अरु लक्ष्मी भी पाये नित्य पढ़ाकर ज्ञानी बनाये चिंतामणि सम चिंता चूरे कल्पतरु जिम आशा पूरे गुरु चरणे जीवन धर दीना मनवाञ्छित शुभ फल वो लीना परम कृपालु जय गुरुदेवा भव भव चाहुं तोरी सेवा सेवक अरजी उरमें धरजी सुख दुःख में गुरु साथ रहजी दुबली पतली तपसी काया त्याग किये ममता और माया नाम तुम्हारा संकट टाले भूत प्रेत को दूर भगावे अंत घड़ी गुरुने पहचानी समाधि तीन दिनों का ठानी अवनी अंबर जब तक तारे नाम अमर है, जग में प्यारे समाधि मंदिर स्वर्ग हो जैसे वर्णन करना तीर्थ का कैसे मोहनखेड़ा जो जन आवे तन मन धन सहुं कष्ट मिटावे प्रबल हुए अब भाग्य हमारे गुरुवर बिगड़े काज संवारे गुरु चरणों की पाऊं छाँया नहीं सतावे ममता माया विद्या सूरि यतीन्द्र को पाया जिन शासन का बाग खिलाया हर्ष विजय गुरु आशीष पावे सूरि हेमेन्द्र चरण में आवे ॥ दोहा ॥ नाम जपो गुरुदेव का, ॐ ह्रीं पद के साथ आधि-व्याधि-उपाधि से, मुक्ति मिले प्रभात हर्ष धरी उल्लास से, छंद रटो सुखकंद हेमेन्द्र ध्यान करी सदा, मिट जावे भव फंद Penalty

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