Book Title: Hemendra Jyoti
Author(s): Lekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 604
________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ + अद्भुत समाधि - साधना साध्वी मणिप्रभाश्री अनमोल एवं अद्भुत मनुष्य भव की संपूर्ण साधना का परिणाम जीवन की अंत घड़ी में रहने वाली समाधि है। अतः साधना ऐसी हो जो जीवन को भावित एवं सुसंस्कारित बनावें, जिन संस्कारों के कारण सर्व त्याग के क्षण मौत के समय में भी मन विहलित अथवा भयभीत न बनकर स्वस्थता का अनुभव कर सकें। गत वर्ष हम सूरत में थे । एक भाग्यशाली अपने घर के प्रांगण में रोज विशाल साधु-साध्वी समुदाय को पानी वहोराने का अपूर्व लाभ उठा रहे थे । एक दिन रात्रि में पति-पत्नी सोये हुए थे सुबह 4 बजे का समय था, अचानक पत्नी की आंखे खुली और पतिदेव के श्वास की आवाज और हृदय की धड़कन से चतुर नारी ने पति की अंतिम घड़ी का अहसास कर लिया। धर्मवासित हृदय ने संसार की असारता एवं अनित्यता को समझते हुए अंतिम साधना पर नजर दौड़ाई । एक सेकंड का भी विलम्ब या डॉक्टर आदि को बुलाने को रकझक और मौत के भय को एक तरफ रख लाइट भी करने का विलम्ब न करते हुए जोर-जोर ने नवकार मंत्र सुनाने लग गयी । उस अंधेरी रात में 4 बिल्डिंग तक उनकी आवाज पहुंच रही थी । घर में सोये हुए पुत्र एवं पुत्र वधुएं अचानक रात्रि में नवकार की इतनी जोर की आवाज सुनकर दौड़ आये । सभी लोग इक्कट्ठे हो गये नवकार की ध्वनि में सब लीन बार बार पूरा नवकार सुनाने के बाद पत्नी ने पतिदेव से पूछा- क्या आप सुन रहे है? उन्होंने ने मुख हिलाकर स्वीकृ ति दी - तीसरी नवकार सुनाते-सुनाते तो प्राण-पंखेरु उड़ गये । यह है अंतिम समाधि की साधना । जैन धर्म की परिणति और सम्यग्दर्शन के बिना यह बात संभव नहीं । मौत से घबराया हुआ व्यक्ति भय के चक्कर में आर्त्तध्यान में पड़ जाता है - धन्य है ऐसी धर्मपत्नी को जिसने ऐसे समय में अपने भावी दुःख की तरफ नजर न कर पतिदेव के आगामी भव एवं पतिदेव के भावी आत्मोत्थान को ही प्रधानता दी । एक बार एक साध्वीजी म. विहार कर रहे थे । रास्ते में विहार करते-करते गुरुदेव से थोड़े आगे निकल गये। संयोग वश वहां उनका एक्सीडेन्ट हुआ और दोनों पैरों में फेक्चर हो गया । खून की धारा बहने लगी । श्रावक गाड़ी में डॉ. के पास ले जाने के लिए आतुरतापूर्वक विनंती कर रहे थे । फिर भी साध्वीजी म. ने शांति से कहां - मेरे गुरुदेव पीछे आ रहे हैं - उनको आने दो फिर उनकी आज्ञा हो उस प्रकार करें । इतना जवाब दे, वे पक्खीसूत्र के स्वाध्याय में लीन बन गये। पंच महाव्रत को साधने लगे । ऐसी अवस्था में आत्म समाधिपूर्वक स्वाध्याय लीनता । धन्य ऐसे जैन शासन को । धन्य है साध्वीजी को । कि जिन्होंने शरीर की मूर्छा छोड़ आत्म समाधि को साध लिया । । हमारे पास के उपाश्रय के एक साध्वीजी महान् तपस्वी । अट्ठाई के पारणे अट्ठाई की अजोड़ साधना । मात्र इतना ही नहीं पारणे में भी आयम्बिल । आयम्बिल भी अनुकूल सामग्री से न कर 1 बजे आयम्बिल खाते में जब सब समेटने का समय होता उस समय जाते, एवं जो कुछ निर्दोष मिलता मात्र एक ही वर्ण का आहार वहोर कर लाते एवं अट्ठाई का पारणा स्वयं गौचरी लाकर ही करते दूसरे दिन से पुनः अट्ठाई शुरू हो जाती । अट्ठाई के साथ ही विनय वैयावच्च भी अपूर्व । एवं चारित्र चुस्तता तो इतनी की रात्रि के समय में बीच में बाहर से उजइ आ रही हो कामली ओड़कर भी एक रूम में से दूसरे रूम में नहीं जाते थे । इस प्रकार अद्भुत साधना के साथ 13 अट्ठाई हो हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति 112 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति

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