Book Title: Hemendra Jyoti
Author(s): Lekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 598
________________ A श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ 4 प्राचीन पंजाब का जैन पुरातत्त्व पुरुषोत्तम जैन, रवीन्द्र जैन पंजाबी जैन लेखक, मंडी गोविन्दगढ़ जैन इतिहास में प्राचीन पंजाब : ___जब हम पंजाब की बात करते हैं तो इस का अर्थ सप्तसिन्धु वाला प्रदेश पंजाब है । क्योंकि पंजाब नाम मुस्लिम शासकों की देन है । पंजाब की कोई भी पक्की सीमा नहीं है । सप्तसिन्धु प्रदेश भगवान महावीर के समय छोटे-छोटे खण्डों में बंट गया था । जिनमें कुरु, गंधार, सिन्धु, सोविर, सपादलक्ष्य, मद्र, अग्र, कशमीर आदि के क्षेत्र प्रसिद्ध थे । तीर्थकर युग में प्रथम तीर्थकर भगवान श्री ऋषभदेव के छोटे पुत्र बाहुबलि की राजधानी तक्षशिला थी । 16वें तीर्थंकर शांतिनाथ जी, 17वें तीर्थंकर श्री कुंथुनाथजी, 18 अरहनाथजी का जन्म स्थान कुरु देश की राजधानी हस्तिनापुर है । इनके अतिरिक्त दिगम्बर जैन साहित्य में भगवान मल्लीनाथ, भगवान पार्श्वनाथ व भगवान महावीर का सप्तसिन्धु क्षेत्रों में पधारने का वर्णन उपलब्ध है | जैन तीर्थकरों ने जनभाषा को प्रचार का माध्यम बनाया । भगवान पार्श्वनाथ ने बहुत समय कश्मीर, कुरु व पुरु देशों में भ्रमण किया । इस क्षेत्र का एक भाग अर्ध केकय कहलाता था । भगवान महावीर ने अपने साधुओं को इस देश तक भ्रमण करने की छूट दी थी । क्योंकि भगवान महावीर के समय आर्य व अनार्य देशों के रूप में इस क्षेत्र का विभाजन हो चुका था । आर्य क्षेत्रों में साधु साध्वी को मर्यादा अनुसार भोजन मिलता था । इन आर्य क्षेत्रों को भगवान महावीर ने स्पर्श का सौभाग्य प्रदान किया । इसका वर्णन हमें आवश्यक चुर्णि, आवश्यक नियुक्ति में मिलता है । वह थूनांक (स्थानेश्वर) सन्निवेश पधारे । शायद यह मार्ग उन्होंने उत्तर प्रदेश के कनखल हरिद्वार मार्ग के माध्यम से पूर्ण किया हो। श्री भगवती सूत्र में प्रभु महावीर सिन्धु सोविर के नरेश उदयन की प्रार्थना पर लम्बा विहार करके वीतभय पत्तन पधारे थे । वापिसी में अर्ध केकय देश में घूमते हुए कश्मीर, हिमाचल की धरती से मोका नगरी पधारे। धर्म प्रचार करते हुए प्रभु महावीर वापसी पर रोहितक नगर पधारे। इन बातों का वर्णन आगमों में यंत्र तत्र मिल जाता है । जिन बातों का ऊपर वर्णन किया गया है वह क्षेत्र वर्तमान पंजाब, हरियाणा, सिन्ध, पाकिस्तान, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, देहली, उत्तर-प्रदेश में पड़ते हैं | भगवान् महावीर के बाद सप्तसिन्धु प्रदेश में जैन धर्म की स्थिति बहुत अच्छी रही, जिसका प्रमाण हमें मौर्य राजाओं द्वारा जैन धर्म को ग्रहण करने में मिलता है । मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को सारे भारत पर साम्राज्य करने का सौभाग्य मिला । जैन ग्रंथों में चन्द्रगुप्त मौर्य व इसी वंश के अन्य सम्राटों के बारे में विपुल सामग्री उपलब्ध होती है । चन्द्रगुप्त ने तो जीवन के अंत में मुनिधर्म ग्रहण किया अशोक चाहे बुद्ध धर्म को मानता था, पर उसके प्रत्येक शिलालेख में जैन धर्म का प्रभाव मिलता है । देहली के शिलालेख में भी निर्ग्रन्थ, ब्राह्मण नियतिवादी व श्रमणों (बौद्धों) को एक साथ संबोधित किया गया है ।। जैन धर्म परम्परा के अनुसार राजा सम्प्रति ने जैन धर्म का प्रसार समस्त विश्व में किया । उस काल के मन्दिर व प्रतिमाएं गुजरात, राजस्थान के प्राचीन मन्दिर आदि दृष्टिगोचर होती हैं | इसी बीच कलिंग सम्राट खारवेल ने 161 बी.सी. में जैन धर्म को राज्य धर्म घोषित किया । उसने खण्डगिरि के शिलालेख में उस द्वारा उत्तरापथ के राज्य को विजय करने का उल्लेख है । यह राजा 15 वर्ष की अल्पायु में सिंहासन पर बैठा । इस ने खण्डगिरि व उदयगिरि में जैन मुनियों के लिए गुफाऐं निर्मित की । कश्मीर के प्रसिद्ध हेमेन्यज्योति हेमेन्द्र ज्योति 106 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति For t al use only indicsaintetitional

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