Book Title: Hemendra Jyoti
Author(s): Lekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
21. कायानुपस्सी, वेदनानुपस्सी, चित्तानुपस्सी एवं धम्मानुपस्सी ये चार सतिपट्ठान (स्मृत्युपस्थान) हैं। विशेष अध्ययन के लिए दे. दी. नि. 3/221, पृ. 173 (देवना) तथा विभंग अट्ठकथा पृ. 214
22. दे. अंगुतर निकाय भा. 5, पृ. 29-30 तथा थेरीगाथा अट्ठकथा परमत्थदीपिनी ।
23. दे. मज्झिमनिकाय अट्ठकथा भा. 1, पृ. 184 तथा बुद्धचर्या, पृ. 110-111
24. तत्वार्थसूत्र 3/37
25. अभिधर्मकोश (आ. नरेन्द्रदेव) 3/53-55
26. दे. बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ. 58 पर उद्धत टिप्पण ।
27. ऐतरेय ब्राह्मण 8/121/21
28. दे. इण्डियन एंटिक्वेरी, भा. 62, पृ. 170
29. दे. स्टडीज इन इण्डियन एंटिक्विटीज, पृ. 71
30. दे. वैदिक इण्डेक्स, भा. 1 पृ. 84
31. दे. डिक्शनरी आंव पालि प्रापर नेम्स, भा. 1, पृ. 356
32. अभिधर्मकोशभाष्य 3 / 53-55
33. अंगुत्तरनिकाय अट्ठकथा मनोरथपूरणी भा. 1 पृ. 264
34. मज्झिमनिकाय अट्ठकथा पपञ्चसूदनी भा. 2 पृ. 948
35. उत्तम भोगो को प्रदान करने वाले दश कल्पवृक्ष होते हैं ये हैं मर्धांग, तूर्यांग, भूषणांग ज्योतिरंग, गृहांग, भाजनांग, दीपांग, वस्त्रांग, भोजननांग और मालांग । दे. वसुनन्दि श्रावकाचार गा. 251 तथा 252-257
36. थेरगाथा अट्ठकथा भा. 2, पृ. 187-188
37. दे. विसुद्धिमग्ग 1/41
38. दे. मत्स्यपुराण 113/69-77
39. शील (सदाचार) का स्वरूपः संसारारातिभीतस्य व्रतानां गुरूसाक्षितकम् ।
गृहीतानामेशषाणां रक्षणं शीलमुच्यते ।। अमितगतिश्रावकाचार, परि. 12 श्लो. 41
40. देहा, विदेहाः कुरवः कौरवाश्चामरावरा । अष्टौ तदन्तरद्वीपाः शाठाः उत्तरमन्त्रिणः ।। अभिधर्मकोशभाष्य 3/56
41. वही, पृ. 370 पर दे. फुटनोट नं 4
42. दे. महाभारत शल्य पर्व
43. दी. नि. अट्ठकथा सुमंगलविलासिनी मा. 2. पृ. 178-179
44. म. नि. अट्ठकथा पपञ्चसूदनी भा. 1, पृ. 484
45. दिव्यादान (मान्धातावदानम्) पृ. 215-16
46. दे. दी. नि. अट्ठकथा सुमंगलविलासिनी मा. 2. पू. 177 178
47. आरात् याताः पापकेभ्यो धर्मेश्यः इत्यायी अभिधर्मकोश भाव्य 3/44. पृ. 157 तथा मिलाइए सूत्रकृतांगसूत्र 3/4/6
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48. आरकस्स हेन्ति पापका अकुसला धम्मा... ति अरियोहोति । मज्सिमनिकाय 1/280, पृ. 343
49. दे. उपासकदशांगसूत्र अ. 1, पृ. 55 (लुधियाना संस्करण)
50. वही
51. धम्मपद गाथा 420
52. बौद्धों की दृष्टि में भारतवर्ष ही जम्बूद्वीप है । अधिक के लिए देखिए अभिधर्मकोशभाष्य 3 / 53-56
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