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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
मूल पर से जीवन मूल्य के सुरक्षक, संवर्द्धक या मूल्यरहित का निर्णय :
प्रस्तुत शास्त्रीय गाथा में मूल शब्द बहुत ही महत्वपूर्ण है जीवन मूल्य के सुरक्षण या संवर्द्धन का सारा दारोमदार अथवा निर्णय मूल पर से ही होता है। वृक्ष का जो मूल होता है, उसी के आधार पर सारे वृक्ष का वजन खड़ा रहता है। उसी मूल के कारण ही वृक्ष हरा भरा रहता है, फलता फूलता है। यदि वृक्ष के मूल को ही काट दिया जाए, अथवा उसे सुरक्षित न रखा जाए तो क्या वृक्ष टिका रह सकता है ? कदापि नहीं वृक्ष की जड़ को उखाड देने या सुरक्षित न रखने पर न तो वह वृक्ष हरा भरा रह सकेगा, न ही वह पल्लवित पुष्पित, फलित हो सकेगा। इसी प्रकार जीवन रूपी जो वृक्ष खड़ा है उसका मूल आत्मधर्म (ज्ञानादि चतुष्टय रूप धर्म) है। यदि जीवन में मूल रूप धर्म नहीं है तो कहना चाहिए वह जीवन मूल्य से रहित जीवन है, अथवा उस व्यक्ति के पास बौद्धिक वैभव, भौतिक धन, जीने के सभी साधन है, परिवार भी (पत्नी, पुत्र, पुत्री तथा अन्य कुटुम्बी जन आदि) भी लंबा चौड़ा है, स्वस्थ सुडौल शरीर भी है, इन्द्रिय जन्य वैषयिक सुख भी है, कार कोठी बंगला आदि भी हैं, परन्तु जीवन में भांति, संतोष, संतुलन आदि नहीं है, वाणी में माधुर्य नहीं है, तथा जीवन का मूल धर्म नहीं है, तो वह व्यक्ति जीवन मूल्य से रहित है।
मूल शब्द ही जीवन मूल्य का मूलाधार क्यों और कैसे १
चूंकि मूल शब्द यहां मूल्य का द्योतक है मूल्य शब्द भी मूल ही शब्द से निष्पन्न हुआ है, जो मूल के अनुरूप या मूल के योग्य हो उसे मूल्य कहते हैं। यहां मूल है - धर्म। यानि संवर, निर्जरा, रूप, सद्धर्म । अतः जीवन मूल्य का अर्थ हुआ ऐसा मानव जीवन जो धर्म रूपी मूल के अनुरूप अथवा योग्य हो यदि ऐसा हो तो जीवन मूल्य सुरक्षित समझना चाहिए।
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जीवन मूल्यों से रहित मानव जीवन कैसा होता है :
अगर वह मानव जीवन धर्म रूप मूल के अनुरूप अनूकुल या आत्म धर्म के अनुकुल अथवा योग्य नहीं है तो कहना होगा वह जीवन, जीवन मूल्य रहित है। नीति न्याय युक्त अहिंसा आदि धर्म से या संवर निर्जरा रूप से विहीन जीवन है। ऐसा व्यक्ति मनुष्य जीवन जैसा उत्तम जीवन पाकर सधर्मविहीन जीवन बिताता है। अथवा धर्म युक्त जीवन मूल्य से रहित हो जाता है। ऐसा जीवन जीवन मूल्य से रहित हारा हुआ जीवन है। जीवन मूल्य से रहित व्यक्ति न्याय नीति मानवता तथा मानव धर्म की मर्यादा को भी ताक में रखकर तथा मदपान, मांसाहार, जुआ, चोरी, डकैती, लूटमार, तस्करी, हत्या, दंगा, आतंकवाद, उग्रवाद, भ्रष्टाचार, अन्याय, अत्याचार, व्यभिचार, शिकार, शोषण, उत्पीड़ित, अपहरण, आदि सब शुद्ध धर्म से रहित होने से मूल्य - रहित जीवन के प्रतीक है। ऐसा सधर्म जीवन मूल्य से रहित व्यक्ति विषयभोगासक्त, तथा दुर्व्यसनों से ग्रस्त होकर अनेक आधि व्याधियों से घिर जाता प्रायः आलसी, अकर्मण्य, विषयग्रस्त, दुःसाध्य रोगग्रस्त तथा अशुभ कर्मोदयवश दरिद्रता, विपन्नता, उद्विग्नता, तनाव से पीड़ित और आर्त्तरौद्रध्यान परायण हो जाता है। धर्म का आचरण न होने से ऐसा जीवन मूल्य से विहीन जीवन वाला व्यक्ति थोड़े से कष्ट, दुख, परिताप, चिन्ता और उद्विग्नता के कारण कभी-कभी आत्महत्या भी कर लेता है। अजमेर में एक सटोरिया सट्टे में हार गया। पत्नी से पहले की तरह उसने गहने और रुपये मांगे परन्तु पत्नी पहले कई बार एक एक करके कई गहने दे चुकी थी अतः अब देने से उसने इंकार कर दिया वह सटोरिया भाई आवेश में आकर आनासागर तालाब पर गया और उसमें डूबकर मर गया। इस व्यक्ति ने पहले धर्मविहीन कार्य किया। जुए के एक प्रकार सट्टा खेलने का फिर हारने पर और चिन्ता और उद्विग्नता के कारण आत्महत्या कर ली। अगर जीवन मूल्यों की सुरक्षा करता तो किसी सात्विक धंधे से आजीविका करके जीवन निर्वाह करता और सुख की नींद सोता।
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