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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
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और अपार धन को संरक्षित करने के लिये मालवा में गया । इन परिस्थितियों में यह स्वाभाविक था कि मांडव के सुलतान इस्लाम धर्म के अनुयायी होने पर भी इनके साथ अच्छा व्यवहार करते। इस कारण उन्होंने न केवल विद्यमान जैन समाज का समुचित आदर किया, अपितु आगत जैन परिवारों का खुले दिल से स्वागत भी किया । इतना ही नहीं अनेक योग्य जैन श्रावकों को अत्यन्त ही महत्वपूर्ण प्रशासकीय पदों पर नियुक्त भी किया गया। जैन इतिहास को देखने से पता लगता है कि मंत्री पेड़ झांझण, जावड, संग्रामसिंह आदि अनेक श्रावक यहां पर हो गये हैं जो विपलु ऐश्वर्य और प्रभूत-प्रभूता के स्वामी थे । कविवर मंडन और धनराज भी ऐसे ही श्रावकों में थे । ये श्रीमाली जाति के सोनगरा वंश के थे। इनका वंश बड़ा गौरव और प्रतिष्ठावान था । मंत्री मंडन और धनदराज के पितामह का नाम झांझण था। इसके चाहड़, बाहड़, देहड़, पदम, आल्हा और पाहु नाम के छः पुत्र थे । इनमें से देहड़ और पदम तो मांडवगढ़ के तत्कालीन बादशाह अलपखाँ बनाम होशंगशाह के दीवान थे । अन्य अन्यान्य व्सवसायों में अग्रगण्य थे । इन भाइयों के अनेक पुत्र थे, जिनमें मंडन और धनदराज विशेष प्रसिद्ध थे । मंडन बाहड़ का छोटा पुत्र था और धनदराज देहड़ का एकमात्र पुत्र था। इन दोनों चचेरे भाइयों पर लक्ष्मी जितनी प्रसन्न थी, वैसी ही सरस्वती देवी की भी पूर्ण कृपा थी । इस प्रकार ये बड़े भारी श्रीमान् तो थे ही विद्वान् भी उच्च कोटि के थे । (मुनि जिनविजय : विज्ञप्तित्रिवेणी, पृ. 62,63) । वह दिलावरखाँ गौरी के पुत्र अलपखान या होशंगगोरी का प्रधानमंत्री था । होशंगगौरी ने ई. सन् 1405 से 1432 तक मालवा पर स्वतंत्र शासक के रूप में राज्य किया था। मंडन उसका प्रधानमंत्री था । वह अत्यंत योग्य एवं प्रतिभाशाली था । (देसाई मोहनलाल दुलीचंद जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास, पृ. 476) । विद्वत्ता व योग्यता के बल पर वह प्रगति करते हुए मांडू के सुलतान होशंगशाह गौरी का प्रमुख मंत्री बन गया था । मंडन के प्रभाव से मांडवपुर में विद्वानों का समागम बढ़ चला था और राजसभा में भी आये दिन विद्वानों का सत्कार होता था । राज-कार्य के उपरांत बचे हुए समय को यह विव्दद-सभाओं में और विद्वद् गोष्ठियों में ही व्यय करता था । राजसभा में जाने के पूर्व प्रातः होते ही उसके महालय में कविसेन एवं विद्वानों का मेला सा लगा रहता था । वह प्रत्येक विद्वान् और कवि का बड़ा सम्मान करता था और भोजन, वस्त्र एवं योग्य पारितोषिक देकर उनका सम्मान करता और उत्साह बढ़ाता था। वह संगीत का भी बड़ा प्रेमी था। रात्रि को निश्चित समय पर संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत होता था जिसमें स्थानीय और नवागंतुक संगीतज्ञों का संगीत-प्रदर्शन और प्रतियोगिताएं होती थी। उसका संगीत प्रेम श्रवण करके गुर्जर, राजस्थान और अन्य प्रान्तों से भी संगीत-कलाकार बड़ी लम्बी-लम्बी यात्रों करके आते थे। वह भी उनका बड़े प्रेम से सत्कार एवं आतिथ्य करता था और उनको संतृप्त करके लौटाता था । मंडन स्वयं भी कुशल संगीतज्ञ एवं यंत्र-वादक था । बड़े-बड़े संगीताचार्य उसकी संगीत में निपुणता देखकर अचम्भित रह जाते थे । संगीत के अतिरिक्त मंडन ज्योतिष, छंद, न्याय, व्याकरण आदि अन्य विधाओं एवं कलाओं का भी मर्मज्ञ था । इसकी सभा में कभी-कभी धर्मवाद भी होते थे और प्रमुख का स्थान इसके लिये सुरक्षित रहता था। यह इसके निष्पक्ष एवं अंसाम्प्रदायिक भावनाओं का परिचायक है। सांख्य, बौद्ध, जैन, वैदिक, वैशेषिक आदि परस्पर विरोधी विचारधाराओं का एक स्थल पर यो शांत विचार-विनिमय एवं शास्त्रार्थों का निर्वाह होते रहना निःसन्देह मंडन में अद्भुत ज्ञान, धैर्य, क्षमा और न्यायादि गुणों का होना सिद्ध करता है । मंडन की विद्वद् सभा में कई विद्वान् एवं कुशल कवि स्थायी रूप से रहते थे, जिनका समस्त व्यय वह ही वहन करता था । (लोढ़ा, दौलतसिंह : मंत्रीमंडन और उसका गौरवशाली वंश - राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ, पृ. 132)
मंडन एक सुलेखक था। उसके द्वारा रचित ग्रन्थों काव्य-मंडन, श्रृंगार-मंडन, सारस्वत-मंडन, कादम्बरी-मंडन, चम्पू-मंडन, चन्द्रविजय प्रबंध, अलंकार-मंडन, उपसर्ग-मंडन, संगीत-मंडन आदि उल्लेखनीय हैं. - (मु. व.अ.ग्र. पृ. 256)
24.
मंडन न केवल मध्यकालीन मालवा अपितु सम्पूर्ण मुस्लिम काल के एक महनीय रचनाकार एवं प्रशासक थे एक श्रावक के रूप में वे अपने समय के आशाधर सिद्ध हुए ।
17. उक्त, पृ. 131-32
18. डे, यू. एन. मिडिएवल मालवा मि. मा. पृ. 423
19. लोढ़ा दौलतसिंह : प्राग्वाट इतिहास 3, पृ. 263-64
20.
उक्त पृ. 265
21. मि. मा. पृ. 94
22. उक्त, पृ. 424
23. नाहटा, अगरचन्द मालवा के श्वेताम्बर जैन भाषा कवि - मु.द्ध.अ.ग्र. पृ. 272-78
उक्त
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