Book Title: Hemendra Jyoti
Author(s): Lekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 569
________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन च एक रात मेघाशाह को स्वप्न में निर्देश किया गया कि तुम प्रतिमा को थलवट की ओर ले जाओ । यह भी कहा गया कि जाते हुए पीछे मुड़कर मत देखना | स्वप्न में मिले निर्देशानुसार मेघाशाह प्रतिमा लेकर चल दिया। मार्ग में वह एक उजाड़ से गांव तक पहुंचा । वह आगे चल रहा था । गाड़ी पीछे थी । यहां उसके मन में विचार उत्पन्न हुए कि देखें गाड़ी आ रही है या नहीं । उसने पीछे मुड़कर देखा । उसके देखते ही गाड़ी जहां थी वहीं रूक गई । उसके पश्चात् गाड़ी एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी । उसके सभी प्रयास विफल रहे । यहीं उसे यक्ष ने स्वप्न में निर्देश दिया कि उस गांव का नाम गोड़ीपुर है । यहां से दक्षिण में एक कुआ है । उसके पास सफेद आक है, उसके पास अक्षत का स्वस्तिक बना हुआ मिलेगा । उसके नीचे अखूट धन है । वही पत्थर की खदान भी है। सिरोही से कारीगार बुलवाकर यहां सुन्दर मन्दिर बनवाना और इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा करना । मेघाशाह ने यक्ष के निर्देशानुसार कार्य किया। उसकी ख्याति फैली उसका साला काजलशाह भी आया। उसने प्रस्ताव किया कि मन्दिर निर्माण में आधा भाग उसका रखा जावे । मेघाशाह ने असहमति व्यक्त की । काजलशाज बदले की भावना लेकर लौट गया । कुछ समय पश्चात् काजलशाह की पुत्री के विवाह का निमंत्रण मेघाशाह को मिला । यक्ष ने पुनः स्वप्न में कहा कि काजलशाह तुम्हें दूध में विष देकर मार डालेगा । यदि तुम्हें वहां जाना ही पड़े तो भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा का प्रक्षालन लेकर जाना । मेघाशाह ने अपने पूरे परिवार को भेज दिया, वह नहीं गया। उस पर काजलशाह स्वयं उसे लेने आया और बदनामी का कहकर उसे अपने साथ ले गया किंतु मेघाशाह पार्श्व प्रभु की प्रतिमा का प्रक्षालन ले जाना भूल गया । अंततः वहीं हुआ जो होना था। मेघाशाह को भोजन के समय दूध भी रखा गया । उसे दूध भी पीना पड़ा कारण वह जूठा नहीं छोड़ता था। दूध विषयुक्त था। परिणाम स्वरूप उसके प्राण पखेरू उड़ गए । चारों ओर हाहाकार मच गया । मेघाशाह के साथ धोखा हुआ । काजलशाह की निंदा भी हुई । उसका तिरस्कार भी हुआ । 1 मेघाशाह की मृत्यु का शोक कम हुआ। जिनालय के निर्माण का कार्य अधूरा था जिसे काजलशाह ने पूरा करवाया। जब ध्वजा चढ़ाने का अवसर आया तो काजलशाह ने ध्वजा चढ़ाई। किंतु ध्वजा चढ़ाते ही गिर गई। उसने तीन बार ध्वजा चढ़ाई और तीनों बार गिर गई। इससे सभी चिंतित हो गए । मेघाशाह के पुत्र मेहराशाह को यक्ष ने स्वप्न में बताया कि तुम्हारे पिता का हत्यारा काजलशाह हैं। मैं एक हत्यारे को ध्वजा नहीं चढ़ाने दूंगा । तुम मेरा स्मरण करते हुए ध्वजा चढ़ा देना । स्वप्न के अनुसार मेहराशाह ने ध्वजा चढ़ाई । इस प्रकार श्रीगोड़ी पार्श्वनाथ की उत्पत्ति बताई जाती है । ये बातें तो हुई अतीत की थी। वर्तमान कल की बात करें। वि.सं. 1922 मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी को यहां के श्रावकों ने तीर्थ स्थापित करने का निर्णय लिया । वर्तमान स्थान का ही चयन किया गया । वि. सं. 1922 माघ शुक्ला नवमी को नींव खोदी गई, त्रयोदशी को जिनालय का पाया भरवाया । इस प्रकार गौड़ी पार्श्वनाथ की नींव पड़ी । चौदह वर्षों में जिनालय निर्माण कार्य पूर्ण हुआ । विश्वपूज्य प्रातः स्मरणीय गुरुदेव श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के कर कमलों से सं. 1936 माघ शुक्ला दशमी को मूलनायक श्रीगौड़ी पार्श्वनाथ की समारोहपूर्वक प्रतिष्ठा हुई फिर 19 वर्ष तक संगमरमरी पाषाण तराशे गए और 1955 फाल्गुन कृष्णा पंचमी को गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. ने अंजनशलाका सम्पन्न की। 77 भगवान श्री पार्श्वनाथ की मूर्ति ढाई हाथ ऊंची है और नीलोत्पल निर्मित है । इस पर कोई लेख नहीं है, किंतु प्राचीन प्रतीत होती हैं । इस तीर्थ के दर्शन - वंदन-पूजन का लाभ अवश्य लेना चाहिए । 4. जैन तीर्थ भीनमाल : भीनमाल जालोर जिले का एक ऐतिहासिक नगर है। भीनमाल के श्रीमाल, रत्नमाल, फूलमाल, आलमाल, पुष्पमाल, भिल्लमाल, रतनपुर आदि अनेक नाम मिलते हैं। अभी तक प्राप्त अभिलेखों में श्रीमाल एवं भिन्नमाल नामों का ही उल्लेख मिलता है । Jain Tucationantemat हेमे ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 77 हेमेजर ज्योति हेमेजर ज्योति

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