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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
जैन दिवाकर महाराज
दलित उत्थान में जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज का नाम भी आदर के साथ लिया जाता है । श्री केवलमुनि की पुस्तक 'एक क्रांत दर्शी युग पुरुष जैन दिवाकर' से ज्ञात होता है कि "दुर्व्यसनों का त्याग कराने हेतु उन्होंने दीन-हीन, पद दलित, उपेक्षित, अर्द्ध सभ्य बनावासी भीलों के बीच उद्बोधन किया । वैसे मुनि चौथमलजी ने यह प्रेरणा, स्थूलभद्र से जिन्होंने कोशा नामक एक वेश्या के जीवन को परिवर्तित किया था, लेकर अनेक वेश्याओं के उद्धार का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने मोचियों में जैन तत्व की प्रेरणा जगाई जिसमें मोची समाज से अमरचंद, कस्तूरचंद, तेजमल जो गंगापुर, मेवाड़ के थे उनके नाम दलित आन्दोलन में रखे जा सकते हैं । जैन दिवाकर मुनिचौथमलजी के विषय में श्री केवलमुनि ने लिखा है, "भीलों का हिंसा त्याग करवाया । वास्तव में दलित कल्याण के लिए स्वंय खतरे और कष्ट उठाकर उन्होंने जो किया वह इतिहास में अमर रहेगा ।" (पृ. 184)
जिनदत्त महाराज
ऐसा कहा जाता है कि जिनदत्त महाराज ने भी दलित उत्थान में योगदान दिया है । चन्द्रप्रभ सागर की पुस्तक 'खतरगच्छ' का आदि कालीन इतिहास में कहा गया है कि जिनदत्त महाराज ने अनगिनित जैन बनाये जो निम्नजाति में से थे । चन्द्रप्रभ सागर का कथन है कि "यदि आज सम्पूर्ण जैन समाज अपने संकुचित विचारों को छोड़कर दलित उत्थान में योगदान देवे तो भारत में एक सामाजिक क्रांति की सम्भावना दिखाई देती है । अगर मेरा यह आलेख जैन समाज को प्रेरित कर सका, तो जिस देश के हम निवासी है, उसमें मानवतावाद की सच्ची लहर पैदा कर सकेगे, तो वास्तव में जैन समाज भारत माता की सच्ची सेवा करेंगा ।"
चन्द्रप्रभ सागर का कथन वास्तव में प्रशंसनीय एवं आदर के योग्य है किन्तु आज वर्तमान में जैन समाज स्वयं दुर्व्यसनों से ग्रसित है । आज जैन समाज के समस्त जैन मुनियों को द्विपक्षों पर लडाई लड़नी होगी । जैन समाज में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार करना होगा और दूसरी ओर दलितों के उत्थान में तन-मन-धन से अपना जीवन न्यौछावर करना होगा तभी 'जिन' शब्द की सार्थकता होगी अन्यथा नहीं ।
मुनिराज श्री ऋषभचन्द्र विजय 'विद्यार्थी
स्व. कविरत्न आचार्य श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न ज्योतिष सम्राट मुनिराज श्री ऋषभचन्द्र विजयजी म. 'विद्यार्थी ने श्रीमोहनखेडा तीर्थ, राजगढ जिला धार (म.प्र.) पर रहते हुए धार एवं झाबुआ जिले के लगभग बीस बाईस हजार आदिवासियों के जीवन में सदाचार के बीज वपन किये । आपने अपने सदुपदेश से इन आदिवासियों को व्यसनों का त्याग कर व्यसन रहित जीवन जीने के लिये प्रेरित किया । ये आदिवासी आपको अपना गुरु मानने लगे है । समय समय पर श्री मोहनखेडा तीर्थ पर इन आदिवासियों के सम्मेलनों का आयोजन भी होता रहता है । मुनिश्री के पास इन आदिवासियों के नाम एवं पते सहित सूचियाँ भी है ।
नोट : पाठक बाधु 'श्रमणोपासक, धर्मपाल, विशेषांक वर्ष 35 अंक 13, 1997 तीर्थंकर वर्ष 7 अंक 7 1977, 'एक क्रांत दर्शी युग पुरुष संत जैन दिवाकर' श्री केवलमुनि खतरगच्छ का आदिकालीन इतिहास का अवलोकन करें।
आराधना 27, रवीन्द्रनगर, उज्जैन (म.प्र.)
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