________________
श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
पंचपर्वी त्योहार :
पंचपर्वी त्योहार में धनतेरस, नरक, चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा तथा भैय्या दूज का समवाय विद्यमान है। इन त्योहारों के आर्थिकमर्म पर हम संक्षेप में चर्चा करेंगे ।
धनतेरस की मूलात्मा धन्वन्तरि में समाविष्ट है | धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं । वैद्य शब्द का अर्थ ही है - जो दूसरों की वेदना पीड़ा को जानता हो, वह है वैद्य । वैद्य प्राणियों के शरीर के रोगों की चिकित्सा कर उन्हें शान्ति पहुंचाता है, भगवान प्राणियों के आध्यात्मिक मानसिक रोगों की चिकित्सा करते हैं, उनके जन्म-मरण जरा-शोक की व्याधि दूर करने वाले महावैद्य हैं ।
लोक मान्यता है कि धनतेरस का अर्थ धन की वर्षा से ही हैं । इस दिन लोग प्रायः चांदी, तांबे, स्टील के बर्तन खरीदकर धनतेरस मनाते हैं, किन्तु असली धनतेरस है दुःखियों के दुःख दर्द दूर करने का संकल्प लेना चाहिए।
धन तेरस धन्वन्तरि का जन्म दिन हमें इस आदर्श की प्रेरणा देता है कि संसार में आये हो तो प्रेम का, सेवा का अमृत बांटो, दूसरों के दुःखदर्द पीड़ा दूर करो । पंचपर्वी त्योहारों में धन तेरस निःस्वार्थ और निरपेक्ष भाव से परोपकार पर-सेवा का संकल्प लेना चाहिये । जो परोपकार करने में सक्रिय होता है लक्ष्मी स्वयं चलकर उस के घर द्वार आकर दस्तक देती है। नरक चतुर्दशी :
धनतेरस के अगले दिन चौदस हीं नरक चतुर्दशी कही जाती है । नरक उस स्थान को कहते हैं जहां प्राणी को सुख और चैन, तथा आनन्द की अनुभूति नहीं होती हैं । जहां सदा अंधकार बना रहता है । वहां रवि शशि की किरणें नहीं पहुंचती हैं।
तन उजला करने पर यदि मन मैला है तो उसे स्वच्छता नहीं कहा जा सकता । अन्तर की निर्मलता के लिये हमें दूसरों की निन्दा, चुगली, ईर्ष्या का कूड़ा पड़ा हो, काम-क्रोध की अशुचि सड़ रही हो तो मन पवित्र कैसे होगा? मन की निर्मलता तभी सम्भव है जब परोपकार का, सेवा का, दीन दुःखियों के दुःख दर्द दूर करने का संकल्प किया, सेवा की तब धन -तेरस मन गई ।
जैन त्योहार की अपनी गरिमा है और है उसकी अपनी महिमा । यहां शौच ही नहीं उत्तम शौच पर विचार किया गया है । मन से नरक मिट जाय, विचार से नरक टरक जाय तथा घर-द्वार से नरक निकल जाय तभी नरक चतुर्दशी त्योहार मनाने की सार्थकता है । दीपपर्व :
दिवाली कार्तिक कृष्णा अमावस्या को मनाई जाती है। सघन अंधकार को उजाले में बदलने के लिए माटी के दिये जलाने का विधान है । प्रकाश ज्ञान का प्रतीक हैं ।
समाज, राष्ट्र का सम्यक संचालन के लिये धन की आवश्यकता असंदिग्ध है । इसीलिए दिपावली पर गणेश और लक्ष्मी की पूजा की जाती है । लक्ष्मी और गणेश क्रमशः पवित्रता और गम्भीरता चाहते हैं । गणेश का लम्बोदर सहनशीलता की प्रेरणा देता है । लम्बे कान वाला अच्छा श्रावक होता है । कान का पक्का होना आवश्यक है ।
बड़ा शिर माथा चिन्तनशीलता का प्रतीक है | समाज की प्रत्येक चिन्ता का समाधान यही विशाल शिर तथा विशाल माथा है । छोटी जीभ गणेश के जीवन की सार्थकता है । नेता का वाचाल होना एक प्रकार का दोष है। बड़ी जीभ का होना बड़ा घातक होता है, इसलिये नैतिक शास्त्र में जिव्हा पर संयम रखने का निर्देश दिया गया है ।
हेमेन्त ज्योति हेमेन्र ज्योति 98 हेमेन्द ज्योति हेगेन्द ज्योति ।
FaTRAiruppily