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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन है
ग्रंथ
मौन का माहात्म्य तब सम्भव होता है जब हम विवेकपूर्वक वचन का संवरण करें। पूर्ण मौन का अर्थ है मन की विकल्प शून्य अवस्था, निर्विकल्पता । मौन एकादशी पर चुपचाप बैठे रहने का दिन नहीं, किन्तु मन से, वचन से अरिहंत प्रभु का स्मरण करने का, ध्यान और जप करने का दिन है । तन संयम, मन संयम और वचन संयम के लिये हमें मौन साधना में प्रवृत्त होना परम आवश्यक है ।
विखरेषु वाणी । वाक् व्यवहार एक शक्ति है। इसीसे अभिव्यक्ति होती है। अभिव्यक्ति में शक्ति का संचार मौन साधना से सम्भव है । वचन का विवेक वस्तुतः मौन का मुख्य आधार है ।
इन आत्मिक और आध्यात्मिक विकास के पर्वो पर चिन्तवन के उपरान्त कतिमय त्योहारों पर हम संक्षेप में विचार करेंगे।
नवीन संवत्सर :
चैत्र शुक्ला प्रतिपदा के प्रभात में यह पर्व द्वार-द्वार दस्तक देता है । सुन्दर भविष्य निर्माण की पवित्र प्रेरणा देता है । चैत्र मास में चित्रा नक्षत्र का रंग विरंगा रूप अन्तर्भुक्त है ।
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इसी मास में आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव तथा अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर चैत्र मास में ही उत्पन्न हुये थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भी चैत्र मास में ही उत्पन्न हुये । इस प्रकार चैत्र चिन्तन का महीना है । रक्षा बंधन :
रक्षा का अर्थ है प्रेम, दया, सहयोग और सहानुभूति । रक्षा मानव मन की पवत्रिता का पावन प्रतीक है। जैन संस्कृति में विष्णुमुनि की कथा का उल्लेख उपलब्ध है। विष्णुकुमार मुनि संघ रक्षा के लिये अपनी ध्यान साधना को गौण करके दुष्टों को सन्मार्ग पर लाने की शिक्षा देने के लिए उपस्थित हुये। कथा में विष्णु रक्षक हैं। विष्णु का अर्थ और अभिप्राय है व्यापक । जो विराट रूप धारण कर सके और संतप्त प्राणियों की रक्षा कर सके वह है विष्णु ।
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रक्षाबंधन की प्रासंगिकता आज धर्म, देश के साथ-साथ बहिन की सुरक्षा में समाहित है। आज का समुदाय समता और शील संस्कारों से शून्य हो गया है । ऐसी स्थिति में आज देश की प्रत्येक बहिन अपने भाई के पौरुष की अभ्यर्थना कर रही है ताकि उसके शील और सौभाग्य की रक्षा हो सके । यही है इस पर्व की अर्थ आत्मा । हम दुःखियों के दुःख दर्द में सहयोगी बनें, तभी विश्व में सुख और शान्ति का सागर ठाटें मारने लगेगा । प्राणिमात्र की रक्षा के लिए आओं बंध जायें ।
विजयदशमी :
आश्विन शुक्ल दशमी का दिन भारतीय समाज में विजयदशमी त्योहार के रूप में समाहत है। इसे विजयपर्व, दशहरा, दुर्गापूजा के नामों से भी जाना जाता है ।
दशहरा का सामान्य अर्थ है दश का नाश करने वाला । दशकन्धर अर्थात् रावण का विनाश उस कथा का मूलाधार है। राम और रावण का विकास और विनाश का वैचारिक विवरण इस त्योहार का मूलाभिप्रेत है ।
राम न्याय नीति और सदाचार के प्रतीक हैं जबकि रावण अन्याय अनीति दुराचार तथा अहंकार का प्रतिनिधि है । व्यक्ति चाहे जितना बलवान क्यों न हो, सत्ताधीश और धनवान क्यों न हो, अनीति और अनाचार के कारण वह सामान्य व्यक्ति के सामने भी पराजित हो जाता है ।
विजय दशमी का त्योहार जिस दिव्य सन्देश को समेटे हुये हैं उसका मूल स्वर साहस, संकल्प, सत्य, संयम, सदाचार, संतोष आदि गुणों में समाहित हैं। यदि वह हमारी ज्ञान और ध्यान चेतना में मुखर हो उठे तो मोह, मूढ़ता मद और मूर्च्छा का विनाश कर हम संसार में आत्म विजय के सच्चे भागीदार बने सकें ।
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हेमेन्द्र ज्योति मेजर ज्योति