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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन पंथ
और उत्तर दक्षिण में चौड़ी थी । नौ योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी थी। वह कुबेर की मति से निर्मित हुई थी । सुवर्ण के श्रेष्ठ प्रकार से और पंचरंगी नाना मणियों के बने कंगूरों से शोभित थी । इस विवरण से आगे बताया गया है कि द्वारिका नगरी के बाहर उत्तर पूर्व दिशा अर्थात् ईशान कोण में रैवतक नामक पर्वत था । अंतकृद्-दशा में द्वारिका के सम्बन्ध में जो विवरण मिलता है, वह ज्ञाताधर्म कथांग के समान ही है। वृहत्कल्प में लिखा है कि द्वारिका के चारों ओर पत्थर का प्राकर था"। आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार द्वारिका बारह योजन आयामवाली और नौ योजन विस्तृत थी । वह रत्नमयी थी । उसके आसपास 18 हाथ ऊंचा नौ हाथ भूमिगत और बारह हाथ चौड़ा सब और से खाई से घिरा हुआ किला था । चारों दिशाओं में अनेक प्रासाद और किले थे । रामकृष्ण के प्रासाद के समीप प्रभासा नामक सभा थी । उसके पास पूर्व में रैवतक गिरि, दक्षिण में माल्यवान पर्वत, पश्चिम में सोमनस पर्वत और उत्तर में गंधमादन पर्वत थे। _ हेमचन्द्राचार्य आचार्य शलांक" देवप्रभरि आचार्य जिनसेन,” आचार्यगुणभद्र आदि जैन विद्वान द्वारिका की अवस्थिति समुद्र किनारे मानते हैं । वैदिक पुराण हरिवंशपुराण” विष्णुपुराण" और श्रीमद् भागवत” के विवरण के अनुसार भी द्वारिका समुद्र के किनारे पर बसी हुई थी ।
आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनिजी म.सा. नेद्वारिका की अवस्थिति के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों की मान्यताओं का उल्लेख किया है । वही हम यहां उद्धृत कर रहे हैं । यथा - 1. रायस डेविड़स ने द्वारका को कम्बोज की राजधानी लिखा है । 2. पेतवत्थु में द्वारका को कम्बोज का एक नगर माना है । डाक्टर मलशेखर ने प्रस्तुत कथन का स्पष्टीकरण
करते हुए लिखा है सम्भव है यह कम्बोज ही कंसभोज हो, जो अंधकवृष्णि के दश पुत्रों का देश था । 3. डॉ. मोतीचन्द्र कम्बोज को पामीर प्रदेश मानते हैं और द्वारका को बदरवंशा से उत्तर में अवस्थित दरवाज
नामक नगर रहते हैं । घट जातक का अभिमत है कि द्वारका के एक ओर विराट समुद्र अठखेलियां कर रहा था तो दूसरी ओर
गगनचुम्बी पर्वत था । डॉ. मलशेखर का भी यही अभिमत रहा है । 5. उपाध्याय भरतसिंह के मन्तव्यानुसार द्वारका सौराष्ट्र का एक नगर था । सम्प्रति द्वारका कस्बे से आगे बीस
मील की दूरी पर कच्छ की खाड़ी में एक छोटा-सा टापू है । वह एक दूसरी द्वारका है जो 'बेट द्वारका' कही जाती है । माना जाता है कि यहां पर श्रीकृष्ण परिभ्रमणार्थ आते थे । द्वारका और बेट द्वारका दोनों
ही स्थलों में राधा, रुक्मिणी, सत्यभामा आदि के मन्दिर हैं । 6. बाम्बे गजेटीअर में कितने ही विद्वानों ने द्वारका की अवस्थिति पंजाब में मानने की सम्भावना की है । 7. डॉ. अनन्त सदाशिव अल्तेकर ने लिखा है- प्राचीन द्वारका समुद्र गई, अतः द्वारका की अवस्थिति
का वर्णन करना संशयास्पद है । 8. पुराणों के अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि महाराजा रैवत ने समुद्र के मध्य कुशस्थली नगरी बसाई
थी । वह आनर्त जनपद में थी । वही कुशस्थली श्रीकृष्ण के समय द्वारका या द्वारवती के नाम से पहचानी जाने लगी।
आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्रमुनिजी ने आगे लिखा है - श्वेताम्बर तेरापंथी जैन समाज के विद्वान मुनि रूपचन्दजी ने जैन साहित्य में द्वारका शीर्षक लेख में लिखा है - "घटजातक के उल्लेख को छोड़कर आगम साहित्य तथा महाभारत में द्वारका का रैवतक पर्वत के सन्निकट होने का अवश्य उल्लेख है, किंतु समुद्र का बिलकुल नहीं । यदि वह समुद्र के किनारे होती तो उसके उल्लेख न होने का हम कोई भी कारण नहीं मान सकते। घटजातक
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