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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
बहुत से महात्मा इतनी उच्च कक्षा के त्यागी होते हैं कि अपना पसीना भी नहीं पोंछते हैं । अगर पोंछना भी पड़े तो एकदम हल्के से, ताकि कहीं शरीर से मैल न निकल जाय साधु तो मलिन ही होता हैं । अन्य परिषहों की तरह यह 'मल परिषह भी साधु को सहन करना पड़ता हैं | जो साधना का एक अंग हैं | जिससे विपुल कर्म निर्जरा करके आत्मा विशुद्ध बनती हैं । साधु की मलिनता यह एक भूषण हैं । और उज्ज्वलता यह एक दूषण हैं । जैसे साधु का शरीर मलिन होता हैं वैसे कपड़े भी मैले होते हैं ।
‘साधु कपड़ा पहनते हैं लज्जा गुण के लिए न कि शरीर को शृंगार के लिए साधु को कोई पूछे कि तप क्यों करते हो? शरीर से छुटकारा पाना है । मलिन क्यों रहते हो? ममता से छुटकारा पाने के लिए । संयम की साधना क्यो? कर्म बंधन से छूटने के लिए । सर्व प्रकार के बंधन से छुटकारा पाना हैं । यही आवाज सदा ही साधु के हृदय में गूंजती रहती हैं ।
जब भी देखो तब वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा, धर्मकथा रूप स्वाध्याय में और ध्यान कायोत्सर्ग आदि कोई न कोई कार्य में व्यस्त रहते हैं ।
एक बार एक राजा के मन में शंका हुई कि साधु लोग रात में क्या करते हैं? यह देखने के लिए गुप्त रूप से उपाश्रय में गया और देखता हैं कि कोई साधु वैयावच्च में मग्न, तो कोई ध्यान में, कोई आत्मशोधन में तो कोई बड़ों के विनय में, कोई धर्मकथा में तो कोई वाचना में, कोई काउस्सग्ग में तो कोई खमासमण दे रहा है, कोई काया क्लेश तो कोई संलीनता में लीन हैं | साधु के यह अद्भुत रूप देखकर राजा आनन्द विभोर हो गया । हकीकत में मोक्ष तो यही हैं । सुख का सागर यही पर समा गया हैं ।
आपके कारखाने में कचरा जिस तरीके से निकाला जाता हैं उसमें कितने जीवों की हिंसा होती हैं । हीरा आदि साफ करने में एसीड का उपयोग करने के बाद उसे फेंकने में कितने जीवों की हिंसा होती हैं । उबलता गरम पानी गटर में जाने से कितने जीवों की हिंसा होती हैं । घर में दवा छिड़काने से कितने जीवों की हिंसा होती हैं।
वीतराग के शासन में साधु के हृदय में तो जीव मात्र के प्रति करुणा की भावना ही होती हैं । उसमें भी जिन कल्प को धारण करने वाले साधु भगवंत जो जंगल में विहार करते हों, राह चलते आस पास वनस्पति हो और सामने से सिंह आता हो तो वनस्पति पर न दौड़कर उस रस्ते पर ही चलते रहेंगे । भले ही सिंह उनका भक्षण करें ।
आज आपको और हमको यही आराधना करनी है ।
साधु मन, वचन, काया के बंधन से रहित होता हैं । चार कषाय से मुक्त, पांच इन्द्रियों के विषय से दूर, जीव योनि का रक्षण करने वाले, सत्रह प्रकार के संयम का पालन करने वाले, अठारह हजार शीलांग को धारण करने वाले, नव ब्रह्मचर्य की गुप्ति को धारण करने वाले, बारह प्रकार के तप में शूर समान, सोने को अग्नि में तपाने के बाद जैसी चमक आती हैं वैसी ही चमक साधु में तप के द्वारा आती हैं। इनको नमस्कार करने वालो का पुण्य बंध होता हैं । ऐसे साधु पद की आराधना, जाप, साधना करने का आज का दिन हैं । साधु 27X 27 = 729 गुणों से शुभालंकृत होते हैं ।
अरबोंपति या बड़ी सत्ता वाला हो नवकार मंत्र में किसी का स्थान नहीं । सिर्फ साधु का स्थान हैं । ऐसी साधना होगी तब सही अर्थ में नमनीय, वंदनीय, स्तवनीय, पूजनीय बन सकते हैं | ऐसा महान साधु पद क्या आपको ध्यान में आया?
कोई आपको गुजरात का मिनिस्टर बनने का कहें और मैं आपको कहूं कि आपको साधु बनना हैं तो आप किसको चुनोगे?
पूणिया श्रावक को मगध नरेश श्रेणिक महाराजा कहते हैं "मैं तुम्हें आधा मगध राज्य देता हूं । तुम मुझे अपनी एक 'सामायिक दे दो ।" पूणिया श्रावक कहता हैं "मुझे सामायिक के बदले राज्य नहीं चाहिये ।" जिससे मोक्ष मिले ऐसी सामायिक के बदले में नरक देनेवाला राज्य कौन लेगा । साधु पद को प्राप्त न कर सको तो अपने हृदय में तो साधु पद बिठाना चाहिये । यही अभिलाषा ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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