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श्री
राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
उस समय राग भाव के कारण राम का विवेक शून्य हो गया था। क्या मिला श्री राम को? जब लौटे तो कुटिया उजड़ चुकी थी । सीता को रावण ले जा चुका था । राग के कारण ही सीता एवं राम को एक दूसरे का विछोह सहना पड़ा । रावण महापंडित था, लंका का राजा था, देवता उसकी सेवा करते थे। सीता के प्रतिराग के कारण वह साधु के वेश में आ सीता को उठा ले गया । मामा मारीच को हिरण बनाकर, राम के हाथों उसकी मृत्यु करवाई । अंत में लक्ष्मण के हाथों मारा गया । वैदिक रामायण में राम के हाथों रावण की मृत्यु मानी गई है किंतु जैन - रामायण लक्ष्मण के हाथों रावण वध स्वीकारती है, खैर कुछ भी हो, मरना रावण को ही पड़ा । अगर वह सीता के प्रति राग न रखता तो उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती । जब तक राग का अंत नहीं होता तब तक सांसारिक वस्तुओं से मन विलंग नहीं हो पाता । पूर्ण रूपेण राग को जीतना बहुत ही कठिन है, किंतु जो पूर्ण रूप से राग को जीत लेता है वह वीतरागी बन जाता है ।
जब हम राग से वीतराग की ओर मुड़ेगे, तभी मन को सुख, शांति एवं परम संतोष प्राप्त होगा ।
वास्तव में वीतरागी कौन है?
"वीतरागी है वह जो राग-द्वेष छोड़े | आत्मा का संबंध परमात्मा से जोड़े । जिन्दगी का लक्ष्य तो जान ले जग में भटके हुए पांवों को सद् राह पर मोड़े ॥"
यह है राग विजेता की भावना निःस्पृह भाव से जीवन जीना ।
जिस प्रकार वनाग्नि वृक्षों को, हाथी वनलताओं को, राहु चन्द्रमा की कला को, वायु सघन बादलों को और जल पिपासा को छिनभिन्न कर डालता है ठीक उसी प्रकार असंयम भावना आत्म के समुज्जवल ज्ञानादि गुणों को नश्ट भ्रश्ट कर डालता है जो लोग अपनी असंयम भावना को निजात्मा से निकाल कर दूर कर देते हैं और फिर उनके फंदे में नहीं फँसते वे अपने संयमभाव में रहते हुए अपने ध्येय पर आरूढ होकर सदा के लिये अक्ष्य सुखविलासी बन जाते हैं। इतना ही नहीं उन के आलम्बन से दूसरे प्राणी भी अपना आत्मविकास करते रहते हैं।
हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति
प. पू. साध्वीजी श्री स्वयंप्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या
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श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.
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