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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
अंतराय कर्म के क्षय से दानादि पांच लब्धियाँ प्रगट होती है । जिससे अरिहन्त दानादि देने को सम्पूर्णतः समर्थ हैं तथापि वे पूर्ण वीतराग होने से पुद्गल द्रव्य रूप से, इन दानादि लब्धियों की प्रवृत्ति नहीं करते हैं । मुख्यतः ये लब्धियाँ भी दायिक भाव से प्राप्त होने से शुद्ध आत्म भूत होती हैं ।
अरिहन्त दो प्रकार के होते हैं 1. तीर्थंकर व 2. सामान्य केवली । इन दोनों में मुख्यतः चार प्रकार का अन्तर होता है, यथा 1. चार तीर्थ- साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका की स्थापना तीर्थंकर ही करते हैं । उनकी वाणी आगम बन जाती
है तथा उनका धर्मशासन चलता है ।
समवशरण की रचना व अष्ट प्रतिहार्य तीर्थंकरों के ही होते हैं । 3. संसार के सर्वाधिक सत्ता सम्पत्ति के धारक इन्द्र चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि तथा विशिष्ट विद्वान,
दार्शनिक आदि भी तीर्थंकरों से प्रभावित होते हैं । 4. तीर्थकर उत्कृष्ट पुण्यशाली महापुरुष होते हैं । 5. महाविदेह क्षेत्र में अधिकतम 160 व न्यूनतम 20 तीर्थंकर सदैव रहते हैं । वर्तमान में अभी सीमंधर स्वामी
आदि तीर्थंकर वीस बिरहमान के नाम से विद्यमान हैं । 6. तीर्थकरों व सामान्य केवली भगवंतों की आयुष्य क्रमशः जघन्य 72 वर्ष 8 वर्ष तथा उत्कृष्ट 84 लाख पूर्व व
देशोन क्रोड़पूर्व की होती है । तीर्थंकर अरहन्तों का स्वरुप दर्शानेवाली संक्षिप्त भाव स्तुति हम प्रकार है - "अरिगंजन अरिहन्त, जगतगरू संत हैं । केवल कमलाकत, महा यशवन्त हैं || इन्द्र नरेन्द्र मुनीन्द्र, सुसेव करत हैं | द्वादश गुण भगवंत, सदा जयवन्त हैं । अरिहंत देव को महादेव भी कहते हैं, कारण - महारागो, महादेसे, महा मोहो तहा परो | कसाय य हयजेण महादेवो स वुच्चई ।।
अर्थात् जिसने महाराग, महाद्वेष, महामोह और कषाय का (सर्वथा) विनाश का दिया है, उसे महादेव (अरिहन्त) कहते हैं । द्वितीय पद-णमो सिद्धाणं
"अद्वविह कम्म वियला, णीट्ठिय कज्जापण्ड संसारा |
दिट्ठ सयलत्थ सारा, सिदा सिदि ममं दिसंतु"||" अर्थात् जो अष्ट कर्मों से रहित, कृत कृत्य, जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त तभी समग्र तत्त्वार्थ के द्रष्टा है, वे सिद्ध भगवन्त है, और (अनुत्तर) सिद्धि के देनेवाले हैं ।
विशेष - 1. अष्ट कर्मों के क्षय से सिद्ध भगवंतों में आठ मुख्य आत्मिक गुण प्रगट होते हैं
यथा - 1. अनंत ज्ञान, 2. अनंत दर्शन 3. अनंत सुख (वेदनीय व चारित्र मोहनीय के क्षय से, 5. अक्षय स्थित (अमरत्व) 6. अभूर्व 7. अगुरु लघुत्व व 8. अनंत वीर्य (शक्ति) ।
हेमेन्द ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति
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हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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