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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
5.
विशेष - 1. इस महामंत्र के जाप का फल, मोक्ष मार्ग के आधारभूत पंचाचार की उपलब्ध भी है । यथा - अरिहन्त पद
से वीर्याचार, सिद्धपद से दर्शनाचार, आचार्यपद से चारित्राचार, उपाध्याय पद से ज्ञानाचार व साधुपद से तपाचार की आराधना उपलब्धि होती है। णमोकार मंत्रराज को बिना समझ के मात्र श्रद्धापूर्वक बोलने से भी वह वैसे ही लाभकारी होता है, जैसे विष निवारक मंत्र के उच्चारण से (बिना उसका अर्थ समझे) विष उतर जाता है । किन्तु जो इस महामंत्र का अर्थ व स्वरूप समझकर उसे ध्यान में रखते हुए, विशुद्ध भाव एवं उच्चारण के विधिपूर्वक आराधन करते हैं,
उन्हें इसका लाभ व फळ अनुत्तर और सर्व श्रेष्ठ मिलता है । 3. अन्य मंत्रों का उच्चारण शुद्ध हो या अशुद्ध अवस्था में जपे तो अनिष्टकारक भी हो सकते हैं । किन्तु नवकार
मंत्र को किसी भी अवस्था में व किसी भी प्रकार से अशुद्ध जपने पर भी कोई हानि नहीं होती है, सर्व पापों से मुक्ति मिलती है। कहा है - "अपवित्र पवित्रोऽवा सुस्थितो दुःखस्थितोऽपिवा | ध्यायेत पंच
नमस्कारम् सर्वपापेः प्रमुच्यते ।" 4. कर्म सारे संसारी जीवों पर शासन कर रहा है, परन्तु वह कर्म भी पंच परमेष्ठी से डरता है । पंच परमेष्ठी
से संकल्प जोड़ने पर कर्म के सारे बंधन छूट जाते हैं । महामंत्र की प्रति दिन शुद्ध जाप नौ लाख पद जपने पर उसी भव में जीवन में चमत्कार आ जाता है - देव दर्शन हो जाता है । मनुष्य की प्रकृति में वात पित्त कफ है । वात (वायु) चिन्ता पैदा करता है वह ज्ञान से दूर हो जाता है । पित्त चंचलता एवं क्रोध पैदा करता है, जिससे चारित्र से दूर हो जाता है । कफ, दमा, टी.बी. आदि रोग पैदा करता है । जिससे दर्शन से दूर हो जाता है । इस प्रकार ज्ञान, दर्शन व चारित्र के आराधक पंच परमेष्ठी की आराधना से वात, पित्त व कफ की सर्व बीमारियाँ दूर हो जाती है । तभी अज्ञान
मोह व मिथ्यात्व का क्षय होकर सिद्ध बुद्ध मुक्त हो परम पद को प्राप्त होता है । 6. इसके जाप का महत्व दर्शाते कहा गया है -
"जहां जपे णमोकार, वहां अघ कैसे आवे | जहां जपे णमोकार वहां व्यंतर भग गावे | जहा जपे णमोकार, वहा सुख सम्पत्ति होई । जहा जपे णमोकार वहां दुःख रहे न कोई मंत्रराज णमोकार अनुपम है - इस महामंत्र को सूत्रकार ने 96 उपमाएं देकर इसकी महानता व प्रधानता दर्शाई है । किन्तु वस्तुतः यह तो अनुपम है । कुछ उपमाएं है - 1. ज्यों सर्व देवों में इन्द्र प्रधान, त्यों सर्व मंत्रों में मोटा नवकार 2. ज्यों मनुष्यों में चक्रवर्ती की रिद्धि मोटी, त्यों सर्वमंत्रों में मोटा नवकार, 3. ज्ये शूर पुरुषों में वासुदेव प्रधान, त्यों सर्व मंत्रों में मोटा नवकार 4. ज्यों दानवीरों में वैश्रमण देव प्रधान, त्यों सर्व मंत्रों में मोटा नवकार 5. ज्यों पदवियों में तीर्थंकर का पद प्रधान, त्यों सर्वमंत्रों में मोटा नवकार, 6. ज्यों शल्यों में अभवी का मोटा त्यों सर्व मंत्रों में मोटा नवकार 7. ज्यों बल में तीर्थंकर का बल मोटा त्यों सर्व मंत्रों में मोटा नवकार 8. ज्यों ज्ञान में कैवल्य ज्ञान प्रधान त्यों सर्व मंत्रों में मोटा नवकार 9. ज्यों ध्यान में शुक्ल ध्यान प्रधान, त्यों सर्व मंत्रों में मोटा नवकार 10. ज्यों दान में अभयदान श्रेष्ठ, त्यों सर्व मंत्रों में मोटा नवकार 11. ज्यों खानो में हीरे की खान मोटी त्यों सर्व मंत्रो में मोटा नवकार 12. ज्यों बाणों में राधा वेद बाण प्रमुख, त्यों सर्व मंत्रों में मोटा नवकार 13. ज्यो ज्यों गोत्रो में तीर्थंकर गोत्र सर्वोच्च, त्यों सर्व मंत्रों में सर्वोच्च नवकार 14. ज्यों चारित्र में यथाख्यात प्रधान त्यों सर्व मंत्रों में प्रधान नवकार 15. ज्यों घात में कर्म की घात मोटी त्यों सर्व मंत्रों में प्रधान नवकार 16, ज्यों घात में अनुत्तर विमान की घात सर्वोत्कृष्ट त्यों सर्व मंत्रों में सर्वोत्कृष्ट नवकार 17. ज्यों वचनों में निर्वद्य सत्य वचन श्रेष्ठ त्यों सर्व मंत्रों में श्रेष्ठ नवकार,
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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