Book Title: Hemendra Jyoti
Author(s): Lekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 554
________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ .................. सर्व मंत्रों में मोटा नवकार 80. ज्यों गुप्ति में मन गुप्ति मोटी त्यों सर्व मंत्रों में मोटा नवकार 81. ज्यों तप में उत्तम ब्रह्मचर्य त्यों सर्व मंत्रों में उत्तम नवकार मंत्रराज परमेष्ठी के जाप की सहज प्रक्रियाएँ - जन साधारण भी इस महामंत्र की जीवन में सहज साधना कर लाभान्वित हो सके इस हेतु यहां कुछ जाप करने के कुछ उपयोगी सुझाव प्रस्तुत है । 1. प्रातः उठते व रात्रि में सोते त्रियोग स्थिर कर कम से कम ग्यारह बार नवकार का जाप करे । शयन करते ही प्रायः निद्रा नहीं आती । अतः जब तक निद्रा न आवे तक तक मन में परमेष्ठी का जाप करते रहे। जाप से पूर्व सागारी संथारा यह कहकर कि "आहार शरीर उपाधि पचसउ पाप अढार | तीन बार गुणस्यु नहीं इस हेतु जब लग श्री नवकार | ग्रहण कर शयन करे तो निद्रा शीघ्र व सुखद आयगी तभी यह प्रक्रिया विशेष लाभकारी रहेगी । श्वास प्रश्वास के साथ ऊँ अर्हत का अजप्पा जाप भी चला सकते हैं । 3. भोजन, नाश्ता, चाय, दूध आदि के ग्रहण से पूर्व तथा बाद में भी कम से कम तीन नवकार बोल कर करे। 4. घर से बाहर जाते या किसी भी कार्य के आरंभ करते तीन नवकार मन में जपकर जावे या कार्य शुरु करें। इससे न केवल सुख शान्ति व सफलता मिलेगी वरन् अमंगल व क्लेश भी दूर होगे । 5. बस, गाड़ी या रेल आदि में सफर करते जब कोई अन्य कार्य प्रायः नहीं होता, तो महामंत्र का या ऊँ अर्हत का अजप्पा जाप (श्वास प्रश्वास के माध्यम से) कर सफर के समय को सार्थक करें । महामंत्र नवकार के बीजाक्षर न होने से इसे कभी भी कही भी निसंकोच जपा जा सकता है । साप्ताहिक अवकाश के दिन कम से कम एक घण्टा का समय सब की सुविधानुसार निश्चित कर उस अवधि में सामूहिक नवकार का जाप क्रिया करें । यह जाप धर्मस्थान के अलावा अन्यस्थान - घर, दुकान पर भी किस जा सकता है । जहां भी करेंगे वहां का वातावरण पवित्र होगा तथा निकट में रहे भाई, बहिन भी उससे लाभान्वित होंगे । महामंत्र जाप के लिए शुद्धि जाप आठ प्रकार की शुद्धि पूर्वक करे । यथा 1. द्रव्य शुद्धि अंतरंग शुद्धि (कषाय रहितता) इस हेतु संवरित हो जाप करें । 2. क्षेत्र शुद्धि निराकुल स्थान 3. समय शुद्धि निश्चित्तता का समय 4. आसन शुद्धि स्वच्छ सूती या, ऊनी आसन 5. विनय शुद्धि 6. मन शुद्धि, मन की एकाग्रता 7. वचन शुद्धि (मधुर शुद्ध उच्चारण) 8. काय शुद्धि शारीरिक बाधाओं से निवृत हो जाप में स्थित होवे । परमेष्ठी का परमोपकार संसारी जीवों पर 1. अरिहन्तो का - मोक्ष मार्ग प्रगट कर सिद्ध भगवंतों की पहिचान कराते हैं। 2. सिद्ध भगवंतों का - अव्यहार से व्यवहार राशि में जीवों को आने का अवसर देते हैं । 3. आचार्यो का - पंचाचार की पालना करा मोक्षमार्ग में आगे बढ़ाते हैं । 4. उपाध्यायों का - श्रुत ज्ञान का बोध दे धर्म का मर्म बता साधना मार्ग में प्रकाश देते हैं । 5. साधुओं का - धर्म कथा आदि से प्रेरित कर आत्म बोध दे, साधना में लगते हैं । उपसंहार – महामंत्र नवकार जिनशासन का और चौदह पूर्व का सार है । प्रभु ने फरमाया है समग्रलोक हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 62 हेगेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Jaindeatunamast

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