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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
जीव के प्रति अपनी उपरोक्त मैत्री की भावना बोलता और जाप में तन्मय हो जाता । रात्रि के करीब ग्यारह बजे मुझे जोर की उल्टी हुई । सारा तसला भर गया । मैं बेहोश हो गया । घर वालों ने विचारा यह अंतिम घड़ी का संकेत है । रोना पीटना शुरू हो गया । कुछ समय बाद मुझे होश आया और दो तीन लौटे पानी पी गया । फिर पुनः इस विचार से कि कहीं मेरी सद्गति के बजाय दुर्गति न हो, पुनः पुनः नवकार की धुन व पूर्वोक्त मैत्री भावना बोलना चालू रखा । थोड़ी देर में मैनें दूध भी पी लिया, जबकि पूर्व में पानी भी गले न उतरता था । फिर 7-8 घण्टे गहरी निद्रा आ गयी । दूसरे दिन निद्रा खुली तो मानों नवजीवन मिल गया हो, मैंने चाय व तरल पदार्थ लेना शुरू कर दिया फिर दूध मिठाई हलवा आदि पौष्टिक आहार लेना भी शुरू कर दिया। डाक्टरो ने मेरा चेक अप कर बड़ा आश्चर्य व्यक्त किया कि तीसरी स्टेज पर पहुंची कैंसर की बीमारी कैसे अचानक ठीक हो गई । वस्तुतः यह सब केवल प्रभु पंच परमेष्ठी भगवंतों का श्रद्धा पूर्वक किये गए गुरु जाप का ही फल था ।"
3. णमोकारमंत्र से सर्प विष का प्रभाव हीन होना- वर्ष 1983 ई की घटना है । टोंक से दिगम्बर जैन संघ बस से सम्मेदशिखर की यात्रा पर गया था । टोंक के श्री गणेशदासजी पारख भी साथ में गए थे । श्री पारख ने बताया कि उनकी यात्रा की बस नालंदा के पास जंगल में खराब हो गई । यात्री गण बस से नीचे उतरे व इधर उधर घूमने लगे। तभी यात्रा में साथ आए एक बालक को वहां पर सर्प ने डस लिया । सभी घबरा उठे कि क्या किया जाय? तभी वहां के एक व्यक्ति ने निकट में ही एक फकीर रहता बताया, जो झाड़ा दे सर्प का जहर उतारता है । उस बालक को वहां ले गए। उस मुस्लिम फकीर ने पूछा आप कौन लोग है? इस पर उसे बताया कि हम सब जैन है और यात्रार्थ आए हुए हैं । फकीर ने कहा तब आपने मेरे पास आने की क्यों तकलीफ की? आपके पास ही जहर उतारने की चीज उपलब्ध है जो मैंने भी आप लोगों से ही ग्रहण की है । अब देखिए आपकी ही वस्तु से जहर उतारकर मैं बालक को अभी ठीक करता हूं। उसने इतना कहकर णमोकार मंत्र का उच्चारण कर मौनस्थ हो परमेष्ठी का थोड़ी देर ध्यान किया । फिर महामंत्र को बोलते हुए बालक के झाड़ा लगाया व डसे हुए स्थान से खून चूसकर थूकता गया । थोड़े ही समय में बालक ठीक और चंगा हो गया। एक मुसलमान फकीर द्वारा णमोकार मंत्र के जाप से झाड़ा देकर सर्प विष उतार देने की णमस्कार से चमत्कार की यह एक अद्भुत घटना थी ।
णमोकार मंत्र जाप का फल व उपलब्धि - इस संबंध में कहा गया है -
“नवकारिक अक्खरो पावं फेरेइ सत्त अयराणं ।
पण्णास च पएणं पंचं मयाइ समगोणं"।" अर्थात् इस महामंत्र को भाव सहित जपने से इसका एक अक्षर सात सागरोपम (नरकायु) पापो को, और उसका एक पद पचास सागरोपम पापों को तथा सम्पूर्ण पांच पद, पांच सौ सागरोपम स्थिति प्रमाण पापो को नष्ट करता है । और भी कहा गया है -
“जो गुणइ लक्खमेगं, पूएह विहिणा य नमुक्कारं |
तित्थयइं नाम गोयं, सो बंधह नत्थि संदेहो ।' अर्थात जो विधि (एवं भाव) पूर्वक नमस्कार मंत्र को एक लाख बार जपता है, वह तीर्थकर गोत्र का बंध (उपार्जन) करता है, इसमें संदेह नहीं है ।
ऐसी भी मान्यता है कि इस मंत्रराज को नौ लाख बार जपे तो छासठ लाख जीव यौनियां (मनुष्य देव की अठारह लाख छोड़) कटे और 8 क्रोड 8 लाख, 8 हजार 808 बार जपे तो वह निश्चय से तीर्थकर होता है । (त्रिलोक विजय आलोयंणा तिलोक ऋषिकृत) ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेगेन्द्र ज्योति 59
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