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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
सिद्ध भगवन्त अशरीरी होने से निरंजन निराकार है, तथा अज्ञान व मोह से सर्वथा रहित है । निर्विकार, निर्भय, निर्विकल्प, निरिच्छ, निर्लेप आंकक्षा रहित, ज्ञानरूप, अक्षय अनंत गुण युक्त, अव्यय, आनंदस्वरूप व अनंत शक्तिवान होकर भी वीतराग होने से अकर्ता हैं । किन्तु जैसे चन्द्रमा द्रष्टा की नेत्र ज्योति बढ़ाने में सहज निमित्त होता है, अथवा जैसे धर्मास्तिकाय अक्रिय होकर भी द्रव्यों की गति में सहायक निमित्त है, वैसे ही सिद्ध भगवान अकर्ता होने पर भी वे सिद्ध गुणों के अनुरागी भव्यजीवों की सिद्धि में सहकारी कारण बनते हैं । दूसरे मनोविज्ञान शास्त्र का भी यह नियम है कि जो जैसा चिंतन, स्मरण करता है । वह कालान्तर में वैसा ही बन जाता है । अतः सिद्ध भगवंतों के चिंतन, मनन, स्तवन आदि से स्वतः आत्मा से परमात्मा पद की ओर गति होकर अन्नतः सिद्धत्व की प्राप्ति होती है । कहा है -
"कर्ता ईश्वर है नहीं, ईश्वर शुद्ध स्वभाव | यदि उसको प्रेरक कहे, ईश्वर दीव्य प्रभाव ||" "चेतन तो निज भान में, कर्ता आप स्वभाव |
बर्ते नहीं निज भान में, कर्ता कर्म प्रभाव" वस्तुतः ईश्वर जगत कर्त्ता नहीं है, इसकी पुष्टि वैदिक धर्म से भी होती है जैसे कहा गया है -
“न कर्तृत्वं न कर्माणि, लोकस्य सृजति प्रभुः ।
। फल संयोग, स्वभावष्तु प्रवर्तते ।' अर्थात् न परमेश्वर जगत कर्ता है, न कर्मो को बनाता है, तथा न कर्मो के फल संयोग की व्यवस्था या रचना करता है । परन्तु सब स्वभाव से ही बरत रहे हैं । आगे कहा है -
"नादत्ते कस्य चित्पाप, न चैव सुकृतं विभुः ।
अज्ञानना वृतं ज्ञानं, तेन मुह्यन्ति अन्तवः ||" अर्थात् न परमेश्वर किसी को पाप का फल देता है, न पुण्य का । अज्ञान से ज्ञान ढ़का है । इसीसे जगत के प्राणी मोही हो रहे हैं ।
सिद्ध भगवन्त सिद्ध होने की अपेक्षा से पन्द्रह प्रकार के कहे गये हैं । यथा - 1. तीर्थ सिद्धा (गौतमादि) 2. अतीर्थ सिद्धा (मरुदेवी मातादि) 3. तीर्थकर सिद्धा (भगवान शांतिनाथ आदि) 4. अतीर्थंकर सिद्धा (गजसुकमाल मुनि आदि) 5. स्वयं बुद्ध सिद्धा (कपिल केवलि, मृगापुत्र आदि) 6. प्रत्येक बुद्ध सिद्धा (करकंडु आदि) 7. बुद्धबोधिक सिद्धा (थावच्चा पुत्र आदि) 8. स्त्रीलिंग सिद्धा (चंदनबालादि) 9. पुरुषलिंग सिद्धा (अतिमुक्तकुमार आदि) 10. नपुंसकलिंग सिद्धा (गांगेय अणगार आदि) 11. स्वलिंग सिद्धा (जम्बूस्वामी आदि) 12. अन्यलिंग सिद्धा (शिवराजार्षि आदि) 13. गृहस्थ लिंग सिद्धा (कूर्मापुत्र आदि) 14. एक सिद्धा (भगवान महावीर आदि) 15. अनेक सिद्धा (भगवान ऋषभनाथ आदि) ।।
अरिहन्त साकार ईश्वर है, जबकि सिद्ध निराकार । इसी कारण से साकार निराकार दोनों उपासनाओं का अपना महत्व है । म. कबीर ने इन दोनों उपामनाओं के विषय में बडी मर्मस्पर्शीबात इस प्रकार कही हैं -
"निर्गुण तो है पिता हमारो, और सगुण महतारी |
किसको वंदे, किसको निदे, दोनो पल्ले भारी"।" सिद्ध भगवंतों की जघन्य अवगाहना एक हाथ आठ अंगुल व उत्कृष्ट तेतीस धनुष्य 32 अंगुल प्रमाण है |
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