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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
न महामंत्र णमोक्कार
(स्वरूप एवं माहात्म्य)
जशकरण डागा
मंगलाचरण “प्रथम नमु अरिहन्त सिद्धं को परमातम पद के धारी | फिर वंदन आचार्य देव को जो छत्तीस गुण के धारी ||
उपाध्याय गुणी साधु साध्वी, पंच महाव्रत के धारी |
भाव सहित हो उन्हें वंदना, जिनने मेह ममता मारी I" महामंत्र णमोक्कार जैन धर्म का मूल शाश्वत, सर्वजीव कल्याणक, अनुत्तर महामंत्र है । मंत्र का अर्थ होता है "मननात् त्रायते यस्मात् तस्मान्मंत्र प्रकीर्तितः ।" अर्थात् मनन करने से जो अक्षर स्वयं की रक्षा (त्राण) करते हैं, वे अक्षर मंत्र कहलाते हैं । णमोक्कार महामंत्र, सम्पूर्ण लोक का सार व श्रेष्ठतम होने से, हमें मंत्र राज़ या परमेष्ठी' कहा गया है । 'परमेष्ठी' का अर्थ है - जो आत्मा के लिए परम इष्ट, परम कल्याणकारी व मंगलकारी हो । यह मंत्रराज महाप्रभावक है, लौकिक व लोकोत्तर, भौतिक व आध्यात्मिक, दोनों प्रकार के अचिन्तय महाफलों का दाता और अनन्तः सर्व जन्म जरा, भय, रोग, शोक, गरजादि के सर्व दुखो का सर्वथा विनाश कर शाश्वत मोक्ष के अनंत सुखों का देने वाला है । यह परमेष्ठी मंत्र राज णमोक्कार हम प्रकार है:
“णमो अरहताणं |
णमो सिद्धाणं । णमो आयरियाणं |
णमो उवज्झायाणं |
णमो लोए सव्व साहूणं " "एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पावप्पणा सणो ।
मंगलाणंच, सवेसिं, पढमं हवइ मंगलम् ।।" अर्थ- "समस्त अरिहंतों को नमस्कार हो । समस्त सिद्धों को नमस्कार हो । समस्त आचार्यों को नमस्कार हो । समस्त उपाध्यायों को नमस्कार हो । लोक स्थित समस्त साधुओं को नमस्कार हो ।"
"इन पांच पदों का यह नमस्कार सभी पापों का नाश करने वाला है । संसार के सब मंगलों में यह प्रथम (मुख्य) मंगल है ।
इस महामंत्र के पांच पदों में प्रथम दो 'देव' से व शेष तीन 'गुरु' तत्व से संबोधित हैं, जिनमें पैंतीस अक्षर हैं । अन्त में चूलिका के चार पद हैं जिनमें तैंतीस अक्षर हैं । इस प्रकार से इस मंत्र राज में कुल अड़सठ अक्षर हैं ।
मंत्रराज के ग्यारह नाम :
इस णमोक्कार महामंत्र के ग्यारह नाम हैं । यक्ष 1. पंच महामंगल महाश्रुत स्कंध 2. नवकार महामंत्र 3. पंच नमस्कार महामंत्र 4. महामंत्र 5. अपराजित मंत्र 6. अनादिमंत्र 7. मंगल मंत्र 8. मूल मंत्र 9. मंत्रराज 10. जिन मंत्र व 11. असिआउसाय नमः मंत्र (यह नाम पांचों पदों के प्रथम अक्षरों को सयुक्त रूप है तथा इनसे ही हमरा बीज मंत्र ओम (ऊ) वाला है (अ+ अ + आ +उ+म-ओम)
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