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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
धातु मूर्तियां :
जैन धर्म सम्बन्धी धातु निर्मित मूर्तियां अपेक्षाकृत बाद की हैं । बड़ौदा के निकट अकोटा (गुजरात) से जैन ताम्रमूर्तियों का एक निधान प्राप्त हुआ है । जो प्रारम्भिक धातु कला पर प्रकाश डालता है । इस निधान में एक मूर्ति ऋषभनाथ की है । इसमें तीर्थंकर के नेत्रों को ध्यान मुद्रा में दिखलाया गया है । उनके अधखुले नेत्रों से आध्यात्मिक आभा निकलती हुई प्रतीत होती है । इसमें शरीर के अवययों में संतुलन, एवं माडलिंग में एक तारतम्य है । उमाकान्त पी.शाह के अनुसार यह सुल्तानगंज की बुद्ध की ताम्रमूर्ति के सदृश है । इसी कारण उन्होंने इस धातु मूर्ति को 450 ई. में रखा है । अकोटा निधान की दो अन्य ताम्र मूर्तियां भी महत्वपूर्ण हैं | इनमें से एक मूर्ति ऋषभनाथ की है जिसमें यक्ष और अम्बिका का भी अंकन है । इसे जिनभद्रगीण क्षमाश्रमण ने 500-50 ईसवी में प्रतिष्ठापित किया था । दूसरी मूर्ति एक अज्ञात् तीर्थकर की है । जिन भद्रगणि क्षमाश्रमण ने इस ताम्र मूर्ति को 550-600 ईसवी के मध्य प्रतिष्ठापित किया था । लगभग इसी काल को एक आकर्षक ताबे की जीवनस्वामी की मूर्ति अकोटा से भिन्न है जो प्राचीन कालमें का निरन्तरम का प्रमाण देते हैं । बसन्तगढ़ (राजस्थान) की मूर्ति के आधार भाग पर अंकति अभिलेख में संवत् 744 (687 ईसवी) का उल्लेख है ।
जैनधर्म सम्बन्धी ताम्र मूर्तियों की पूर्व मध्यकाल (600-1200 ई.) में विशेष लोकप्रियता हुई । इन्हें कई खण्डों में बनाया गया । इन मूर्तियों में यक्ष, यक्षी, जिन आदि को भी स्थान दिया गया । अधिकांश मूर्तियों पर अभिलेख उत्कीर्ण किए गये जिनमें दानकर्ता का नाम, उसका गण, शासन संवत् एवं तिथि का उल्लेख हैं । ऐसी मूर्तियां भारत के विभिन्न भागों से उपलब्ध हुई हैं । यह मूर्तियां अधिकांशतया जैन मन्दिरों में अर्पित की जाती थीं । उपासक एवं उपासिका इन्हें अपने घरों में गृहपूजा के लिए भी निर्मित कराते थे ।
सन्दर्भ ग्रंथ
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