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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
प्राकृत अपभ्रंश जैन साहित्य में प्रयुक्त संज्ञाओं की व्युत्पत्ति
- डॉ. धन्नालाल जैन अजवम्म - अजवर्मा ! र काम के साथ वर्ण द्वितीयकरण के नियमानुसार म्म । अजवर्मा गिरिनगर के राजा थे, इन्होंने अपनी पुत्री मदनावली का विवाह, प्रत्येक बुद्ध करकण्ड के साथ किया था ।
अजयंगि - अजितांगी । इ स्वर का लोप, ता में से आ स्वर का लोप, त के स्थान पर 'य' ऋति, ई दीर्घ स्वर का हृस्व इ होकर अजयंगि नामकरण हुआ । अजितांगी गिरिनगर के राजा अजवर्मा की पत्नी तथा प्रत्येक बुद्ध करकण्ड की सास थीं ।
अनंगलेह - अनंगलेखा । खा में से आ स्वर का लोप और स्व में से अल्प-प्राण ध्वनि का लोप होकर महाप्राण ध्वनि 'ह' शेष रहने से 'अनंगलेह' नामकरण हुआ । अनंगलेखा तिलकद्वीप की एक विद्याधरी थी ।
अमियवेग - अमितवेग । त का लोप और 'यंश्रुति । एक विद्याधर । अमितवेग ने तेरापुर की गुफाओं में, लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व, पार्श्वनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा स्थापित की थी । अमितवेग द्वारा स्थापित पार्श्वनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा आज भी उपलब्ध है ।
अरिरूयण - अरिदमण या अरिदमन । म का लोप और 'य' श्रुति । न का ण होकर, अरिदयण नामकरण हुआ। अरिदमन उज्जैन का राजा था । उज्जैन का राजा अरिदमन जैन साहित्य में एक 'जिण भक्त के रूप में प्रसिद्ध है ।
कंचनमई- कंचनमती । ती में से त का लोप और ई स्वर शेष । हिन्दी में, कंचनमई से ही कंचनबाई शब्द बना है। म का लोप 'व' श्रुति और व का ब होकर बई या बाई (आ स्वर के आगमन से) बना है । आज जो हिन्दी में बाई शब्द चल रहा है वह मती - मई - वई - बाई के रूप में विकसित हुआ है । कंचनमती एक प्रसिद्ध विद्याधरी रही है, इसका विवाह राजा नरवाहनदत्त से हुआ था ।
कणयप्पह - कनकप्रभ । न काण, क का लोप और 'य' श्रुति, प्रभा वर्ण द्वितीयकरण होकर भी में से अल्प प्राण ध्वनि का लोप होकर 'ह' महाप्राण ध्वनि शेष रहने से कणयप्पह नामकरण हुआ है । ये तिलकद्वीप के एक विद्याधर थे ।
कउमयता - कुसुमदत्ता । सु में से स का लोप, 'उ' स्वर शेष रहा, द का लोप और 'य' श्रुति । दन्तीपुर के वन रक्षक की पत्नी ।
चंदलेह - चन्द्रलेखा । द्र में से र् का लोप, खा में से आ स्वर का लोप, ख की अल्पप्राण ध्वनि का लोप और महाप्राण ध्वनि 'ह' शेष रहने से चंदलेह । चन्द्रलेखा तिलकद्वीप की एक प्रसिद्ध विद्याधरी थी ।
दसरह - दशरथ । श का स, थ में से अल्पप्राण ध्वनि का लोप और महाप्राण ध्वनि 'ह' शेष रही । राजा दशरथ राम के पिता और अयोध्या के राजा थे ।
धणयत्त - धनदत्त । न का ण, द का लोप और 'स' श्रुति । जैन साहित्य में अनेक धनदत्त हुए हैं । एक धनदत्त, नालंदा का प्रसिद्ध व्यापारी हुआ है । इन्हीं का लड़का धनपाल हुआ । एक धनदत्त प्रसिद्ध ग्वाला भी हुआ है जो जिन भक्ति के प्रभाव से अगले भव में मोक्ष-गामी प्रत्येक बुद्ध के रूप में जन्म लेता है ।
धणमई - धनमती । न का ण, ती में से त का लोप और ई स्वर शेष रहा । धनमती, ताम्रलिप्ति के वसुमित्र और नागदत्ता की पुत्री थी । धनमती का विवाह नालंदा के व्यापारी धनदत्त के पुत्र धनपाल से हुआ था ।
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