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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
किसी भी व्यक्ति को भ्रांति में अवभासित होनेवाले पदार्थों (जैसे पानी, रजत, अथवा सप) का पहले से ही ज्ञान होना आवश्यक होता है । उदाहरण के लिये, जिसने पहले कभी रजत देखा ही नहीं है और जिसके मन में रजत की कोई संकल्पना ही न हो उसको सींप में रजत का अवभास नहीं होगा । उसी प्रकार स्वप्न में अवभासित होनेवाले पदार्थ का भी सपना देखनेवाले को पूर्वानुभव होना आवश्यक है, क्योंकि स्वप्न के आभास के लिये पूर्वसंस्कार, जो मन में संचित हुवे हो, उनका पुनर्जागरण होना आवश्यक होता है । तभी वह पदार्थ या प्रसंग उसको स्वप्न में अवभासित हो सकता है । स्वप्न टूटने पर स्वप्न के पदार्थ की जगह पर व्यावहारिक जगत् में उस पदार्थ का या किसी अन्य पदार्थ का कोई अस्तित्व नहीं बचता, जबकि भ्रांति दूर होने पर ऐसा नहीं होता । उसमें सर्प के स्थान पर रस्सी, या जल की जगह बालू और रजत के स्थान पर सींप का अनुभव हो जाता है, जो बाद में विद्यमान रहता है । यह स्वप्न और अन्य भ्रांतियों के बीच एक महत्व का अन्तर हैं ।
स्वप्न का उदाहरण देकर एकमेवा द्वितीय ब्रह्म की सिद्धि वेदान्त में किस प्रकार की गयी है, इस संबंध में श्रीमत शंकराचार्य के अपरोक्षानुभूति ग्रंथ में उपलब्ध निम्न दो श्लोक विचारणीय हैं ।
स्वप्नो जागरणेऽलीक: स्वप्नेऽपि न हि जागरः । द्वयमेव लये नास्ति लयोऽपि ह्युभयोन च 157|
त्रयमेव भवेन्मिथ्या गुणत्रय विनिर्मितम् ।
अस्य द्रष्टा गुणातीतो नित्यो ह्येक श्चिदात्मकः 1158।। अर्थ :- "स्वप्न की स्थिति जागृति में नष्ट हो जाती है । जागृति का स्वप्न में अभाव होता है । निद्राकाल में स्वप्न और जागृति दोनों नहीं रहते और उन दो में निद्रा नहीं रहती । अतः त्रिगुणों से निर्मित ये तीनों अवस्थाएं मिथ्या हैं | तीनों में विद्यमान द्रष्टा ही गुणातीत, नित्य, एकमात्र, चित्स्वरूप है " ।
उस आत्मस्वरूप के साक्षात्कार को ही अपरोक्षानुभूति कहते हैं | वही तुरीय अवस्था है ।
महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र में चित्त को प्रसन्न एवं स्थिर करने के उपायों की विस्तार से चर्चा की है । (देखें - योगसूत्र 1: 33-39) । उसमें 38वें सूत्र में उन्होंने स्पष्ट कहा है कि स्वप्न तथा निद्रा में कभी कभी अत्यंत उत्कट, सुखद अनुभव आते हैं | उनपर यदि साधक चित्त को स्थिर करे तो उसका चित्त आसानी से प्रसन्न सकता है।
दार्शनिक चिन्तन के अलावा पिछले कुछ वर्षों में मनोविज्ञान के क्षेत्र में स्वप्न के संबंध में प्रचुर खोज कार्य हुआ है। सुप्रसिद्ध जर्मन मनोवैज्ञानिक सिग्मंड फ्रॉइड ने मनोविकारों से ग्रस्त व्यक्तियों के स्वप्नों का विश्लेषण करके मन के व्यवहारों को समझने का सफल प्रयास किया । उन्होंने मन की तह में दबी हुवी भावनाओं को तथा भय को अभिव्यक्ति की (Conscious) दशा में लाने का अपना नया तरीका (Psychoanalysis) विकसित किया। वर्तमान में मस्तिष्क के सूक्ष्मतम घटकों के वियुत्रसायनिक प्रक्रियाओं की कार्यपद्धति का प्रचुर मात्रा में अध्ययन होने के फलस्वरूप स्वप्न एवम् मस्तिष्क के अन्य व्यवहारों के बारे में नयी जानकारी प्राप्त हुई है।
उसके अनुसार 'स्वप्न' यह निद्रा के अंतर्गत घटित होनेवाली एक अवस्था है । निद्रा के 'शान्त निद्रा (Quiet Sleep) तथा 'सक्रिय निद्रा (active Sleep) ऐसे दो प्रकार अब माने जाते हैं । जब हम जागृति से निद्रा की अवस्था में जाते हैं तब प्रथम शान्त निद्रा की चार अवस्थाओं में से विकसित होनेवाली स्थिति लगभग डेढ़ घंटे
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