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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
कल्पसूत्र की एक प्रति और भी प्रकाश में आई। यह सुलतान गयाथशाह खिलजी के समय की है। इसके चित्रों में गुजरात की अपेक्षा मालवी प्रभाव अधिक हैं"।
मालवा की चित्रकला पर इन दिनों ईरानी चित्रकला का प्रभाव बढ़ता चला जा रहा था। यही कारण है कि मांडव कल्पसूत्र में जो चित्रकला का नया स्वरूप दिखाई देता है वह 'नियामतनामा' में अंकित चित्रों में शैलीगत समानता रखता है। नियामतनामा में अंकित चित्र स्थानीय प्रभाव से युक्त ईरान की शिराज शैली के हैं। इस नयी चित्रशैली के अनुकरण पर जैन पोथियों में भी चित्र बनाये गये" सच पूछा जाय तो नियामतनामा और 'बोस्ता' के चित्रों ने मालवा में एक नयी चित्र शैली का पुरस्सरण किया ।
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इस प्रकार यह निष्कर्ष निकालना अन्यथा न होगा कि परमार एवं सल्तनत काल में मांडव में जैन धर्म का पर्याप्त प्रचार प्रसार रहा मांडव के अत्यंत उल्लेखनीय एवं सम्पन्न जैन श्रेष्ठियों ने राजनीति, प्रशासन, साहित्य, धर्म व संस्कृति, कला एवं स्थापत्य, आर्थिक क्षेत्रों एवं जीवन की विभिन्न विधाओं में जो अभूतपूर्व एवं स्मरणीय भूमिका अदा की, वह मालवा ही नहीं, भारत के इतिहास की सदैव एक स्थायी निधि बन कर रहेगी ।
संदर्भ
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मांडवगढ़ गिरि आवीया में ननिहिं मनोरथ लाहि ।
नाहटा अरगचन्द : मालवा के श्वेताम्बर जैन भाषा कवि - मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रंथ, पृ. 361
नाना पुण्यजनाकीर्णे दुर्ग श्री मांडपा भिधे । - उक्त, पृ. 277
इणिपरिवेत्य प्रवारी रची मांडवगढ़ हरि सिद्धि ! उक्त
मांडवगढ़ वर मालव देसइ । जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह, द्वितीय भाग, पृ. 112
सी. क्राउझे : माण्डव के जावड़शाह - कर्मयोगी केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ, षष्ठ खण्ड, पृ. 88
व्यक्तिगत सर्वेक्षण
नालककापुरे सिद्धो ग्रन्धाय नेमिनाथ चैत्यगृहे जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग 2, पृ. 300
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प्रमारवंशवार्धीन्दु देवपाल नृपात्मजे ।
श्री मज्जेतुगिदेव ऽसि स्थेम्नाऽवन्ती भवत्यलम् ।
नलकछच्पुरे श्रीमन्ने मि चैत्यालयेऽसिधत् ।
विक्रमाब्द शतेष्वेषा त्रयोदशसु कीर्ति के ।। अनागार धर्मामृत प्रशस्ति, 119, उक्त पृ. 412
वास्तव्यो नलकच्छ चारू नगरे कर्त्ता परोपक्रियाम् । श्रीमदर्जुन भूपाल राज्ये श्रावक संकुले ।
जैन धर्मो दयार्थ यो नलकच्छपुरे वसत ।
जिनयज्ञकल्प प्रशस्ति उक्त, 411
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11. मुनि-द्वय अभिनन्दन ग्रन्थ - मु. व. अ. ग्र.
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12. तबकास- ए- नासिरी, पृत्र 622
उक्त पृ. 409
पृ. 252
13. दी देहली सल्तनत ए काम्प्रेहेन्सिव हिस्ट्री आफ इण्डिया, भाग 5, पृ. 395
14. निगम, श्यामसुन्दर सम इपिग्राफिक इविडेन्स आफ दी रिवाइवल आफ टेम्पल आर्किटेक्चर इन मालवा पद्मश्री डॉ. वि. श्री. वाकणकर अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ. 111
15. लोढ़ा दौलतसिंह मंत्री मंडन और उनका गौरवशाली वंश श्री यतीन्द्र सूरि अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ. 130 16. मुस्लिमकालीन मालवा में मांडव का महत्व परमार काल की भांति ही बना रहा । कुछ अर्थों में उसका महत्व पूर्वापेक्ष इसलिये
भी बढ़ गया था क्योंकि मांडव मालवा के सुलतानों के आधीन एक स्वतंत्र मालवा राज्य की राजधानी था । मालवा के प्रारंभिक शासक दिल्ली की केन्द्रीय सत्ता से विद्रोह करके सत्ता में आये थे । इस कारण वे सैनिक और वित्तीय दृष्टि से स्थानीय जनता पर निर्भर थे। वित्तीय साधनों की पूर्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत वह जैन समाज था जो मुस्लिम आक्रमण के विरूद्ध अपने अस्तित्व
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हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति
1390-1410 ईस्वी,