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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन
आत्मावलंबन के लिए जिनबिम्ब श्रेष्ट आधार है।
जैन विशारद मुनि जिनेन्द्र विजय 'जलज' किसी भी व्यक्ति को जानने के लिए चार निक्षेपों की आवश्यकता होती है। 1. नाम निक्षेप 2. स्थापना निक्षेप वस्तु के नाम व आकार की स्थापना 3. द्रव्य निक्षेप - वस्तु के नाम, आकार के साथ ही उसके भूतकाल एवं भविष्य काल के गुणों का वर्णन 4. भाव निक्षेप 1- नाम आकार के साथ उसके वर्तमान गुण ।
नाम निक्षेप :
जिनेश्वर देवों के नाम शान्तिनाथ आदि नाम, यह नाम जिन । उनकी प्रतिमाऐं, यह स्थापना जिन / तीर्थंकर नाम कर्म बांधा हो ऐसे तीर्थंकरों के जीव / वह द्रव्य जिन और समवशरण में विराजित साक्षात जिनेश्वरदेव भाव जिन कहलाते हैं।
नाम रखने के तीन तरीके होते हैं
1. किसी व्यक्ति ने अपना नाम महावीर या अपनी दुकान का नाम महावीर भंडार रख लिया तो इस नाम से उस व्यक्ति या वस्तु का ही परिचय होता है, भगवान महावीर का नहीं ।
2. महावीर या अन्य तीर्थंकर आदि का नाम उनके अभिप्राय से रखना ।
3. ऐसा कोई नाम रखना जिसका कोई अर्थ ही नहीं।
जैसे किसी भ्रष्ट व्यक्ति ने अपना नाम अरिहंत रख लिया परन्तु उसका भाव निक्षेप, शुद्ध नहीं होने से कोई उसका नाम नहीं लेता। लेकिन जब हम अरिहंत बोल कर किसी तीर्थकर का स्मरण करते हैं तो भाव निक्षेप शुद्ध होने से वह स्मरणीय होते हैं।
नाम स्मरण की महिमा भक्तामर स्तोत्र, कल्याण मंदिर स्तोत्र आदि में बतलाई गई है। स्थापना निक्षेप :
जिस वस्तु में अरिहंत की स्थापना की जाती है, वह स्थापना अरिहंत कहलाती है। जिस नाम वाली वस्तु के सदृश्य रूप की आकृति अथवा असदृश्य रूप की आकृति से मन में उस वस्तु का बोध होता हो, वह उस वस्तु की स्थापना निक्षेप की वस्तु समझना ।
द्रव्य निक्षेप :
जिस द्रव्य का भूतकाल में अथवा भविष्य काल में जो कारण रूप पदार्थ है, वह द्रव्य निक्षेप का विषय है । तीर्थकर नाम कर्म बांधे हों, ऐसे तीर्थंकर परमात्मा का तीर्थंकरपना उदय में आवे उसके पहले तथा तीर्थकर पद भोगकर निर्वाण पद पाने के बाद, इस प्रकार दोनों समय का देह द्रव्य तीर्थकर है
किसी वस्तु के द्रव्य निक्षेप पर विचार करने से पहले उसके भाव निक्षेप को ध्यान में रखना चाहिए। उसके बाद उस वस्तु के भूत-भविष्य काल में कारण रूप पदार्थ को द्रव्य निक्षेप में गिनना चाहिए जो पदार्थ भव-निक्षेप के विषय वस्तु का भूतकाल या भविष्य में कारण रूप नहीं है, उस पदार्थ को द्रव्य निक्षेप में कहना, द्रव्य निक्षेप के प्रति अज्ञान का सूचक है। यहां भाव निक्षेप का विषय वस्तु सर्वज्ञ वीतराग- अरिहंत जिनकेवली है।
भाव निक्षेप :
भाव का साक्षात मान कराने वाला अकेला भाव ही नहीं, परन्तु उसका नाम आकार एवं आगे पीछे की अवस्था इन तीनों को मिला कर सोचने पर ही किसी वस्तु का निश्चित बोध होता है।
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