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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथा
को छुपाय आज तक करके
आचार्य प्रवर श्रीमद् विजय विद्याचंद्रसूरीश्वरजी महाराज 'पथिक' ने “पथिक मणिमाला" के 151 दोहो में पाप और पुण्य को इस प्रकार परिभाषित किया है :पाप :- सप्त व्यसन से सदा पाप तत्व की रेख।
रोता हँसता भोगवे, अशुभ कर्म का लेख।।31|| पुण्य :- है आमोद में, भौतिक सुख अनुकूल |
पुण्य तत्व का फल यही, शुभ करनी का मूल|B0|| थॉमस फुलर के शब्दों में "पाप में पड़ने वाला मानव होता है, जो पाप पर पछताता है वह सज्जन है, जो पाप पर गर्व करता है, वह शैतान है।" गुप्तं पापं प्रकटं पुण्यं
अर्थात पाप छुपाना चाहता है, अंधकार चाहता है और पुण्य ? पुण्य प्रकट होना चाहता है, प्रकाश चाहता है। कुछ लोग समझते हैं कि हमारे पाप का किसी को पता नहीं है। याद रखना कि पाप सिर पर चढ़ कर बोलता है। पापी की आंखों की विकृति क्या पाप को छुपा पाती है। कवि ने कहा था -
पाप छुपाये ना छुपे, छुपे तो मोटा भाग।
दाबी दूबी न रहे, रूई लपेटी आग|| रूई में लिपटी हुई आग कब तक छुपी रह सकती है ? वह कभी भी भड़केगी ही। इसी तरह पाप कभी भी छुप नहीं सकता। पुण्य को छुपाया जा सकता है। गुप्त दान के द्वारा दान को छुपाया जा सकता है। कृत्रिम क्रोध के द्वारा समता को छुपाया जा सकता है। परन्तु पाप को छुपाने के लिए कोई भी उपाय आज तक ईजाद नहीं हुआ है। जो पाप है वह छुप नहीं सकता है एवं जो छिपता है वह पाप नहीं होता। अतः मानव पाप करके स्पष्ट कह दे, उसे छुपाने के लिए सौ प्रकार के झूठ न बोले। क्योंकि हमारा मन दर्पण है - इस दर्पण में जो है - वह वैसा ही प्रतिभाषित होता है। एक कवि ने कहा था -
तेरा मन दर्पण कहलाये
भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए मन के दर्पण से कुछ छिपा नहीं रह सकता। पाप कार्य को मन के दर्पण में देखकर आत्मा की आवाज से पहचान कर पाप से निवृत हो जाना चाहिए। वर्तमान में पापों की बढ़ती गंगा :
जैसे छोटा बीज वृक्ष के विकास की क्षमता रखता है, उसी प्रकार छोटा सा पाप का बीज मानव के विनाश का कारण बन सकता है। चेहरे पर छोटा सा दाग हो तो सौंदर्य सामाप्त हो जाता है। वस्त्र में थोड़ी सी मैल हो तो वस्त्र को बदलना पडता है, नाव का छोटा सा छिद्र नाव की सुरक्षा को समाप्त कर देता है। इसी प्रकार छोटा सा पाप भी जीवन को पतन के गर्त तक पहुँचा देता है। अतः कभी भी पाप की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। कवि जयशंकर प्रसाद ने कहा है कि मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंसता है, तब वह उसी में और भी लिपटता जाता है। स्वर्वाहिनी गंगा दूषित कैसे हुई ? फिल्मों में गीत गुनगुनाये जाते है -
राम तेरी गंगा मैली हो गई,
पापियों के पाप धोते-धोते|| पापियों के पास इतना बड़ा पापों का भंडार है कि जिसे धोते-धोते गंगा भी मैली हो गई। पवित्र करने वाली गंगा को भी हमने अपवित्र कर डाला। अतः अब पाप के मैल को धोने के लिए गंगा जल काम नहीं आयेगा। अब तो आत्मा की शुद्धि के लिए प्रायश्चित का गंगा जल ही काम आयेगा।
आपने गंगा के जल को देखा तो है ना! लोग उसे आँखों से और सिर से लगाते हैं, उसका आचमन करते हैं। उसको पीते हैं। यदि गंगा में बाढ़ आ जाये तो उस गंगा के जल को पीने के लिए आप घर पर बैठे रहेंगें ना! गंगा तक जाना न पड़ेगा आपको अस्थि विसर्जन के लिए। गंगा स्वयं जो आ रही आपको लेने के लिए। स्वीकार है ना!
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 119 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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