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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
प्रकरण, लाभालाभ प्रकरण, स्वरप्रकरण, स्वप्न प्रकरण, वास्तुविद्या प्रकरण, भोजन प्रकरण देह लोक दीक्षा प्रकरण, अंजन विद्या प्रकरण एवं विषय विद्या प्रकरण आदि है । श्रीधराचार्य :- ये कर्नाटक के जैन ब्राह्मण थे और ज्योतिष के विशिष्ट विद्वान थे । ये बलदेव नाड़ान्तानि नरिगुन्द के निवासी थे । इनके पिता का नाम बलदेव शर्मा और माता का नाम अव्वोका था । ये शैव थे, किंतु बाद में जैन धर्मानुयार्य हो गये थे । इसका रचनाकाल 1049 है । जातक तिलक कन्नड़ भाषा का ग्रंथ है । यह जातक संबंधी रचना है। इसमें लग्नग्रह, ग्रहयोग और जन्मकुण्डली संबधी फलादेश का कथन है ।
ज्योतिर्ज्ञान विधि या श्रीकरण में एक प्रकरण प्रतिष्ठा मुहूर्त का है । इसमें संवत्सरों के नाम, नक्षत्र नाम, योगना, करण नाम तथा उनका शुभाशुभ दिया गया है । गणित सार गणित का अद्भुत ग्रंथ है । ये अपने समय के धुरंधर विद्वान है । भटवोसरी:- ये दिगम्बराचार्य दामनन्दी के शिष्य थे । इन्होंने आयज्ञान तिलक की रचना की । यह प्रश्न विद्या से संबंधित ग्रंथ है । इसकी गाथा संख्या 415 है और इसमें 25 प्रकरण है । इनका संबंध उज्जैन से भी बताया जाता है। इनका समय दशमीं सदी माना जाता है । दुर्गदव :- ये संयमदेव के शिष्य थे । ये उत्तरभारत में कुम्भनगर में रहते थे । वहाँ के राजा का नाम लक्ष्मीनिवास था। इन्होंने रिक्त समुच्चय की रचना 1089 में की थी । अन्य रचनाओं में अर्धकाण्ड और मंत्र महोदधि है । इनकी रचनाओं से भी ज्योतिष विद्या विषयक अच्छी जानकारी मिलती है । मल्लिषेण :- इन्होंने प्रश्नशास्त्र, फलित ज्योतिष में संबंधित 'आयसद्भाव' नाम महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की । ये दक्षिण भारत के धारवाड़ जिलान्तर्गत गदग तालुका के रहने वाले थे । इनके पिता का नाम जिनसेन सूरि था इनका समय सन् 1043 माना गया है । ग्रंथ के अंत में कहा गया है कि, ग्रंथ के द्वारा भूत, भविष्य और वर्तमान इन तीनों कालों का ज्ञान हो सकता है । साथ ही इन्होंने इस विद्या को अन्य को न देने के लिए भी कहा है । राजादित्य :- इनके विषय में कहा जाता है कि, कन्नड़ साहित्य में गणित का ग्रंथ लिखने वाले ये सबसे पहले विद्वान थे। इनके द्वारा रचित व्यवहार गणित, क्षेत्र गणित, व्यवहार रत्न और जैन गणित टीकोदाहरण, चित्रसुगे एवं लीलावती प्राप्त है । इनके समस्त ग्रंथ कन्नड़ में है । श्रीपति इनके पिता एवं वसन्ता इनकी माता थी । कोडिमण्डल के पूदिनबाग में इनका जन्म हुआ था । इनका समय ईसा की बारहवीं सदी माना जाता है । उदयप्रभ :- ये विजयसेन सूरि के शिष्य थे । इनका समय ई0 सन् 1220 बताया जाता है । आरंभसिद्धि अपरनाम व्यवहारचार्य नाम ज्योतिष ग्रंथ की इन्होंने रचना की जो महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है । इस ग्रंथ पर वि० से0 1514 में रत्नशेखरसूरि के शिष्य हेमहंस गणि ने एक विस्तृत टीका लिखी है । इन्होंने भुवनदीप या ग्रहभाव प्रकाश नाम ज्योतिष ग्रंथ की भी रचना की । इस पर सिंहतिलक सूरि ने सं0 1326 में विवृत्ति नाम टीक लिखी है । भुवनदीपक में ज्योतिष की ज्ञातव्य सभी बातें इस ग्रंथ के द्वारा जा सकती है । नरचंद्र उपाध्याय :- इन्होंने ज्योतिष शास्त्र के अनेकग्रंथों की रचना की । वर्तमान में बेड़ा जातक वृत्ति प्रश्न जातक, प्रश्न चतुविंशतिका, जन्म समुद्र सटीक, लग्नविचार, ज्योतिष प्रकाश उपलब्ध है । ये सिंहसूरि के शिष्य थे । बेड़ा जातक वृत्ति की रचना माघ सूरि अष्टमी सं0 1324 रविवार के दिन हुई । इसमें 1050 श्लोक हैं । इनकी एक अन्य ज्योतिष विषयक ज्ञानदीपिका भी बताई जाती है । बेड़ाजातक वृत्ति द्वारा फलित ज्योतिष का आवश्यक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । समन्तभद्र :- इन्होंने केवलज्ञान प्रश्न चूड़ामणि ग्रंथ की रचना की । ताड़पत्रीय ग्रंथ में इस ग्रंथ के रचनाकार का नाम स्पष्ट रूप से समन्तभद्र लिखा है, परंतु कौन से? रचना शैली दृष्टि से ग्रंथ 12वीं, 13वीं सदी का प्रतीत् होता
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
हेमेन्द ज्योति* हेगेन्द्र ज्योति Jisamajdsab