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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
4.
उपर्युक्त व्रत की निम्न पांच भावनाएँ हैं - 1. विवेक विचार से बोलना 2. क्रोध के वश न होना 3. लोभ के वश न होना
भय के वश न होना 5. हास्य के वश न होना
इस प्रकार असत्य का सर्वथा त्याग करने वाले साधु को भाषा की सदोषता एवं निर्दोषता का पूर्णतया ध्यान रखना चाहिए"। अचौर्य महाव्रत :
चोरी आत्मा को पतन की ओर ले जाने वाली है। चोर कार्य करने वाला साधना में संलग्न होकर आत्मशक्ति को कदापि प्राप्त नहीं कर सकता। अतः साधु को अदत्त ग्रहण सर्वथा त्याज्य है। इस प्रकार साधु को बिना दिए कुछ भी नहीं लेना चाहिए, न चोरी करनी चाहिए और न चोरी करने की प्रेरणा ही देनी चाहिए तथा न चोरी करते हुए का अनुमोदन ही करना चाहिए। इसी को अचौर्य महाव्रत कहते हैं।
इस व्रत की निम्न लिखित पांच भवनाएँ हैं :1. बिना विचार किये अवग्रह की याचना करने वाला निग्रन्थ अदत्त को ग्रहण करता है। यह जैन दर्शन का
मत है। 2. गुरु की आज्ञापूर्वक आहार पान करने वाला हो।
3. प्रमाणपूर्वक अवग्रह का ग्रहण करने वाला हो। 4. निर्ग्रन्थ पुनः पुनः अवग्रह का ग्रहण करने वाला हो।
5. साधार्मिक साधु की कोई भी वस्तु ग्रहण करनी हो तो साधार्मिक से आज्ञा ग्रहण कर लेनी चाहिए। ब्रह्मचर्य व्रत :
भोग की प्रवृत्ति से मोह कर्म को उत्तेजना मिलती है। इससे आत्मा कर्मबन्ध से आबद्ध होता है और संसार में परिभ्रमण करता है। अतः साधु को ब्रह्मचर्य अर्थात् विषयभोग से सर्वथा दूर रहना चाहिए। इसलिए साधु न तो विषय भोग का सेवन करें, न दूसरे व्यक्ति को विषयवासना की ओर प्रवृत्त करे और न ही प्रवृत्त व्यक्ति का समर्थन ही करें।
इसकी भी निम्नलिखित पांच भावनाएँ हैं :1. स्त्रियों की काम विषयक कथा नहीं करना। 2. विकार दृष्टि से स्त्रियों के अंग प्रत्यंगों का अवलोकन न करना। 3. पूर्वोपभुक्त विषय भोगों का स्मरण न करना। 4. प्रमाण से अधिक तथा सरस आहार का आसेवन न करना। 5. स्त्री, पशु एवं नपुंसक से युक्त स्थान में रात्रि में न रहना।
हेगेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
93 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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