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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
जिनशासन में जयणा का महत्त्व
- साध्वी मणिप्रभाश्री
आप जैसे पैसों को सम्भालकर उपयोग में लेते हो, जितने चाहिए उसी प्रमाण में व्यय करते हो यह पैसों की सम्भाल हैं या जयणा की गई कहलाती है तो इसी प्रकार आप स्थावर जीवों की भी जयणा करो।
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जीव कौन कौन से ? :
चलते फिरते जीवों की रक्षा करने का तो सब धर्मो में कहा गया है। परन्तु जैन धर्म का जीव विज्ञान अलौकिक है। इसके प्ररूपक केवलज्ञानी - वीतराग प्रभु हैं। उन्होंने मनुष्य में जैसी आत्मा है वैसी ही आत्मा पशु, पक्षी, मक्खी, चींटी, मच्छर, पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति वगैरह 563 जीव भेदों में बताई है।
मनुष्य से लेकर वनस्पति वगैरह एकेन्द्रिय में आत्म तत्व की सिद्धि
मनुष्य की आत्मा के चले जाने के बाद, इसको ग्लुकोज़ के बोतल या ऑक्सिजन चढ़ नहीं सकता। कारण की आत्मा है तब तक ही शरीर अगर कोमा में चला जाये तो भी ब्लड़ सर्क्यूलेशन होता है। इसलिए "आत्मा है" यह सिद्ध होता है।
पशु, पक्षी, चींटी, मकोड़ा, मच्छर वगैरह में भी आत्मा है तब तक हलन चलन, खाने की क्रिया वगैरह करते हुए देखे जाते है।
अ. पृथ्वी पत्थर और धातुओं की खान में जो वृद्धि होती है वह जीव बिना असंभावित है। आ. पानी कुआं वगैरह में पानी ताजा रहता है और नया नया आता रहता है जिससे पानी के जीव की सिद्धि होती है इ. वनस्पति जीव हो तब तक सब्जी, फल वगैरह में ताजापन दिखता है।
याद रखो पृथ्वी पानी वगैरह में जो जीव हैं वे तुम्हारे जैसे ही और तुम्हारे माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी वगैरह बन चुके हैं अब यदि तुम इन जीवों की जयणा नहीं पालोगे तो तुम्हें भी पृथ्वी पानी वगैरह एकेंन्द्रिय के भव में जाना पड़ेगा।
प्रश्न :- पृथ्वी आदि जीवों को स्पर्श से
वेदना होती है, वह क्यों नहीं दिखती १
उत्तर :- गौतम स्वामी महावीर स्वामी से यह प्रश्न पूछते हैं, यह बात आचारांग सूत्र में आती है कि किसी मनुष्य के हाथ पैर काट दिये जाय, आँख और मुँह पर पट्टा बांधकर उसपर लकड़ी से खूब प्रहार किया जाय तो वह मनुष्य अत्यन्त वेदना से पीड़ित होता है लेकिन उसे व्यक्त नहीं कर सकता। उसी प्रकार पृथ्वी पानी वगैरह के जीवों को उसे कई गुणा अधिक वेदना अपने स्पर्श मात्र से होती है।
जयणा का उद्देश्य :
जैसे कपड़े का बड़ा व्यापारी सब को कपड़े पहुँचाता है फिर भी सब को कपड़े पहुँचाने का अभिमान अथवा उपकार करने का गर्व नहीं करता, कारण कि उसका उद्देश्य लोगों को कपड़े पहुँचाने का नहीं लेकिन पैसा कमाने का ही होता है। उसी प्रकार हम जीवों को बचायें जीवों की जयणा का पालन करें तो वह अपने अहिंसा गुण की सिद्धि के लिए ही है।
जयणा का फल :
जयणा के पालन करने से रोग वगैरह नहीं होते है मिलता है, समृद्धि मिलती है। आत्म भूमि के कोमल बनने क्रमशः आत्मा मोक्ष की प्राप्ति सरलता से करती है।
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सुख मिलता है, साता मिलती है, आरोग्य से गुण प्राप्ति की योग्यता आती है, जिससे
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